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मनमर्जियाँ – 19

Manmarjiyan – 19

“मनमर्जियाँ”

By Sanjana Kirodiwal

Manmarjiyan – 19

शगुन ने ध्यान नहीं दिया और बिना देखे मग में भरा पानी गुड्डू पर फेंक दिया। मुँह , बाल कपडे सब भीग गए। गुड्डू ने जैसे ही सामने देखा शगुन डरकर पलट गयी। गुड्डू को ये हरकत नागवार गुजरी तो उसने अपने कपड़ो से पानी झटकते हुए कहा,”ओह्ह हेलो अकल नहीं है तुम में , बिना देखे पानी फेंक दिया हमाये सारे कपडे भीग गए , उपर से मुंह घुमा के खड़ी हो ,,, तुम्ही से बात कर रहे है , सुनाई नही देता ,,,,,,,,,,,बड़ी ढीठ हो यार”
“सॉरी वो मैंने देखा नहीं था”,शगुन ने धीरे से कहा
गुड्डू उस से कुछ कहता इस से पहले ही गोलू वहा पहुंचा और कहा,”गुड्डू भैया हिया काहे खड़े हो मिश्रा जी अंदर बुला रहे है”
“अरे इह,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!”,कहते हुए जैसे ही गुड्डू ने शगुन की और इशारा किया शगुन वहा से जा चुकी थी। गुड्डू उसका चेहरा देख ही नहीं पाया। गोलू ने देखा वहा कोई नहीं है तो कहा,”अरे यार अब चलो भी , और ये होली कहा खेल कर आये हो ?”
“अबे वही तो कह रहे थे की एक सरफिरी लड़की ने पानी डाल दिया”,गुड्डू ने अपने बालो को सही करते हुए कहा।
“कोई बात नहीं अंदर चलकर सुख जाओगे चलो”,कहते हुए गोलू गुड्डू को अंदर ले आया। उसे भीगा हुआ देखकर मिश्रा जी ने घुरा लेकिन गुड्डू नजरे बचाकर सबके बीच बैठ गया। गुप्ता जी , विनोद , उनकी पत्नी , अमन और प्रीती वही मौजूद थे। प्रीति को तो गुड्डू देखते ही अपने जीजा के रूप में पसंद आ गया। शगुन ऊपर अपने कमरे में तैयार हो रही थी , साथ ही मन ही मन घबरा भी रही थी की कही गुड्डू सबको निचे बता ना दे की उसने उस पर पानी फेंका है। गुप्ता जी ने मिश्रा जी बात चित की तो उन्हें सभी बड़े भले लोग लगे। गुड्डू खामोश बैठा था गुप्ता जी ने उसकी और देखा और पूछा,”बेटा कहा तक पढ़े हो ?”
“अगर झूठ बोलूंगा तो ये लोग इम्प्रेस हो जायेंगे अच्छा है सच ही बोलू ताकि ये खुद ही रिश्ता केंसल कर दे”,सोचते हुए गुड्डू ने कहा,”जी अभी फाइनल के पेपर दिए है ,, ये तीसरा साल है फाइनल में”
गुड्डू की बात सुनकर मिश्रा जी ने उसे फिर घुरा लेकिन गुड्डू तो आज जैसे तय करके आया था की मिश्रा जी की एक बात नहीं सुननी। गुड्डू का जवाब सुनकर मिश्रा जी हंस पड़े और कहा,”आपका पढाई में मन नहीं होगा शायद , अगर मन नहीं हो तो पढ़ना भी नहीं चाहिए”
गुड्डू का पासा उलटा पड़ गया गुप्ता जी समझदार निकले। इधर उधर की बातो के बाद गुप्ता जी ने पूछा,”वैसे बेटा आपका नाम क्या है ?”
“हमारा नाम गुड्डू है”,गुड्डू ने कहा तो प्रीति हंस पड़ी लेकिन जैसे ही गुप्ता जी ने उसकी और देखा उसने अपनी हंसी रोकी और कहा,”सॉरी पर बहुत अजीब नाम है आपका”
“गुड्डू इसे सब घर में बुलाते है , वैसे इसका नाम अर्पित है”,मिश्रा जी ने कहा
“नाम तो बहुत ही अच्छा है , पर हम लोग आपको गुड्डू ही कहेगे इस नाम में थोड़ा अपनापन है”,विनोद जी ने कहा तो सभी मुस्कुरा उठे
“अरे भई जिसे देखने इतनी दूर आये है ज़रा उनसे भी तो मिलवा दीजिये”,इस बार मिश्राइन ने कहा तो गुप्ता जी अपने भाई की पत्नी की और पलटे और कहा,”कविता शगुन को ले आओ”
“पापा दी को मैं लेकर आती हूँ”,प्रीति ने कहा और चली गयी।

उसके जाते ही गोलू गुड्डू की और झुका और कहा,”भैया तुम्हायी सेटिंग हो जाये तो छोटी वाली से हमारा भी सेट करवा देना ना”
“चुप बे ! हम यहाँ से निकलने की सोच रहे और तुमहू हो के रिश्ता जोड़ने की बात कर रहे हो”,गुड्डू ने फुसफुसाकर कहा
गुड्डू का जवाब सुनकर गोलू चुपचाप बैठ गया। सभी नाश्ता कर चुके थे बस शुगुन के आने की राह देख रहे थे। शगुन को लेने प्रीति जैसे ही ऊपर पहुंची , शगुन को देखकर कहा,”ओये होये क्या लग रही हो दी , किसी की नजर ना लग जाये आपको”
“ठीक लग रही हूँ ना ?”,शगुन ने अपनी साड़ी की सलवट सही करते हुए कहा। प्रीति उसके पास आयी और अपनी आँख से काजल निकालकर शगुन के गर्दन पर लगाकर कहा,”ठीक नहीं बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही हो , लड़का तुम्हे देखकर ना नहीं कह पायेगा”
“मुझसे एक गलती हो गयी”,शगुन ने कहा तो प्रीति ने उसका हाथ पकड़कर उसे साथ ले जाते हुए कहा,”वो सब बाद में बताना पहले नीचे चलो सब तुम्हे बुला रहे है”
“अरे लेकिन,,,,,,,,,,,,,!!”,शगुन ने कहना चाहा लेकिन प्रीति उसे अपने साथ निचे ले आयी
शगुन प्रीति के साथ साथ चल पड़ी। चलते चलते प्रीति ने कहा,”वैसे आपके होने वाले उनका नाम “गुड्डू” है।”
प्रीति की बात सुनकर शगुन मुस्कुरा दी और दोनों बहने नीचे चली आयी। मिश्राइन और वेदी की नजर जैसे ही शगुन पर पड़ी दोनों उसे देखते ही रह गयी। लाल रंग की हरे बॉर्डर वाली झीनी साड़ी , मैचिंग बॉटनेक बलाउज ,, हाथ में चूड़िया , कानो में झुमके , मेकअप के नाम पर होंठो पर हल्की लिपस्टिक और आँखों में काजल , बाल खुले जिनमे आधे आगे किये हुए थे , पलके झुकी हुई ,, शगुन बहुत खूबसूरत लग रही थी। गोलू को भी शगुन बहुत पसंद आयी। गुड्डू ने तो शगुन की और देखा तक नहीं। शगुन कविता की बगल में आकर बैठ गयी। मिश्राइन ने कुछ सवाल पूछे , वेदी ने भी कुछ बातें की। सबको शगुन बहुत पसंद आयी , गुड्डू ने एक नजर शगुन को देखा तो उसकी नज़रे शगुन से जा मिली। गुड्डू को खामोश देखकर गुप्ता जी ने कहा,”मिश्रा जी आप इजाजत दे तो बच्चे आपस में बात कर ले”
“अरे हां हां बिल्कुल इसमें इजाजत की क्या बात है ? बिल्कुल बात करे ,,, भाईसाहब वो तो हमारे जमाने में होता था जब बच्चो को पूछे बिना ही उनकी शादी तय कर दी जाती थी”
मिश्रा जी की बात सुनकर गुड्डू ने उनकी और देखा तो मिश्रा जी दूसरी और देखने लगे।
“पापा मैं गुड्डू को छत तक ले जाती हूँ”,प्रीति ने कहा , उसे भी तो अपने होने वाले जीजा से बात जो करनी थी। मिश्रा जी ने जाने का इशारा किया तो गुड्डू उठकर प्रीति के साथ चल पड़ा। सीढिया चढ़ते हुए प्रीति ने गुड्डू के कंधे को अपने कंधे से टकराते हुए कहा,”और गुड्डू जी आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे हो ,, लगता है शरमा रहे हो,,,,,,,,,,,,,,अरे इसे अपना ही घर समझो”
गुड्डू ने मन ही मन कहा,”ये कहा फंसा दिया हमे पिताजी ने , एक वो कम थी जो अब ये भी”
“अरे किस सोच में पड़ गए , डोंट वरी दी पसंद नहीं आये ना तो मेरे लिए बात कर लेना”,प्रीति ने गुड्डू को छेड़ते हुए कहा
“हमे इतनी बक बक सुनने की आदत नहीं है”,गुड्डू ने कहा
“अच्छा ! लेकिन गुड्डू जी एक बार ये रिश्ता हो गया ना तो मेरी बक बक तो आपको रोज सुननी पड़ेगी”,प्रीति गुड्डू से भी दो कदम आगे निकली। गुड्डू ने कुछ नहीं कहा उसके कपडे अभी भी गीले ही थें , छत पर धुप थी देखकर गुड्डू को अच्छा लगा।

कुछ देर बाद ही चाय की ट्रे लिए शगुन ऊपर चली आयी। उसने ट्रे दिवार पर रखी और प्रीति को और देखकर उसे जाने का इशारा किया।
“मैं तो पूरा शो देखकर जाउंगी”,प्रीति ने कहा
अब गुड्डू के सामने भला शगुन उस से क्या कहती , आँखों ही आँखों में रिक्वेस्ट की तो प्रीति ने गुड्डू से कहा,”क्या कहते हो गुड्डू जी जाए क्या ?”
“हमहु तो कुछ कहे नहीं , आपकी मर्जी”,गुड्डू ने कहा , गुड्डू के बात करने का ये कनपुरिया असेंट शगुन को अच्छा लगा।
“चलो चली जाती हूँ वरना आप लोगो को लगेगा कबाब में हड्डी बन रही हूँ मैं”,प्रीति ने कहा और चली गयी तो शगुन ने कहा,”माफ़ करना वो प्रीति थोड़ा सा ज्यादा बोलती है , उसने आपसे कुछ उल्टा सीधा कहा हो तो सॉरी”
“अरे नहीं , अच्छी लड़की है”,गुड्डू ने अपने गीले कोट की और देखकर कहा
“आप इसे उतार दीजिये , कपडे गीले है तबियत ख़राब हो सकती है आपकी”,शगुन ने गुड्डू के गीले कोट को देखते हुए कहा।
“अरे पता नहीं कौन लड़की थी सीधा पानी मारा हमाये मुंह पे”,गुड्डू ने कोट निकालते हुए कहा। गुड्डू ने कोट निकालकर दिवार पर रखा , शर्ट थोड़ा कम भीगा था इसलिए उसकी बाजू मोड़कर चढ़ा ली , बालो में हाथ घुमाते हुए उन्हें सेट किया। शगुन बस उसे ये सब करते हुए अपलक देखे जा रही थी। अब लग रहा था गुड्डू पूरा हीरो ,, जब उसने शगुन को अपनी और देखते पाया तो खाँसने का नाटक किया। शगुन कप में चाय निकाली और गुड्डू की और बढाकर कहा,”चाय”
गुड्डू ने शगुन के हाथ से चाय ली और पिने लगा। शगुन को गुड्डू बहुत सीधा और मासूम लगा , उसे धीरे धीरे गुड्डू पसंद आ रहा था।
“आपका नाम ?”,शगुन ने ही बात शुरू की
“हमाया नाम गुड्डू ,, मतलब गुड्डू सिर्फ घर में बाकि कॉलेज में अर्पित मिश्रा है”,गुड्डू को मिश्रा का घूरना सहसा याद आ गया।
“अच्छा नाम है , तो कॉलेज पूरा हो गया आपका ?”,शगुन ने अगला सवाल किया
“हम्म्म्म नहीं अभी फाइनल का एग्जाम दिए है , तीसरी बार”,गुड्डू ने आखरी दो शब्द दबी जबान में कहे
“तीसरी बार ? मतलब ?”,शगुन ने पूछा
“दो बार फेल हो गए थे , हमारा मन नहीं लगता पढाई में लेकिन पिताजी को चाहिए डिग्री ,, अब 36-40 परसेंट की डिग्री में इंसान क्या ही कर लेगा ?”,गुड्डू ने कहा
“बिना डिग्री के भी बहुत कुछ किया जा सकता है , फ़ैल होना हमारा फ्यूचर डिसाइड नहीं करता है”,शगुन ने कहा
“देखा तुमहू कितनी सही बात करती हो , अब इह बात हमहू पिताजी से कहे ना तो चप्पल ले कर पुरे कानपूर में दौड़ाये हमे”,गुड्डू ने कहा तो शगुन मुस्कुरा उठी
“चाय और लेंगे आप ?”,शगुन ने गुड्डू के हाथ में पकडे खाली कप की और देखते हुए कहा
“नहीं”,गुड्डू ने खाली कप दिवार पर रखते हुए कहा , दोनों खामोश खड़े रहे शगुन चाहती थी गुड्डू बात करे लेकिन गुड्डू कुछ बोल ही नहीं रहा था अभी दोनों चुप खड़े ही थे की गोलू वहा आ पहुंचा। गोलू को वहा देखते ही गुड्डू की जान में जान आयी।
“नमस्ते भाभी”,गोलू ने तो सीधा शगुन को भाभी बोल दिया। गुड्डू को गोलू पर गुस्सा आया तो उसने शगुन से कहा,”एक मिनिट” कहकर गुड्डू गोलू को साइड में लेकर आया और उसकी पीठ पर मुक्का जड़ते हुए कहा,”क्या बे साले भाभी लगती है उह तुम्हायी”
“अरे भैया वो उनको और तुमको साथ साथ खड़े देखा ना फ्लो फ्लो में निकल गया”,गोलू ने दांत दिखाते हुए कहा

गुड्डू और गोलू वापस शगुन के पास चले आये तो शगुन मुस्कुरा दी। गोलू की तो शगुन से नजरे नहीं हट रही थी। उसकी सादगी और उसका प्यार से बात करना गोलू को बहुत पसंद आ रहा था। गुड्डू के सामने ना सही लेकिन दिल ही दिल में उसने शगुन को अपनी भाभी मान लिया था। कुछ देर बाद गुड्डू और गोलू नीचे चले आये। शगुन वही ऊपर थी उसने देखा गुड्डू अपना कोट ऊपर ही भी भूल गया है तो वह उसे लेकर जैसे ही जाने लगी प्रीति ने रोक लिया और उसका हाथ पकड़ कर उसे साइड में लाकर कहा,”दी दी दी जल्दी बताओ ना कैसे लगे गुड्डू जी ?”
“अच्छे है”,शगुन ने शर्माते हुए कहा
“अच्छे है , तुम्हारे गालो की लाली बता रही है की तुम्हे गुड्डू जी बहुत पसंद आये”,प्रीति ने कहा तो शगुन शरमा कर दूसरी और पलट गयी। प्रीति उसे छेड़ने का एक मौका नहीं छोड़ रही थी की तभी गुड्डू वापस आया और कहा,”उह हमारा कोट”
शगुन ने हाथ में पकड़ा कोट गुड्डू की और बढ़ा दिया सहसा ही उसकी उंगलिया गुड्डू की उंगलियों से छू गयी और एक खूबसूरत अहसास शगुन के मन में जागा। गुड्डू चला गया शगुन उसे देखती रही तो प्रीति ने उसके कंधे को अपने कंधे से टकराकर कहा,”कोट तो बहाना था असल में गुड्डू जी तुमसे मिलने आये थे ,, परफेक्ट जोड़ी है तुम दोनों की , अब तुम ज्यादा भाव मत खाओ हां बोल दो”
शगुन ने धीरे से हां में गर्दन हिला दी तो प्रीति दौड़कर निचे आयी और कहा,”पापा दी की तरफ से हाँ है”
शगुन की हाँ सुनते ही सबके चेहरे ख़ुशी से खिल उठे सिवाय गुड्डू के। मिश्रा जी ने गुप्ता जी से हाथ मिलाया और उन्हें मुबारकबाद दी। पंडित जी भी आ चुके थे गुप्ता जी ने गुड्डू से जानना चाहा तो मिश्रा जी ने गुड्डू के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए गुड्डू से कहा,”क्यों बेटा शगुन पसंद आयी ?”
गुड्डू समझ गया की उसके कंधे पर मिश्रा जी का हाथ नहीं बल्कि नंगी तलवार है जिस से गुड्डू का कटना तय था। उसने धीरे से गर्दन हाँ में हिला दी। मिश्रा जी गुड्डू को देखकर मुस्कुरा दिए और गुड्डू मन ही मन अपनी बलि पर रो रहा था !

Manmarjiyan - 19
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संजना किरोड़ीवाल

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