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शाह उमैर की परी – 2

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Shah Umair Ki Pari – 2

Shah Umair Ki Pari

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शहर धनबाद में :-
सड़क से ऑटो लेकर परी ऑफिस पहुँचती है ! उसका ऑफिस धनबाद के बहुत ही नामी एरिया बैंक मोड़ में रहता है !ऑफिस पहुँच कर, वो अपने केबिन में चली जाती है !
“आज बॉस से सैलरी के लिए बात करती हूँ कि टाइम पर दे दें और थोड़ा इंक्रीमेंट भी दे दें। चार साल से यहाँ काम कर रही हूँ, दिन रात मेहनत भी पूरी करती हूँ।“परी खुद से बातें करती और बड़बड़ाती हुई सिस्टम ऑन कर के काम करना शुरू कर देती है। बॉस के आने के बाद परी कुछ पेपर्स साइन करवाने के लिए बॉस के केबिन में जाती है और पेपर साइन करवाते हुए कहती है !


” सर यह महीना खतम होने वाला है और अभी तक हमे सैलरी नहीं मिली है, मकान मालिक किराये के लिए रोज परेशान कर रहे हैं। आप से एक रिक्वेस्ट है कि इस बार कुछ सैलरी बढ़ा देते? इंक्रीमेंट की बात बहुत दिनों से चल रही है। बोनस भी बहुत समय से नहीं मिला। इतने कम में घर चलाने में प्रॉब्लम होती है, पापा के बारे में भी आप जानते ही हैं। ”


“वो सब तो ठीक है, सैलरी भी बढ़ा देंगे मगर थोड़ा समय दो। अभी थोड़ी दिक्कत चल रही है, इसीलिए सैलरी मिलने में इतनी देरी हो रही है। आज से पहले कभी कोई शिकायत का मौका दिया है क्या आपको? दो महीने की सैलरी एक साथ मिल जाएगी।“ परी के बॉस सुमित कुमार टंडन कहते है!
“पर सर।“
“ डोंट वरी परी मैं हूँ ना? जाओ काम करो। बॉस ने परी को पेपर्स वापिस करते हुए अजीब नज़रो से देखते हुए कहा। ”


परी बेचारी बॉस का जवाब सुन कर, बिना कुछ कहे अपने केबिन में वापिस आ गई। परी अपने ऑफिस में ज्यादा किसी से कोई मतलब नहीं रखती थी, बस काम भर की बात ही होती थी उस से सभी की, इसलिए सब उसे घमंडी कहते थे। उसके बॉस और कुछ ऑफिस के कलीग की गन्दी नज़र हर समय परी पर रहती है।

परी को बस अपने काम से मतलब था, और वो किसी भी झमेले में नही पड़ना चाहती थी बस इसलिए ही घमंडी का टैग दिया गया था उसे। टाइम से ऑफिस जाना और बिना देर किए वापिस घर आना, अपने मम्मी पापा के साथ समय बिताना और उनके साथ ही हँसना मुस्कुराना परी की जिंदगी थी और यही उसका रोज का रूटीन था।


परी शाम को जब घर वापिस आते ही चाय की चुस्कियों के साथ अपने कमरे में पहुचती है, खिड़की से बाहर खेलते बच्चों को देखने के बाद परी जैसे ही पलटती है तो उसे कुछ चमकता सा दिखता है। पास आकर देखने पर, पुरानी चुनरी से ढका हुआ एक पुराना सा, मगर बेहद खूबसूरत, शाही सा दिखता आईना नजर आता है।
“सुबह तो कुछ नही था, ये कंहा से आया? चाय खत्म कर परी, ठंडी हो जाएगी। अभी मम्मी से पता चल ही जायेगा।“
परी मम्मी को आवाज़ देती है-


“मम्मी, मेरे रूम में ये आईना कौन लेकर आया? “
“बेटा मैंने मंगवाया है, दादी की बहुत चहेती चीज़ो में से एक है ये। दादी को बहुत प्यारा था, कभी किसी को नही देती थीं। आज चाचा का फोन आया था कि कह कर गई है, परी के लिए तोहफा है, तो मैंने मंगवा लिया। तुम्हें पसन्द आया?”
परी के पापा अपनी व्हील चेयर खिसकाते हुए परी के कमरे के अंदर आए और बोले-
“दादी की चहेती को, तोहफा तो पसन्द आया ही होगा? क्यों परी?”


“मगर पापा क्यों? हमें जरुरत ना थी, ना कभी होगी। उन्हें कबाड़ लगा होगा इसलिए ही यंहा छोड़ गए। वरना तो…”
“परी अपना दिल मत दुखाओ बेटा, खुदा के घर देर है पर अंधेर नहीं।“
“पापा, वैसे तो वो घर भी हमारा है जितना उनका। मालिकाना हक़ भी बराबरी का है। इस मुद्दे पर तो कभी कोई कुछ नही कहता? ये आईना बस याद आया उन्हें?” परी गुस्से से कहती है।


“मगर बेटा यह तेरी दादी की निशानी है उनको इस आईने से बहुत लगाव था हर वक़्त इसके सामने बैठी सजती सवरती और मुस्कुराती रहती थी, याद है ना तुम्हें?” कहते हुए परी के पापा आईने को एक नज़र देख कर कमरे से चले जाते है।


“बहुत हल्का सा याद है, बहुत धुंधला सा कुछ। दादी को पसन्द था, वो घंटो बातें करती थी अपने इस आईने से।“
परी अपने दिमाग में चल रही बातों को खामोश करती है और आईने की तरफ बढ़ती है। आइने को निहारती है जो सागवान के लकड़ी से बना 5 फिट लम्बा और दो फिट चौड़ा। जिसमे चारो तरफ खुबसूरत डिज़ाइन बनी है। मोर, मछलियां और तरह-तरह के फूलों की नक्काशी।
“ऐसी नक्काशी तो राजघरानों में ही देखने मिलती है ! ताज्जुब की बात है कि आज भी इसमे अक्स कितना साफ दिख रहा है, नापाक सा।“


परी आइने को छोड़ फ्रेश होने के लिए वाश रूम चली जाती है ! फ्रेश होने के बाद परी किचन में घुसती है।
“कुछ मदद करूँ? मम्मी खाना बन गया है क्या? बहुत जोरो की भूख लगी है आज।”
“बस बेटा सब तैयार है। तुम चलो बैठो।“ मम्मी परी से कहती हैं।
“यह पापा को क्या हो गया है? जिस घर से हमे बेइज्जत कर के निकाला गया, उसी घर का कचरा लाकर मेरे कमरे में रख दिया उन्होंने?” परी किचेन की स्लेब पर बैठते हुए अपनी मम्मी से कहती है।


“परी बेटा तुझे पता है ना, तेरे पापा को अपनी माँ से कितना प्यार था? उनके जाने के बाद भी वो उनकी चीज़ों की क़दर करते है और यह आईना भले ही पुराना हो मगर शाही है, और दादी की याद है इसमें।” परी की मम्मी रोटियाँ बनाते हुए कहती है।

दुसरी दुनियाँ ‘’ ज़ाफ़रान क़बीले’’ : –
“उमैर तुम अब आ रहे हो? जल्दी जाओ तुम्हारे अब्बा तुम्हारे ही बारे में पूछ रहे है।” उमैर का दोस्त हनीफ उसे महल के दरवाज़े पर टोकते हुए कहता है !


“अरे मेरे अज़ीज़ दोस्त, जा रहा हूँ अब्बा के पास ही जा रहा हूँ। पता नहीं आज देर करने की क्या सजा मिलेगी अब ? ” उमैर हनीफ के कंधे पर हाथ रख कर मासूमियत से कहता हुआ महल में दाखिल हो जाता है ।
महल, महल की खूबसूरती के आगे तो शायद चांद का नूर भी कम था। संगमरमरी दीवारें, सफेद दूधिया संगमरमर पर हाथ भी लग जाये तो मैला हो जाये, ऐसा लगता था।

दीवारों को जैसे दूध बर्फ और मोतियों के रंग से रंग दिया गया हो। चारो तरफ बाग, हर तरह के फूल, फल और बागबानी। मोतियों के फूल की लताएं महल की शोभा में चार चांद लगा रही थीं। फूलों से आती खुशबू चारो तरफ फैली हुई थी।
उमैर जैसे ही महल के अंदर बढ़ता है, एक कड़क आवाज़ उसके कानो को छूती है।
“शाह उमैर इधर आओ। कहा थे तुम इतनी देर से? ”
उमैर जब आवाज़ की तरफ पलटता है तो अपने अब्बा को गुस्से में लाल पाता है !


“जी… जी वो अब्बा मैं… अब्बा मैं तो आ ही रहा था।” उमैर अपने अब्बा के सामने थोड़ा सा हकला कर लेकिन फिर अदब से खड़े हो जाता है !
“चलो मेरे साथ।” कहते हुए उमैर के अब्बा चलने लगते है और उमैर भी ख़ामोशी से उनके पीछे चलने लगता है।
ये महल सिर्फ महल नही, बल्कि एक पूरी दुनिया थी, एक कोने से दूजा कोना इतनी दूर, जैसे एक इलाके से दूसरा इलाका। इतना बड़ा के खत्म होने का नाम ही नहीं आ रहा था। उमैर चारो तरफ नज़रे दौड़ाते हुए महल को देखता चल रहा था।


उमैर के अब्बा चलते चलते एक बड़े से दरवाज़े के सामने आकर रुक गए और खटखटा कर आवाज़ देते है,
” क्या मैं अंदर आ जाऊं? ”
“हाँ शाह ज़ैद आ जाओ अंदर। ” अंदर से जिनो के शहंनशा फरहान अब्बास की आवाज़ आती है !
उमैर भी अपने अब्बा के साथ कमरे में दाखिल हो गया। कमरा भी खुद में एक बड़ा सा घर हो जैसे, जिसमे एक शाही पलंग पर, नुरानी चेहरे वाले बुजुर्ग लेटे हुए थे और उनके दोनों तरफ मुलाजिम (नौकर) अदब से खड़े थे।
“शाह ज़ैद बोलो कैसे आना हुआ? किसी चीज़ की कमी तो नहीं है ? ” शहंनशा जिन फरहान अब्बासी उमैर के अब्बा से कहते है !


“जी हुज़ूर, आप सलामत रहें। यह मेरा बेटा है, शाह उमैर मैं चाहता हूँ कि आज से यह भी मेरी तरह आप के खानदान की खिदमत में लग जाये।” शाह ज़ैद अदब से झुक कर कहते है।
“ठीक है, वैसे भी कुछ दिन से मेरी तबीयत ठीक नहीं है।बयह मेरी तबीयत ठीक होने तक मेरे साथ रहेगा उसके बाद इसे किसी और काम में लगा देंगे। क्या कहते हो?” शहंनशा जिन फरहान अब्बासी ने उमैर की तरफ देखते हुए कहा।


“उमैर बेटा मैं चलता हूँ, तुम यही रुको शहंशाह की खिदमत के लिए। गुस्ताखी मत करना, कोई भी मौका मत देना शहंशाह को शिकायत का।” शाह ज़ैद अपनी बात कहते हुए कमरे से निकल जाते है !
उमैर बेचारा अपने अब्बा के हुकुम के आगे कुछ नही कह पाता।
“ है तो खुबसूरत जगह मगर करनी तो यहां मजदूरी ही है, चल बेटा उमैर लग जा अपने काम पर।“ उमैर खुद के मन में सोचता है।
“शाह उमैर किन सोचो में गुम हो तुम?इधर मेरे पास आकर बैठो ! ” शहंशाह ने उमैर को अपने बेड पे आकर बैठने का हुक्म दिया।


“जी हुज़ुर, आपकी खिदमत में हाज़िर हूँ।“ और कहते हुए उमैर शहंशाह के पैरों के पास बैठ कर उनके पैर दबाने लगा।
“हम जिन्नातों को अल्लाह ने आग से जरूर बनाया है और हमें छुपी हुई ताकते भी बाकियों से ज्यादा दी है मगर इंसान की ही तरह हम उसकी इबादत करने के लिए यहा आये है और अपना वक़्त पूरा होने पर चले भी जाएंगे।

उस रब के पास बस कोशिश यह हो के हमारा रब हमसे राजी रहे।” शहंशाह उमैर से कहते है!
“शहंशाह की उम्र पूरी हो चुकी है, लगता है इनका वक़्त आ ही गया है ऊपर जाने का।एक हज़ार साल भी पूरे हो चुके है ईनके, कोई भला कितना और जियेगा?” उमैर अंदर ही अंदर सोचते हुए मुस्कुराता है।

उमैर अपने सोचों में गुम मज़े से शहंशाह के पैर दबा ही रहा था कि एक दिल फरेब खुश्बू उसके नाक को छूती हुई कमरे के अंदर दाखिल होती है।
“अब कैसी है आप की तबीयत?” कहते हुए उमैर की हमउम्र, खुबसूरत जिनज़ादी शाही लिबास पहने कमरे में दाखिल होते हुए कहती है !
“मैं अच्छा हूँ मेरी बच्ची।“ शहंशाह कहते हुए उठ कर बैठ जाते है और वो जिनज़ादी भी उनके बगल में बैठ जाती है ! उसे बैठता देख उमैर शाही पलंग से दूर हट के खड़ा हो जाता है।


“बेटी, इनसे मिलो। शाह उमैर मेरे नए खिदमत गुज़ार जो मेरे सब से अज़ीज़ और वफादार मुलाजिम शाह ज़ैद का बेटा है और उमैर यह मेरी बेटी मरियम है। तुम दोनो को कुछ काम हो तो एक दुसरे से कह सकते हो। ” शहंशाह दोनों को मिलवाते हुए कहते है !
“हाँ- हाँ। यह क्यों नहीं कहते कि अब आप के साथ आप की शहज़ादी बेटी की भी खिदमत करनी पड़ेगी?” उमैर फिर एक बार मन में सोचते हुए कहता है।


“जी हुज़ूर जैसा आप कहे। मैं हमेशा आप लोगों की खिदमत में हाज़िर रहूँगा जैसे मेरे अब्बा रहते है!’’ उमैर कहता है!
“ इधर पलंग पर बैठी मरियम उमैर को प्यार भरी नज़रों से देखती है और मुस्कुराते हुए कहती है
” जी अब्बा जरूर मुझे किसी काम की जरुरत होगी तो मैं उमैर से कह दूँगी ! उमैर आप भी शर्माइयेगा मत !
मरयम एक टक उमैर को सर से लेकर पैर तक मोहब्बत से घूरती हुई कमरे से निकलती है तो उमैर उसे मुँह चिढ़ा कर वापस शहंशा के पैर दबाने लगता है ! और मरयम मुस्कुराती हुई चली जाती है !

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क्रमशः shah-umair-ki-pari-3

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Written By – Shama Khan

Shah Umair Ki Pari – 2

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”रास्ते दो मगर मंजिल एक ही है ,
दो दुनियाँ के मुसाफिरों का यहां कारवां लगा है !”

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