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पाकीजा – एक नापाक जिंदगी 21

Pakizah – 21

pakizah - ak napak jindagi
pakizah – ak napak jindagi by Sanjana Kirodiwal

Pakizah – 21

ट्रेन में आकर रुद्र अपनी सीट पर आ बैठा l डिब्बे में लोग ठसाठस भरे थे l रुद्र उनके बीच से होता हुआ अपनी सीट पर आ बैठा l किस्मत अच्छी थी कि उसे खिड़की वाली सीट मिली थी l प्यास से गला सूखने लगा तो रुद्र ने बेग से पानी की बोतल निकाली लेकिन बोतल खाली थी l ट्रेन भी चल पड़ी थी रुद्र ने इधर उधर देखा तभी सामने बैठे लड़के ने उसकी तरफ पानी की बोतल बढ़ाते हुए कहा ,”ये लीजिये जनाब आपको शायद प्यास लगी है”
“जी नही शुक्रिया”,रुद्र ने मना करते हुए कहा


“अरे पी लीजिये गाड़ी अब अगले स्टेशन पर ही रुकेगी”,लड़के ने फिर कहा
लड़के के कहने पर रुद्र ने बोतल ली और पानी पीने लगा l पानी जब हलक से निचे उतरा तो रुद्र को चैन मिला l रुद्र ने पानी पिया ओर बोतल वापस लड़के को देते हुए कहा,”शुक्रिया !!
जवाब में लड़का मुस्कुरा दिया ओर कहा ,”आप भी दिल्ली जा रहे है ? “
“आप भी मतलब ? “,रुद्र ने थोड़ा हैरानी से लड़के की तरफ़ देखते हुए कहा l


“मैं भी दिल्ली ही जा रहा हु इसलिए पूछ लिया”,लड़के ने कहा l
“जी हां”,रुद्र ने कहा और फिर बेग खोलकर उसमे कुछ ढूंढने लगा रुद्र लड़के से ज्यादा बात करना नही चाहता था l लड़के ने भी रुद्र को बिजी देखा तो अपने फोन में बिजी हो गया l
रुद्र ने बैग से पाकिजा की किताब निकाली और खोलकर पढ़ने लगा

अम्माजी के कोठे पर पाकिजा की दर्दभरी जिंदगी शुरू हो चुकी थी l उसकी हर रात दर्दभरी होती थी और दिन आंसुओ में बीतता था l अम्माजी हर रात उसे किसी नए आदमी के साथ भेजती l महीने के कुछ दिन ऐसे होते थे जब पाकिजा को उन दर्दभरी रातो से राहत मिल जाया करती l पाकिजा अब पहले से ओर भी खामोश रहने लगी वह सोनाली से भी बहुत कम बात किया करती थी जब अकेले होती तो अपनीं बीती जिंदगी के बारे में सोचा करती थी l

दिन गुजरते गये पर पाकिजा का दर्द खत्म नही हुआ एक महीना गुजर गया l पाकिजा ने अब इस दलदल को ही अपनी दुनिया मान लिया था वह चुपचाप बिना किसी ना नुकर के अम्माजी की हर बात मानने लगी l
एक शाम पाकिजा बरामदे में उदास सी खड़ी थी तभी सोनाली आयी और कहा,”पाकिजा अम्माजी का कोई कस्टमर बाहर मिलने वाला है उससे मिलने चलना है तू तैयार हो जा”
“ठीक है”,कहकर पाकिजा अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी l


कुछ देर बाद पाकिजा तैयार होकर आयी l उसने घुटनो तक सुनहरे रंग का सूट पहना हुआ था और उस पर हरे रंग का दुपट्टा सर पर ओढ़ रखा था l आंखे गहरे काजल से सनी थी जो कि आंखों को ओर भी खूबसूरत बना रही थी l पाकिजा चलकर सोनाली के पास आई ओर फिर दोनों कोठे से बाहर निकल गयी l बाहर अम्माजी का आदमी खड़ा उनका इंतजार कर रहा था l यहां आने के बाद आज पहली बार पाकिजा इस कोठे से बाहर निकली थी l

कितने दिनों बाद उसने बाहर की दुनिया को देखा था दोनो आकर गाड़ी में बैठी l अम्माजी के आदमी ने गाड़ी स्टार्ट की ओर सड़क पर दौड़ा दी l
कुछ देर बाद सोनाली पाकिजा को लेकर होटल के अंदर गयी उसने पाकिजा से वेटिंग एरिया में बैठने जो कहा और खुद कॉउंटर की तरफ बढ़ गयी l
पाकिजा ने पहली बार इतना बड़ा होटल देखा था l

वह अपनी बड़ी बड़ी आंखों से होटल को देख रही थी ओर वहां मौजूद लोग पाकिजा को l पाकिजा जैसे ही पलटी किसी से टकरा गई l उसने देखा सामने वही लड़का खड़ा था जो उसे उस रात बार मे मिला था l पाकिजा जाने लगी तो उसका दुपट्टा शिवेन के हाथ की घड़ी में अटक गया l पाकिजा परेशान सी वापस पलटी शिवेन तो बस उसे देखता ही रह गया l वह बदहवास सा बस पाकिजा की आंखों में देखने लगा l

पाकिजा ने उसकी घड़ी से अपना दुपट्टा निकाला और सोनाली की तरफ बढ़ गयी l पाकिजा ने पलटकर देखा शिवेन अभी भी वही खड़ा पाकिजा को ही देख रहा था l घबराकर पाकिजा ने अपनी गर्दन घुमा ली l सोनाली ने कॉउंटर पर पूछताछ की ओर पाकिजा के साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ गयी l

“क्या हुआ ? यहां ऐसे क्यों खड़ा है तू ?”,मयंक ने शिवेन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा l
“वो लड़की मिल गयी”,शिवेन ने कहा
“कोनसी लड़की ?”,मयंक ने सर खुजाते हुए कहा
“अरे वही लड़की जो उस रात बार मे मिली थी , वो अभी लिफ्ट की तरफ गयी है चल जल्दी”,शिवेन कहकर लिफ्ट की तरफ भागा


मयंक भी उसके पीछे चला आया लिफ्ट बन्द होने ही वाली थी कि शिवेन ने हाथ बिच में करके लिफ्ट रोक दी और अंदर चला आया l मयंक भी आ गया l
शिवेन को वहां देखकर पाकिजा का दिल धड़क उठा वह दूसरी तरफ देखने लगी l शिवेन तो बस पाकिजा में ही खोकर रह गया उसे इस तरह घूरता देखकर मयंक ने धीरे से कहा,”नजर हटा लें भाई वरना बहुत पीटने वाले है हम दोनों”


मयंक की बात सुनकर शिवेन ने अपनी नजर पाकिजा से हटा ली वह पाकिजा से बात करना चाहता था लेकिन सोनाली के वहां होने से वह कुछ नही बोल पाया l लिफ्ट ऊपर जाती जा रही थी l
पाकिजा को लगा शिवेन उसका पीछा कर रहा है यही सोचकर वह बार बार परेशान हो रही थी l लिफ्ट रुकी सोनाली पाकिजा का हाथ पकड़कर बाहर निकली और तेजी से आगे बढ़ गयी l

शिवेन भी जब उनके पीछे जाने लगा तो दरवाजे पर ही राघव मिल गया और दोनों को वापस लिफ्ट में धकियाते हुए कहा,”कहा जा रहे हो दोनो ? पापा नीचे आफिस में तुम दोनों का इंतजार कर रहे है”
“वो लड़की………..!”,शिवेन इतना ही कह पाया l
“बाबू एग्जाम खत्म हो चुके है और तुझे नही लगता लड़की से ज्यादा जरूरी तुम्हारे लिए नोकरी है”,राघव ने डाउन का नम्बर दबाते हुए कहा


लिफ्ट निचे जाने लगी l शिवेन के चेहरे पर परेशानी झलकने लगी तो मयंक ने कहा,”टेंशन मत ले यार मिल जाएगी वो हमें देख हम तो अखंड सिंगल है फिर भी दिल पे पत्थर रख के उम्मीद में बैठे है कि कोई तो आएगी हमारी जिंदगी का सत्यानाश करने”


शिवेन अभी भी पाकिजा के ख्यालो में खोया हुआ था लिफ्ट रुकी राघव दोनो को लेकर आफिस की तरफ बढ़ गया l ये होटल राघव के पापा का था शिवेन ओर मयंक दोनो ही यहां से होटल मैनेजमेंट का कोर्स करना चाहते थे l
तीनो आफिस पहुंचे और राघव के पापा से मिले l

सोनाली ने पाकिजा को उसी रूम के होटल में छोड़ा और खुद निचे आकर गाड़ी में बैठ गयी l पाकिजा जो अब तक चार दीवारों में कैद अपनी आबरू लुटा रही थी अब बाहर निकलकर भी खुद का सौदा करने लगी l पाकिजा ने अपना काम खत्म किया और रूम से बाहर निकल गयी l उसे एक अजीब सी घुटन महसूस हो रही थी वह जल्द से जल्द उस जगह से निकलना चाहती थी l

बाहर की दुनिया उसे अम्माजी के कोठे से भी ज्यादा घुटनभरी लग रही थी l वह लिफ्ट के सामने आई और बटन दबाया लिफ्ट ओपन हुई पाकिजा बिना सामने देखे ही लिफ्ट के अंदर चली गयी l लिफ्ट में शिवेन था जिसे पाकिजा ने नही देखा वो बिल्कुल पाकिजा के पीछे ही खड़ा था l पाकिजा को वहां देखकर उसे बहुत खुशी हुई l पाकिजा जैसे ही पलटी शिवेन को वहां देखकर चौक गयी उसने हड़बड़ी में ऊपर जाने वाला बटन दबा दिया l लिफ्ट नही खुली तो पाकिजा ओर परेशान हो गयी l


“मैं कुछ मदद करू ?”,शिवेन ने धीरे से आगे आकर कहा l
“जी नही शुक्रिया”,पाकिजा ने कहा और साइड में खड़ी हो गयी
शिवेन बस उसे देखे जा रहा था पाकिजा को शिवेन का इस तरह से घूरना बैचैन कर रहा था उसने शिवेन की तरफ देखकर कहा,”घूरना बन्द करो प्लीज़”
“सॉरी”,बोलकर शिवेन दूसरी तरफ देखने लगा l

लिफ्ट धीरे धीरे ऊपर जा रही थी शिवेन ने डाउन बटन दबाया लिफ्ट नीचे जाने लगी पाकिजा को लगा शिवेन ये सब जानबूझकर कर रहा है उसने बिना सोचे समझे ऊपर जाने वाला बटन दबा दिया l
बस फिर क्या दोनो बार बार बटनों को दबाने लगे l नतीजा ये हुआ कि शार्ट शर्किट हुआ और लिफ्ट बीच मे ही अटक गई और लाइट भी बंद हो गयी l लिफ्ट में सिर्फ शिवेन ओर पाकिजा ही थे पर अंधेरे में दोनों ही एक दूसरे को नजर नही आ रहे थे l

शिवेन ने जेब से फोन निकाला और लाइट जलाई लिफ्ट में थोड़ी रोशनी हो गयी l पाकिजा के चेहरे पर डर और गुस्से के मिले जुले भाव नजर आने लगे पर शिवेन को तो वह इस अंदाज में भी प्यारी लग रही थी l
“अब यहां से बाहर कैसे निकलेंगे ?”,पाकिजा ने घबराई हुई आवाज में कहा l
“मैं देखता हूं”,कहकर शिवेन ने फोन देखा लेकिन फोन में नेटवर्क नही था l उसने पाकिजा से कहा,”नेटवर्क नही है l शायद लाइट जाने से लिफ्ट रुक गयी हो”


पाकिजा परेशान सी एक कोने में खड़ी हो गई l तभी लिफ्ट को झटका लगा और वह सीधा शिवेन के करीब पहुंच गई l इतना कि दोनों एक दूसरे की धड़कनों को साफ सुन सकते थे l पाकिजा को अपने इतना करीब देखकर शिवेन का दिल तेजी से धड़कने लगा l उसने नजर घुमा ली पाकिजा ने जैसे ही शिवेन से अलग होने लगी शिवेन के गले की चैन पाकिजा के सूट के धागे में उलझ गई पाकिजा उसे निकालने लगी l शिवेन की धड़कने ओर भी तेज हो गयी जब पाकिजा ने अपना हाथ उसके सीने पर रखा l

शिवेन ने अपने दोनों पीछे कर लिए गर्मी की वजह से उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे उभर आई जो कि शिवेन को परेशान कर रही थी l पाकिजा जिसे शिवेन को देखकर अब तक गुस्सा आ रहा था अब उस पर दया आने लगी l ना चाहते हुए भी पाकिजा ने अपने पैरों को थोड़ा ऊपर उठाया और अपने होंठों से उसके चेहरे पर फूंक मारने लगी l पाकिजा की ठंडी सांसो ने जब शिवेन के चेहरे को छुआ तो उसकी आंखें बंद हो गयी l जिंदगी में पहली बार उसे खूबसूरत अहसास हुआ था l

पाकिजा ने दो तीन बार ऐसा किया और फिर रुक गयी शिवेन ने अपनी आंखें खोली ओर पाकिजा की ओर देखा उसे परेशान देखकर शिवेन ने आंखों से इशारा करके पूछा
“ये निकल नही रहा है”,पाकिजा ने मासूमियत से कहा
उसकी मासूमियत देखकर तो जैसे शिवेन का दिल बैठ सा गया उसने अपने हाथ आगे किये जो कि सहँसा ही पाकिजा के हाथों को छू गए एक अपना सा अहसास दोनो को हुआ पाकिजा ने जल्दी से अपने हाथ हटा लिए l

शिवेन अपनी चैन से उसके सूट का धागा निकालने लगा l जैसे ही उसने झटके से चैन को खींचा लाइट भी आ गयी ओर लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर आकर रुकी पाकिजा अपना दुपट्टा सम्हाले तेजी से लिफ्ट से बाहर निकल गयी l
शिवेन ने बाहर आकर देखा पर पाकिजा वहां नही थी l शिवेन इधर उधर देख ही रहा था कि तभी मयंक ओर राघव वहां आ पहुंचे और कहा ,”ये तू जब देखो तब क्या ढूंढता रहता है ?

फिर से वो लड़की दिखी क्या ? “,राघव ने कहा
“भाई इसकी किस्मत देखो दो दो लड़कियां मिली है इसे एक झुमके वाली दूसरी बार वाली ओर यहां तो सूखा पड़ा है”,मयंक ने उदास होकर कहा
“चिंता मत कर तुझे भी कोई ना कोई मिल जाएगी”,राघव ने कहा


शिवेन इन दोनों की बातों से बेखबर अभी तक खोया हुआ था कि राघव ने कहा,”शिवेन कहा खोया है तू ?
“कही नही चल चलते है”,शिवेन ने कहा और फिर तीनो वहां से निकल गए l

अम्माजी का कोठा

पाकिजा अपने कमरे में शीशे के सामने बैठी अपने कानो के झुमके निकालती हुई सोच में डूबी बैठी थी सोनाली ने देखा तो वह पाकिजा के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,”क्या बता है पाकिजा ? बड़ी खोयी खोयी लग रही है तू ?


“बाजी आज लिफ्ट में एक लड़का मिला पता नही उसे देखकर पहली बार एक अजीब सा अहसास जगा , ऐसा लगा जैसा हमारा कोई रिश्ता रहा हो जैसे वो कही ना कही मुझसे जुड़ा हो”,पाकिजा ने कहा
“पाकिजा हमारी भावनाओ का यहां कोई महत्व नही है , बेहतर होगा तुम इन सब बातों पर ध्यान ना दो”,सोनाली ने कहा
“मैं तो खुद को समझा लुंगी बाजी पर इस दिल का क्या ? इसे भला कैसे समझाऊ ?

उस लडके की आंखों में एक अजीब सी कशमकश देखी आज मैंने कुछ पा लेने की हसरत !’,पाकिजा ने खोये हुये अंदाज में कहा l
“पाकिजा यहां लोग सिर्फ हमारे जिस्म की हसरत रखते है बस”,सोनाली ने समझाने वाले अंदाज में कहा

“पर उन आंखों में जिस्म की हसरत नही थी बाजी उन दो जोड़ी आंखों में मुझे हवस नजर नही आई l कुछ तो था उन आंखों में जो बहुत गहरा था l’,पाकिजा उठी और आकर सोनाली के सामने खड़ी हो गयी

सोनाली खामोशी से पाकिजा की बाते सुनती रही आज उसे पाकिजा की आंखों में एक अलग ही चमक नजर आ रही थी l

सोनाली वहां से हटकर बिस्तर पर आ बैठी पाकिजा भी उसके पास आई और बिस्तर पर लेटकर अपना सर उसकी गोद मे रख दिया l
दोनो घंटो बैठे बातें करती रही l l

दो दिन बाद राघव अपनी किताब के प्रोजेक्ट के लिए जीबी रोड आया l अपने साथ साथ वह मयंक ओर शिवेन को भी अपने साथ ले आया l राघव अकसर आर्टिकल्स लिखा करता था और इस बार वह किसी वैश्या पर लिखना चाहता था , उसके सफर , उसके रहन सहन के बारे में l घूमते घूमते तीनो अम्माजी के कोठे के सामने जा पहुंचे l
“गाइज तुम चलोगे मेरे साथ ?”,राघव ने शिवेन ओर मयंक से पूछा l


“नही तू जा ओर जल्दी से अपना इंटरवियू लेकर आ किसी ने हमे यहां देखा तो कल के अखबार में हम जरूर छप जाएंगे”,मयंक ने मुंह बनाते हुए कहा l
राघव चला गया l मयंक ओर शिवेन वही सड़क किनारे खड़े हो गए l लडकिया बार बार उन्हें परेशान कर रही थी कुछ ने तो इशारे भी किये l शिवेन को यहां खड़े होना बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था l उसने मयंक से कहा,”यार ये लोग ऐसा गंदा काम क्यो करती है ?”


“बाबू गंदा है पर धंधा है , ओर इसी से इन्ही की रोजी रोटी चलती है l चल वहां चलकर बैठते है”,कहकर मयंक शिवेन को लेकर सामने खाली पड़ी बेंच की तरफ ले गया l
दोनो वहां आकर बैठ गए l मयंक शिवेन को इन बदनाम गलियों की कहानियां सुना ही रहा था कि तभी शिवेन की नजर सामने गयी ऊपर बरामदे में वही लिफ्ट वाली लड़की दुपट्टे को सर पर ओढ़े खड़ी थी l

शिवेन उठा और उस तरफ बढ़ गया l मयंक ने देखा तो शिवेन को आवाज लगाई शिवेन ने बिना बोले हाथ के इशारे से मयंक को रुकने को कहा और खुद उस तरफ बढ़ गया l ऊपर जाने के लिए सामने सीढिया बनी हुई थी शिवेन बिना परवाह किये चढ़ता गया और बरामदे में जा पहुंचा उसने देखा लडकी वहां से आगे बढ़ गयी है l शिवेन भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा l

कुछ दूर चलकर लड़की अपने कमरे में चली गयी शिवेन तेजी से कमरे के सामने पहुंचा जैसे ही उसने देखा उसके कदम वही रुक गए l सामने जमीन पर घुटनो के बल बैठी पाकिजा अपनी आंखें बंद किये नमाज अदा कर रही थी l शिवेन ने देखा तो बस देखता ही रह गया इस से खूबसूरत नजारा उसने शायद पहले कभी ना देखा हो वह अपनी पलके तक झपकना भूल गया l शिवेन वही खड़ा पाकिजा को देखता रहा l पाकिजा ने जैसे ही आंखे खोली शिवेन साइड हो गया और दीवार से पीठ सटाकर खड़ा हो गया l

उसका दिल ट्रेन के इंजन की भांति धड़क रहा था l कही पाकिजा ने उसे देख ना लिया हो यही सोचकर उसका दिल घबरा रहा था l
पाकिजा इस बात से अनजान कमरे से निकलकर दूसरी तरफ निकल गयी उसने शिवेन को देखा तक नही l शिवेन ने धीरे से कमरे में झांककर देखा कमरे में कोई नही था शिवेन अंदर आया और चारो तरफ देखा वहां कोई नही था

अभी दो कदम चला ही था कि किसी चीज में उलझकर गिर पड़ा जेब मे रखी पाकिजा की बाली गिर गयी शिवेन को इस बात का पता नही चला l कोई उसे देख ना ले इस डर से वह तेजी से उठा और गेलेरी में आकर पहली मंजिल से सीधा नीचे कूद गया l


नीचे आकर वह वापस सामने बैठे मयंक की तरफ चल पड़ा और चलते चलते वह सोचने लगा,”क्या सच मे वो वही लड़की थी या मेरी आँखों का वहम था l नही नही वो लडकी भला यहां क्यो आएंगी इस गंदी जगह ! शायद हो सकता है मेरे बार बार सोचने के कारण वो मुझे हर लड़की के चेहरे में दिखाई दे रही हो नही वो कोई और ही थी”

बड़बड़ाता हुआ शिवेन मयंक के पास आये उसे बड़बड़ाते देखकर मयंक ने कहा ,”कहा चला गया था तू ?”
शिवेन – खुदा को देखने
मयंक – खुदा ? वो कहा मिला तुझे
शिवेन – वो नमाज में थी लगा जैसे मेरा खुदा मेरे सामने है
मयंक – चल
शिवेन – कहा ?


मयंक – मेन्टल हॉस्पिटल
शिवेन – वहां क्यो ?
मयंक – क्योंकि तेरी इस बीमारी का इलाज अब वही हो सकता है
शिवेन – मैं मजाक के मूड में नही हु वो लड़की..
मयंक – कही तुझे उस लड़की से प्यार तो नही हो गया ?
शिवेन – हुआ तो नही है पर हो जाएगा !!

रुद्र ने किताब बन्द कर दी l शिवेन का पाकिजा के करीब आना रुद्र को अच्छा नही लगा l जबकि वो जानता था कि वो पाकिजा की कहानी का अतीत पढ़ रहा है जो कि एक साल पहले घट चुका है l रुद्र को शिवेन से अब जरा सी चिढ़ होने लगी उसका बार बार पाकिजा के करीब आना , उसके बारे में सोचना रुद्र को खटकने लगा l रुद्र ने किताब वापस बेग में रख ली l


“भाईजान चाय लीजिये”,सामने बैठे लड़के ने चाय का कप रुद्र की तरफ बढ़ाकर कहा l
रुद्र ने चाय का कप लिया और फिर दोनों में बातचीत होने लगी अजीब बात ये थी कि दोनों ने ही एक दूसरे का नाम नही पूछा l दिल्ली आने वाला था लड़का दिल्ली से एक स्टेशन पहले ही उतर गया जाते वक्त उसकी जेब से एक कार्ड नीचे गिर गया जिसे रुद्र ने देख लिया

रुद्र ने वह कार्ड उठाया और उसे देने उसके पीछे गया लेकिन लड़का भीड में गुम हो गया l रुद्र कार्ड को हाथ मे लिए वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया l वह उस लड़के का आइडेंटी कार्ड था रुद्र ने जैसे ही कार्ड को देखा उसकी आंखें फैल गयी ओर मुंह से निकला

“युवान खत्री”

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