Sanjana Kirodiwal

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मनमर्जियाँ – 83

Manmarjiyan – 83

Manmarjiyan - 83

मनमर्जियाँ – 83

गुड्डू शगुन से नाराज था ऐसे में मिश्रा जी ने गुड्डू को बनारस जाने के लिए कह दिया। गुड्डू भले कितना भी गुस्सा हो मिश्रा जी की एक बात नहीं टालता था। वह किचन में आया और शगुन से कहा,”पिताजी ने कहा है तुम्हारा सामान पैक कर ल्यो बनारस जाना है”
शगुन ने सूना तो उसका चेहरा ख़ुशी से खिल उठा। पास ही मिश्राइन काम कर रही थी तो उन्होंने कहा,”इह सब हम कर लेंगे तुम जाकर तैयार हो जाओ”
शगुन ख़ुशी ख़ुशी वहा से अपने कमरे में चली आयी उसने सूटकेस उतारना चाहा लेकिन वो तो ऊपर रखा था हाथ नहीं आया। घूमते घामते गुड्डू भी कमरे में आ पहुंचा और सूटकेस उतारते हुए कहा,”जबान तो बहुते लम्बी है तुम्हायी उसी से ट्राय कर लेती”
शगुन ने मुंह बनाते हुए गुड्डू के हाथ से बैग लिया और बिस्तर पर रखकर उसमे कपडे ज़माने लगी। शगुन ने अपने ज्यादा कपडे नहीं रखे और फिर गुड्डू से कहा,”आपके कोनसे कपडे रखने है ?”
“काहे ? हमहू कौनसा परमानेंट जा रहे है वहा , तुम लड़कियों को जरूरत होती है इतने सारे कपड़ो की हम लड़के तो एक पेंट दो शर्ट में एडजस्ट कर लेते है”,गुड्डू ने कहा तो शगुन उसके सामने आयी और उसे छेड़ते हुए कहा,”अच्छा ये आप कह रहे है जिनके कमरे की सारी अलमारिया कपड़ो से भरी है”
गुड्डू ने सूना तो अपना सर खुजाने लगा और फिर कहा,”तुमहू न बहुते बद्तमीज हो”
“थैंक्यू , अब ये बता दीजिये की आपके कौनसे कपडे रखने है ?”,शगुन ने सहजता से कहा
“हम खुद ही रख लेंगे”,गुड्डू ने कहा और कबर्ड से अपनी दो जींस दो शर्ट निकाले और सूटकेस में रख दिए। फिर अपना परफ्यूम अपना क्रीम लोशन और भी ना जाने क्या क्या सूटकेस में रखा और कहा,”तैयार हो जाना हम तब तक शोरूम से गाडी लेकर आते है”
गुड्डू के जाने के बाद शगुन ने अपने लिए साड़ी निकाली और पहनकर तैयार होने लगी। आज शगुन रोजाना से ज्यादा सुंदर लग रही थी। वह तैयार होकर नीचे आयी तो देखा मिश्राइन ने आँगन में जमघट लगा रखा है। शगुन ने उनके पास आकर कहा,”माजी ये सब ?”
“अरे बिटिया पहली बार अपने मायके जा रही हो , इह सब तो भेजना जरुरी है और तुम खड़ी काहे हो ?बइठो”,मिश्राइन ने कहा तो शगुन वही पास पड़े सोफे पर बैठकर सब देखने लगी। मिश्रा जी गेट के पास खड़े घूम रहे थे शायद गुड्डू का इंतजार कर रहे थे। शगुन ने देखा मिश्राइन ने मिठाईयों के डिब्बे , आचार , फल , और ना जाने क्या क्या सामान शगुन के मायके भेजने के लिए जमाया था। वेदी आयी और शगुन की बगल में बैठते हुए कहा,”भाभी जा रही है आप ?”
“हम्म्म”,शगुन ने मुस्कुरा कर कहा
“लेकिन जल्दी वापस आना”,वेदी ने शगुन को साइड से हग करते हुए कहा
“एक काम करो तुम भी चलो मेरे साथ , बनारस भी घूम लेना”,शगुन ने कहा तो वेदी ने कहा,”नहीं भाभी फिर कभी , अभी मुझे कॉलेज के लिए फॉर्म्स लगाने है , मैं फिर कभी चलूंगी”,वेदी ने कहा तो शगुन ने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी।
“भाभी एक मिनिट साइड में चलेगी हमे आपसे कुछ बात करनी है”,वेदी ने धीरे से कहा तो शगुन उठकर उसके साथ चली आयी। दोनों घर के एक कोने में आकर खड़ी हो गयी जहा से उनकी बातें किसी को सुनाई ना दे। वेदी ने शगुन के हाथो को अपने हाथो में लिया और कहने लगी,”आई ऍम सॉरी भाभी हमारी वजह से आपको कल झूठ बोलना पड़ा और भैया आपसे नाराज हो गए। पर आपको उस रमेश को बचाना नहीं चाहिए था भाभी उसे तो पिताजी के सामने सजा मिलनी चाहिए थी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कमीना कही का”
“वेदी तुम अभी बच्ची हो घर की इज्जत और ऊंच नीच नहीं समझती इसलिए ऐसा कह रही हो , मैंने झूठ तुम्हारे लिए नहीं बल्कि इस घर की इज्जत के लिए बोला पापाजी की बहुत इज्जत है यहाँ और मैं नहीं चाहती कोई बाहर का आदमी उन्हें नीचा दिखाए,,,,,,,,,,,,,,गुड्डू जी को तो मैं मना लुंगी पर अगर उस रात उन्हें कुछ हो जाता तो मैं कभी खुद को माफ़ नहीं कर पाती”,शगुन ने कहा तो वेदी मुस्कुरा उठी ओर कहा,”हम जानते है भाभी आप बिना वजह ऐसा कुछ नहीं करेंगी और देखना गुड्डू भैया भी आपको माफ़ कर देंगे अभी थोड़ा गुस्से में है पर उनका गुस्सा भी ज्यादा देर तक नहीं टिकता”
“तुम चिंता मत करो उन्हें तो मैं मना लुंगी,,,,,,,,,,,,,,,!!”,शगुन ने वेदी के गाल को छूकर कहा
“भाभी एक बात बोलू आपसे”,वेदी ने शरारत से कहा
“हम्म्म कहो”,शगुन ने कहा
“आपको ना भैया से प्यार हो गया”,वेदी ने फुसफुसाकर कहा और भाग गयी ,,
“बदमाश,,,,,,,,,,,,!”,शगुन भी उसके पीछे पीछे भागी मिश्राइन ने देखा तो शगुन को रोकते हुए कहा,”पगला गयी हो बिटिया , इस बख्त में ऐसे भाग दौड़ नहीं करते”
“सॉरी”,शगुन ने कहा तो मिश्राइन उसे समझाने लगी,”देखो बिटिया शुरू के ये तीन महीने ना काफी मुश्किल होते है इसमें पूरा ध्यान रखना पड़ता है। ज्यादा भारी सामान नहीं उठाना है और ना ही ज्यादा भाग दौड़ करनी है समझी , वक्त पर खाना है और हां पेट भरकर खाना है”
मिश्राइन शगुन को नसीहते देती रही और शगुन चुपचाप सुनते रही। कुछ देर बाद गुड्डू गाड़ी लेकर चला आया।
गुड्डू गाड़ी से उतरा तो मिश्रा जी ने कहा,”वहा आँगन में जो सामान रखा लाकर पीछे डिग्गी में जमाओ और उसके बाद तैयार हो जाओ”
“हमहू तो तैयार ही है”,गुड्डू ने कहा
“बेटा तैयार से हमारा मतलब है की थोड़ी शक्ल सुधार लो अपनी , ससुराल जा रहे हो थोड़ा सलीके से जाओ”,मिश्रा जी ने कहा तो गुड्डू अंदर चला आया। एक एक करके उसने सारा सामान गाड़ी में रखा और फिर तैयार होने ऊपर चला आया। शीशे के सामने खड़े होकर दाढ़ी ट्रिम करते हुए गुड्डू बड़बड़ाने लगा,”शादी तो करनी ही नहीं चाहिए किसी इंसान को , अच्छी खासी जिंदगी का रायता बना के रख देते है सब। कभी उनका कुली बनो कभी इनका हेल्पर ,, झगड़ा करने में तो सबसे आगे रहेंगी लेकिन बाकि चीजों में हम आगे हो जाते है। हम जायेंगे और इनको बनारस छोड़कर वापस आ जायेंगे,,,,,,,,,,वहा रुकेंगे ही नहीं”
“गुड्डू भैया अगर आपका साजो श्रृंगार हो चुका हो तो मिश्रा जी आपको निचे बुला रहे है”,लाजो ने कमरे के दरवाजे पर आकर कहा
“हम्म्म चलो”,कहते हुए गुड्डू जैसे ही आने लगा लाजो ने कहा,”उह सूटकेस भी लेकर आना है”
“हाँ सब मिलके कुली बना दो हमको”,गुड्डू ने झुंझलाते हुए कहा तो लाजो हंस पड़ी और वहा से चली गयी। गुड्डू ने सूटकेस उठाया और कमरे से बाहर निकला अपनी बालकनी में खड़े सोनू भैया की नजर गुड्डू पर पड़ी तो उन्होंने पूछ लिया,”और गुड्डू इतना सज संवर कर कहा चले ?”
“ससुराल जाय रहे है तुमहू भी चलो”,गुड्डू ने चिढ़ते हुए कहा
“अरे नहीं भैया तुम्ही जाओ अपने ससुराल हमसे हमाये वाला नहीं झेला जा रहा”,सोनू भैया ने कहा तो गुड्डू चुपचाप बैग उठाये वहा से निकल गया। सीढ़ियों के पास आकर ना जाने गुड्डू को गुस्से क्यों आया उसने सूटकेस को सीढ़ियों से नीचे धकिया दिया। बेचारा सूटकेस सीढ़ियों से गिरता पड़ता हिचकोले खाता नीचे आया।
“गुड्डू”,मिश्रा जी ने ऊँची आवाज में कहा
“जी जी पिताजी”,गुड्डू ने अनजान बनते हुए कहा
“इह सामान लाने का तरिका है”,मिश्रा जी ने गुड्डू को घूरते हुए कहा
“हम तो ठीक तरीके से ही ला रहे थे की इह हाथ से निकल कर नीचे आ गवा , अब इसको हमसे ज्यादा जल्दी थी तो हम का करे”,गुड्डू ने कहा
“उठाकर गाड़ी में रखो इसे”,मिश्रा जी ने कहा
गुड्डू ने सूटकेस गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और वही खड़ा हो गया। शगुन ने अम्मा के पैर छुए उसके बाद मिश्रा जी और मिश्राइन के भी पैर छुए। मिश्रा जी कुछ रूपये शगुन की ओर बढाकर कहा,”इह रखो बिटिया काम आएंगे और अपना ख्याल रखना ,, गुप्ता जी को हमारा नमस्कार कहना और हां जल्दी वापस आना। का है की तुम नहीं रहोगी तो घर सुना सुना लगेगा”
शगुन ने सूना तो मुस्कुरा उठी और कहा,”चलती हूँ”
“चलो हम सब गाड़ी तक छोड़कर आते है”,मिश्राइन ने कहा तो मिश्रा जी और बाकि सब शगुन के साथ बाहर चले आये। शगुन आगे वाली सीट पर आराम से बैठी। मिश्रा जी ने गुड्डू को आराम से जाने को कहा और शगुन का ध्यान रखने को कहा। गुड्डू ड्राइवर वाली सीट पर आकर बैठा और गाड़ी स्टार्ट करके वहा से निकल गया। शगुन बहुत खुश थी शादी के बाद पहली बार अपने घर जो जा रही थी वही थोड़ा उदास भी की माँ जैसी सास और पिता जैसे ससुर को छोड़कर आयी थी। गाड़ी कानपूर से बाहर निकलते ही गुड्डू ने गाड़ी में लगा म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया। गाना बजने लगा
“गुड्डू जी मुझे आपसे कुछ बात करनी है”,शगुन ने कहा तो गुड्डू ने गाने की आवाज और बढ़ा दी
“गुड्डू जी मेरी बात तो सुनिए मैं नहीं चाहती थी बात आगे बढे इसलिए,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”,शगुन ने कहना चाहा लेकिन गुड्डू शगुन की बात सुनने के मूड में बिल्कुल नहीं था इसलिए आवाज और तेज कर दी और सामने देखते हुए गाड़ी चलाता रहा। शगुन समझ गयी की गुड्डू उसकी बात सुनना नहीं चाहता शगुन खिड़की के बाहर देखने लगी।
गुड्डू ने देखा तो आवाज फिर नार्मल कर दी और गाड़ी की स्पीड थोड़ी बढ़ा दी। शगुन उदास हो गयी उसने सर खिड़की से लगा लिया और बाहर देखने लगी। गुड्डू का गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था वह बस अपनी मस्ती में गाड़ी चलाता रहा।

शगुन और गुड्डू के जाने के बाद घर थोड़ा सुना हो गया। मिश्रा जी खाना खाकर बाहर चले गए। लाजो काम में लगी थी और मिश्राइन आँगन में बैठी अम्मा के बालो में तेल लगा रही थी। वेदी भी आकर वहा बैठ गयी और टीवी देखने लगी। टीवी देखते हुए वेदी की नजर घर के दरवाजे की और गयी जहा एक लड़का खड़ा फल वाले से मोल भाव कर रहा था लेकिन नजर मिश्रा जी के घर के अंदर थी। वेदी उठी और दरवाजे पर आकर फलवाले से कहा,”ओह्ह फलवाले भैया अमरुद है का ?”
“है ना बिटिया बताओ कितना चाहिए ?”,फलवाले ने बड़े प्यार से कहा लेकिन वेदी को तो फल चाहिए ही नहीं थे वह तो बस ये देखने आयी थी की वो लड़का कौन है ? वेदी ने ध्यान से देखा ये वही लड़का था जो उस दिन बाइक से गिरा था और उसके बाद छत पर नजर आया था। वेदी ने एक नजर उस लड़के को देखा लड़का वेदी को देखकर मुस्कुरा दिया तो वेदी ने ऊँची आवाज में कहा,”हमे कोई अमरुद नहीं चाहिए चच्चा”
कहकर वेदी ने दरवाजा बंद कर दिया और वापस अंदर आ गयी। बार बार उसकी आँखों के सामने उस लड़के का चेहरा आ रहा था और मन में ख्याल की आखिर ये कौन और बार बार उसके सामने क्यों आ जाता है ? खैर वेदी टीवी में अपना ध्यान लगाने लगी और फिर टीवी देखते देखते ही सो गयी।
गोलू आज दुकान पर अकेले बैठे ऊंघ रहा था , हालाँकि उसके पास काम बहुत था लेकिन गुड्डू के साथ की उसे आदत सी पड़ चुकी थी। गोलू बैठा काम कर ही रहा था की तभी उसका फोन बजा और किसी ने कहा,”हेलो गोलू भाई वो रमेश ना मोहन के सीमेंट वाले गोदाम पर है”
“ठीक है तुमहू फोन रखो उस से जाकर हम मिलते है”,गोलू ने कहा और फोन काटकर दुकान बंद कर दी। स्कूटी उठायी और निकल पड़ा मोहन के गोदाम की और मोहन के गोदाम पहुंचकर गोलू ने देखा रमेश आराम से सीमेंट के कट्टो पर पड़ा सिगरेट के कश लगा रहा है। गोलू ने जाकर उसे एक लात मारकर कहा,”का बे रमेशवा बहुते पंख निकल आये है तुम्हाये जो गुड्डू भैया से पंगा ले रहे हो”
“अबे साले गोलू लगता है तुम्हाये उलटे दिन चल रहे है इहलिये तुमहू पीटने चले आये”,रमेश ने उठकर खुद को झाड़ते हुए कहा
“लगता है दिन में भी भांग खाके बैठे हो , बेटा ऐसा तोड़ेंगे ना तुमको कानपूर का कोई डॉक्टर नहीं जोड़ पायेगा”,कहकर गोलू रमेश की और बढ़ा और दोनों में हाथापाई शुरू हो गयी। पीटते पीटते जब रमेश का हाल बेहाल हो गया तो उसने अपने दोस्तों को आवाज लगाई और दो लड़के जो की गोदाम के अंदर थे दौड़े चले आये अब तीनो ने मिलकर गोलू को पीटना शुरू कर दिया। रमेश ने एक घूंसा गोलू के मुंह पर मारा और गोलू कुछ दूर जा गिरा। गोलू के होंठ से खून निकल आया गोलू उठा और पास पड़ी लकड़ियों के ढेर से लकड़ी उठायी और रमेश और उनके दोस्तों को घूरते हुए आगे बढ़ा , चलते उसने महसूस किया की उसके साथ कोई और भी चल रहा है गोलू ने साइड में गर्दन घुमाई तो हैरान रह गया मिश्रा जी मोटा सा डंडा लिए उसके साथ चल रहे थे। ये देखकर तो गोलू में और हिम्मत आ गयी उसके बाद क्या था गोलू और मिश्रा जी ने मिलके तीनो की खूब सुताई की। रमेश के दोस्त तो भाग गए लेकिन रमेश वही गिर गया। मिश्रा जी ने पास पड़ी लोहे वाली कुर्सी रमेश के सामने डाली और बैठते हुए कहा,”का बेटा खुद को बहुत बड़ा गुंडा समझते हो ? तुमको का लगता है हम तुम्हारे रंग ढंग नहीं जानते ,, तुमहू हमाये घर आकर कुछो भी बकोगे और हम विश्वास कर लेंगे,,,,,,,,,,,,,,,,,बेटा मिश्रा सरनेम है हमारा इतने भी चूतिया नहीं है की तुम्हायी बातो में झूठ और अपने बेटे की आँखों में सच ना देख पाए , गुड्डू पर हाथ उठाकर अच्छा नहीं किये तुम ,इह तुमको लास्ट वार्निंग है रमेश आज के बाद अगर हमाये दोनों बेटे (गुड्डू और गोलू ) या हमाये घर की तरफ नजर उठाकर भी देखे तो जिन्दा गाड़ देंगे जमीन में और सॉरी भी नहीं बोलेंगे,,,,,,,,,,,,,,,,का समझे !!”
बेचारा रमेश क्या बोलता पहले गोलू से और फिर मिश्रा जी इतनी मार खा चुका था की उठने की हालत में नहीं था। उसका चेहरा देखकर मिश्रा जी समझ गए की उसे उनकी बात समझ में आ गयी है। गोलू तो हैरान था की आज मिश्रा जी ने उसे अपना बेटा कहा। उसे हैरान देखकर मिश्रा जी ने कहा,”तुम काहे मुंह फाड् रहे हो बे ? साले अकेले भिड़ने चले आये बैल बुद्धि,,,,,,,,,,,,,,,चलो यहाँ से”
मिश्रा जी और गोलू गोदाम से बाहर आये तो नजर चाय की दुकान पर पड़ी। गोलू को सदमे में देखकर मिश्रा जी ने कहा,”चलो गोलू तुमको एक ठो चाय पिलाते है”
मिश्रा जी और गोलू आकर बेंच पर बैठे और दो चाय देने को कहा। दोने ने चाय ली और पीने लगे चाय पीते हुए मिश्रा जी ने कहा,”घर में जे सब के बारे में किसी को पता न चले”
“पर चचा आपको कैसे पता इस बार गुड्डू भैया गलती नहीं किये ?”,गोलू ने कहा
“गोलू बाप है उसके नजरो से पहचान लेते है की उसके मन में का चल रहा है , गुड्डू सब करेगा पर बेवजह किसी पर हाथ नहीं उठाएगा और इह रमेश का चीज है हमने तो एक टाइम पर इसके बाप तक को पेला है पर जब मिश्राइन से शादी हुई रहय तो सब छोड़ दिया का है की फॅमिली इम्पोर्टेन्ट है”,मिश्रा जी ने चाय पीते हुए कहा
“सही है यार मतलब तुमहू तो एकदम भोकाल निकले”,गोलू जोश जोश में ये भूल गया की वो मिश्रा जी है। मिश्रा जी ने खाली कुल्हड़ डस्टबिन में डाला और एक कंटाप गोलू को जड़ते हुए कहा,”का बेटा बाप के साथ फ्रेंक हो रहे हो ? सोचना भी मत साले खटिया खड़ी कर देंगे तुम्हायी”
गोलू ने सूना तो हक्का बक्का रह गया। उसे चुप देखकर मिश्रा जी कहने लगे,”देखो गोलू एक उम्र तक ये रंगबाजी , लड़ाई झगडे ठीक है पर बात जब फॅमिली पर आने लगे ना तो जे सब छोड़ देना चाहिए,,,,,,,,,,,,,तुम्हायी भी उम्र होने लगी है कोई अच्छी सी लड़की देख के शादी कर ल्यो”
“ह्म्म्मम्म!!”,गोलू ने हाथ गाल से लगाए हुए कहा
“चलते है”,कहकर मिश्रा जी वहा से चले गए। गोलू अपने गाल पर पड़े थप्पड़ का उतना दुःख नहीं था जितनी ख़ुशी गुड्डू के लिए मिश्रा जी आँखों में प्यार देखकर हुई !

क्रमश – मनमर्जियाँ – 84

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