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मनमर्जियाँ – 40

Manmarjiyan – 40

Manmarjiyan - 40

Manmarjiyan – 40

आदर्श और गुप्ता जी बातें गुड्डू गुड्डू सुन चुका था , गुप्ता जी नहीं चाहते थे की गुड्डू को इन सब झमेलों के बारे में पता चले इसलिए उन्होंने गुड्डू को वहां से जाने को कहा लेकिन गुड्डू ने उनकी नहीं सुनी और सीधा आदर्श जी के पास आकर कहा,”नमस्ते”
“नमस्ते बेटा”,आदर्श ने कहा
“माफ़ कीजियेगा हमे बड़ो के बीच में बोलना नहीं चाहिए पर हम बोलेंगे , जो पैसे आप इन्हे दे रहे है उसकी कोई जरूरत नहीं है हमहू आपसे विनती करते है इनके घर के कागजात वापस कर दीजिये”,गुड्डू ने कहा
“ये आप क्या कर रहे है दामाद जी , हम बंदोबस्त कर लेंगे”,गुप्ता जी ने आकर कहा तो गुड्डू उनकी और पलटा और कहा,”कहा से करेंगे बदोबस्त पहले ही इतने पैसो के लिए आपने घर गिरवी रख दिया है ,, कैसे चुकाएंगे इतना पैसा ? और इह सब छोड़िये पहिले इह बताईये की आपसे किसने कहा की हमे या हमाए पिताजी को पैसे देने होंगे ? हमे कुछ नहीं चाहिए ना ही हमाये पिताजी को कुछ चाहिए”
“हम जानते है बेटा लेकिन शगुन का थोड़ा तो देना जरुरी है ना”,गुप्ता जी शांत लहजे में कहा
“तो का उह पैसा आप इस तरह देंगे , आप जानते है की इह घर बनाने में अपने कितनी मेहनत की होगी , एक एक चीज सजाई होगी और आज सिर्फ हमे शगुन देने के लिए आपने इस घर को गिरवी रख दिया ,, जो बहुते गलत बात है , आप इह पैसा इन्हे वापस कीजिये और कोई जरूरत नहीं है हमाये पिताजी को इतना पैसा देने की , उनको पता चला तो बहुते नाराज होंगे उह”,गुड्डू ने कहा
“लेकिन बेटा आप समझ नहीं रहे है समाज में ये सब चीजे जरुरी है”,गुप्ता जी ने कहा
“हम इह समाज की बातें नहीं समझते है हम बस इतना कह रहे है की आपको ये घर गिरवी रखने की कोई जरूरत नहीं है , अभी प्रीति की जिम्मेदारी भी देखनी है आपको”,गुड्डू ने कहा तो गुप्ता जी बोझल आँखों से आदर्श की और देखने लगे। गुप्ता जी को खामोश देखकर गुड्डू ने आदर्श जी से कहा,”इह अपना घर नहीं बेचेंगे आप अपने पैसे वापस ले जाईये”
आदर्श जी मुस्कुराये और कहा,”शाबाश बेटा , आज के टाइम में जहा दहेज़ ना मिलने पर बारात वापस ले जाते है वही आज आपने इतनी बड़ी बात कहके दिल जीत लिया , खुश रहो बेटा (कहते हुए आदर्श जी गुप्ता जी के पास आये और कहा) शगुन बिटिया बहुत भाग्यशाली है जिसे इतना अच्छा और समझदार लड़का मिला है , आपका दामाद हीरा है हीरा गुप्ता जी ,, ये लीजिये आपके पेपर्स”
गुप्ता जी ने पैसे आदर्श जी को वापस लौटा दिए। आदर्श जी जाने लगे तो गुड्डू ने कहा,”सर खाना खाकर जाईयेगा”
आदर्श जी ने मुस्कुराते हुए हामी भरी और वहा से चले गए। गुड्डू का बड़ा दिल देखकर गुप्ता जी की आँखों में आंसू आ गए उन्होंने भरे गले से गुड्डू से कहा,”समझ में नहीं आ रहा किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करु , आज आपने जो किया है वो कोई अपना ही कर सकता है बेटा”
गुड्डू ने उनकी नम आँखों को देखा तो उनके दोनों हाथो को थाम लिया और कहने लगा,”आप शगुन के पापा है तो हमारे भी पापा जैसे ही हुए , दहेज़ लेना और देना दोनों ही गलत है ,, आपने शादी में जितना किया है उतना काफी है”
“पापा जैसे नहीं बेटा पापा ही कहो , आज से आप हमारे दामाद के साथ साथ बेटे भी है , जिंदगी में हमेशा जिस बेटे की कमी हमे खलती थी वो आज आपने पूरी कर दी ,, हमेशा खुश रहो बेटा”,गुप्ता जी ने अपनी आँखों के किनारे साफ करते हुए कहा
“आईये चलते है”,गुड्डू ने कहा और गुप्ता जी के साथ घर के अंदर चला आया। अमन ने गुड्डू को देखा तो उसके पास आकर कहा,”सॉरी जीजाजी वो बड़े पापा ने हमें किसी जरुरी काम से भेज दिया था , आप चलिए”
गुड्डू ने आँखों ही आँखों में गुप्ता जी को बेफिक्र रहने का इशारा किया और वहा से चला गया। एक बार फिर गुड्डू अपने दोस्तों और भाईयो में शामिल हो गया। गुप्ता जी तो गुड्डू जैसा दामाद पाकर ख़ुशी से फुले नहीं समा रहे थे। गुड्डू वापस आया और आकर बैठ गया , वेटर सबके लिए कॉफी रखकर चला गया। सभी कॉफी पीने लगे गुड्डू मन ही मन खुश था की आज उसने कुछ अच्छा काम किया।
प्रीति भी वही पंडाल में अपने दोस्तों के साथ घूम रही थी तभी उसकी नजर खाना खाते हुए एक लड़के पर गयी जो की ना तो बनारस का था ना ही उसने उसे बारात में देखा था। प्रीति ने दिमाग पर बहुत जोर डाला तो उसे याद आया की ये वही लड़का था जो प्रीति को ट्रैफिक में मिला था और दोनों में झगड़ा हुआ था। प्रीति ने अपनी सहेलियों से रुकने को कहा और खुद अकेले ही उस लड़के की और चल पड़ी और उसके सामने आकर कहा,”खा लिया”
“हम्म्म”,लड़के ने बिना सामने देखे ही खाते हुए कहा तो प्रीति ने उसके चेहरे के सामने चुटकी बजायी। जैसे ही लड़के ने सामने देखा प्रीति को देखकर खाना उसके गले में ही अटक गया और वह खांसने लगा। प्रीति ने पास से गुजरते वेटर की ट्रे से पानी का ग्लास लेकर लड़के की और बढाकर कहा,”ये लो पि लो”
लड़के ने ग्लास लिया पानी पिता थोड़ा आराम मिला तो प्रीति ने अपना अगला सवाल दाग दिया,”लड़की वालो ने तो तुम्हे इन्वाइट नहीं किया है , और लड़के वालो की तरफ से तुम डेफिनेटली नहीं हो सकते , अब बताओ शादी में कैसे घुसे ?”
लड़का एकदम चुप कहे तो क्या कहे ? वह चुपचाप खड़ा था और प्रीति को ये बर्दास्त नहीं हुआ तो वह थोड़ा उसके पास आयी और घूरते हुए कहा,”मान ना मान मैं तेरा मेहमान , खाना खाने आये हो ना , या फिर लड़किया देखने आये होंगे ,, शादी में तो सब नया ही मिलता है,,,,,,,,,,,,है ना”
लड़का अब भी चुप दूर बैठे गुड्डू की नजर प्रीति पर गयी तो उसने कप रखा और उठकर प्रीति की और चला आया , पीछे पीछे गोलू भी चला आया। प्रीति ने जैसे ही कुछ कहना चाहा गुड्डू ने बीच में आकर कहा,”अरे अरे का का कर रही हो ?”
“देखो ना जीजू बिना बुलाये किसी की भी शादी में घुस आते है ऐसे लोग,,,,,,,,,,,,,,,,भुक्कड़ कही के ज़रा भी शर्म नहीं है”,प्रीति ने लड़के को घूरते हुए कहा
“एक्सक्यूज मी,,,,,,,,,,,,,,,!!!”,इस बार लड़के के मुंह से दो शब्द फूटे लेकिन प्रीति कहा सुनने वाली थी उसने हाथो को नचाते हुए कहा,”वाह वाह क्या बात है तुम्हे तो अंग्रेजी भी आती है”
गुड्डू को मामला समझते देर नहीं लगी उसने प्रीति को साइड करते हुए कहा,”अरे इह दोस्त है”
“किसका अपना ?”,प्रीति ने हैरानी से आँखे बड़ी बड़ी करके कहा
गुड्डू फंस गया कहे तो क्या कहे लेकिन जैसे ही साइड में गोलू को देखा उसे अपनी और खींचकर कहा,”हमारा नहीं इसका है गोलु का , गोलू का दोस्त है इह गोलू ने ही बुलाया है तो चला आया”
प्रीति ने पहले लड़के को ऊपर से नीचे तक घुरा और फिर गोलू को घूरते हुए कहा,”हां लगता भी है”
“अच्छा तुमहू हमे अपनी सहेलियों से मिलाने वाली थी”,गुड्डू ने बात बदलते हुए कहा
“अरे हां जीजू मैं तो भूल ही गयी , चलिए”,कहकर प्रीति गुड्डू को लेकर चली गयी। लड़का और गोलू बस हैरानी से दोनों को जाते हुए देखते रहे। उनके जाने के बाद लड़के ने गोलू से कहा,”उन भाईसाहब ने झूठ क्यों कहा की हम आपके दोस्त है ?”
गोलू ने सर खुजलाया और कहा,”उह का है की हमने और उन्होंने भी ऐसे शादियों में बिना इन्विटेशन के बहुत खाना खाया है ,, कानपूर का सुने हो आज तक वहा की एक भी शादी मिस नहीं की है हम दोनों ने”
“थैंक्स वैसे उन्हें भी थैंक्यू बोल देना”,लड़के ने कहा और वहा से चला गया।
प्रीति की उस लड़के से ये दूसरी मुलाकात थी और दूसरी मुलाकात में भी दोनों में झगड़ा ही हुआ। अभी तक प्रीति ना उस लड़के का नाम जानती थी ना ही उस लड़के के बारे में कुछ जानती थी। खैर लड़का चला गया और प्रीति गुड्डू को लेकर अपनी सहेलियों के पास आयी उन्हें अपने जीजाजी से मिलवाया। सब गुड्डू से अच्छी खासी इम्प्रेस थी , भई उसकी पर्सनालिटी ही ऐसी थी की कोई भी देखते ही फ्लेट हो जाये। रात के 1 बजने को आये सोनू भैया ने आकर गुड्डू से कपडे चेंज करने को कहा क्योकि फेरो में बैठना था। गुड्डू ने कोट पेंट पहना और सबके साथ घर के आँगन में चला आया जहा फेरो के लिए आलिशान मंडप बना हुआ था। गुप्ता जी ने जब गुड्डू को देखा तो उसके पास आकर कहा,”आइये बेटा”
गुड्डू आकर केशव पंडित जी के पास बैठ गया पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू किया। उन्हें देखकर गुड्डू ने मन ही मन कहा,”बस एक बार इह शादी हो जाये उसके बाद आपका तो घर आना बंद करवा देंगे हम” कुछ देर मंत्रोचारण के बाद पंडित जी ने कहा,”दुल्हन को बुलाइये”
प्रीति और भाभी शगुन को लेकर मंडप में आयी , सब घरवाले और रिश्तेदार वहा मौजूद थे शगुन ने पलके झुका रखी थी वह आकर गुड्डू के दांयी तरफ बैठ गयी। पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू किया। गुड्डू और शगुन दोनों ही सामने जल रही पवित्र अग्नि को देख रहे थे। गुड्डू के मन में भी इस वक्त ऐसी ही आग जल रही थी क्योकि पिंकी से उसकी शादी का सपना जलकर खाक हो चुका था वही शगुन उस अग्नि को देखते हुए मन ही मन कह रही थी की उसका और गुड्डू का जीवन सफल बने। कुछ देर बाद पंडित जी ने शगुन को अपना हाथ आगे करने को कहा और फिर उसके हाथ में कुछ पूजा सामग्री रखकर गुड्डू से शगुन का हाथ थामने को कहा। गुड्डू ने अपने हाथ से शगुन के हाथ को थाम लिया तो पंडित जी ने उसे सफ़ेद रूमाल से ढक दिया जिस से किसी की नजर ना लगे और एक बार फिर मंत्रोच्चारण करने लगे। गुड्डू ने शगुन का हाथ थामा हुआ था एक खूबसूरत अहसास शगुन को छूकर गुजर रहा था वही गुड्डू का दिल धड़क रहा था और उसके पैर काँप रहे थे। पास बैठे गोलू ने गुड्डू के दूसरे हाथ पर हाथ रखा और उसे हिम्मत दी। मंत्र खत्म होने के बाद पंडित जी ने गुड्डू से अपना हाथ हटाने को कहा और पूजा सामग्री अग्नि में डालने को कहा। पंडित जी ने गठबंधन करने का इशारा किया तो प्रीति ने पीछे आकर गुड्डू के गले में पहने गठजोड़े और शगुन के दुपट्टे को एक दूसरे से बांधकर गठबंधन कर दिया।
“फेरो के लिए खड़े हो जाईये”,पंडित जी ने उठते हुए कहा और फूलो की प्लेट अपने हाथो में उठा ली। गुड्डू को शगुन का हाथ थामने को कहा और शगुन को गुड्डू के आगे चलने को कहा। शगुन गुड्डू का हाथ थामे धीरे धीरे उसके आगे चलने लगी जैसे ही एक फेरा खत्म हुआ दोनों आकर अपनी जगह खड़े हो गए और पंडित जी उन्हें पहले फेरे के पहले वचन का मतलब समझाने लगे। सभी हाथो में लिए फूल गुड्डू और शगुन पर फेंकते जा रहे थे ,, बीच बीच में मनोहर भी रौशनी पर फूल उछाल देता जिसे देखकर गोलू ने मन ही मन कहा,”पता नहीं हमायी जिंदगी में ये रात कब आएगी ?”
शगुन ने चार फेरे लिए और पांचवे फेरे गुड्डू आगे आ गया और चलने लगा। गुड्डू ने शगुन के साथ फेरे लिए और आकर दोनों अपनी अपनी जगह खड़े हो गए इस बार पंडित जी ने दोनों की जगह बदल दी। शगुन गुड्डू के बांयी तरफ चली आयी यानि उसके ह्रदय की और। पंडित जी ने दोनों को अपने अपने स्थान पर बैठने को कहा और खुद भी बैठकर आगे की विधि सम्पन्न करने लगे। गुप्ता जी ने शगुन का कन्यादान किया और उसे खूब आशीर्वाद देकर साइड में आ गए। उनका मन भारी हो गया विनोद ने उन्हें सम्हाला। शगुन ने अपनी बगल में बैठे गुड्डू को एक नजर देखा और फिर सामने देखने लगी लेकिन मजाल है गुड्डू उसकी और देख ले।
पंडित जी ने मंत्र पढ़ने शुरू किये और उसके बाद सिंदूर की डिब्बी गुड्डू की और बढाकर कहा,”लो बेटा शगुन की माँग में सिन्दूर भरो”
गुड्डू ने पंडित जी के हाथ से सिन्दुर की डिब्बी ली और उसमें से सिंदूर लेकर शगुन की माँग में भर दिया , सिंदूर का कुछ हिस्सा गुड्डू की उंगलियों से छूटकर शगुन की नाक पर आ गिरा जिसे की बहुत ही सौभाग्यशाली माना जाता है , शगुन ने अपनी पलके झुका ली। पंडित जी ने मंगलसूत्र गुड्डू की और बढ़ाया गुड्डू ने उसे शगुन के गले में पहना दिया। आज सही मायनो में शगुन गुड्डू की हो चुकी थी। शादी सम्पन्न हुयी गुड्डू और शगुन ने उठकर एक साथ बड़ो का आशीर्वाद लिया। सभी बहुत खुश थे। गुप्ता जी और मिश्रा जी आपस में गले लगे और एक दूसरे को बधाईया दी। विनोद ने अमन से कहकर शगुन और गुड्डू के लिए खाना लगाने को कहा। आँगन में ही एक बड़ा सा गोल टेबल लगा और उसके अगल बगल आठ दस कुर्सियां लगी जिनपर आकर गुड्डू ,गोलू ,सोनू भैया,मनोहर और वेदी आकर बैठ गए। शगुन की तरफ से शगुन,प्रीति,बिंदु ,अमन और उसकी छोटी बहन बैठे थे। अमन तो खाना परोसना चाहता था लेकिन गुड्डू ने उसे भी साथ बैठा लिया। विनोद ने चार वेटर्स को उन सबकी खातिरदारी में लगा दिया। गुड्डू और शगुन एक दूसरे के पास बैठे हुए थे। कभी कभार गुड्डू शगुन को एक नजर देख भी लेता। बाकि सब बैठकर हंसी मजाक कर रहे थे। सबकी प्लेटो में खाना परोसा गया , गुड्डू जैसे ही खुद खाने लगा शगुन ने रोकते हुए कहा,”अरे जीजू अकेले अकेले खा रहे है आप दी को खिलाईये ना”
“काहे तुम्हायी दीदी खुद भी तो खा सकती है”,गुड्डू ने कहा
“बिल्कुल लेकिन आज स्पेशल डे है आप दोनों की शादी और अगर आप दी को अपने हाथ से खिलाओगे तो उन्हें ज्यादा अच्छा लगेगा ना”,प्रीति ने कहा तो सोनू मनोहर और गोलू ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलायी। मरता क्या ना करता गुड्डू ने बर्फी उठाकर शगुन को अपने हाथ से खिला दी बदले में शगुन ने भी एक टुकड़ा गुड्डू को खिलाया और गुड्डू मन ही मन खुद से कहने लगा,”बस आज से हमारे उलटे दिन शुरू”
सभी साथ बैठकर खाना खाने लगे। गोलू भी अपनी भाभी यानि शगुन को बीच बीच में अपने हाथ से खिला रहा था। शगुन को गोलू बहुत पसंद आया उसका बचपना और उसकी मासूमियत उसे मुस्कुराने पर मजबूर कर रहे थे। खाना खाने के बाद चाची और भाभी वहा आयी और शगुन को लेकर चली गयी। मिश्रा जी के बुलाने पर गुड्डू एक बार फिर उनकी और चला आया जहा गुड्डू को सोफे पर बैठने को कहा और गुप्ता जी तिलक करके उसे शादी का शगुन देने लगे। गुड्डू ने गुप्ता जी और देखा और उनसे शगुन के रूप में सिर्फ नारियल लेकर कहा,”इतना काफी है”
मिश्रा जी ने देखा तो उन्हें बहुत हैरानी हुई की आखिर गुड्डू और वो भी समझदारी वाली बाते उन्होंने गुड्डू के पास आकर उसका सर छूकर कहा,”तबियत ठीक है बेटा ?”
“हां हम ठीक है पिताजी और हमे नहीं लगता हमे इनसे इह सब लेना चाहिए”,गुड्डू ने धीरे से कहा तो मिश्रा जी का मन ख़ुशी से भर उठा पहली बार गुड्डू ने कोई समझदारी वाली बात कही थी। मिश्रा जी गुप्ता जी के सामने आये और शगुन के नाम पर सिर्फ नारियल लेते हुए कहा,”आपने शगुन जैसी बिटिया को हमे दे दिया इस से बड़ा शगुन और क्या होगा ? ये सब आप रखिये हमे और कुछ नहीं चाहिए”
गुप्ता जी ने सूना तो उनका मन भावनाओ से भर गया और उन्होंने मुस्कुराकर कहा,”आप जैसे लोग पहली बार देख रहा हूँ मिश्रा जी , शगुन बहुत भाग्यशाली है जिसे ऐसा घर-परिवार मिलने जा रहा है”
“बेटा ससुर जी के पैर छूओ”,मिश्रा जी ने गुड्डू की और देखकर कहा तो गुड्डू ने आकर अपने ससुर के पैर छुए। सुबह के 5 बजने को आए थे। गुड्डू अपने दोस्तों के साथ बैठा उघ रहा था। शगुन अपने घरवालों के साथ थी कमरे में जहा उसके ससुराल से आये गहने उसे पहनाये जा रहे थे , ससुराल की तरफ से आये हुए गहने देखकर चाची का तो मुंह ही बन गया था। गहनों से लड़ी शगुन , माँग में भरे सिंदूर से और भी प्यारी लग रही थी। प्रीति तो बस शगुन का हाथ थामे बैठी थी , बाहर से मुस्कुरा रही थी लेकिन अंदर ही अंदर खुद को ये यकीन दिलाने की कोशिश कर रही थी की कुछ देर बाद शगुन उस से बहुत दूर चली जाएगी। सुबह हो चुकी थी ,, विदाई का समय आ चुका था शगुन का मन भारी हो गया बहुत मुश्किल से उसने अपने आंसुओ को रोका हुआ था। वह जानबूझकर सबके सामने मुस्कुरा रही थी ताकि सब ख़ुशी ख़ुशी उसे विदा करे लेकिन प्रीति जैसे ही उसके सामने आयी शगुन के गले लगकर रो पड़ी ,, भाभी और बिंदु ने मुश्किल से उसे चुप करवाया , विदाई गीत गाते हुए घर की औरते शगुन के साथ घर के आँगन में आयी जहा गुड्डू और बाकि सब खड़े थे। प्रीति ने गुड्डू के जूते मंगवाए और उन्हें अपने दुप्पटे से साफ करके अपने हाथो से गुड्डू को पहनाये। शगुन के जाने का दुःख इतना था की प्रीति जूते छुपाने का नेग भी नहीं माँग पाई। माहौल देखते हुए मिश्रा जी ने अपने हिसाब से ही लिफाफा प्रीति को पकड़ा दिया। शगुन जिसने अब तक अपने आंसू रोक रखे थे अपने पापा को देखते ही वे गालो पर लुढ़क आये।

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संजना किरोड़ीवाल

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