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मनमर्जियाँ – 15

Manmarjiyan – 15

“मनमर्जियाँ”

By Sanjana Kirodiwal

Manmarjiyan – 15

गुड्डू पहली बार नशे में घर आया था और ये बात कही ना कही मिश्रा जी को बहुत खटक रही थी। आनंद मिश्रा एक बहुत ही समझदार और सुलझे हुए इंसान है समस्याओ और चिल्लाने के बजाय वे उसका हल निकालना जरूरी समझते थे। गुड्डू के लिए भी उन्होंने कुछ ऐसा ही सोचा और मिश्राइन से कह दिया की पंडित जी को रिश्ता देखने के लिए कहे। अगले दिन गुड्डू देर तक सोता रहा , जब उठा तो सर दर्द से फटा जा रहा था। गुड्डू अपना सर सहलाते हुए नीचे आया मिश्रा जी शोरूम जा चुके थे और मिश्राइन अपने कामो में लगी थी। वेदी के एग्जाम्स भी खत्म हो चुके थे इसलिए वह बैठकर टीवी देख रही थी। गुड्डू भी वेदी के बगल में आ बैठा और कहा,”यार वेदी सर दर्द से फटा जा रहा है”
“दवा ले लो ना , वहा रखी है”,वेदी ने बिना गुड्डू की और ध्यान दिए कहा , वह अपने सीरियल का एक मोमेंट भी मिस करना नहीं चाहती थी। गुड्डू ने देखा डिस्प्रिन रखा हुआ था , सुबह सुबह खाली पेट दवा लेना सही नहीं समझा। मिश्राइन की नजर गुड्डू पर पड़ी तो वे घी गर्म करके ले आयी और गुड्डू से नीचे बैठने को कहा। गुड्डू निचे गलीचे पर बैठ गया , मिश्राइन ने उसके सर में तेल मलना शुरू कर दिया। गुड्डू को कुछ आराम मिला तो उसने कहा,”कुछ भी कहो अम्मा तुम्हाये हाथ में तो जादू है , सुबह से सर चक्करघिनि बनके घूम रहा था”
“उह तो घूमेगा ही ना बेटा रात में देवदास बनकर आओगे तो यही न होगा”,मिश्राइन ने कहा तो गुड्डू ने अपने दिमाग पर जोर डाला तो याद आया की कल रात गुस्से गुस्से में उसने बीयर पि लिया था , अब तो गुड्डू मन ही मन बहुत घबरा रहा था उसने बात घुमाने के लिए कहा,”अच्छा उह पिताजी बताय रहे की बनारस जाने वाले है”
“हां वो पंडित जी कोई पूजा करवाने के लिए बताये रहे , उसी के लिए जायँगे ,, तुमहू जाही हो ?’,मिश्राइन ने पूछा
“अरे नहीं हम का करेंगे जाकर , पिताजी को जाने दो”,गुड्डू ने कहा
मिश्राइन उसके बालो में तेल मलती रही और कुछ देर बाद उठकर चली गयी , गुड्डू के सर का दर्द अब ठीक था। उसने वेदी से रिमोट छीना और चैनल चेंज कर दिया। वेदी को गुस्सा आ गया तो उसने कहा,”का गुड्डू भैया इह का बात हुई ? हम देख रहे थे ना चैनल काहे चेंज किया ?”
“दिनभर ये सीरियल देखकर ना माथा ख़राब हो जाएगा तुम्हरा अरे कभी न्यूज भी देख लिया करो यार”,गुड्डू ने कहा और लेटकर मजे से टीवी देखने लगा। वेदी पैर पटकते हुए वहा से चली गयी। लाजो गुड्डू के लिए चाय रख गयी चाय पीकर गुड्डू नहाने चला गया और फिर दोस्तों का फ़ोन आने पर क्रिकेट खेलने।
दो दिन गुजरे की केशव पंडित घर आ पधारे , गुड्डू उस वक्त अपनी बाइक लेकर बाहर जा ही रहा था की उसे देखकर पंडित जी ने टोक दिया,”अरे गुड्डू सुबह सुबह कहा जा रहे ?”
“पंजीरी लेने जाय रहे है , चलोगे ?”,कहकर गुड्डू ने पंडित को खा जाने वाली नजरो से देखा , केशव पंडित को गुड्डू बिल्कुल पसंद नहीं करता था उसका मानना था घर में जो नए नए नियम बनते थे वो इन्ही पंडित जी की मेहरबानी का नतीजा था। गुड्डू की बात सुनकर पंडित जी को गुस्सा नहीं आया बल्कि उन्होंने मन ही मन गुड्डू पर हँसते हुए कहा,”पंजीरी तो बेटा हम लेकर आये है तुम्हाये लिए उह भी ऐसी की जिंदगी भर इह केशव् पंडित को याद रखी हो”
“अरे पंडित जी रास्ता छोडो हमारा जान दयो”,गुड्डू ने कहा तो पंडित जी साइड हटे और गुड्डू अपनी बाइक लेकर वहा से निकल गया।

पंडित जी अंदर आये मिश्रा जी उस वक्त नहा रहे थे इसलिए मिश्राइन ने पंडित जी को बैठे को कहा और चाय नाश्ता लेने रसोई में चली आयी। चाय नाश्ते के बाद पंडित जी ने अपने झोले से लिफाफा निकाला , तब तक मिश्रा जी भी चले आये और कहा,”माफ़ करना पंडित जी उह गुसलखाने में थे तो थोड़ा वक्त लग गया”
“अरे कोई बात नहीं मिश्रा जी , बैठिये”,पंडित जी ने कहा
मिश्रा जी बैठे और कहा,”हां तो पंडित जी रिश्ता देखने के लिए कहे थे आपसे , मिला कोई अच्छा रिश्ता”
“मिश्रा जी रिश्ते तो कई है पर गुड्डू की कुंडली के हिसाब से 3 रिश्ते सबसे अच्छे मिले है”,पंडित जी ने लिफाफा खोलते हुए कहा
“अरे क्या पंडित जी अब गुड्डू तीन से थोड़े ना शादी करेगा हमे तो एक ही चाहिए”,मिश्रा जी ने हसंते हुए कहा तो केशव पंडित भी हसने लगा। केशव पंडित ने तस्वीरें निकाली और एक तस्वीर मिश्रा जी की और बढाकर कहा,”ये देखिये इनका नाम है “ज्योति पांडे” लखनऊ से है और बैंक में क्लर्क है ,, पिताजी भी इनके सरकारी नौकरी में है और माताजी गृहणी ,, ज्योति और गुड्डू के 22 गुण मिलते है। लड़की बाहर के कामो में कुशल है लेकिन घर के काम शादी के बाद सीख जाएगी”
मिश्रा जी ने ज्योति की फोटो ली और देखा , तब तक मिश्राइन भी चली आयी उन्होंने फोटो उनकी और बढ़ा दी तो मिश्राइन ने ना में गर्दन हिला दी। पंडित जी समझ गए की मिश्राइन को ज्योति पसंद नहीं आयी उन्होंने दूसरी फोटो मिश्रा जी की और बढ़ा दी और कहा,”कोई बात नहीं ये देखिये “ममता तिवारी” ये अपने कानपूर से ही है , कॉलेज तक पढाई की है अब घर में ही सिलाई बुनाई का काम करती है , घर के कामो में परफेक्ट है खाना तो बहुत अच्छा बनाती है। ममता चाहती है की ससुराल में रहकर वह अपने आगे की पढाई भी करे। गुड्डू के साथ पुरे 28 गुण मिलते है इसके”
मिश्रा जी को ममता कुछ ठीक लगी , उन्हें उसकी पढाई से भी कोई ऐतराज नहीं था लेकिन मिश्राइन को ममता अपने गुड्डू के लायक ना लगी , उन्होंने तीसरी फोटो दिखाने को कहा तो पंडित जी ने ख़ुशी ख़ुशी तीसरा फोटो भी आगे बढ़ा दिया और कहा,”ये है अनुजा शुक्ला आगरा से , दिल्ली रहकर डिप्लोमा किया है और अभी फैशन डिजायनर का कोर्स कर रही है , गुड्डू के साथ इसकी जोड़ी अच्छी जमेगी। दोनों की कुंडली भी मिल रही है साथ ही अनुजा बहुत ही होशियार और समझदार है , ये रिश्ता तो गुड्डू के लिए परफेक्ट रहेगा”
मिश्रा जी ने तस्वीर देखी और मिश्राइन की और बढ़ा दी , मिश्राइन ने कहा,”नहीं पंडित जी ये भी हमको कुछ खास नहीं जमी”
मिश्रा जी समझ गए की मिश्राइन जान बूझकर हर रिश्ते में कमी निकाल रही है। कुछ देर बाद मिश्राइन ने कहा,”पंडित जी कोई और लड़की है का हमाये गुड्डू के लिए ?”
“मिश्राइन तुम का साड़ियों की दुकान पर बइठी हो , जो और दिखाओ और दिखाओ कर रही हो , और तुम्हाये गुड्डू मिश्रा कौनसा शाहरुख खान है जो इतनी डिमांडिंग हो रही है उनके लिए”,मिश्रा जी ने खीजते हुए कहा तो मिश्राइन ने मुंह बना लिया। पंडित जी मिश्रा जी का मुंह ताकने लगे तो मिश्रा जी ने कहा,”देखिये पंडित जी गुड्डू के लिए हमे ऐसी लड़की चाहिए जो उसे सुधार सके , उसे उसकी गलतिया समझा सके उसे उसकी कमिया दिखा सके। जो अच्छे वक्त में गुड्डू के साथ जरूर रहे लेकिन बुरे वक्त में भी उसका साथ न छोड़े। पढ़ी लिखी हो , लेकिन रिश्तो की अहमियत समझती हो। घर के काम के साथ जो बाहर की जिम्मेदारियां भी उठा सके। ऐसी लड़की नजर में हो तो बताओ”

मिश्रा जी की बात सुनकर पंडित जी कुछ देर के लिए सोच में डूब गए और कुछ देर बाद कहा,”ऐसी एक लड़की है मिश्रा जी लेकिन,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
पंडित जी ने बात अधूरी छोड़ दी तो मिश्रा जी ने कहा,”लेकिन का ?”
“वह ब्राह्मण नहीं है , गुप्ता है”,पंडित जी ने कहा तो इस बार मिश्रा जी थोड़ा सोच में पड़ गए , कुछ कहते उस से पहले ही मिश्राइन बोल पड़ी,”अरे नहीं नहीं पंडित जी ब्राह्मण होते हुए किसी बनिए की लड़की क्यों लाएंगे हम ?
“इसलिए तो मैंने उसका जिक्र नहीं किया गुड्डू के लिए”,पंडित जी ने कहा
“तस्वीर है उसकी तो दिखाईये”,मिश्रा जी ने कहा
“अरे लेकिन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!”,मिश्राइन ने कहना चाहा तो मिश्रा जी ने हाथ आगे करके उन्हें बोलने से रोक दिया। पंडित जी ने झोले से एक तस्वीर निकाली और मिश्रा जी की और बढ़ा दी।
मिश्रा जी ने तस्वीर देखी , सुन्दर नैन नक्श , आँखे इतनी गहरी और जिवंत लगा जैसे अभी बोल पड़ेगी , प्यारी सी मुस्कान , माथे पर लगी छोटी काली बिंदी। मिश्रा जी को वह तस्वीर वाली लड़की बहुत पसंद आयी। उन्होंने पंडित जी की और देखा तो पंडित जी ने उसके बारे में बताना शुरू किया,”इसका नाम शगुन है , शगुन गुप्ता , पिताजी का नाम कृष्णकांत गुप्ता , बनारस में इनका पुश्तैनी मकान है। शगुन की माँ बचपन में ही गुजर गयी थी , गुप्ता जी की दो लड़किया है एक शगुन दूसरी प्रीति ,, गुप्ता जी ने ही दोनों बहनो को पाल पोसकर बड़ा किया , उन्हें अच्छे संस्कार दिए , पढ़ाया लिखाया। शगुन ने अपनी पढाई “बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय” से की है साथ ही वह वहा की लायब्रेरी ने नौकरी भी करती है। घर के कामो में निपूर्ण है तो बाहर की जिम्मेदारियां भी सम्हाल लेती है। गुप्ता जी वही बनारस के किसी स्कूल में सरकारी मास्टर है। कुल मिलाकर अच्छा परिवार है ,, अभी कुछ ही दिनों पहले जब हमारा बनारस जाना हुआ तब उन्होंने अपनी बड़ी बिटिया के लिए रिश्ता देखने की बात कही”
पंडित जी की बातें सुनकर मिश्रा जी का मन शगुन को लेकर और सहमत हो गया उन्होंने तस्वीर मिश्राइन की और बढाकर कहा,”देखो मिश्राइन कैसी है ?’
मिश्राइन ने तस्वीर देखी , शगुन दिखने में पिंकी से भी ज्यादा खूबसूरत थी और नैन नक्श भी उस से अच्छे थे , लेकिन मिश्राइन के मन में तो गुड्डू की पंसद को लेकर उलझन थी।
“अरे का हुआ कुछ तो बोलो कैसी है लड़की ?”,मिश्रा जी ने पूछा
“लड़की तो बहुते सुन्दर है”,मिश्राइन ने कहा
“पंडित जी शगुन के घरवालों को कोई ऐतराज नहीं ब्राह्मण परिवार में शादी करने से ?”,मिश्रा जी ने पूछा
“अरे नहीं मिश्रा जी , गुप्ता जी बहुत खुले विचारो वाले है , उन्हें शगुन के लिए अच्छा घर और वर चाहिए बस”,पंडित जी ने कहा
मिश्रा जी मुस्कुरा उठे और कहा,”तो फिर ठीक है पंडित जी आने वाले इतवार को गुप्ता जी मुलाकात फिक्स कर दीजिये , गुड्डू के लिए शगुन सही लगी हमे”
“अरे लेकिन उह हमरी जात की भी नहीं है मिश्रा जी”,मिश्राइन ने कहा
“कोनसी सदी में जी रही हो मिश्राइन ? आजकल जात पात कौन देखता है ? पंडित जी आप मीटिंग फिक्स करवाईये”,मिश्रा जी ने कहा। पंडित जी ने ख़ुशी ख़ुशी शगुन की तस्वीर लिफाफे में डालकर मिश्रा जी को दे दी और गुड्डू की एक तस्वीर मांगी। मिश्रा जी ने गुड्डू की तस्वीर पंडित जी को देकर उन्हें दक्षिणा के साथ विदा किया। मिश्रा जी के इस फैसले से मिश्राइन थोड़ा नाराज हो गयी तो मिश्रा जी ने उनके पास आकर प्यार से कहा,”मिश्राइन , ए मिश्राइन , अरे हमरी बात तो सुनो ,, गुड्डू हमारा भी बेटा है उसके लिए कोनो गलत फैसला थोड़े ना करेंगे हम।”
“अपनी जात की पिंकी में आपको सौ कमिया दिखी और जिसे जानते तक नहीं उह लड़की में इतनी सारी अच्छाईया ढूंढ ली के गुड्डूआ का रिश्ता तक तय कर दिया”,मिश्राइन ने खीजते हुए कहा
“अरे दद्दा कमाल करती हो मतलब तुमहू भी , चलो सच्चाई बता ही देते है तुमको”,कहकर मिश्रा जी ने उस दिन वाली मिश्राइन को बता दी। मिश्राइन ने सूना तो उसका चेहरा मुरझा गया और उसने कहा,”पर इस फैसले से हमाये गुड्डू का दिल टूट जाएगा जी”
“भोलेनाथ पर भरोसा रखो मिश्राइन सब अच्छा होगा”,मिश्रा जी ने मिश्राइन के हाथो को अपने हाथ में लेकर कहा और फिर नाश्ता करके शोरूम चले गए।

बनारस शहर , उत्तर-प्रदेश
शाम का समय अस्सीघाट से कुछ ही दूर कृष्णकांत गुप्ता का घर , कृष्णकांत जी आंगन में बैठकर बच्चो के एग्जाम पेपर्स चेक कर रहे थे। गुप्ता जी के घर के बगल में ही उनके छोटे भाई विनोद का घर था , विनोद के घर में उनकी पत्नी , बेटा और बेटी रहते है। छत पर बने कमरे में बिस्तर पर उलटा लेटी शगुन ने अपने चेहरे को हाथो पर रखा हुआ था। आँखे मूंदे वह किसी सोच में गुम थी और चेहरे से नूर टपक रहा था , खिड़की से आती हवा से उसके बालो की लट उसके चेहरे पर खेल रही थी। म्यूजिक सिस्टम पर किसी गाने की लाइने बज रही थी
“मेरे जान जिगर मेरी खिड़की से तुझे माथे पे अपने सजा लू मैं
तुझे बांध लू अपनी जुल्फों में , तुझे अपना रिबन बना लू मैं
तुझे ऐसे रखू कभी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
गाना आगे बजता उस से पहले ही किसी ने कमरे में आकर उसे बंद कर दिया और कहा,”क्या दी जब देखो तब इस एक गाने के पीछे पड़ी रहती हो ?”
शगुन की छोटी बहन प्रीती ने अपने गले से स्कार्फ निकालकर उसे दिवार में लगे हुक पर टाँगते हुए कहा। प्रीति की आवाज सुनकर शगुन उठकर बैठ गयी और कहा,”आ गयी तुम कैसा रहा पेपर ?”
“पेपर की किसको पड़ी है दी ? मैं तो इसलिए खुश हूँ की आज एग्जाम खत्म हो गए”,प्रीती ने कहा और कपडे लेकर कमरे से बाहर चली गयी। कुछ देर बाद प्रीती लोअर और टीशर्ट पहने आयी और शगुन के पास बिस्तर पर बैठते हुए कहा,”पता है दी आज क्या हुआ ? मैंने और मेघना ने बहुत मजे किये , गोलगप्पे खाये , घाट पर घूमे और बहुत सारी मस्ती की”
“हम्म्म इसलिए इतनी देर से घर आयी हो”,शगुन ने कहा
“अरे दी लास्ट पेपर था इतना तो चलता है”,प्रीति ने कहा तो शगुन मुस्कुरा दी और उठकर अपने बालो को समेटकर जुड़ा बनाते हुए कहा,”पापा कहा है ?”
“निचे आँगन में अपना काम कर रहे है”,प्रीती ने लेटते हुए कहा
“ठीक है मैं जाकर उन्हें चाय दे आती हूँ , तुम्हे कुछ खाना है”,शगुन ने पूछा
“अरे नहीं दी बस एक कप चाय मेरे लिए भी”,प्रीती ने कहा तो शगुन वहा से चली गयी। नीचे किचन में आकर शगुन ने चाय बनायीं और तीन कपो में छान दी। एक कप लेकर वह गुप्ता जी के पास आयी और उनकी टेबल पर रखते हुए कहा,”पापा आपकी चाय”
“हां बेटा बस थोड़ा सा काम खत्म कर लू”,गुप्ता जी ने कहा तो शगुन ने उनके हाथ से पेपर्स लिए और सब साइड में रखते हुए कहा,”बाकि काम बाद में पहले चाय पीजिये”
गुप्ता जी ने चश्मा उतार कर रख दिया और चाय पिने लगे। शगुन ने शगुन को आवाज लगाई तो निचे आकर वह भी अपनी चाय आँगन में ले आयी। अभी सब चाय पि ही रहे थे की , विनोद अंकल आये और गुप्ताजी से आकर कहा,”भाईसाहब , शगुन बिटिया के लिए मुंबई से रिश्ता आया है”
प्रीति तो मुंबई के नाम से ही ख़ुशी से उछल पड़ी पर जैसे ही शगुन ने सूना उसने कहा,”नहीं चाचा हम मुंबई नहीं जायेंगे”
“क्यों बिटिया ?”,चाचा ने बड़े प्यार से पूछा तो शगुन ने कहा,”क्योकि हमे यही रहना है , अपने पापा के साथ , इसी बनारस में”
“ऐसा क्या है इस बनारस में ?”,प्रीती ने मुंह बनाकर सवाल किया तो शगुन मुस्कुरायी और कहा,”सुकून !”

Manmarjiyan - 15
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