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Haan Ye Mohabbat Hai – 102

Haan Ye Mohabbat Hai – 102

Haan Ye Mohabbat Hai - Season 3
Haan Ye Mohabbat Hai – Season 3 by Sanjana Kirodiwal

खत पढ़ने के बाद अक्षत की आँख में भरे आँसुओ की बुँदे खत पर आ गिरी और स्याही फैलने लगी। अक्षत ने खत और लिफाफे को बिस्तर पर रख दिया और बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। वह मीरा से मिलने के लिये बैचैंन हो उठा। अक्षत कमरे से बाहर आया उसे कुछ याद आया और वह वापस कमरे में आया। उसने टेबल पर रखा दुसरा लिफाफा उठाया और लेकर कमरे से बाहर निकल गया।

अक्षत सीढ़ियों से नीचे आया और सीधा राधा के कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे में आकर अक्षत ने राधा से कहा,”माँ ! मीरा कैसी है ?”
राधा ने अक्षत को देखा और कहा,”उसे हल्का बुखार है , मैंने उसे दवा दे दी है वो सो रही है।”
अक्षत ने सुना तो उसकी बैचैन और बढ़ गयी उसने राधा और मीरा की तरफ आते हुए कहा,”मीरा को बुखार है आपने ये बात मुझे क्यों नहीं बताई ?”


“तुम सो रहे थे और मीरा ठीक है,,,,,,,,उसका ख्याल रखने के लिये हम सब है न बेटा,,,,,,,ये तुम्हारे हाथ में क्या है ?”,राधा ने अक्षत के हाथ में लिफाफा देखकर कहा।
अक्षत ने लिफाफा राधा की तरफ बढ़ाकर कहा,”ये कुछ महीनो पहले मीरा ने आपके लिये लिखा था लेकिन ये आप तक पहुँच ही नहीं पाया , आप इसे पढ़िए तब तक मैं मीरा के पास बैठता हूँ।”


“हम्म्म,,,,,!”,राधा ने अक्षत के हाथ से लिफाफा लेते हुए कहा और उठकर मीरा के पैरो की तरफ पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ गयी। अक्षत ने मीरा का ललाट छूकर देखा उसे बुखार था और बुखार में बदन तप रहा था।
अक्षत ने पास ही टेबल पर रखी बोतल के पानी को कटोरे में निकाला और अपने रूमाल को उसमे भिगोकर मीरा के माथे पर रख दी।

मीरा गहरी नींद में थी लेकिन अक्षत ने जैसे ही उसके हाथ को अपने दोनों हाथो में लिया तो सुकून के भाव मीरा के चेहरे पर झिलमिलाने लगे। अक्षत मीरा का हाथ थामे वही बैठा रहा मीरा के साथ जो बुरा बर्ताव उसने किया था वो उसकी आँखों के सामने आने लगा और उसकी आँखों में नमी उभर आयी।

नमी राधा की आँखों में भी थी जब वो मीरा का लिखा खत पढ़ रही थी। खत में लिखा था

प्रिय माँ !
हम जानते है आप हमसे बहुत नाराज है , हमे इस तरह घर छोड़कर आना नहीं चाहिए था। हमने अपना घर हमेशा के लिये नहीं छोड़ा था माँ हम बस कुछ दिन अक्षत जी से दूर रहकर गलतफहमियां दूर करना चाहते थे। हम जानते थे अक्षत जी गलत नहीं है लेकिन फिर भी इतना उलझ गए की सही क्या है गलत क्या हम समझ ही नहीं पाए। आपने हमेशा हमे एक माँ की तरह प्यार किया , हमारी माँ से भी ज्यादा प्यार किया , हम आपको छोड़कर कैसे आ सकते थे ?

हमारी मज़बूरी कह लीजिये या वक्त का सितम हमे कुछ वक्त के लिये सबसे दूर जाना पड़ा लेकिन हम कभी आपके दिल से दूर नहीं गए है माँ,,,,,,,,,,,,,,,,हम जल्दी घर लौट आएंगे माँ , आपकी वही पहले वाली समझदार मीरा बनकर बस तब तक आप अक्षत जी को सम्हाल लीजिये। जिस दर्द से हम सब गुजर रहे है उसमे हम सबको एक दूसरे की जरूरत है और सबसे ज्यादा हमे आपकी जरूरत है माँ,,,,,,,,,,,,,,,जैसे ही पापा घर आएंगे हम लौट आएंगे , आप हमारा इंतजार कीजियेगा माँ.,,,,,,,,,,,,!!”

आपकी मीरा

राधा की आँख से आँसू बहकर खत पर आ गिरा उसने भीगी आँखों से सोई आँखों से मीरा को देखा और फिर अक्षत की तरफ देखकर कहा,”तुम्हे ये खत कहा से मिला आशु ?”
“मीरा के कमरे से जब मैं उसके घर गया था। आपके लिये ये खत मीरा ने बहुत पहले ही लिख दिया था माँ लेकिन ये खत आप तक कभी पहुँच ही नहीं पाया। मीरा के अपनों ने साजिशो के चलते हमेशा मीरा को इस घर से , हम सब से दूर रखा।”,अक्षत ने मायूसी भरे स्वर में कहा


“सही कहा तुमने , मीरा के उन अपनों में तुम भी शामिल थे,,,,,,,,!!,राधा ने तड़पकर कहा
अक्षत ने बोझिल आँखों से राधा को देखा और कहा,”हाँ मैं जानता हूँ और इसके लिये मीरा मुझे जो सजा दे मुझे मंजूर है। अगर अपने गुस्से के चलते मैंने मीरा का साथ ना छोड़ा होता तो आज मीरा इन हालातो में नहीं होती पर माँ क्या आपको नहीं लगता बीते वक्त में मीरा के साथ रहकर मैं उसे खो जरूर देता,,,,,,,,,,,

मीरा को खोने के डर से ही मैं उस से दूर रहा , उसे जानबूझकर दुःख पहुँचाया ताकि कुछ वक्त के लिये ही सही वो मुझसे नफरत करे,,,,,,,,,,लेकिन ये लड़की सच में पागल है माँ , मेरे इतने बुरे बर्ताव के बाद भी इसने कभी मुझसे नफरत नहीं की,,,,,,,,,,,!!”
“क्या तुम मीरा से नफरत कर पाये ?’,राधा ने पूछा


अक्षत ने मीरा की तरफ देखा और फिर राधा से कहा,”मैं मीरा से कभी नफरत नहीं कर सकता माँ,,,,,,,,,,,,इस जिंदगी में तो कभी नहीं”
“अब अगर तू मीरा को छोड़कर गया तो मैं सच में तुझसे कभी बात नहीं करुँगी,,,,,,,,,!!”,कहते हुए राधा रो पड़ी।

अक्षत ने देखा तो धीरे से मीरा का हाथ छोड़कर राधा के पास आया और उनके सामने घुटनो के बल जमीन पर बैठकर उनके हाथ को अपने हाथो में लेकर कहा कहने लगा,”माँ वो मेरी और मीरा की जिंदगी का एक बुरा दौर था जो गुजर चुका है। मैं वादा करता हूँ मीरा का हमेशा ख्याल रखूंगा उसे अपने साथ रखूंगा और कभी उसका दिल नहीं दुखाऊंगा।”


अक्षत की आँखों में सच्चाई देखकर राधा ने नम आँखों से हामी में अपनी गर्दन हिला दी। अक्षत ने राधा के हाथ को अपने होंठो से छुआ और अपना सर उनकी गोद में रखते हुए कहा,”लेकिन मैं अमायरा को कभी भूल नहीं पाऊंगा माँ,,,,,,,,,,,,मैं उसके जाने का गम कभी अपने दिल से नहीं निकाल पाऊंगा।”
राधा ने सुना तो अक्षत का सर सहलाने लगी उनके पास अक्षत को कहने के लिये कुछ नहीं था।

कुछ कहकर वे अक्षत के दर्द को और बढ़ाना नहीं चाहती थी। वे ख़ामोशी से अक्षत का सर सहलाती रही और कुछ देर बाद कहा,”तुम मीरा के पास बैठो मैं जरा बाहर होकर आती हूँ।”
अक्षत ने राधा की गोद से अपना सर हटाया और मीरा के पास चला आया।

राधा कमरे से बाहर निकल गयी और अक्षत एक बार फिर रूमाल भिगोकर मीरा के माथे पर रखने लगा। ऐसा करते हुए उसे बीते दिनों की याद आ गयी जब मीरा के बीमार होने पर उसने एक बार ऐसे ही उसकी सेवा की थी। अक्षत हल्का सा मुस्कुरा उठा और फिर अपने होंठो से मीरा के ललाट को छूकर अपना सर मीरा के सर के बगल में टिका दिया। देर रात राधा कमरे में आयी तो राधा ने देखा मीरा के साथ अक्षत भी बैठे बैठे वही सो गया है। राधा ने धीरे से अक्षत को उठाया और अपने कमरे में जाने को कहा। अक्षत उठा और वहा से चला गया।

अपने कमरे में आकर अक्षत सो गया आज कितने महीनो बाद उसे सुकून की नींद आयी थी। अगली सुबह शोर गुल की आवाज से अक्षत की नींद खुली। वह उठा और कमरे से बाहर आया। बालकनी के पास आकर अक्षत ने देखा तो घर में कुछ लोग आये हुए थे जिन्हे अर्जुन आर्डर दे रहा था। अर्जुन ने अक्षत को ऊपर खड़े देखा तो कहा,”आशु ! ऊपर क्या कर रहा है नीचे आ ना,,,,,,,,,,!!”


अक्षत नीचे चला आया। अक्षत अर्जुन के पास आया और कहा,”ये सब क्या हो रहा है ?”
“मीरा इतने दिनों बाद घर वापस आयी है न तो पापा ने घर में पूजा रखी है।”,अर्जुन ने कहा और लड़को को काम बताते हुए वहा से चला गया। अक्षत ने देखा घर में सब किसी ना किसी काम में बिजी है तो उसने सामने से गुजरती राधा से कहा,”माँ ! एक कप चाय मिलेगी ?”


“बेटा मैं थोड़ी बिजी हूँ मुझे पंडित जी का बताया सामान जमाना है , तुम नीता या तनु से कह दो,,,,,,,,,!!”,कहते हुए राधा वहा से चली गयी।

मीरा की तबियत ठीक थी। तैयार होकर वह राधा के कमरे से बाहर चली आयी। उसने जब अक्षत को परेशान देखा तो उसके पास आकर कहा,”आपको कुछ चाहिए ?”
अक्षत ने मीरा को देखा तो उसका दिल धड़क उठा हलके गुलाबी रंग के अनारकली सूट में मीरा कितनी प्यारी और मासूम लग रही थी। अक्षत एकटक मीरा को देखता रहा। मीरा ने धीरे से फिर कहा,”अक्षत जी ! आपको कुछ चाहिए,,,,,,,,, ?”


मीरा की आवाज से अक्षत की तंद्रा टूटी लेकिन वह मीरा को जवाब देता इस से पहले ही उन दोनों की तरफ आते हुए सोमित जीजू ने कहा,”हाँ मीरा ! अक्षत को तुम्हारे हाथो से बनी एक कप चाय चाहिए,,,,,,,,,,तुम बना सकोगी ना ?”
“हाँ जीजू हम बना देंगे,,,,,,,,,आप भी एक कप लेंगे ?”,मीरा ने सहजता से पूछा
“नहीं मैंने थोड़ी देर पहले ही पी है तनु ने देखा तो भारी पड़ जाएगा तुम अपने हाथो से बनी चाय अपने सडु को,,,,,,,,,,,,,,मेरा मतलब अक्षत को पिलाओ”,सोमित जीजू ने जान बूझकर मीरा के सामने अक्षत को सडु कहा


मीरा हल्का सा मुस्कुराई और कहा,”ठीक है हम लेकर आते है।”
मीरा ने इतने प्यार से कहा कि अक्षत उसे ना भी नहीं बोल पाया। मीरा के जाने के बाद अक्षत सोमित जीजू की तरफ पलटा और कहा,”आपने मीरा से चाय बनाने को क्यों कहा ? आप जानते है न उसकी तबियत खराब है,,,,,,,,!!”


“क्या बात है साले साहब बड़ी परवाह हो रही है मीरा की,,,,,,,,,,,,,,हहममम अहंमम”,सोमित जीजू ने अक्षत को छेड़ते हुए कहा
अक्षत ने कुछ नहीं कहा और हॉल में पड़े सोफे पर आ बैठा। विजय जी के बुलाने पर सोमित जीजू बाहर चले गए। कुछ देर बाद मीरा अक्षत के लिये चाय का कप लेकर अक्षत के पास आयी। मीरा ने कप अक्षत की तरफ बढ़ा दिया। अक्षत ने चाय का कप ले लिया। मीरा वहा से जाने लगी तो अक्षत ने चाय का एक घूंठ भरा और कहा,”मीरा जी”


अक्षत के मुँह से मीरा जी सुनकर मीरा को हैरानी हुई वह पलटी और कहा,”जी,,,,!!”
अक्षत ने मीरा की तरफ देखा और कहा,”आज फिर तुम चाय में चीनी डालना भूल गयी”
मीरा ने जैसे ही सुना उसकी आँखों में नमी तैर गई अक्षत ने देखा तो चाय का कप टेबल पर रखा और उठकर मीरा के सामने आकर कहा,”क्या हुआ ? मैंने कुछ गलत कहा क्या ?”
मीरा ने भीगी आँखों से अक्षत को देखा और कहा,”ये चंद शब्द आपके मुँह से सुनने के लिये तरस गए थे हम”


अक्षत ने सुना तो उसके दिल में एक टीस सी उठी। उसने मीरा की आंख के किनारे से आँसू को अपनी ऊँगली पर लिया और उसे अपने होंठो से लगा लिया। बिना कुछ कहे ही अक्षत बहुत कुछ कह गया था। मीरा नम आँखों से बस अक्षत को देखते रही। कुछ देर बाद राधा आयी और मीरा को अपने साथ लेकर वहा से चली गयी। चलते चलते मीरा ने पलटकर देखा तो पाया अक्षत अब भी वही खड़ा उसे जाते हुए देख रहा था।  

चित्रा ने अपना सामान लेकर घर के बरामदे में चली आयी उसने देखा गेट के बाहर सचिन गाड़ी लिये खड़ा था। चित्रा ने घर लॉक किया और बैग उठाये सचिन की तरफ चला आया। सचिन ने बैग उठाने में मदद की और उन्हें गाड़ी की पिछली सीट पर रख दिया। चित्रा गाड़ी में आगे आ बैठी और अपने बगल में बैठे सचिन से कहा,”मुझे लगा नहीं था तुम आओगे ?”


“इसके बाद शायद फिर तुम से मुलाकात न हो सोचकर चला आया।”,सचिन ने गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ाते हुए कहा
रास्तेभर दोनों के बीच बहुत थोड़ी बातें हुई , दरअसल सचिन को चित्रा का यू बीच में सब छोड़कर चले जाना अच्छा नहीं लग रहा था और चित्रा इस शहर में अब रुकना नहीं चाहती थीं।

गाड़ी एयरपोर्ट पहुंची। सचिन चित्रा के साथ अंदर चला आया। फ्लाइट में अभी वक्त था इसलिए चित्रा दोनों के लिये कॉफी ले आयी और दोनों वेटिंग एरिया में पड़े सोफे पर आ बैठे। चित्रा ने कॉफी का एक कप सचिन की तरफ बढ़ाया और दुसरा खुद लेकर पीने लगी। कॉफी पीते हुए ज़रा सा झाग चित्रा के होंठो के नीचे लग गया। सचिन ने देखा तो उसे अपने हाथ से हटा दिया।

एक खूबसूरत अहसास चित्रा को होकर गुजरा वह खोयी हुई सी सचिन को देखने लगी। सचिन ने देखा तो चित्रा ने उसके चेहरे से नजरे हटा ली और सामने देखते हुए कहा,”मुझे ख़ुशी है छवि को इंसाफ मिल गया”
“शहर की अदालत में लोगो को इंसाफ मिल जाता है लेकिन कभी कभी जिंदगी की अदालत में नहीं,,,,,,,,,!!”,सचिन ने दार्शनिक अंदाज में कहा
“क्या ? क्या तुम कुछ कह रहे थे ?”,चित्रा ने जान बूझकर अनजान बनते हुए कहा


सचिन चित्रा की तरफ घूमकर बैठा और उसकी आँखो में देखते हुए सर्द आवाज में कहा,”क्या तुम्हारा जाना जरुरी है ? क्या तुम यहाँ नहीं रुक सकती ?”
चित्रा ने सुना तो सचिन की तरफ देखकर कहा,”ठीक है रुक जाती हूँ , बताओ कितने दिन रुकना है ? एक दिन , दो दिन , एक हफ्ता या फिर एक महीना,,,,,,,,,,,,जल्दी बताओ”
सचिन ने एक गहरी साँस ली और कहा,”हमेशा के लिये,,,,,,,,,!”


चित्रा ने सुना तो मुस्कुराई और सचिन के गले लगते हुए कहा,”स्टुपिड ! तुमने ये कहने में इतना वक्त क्यों लगाया कि तुम मुझे पसंद करते हो,,,,,,,,,,!!”
सचिन ने सुना तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। चित्रा उसकी भावनाये जानती थी वह चित्रा से दूर हटा और कहा,”तुम्हे कैसे पता मैंने तो तुम्हे कभी,,,,,,,,,,,,?”


चित्रा ने सुना तो अपने बैग से एक डायरी निकाली और सचिन के सामने करके कहा,”ये मुझे उस बॉक्स से मिली जो कल शाम तुम घर लेकर आये थे। इसके साथ एक खत भी था मैंने इसे खोलकर देखा तो इसमें वो सब लिखा था जो तुम मुझे लेकर महसूस करते थे , मैंने ये खत पढ़ा इसमें लिखी राइटिंग जानते हो किसकी है ?”
“किसकी ?”,सचिन ने हैरानी से पूछा


“तुम्हारे प्यारे अक्षत सर की,,,,,,,,,,,,,,,,अपनी मीरा से इतनी मोहब्बत करने वाले अक्षत सर भला तुम्हारी मोहब्बत को दूर कैसे जाने देते ? इस खत के जरिये उन्होंने मुझे रोक लिया और इस डायरी में लिखी फीलिंग्स ने मुझे ये अहसास दिलाया कि मोहब्बत क्या है ? अब मेरा मुंह क्या देख रहे हो चलो घर चलते है।”,चित्रा ने कहा
सचिन ने सुना तो ख़ुशी और हैरानी के मिले जुले भाव उसके चेहरे से झलकने लगे।

वह चित्रा के सामने अपनी ख़ुशी शब्दों में जाहिर नहीं कर पाया। अक्षत ने उसकी डायरी के जरिये चित्रा तक उसकी भावना को पहुँचाया जानकर सचिन बहुत खुश था। वह अक्षत से मिलना चाहता था इसलिए उठते हुए कहा,”घर नहीं हम लोग अक्षत सर के पास चलेंगे”
“उनके पास ?”,चित्रा ने हैरानी से कहा


“हाँ ! अगर उन्होंने ने नहीं ये नहीं किया होता तो मैं तुम्हे कभी अपने दिल की बात कह ही नहीं पाता , मुझे उन्हें थैंक्यू बोलना है।”,सचिन ने कहा
“ठीक है चलते है।”,चित्रा ने कहा और सचिन के साथ एयरपोर्ट से बाहर चली आयी। चलते चलते उसने सचिन की बांह को मजबूती से थाम लिया तो वही सचिन चित्रा का साथ पाकर बेहद खुश था। दोनों अक्षत से मिलने के लिये निकल गए।

शाम के चार बज रहे रहे थे और व्यास हॉउस में पूजा की सभी तैयारियां हो चुकी थी। विजय जी ने सभी से तैयार होकर आने को कहा। आस पड़ोस के लोग और कुछ मेहमान भी घर आ चुके थे। दादू , विजय जी , अर्जुन , सोमित जीजू , अक्षत और हनी सबने कुर्ता पजामा पहना था। आज घर के सबसे छोटे लड़के चीकू ने भी कुर्ता पजामा पहना था और वह बहुत प्यारा लग रहा था।


घर की औरतो ने पारम्परिक साड़ी और पुश्तैनी गहने पहने थे। सब थे बस मीरा नहीं थी और अक्षत की नजरे बस मीरा को ही ढूंढ रही थी। अक्षत का दोस्त नवीन जिसने बुरे वक्त में हमेशा अक्षत की मदद की थी वह भी अपनी पत्नी और बेटी के साथ पूजा में आया था। अक्षत उस से मिला और बात करने लगा कुछ देर बाद नवीन ने अक्षत से पीछे देखने को कहा तो अक्षत पलटा। सामने से बनारसी साड़ी में लिपटी मीरा राधा के साथ हॉल की तरफ चली आ रही थी।

उसने गहने पहने हुए थे और पुरे श्रृंगार में वह बहुत प्यारी लग रही थी। होंठो पर लाली , ललाट पर लाल बिंदी और सीधी मांग में भरा लाल सिंदूर मीरा की खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा था। सहसा ही अक्षत के कदम मीरा की तरफ बढ़ गए। खोया हुआ सा अक्षत कुछ कदम चलकर रुक गया और दूर से मीरा को देखने लगा। सबसे बात करती , नमस्ते करती मीरा बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।

अक्षत बस उसे देखता ही रह गया तभी सोमित जीजू उसके बगल से गुजरे और उसके उड़े हुए होश देखकर उसका मुँह बंद करते हुए कहा,”मुँह तो बंद कर लो साले साहब”
अक्षत ने सुना तो उसकी तंद्रा टूटी और वह झेंपकर वहा से चला गया। चलते चलते अक्षत को याद आया ऐसा जीजू ने तब कहा था जब अर्जुन की सगाई में मीरा ने लहंगा पहना था और अक्षत उस से नजरे नहीं हटा पाया था। वो पल याद आते ही अक्षत मुस्कुरा उठा उसने जाते हुए पलटकर मीरा को देखा और वहा से चला गया।

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