Pasandida Aurat – 56
Pasandida Aurat – 56

डरी सहमी अवनि सिद्धार्थ के बगल में बैठी थी। सिद्धार्थ का गुस्सा , उसका ये रूप अवनि पहली बार देख रही थी और ये देखकर वह इतना घबरा गयी कि उसकी आँखों में नमी और चेहरे पर डर के भाव तैरने लगे उसने काँपती आवाज में कठोरता से कहा,”गाडी रोको”
सिद्धार्थ ने अवनि की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और गुस्से से तेज रफ़्तार में गाडी चलाता रहा। अवनि ने सिद्धार्थ की तरफ देखा और इस बार थोड़ा गुस्से से कहा,”सिद्धार्थ ! गाडी रोको”
अवनि को गुस्से में देखकर सिद्धार्थ ने गाडी रोक दी। अवनि ने गाड़ी का दरवाजा खोला और नीचे उतर गयी। डर की वजह से अवनि की सांसे उखड़ी हुई थी उसने इधर उधर देखा और पैदल ही दूसरी तरफ चल पड़ी। अवनि को रास्ते नहीं पता थे ना ही उसे ये पता था कि जाना कहा है ? वह बस चले जा रही थी , उसके पैर काँप रहे थे और आँखों में भरे आँसू गालों पर लुढ़क आये। सड़क पर आते जाते लोग अजीब नजरो से अवनि को देखते रहे। अवनि रोते हुए आगे बढ़ती रही और सिद्धार्थ अपनी गाडी में बैठा उसे जाते देखता रहा।
ना वह गाड़ी से नीचे उतरा ना ही उसने अवनि को रोकने की कोशिश की , उसने अवनि को फोन किया लेकिन उस घटना के बाद अवनि इतना घबराई हुई थी कि उसने बैग में रखा अपना फोन तक नहीं देखा। 1 किलोमीटर पैदल चलने के बाद अवनि एक चौराहे पर आयी और ऑटो में आ बैठी। ऑटोवाला आगे बढ़ गया अवनि खामोश बैठी कुछ देर पहले घटी घटना बारे में सोचने लगी। सिद्धार्थ का चिल्लाना और अपना हाथ स्टेयरिंग पर मारना बार बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था और हर बार अवनि सहम जा रही थी।
सिद्धार्थ ने भी अपनी गाड़ी आगे बढ़ाई और घर जाने के लिए दूसरे रास्ते की तरफ मोड़ दी। गाडी चलाते हुए वह बहुत गुस्से में था और उसे अवनि का हाथ उठाना याद आ रहा था जिसने उसके गुस्से को और बढ़ा दिया। सिद्धार्थ भी जानता था कि अवनि ने उसे जान बूझकर नहीं मारा लेकिन अवनि को शर्मिंदा करने और टॉर्चर करने के लिए उसके पास अब एक वजह थी। उसने गाड़ी एक तरफ रोकी अपना फोन निकाला और अवनि को एक मैसेज लिखकर भेज दिया जिस से अवनि एक बार फिर खुद को गलत समझ बैठे और सिद्धार्थ उसकी नजरो में सही हो जाये
अवनि अपने फ्लेट पर पहुंची वह सोफे पर आ बैठी और अपना सर पकड़ लिया। बीते कुछ महीनो में जो हो रहा था और आज जो हुआ उसके बाद अवनि को अहसास हुआ कि उस से गलती हुई है , सिद्धार्थ को अपने लिए चुनकर उस से भूल हुई है , एक इत्तेफाक को महादेव की मर्जी मानकर धोखा हुआ है। सिद्धार्थ के रूप में अवनि ने खुद अपनी जिंदगी में दर्द , तकलीफ और बेइज्जती शामिल की है। अवनि अपना चेहरा अपने हाथो में छुपाकर रोने लगी। अगले ही पल उसका फोन बजा सिद्धार्थ का मैसेज था जिसे पढ़कर अवनि फिर उलझन में पड़ गयी
“अवनि ! मैं सब बर्दास्त कर सकता हूँ पर आज तुमने जो किया वो नहीं , तुमने सबके सामने मुझ पर हाथ उठाया। मेरी भी कोई सेल्फ रिस्पेक्ट है,,,,,,,,,तुम्हे थोड़ा टाइम लेना चाहिए ताकि तुम ये जान सको कि तुम कहा गलत हो ? मैंने अब सब वक्त पर छोड़ दिया है और इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि मैं तुम्हे छोड़ दूंगा,,,,,,,मैं अब भी तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ लेकिन चीजे इतनी बिगड़ चुकी है कि इन्हे सही होने में थोड़ा वक्त लगेगा। थैंक्यू ! मुझे बुरा फील करवाने के लिए,,,,,,,,,!”
अवनि ने अपना फोन साइड में रख दिया। सिद्धार्थ अब भी अपनी हरकतों के लिए अवनि को ही दोषी ठहरा रहा था। अवनि आँसू बहाती रही उसमे इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि वह सिद्धार्थ से इस बारे में बहस कर सके। अवनि घंटो वहा बैठी रही और सिद्धार्थ से हुई पहली मुलाकात से लेकर अब तक कि हर घटना के बारे में सोचने लगी। अवनि को ये सब एक खेल जैसा लग रहा था। उसे अब समझ आ रहा था कि क्यों सिद्धार्थ शुरू में उसके साथ इतना अच्छा था और धीरे धीरे बदलता चला गया।
अँधेरा हो चुका था और अवनि अभी भी सोफे पर बैठी इन्ही सब बातो के बारे में सोच रही थी। दर्द से उसका सर फटा जा रहा था। अवनि उठी और सीधा अपने कमरे में चली गयी। उसने गर्म पानी का एक शावर लिया और कपडे बदलकर कमरे में चली आयी। शीशे के सामने खड़ी अवनि ने खुद को एक नजर देखा तो पाया कि वह पहले से कितना बदल गयी थी।
मुरझाया चेहरा , आँखों के नीचे काले घेरे , लाल और सूजी आँखे , उसके चेहरे में कोई चमक ही नहीं थी , सूखे होंठ जैसे मुस्कुराना भूल चुके थे , बेजान बाल और पहले से काफी कमजोर नजर आ रही थी। अवनि ने अपने बालों को समेटा तो कलाई से निकलकर कोई चीज नीचे जा गिरी। अवनि ने देखा ये वही ईविल आई वाला ब्रासलेट था जो सिद्धार्थ ने उसे आने हाथो से पहनाया था।
अवनि ने उसे उठाया और हाथ में लेकर देखा , लोहे का वो ब्रासलेट काला पड़ चुका था। अवनि को याद आया कितनी ही बार ये ब्रासलेट टुटा और उसने इसे जोड़कर वापस पहन लिया ठीक वैसे ही जैसे हर बार वह सिद्धार्थ का नया रूप देखती और उसे माफ़ कर एक और मौका देती थी।
अवनि ने देखा ब्रासलेट आज फिर टूट चुका है तो अवनि ने उसे आज जोड़कर वापस पहनने के बजाय ड्रेसिंग के ड्रॉवर में रख दिया और बालों को समेट कर कमरे बाहर चली आयी। बाहर आकर उसने किचन में अपने लिए बेमन से खाना बनाया और प्लेट में लेकर हॉल में चली आयी। खाना खाते हुए बुरे ख्यालो ने अवनि को फिर घेर लिया। वह खाते खाते रो पड़ी। सिद्धार्थ ना उसे पुरी तरह से अपनी जिंदगी से जाने के लिए कह रहा था , ना ही ऐसे हालत रखे कि अवनि उसके साथ रह सके।
इस रिश्ते में अब बस घुटन , तकलीफ और दर्द था जिस से सिर्फ अवनि गुजर रही थी क्योकि सिद्धार्थ अपनी नयी नौकरी और जिंदगी में खुश था। उसका मन होता तो वह अवनि से बात करता उसका हाल चाल पूछता वरना रहता। अवनि ने जैसे तैसे खाना खाया और दवा लेकर सोने चली गयी।
अगली सुबह अवनि के लिए काफी तकलीफदेह थी। बीती शाम की बातों को वह अभी भी अपने दिमाग से निकाल नहीं पायी थी। सिद्धार्थ का कोई फोन मैसेज नहीं आया था। अवनि को लगा सिद्धार्थ को अपनी गलती का अहसास होगा लेकिन यहाँ तो सिद्धार्थ उसे ही गलत ठहरा कर गिल्ट में डाल रहा था। अवनि तैयार हुई और बैंक चली आयी। दिनभर खुद को काम में व्यस्त रखा और शाम में घर चली आयी। अवनि अब धीरे धीरे खामोश होने लगी थी , सिद्धार्थ के बर्ताव से वह इतना हर्ट और दुखी थी कि उसने सिद्धार्थ से शिकायत करना भी छोड़ दिया।
इस रिश्ते को बचाने के लिए वह सिद्धार्थ के सामने चिल्ला चुकी थी , उस से लड़-झगड़ चुकी थी , उस से वक्त की भीख मांग चुकी थी , बहस कर चुकी थी और हर वह कोशिश कर चुकी थी जिस से सब ठीक किया जा सके लेकिन सिद्धार्थ ने हर बार बातो को या तो अधूरा छोड़ दिया या फिर अवनि को अपनी बातो में ऐसा उलझाया कि अवनि खुद को ही दोषी मानने लगी।
धीरे धीरे अवनि सिद्धार्थ से दूर होने लगी इस बात का अहसास अवनि को भी था लेकिन उसके हाथ में अब कुछ नहीं था। अवनि की जिंदगी में खुशिया कुछ वक्त के लिए जरूर आयी थी लेकिन उन खुशियों ने उसे अब चार गुना दर्द उसकी जिंदगी में लिख दिया जिस से अवनि अकेले गुजर रही थी।
देखते ही देखते 2 महीने गुजर गए और सिद्धार्थ अवनि के बीच चीजें अभी भी उलझी हुई थी। इन दो महीनो में सिद्धार्थ और अवनि की बहुत कम बात हुई और जब हुई तो एक लम्बी बहस के बाद बात बंद , अवनि जितना सिद्धार्थ को समझने की कोशिश कर रही थी सिद्धार्थ उतना ही उसे उलझाता जा रहा था। जब तक अवनि सिद्धार्थ की हर बात मानती रही सब ठीक था लेकिन जैसे ही अवनि ने सिद्धार्थ की हर बात मानना बंद किया सिद्धार्थ का असली चेहरा उसके सामने आने लगा।
सिरोही से जाने के बाद सुरभि की एक दो बार अवनि से बात हुई लेकिन अवनि ने कभी सुरभि को अपनी तकलीफ के बारे में नहीं बताया। बताती भी कैसे उसने सुरभि के सामने सिद्धार्थ को लेकर इतना विश्वास जो दिखाया था। चार दिन बाद होली थी लेकिन अवनि अपने फ्लेट में अकेली थी। सिद्धार्थ से उसकी बात अब लगभग बंद ही हो चुकी थी , सिद्धार्थ का कभी फोन मैसेज आता भी तो अवनि उसे जवाब नहीं देती। उसी शाम अवनि हॉल में बैठी अपना काम कर रही थी तभी सिद्धार्थ का फोन आया।
दो हफ्ते बाद सिद्धार्थ का फोन आया देखकर अवनि ने उठाया और कान से लगा लिया। अब सिद्धार्थ का नाम स्क्रीन पर देखकर अवनि का दिल नहीं धड़कता था , ना ही उस से बात करने की ख़ुशी उसकी आँखों में दिखाई देती थी।
“कैसी हो अवनि ?”,सिद्धार्थ ने पूछा
“ठीक हूँ “,अवनि ने कहा
“अभी तक नाराज हो मुझसे ? अवनि मैं जानता हूँ जो कुछ भी हुआ वो बहुत गलत हुआ , चीजे एकदम से इतनी खराब हो गयी कि मुझे उन्हें सम्हालने का वक्त ही नहीं मिला लेकिन मैं फिर से सब ठीक करना चाहता हूँ अवनि , वैसे भी मुझे लग रहा है कि मैंने तुम्हे “आई लव यू” बोलने में जल्दबाजी की”,सिद्धार्थ ने अफ़सोस भरे स्वर में कहा
अवनि ने सुना तो एक बार फिर उसका दिल टूट गया। अवनि को लगा सिद्धार्थ अपनी गलतियों के लिए उस से माफ़ी मांगेगा ,
उसे अपने किये का अहसास होगा लेकिन यहाँ तो सिद्धार्थ अपनी फीलिंग्स को ही जल्दबाजी बता रहा था। वह अवनि के साथ सब फिर से शुरू करना चाहता था लेकिन बिना किसी अफ़सोस और बदलाव के , बीते वक्त में अवनि इस रिश्ते का सच समझ चुकी थी इसलिए उसने सिद्धार्थ से कुछ नहीं कहा और फोन काट दिया। इसके बाद सिद्धार्थ ने फोन किया अवनि ने अपना फोन साइलेंट किया और वही छोड़कर किचन की तरफ आकर खाना बनाने लगी।
खाना खाने के बाद अवनि अपने कमरे में चली आयी। उसने टेबल के दराज में रखी अपनी डायरी निकाली और खोला , पहले पन्ने पर लिखे “पसंदीदा मर्द” शब्दों पर उसकी नजर पड़ी तो उसकी आँखों में नमी उभर आयी। इस डायरी में अवनि ने सिद्धार्थ के बिताये सभी खूबसूरत पलों का जिक्र किया था , वह सिद्धार्थ को लेकर क्या महसूस करती थी वो सब भावनाये इसमें लिखी , सिद्धार्थ से उसने कभी आई लव यू नहीं कहा लेकिन ये डायरी जानती थी कि अवनि का प्यार सिद्धार्थ के लिए इस से भी ज्यादा था।
डायरी लगभग भर चुकी थी उसके कुछ पन्ने ही बाकी और खाली थे। अवनि ने पेन उठाया और उन आखरी पन्नो पर सिद्धार्थ के लिए अपनी आखरी भावनाये लिखने लगी।
डायरी लिखने के बाद अवनि ने उसे बंद करके दराज में रख दिया। अवनि आज बहुत ही उदास और अकेला महसूस कर रही थी ऐसा कोई नहीं था उसके पास जिस से वह अपने मन का हाल सांझा कर सके। अवनि ने लेपटॉप खोला और अपने मेल्स चेक करने लगी।
अवनि ने देखा पिछले 6 महीनो से उसने अपनी क़िताब पर काम ही नहीं किया है ना कुछ लिखा है। सिद्धार्थ के साथ अवनि अपने सपनो को लगभग भूल चुकी थी , उसने अपना वक्त , अपनी फीलिंग्स अपने सारे एफर्ट्स सिद्धार्थ के नाम कर दिए थे और यही अवनि की सबसे बड़ी गलती थी। देर रात अवनि अपना काम करती रही और फिर सोने चली गयी।
अगली सुबह घर की बेल बजने से अवनि की आँखे खुली। कही सिद्धार्थ तो नहीं आया होगा सोचकर अवनि का दिल धड़कने लगा। वह कमरे से बाहर आयी और दरवाजा खोला तो सामने फ्लेट का मालिक खड़ा था जो कि सिद्धार्थ का कजिन था। अवनि उसे देखकर थोड़ी हैरान हुई क्योकि आज से पहले वे यहाँ कभी नहीं आये थे और यहाँ शिफ्ट होने से पहले अवनि ने 6 महीने का रेंट एक साथ उन्हें दिया था।
अवनि कुछ कहती इस से पहले ही उन्होंने हाथ में पकड़ा लिफाफा अवनि की तरफ बढाकर कहा,”अवनि जी ! इस महीने मुझे ये फ्लेट खाली चाहिए , आप अपने रहने का इंतजाम कही और कर लीजिये”
“खाली चाहिए , लेकिन मैं इतनी जल्दी कहा जाउंगी , आपको मुझे एक महीने पहले नोटिस देना चाहिए था। इतनी जल्दी मुझे दूसरा घर कहा मिलेगा ?”,अवनि ने हैरानी से कहा
“मैंने एक महीने पहले ही सिद्धार्थ से कहा था आपको बताने के लिए , मुझे लगा उसने आपसे कह दिया होगा। खैर वो आप दोनों के बीच का मामला है मुझे इसी महीने फ्लेट खाली चाहिए”,कहकर लड़का वहा से चला गया।
अवनि एक बार फिर मुसीबत में फंस गयी। तीन दिन बाद होली थी और उसके एक हफ्ते बाद ये महीना खत्म होने वाला था इतनी जल्दी वह अपने लिए नया घर कैसे ढूंढेगी ? उदासी अवनि के चेहरे पर झिलमिलाने लगी उसने दरवाजा बंद किया और अंदर चली आयी। ये फ्लेट अवनि को सिद्धार्थ ने ही दिलवाया था लेकिन अब वह सिद्धार्थ से किसी तरह की मदद लेना नहीं चाहती थी इसलिए उसे फोन नहीं किया। बैंक की छुट्टी कल से थी इसलिए अवनि तैयार होकर बैंक चली आयी।
दिनभर अवनि काम करती रही और ड्यूटी के बाद घर जाने के लिए दिव्या के साथ बैंक से बाहर निकल। अवनि को उदास देखकर दिव्या ने कहा,”क्या हुआ अवनि मैडम आप आजकल कुछ ज्यादा ही परेशान दिखाई देती है ? सब ठीक तो है ना ?”
बैंक में दिव्या से अब तक अवनि की अच्छी दोस्ती हो चुकी थी। उसने दिव्या को नए घर की परेशानी बताई तो दिव्या ने कहा,”अरे तो आप परेशान क्यों हो रही है ? मैं जहा रहती हूँ वहा एक 1 BHK फ्लेट खाली है लेकिन लैंडलॉर्ड अभी होली पर घर गए हुए है , होली के दो दिन बाद वे लोग आ जायेंगे तो मैं उनसे बात कर लुंगी , वे लोग बहुत अच्छे है मैं खुद वहा 4 साल से रह रही हूँ”
अवनि ने सुना तो उसे उम्मीद की एक किरण नजर आयी और उसने दिव्या के हाथो को थामकर कहा,”थैंक्यू दिव्या ! थैंक्यू सो मच”
“अरे इट्स ओके ! तब तक होली पर आप अपने घर हो जाईये , आपको अच्छा भी लगेगा और मन भी हगयी ल्का हो जाएगा”,दिव्या ने कहा और अवनि की बाँह थपथपाकर वहा से चली गयी
“घर ही तो नहीं जा सकती दिव्या”,अवनि ने बुझे स्वर में कहा और वहा से चली गयी
अवनि घर जाने वाले रास्ते की तरफ पैदल ही चल पड़ी। रास्ते में उसकी नजर शिव मंदिर पर पड़ी। अवनि के कदम उस ओर बढ़ गए। उसने सेंडल निकाले , अपने हाथ पैर धोये और मंदिर के अंदर चली आयी। आज कितने ही दिनों बाद अवनि मंदिर आयी थी। अवनि शिवलिंग की तरफ आयी एक कलश पानी लिया और शिवलिंग को अर्पित करने लगी। जल चढ़ाते हुए अवनि का मन भारी होने लगा , गला रुंधने लगा और आँखों में नमी उतर आयी।
अवनि को याद आया सिद्धार्थ के साथ रहते हुए वह सब भूल चुकी थी , मंदिर आना , महादेव से बातें करना , जल अर्पित करना और प्रार्थना करना। उसे धीरे धीरे समझ आ रहा था कि वाकई में सिद्धार्थ के प्यार ने उसे कितना बदल दिया था। सिर्फ एक सिद्धार्थ के करीब रहने के लिए वह सबसे दूर हो चुकी थी और इसी बात का मलाल अब अवनि के मन को कचोट रहा था
अवनि ने अपना ललाट शिवलिंग से लगाया और अपनी बाँहो से उसे थाम लिया। उसकी आँखों में भरे आँसू शिवलिंग पर गिरने लगे और वह मन ही मन एक असहनीय पीड़ा से गुजरने लगी। वह अपने मन की पीड़ा को बहा देना चाहती थी। कुछ देर बाद अवनि ने खुद को सम्हाला और उठकर महादेव की मूर्ति के सामने चली आयी। अवनि ने अपने हाथ जोड़े और आँखे मूंदकर महादेव से प्रार्थना करने लगी।
“महादेव मैंने तो उसे आपका आशीर्वाद मानकर स्वीकार किया था फिर उसने मुझे इतनी तकलीफ क्यों दी ? मेरे हिस्से में ये दर्द क्यों आया महादेव ? मैंने तो उसे अपना पसंदीदा मर्द समझा था फिर उसने मेरा दिल क्यों तोड़ दिया ? उसके साथ रहते रहते मैने आपको भी भुला दिया महादेव , जिसे सबसे ऊपर रखा उसी ने मुझे इतना नीचे गिरा दिया महादेव,,,,,,,,,,,वो इतना गलत कैसे हो सकता है महादेव ? मैं क्या करू ? कहा जाऊ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा,,,,,,,,!!”
अवनि की आँखों में फिर आँसू भर आये और उसने अपने हाथो को खोल दिया तभी सामने खड़े पंडित जी ने उसके हाथ में फूल रखा और वहा से चले गये। अवनि को अपनी हथेली पर कुछ महसूस हुआ तो उसने अपनी आँखे खोली। सहसा ही अवनि को वो पल याद आया जब बनारस में उसने भी किसी की हथेलियों पर ऐसे ही फूल रखकर उसमे ईश्वर के प्रति विश्वास जगाने की बात की थी।
अवनि ने उस फूल को अपने ललाट से लगाया और मंदिर से बाहर चली आयी , चलते चलते अवनि को उस नोट की याद आयी जो सिरोही से जाने से पहले सुरभि ने लिखा था
“मेरी एक बात याद रखना अवनि जिस रास्ते पर तुम हो वो रास्ता बेशक सही हो पर अगर कभी भी लगे कि कुछ ठीक नहीं है तो प्लीज वापस लौट आना , मैंने महसूस किया कि तुम अब पहले वाली अवनि नहीं रही , बदल गयी हो और ये शायद सिद्धार्थ के प्यार और साथ की वजह से है पर प्लीज अवनि कभी ये साथ तुम्हे तकलीफ दे तो लौट आना अपनी उसी पुरानी दुनिया में,,,,,,,,,,मैं तुम्हे वही मिलूंगी,,,,,,,,,,तुम्हारी सुरभि “
अवनि ने पलटकर महादेव की प्रतिमा को देखा और आज कितने ही दिनों बाद अवनि मुस्कुराई
( क्या सिद्धार्थ इतनी आसानी से अवनि को अपनी जिंदगी से चले जाने देगा या अपने लकी चार्म को बचाने के लिए करेगा फिर एक कोशिश ? क्या महादेव दूर करेंगे अवनि की पीड़ा या अभी बाकि है अवनि का असली इम्तिहान ? क्या अवनि लौट जाएगी वापस अपनी पुरानी दुनिया में ? जानने के लिए पढ़े “पसंदीदा औरत” मेरे साथ )
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संजना किरोड़ीवाल


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Chalo finally Avni ko Surbhi ka khayal to aaya…ab Avni bina time waste kiye Surbhi se baat kar apna dil halka Krna chahiye…kitna neech insaan hai Siddharth…ek achchi khashi ladki ko isne kitna pagal kar diya hai…aur uss par bhi wo apni galti na mankar Avni ko hee galat bta rha hai…I think Siddharth itni aasani se Avni ko apni zindagi se jane nhi dega… after all wo uska lucky charm hai…ussi ki wajah se usko job mili…sab kuch set hai Siddharth ka…ab Avni uski gulam ban jaye…fir to Siddharth ki balle balle…lakin ab Avni ko khud hee koi bada kadam uthana hoga…aur Siddharth ko apni zindagi se bahar fekhna hoga…nhi to uska gut gut kar mar jayegi…seedhe kisi se zyada kuch bol nhi pate hai aur khud m guthe rathe hai…jaise ab Avni… Mahadev Avni ki help Krna
Chalo kam se kam Avni ko yaad to aaya wo pal jab usne Prithvi ke haath me fool diya tha, pr smjh ni aara ki ye dono milenge kese, kyunki prithvi mumbai me hai avni se baat krne ki koshish krta nahi, yha avni sirohi ne siddharth ke saath, aur upar se mujhe to nahi lgta siddharth ese use jaane dega, kuch to wo zarur krega!