Pasandida Aurat – 1

Pasandida Aurat – 1

Pasandida Aurat
Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

आनन्दा-निलय अपार्टमेंट , मुंबई
मुंबई शहर के पनवेल में बनी 10 मंजिला इमारत के 7वे माले के 2BHK अपार्टमेंट में बना 10*8 का वो कमरा आज बहुत ही खामोश और शांत दिखाई पड़ रहा था। कमरे की 3 दीवारे ऑफ वाइट रंग से रंगी थी , बची एक दिवार सी ग्रीन रंग से कमरे को जिंदादिल बना रही थी। कमरे की बड़ी सी खिड़की जिस पर सफ़ेद और सी ग्रीन रंग के कई परदे एक दूसरे से लिपटे थे जिन्हे देखकर ये अंदाजा लगाना आसान था कि हवा के एक धीमे झोंके मात्र से वे कमरे में लहराने लगेंगे और दीवारों को चूमकर फिर लौट आएंगे।

खिड़की के बगल में कोने में किताबे रखने का एक लकड़ी का रैक था जहा कुछ किताबे बड़े ही करीने से रखी गयी थी जैसे पढ़ने वाले ने इन्हे बहुत ही मोहब्बत के साथ यहाँ सजाया हो। खिड़की के दूसरी तरफ ड्रेसिंग टेबल था जिसके शीशे के एक कोने पर सफ़ेद और हरे रंग से बड़ी ही सुंदर डिजाइन बनाई गयी थी। इतनी सुन्दर कि शीशे में खुद को देखने वाला एक बार तो इसे देखकर वाह वाह जरूर करेगा।


कमरे में दिवार से लगकर एक डबल बेड जिसपर हलके हरे और सफेद रंग की बेडशीट बिछी थी , बड़े तकिये सफ़ेद रंग के कवर में तो उनके साथ छोटे तकिये हलके हरे रंग के , बिस्तर की बेडशीट में एक भी सलवट नहीं देखकर लग रहा था जैसे अभी अभी बिछायी गयी है जिसे खराब करने का मन किसी का नहीं करेगा। कमरे के दरवाजे पर भी वही सफ़ेद और हरे रंग के परदे लेकिन इस बार हलके नहीं बल्कि थोड़ी भारी जो हवा के झोंके से भी ना हिले , जैसे इस कमरे में रहने वाला ये चाहता ना हो कि इस कमरे का अहसास इस कमरे से बाहर जाए।

दिवार से लगकर एक बड़ा अलमीरा जो कि काफी पुराना था लेकिन उसे रंगो से नया लुक दिया गया था। अलमारी के पास ही एक सोफा जहा एक इंसान घुटने मोड़कर आराम से सो सकता है और आपको जानकर ये हैरानी होगी कि सोफे का रंग हरा था और उस पर ऑफ वाइट रंग का सोफे कवर था। कोने में एक जालीदार बाल्टी जैसा रैक रखा था जिसमे कुछ अलग अलग क्रिकेट बेट और स्टम्प रखे थे।

उस जालीदार बाल्टी को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस कमरे में एक आदमी या यू कहे कि एक लड़का रहता है जो क्रिकेट प्रेमी है। बिस्तर के ठीक सामने एक हरे सफेद रंग का मुलायम कालीन बिछा था। कमरे की आखरी दिवार जो की बिस्तर से लगकर थी उस पर एक बड़ी सी तस्वीर थी। ये पूरा कमरा सफ़ेद और हरे रंग के अलग अलग शेड्स से सजाया हुआ था। इसके दो कारण हो सकते है ,

पहला ये कि इन रंगो के साथ से कमरा देखने में अच्छा लग रहा था और दूसरा ये कि इन रंगो को पसंद करने वाले दो लोग इस कमरे में रहते होंगे ,, एक का अंदाजा तो आप लगा चुके है क्रिकेट प्रेमी लड़का तो दुसरा कौन हो सकता है ? यकीनन एक लड़की ही हो सकती है क्या इस से पहले आपने किसी अकेले लड़के का कमरा इतना जमा हुआ देखा-सुना है , नहीं ना”

 ये कमरा आज बहुत ही खामोश और शांत दिखाई पड़ रहा था। दीवारे उदास , बेजान दिखाई दे रही थी तो खिड़की पर बंधे पर्दो पर जैसे मनहूसियत छायी थी  कमरे के बीचोंबीच आराम कुर्सी पर बैठा 30 साला लड़का खाली आँखों से एकटक बंद खिड़की को देख रहा था। कमरे का हलकी रौशनी वाला बल्ब जल रहा था। लड़के का दांया हाथ आराम कुर्सी के हत्थे पर था जिसकी कलाई पर काले धागे में पिरोया हुआ चाँदी का ॐ था जिसे देखकर ये अंदाजा लगाया जा था कि लड़का काफी धार्मिक हो सकता है।

ऊँगली में एक सोने की अंगूठी थी जिसमे लाल रत्न जड़ा था जो अक्सर ज्योतिषी हमे पहनने की सलाह देते है। लड़के का बांया हाथ आराम कुर्सी के हत्थे से फिसलकर नीचे लटक रहा था जिसकी कलाई पर एक बहुत ही सुन्दर घडी बंधी थी , हाथ की तीसरी ऊँगली में सोने की एक अंगूठी थी लेकिन उसी हाथ की दूसरी ऊँगली में पहनी प्लेटिनम की वह सुन्दर अंगूठी किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच सकती थी और इसकी वजह थी उसकी बनावट ,

काले रंग चौकोर हिस्से पर बारीक़ डायमंड की चारो और एक कतार थी और बीच में काला रंग जो कि काफी मामूली दिखाई पड़ रहा था लेकिन डायमंड की बाउंड्री ने उसे खास बना दिया था। काले और प्लेटिनम रंग का मेल उस अंगूठी में काफी खिलकर आ रहा था। लड़के के बांये हाथ में थी एक किताब जिसे उसने अंगूठे और आख़री तीन उंगलियों से थाम रखा था  किताब को आकर्षक बना रहा था उसका कवर पेज जिसमे एक लड़का-लड़की एक दूसरे के आमने सामने खड़े है और उनके बीच से दिखाई दे रहे है महादेव ,

जिस किताब का कवर पेज इतना अच्छा है उसकी कहानी भी यकीनन अच्छी होगी उस पर उस शख्स का उसे इतनी मोहब्बत से थामना इस बात में यकीन और गहरा कर देता है क्योकि किताब पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था “पसंदीदा औरत”
पुरुषो की “पसंदीदा औरत” होती है ये कई बार सुना लेकिन क्या सच में किसी पुरुष की “पसंदीदा औरत” उसे इतनी पसंद होती है कि उसके लिए किताब लिख दी जाए ?

2 साल 6 महीने पहले

 आनन्दा-निलय अपार्टमेंट , मुंबई
अपने कमरे के बिस्तर पर पेट के बल लेटा पृथ्वी गहरी नींद में था और कोई प्यारा सा सपना देख रहा था।
“पृथ्वी ने देखा वह एयरपोर्ट लॉबी में खड़ा है और एक लड़की उसे रोकने के लिए आवाज देती है , कंधे के एक तरफ टंगे बैग को थामे पृथ्वी पलटता है , लड़की दौड़कर उसके सामने आती है जिसका चेहरा उसे बस धुंधला दिखाई दे रहा है। लड़की पृथ्वी से कुछ कहती है और आकर उसके सीने से लग जाती है,,,,,,पृथ्वी भी कंधे पर पकडे बैग को छोड़कर दोनों हाथो से लड़की को थाम लेता है”


“धड़ाम” सपना देखते हुए पृथ्वी एकदम से बिस्तर से नीचे आ गिरा , इतना खूबसूरत सपना टूटकर बिखर गया। पृथ्वी आँखे मसलते हुए उठा और अंगड़ाई लेते हुए जैसे ही नजर कमरे पर पड़ी तो उसका मुंह बन गया। कमरे को देखकर लग रहा था जैसे ये घर नहीं बल्कि कोई कबाड़खाना हो , बीती रात उसने बाहर से मंगवाकर जो पिज्जा खाया था उसका डिब्बा भी यही पड़ा था। एक चप्पल बिस्तर के नीचे तो दूसरी कुर्सी के नीचे पड़ी थी। खिड़की के परदे मरोड़कर ऊपर अटकाए हुए थे। कमरे में हर तरफ धूल मिटटी और जाले दिखाई दे रहे थे।

पृथ्वी ने सबको देखा और टेबल पर रखा पानी का बोतल उठाकर पानी पीया और खुद में बड़बड़ाया,”अहह लगता है इस बार घर कुछ ज्यादा ही गंदा हो गया है , इस सन्डे इसे साफ़ करना पडेगा”
पृथ्वी कमरे से बाहर चला आया और पानी पीते हुए बालकनी की तरफ आकर बाहर का मौसम देखा जो कि काफी अच्छा था , आसमान में बादल छाये हुए थे और मुंबई शहर में बारिश होना सामान्य बात थी। बालकनी में खड़ा पृथ्वी अपने सामने और आस पास बनी बड़ी बड़ी और ऊँची इमारतों को देख रहा था।

कुछ देर बाद पृथ्वी की नजर हॉल में लगी घडी पर पड़ी और वह कमरे की तरफ भागा उसने अपना फोन उठाया और जेब में रखकर फ्लेट से बाहर आया और दरवाजा लॉक करके लिफ्ट की तरफ बढ़ गया। वह अपार्टमेंट से बाहर आया और पैदल ही चल पड़ा। पृथ्वी जिस सोसायटी में रहता था उसी के पीछे वाली सोसायटी में बने बड़े से घर में उसका परिवार रहता था और पृथ्वी वही जा रहा था। उस घर में कई लोग एक साथ रहते थे और सबका अपना अलग हिस्सा था लेकिन रहते सब साथ ही थे।

पृथ्वी के परिवार में उसके बाबा “रवि उपाध्याय” , आई “लता उपाध्याय” और छोटा भाई “लक्षित उपाध्याय” है , इनके अलावा उस घर में उसके बड़े पापा , बड़ी मम्मी , उनका इकलौता लड़का हिमांशु और उसकी पत्नी साक्षी और उनकी 2 साल की प्यारी सी बेटी मीशू घर के अलग हिस्से में रहती थी , घर के दूसरे हिस्से में पृथ्वी के चाचा-चाची और उनके बच्चे मोहित और हिमानी रहते थे , उसी घर में एक बड़ा कमरा पृथ्वी की दादी “चंद्रकांता”

उपाध्याय का था जिसमे पृथ्वी की इकलौती भुआ “नीलम शर्मा” जो अपने तलाक के बाद पिछले कई सालो से इसी घर में रह रही थी। नीलम सरकारी दफ्तर में क्लर्क के पद पर थी लेकिन साथ ही घमंडी भी थी। पृथ्वी की दादी “चंद्रकांता” मध्य प्रदेश के ग्वालियर में अपने पुश्तैनी घर में रहती थी। ग्वालियर में खेती बाड़ी , पालतू जानवर , गाड़ी सब था और यही वजह थी कि उन्होंने मुंबई की भागदौड़ भरी जिंदगी को छोड़कर गांव की शांति और सुकून को चुना ,

उनका जब मन होता वे सबसे मिलने मुंबई जाती थी और सब घरवाले उनसे मिलने गांव चले आते। घर में चंद्रकांता के सबसे करीब अगर कोई था तो वह था पृथ्वी “पृथ्वी”
वे सबकी बात टाल सकती थी लेकिन पृथ्वी की नहीं , उसके लिए उनका प्यार और विश्वास अटूट था , होता भी क्यों नहीं पुरे परिवार में पृथ्वी सबसे समझदार और सबसे लायक लड़का जो था।  

27 साल का पृथ्वी उपाध्याय दिखने में बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं था लेकिन जिम जाने की वजह से पर्सनालिटी काफी अच्छी बना ली थी उस पर उसका सांवला रंग काफी आकर्षक दिखता था। 6 फुट हाइट , मजबूत बाँहे , सलीके से कटे बाल , अच्छा ड्रेसिंग सेन्स और उस पर उसका पॉजिटिव ऐटिटूड उसे बाकी सबसे अलग बनाता है। खाने का बहुत शौकीन था इसलिए वेज और नॉनवेज दोनों खाया करता था , अपनी उम्र के लड़को के हिसाब से उसमे कोई बुरी आदत नहीं थी  बल्कि उम्र के साथ ही पृथ्वी अपनी जिम्मेदारियां समझने लगा था।

बाबा एक छोटे से होटल में मैनेजर थे और आई हॉउस वाइफ , छोटा भाई इस साल कॉलेज में आया था और पृथ्वी , पृथ्वी एक डाटा ऑपरेटर था जो मुंबई में ही एक प्राइवेट कम्पनी में काम कर रहा था। हमेशा की तरह वह आज फिर ऑफिस जाने के लिए लेट होने वाला था।

 पृथ्वी भागते हुए घर पहुंचा। अपने कमरे में आया कबर्ड से कपडे निकालकर रखे और नहाने चला गया। पृथ्वी नहाकर आया और तैयार होकर हॉल में आया और कहा,”आई ! आज फिर मेरे कपडे प्रेस नहीं है,,,,,,!!”
“हाँ तो मेरे पास सिर्फ दो ही हाथ है , तुझे प्रेस किये कपडे चाहिए तो जल्दी आकर खुद कर लिया कर,,,,,,,,,वरना शादी कर ले और बीवी ले आ वो रोज तेरे लिए कपडे प्रेस भी कर देगी और तुझे टाइम से ऑफिस भी भेज देगी,,,,,,,,,,!!”,किचन में काम करती पृथ्वी की आई ने कहा


“हाह ! अब एक प्रेस के लिए मैं शादी करू,,,,,,,,,खैर छोडो मैं ऐसे ही चला जाऊंगा”,पृथ्वी ने फाइल्स अपने बैग में जमाते हुए कहा
“तो कब करेगा शादी ? 27 का हो गया है तू,,,,ये टिफिन पकड़ , खाना खा लेना काम में उलझकर भूल मत जाना”,लता ने टिफिन पृथ्वी के हाथ में थमाकर कहा
“ठीक है,,,,,,क्या रखा है टिफिन में ?”,पृथ्वी ने टिफिन को बैग में रखते हुए पूछा
“चपाती और लौकी चने की सब्जी”,लता ने कहा


“क्या आई मुझे ये लौकी बिल्कुल पसंद नहीं है”,पृथ्वी ने कहा
“ये सब नखरे ना अपनी बीवी के सामने दिखाना , जो बनाकर दिया है चुपचाप खाओ”,लता ने कहा और किचन की तरफ चली गयी
“ये आप मुझे बार बार शादी और बीवी का ताना क्या मार रही है ?”,पृथ्वी ने लता के पीछे किचन की तरफ आते हुए कहा
लता पलटी और कहा,”तो फिर कर लो न शादी”


“आई,,,,,,,,,,,!!”,पृथ्वी ने कहा लेकिन लता ने उसकी बात पूरी ही नहीं होने दी और कहा,”अच्छा सुनो ! मैंने तुम्हारे लिए एक लड़की देखी है आज शाम ऑफिस
के बाद तुम उस से मिल लो,,,,,,,,,,,प्लीज , तुम्हारे ऑफिस के बगल वाली बिल्डिंग में ही काम करती है , मैने उसे तुम्हारा नंबर दिया है वो शाम में तुम्हे फोन करेगी,,,,,,जाकर उस से मिल लेना हाँ”
पृथ्वी ने सुना तो हैरानी से अपनी आई को देखा और कहा,”आई ये ज्यादा हो रहा है”


“कुछ ज्यादा नहीं है अब जाओ तुम्हारी ट्रेन छूट जाएगी,,,,,,,,और हाँ उस से मिलो तो जरा मुस्कुरा कर मिलना और फूल ले जाना मत भूलना”,लता ने कहा और घर के मंदिर की तरफ बढ़ गयी।
बेचारा पृथ्वी उसके साथ ये कई बार पहले भी हो चुका था इसलिए वह मुंह लटकाकर घर से निकल गया।

स्टेशन आकर उसने भागते हुए ट्रेन पकड़ी। आज ट्रेन में भीड़ ज्यादा थी पृथ्वी भी एक तरफ जगह बनाकर खड़ा हो गया। पृथ्वी के दिमाग में आई की कही बाते घूम रही थी। आज शाम फिर उसे एक लड़की से मिलना था और उसे रिजेक्ट करना था। रिजेक्ट इसलिए क्योकि आज तक किसी भी लड़की से मिलकर पृथ्वी को ये लगा ही नहीं कि इसके साथ पूरी जिंदगी बितायी जा सकती है। ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ ली और पृथ्वी अपने ही विचारो में उलझा रहा।

ट्रेन नवी मुंबई स्टेशन आकर रुकी , पृथ्वी स्टेशन से बाहर आया घडी में टाइम देखा आज फिर वह 10 मिनिट लेट था। स्टेशन से बाहर आकर उसने ऑटो पकड़ा और ऑफिस के लिए निकल गया। ऑटो ऑफिस के बाहर आकर रुका पृथ्वी ने अपना बैग लिया और जैसे ही ऑफिस की बिल्डिंग की तरफ जाने लगा उसका फोन बजा। पृथ्वी ने फोन निकाला और स्क्रीन पर नाम देखकर सहसा ही उसके होंठो पर मुस्कान तैर गयी। उसने जल्दी से फोन उठाया और कान से लगाया और कहा,”हेलो रुषाली”


“पृथ्वी ! कहा हो तुम मुझे अभी तुमसे मिलना है,,,,मुझे बहुत अर्जेन्ट काम है”,दूसरी तरफ से किसी लड़की की प्यारी सी आवाज पृथ्वी के कानो में पड़ी
“मैं ऑफिस के बाहर हूँ , तुम बताओ कहा आना है मैं अभी आता हूँ”,पृथ्वी ने अपनेपन से कहा  


रुषाली ने पृथ्वी को एड्रेस बताया जो कि उसके ऑफिस से कुछ दूर ही था उसने फोन जेब में रखा और जैसे ही जाने के लिए पलटा उसके कानो में अपने खड़ूस बॉस की आवाज पड़ी,”ए पृथ्वी ! ये कोई टाइम है ऑफिस आने का , तुम आज फिर 10 मिनिट लेट हो”
पृथ्वी ने मुंह बनाया और फिर पलटकर कहा,”अब लेट हो ही गया हूँ तो 10 मिनिट और सही , मैं थोड़ी देर में आता हूँ सर”
बॉस पृथ्वी को रोक पाता इस से पहले पृथ्वी ने सामने से गुजरते ऑटो को रोका और उसमे आ बैठा और निकल गया।

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संजना किरोड़ीवाल

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