मेरे पापा – बचपन की नांव
Mere Papa-Bachpan Ki Naw
मेरे पापा – बचपन की नांव – My Dad And Childhood Boat
30 साल के अभिमन्यु को उस वक्त गुस्सा आ गया जब उसके पापा ने अपना नजर वाला चश्मा तीसरी बार तोड़ दिया था। वह टूटा हुआ चश्मा लेकर अपने पापा के कमरे में आया और गुस्से से बिफरते हुए कहा,”ये क्या है पापा ? मेरी आधी से ज्यादा कमाई तो आपके ये चश्मे ठीक करवाने में चली जाएगी , कितनी बार कहा है आपको ध्यान रखा कीजिये लेकिन नहीं पैसे तो जैसे पेड़ पर उगते है आपको थोड़े कमाना पड़ता है”
अभिमन्यु के पापा कमलनाथ ख़ामोशी से बेटे की बातें सुनते रहे। उन्होंने बस चुपचाप अभिमन्यु के हाथ से टूटा हुआ चश्मा लिया और उसे अपने कुर्ते से साफ करने लगे। अभिमन्यु ने देखा तो चश्मा उनके हाथ से वापस लेकर कहा,”दीजिये मुझे ठीक तो मुझे ही करना है”
अभिमन्यु वहा से चला गया कमलनाथ जी खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ गए और खाली आँखों से बाहर देखने लगे। अभिमन्यु अपनी चमचमाती कार में बैठकर चला गया। उनका 7 साल का पोता बाहर अपनी फुटबाल से खेल रहा था कुछ देर बाद बारिश होने लगी कमल जी वही बैठे बारिश को देखने लगे
उनका पोता जो कुछ देर पहले बॉल से खेल रहा था बॉल छोड़कर अंदर से अपनी नोटबुक ले आया और सीढ़ियों पर बैठकर कागज की नांव बनाकर उसे पानी में बहाने लगा ये करते हुए उसे बड़ा मजा आ रहा था। उसे देखकर कमल जी के होंठो पर मुस्कान तैर गयी बच्चे की नजर जब कमल जी पर पड़ी तो उसने कहा,”दादाजी आईये ना , देखो कितना मजा आ रहा है , आईये ना दादाजी”
पोते की जिद पर कमल जी बाहर आ गए और उसके साथ बैठकर नाव बनाकर पानी में बहाने लगे। बच्चे के साथ कमल जी कुछ देर पहले की बात को भूल गए थे अब वे भी उसके साथ मिलकर नाव बनाते और पानी में बहाते। अभी कुछ ही देर हुई थी की उनकी बहु जीविका बाहर आयी उसने बांह पकड़ कर बच्चे को उठाया और एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद करके कहा,”ये क्या है डुग्गु ? सारी नोटबुक ख़राब कर दी तुमने” उसके बाद जीविका कमल जी की और पलटी और कहा,”क्या पापा आप भी ? ये तो बच्चा है लेकिन आप भी इसके साथ ये सब कर रहे है”
“बहु वो बस अपना बचपन जी रहा है”,कमल जी ने कहा
“कोई जरूरत नहीं है ऐसे बचपन की , ऐसी चीजों से ही बच्चे बिगड़ते है आज नोटबुक ख़राब की है कल को पढाई छोड़ देगा उसके बाद तो आप खुश है ,, चलो डुग्गु यहाँ से”,कहते हुए जीविका बच्चे को घसीटते हुए वहा से ले गयी अंदर ले जाकर शायद दो-चार थप्पड़ और लगा दिए हो। कमल जी फिर उदास हो गए
अभी कुछ महीने पहले ही अभिमन्यु उन्हें गांव से शहर ले आया था और तबसे कमल जी यहाँ शहर में खुद को व्यवस्तिथ करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। बारिश रुक चुकी थी कमल जी बाहर बगीचे में लगे झूले पर आकर बैठ गए और उदासी से सामने लगे पोधो को ताकने लगे जिन पर बारिश के पानी की बुँदे अभी भी जमी थी। रात में अभिमन्यु घर आया तो जीविका ने उस से कमल जी को लेकर बहुत सारी शिकायते की और कहा की उनकी वजह से उनके बच्चे पर असर पड़ रहा है। अभिमन्यु ने सुनाए और कहा,”ठीक है इस संडे मैं उन्हें वापस गांव छोड़ आऊंगा , बुआ भी वही रहती है। हर महीने इतने रूपये भिजवा दूंगा जिस से इन्हे किसी चीज की जरूरत ना पड़े”
कमरे के बाहर से गुजरते हुए कमल जी के कानो में बेटे की आवाज पड़ी तो उनकी आँखे नम हो गयी। चार बेटियों के बाद अभिमन्यु उनका इकलौता बेटा था लेकिन आज ये जानकर की अब इस उम्र में वे अपने बेटे बहु पर बोझ बन गए है उनका दिल भर आया। वे अपने कमरे में चले आये। उस रात वे सो नहीं पाए अगले संडे अभिमन्यु उन्हें लेकर गांव के लिए निकल पड़ा। रास्ते भर कमल जी खामोश रहे उन्होंने अभिमन्यु से ये तक नहीं पूछा की वह उन्हें कहा लेकर जा रहा है ? शाम को अभिमन्यु उन्हें लेकर गांव पहुंचे गाड़ी घर के सामने आकर रुकी अभिमन्यु कमल जी के साथ घर के अंदर आया। कमल जी की बहन और अभिमन्यु की बुआ जी ने दोनों को देखा तो बड़ा खुश हुई। अभिमन्यु ने चाय पि और कहा,”भुआ जी आज से पापा यही रहेंगे और आप चिंता मत करना हर महीने इनके अकाउंट में पैसे भेजता रहूंगा”
“बेटा मौसम खराब है , कल सबेरे चले जाना। सफर करके आये हो तुम भी थक गए होंगे”,बुआ जी ने कहा तो अभिमन्यु ने उनकी बात मान ली और वही रुक गया। कुछ देर बाद मूसलाधार बारिश हुई घर के पिछले आँगन में बरामदे की सीढ़ियों से निचे पानी भर गया। रात का खाना कहने के बाद अभिमन्यु जीविका से बात करता हुआ पीछे बरामदे की सीढ़ियों पर आ बैठा। जीविका और डुग्गु से बात करने के बाद अभिमन्यु वही बैठकर आँगन में भरे पानी को देखता रहा उसने देखा साइड में पड़ी कुर्सी पर अख़बार रखा हुआ है तो उसने उसे उठाया और एक बड़ी सी मजबूत नाव बनाकर पानी में बहा दी। ये करते हुए अभिमन्यु को अपने बचपन के दिन याद आ गए और वह मुस्कुरा उठा। बचपन में वह कागज पर अपनी विश लिखता था और उसे बारिश के पानी में बहा देता था , कुछ दिन बाद ही उसकी विश पूरी हो जाती थी ,, अभिमन्यु आज तक नहीं समझ पाया था की उसकी विश पूरी कौन करता था ?”
सीढ़ियों पर बैठा अभिमन्यु अपना बचपन याद कर रहा था तभी दूध का ग्लास लेकर बुआ वहा चली आयी और अभिमन्यु की बगल में बैठकर दूध का ग्लास उसे पकड़ाते हुए कहा,”याद है बिटवा बचपन में अपनी बहनो के साथ कितनी मस्ती करते थे , सारे घर के कागज चुन चुन के नाव बनाते और पानी में बहाते थे , बचपन के वो दिन भी कितने खूबसूरत थे”
“हां ! बुआ जी , लेकिन मुझे आज भी ये समझ में नहीं आया की जिस कागज की नाव पर मैं अपनी विश लिखकर पानी में बहाता था कुछ दिन बाद ही वो पूरी हो जाती थी ,, ऐसा क्यों ? क्या सच में ऐसा होता है ?”,अभिमन्यु ने कहा
अभिमन्यु की बात सुनकर बुआ हंसने लगी तो अभिमन्यु ने कहा,”अरे बुआ जी सच में स्कूल में मेरे सब दोस्तों के पास साइकिल थी मेरे पास नहीं थी मैने माँ के सामने जिद की तो उन्होंने कहा नाव पर अपनी विश लिखकर पानी में बहा देना तुम्हारी विश पूरी हो जाएगी। और मुझे एक हफ्ते बाद ही पापा ने नयी साईकल लाकर दे दी। उसके बाद मैं हर साल नाव बनाकर पहले उस पर अपनी विश लिखता और पानी में बहा देता और कुछ दिन बाद ही वह पूरी हो जाती। ऐसे करके मेरी कितनी ही विश पूरी हुई है लेकिन अब ऐसा नहीं होता”
“तू सच में बड़ा भोला है अभिमन्यु , तेरी माँ ने तो उस दिन ऐसे ही तुझे बहलाने के लिए झूठ बोल दिया था और तूने उसे सच समझ लिया”,बुआ ने कहा तो अभिमन्यु ने हैरानी से कहा,”फिर फिर मेरी वो सारी विश किसने पूरी की ?”
“तेरे पिताजी ने , बचपन में जैसे ही तू नाव बहाता था वो यहाँ से घुमकर दूसरी और तेरे पिताजी के कमरे की खिड़की के पास से गुजरती थी। वे तेरी नाव को पानी से निकालकर उस पर लिखी तेरी इच्छा पढ़ते और उसे पूरी करते थे , थोड़ा वक्त लग जाता था क्योकि पैसे जुटाने के लिए उन्हें दुगुनी मेहनत करनी पड़ती थी। एक दिन जब मैंने उनसे पूछा की उन्हें सीधा ही जाकर दे दो ये नाव वाला नाटक क्यों ? तो कहने लगे की मेरी कठोरता और गुस्सैल स्वाभाव की वजह से मेरे बच्चे मुझसे कुछ मांगने से डरते है , उन्हें लगता है मैं उन्हें प्यार नहीं करता लेकिन ऐसा नहीं है मैं उन्हें प्यार करता हूँ लेकिन उस प्यार के साथ उनके भविष्य के लिए डांट फटकार भी जरुरी है। मेरे बच्चे खुश रहने चाहिए चाहे उसके लिए मुझे दुगुनी मेहनत करनी पड़े मैं करूंगा। बचपन में तुम्हारी वो विश पूरी करने वाले तुम्हारे पिताजी ही थे बोलकर प्यार जताना उन्हें कभी आया ही नहीं”,बुआ ने कहा तो अभिमन्यु की आँखों में नमी तैर गयी उसने आँखों के किनारे साफ किये और कहा,”उन्होंने कभी मुझे ये बात क्यों नहीं बताई ?”
बुआ मुस्कुराई और कहने लगी,”इन पिताओ में यही तो एक खूबी होती है ये अपने बच्चो से प्यार करते है लेकिन कभी दिखा नहीं पाते , हम माएं बोलकर अपना प्यार जता देती है लेकिन एक पिता ऐसा नहीं कर पाता , उनका प्यार उनकी डांट में छुपा होता है। पढाई के लिए बार बार कहना उनका प्यार ही है क्योकि वो तुम्हे आगे बढ़ते देखना चाहते है। उन्होंने तुमसे दुगुने सावन देखे होते है बेटा उन्हें तजुर्बा भी तुमसे ज्यादा होता है बस कई बार बच्चे पिता का प्यार समझ नहीं पाते और उनसे कुढ़ने लगते है , नफरत करने लगते है और उम्र के आखरी पड़ाव में अकेला छोड़ देते है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,तुम्हारी तरह”
बुआ की कही आखरी बात सीधा जाकर अभिमन्यु के दिल में तीर की तरह चुभी क्या गलत कहा था बुआ ने सही तो कह रही थी , अभिमन्यु ने भी तो यही करने जा रहा था , उसकी आँखों से आंसू का एक कतरा निचे आ गिरा बुआ उठी और कहा,”मैं चलती हूँ बेटा , तुम भी जाकर सो जाना”
अभिमन्यु वही बैठा शून्य में तांकते हुए बैठा रहा उसे आज बहुत दुःख हो रहा था। आज अभिमन्यु खुद को बहुत ही छोटा समझ रहा था उसके पिता का दिल बड़ा था अभिमन्यु को आज समझ आया था। उसकी आँखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे।
सुबह अभिमन्यु उठा बाहर बरामदे में आया देखा कमल जी अख़बार पढ़ रहे थे। अभिमन्यु उनके पास आया तो वे अख़बार छोड़कर उठ खड़े हुए और कहा,”जा रहे हो बेटा ? ध्यान से जाना और गाड़ी थोड़ा आहिस्ता चलाना गांव की सड़को पर गड्डे बहुत है और बारिश की वजह से पानी भरा होगा उनमे। शांति (भुआ जी) से कहकर तुम्हारे रास्ते के लिए नाश्ता बनवा दिया है , खा लेना। मेरी चिंता मत करना मैं मैं यहाँ खुश हूँ , चश्मे का ख्याल रखूंगा यहाँ तो आस पास दुकान भी नहीं है कौन बनवा कर देगा।”
कहते कहते उनका गला रुंध गया अभिमन्यु ने सूना तो उसकी आँखो से आंसू बहने लगे उसने आगे बढ़कर कमल जी गले लगाया और कहा,”माफ़ कर दीजिये पापा , मैं आपको कभी समझ ही नहीं पाया था। बचपन में मेरी विश पूरी करने वाले आप ही थे और आज ऐसे वक्त में मैं आपको अकेला छोड़कर जा रहा था , मैं कितना गिर गया था पापा , माफ़ कर दीजिये”
कमल जी की आँखों से आंसू बहने उन्होंने अभिमन्यु की पीठ सहलाते हुए कहा,”एक पिता के लिए मुश्किल होता है अपने बेटे से प्यार जताना लेकिन उस से भी ज्यादा मुश्किल होता है एक बेटे का अपने पिता को गले लगा पाना। मैं अपने बच्चो की ताकत बनना चाहता हूँ उन पर बोझ नहीं।
अभिमन्यु ने उनके दोनों हाथो को अपने हाथो में लेकर चूमते हुए कहा,”आप मेरा अभिमान है पापा बोझ नहीं।”
कमल जी मुस्कुरा उठे , आसमान में बादल फिर घिर आये और पानी बरसने लगा अभिमन्यु ने बुआ की और देखकर कहा,”बुआ कागज ले आईये”
और फिर कमल जी से कहा,”आईये पापा’
अभिमन्यु उन्हें लेकर बरामदे की सीढ़ियों पर आया बुआ कागज ले आयी अभिमन्यु ने बचपन की तरह ही नाव बनाई और कमल जी के हाथो में देकर कहा,”लीजिये पापा बहाइये इसे पानी में अब आपकी हर विश पूरी करने की बारी मेरी है”
कमल जी ने सूना तो उनकी आँखे भर आयी उन्होंने नम आँखों से नाव पानी में बहा दी। कुछ देर बाद अभिमन्यु उनके साथ अंदर जाने लगा तो कमल जी के हाथ से चश्मा गिर गया और उसका शीशा टूट गया।
कमल जी ने अभिमन्यु की और देखकर कहा,”ये फिर टूट गया”
अभिमन्यु मुस्कुराया और कहा,”टूट जाने दीजिये पापा , हमारा रिश्ता तो कायम है” दोनों मुस्कुराते हुए अंदर चले आये
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संजना किरोड़ीवाल !
Heart touching
Awesome story.no words to describe my feelings about this.
Very👍👍👍👍👍