Manmarjiyan Season 3 – 36
Manmarjiyan Season 3 – 36

मिश्रा जी का घर , बनारस
आज मिश्रा जी के घर में उनकी अम्मा की तिये की बैठक थी। सुबह से ही घर में आने जाने वालो का ताँता लगा हुआ था। मिश्रा जी , गुड्डू और घर के सभी मर्दो ने सफ़ेद रंग का कुरता पजामा पहना था। मिश्राइन और घर की बहू बेटियों ने भी सादे कपडे पहने हुए थे। महिलाओ की बैठक अलग थी और आदमियों की अलग। घर के आँगन में अम्मा की बड़ी सी तस्वीर के सामने धुप बत्ती और दीपक जल रहा था। बगल में ही मिटटी के कलश में अम्मा की अस्थिया थी जिन्हे मिश्रा जी सुबह ही लेकर आये थे जिन्हे बैठक के बाद बनारस लेकर जाना था।
मिश्रा जी गुड्डू और कुछ रिश्तेदारों के साथ घर के आँगन से नीचे बनी सीढ़ियों के पास खड़े थे। बैठक में आने जाने वाले लोग अम्मा को श्रद्धांजलि देकर मिश्रा जी से मिलकर जा रहे थे। घर परिवार वालो के लिए मिश्रा जी ने खाने का बंदोबस्त भी किया था इसलिए आधे लोग रौशनी के घर की तरफ जा रहे थे।
गोलू भी अपने घरवालों के साथ सुबह से मिश्रा जी के यही आया हुआ था। अब जहा गोलू हो और वहा दुःख में भी हंसी का माहौल ना बने ऐसा भला हो सकता है क्या ? गुप्ता जी मिश्रा जी के साथ खड़े थे , वही फूफा भी फॉर्मेलिटी निभाते हुए उनके साथ मौजूद थे हालाँकि गुड्डू को उनका वहा होना अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन मिश्रा जी के सामने वह चुप रहा। मिश्रा जी के कुछ जान पहचान के कुछ बड़े लोग अम्मा की बैठक में आये थे अब मिश्रा जी तो उनके साथ जा नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने गोलू को बुलाया और उनके साथ भेजा।
गोलू उन्हें लेकर आँगन में आया और खुद भी उनके साथ दरी पर आ बैठा। सामने अम्मा की बड़ी सी तस्वीर देखकर गोलु लगा। पास बैठे आदमी ने गोलू को सुबकते देखा तो उस से हमदर्दी जताते हुए कहा,”अम्माजी तुम्हारी सगी थी ?”
“नहीं,,,,,,,,,!!”,गोलू ने सुबकते हुए कहा
“तो फिर कोई करीबी थी ?”,आदमी ने फिर पूछा
“नहीं ना”,गोलू ने नाक पोछते हुए कहा
“तो फिर रिश्तेदार थी ?”,आदमी को अब जिज्ञासा होने लगी
“नहीं,,,,,,,,,!!”,इस बार गोलू ने थोड़ा खीजकर कहा
“अरे तो फिर रो क्यों रहे हो ?”,गोलू को खीजते देखकर आदमी भी चिढ गया
“साला हमको किसी ने बताया ही नहीं अम्मा की तीये की बैठक के खाने मा मोतीचूर के लड्डू भी बने है,,,,,,,,,,हमहू साला सब्जी पूड़ी खाकर अपना पेट भरके आये है”,गोलू ने अम्मा की तस्वीर के सामने पड़ी लडूओं की थाली की ओर इशारा करके कहा
आदमी ने सुना तो उसका मुंह खुला का खुला रह गया , गोलू किसी की बैठक में आया था और खाने के बारे में बात कर रहा था। दूर खड़े मिश्रा जी ने गोलू को देखा , गोलू की नजरे मिश्रा जी से मिली तो मिश्रा जी ने आँखे ही आँखों में उसे वहा से उठने का इशारा किया।
अब गोलू तो ठहरा गोलू उसे लगा मिश्रा जी माहौल बनाने के लिए उसे रोने के लिए बोल रहे है , ताकि सब अम्मा को श्रद्धांजलि दे सके। बस फिर क्या था गोलू ने राग अलापना शुरू कर दिया और छाती पीट-पीट कर रोने लगा,”ए मिश्रा जी की अम्मा , ए तुमहू हमका काहे छोड़कर चली गयी रे ? अब तुम्हरे बिना हमरे मिश्रा जी का करी है ,, अरे अभी तुम्हरी उमर ही का थी अभी तो तुमको गुड्डू भैया के लल्ला लल्ली को गोद मा खिलाना था रे
अरे मोतीचूर का लड्डू ही खाना था तो हमसे कही होती पूरा हलवाई बैठा देते जे के लिए हम सबको छोड़कर जाने की का जरूरत थी रे अम्मा,,,,,,,अब जे मोतीचूर के लड्डू कौन खायी है ? तुम्हरी फोटू,,,,,,,,,,,,!!”
कहते हुए गोलू रोते हुए लड्डू की थाली के पास झुका और सबसे नजरे बचाकर एक लड्डू मुंह में रखकर जल्दी जल्दी खाकर उठ गया। आस पास बैठे लोगो ने गोलू को ऐसे रोते देखा तो आधे लोग हैरान थे बाकि कुछ गोलू के साथ साथ अम्मा को श्रद्धांजलि दे रहे थे।
गोलू के पास बैठे आदमी ने गोलू को सांत्वना देते हुए कहा,”अरे भाई शांत हो जाओ अम्मा जी तुम्हरी भी तो कुछो लगती होगी”
गोलू ने सुना तो आदमी को देखा और फिर मुंह फाड़कर रोते हुए कहा,”ददिया थी हमाई , अरे हमहू अपनी ददिया का प्यार तो कबो ना देखे पर इन्होने हमको बहुते प्यार दिया,,,,,,,,अरे हमहू तो सुबह सुबह इह का आशीर्वाद लेने आये रहय भैया पर इह तो खुद ही महादेव से आशीर्वाद लेने ऊपर चली गयी। अरे बहुते अच्छी थी हमाई ददिया , ऐसी औरत को तो हमहू दिन में पचासो बार श्रद्धांजलि दें को तैयार है।”
कहते हुए गोलू फिर अम्मा की तस्वीर के सामने नत मस्तक हो गया दरअसल श्रद्धांजलि तो बहाना था गोलू को सबसे नजरे बचा कर मोतीचूर का एक और लड्डू गटकाना था पर बेचारे गोलू की फूटी किस्मत जैसे ही वो थाली के सामने झुका भुआजी ने आकर लड्डू की थाली उठायी और उसकी जगह जलती अगरबत्ती के गुच्छे वाला बर्तन वहा रख दिया। जैसे ही गोलू लड्डू उठाने झुका अगरबत्ती उसके गाल पर लगी और वह चौंककर उठा।
लोगो को उस पर शक ना हो सोचकर गोलू ने अपने गाल को मसलते हुए कहा,”अरे तुम्हरी याद मा हमहू अगरबत्ती जलाये है , धूपबत्ती जलाएंगे , मोमबत्ती जलाएंगे , पांचबत्ती,,,,,,,,,,!!”
कहते कहते गोलू उसी आदमी के बगल में आ बैठा जिसने उस से सवाल किया था , जैसे ही गोलू के होंठो पर पांचबत्ती का नाम आया गोलू को एकदम से कुछ याद आया और उसने आदमी की तरफ देखकर कहा,”पांचबत्ती , अरे हुआ तो हमाई और गुड्डू भैया की टेंट की दूकान है,,,,,,,,,,,जे हमरी दूकान का कार्ड है शादी से लेकर मय्यत तक सबका टेंट लगाते है”
कहते हुए गोलू ने कुर्ते की जेब से दुकान का कार्ड निकालकर आदमी को थमा दिया और अम्मा की तरफ मुंह करके फिर रोने लगा।
मिश्रा जी ने गोल को देखा और दबी आवाज में गुड्डू से कहा,”गुड्डू जाकर पता करो वहा बैठकर गोलू का बकवास कर रहा है ?”
गुड्डू चुपचाप वहा से निकलकर गोलू के पास आया और उसे उठाते हुए कहा,”गोलू उठो हमाये साथ आओ”
“नाही गुड्डू भैया हमहू ना आही है , ददिया हमको छोड़ के चली गयी,,,,,,,,,!!”,गोलू ने कहा
गुड्डू ने देखा गोलू तमाशा कर रहा है तो उसने दबी आवाज में गोलू से कहा,”अब का तुमहू ददिया के साथ जाही हो,,,,,,,उठो यहाँ से और चलो हमाये साथ”
गुड्डू को गुस्से में देखकर गोलू समझ गया कि जरूर उस से कुछ गड़बड़ हुई है इसलिए वह उठा और सबको नमस्ते करते हुए वहा से खिसक गया। चलते चलते गुड्डू ने उसकी पीठ पर एक मुक्का मारा और दबी आवाज में कहा,”उह सब का जीजा है तुम्हाये जो सबको नमस्ते कर रहे हो ?”
“का गुड्डू भैया हमाये जीजा काहे होंगे ? इत्ती तो बहने भी नहीं है हमायी”,गोलू ने गुड्डू के साथ चलते हुए कहा
”कसम से गोलू तुम्हाये जित्ता जाहिल आदमी नाही देखे हमहू , पिताजी ने तुमको उन लोगन को हुआ छोड़कर आने को कहा था उनके साथ बैठकर राग अलापने को नाही,,,,,,,अब चलो पिताजी बुला रहे है तुम्हे , गोलू , गोलू”,कहते हुए गुड्डू ने अपने बगल में देखा तो पाया गोलू वहा से नरारद था। किसी ने गुड्डू को आवाज दी और गुड्डू वहा से चला गया।
चकिया गाँव , चंदौली
“ए लबली ! कानपूर मा तुम्हरे पिताजी के जोन दोस्त है दुइ दिन पहिले उनकी अम्मा का निधन हो गवा , आज ओह्ह की तिये की बैठक है तुमको हुआ जाना चाहिए,,,,,,,तुम्हरे पिताजी तो अब रहे नाही उह होते तो जरूर जाते , अब उह नाही है तो तुमहू जाय के अपना फर्ज निभाओ”,लवली के पडोसी ने कहा
लवली अपने पुराने घर के छपरे पर उगी घास को छाँट रहा था जैसे ही उसने अपने पडोसी को ये कहते सुना पलटकर गुस्से से उन्हें देखा और हाथ में पकड़ी दरांती को उसके गले पर रखकर कहा,”दुश्मन का घर मा कीर्तन करने की बात कर रहे हो ,, भूलो मत हमाये पिताजी की मौत का जिम्मेदार उह आनंद मिश्रा ही है,,,,,,,!!”
लवली को गुस्से में देखकर पडोसी घबरा गया ,
डर और बेचैनी उसके चेहरे पर साफ दिखाई देने लगी तो लवली ने उसे छोड़ दिया और हाथ में पकड़ी दरांती साइड में फेंककर कहा,”और साला काहे जाहे हम ओह्ह की अम्मा की बैठक मा ? जब हमरे पिताजी हिया आखरी सांसे ले रहे थे तब ओह्ह के घर से कोनो आया था का ? साला खुद उह मिश्रा भी नाही आया,,,,,,,,,,,आज तक कबो आकर देखा उसने हम कहा है ? कौन हाल मा है ? हम हिया निवाले को तरसते रहे और उह साला मिश्रा हुआ अपने परिवार के साथ रोज बढ़िया खाना खाते रहा,,,,,,,
आज हमरी जो हालत है ना ओह्ह का जिम्मेदार भी वही है”
पडोसी ने सुना तो बिना कुछ कहे चुपचाप वहा से चला गया। लवली का गुस्सा उसके चेहरे और आँखों से साफ झलक रहा था।
लवली उपाध्याय , बृजेश उपाध्याय का इकलौता बेटा जिसका जिक्र मिश्राइन के मुंह से कहानी में पहले भी हो चुका है। बृजेश उपाध्याय और आनंद मिश्रा के बीच कोई तो रिश्ता था क्योकि जहा मिश्रा जी बृजेश का नाम तक सुनना नहीं चाहते थे वही बृजेश का बेटा लवली अपने दिल में मिश्रा जी के लिए नफरत लेकर
बैठा था। इस रिश्ते का अतीत शायद इतना कड़वा था कि नफ़रत दोनों तरफ थी। लवली ने दरांती उठायी और एक बार फिर छपरे की घास साफ करने लगा।
उसने घास साफ की और फिर घर के बाहर खुले में बने पत्थर पर बैठकर नहाने लगा। लवली नहाकर तैयार हुआ और अपने बैग में 2 जोड़ी कपड़ा डालकर जैसे ही बाहर आया सामने खड़ी बिंदिया को देखकर कठोरता से कहा,”का है , हमाओ रास्ता रोक के काहे खड़ी हो ?”
बिंदिया ने मुस्कुराते हुए लवली को देखा अपना हाथ आगे कर दिया जिसमे बड़ा सा स्टील का टिफिननुमा चपटा डिब्बा था। लवली ने डिब्बा देखा और कहा,”जे का है ?”
“अम्मा से बचा के तुम्हरे लिए सत्तू के पराठे और आम का अचार लेकर आये है , साथ मा बुकनू भी रखा है जानते है तुमको हमरी अम्मा के हाथ से बना बुकनू बहुते पसंद है,,,,,,,,हमहू सुने तुम शहर जा रहे हो तो बनाकर ले आये रस्ते मा खा लेना”,बिंदिया ने कहा
लवली ने उसके हाथ से डिब्बा ले लिया लेकिन कठोरता अभी भी उसके चेहरे पर थी , बिंदिया उसे बहुत पसंद करती थी लेकिन लवली की जिंदगी का मकसद कुछ और था इसलिए लवली के सामने वह हमेशा गुस्से में ही रहता या फिर उसे नजरअंदाज करता रहता।
लवली को डिब्बा देकर बिंदिया की नजर छपरे के नीचे यहाँ वहा बिखरी घास पर पड़ी तो वह उस तरफ बढ़ गयी और उसे उठाते हुए कहने,”इहलीये कहते है लवली कोनो अच्छी लड़की देखकर शादी कर लो , उह तुम्हरे घर मा आएगी तो तुमको दो बख्त का खाना भी मिल जाही है , घर की साफ सफाई भी हो जाही है और जे पत्थर जैसा बर्ताव भी पिघल जाही है। अरे तुमहू नजर पसार कर देखो तो अपने चकिया मा लड़कियों की कोनो कमी है का ? और चकिया मा काहे अपने आस पास मा ही देख ल्यो,,,,,,,हमने तो बाबा से कह भी दिया है कि हमहू शादी करेंगे तो अपने गाँव मा,,,,,,,,,,,लवली , लवली”
बिंदिया ने पलटकर देखा तो लवली उसे बहुत दूर जाता दिखा आज फिर लवली ने बिंदिया की बात नहीं सुनी और चला गया।
“अरी ओह्ह बिंदिया ! तुम्हरी अम्मा तुमको आवाज लगा रही है , उह तुमको हिया देखी ना तो टाँगे तोड़ देगी तुम्हरी,,,,,,,,,!!”,बिंदिया की दोस्त ने सर पर घास की गठरी ले जाते हुए कहा
“अरी मोरी दैया ! तुमहू ओह्ह का बतायी तो नाही ना कि हमहू हिया है,,,,,,,!!”,बिंदिया ने लड़की की तरफ आते हुए कहा
“और कौन बताएगा ? हमही बताय रहय”,लड़की ने कहा तो बिंदिया ने उसे धक्का देकर घास की गठरी के साथ नीचे गिराते हुए कहा,”कुत्ती कही की , एक बार लवली से हमाओ ब्याह होय दयो फिर बताएँगे तुम्हे”
बिंदिया गुस्सा होकर वहा से चली गयी और उसकी दोस्त हसने लगी।
मिश्रा जी का घर , बनारस
दोपहर होते होते तीये की बैठक का समापन हो चुका था। परिवार और समाज के लोग रौशनी के घर खाना खा रहे थे। पंडित जी ने मिश्रा जी को अम्मा की अस्थिया गंगा में बहाने को कहा। आज शाम ही मिश्रा जी को अस्थिया लेकर बनारस पहुंचना था ताकि अगली सुबह उनका विसर्जन कर सके। अब घर में बात ये चली कि बनारस कौन कौन जायेगा ?
मिश्रा जी , मिश्राइन , गुड्डू , शगुन , गुप्ता जी और गुप्ताइन मिश्रा जी कमरे में मौजूद थे। गोलू उस वक्त गायब हुआ तो अभी तक किसी को नजर नहीं आया।
“हमहू सोच रहे है हम और गुड्डू की अम्मा चले जाते है कल रात तक वापस लौट आयेंगे”,मिश्रा जी ने कहा
“पापाजी आपकी बात ठीक है लेकिन आप दोनों यहाँ नहीं होंगे तो फूफाजी की बदतमीजियां और बढ़ जाएगी और आपके पीछे से अगर उन्होंने कोई तमाशा किया तो,,,,,,और फिर गुड्डू भी यहाँ है फूफाजी जी जान बुझकर तमाशा करेंगे”,शगुन ने कहा
“बात तो शगुन सही कह रही है मिश्रा जी,,,,,,,,,!!”,गुप्ता जी ने कहा
“तो फिर एक ठो काम करते है गुड्डू को भी हम अपने साथ ले जाते है,,,,,,,,!!”,मिश्रा जी ने कहा
“हमहू साथ जायेंगे तो शगुन अकेली होगी और फूफा तो पहले से कीलसा पड़ा है शगुन के ओह्ह दिन के जवाब से,,,,,,,,,,,नाही हमहू शगुन को अकेला छोड़कर नाही जायेंगे”,गुड्डू ने कहा
“ऐसी हालत में हमहू भी शगुन को अकेली नाही छोड़ेंगे”,मिश्राइन ने कहा
“तो हमहू शगुन को भी साथ ले चलते है , जे तो ठीक है ?”,मिश्रा जी ने गुड्डू और मिश्राइन से एक साथ कहा और फैसला मिश्रा जी का था तो भला शगुन क्या कहती ?
गुप्ता जी ने सुना तो कहा,”कमाल करते हो मिश्रा अरे जोन समस्या की जड़ है ओह का हिया छोड़कर जाय रहे हो , उह आपका जीजा आदर्श्वा आपके पीछे से कोनो कांड किये तो कौन सम्हालेगा ? अरे हम तो कहते है आप और मिश्राइन यही रुको और गुड्डू शगुन को भेज दो बनारस”
मिश्रा जी के सामने ये सामने अब ये नयी समस्या थी जिसका समाधान नहीं निकल रहा था तभी मिश्रा जी कमरे में बिस्तर के नीचे से निकलते हुए गोलू ने कहा,”अरे आइडिआ ही गलत है आप लोगन का”
गोलू को वहा देखकर सब हैरान रह गए वो निकला भी तो कहा से मिश्रा जी के बिस्तर के नीचे से
क्रमश
संजना किरोड़ीवाल
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संजना किरोड़ीवाल


लवली को डिब्बा देकर बिंदिया की नजर छपरे के नीचे यहाँ वहा बिखरी घास पर पड़ी तो वह उस तरफ बढ़ गयी और उसे उठाते हुए कहने,”इहलीये कहते है लवली कोनो अच्छी लड़की देखकर शादी कर लो , उह तुम्हरे घर मा आएगी तो तुमको दो बख्त का खाना भी मिल जाही है , घर की साफ सफाई भी हो जाही है और जे पत्थर जैसा बर्ताव भी पिघल जाही है। अरे तुमहू नजर पसार कर देखो तो अपने चकिया मा लड़कियों की कोनो कमी है का ? और चकिया मा काहे अपने आस पास मा ही देख ल्यो,,,,,,,हमने तो बाबा से कह भी दिया है कि हमहू शादी करेंगे तो अपने गाँव मा,,,,,,,,,,,लवली , लवली”
Yeh Naya kirdar Lovely upadhyay to bada hee sakht hai… Bindiya usko pyar krti hai lakin wo usko bhav bhi nhi deta hai…khar lakin Lovely k pita ji Brijesh upadhyay aur Mishra ji k beach aakir kon se dushmani hai jo Lovely Mishra ji ka naam sunte hee bhadak gaya…raaz kuch zyada ghehera hoga zarur…lakin Golu ne Amma k tiye ki bathak m mood hee badal diya🤣🤣🤣 matlab kaha se aate hai Golu k dimag m esi karamat…bhi Sanjana ji k dimag m…aur last m jab sab important baat kar rhe hai to Golu maharaj bed k neeche se nikal kar bahar aa rhe hai… zarur kal Golu maharaj ki Lanka lagegi Gupta aur Mishra ji k hathon