Sanjana Kirodiwal

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मनमर्जियाँ – S71

Manmarjiyan – S71

Manmarjiyan

Manmarjiyan – S71

मिश्रा जी को देखकर गुड्डू का मन पसीज गया वह अपने कमरे में चला आया और आकर बिस्तर पर बैठ गया। गुड्डू के दिमाग में इस वक्त सिर्फ मिश्रा जी चल रहे थे। वह खुद से कहने लगा,”बचपन से लेकर आज तक हर ख्वाहिश पूरी की है उन्होंने हमायी। जे कपडे , गाड़ी , जे ऐशोआराम सब उन्ही का दिया है और हमने का दिया उन्हें सिर्फ तकलीफ , एक बेटे होने के नाते हमने कबो कुछो नहीं किया है उनके लिए बस हमेशा कोई ना कोई गलती करके उनका दिल दुखाते रहे है। हाँ मानते है की पिताजी से हमाई इतनी बात नहीं होती है , हम उनसे अपना प्रेम जता नहीं सकते लेकिन है तो हमाये पिता ही ना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुते बुरे इंसान है यार हम , हमायी आँखों के सामने वो बेबस बैठे है और हम है के कुछो कर नहीं सकते। लानत है अपने बेटे होने पर,,,,,,,,,,,,,,,कानपूर का हर लड़का रंगबाज हो जरुरी नहीं है पर कानपूर का हर लड़का अपने पिताजी का सहारा बने जे बहुते जरुरी है।”
गुड्डू उठकर शीशे के सामने आया और खुद को देखते हुए कहने लगा,”का करेंगे इस खूबसूरत चेहरे का जब जे चेहरा हमाये पिताजी की नजरो में ना उतार पाये , का करेंगे इस फिट बॉडी का जब हमहू अपने पिताजी के लिए मेहनत ना कर पाए , का करेंगे इन चौड़े कंधो का जब इन पर अपने पिताजी की जिम्मेदारियों का बोझ ना उठा पाए ,, अब तक सारी उम्र हमने रंगबाजी और मस्ती में गुजार दी जब अपने पिताजी का सहारा बनने का वक्त आया तो सब छोड़कर बस अपने सपनो की तरफ चल दिए।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुड्डू तुमहू ना मतलबी हो गए हो यार मतलब सेल्फिश सिर्फ अपने बारे में सोचने लगे हो ,, पहिले पिंकिया और फिर जे नया काम,,,,,,,,,,,,,,,,नए काम में मन नहीं लग रहा लेकिन करना है क्योकि अपने पिताजी के शोरूम पर काम नहीं करना तुमको,,,,,,,,,,,,,,,,,अपनी पहचान बनानी है , पर शायद तुमहू भूल रहे हो गुड्डू की एक बेटे की पहचान ना सिर्फ उसके पिता के नाम से होती है,,,,,,,,,,,,याद है बचपन में कैसे मोहल्ले के लौंडो को जे कहकर हौंकाया करते थे की “हमाये पिताजी को जानते हो ना , मिश्रा जी” आज उन्ही मिश्रा जी से बात किये कितने दिन बीत गए है , उनकी डांट सुने कितना वक्त गुजर गया अंदाजा भी है तुमको ,,,,,,,,,,,,,,,जे पिताजी लोग भी ना बहुते मासूम होते है गुड्डू , पहिले तुमको समझायेंगे , बहुत समझायेंगे और अगर फिर भी नहीं समझे तो खामोश हो जायेंगे , बोलना छोड़ देंगे इसलिए नहीं की नाराज रहते है हमसे,,,,,,,,,,,,,,बल्कि इसलिए की थक चुके होते है वो हमे समझाते समझाते,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मानते है जवानी है गर्म खून है कुछ करने का जज्बा है और हमे लगता है की पिताजी जो कह रहे है हमाये खिलाफ है लेकिन कही ना कही उह सही भी रहता है,,,,,,,,,,,,,,,,,काहे ? क्योकि उस दौर से वे लोग गुजर चुके होते है। हमाये पिताजी हर बात पर सही थे जे बात हमे तब समझ आती है जब हम पिता बनते है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,साला आज हमाये होते हमाये पिताजी को अकेले बेबस बैठे देखा,,,,,,,फर्ज तो जे बनता था की जाकर बैठते उनके कदमो में और कहते की बस आज से आपकी सारी जिम्मेदारियां हमहू सम्हालेगे,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
ये सब कहते कहते गुड्डू की आँखे नम हो गयी उसकी आँखों की नमी बता रही थी की वह मिश्रा जी से कितना प्यार करता था। गुड्डू अच्छा लड़का था कुछ मामलो में समझदार भी था बस उसने कभी अपने पिता की बातो को दोस्त की तरफ नहीं समझा , और दोस्तों की बातो को पिता की तरह समझकर कर्म करता रहा जो की कांड में बदल जाते थे। उसका मन साफ था , मासूम था लेकिन मेच्योर नहीं था। आज मिश्रा जी को इस हालत में देखकर उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था बल्कि उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था।
काफी देर तक गुड्डू इस द्वंद्व में फंसा रहा और फिर आकर बिस्तर पर लेट गया।!

सुबह गुड्डू जल्दी उठ गया , ये शायद उसकी जिंदगी का पहला दिन था जब वह सुबह जल्दी उठा हो। उठते ही वह सीधा बाथरूम में गया नहाया और कबर्ड खोला हाथ सीधा स्क्रेच्ड जींस पर गया लेकिन गुड्डू ने खुद को रोक लिया और साइड में पड़ी फॉर्मल पेंट शर्ट उठाये जो उसकी शादी के वक्त बने थे। गुड्डू ने उन्हें पहना और शीशे के सामने चला आया। गुड्डू ने खुद को देखा उन कपड़ो में उसकी पर्सनालिटी बिल्कुल ही चेंज हो चुकी थी। गुड्डू ने बाजु के बटन बंद किये। गले में पहनी माला , हाथ में पहना ब्रासलेट , हाथ की स्टाइलिश घडी सब ड्रावर में रख दी। उसने पास ही रखा एक झोला उठाया और उसमे ड्रेसिंग पर रखे सारे परफ्यूम्स , जेल , डियो , क्रीम , फेशवॉश सब उस झोले में डाल दिया। पहली बार उसने वहा रखा बादाम तेल का बोतल उठाया और जरा सा तेल लेकर अपने बालो में लगाया और कंघी से सीधे बाल बनाये। गुड्डू ने महंगे जूतों के बजाय अच्छी मजबूत सेंडल पहनी जो पिछले साल मिश्रा जी उसके लिए लखनऊ से लेकर आये थे। गुड्डू ने शीशे में खुद को देखा और मुस्कुराया आज पहली बार वो अपनी पर्सनालिटी छोड़कर अपने कमरे से बाहर जा रहा था। उसने अपना फोन जेब में रखा और नीचे चला आया। नीचे आकर उसने हाथ धोये , कलश में पानी लिया और घर के तुलसी के पौधे में डालकर सूर्य आराधना करने लगा। मिश्राइन अपने कमरे से बाहर आयी जब उन्होंने गुड्डू को तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाते देखा तो उनका मुंह खुला का खुला रह गया और आँखे हैरत से फ़टी रह गयी। गुड्डू जिस से इन सब कामो की उम्मीद करना भी बेकार था आज बिल्कुल मिश्रा जी की तरह लग रहा था। तुलसी पर जल चढ़ाकर गुड्डू मिश्राइन के पास आया और कहा,”अम्मा हिया काहे खड़ी हो ?”
मिश्राइन ने अपने हाथ की चार उंगलिया गुड्डू के सर से लगाकर कहा,”ए गुडुआ तुम्हायी तबियत थी ठीक है ना बिटवा ? अभी जो तुमहू कर रहे थे उह सच में था या हमहू कोई सपना देख रहे थे ?”
“अम्मा तुमहू कोई सपना नहीं देख रही हो , अच्छा सुनो हमे ना जल्दी निकलना है नाश्ता बना दोगी हमाये लिए”,गुड्डू ने कुर्सी खिसकाकर बैठते हुए कहा।
“हाँ हाँ अभी अभी बना देते है”,मिश्राइन को जैसे अभी भी गुड्डू पर यकीन नहीं हो रहा था उन्होंने हैरतभरे स्वर में कहा और जाने लगी
“अच्छा अम्मा पिताजी उठ गए ?”,गुड्डू ने पूछा
“नहीं रात में देर से आये रहय तो अभी सो रहे है”,मिश्राइन ने कहा
मिश्राइन किचन में चली आयी और गुड्डू के लिए चाय नाश्ता बनाने लगी। शगुन उठी और कबर्ड से कपडे लेकर नहाने के लिए चली गयी वापस आयी तो उसे डायनिंग के पास एक कुर्सी पर बैठा कोई दिखा जो की कुछ कुछ गुड्डू जैसा ही था। अपने गीले बालो को तौलिये में लपेटकर शगुन उस तरफ आयी जैसे ही गुड्डू ने शगुन को देखा उस से नजरे चुराते हुए उठकर दूसरी तरफ जाने लगा और इस चक्कर में सोफे से टकरा गया। गुड्डू वापस पलटा तो सामने शगुन खड़ी थी गुड्डू का नया रूप देखकर तो शगुन भी हैरान थी। हमेशा बन ठन रहने वाला गुड्डू एकदम से इतना सीधा साधा कैसे बन गया वह समझ नहीं पा रही थी। गुड्डू शगुन के सामने खड़ा उस से नजरे चुराने की कोशिश कर रहा था , शगुन को देखते ही उसे रात वाला किस जो याद आ गया था। शगुन ने अपने दोनों हाथो को आपस में बांधा और घूरते हुए एकटक गुड्डू को देखने लगी। बेचारा मरता क्या न करता उसने शगुन को देखा और हकलाते हुए कहा,”गु गु गुड़ मॉर्निंग”
“गुड़ मॉर्निंग , आज सुबह सुबह आप इस लुक में सब ठीक है ना ?”,शगुन ने शालीनता से पूछा। उसे देखकर लग ही नहीं रहा था की उसे रात वाले किस से कुछ फर्क भी पड़ा है। गुड्डू ने देखा मिश्राइन नाश्ता लेकर आ रही है तो वह शगुन के साइड से होते हुए आकर वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया। मिश्राइन के सामने शगुन गुड्डू से भला क्या ही पूछती इसलिए चुपचाप अपने कमरे में चली गयी लेकिन अंदर ही अंदर उसे आज ये गुड्डू का नया रूप परेशान कर रहा था। गुड्डू ने जल्दी जल्दी नाश्ता किया ताकि शगुन से दोबारा सामना ना हो। नाश्ता करके गुड्डू उठा और मिश्राइन से कहा,”अम्मा हम शोरूम जा रहे है , पिताजी हमारे बारे में कुछो पूछे तो कहना हम वहा है”
कहकर गुड्डू वहा से निकल गया।

मिश्राइन के लिए ये दुसरा झटका था जो गुड्डू शोरूम के नाम से भी चिढ जाता था आज वह खुद शोरूम जा रहा था। मिश्राइन अपने सर को हाथ लगाकर वही डायनिंग के पास पड़ी कुर्सी पर आ बैठी। मिश्रा जी उठे देखा आज उठने में देर हो गयी है। वे बाहर आये और लोटे में पानी लेकर कुल्ला करने लगे। मिश्राइन अभी भी सर से हाथ लगाए बैठी थी मिश्रा जी ने देखा तो लोटे को रखा और मिश्राइन की तरफ आकर कहा,”का बात है मिश्राइन सर में दर्द है का ? ऐसे काहे बैठी हो ?”
“ए जी हमाये गुड्डू को पता नहीं का हो गया है ?”,मिश्राइन बड़बड़ाई
“का हो गया गुड्डू को ,जैसी उनकी हरकते है उस हिसाब से तो तुमहू सबको कुछ होना चाहिए,,,,,,,,,,,,,फिर भी बताओ का हुआ ?”,मिश्रा जी ने बैठते हुए कहा। शगुन तब तक चाय ले आयी और मिश्रा जी के सामने रख दी। मिश्रा जी ने शगुन को देखा और मुस्कुरा कर कहा,”जीती रहो बिटिया ,, हाँ तो मिश्राइन तुमहू कुछो कह रही थी गुड्डू के बारे में , का हुआ उसे उह ठीक तो है ना ?”
मिश्राइन ने सारी बाते मिश्रा जी को बता दी तो मिश्रा जी ने कहा,जरूर “जरूर फिर से कोनो गलती किये रहय होंगे , रही शोरूम वाली बात तो जे तो वही जाकर पता करना होगा”
मिश्रा जी बाते सुनकर शगुन मन ही मन गुड्डू के लिए दुआ करने लगी की अब गुड्डू फिर से किसी मुसीबत में ना पड़े।

चाय पीने के बाद मिश्रा जी नहाने चले गए। मिश्राइन शगुन के साथ मिलकर सबके लिए बनाने लगी। शगुन और मिश्राइन दोनों के मन में गुड्डू ही चल रहा था दोनों ने साथ एक दूसरे की तरफ पलटकर कहा,” माँ जी ,,,,,,,,,,,,,,,शगुन”
“का तुम भी वही सोच रही हो जो हम सोच रहे है ?”,मिश्राइन ने शगुन से कहा
“गुड्डू जी आज कुछ बदले बदले नजर आ रहे है मुझे तो डर है कही पापा जी वाली बात सही साबित ना हो जाये”,शगुन ने कहा
“हमे भी जे ही डर सता रहो है , अब कौनसी नयी समस्या आने वाली है।”,मिश्राइन ने कहा
“आप परेशान मत होईये,,,,,,,,,,,,वैसे भी गुड्डू जी एक मुसीबत से निकलते है तो दूसरी में जा फंसते है ,, मैं गोलू जी से बात करती हूँ हो सकता है बरेली में कुछ हुआ हो”,शगुन ने कहा
“हाँ गोलुआ को सब पता रहता है तुमहू जाके उस से बात करो”,मिश्राइन ने कहा तो शगुन ने अपना फोन उठाया और किचन से बाहर आते हुए गोलू का नंबर डॉयल किया कुछ देर बाद गोलू ने फोन उठाया तो शगुन ने कहा,”हेलो गोलू जी सॉरी वो इतनी सुबह में आपको फोन किया,,,,,,,,,,,,,,,!!”
“अरे कोई बात ना है भाभी सबसे पहिले तो हमे इह बताओ , कइसे लगे झुमके गुड्डू भैया ने अपने हाथ से पहनाये के नहीं ?”,गोलू ने कहा
“झुमके ? कौनसे झुमके गोलू जी ?”,शगुन ने हैरानी से कहा
“ल्यो गुड्डू भैया ने बताया नहीं आपको , अरे बरेली से तो लिए थे आपके और वेदी के लिए ,, उन्हें खरीदने के बाद इतने खुश थे ना की हमे लगा जाकर सीधा अपने हाथो से पहना देंगे आपको”,गोलू ने कहा
“गोलू जी ये सब छोड़िये और मुझे ये बताईये बरेली वाला काम कैसा रहा ? मेरा मतलब किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं हुयी ना आपको वहा ?”,शगुन ने कहा
“अरे भाभी पूछो मत इस बार तो गुड्डू भैया ने कमाल ही कर दिया , अकेले ही सब सम्हाल लिया। होशियार हो गए है गुड्डू भैया और जे सब ना आपके प्यार का कमाल है”,गोलू ने गुड्डू की तारीफ करते हुए कहा
गोलू की बातें सुनकर शगुन समझ गयी की गुड्डू के बदलने के पीछे कोई और वजह है। उसने गोलू से कहा,”ठीक है गोलू जी मैं आपसे बाद में बात करती हूँ”,शगुन ने कहा
“ठीक है भाभी रखते है और हाँ गुड्डू भैया से झुमके लेना मत भूलना”,कहते हुए गोलू ने फोन काट दिया
शगुन ने फोन अपने होंठो से लगाया और सोचते हुए मन ही मन खुद से कहने लगी,”अगर बरेली में सब ठीक है तो फिर ऐसी क्या वजह है जिस वजह से गुड्डू जी में ये बदलाव”
“का बात बिटिया हिया काहे खड़ी हो ?”,मिश्रा जी ने शगुन को सोच में डूबा देख वहा से गुजरते हुए कहा
“क कुछ नहीं पापाजी वो बस घर से फोन था”,शगुन ने कहा
“सब ठीक है बनारस में ?”,मिश्रा जी ने कहा
“हाँ सब ठीक है”,कहकर शगुन वहा से चली गयी

नाश्ता करके मिश्रा जी घर से जाने लगे। जैसे ही स्कूटी स्टार्ट की नजर गुड्डू की बाइक पर चली गयी जो की वही खड़ी थी। आज मिश्रा जी भी हैरान थे , अपनी बाइक के बिना बाहर ना जाने वाला गुड्डू आज बाइक घर पर छोड़कर गया है। मिश्रा वहा से शोरूम के लिए निकल गए। मिश्रा जी शोरूम आये तो देखा गुड्डू बाकी लड़को के साथ कपड़ो के बड़े बड़े कार्टून्स उठा रहा था। मिश्रा जी ने कुछ नहीं कहा बस कुछ देर खड़े होकर गुड्डू को देखते रहे और फिर अपने ऑफिस में चले आये। उन्होंने पूजा पाठ किया और अपने मैनेजर को बुलाया। कुछ देर बाद मैनेजर आया तो मिश्रा जी ने कहा,”तिवारी जी उह बृजमोहन जी वाले आर्डर की तैयारी करो आज शाम से पहले भिजवाना है”
“मालिक गुड्डू बाबू ने पैक करवा कर सुबह ही भिजवा दिया था”,तिवारी जी ने कहा
मिश्रा जी ने सूना तो थोड़ी हैरानी हुई लेकिन उसे अपने चेहरे पर नहीं आने दिया और कहा,”ठीक है कल शाम लखनऊ से जो नया माल आया था उसकी लिस्ट बनाकर दे दीजिये”
“ये भी गुड्डू बाबू ने कर दिया है मालिक”,तिवारी जी ने कहा
“ठीक है आप जाईये”,मिश्रा जी ने कहा तो तिवारी जी वहा से चले गए। मिश्रा जी केबिन के शीशे की तरफ आये और बाहर काम करते गुड्डू को देखा आज पहली बार उन्हें गुड्डू में एक जिम्मेदार लड़का नजर आ रहा था।

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