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मनमर्जियाँ – S24

Manmarjiyan – S24

Manmarjiyan S2 - 24

मनमर्जियाँ – S24

शगुन प्रीति और गोलू तीनो घाट किनारे पहुंचे। शाम का वक्त था और आरती होने वाली थी। गोलू शगुन और प्रीति वहा आकर खड़े हो गए। तीनो ने हाथ जोड़े और आँखे बंद करके महादेव से प्रार्थना करने लगे। गोलू मन ही मन कहने लगा,”हे महादेव ! हमने सूना है तुम्हायी नगरी में जो भी आता है और सच्चे दिल से कुछो माँगे तो उसे मिल जाता है , हमे ना जियादा कुछो नाही चाहिए बस हमाये गुड्डू भैया की यादास्त वापस ले आओ। उह भाभी को पहिचान ले और उनसे अपने प्यार का इजहार कर दे बस इतना काफी होगा हमाये लिए”
पास ही कड़ी शगुन भी हाथ जोड़े आँखे मूंदे महादेव् से प्रार्थना कर रही थी,”आज तक जो माँगा वो सब दिया आपने आज फिर आपसे कुछ मांगने आये है। गुड्डू जी को बहुत चाहती हूँ मैं बस उन्हें हमारी शादी याद आ जाये , वो पहले जैसे हो जाये। इस से ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए मुझे”
शगुन से एक सीढ़ी ऊपर खड़ी प्रीति आँखे मूंदे कहने लगी,”मेरी दी आपको बहुत मानती है महादेव , इस वक्त उनकी जिंदगी में बहुत परेशानिया है उन सब परेशानियों को दूर कर दीजिये ना महादेव , और हां मेरे गुड्डू जीजू भी बहुत अच्छे है उन्हें ठीक कर दीजिये मैं वादा करती हूँ वो पक्का बनारस आकर आपका शुक्रिया अदा करेंगे बस एक,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
प्रीति आगे कुछ कहती इस से पहले ही किसी ने उसकी बांह पकड़ी और उसे वहा से ले गया। प्रीति ने देखा वो कोई और नहीं बल्कि रोहन ही था प्रीति ने अपना हाथ झटककर कहा,”क्या है ये सब ?”
“ये तुम मुझे बताओ की क्या है ये सब ? किस बात पर इतनी गुस्सा हो ? ऐसा मैंने क्या कर दिया प्रीति जो तुम ऐसे बिहेव कर रही हो ?”,रोहन ने सवालो की झड़ी लगा दी। प्रीति ने गुस्से से उसे देखा और अपने हाथो को आपस में समेटते हुए कहा,”रियली रोहन तुम्हे बिल्कुल नहीं पता मेरे इस बिहेव के बारे में ?”
“यार मैं कैसे समझाउ तुम्हे की उस दिन वो सब मजाक कर रहे थे मेरी ऐसी कोई इंटेंशन नहीं है”,रोहन ने कहा
“तुम्हारी कोई भी इंटेंशन हो रोहन तुम मुझसे दूर रहो और मेरे पापा से भी”,प्रीति ने गुस्से से कहा और वहा से चली गयी। रोहन चाहकर भी प्रीति से कुछ कह नहीं पाया और फिर उदास होकर वहा से चला गया। प्रीति वापस आकर शगुन की बगल में खड़ी हो गयी। आरती के बाद तीनो वापस घर चले आये। शगुन ने खाना बनाना चाहा तो प्रीति ने कहा,”दी आप आराम कीजिये ना मैं बना लेती हूँ”
शगुन आकर आँगन में अपने पापा के पास बैठ गयी और उनसे बात करने लगी। गुप्ता जी के घर के आँगन से विनोद के घर की छत साफ नजर आती थी। अपने पापा से बात करते हुए शगुन की नजर सामने छत पर खड़े विनोद चाचा पर चली गयी जो की उसे ही देख रहे थे। विनोद की आँखों में बेबसी और दुःख साफ नजर आ रहा था लेकिन ना उन्होंने कुछ कहा और ना ही शगुन ने , उनसे ध्यान हटाकर शगुन फिर अपने पापा से बात करने लगी। प्रीति किचन में खाना बना रही थी , गोलू फ़ोन पर किसी से बात कर रहा था। कुछ देर बाद रोहन उधर से गुजरा तो शगुन ने कहा,”अरे रोहन , कैसे हो ?”
“मैं ठीक हूँ दीदी आप कब आयी ?”,रोहन ने पूछा
“आज सुबह ही , जॉब कैसा चल रहा है तुम्हारा ?”,शगुन ने पूछा
“ठीक चल रहा है दीदी , मैं आता हूँ”,कहकर रोहन वहा से चला गया। प्रीति ने खाना तैयार कर दिया था सभी साथ बैठकर खाने लगे। गुप्ता जी ने देखा रोहन बाहर जा रहा है तो उस से पूछा,”अरे रोहन इस वक्त कहा जा रहे हो ?”
“आज टिफिन नहीं आया तो सोचा बाहर जाकर खा लू”,रोहन ने कहा
“बाहर क्यों हमारे साथ आकर खाओ”,गुप्ता जी ने कहा तो रोहन प्रीति की और देखने लगा जिसके चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था। रोहन को चुप देखकर गोलू बोल पड़ा,”अरे यार इता का सोच रहे हो चले आओ , वैसे भी आज खाना हमायी भाभी की बहिन ने बनाया है,,,,,,,,,,,,,,आओ आओ”
“रोहन आ जाओ”,गुप्ता जी ने कहा
गुप्ता जी की बात सुनकर रोहन आकर उनके साथ बैठ गया। शगुन ने उसके लिए भी प्लेट में खाना परोस दिया। प्रीति शगुन और अपने पापा के सामने कोई बखेड़ा नहीं चाहती थी इसलिए इस वक्त रोहन को कुछ नहीं कहा। सभी बातें करते हुए खाना खाने लगे।

कानपूर , उत्तर-प्रदेश
शगुन के जाने के बाद से ही गुड्डू उसकी कमी महसूस कर रहा था। वह दिनभर शगुन को परेशान करता था और शगुन उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानती थी। बीती रात जो कुछ हुआ उसे लेकर गुड्डू थोड़ा परेशान था लेकिन वेदी ने झूठ बोलकर गुड्डू की परेशानी को और बढ़ा दिया था। गुड्डू को
लगने लगा था की शगुन उसकी वजह से घर से चली गयी है। बेचारा दिनभर इसी सोच में गुम मायूस सा बैठा रहा। शाम में मिश्रा जी शोरूम से घर आये तो गुड्डू का उतरा हुआ चेहरा देखकर कहा,”का बात है गुड्डू इतना बुझे बुझे काहे हो ?”
“पिताजी को सच बताया तो हमायी ही सुताई हो जाएगी , इस से अच्छा झूठ बोल देते है”,गुड्डू ने मन ही मन कहा
“का हुआ बोलोगे कुछ ?”,मिश्रा जी ने कहा
“का बोले ? मतलब जबसे एक्सीडेंट हुआ है घर से बाहर नहीं गए है। बस दिनभर घर में रहो , कुछो करने को है ही नहीं हमाये पास ,, ऊपर से गोलू भी पता नहीं कहा गायब रहता है। हमहू थक गए है घर में रहकर हमे बाहर जाना है खुली हवा में , लेकिन जायेंगे कैसे ?”,गुड्डू ने बच्चो की तरह कहा
“ओह्ह हमे लगा पता नहीं कौनसी बात हो गयी जिस से तुम्हारी शक्ल उतरी है”,कहते हुए मिश्रा जी अंदर चले गए
“देखा किसी को फर्क नहीं पड़ता हमने इता कुछ कहा लेकिन पिताजी बाते बनाकर चले गए , हमायी तो किस्मत ही ख़राब है ऊपर से गोलू भी गायब है”,गुड्डू ने कहा और बैठकर अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में सोचने लगा जिसमे वह कितना खुश था। जहा मर्जी वहा घूमता था , अपनी पसंद के कपडे , खाना पीना सब कितना अच्छा था लेकिन अब गुड्डू दिनभर घर में ही पड़ा रहता है। कमरे से हॉल , हॉल से बरामदा और बरामदे से फिर कमरा। हाथ में फ्रेक्चर है और अभी डॉक्टर ने ज्यादा घूमने फिरने से भी मना किया है इसलिए गुड्डू बाहर भी नहीं जाता था। गुड्डू वही बैठा ख्यालो में डूबा रहा तभी उसके कानो में मिश्रा जी की आवाज पड़ी,”चलो उठो”
गुड्डू ने देखा मिश्रा जी ने कपडे नहीं बदले है और गुड्डू के सामने खड़े है तो गुड्डू ने उठते हुए कहा,”जी पिताजी”
“चलो , बाहर की सैर करवाकर लाते है तुम्हे”,मिश्रा जी ने कहा तो गुड्डू तो बेहोश होते होते बचा। , आज से पहले शायद ही मिश्रा जी ने ऐसा कुछ कहा होगा। गुड्डू की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा उसने खुश होकर कहा,”का सच में ? मतलब जे आप बोल रहे है ?”
“नहीं हमाओ भूत बोल रहो है , अये यार मतलब निपट बैल हो गुड्डू तुम , तुम्हाये सामने खड़े है तो हम ही कहेंगे ना ,, चलो अब जियादा बख्त बर्बाद ना करो और चलो”,कहते हुए मिश्रा जी चलने लगे फिर अचानक से रुके और वेदी को आवाज लगाई,”वेदी , वेदी बिटिया”
“जी पिताजी”,वेदी ने आकर कहा
“जरा गुड्डू की फटफटिया की चाबी लाना”,मिश्रा जी ने कहा
ये गुड्डू को दुसरा झटका लगा था। मिश्रा जी गुड्डू की बुलेट चलाएंगे सोचकर ही गुड्डू तो हैरान था उसने कहा,”पिताजी आप बुलेट चलाएंगे ?”
“हम काहे नहीं चला सकते ? तुमहू चाबी मंगवाओ”,मिश्रा जी ने कहा। वेदी चाबी ले आयी और लाकर मिश्रा जी को दे दी। मिश्रा जी ने चाबी लगाई और पहली ही किक में बाइक स्टार्ट करके गुड्डू से कहा,”आओ बइठो”
गुड्डू तो मिश्रा जी से खासा इम्प्रेस हो गया और आकर उनके पीछे बैठते हुए कहा,”अरे वाह पिताजी मतलब कमाल है पहली ही किक में बाइक स्टार्ट कर दी आपने” कहते हुए गुड्डू ने अपना हाथ मिश्रा जी के कंधे पर दे मारा जैसे हमेशा वह अपने दोस्तों के साथ करता है
“बेटा बाप है तुम्हारे हमाये साथ ना जियादा फ्रेंक होने की जरूरत नहीं है , पीछे खिसक के बइठो”,मिश्रा जी ने कहा और बाइक आगे बढ़ा दी। गुड्डू ने सूना तो थोड़ा पीछे खिसक के बैठ गया लेकिन जैसा की हमेशा होता था मिश्रा जी की डांट का उस पर कोई असर नहीं पड़ा। जैसे ही बाइक घर से बाहर निकलकर गली से गुजरी गुड्डू आँखों में ख़ुशी भरे चारो और देखने लगा। कितने दिनों बाद वह अपनी बाइक पर ऐसे निकला था। शाम का वक्त , ठंडी हवाएं , सुहावना मौसम और उस पर बाइक का सफर गुड्डू को और क्या चाहिए था ? मिश्रा जी बहुत ही अच्छे से बाइक चला रहे थे। कुछ लोग उन्हें देखकर हैरान भी थे क्योकि आज से पहले मिश्रा जी या तो अपनी स्कूटी पर दिखे है या फिर अपनी गाड़ी में। आज पहली बार वे कानपूर की सड़को पर गुडडू की बुलेट लेकर घूम रहे थे। घंटेभरे में मिश्रा जी कानपूर की सड़को पर गुड्डू को घुमाते रहे। हल्का अँधेरा होने लगा था , सूरज अपनी रौशनी लिए ढलने को बेताब था।
“कुछ खाओगे ?”,मिश्रा जी ने पूछा
आज तो गुड्डू की किस्मत जैसे उस पर बाँहे फैलाकर मेहरबान थी उसने खुश होकर कहा,”जे के मंदिर के पास जो मुरली पावभाजी वाला है उसके पास पावभाजी खाएंगे”
“हम्म ठीक है , तुम्हायी अम्मा को फ़ोन करके कह दो की खाना ना बनाये”,मिश्रा जी ने कहा
“फोन कहा है हमारे पास ?”,गुड्डू ने उदास होकर कहा
“अच्छा लो हमाये फोन से कर दो”,मिश्रा जी ने जेब से अपना फोन निकालकर गुड्डू की तरफ बढ़ाते हुए कहा। गुड्डू ने घर का नंबर डॉयल किया और मिश्राइन से कह दिया की आज रात का खाना ना बनाये। गुड्डू ने फोन वापस मिश्रा जी की और बढ़ा दिया और फिर दोनों जेके मंदिर के लिए निकल गए। वहा पहुंचकर मिश्रा जी ने बाइक साइड में लगाते हुए कहा,”पहिले चलकर मंदिर में दर्शन करेंगे फिर कुछ खाएंगे”
“जी पिताजी”,गुड्डू ने कहा और ख़ुशी ख़ुशी मिश्रा जी के साथ चल पड़ा। बाहर आने की ख़ुशी इतनी ज्यादा थी की गुड्डू को दर्द का अहसास भी नहीं हुआ। मिश्रा जी उसे लेकर मंदिर आये दोनों भगवान के सामने खड़े हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करने लगे।
मिश्रा जी ने आँखे मूंदे हुए मन ही मन बुदबुदाना शुरू किया,”हे ईश्वर बस यही प्रार्थना है की गुड्डू के जीवन में अब कोई परेशानी ना आये , गुड्डू मन का बुरा नहीं है बस कभी कभी कुछो गलतिया हो जाती है इस से , इसकी गलतियों को नजरअंदाज करके अपनी कृपा इस पर बनाये रखना भगवान।”
कुछ ही दूर खड़ा गुड्डू मन ही मन कह रहा था,”आज हम बहुते खुश है हमाये पिताजी हमाये साथ घूम रहे है हमाये लिए तो जे सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है ,, हमाये पिताजी ना 100 साल जिए और उन्हें ना दुनिया की सारी खुशिया मिले बस जे चाहिए हमे”
मिश्रा जी गुड्डू के पास आये और कहा,”तुमहू चलो हम पंडित जी से मिलकर आते है”
गुड्डू वहा से बाहर चला आया चलते हुए गुड्डू की नजर मंदिर के पीछे वाली सीढ़ियों पर पड़ी जहा एक लड़का लड़की बैठे थे। गुड्डू के कदम ना चाहते हुए भी उस तरफ बढ़ गए। जैसे जैसे वह उनकी तरफ जा रहा था उसकी आँखों के सामने कुछ धुंधली तस्वीरें आने लगी। उसके दिमाग में एक पुरानी याद जैसा कुछ चलने लगा , गुड्डू देख पा रहा था की वह भी ऐसे ही इसी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा है और बगल में एक लड़की जिसका चेहरा साफ नजर नहीं आ रहा। गुड्डू के सर में हल्का हल्का दर्द होने लगा , उसने अपना सर झटका तो सारे ख्याल हवा हो गए गुड्डू उस लड़की के पास आया। उसे महसूस हो रहा था जैसे ये सब पहले भी घट चुका है , वो पहले भी यहाँ बैठ चूका है। गुड्डू ने दिमाग पर जोर डाला लेकिन उसे कुछ याद नहीं आ रहा था
“ओह्ह भाई कौन हो तुम ? और यहाँ का कर रहे हो ?”,लड़के ने कहा जो की लड़की के साथ बैठा था। गुड्डू को होश आया उसने दूर होकर कहा,”माफ़ करना भैया उह हमे लगा की हम इन्हे जानते है,,,,,,,,,,,,,,,,,,माफ़ करना बहन”
कहकर गुड्डू वहा से चला आया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की आखिर क्यों उसके साथ ये सब हो रहा था ? गुड्डू बाहर आया तो देखा मिश्रा जी मुरली के पास ही खड़े है। गुड्डू को देखते ही उन्होंने कहा,”अरे गुड्डू कहा रह गए थे तुम ? चलो आओ”
गुड्डू सोच में डूबा मिश्रा जी के पास चला आया। मुरली ने दो प्लेट पावभाजी लगाकर दी , मिश्रा जी प्लेट लेकर गुड्डू की ओर आये और कहा,”लो खाओ”
“पिताजी वहा बैठे”,गुड्डू ने पास ही दिवार की और इशारा करके कहा जहा गुड्डू और गोलू बैठकर खाते थे। मिश्रा जी ने देखा तो कहा,”वहा दिवार पर ?”
“हां आईये ना”,गुड्डू ने दिवार की और बढ़ते हुए कहा तो मिश्रा जी को भी उसके साथ चले आये। गुड्डू तो झट से दिवार पर बैठ गया लेकिन मिश्रा जी कैसे बैठे ? गुड्डू ने देखा तो उनके हाथ से प्लेट लेकर साइड में रख कर अपना हाथ उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा,”पिताजी आ जाईये”
मिश्रा जी ने गुड्डू का हाथ थामा और दिवार पर बैठ गए। गुड्डू के साथ मिश्रा जी भी गुड्डू जैसे हो गए। दोनों वही बैठकर पाव भाजी खाने लगे , खाते खाते गुड्डू के गले में खाना उलझ गया तो वह खाँसने लगा। मिश्रा जी ने तुरंत अपनी प्लेट रखी और गुड्डू की पीठ थपथपाते हुए कहा,”अरे आराम से”
मिश्रा जी को परवाह करते देख गुड्डू को बहुत अच्छा लग रहा था। पावभाजी खाकर दोनों नीचे उतरे और पैसे चुकाकर बाइक की तरफ चले आये। गुड्डू का बहुत मन था की बाइक वह चलाये और मिश्रा जी पीछे बैठे लेकिन हाथ का प्लास्टर अभी खुला नहीं था। गुड्डू मिश्रा जी के पीछे आ बैठा। बाइक घर जाने वाले रस्ते पर चल पड़ी। गुड्डू के साथ घूमते हुए मिश्रा जी खुद अपनी जवानी के दिनों में चले गए और उसके बाद शुरू हुई उनके और गुड्डू के बीच बातें , आज से पहले शायद ही मिश्रा जी ने गुड्डू से इतनी बातें की हो। कभी दोनों साथ में हँसते तो कभी गुड्डू उनकी बात सुनकर हैरान होता। पहली बार उसे अहसास हुआ की उसके पिताजी इतने भी कठोर नहीं है जितना वह उन्हें समझता था। गुड्डू उनकी बाते बड़े ध्यान से सुन रहा था और फिर मिश्रा जी ने बताया की कैसे उन्होंने कानपूर में कॉलेज में पढाई की , कैसे वे दिनभर काम में व्यस्त रहते थे और भी बहुत सारी बाते जिनसे गुड्डू अनजान था।
आज का शाम गुड्डू की जिंदगी में बहुत ही खूबसूरत शाम थी जब मिश्रा जी के साथ उसे वक्त बिताने का मौका मिला था वरना बहुत कम लड़के होते है जो जवानी के दिनों में ऐसे अपने पिताओ के साथ घूम सके।
मिश्रा जी गुड्डू को लेकर घर पहुंचे , गुड्डू नीचे उतरा तो मिश्रा जी ने बाइक साइड में लगा दी और उतरकर गुड्डू से कहा,”खुश हो ?”
“बहुते ज्यादा खुश है , थैंक्यू पिताजी”,गुड्डू ने जैसे ही कहा मिश्रा जी मुस्कुराते हुए गुड्डू की ओर आये गुड्डू के मन में आस जगी उसे लगा मिश्रा जी आकर उसे गले लगाएंगे लेकिन मिश्रा जी ने आकर उसके गाल को थपथपाया और कहा,”चलो जाओ तुम्हायी अम्मा परेशान हो रही होगी तुम्हारे लिए”
कहकर मिश्रा जी अंदर चले गए , गुड्डू का ये ख्वाब ख्वाब ही रह गया लेकिन जाते जाते मिश्रा जी उसके होंठो पर मुस्कान छोड़ गए।

क्रमश – मनमर्जियाँ – S25

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संजना किरोड़ीवाल

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