मनमर्जियाँ – 89
Manmarjiyan – 89
मनमर्जियाँ – 89
मिश्रा जी के कहने पर गुड्डू को अचानक से जौनपुर के लिए निकलना था। शगुन उसके सामने खड़ी उसके शर्ट का टूटा हुआ बटन लगा रही थी , साथ ही साथ गुड्डू के दिल के तार भी शगुन से जुड़ने लगे थे। शगुन के इतना क़रीब आने की वजह से उसकी धड़कने तेज हो चुकी थी। वह दूसरी और देखने लगा , गुड्डू को पसीने आते देखकर शगुन ने पूछा,”क्या हुआ आप ठीक है ना ?”
“हम्म्म हां हां हम ठीक है , उह गर्मी ज्यादा है ना इसलिए”,गुड्डू ने रुमाल से माथे का पसीना पोछते हुए कहा
“लीजिये हो गया”,शगुन ने दूर हटते हुए कहा
“शुक्रिया”,गुड्डू ने जल्दी से बटन बंद करते हुए कहा
शगुन ने टेबल पर रखी चाय लाकर गुड्डू को दे दी , गुड्डू एक साँस में पी गया और कहा,”अच्छी बनी है , अब हम चलते है”
गुड्डू ने अपना पर्स और फोन उठाया और शगुन के साथ नीचे चला आया। गुड्डू को तैयार देखकर गुप्ता जी ने कहा,”बेटा आप कही जा रहे है ?”
“हां पापा उह पिताजी का फोन आया था , यही पास में जौनपुर में हमायी भुआजी है उन्ही से मिलने जाना है किसी काम से , सुबह तक लौट आएंगे”,गुड्डू ने कहा
“ठीक है बेटा ध्यान से जाईयेगा और अपना ख्याल रखियेगा”,गुप्ता जी ने कहा तो गुड्डू उनके पैर छूकर आगे बढ़ गया। जौनपुर बनारस से दो घंटे की दूरी पर ही था इसलिए गुड्डू ने गाड़ी से जाना ठीक समझा। उसने गाड़ी स्टार्ट की और घर के गेट के पास लाकर रोक दी जहा शगुन खड़ी थी। गुड्डू ने शीशा नीचे किया और शगुन की तरफ देखकर कहा,”जाये ?”
“हम्म्म !”,शगुन ने भी हाँ में गर्दन हिला दी पर उसे इस तरह गुड्डू का जाना ना जाने क्यों अच्छा नहीं लग रहा था। गुड्डू ने शगुन की उदासी को भांप लिया और कहा,”तुम्हाये कमरे की टेबल पर तुम्हाये लिए कुछो रखा है”
“क्या ?”,शगुन ने कहा
“खुद ही जाके देख ल्यो”,गुड्डू ने कहा तो शगुन दौड़ते हुए वापस अंदर गयी , सीढिया चढ़कर ऊपर अपने कमरे में आयी। शगुन हाँफ रही थी वह टेबल के पास आयी और देखा वहा एक छोटा सा बॉक्स रखा हुआ था। शगुन ने जल्दी से उसे उठाया और खोलकर देखा तो उसके होंठो पर मुस्कान और आँखों में चमक उभर आयी। उस बॉक्स में चाँदी की पायल रखी हुई थी जो आज मार्किट में शगुन को पंसद आयी थी लेकिन महंगी होने की वजह से शगुन ने ली नहीं। पर वह हैरान थी की ये बात गुड्डू को कैसे पता वह दौड़कर खिड़की के पास आयी और नीचे देखा गुड्डू की गाड़ी अभी भी वही खड़ी थी। गुड्डू की नजर शगुन पर पड़ी तो गुड्डू मुस्कुरा उठा और फिर गाड़ी लेकर वहा से निकल गया। शगुन वही खिड़की के पास खड़ी गुड्डू की गाड़ी को जाते हुए देखते रही। गाड़ी आँखो से ओझल हो चुकी थी लेकिन शगुन के होंठो की मुस्कान और चेहरे की चमक अभी तक बरकरार थी। ख़ुशी के मारे उसने पायलो को चुम लिया
“इन्हे चूमने से अच्छा था जीजू को,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”,शरारत से कहते हुए प्रीति रुक गयी
“बदमाश रुक तुझे अभी बताती हूँ”,कहकर शगुन पायलो को हाथ में लिए प्रीति के पीछे भागने लगी। आगे भागते हुए प्रीति ने कहा,”जब इतना ही प्यार है गुड्डू जीजू से तो कह क्यों नहीं देती ?”
“तू आजकल कुछ ज्यादा ही बोलने लगी है रुक अभी बताती हूँ तुझे मैं”,शगुन ने भी प्रीति के पीछे भागते हुए कहा। भागते हुए दोनों नीचे चली आयी लेकिन प्रीति तो प्रीति थी शगुन के हाथ कहा से आती। वह शगुन को चिढ़ाते हुए आगे निकल गयी। भागते हुए अचानक से शगुन सामने से आते लड़के से टकरा गयी। शगुन ने देखा वह लड़का कोई और नहीं बल्कि पारस ही था।
“अरे ध्यान से लग जाएगी तुम्हे”,पारस ने कहा
शगुन ने खुद को सम्हाला और हाँफते हुए कहा,”ये लड़की भी ना परेशान करने का एक मौका नहीं छोड़ती है , तुम यहाँ ?”
“हां वो इधर से गुजर रहा था तो तुम्हारे पापा ने बताया की तुम आयी हुई हो इसलिए मिलने चला आया , कैसी हो ?”,पारस ने शगुन को देखते हुए कहा
“मैं ठीक हूँ , क्या यही खड़े रहोगे आओ ना अंदर चलकर बैठो”,शगुन ने कहा और पारस का हाथ पकड़कर उसे हॉल में ले आयी। पारस की नजरे अपने हाथ पर चली गयी जिसे शगुन ने पकड़ा हुआ था। पारस को बैठने का कहकर शगुन उसके सामने पड़े सोफे पर बैठ गयी और कहा,”अब बताओ तुम कैसे हो ? और मेरी शादी में क्यों नहीं आये तुम ?”
शादी का नाम सुनते ही पारस थोड़ा असहज हो गया और फिर कहा,”वो मैं किसी जरुरी काम से दिल्ली चला गया था , सॉरी”
“हम्म्म्म चलो माफ़ किया , क्या लोगो चाय या कॉफी ?”,शगुन ने कहा
“अरे सर नमस्ते कैसे है ?”बाहर से प्रीति ने आते हुए कहा आखिर प्रीति भी तो उसी कॉलेज में पढ़ रही थी जिसमे पारस केशियर था।
“मैं ठीक हूँ , वो तुम्हारा एडमिशन हो गया उसमें ?”,पारस ने पूछा
“अरे आप कहो और कुछ ना हो ऐसा हो सकता है भला , अच्छा आप दोनों बातें कीजिये मैं कॉफी लेकर आती हूँ”,कहकर प्रीति वहा से चली गयी।
किसी का फोन आने से पारस वही बैठा फोन पर बात करने लगा। शगुन ने पारस को फोन पर बिजी देखा तो हाथ में पकड़ी पायल पैरो में पहनने लगी। दांये पैर वाली तो आसानी से पहनी गई लेकिन बाँये पैर वाले का हुक थोड़ा टाइट था। शगुन पहनने की कोशिश कर रही थी लेकिन नहीं पहना जा रहा था पारस ने देखा तो शगुन के पास आया और कहा,”लाओ मैं पहना देता हूँ”
“अरे नहीं पारस मैं पहन लुंगी”,शगुन ने कहा
“तुमसे नहीं पहनी जा रही इसलिए कह रहा हु लाओ मुझे दो”,कहते हुए पारस ने शगुन के हाथ से पायल ली और उसके पैर में पहनाते हुए कहा,”बहुत सुन्दर पायल है कहा से ली ?”
“गुड्डू जी ने ली है मेरे लिए”,शगुन ने ख़ुशी से कहा , ये सुनकर एक पल के लिए पारस के हाथ वही रुक गए उसने जल्दी से शगुन को वो पायल पहनाई और अपनी जगह बैठ गया। शगुन ने दोनों पैरो को एक साथ करके पारस से पूछा,”अच्छी है ना”
“तुम्हारे पैरो में है इसलिए अच्छी लग रही है”,पारस ने फीका सा मुस्कुराते हुए कहा
“पता है आज मार्किट में मुझे ये बहुत पसंद आयी थी लेकिन बहुत महंगी थी इसलिए मैंने इन्हे छोड़ दिया , पर वे ले आये,,,,,,,,,,तुम ना थोड़े से लेट हो गए वरना उनसे भी मिल लेते वो थोड़ी देर पहले ही जौनपुर के लिए निकले है”,शगुन ने कहा
“कोई बात नहीं मैं उनसे फिर कभी मिल लूंगा”,पारस ने कहा
प्रीति तब तक उन दोनों के लिए कॉफी ले आयी। दोनों को कॉफी देकर प्रीति चली गयी। शगुन ने पारस को कप दिया और दूसरा कप खुद उठाते हुए कहा,”अंकल आंटी कैसे है ? वे भी मेरी शादी में नहीं आये कम से कम उन्हें तो आना चाहिए था ना , लड़को में इकलौते दोस्त हो तुम मेरे फिर भी नहीं आये”
“इसके लिए तुम जो सजा दो मंजूर हैं”,पारस ने मजबूर होकर कहा
“ठीक है अब जब भी कभी तुम कानपूर आये तो घर जरूर आआगे”,शगुन ने कहा
“हम्म्म ठीक है”,पारस ने कहा
“अच्छा ये बताओ तुम कब शादी कर रहे हो ? अपनी शादी में तो बुलाओगे ना मुझे”,शगुन ने पूछा
शादी का नाम सुनते ही पारस के हाथ रुक गए उसने शगुन की और देखा और फिर धीरे से कहा,”अभी कुछ सोचा नहीं है”
“क्यों ? तुम भी ना पारस सच में पागल हो , शादी के लिए भला कौन सोचता है ? मैंने भी तो की ना और फिर यही सही उम्र है ,,,,,,,,,,,,,और तुम्हे तो कोई भी लड़की हाँ बोल देगी इतने अच्छे जो हो तुम”,शगुन ने मुस्कुराते हुए कहा
पारस के पास इन बातो का कोई जवाब नहीं था या शायद वह देना नहीं चाहता था उसने जल्दी जल्दी कॉफी खत्म की और उठते हुए कहा,”आई थिंक मुझे अब चलना चाहिए”
“हम्म्म्म !”,शगुन ने कहा
शगुन पारस को दरवाजे तक छोड़ने आयी चलते चलते पारस रुका और पलटकर शगुन से कहा,”वो तुम्हारी शादी में नहीं आ पाया था इसलिए तुम्हारे लिए कुछ लेकर आया था”
“दो ना”,शगुन ने कहा
पारस ने अपनी जेब से एक छोटा सा बॉक्स निकाला और शगुन की और बढ़ा दिया। शगुन ने उसे खोलकर देखा उसमे महादेव का छोटा सा लॉकेट था जो की बहुत कीमती दिखाई दे रहा था। शगुन ने उसे हाथ में लेकर देखा और कहा,”ये तो बहुत महंगा लगता है”
“रख लो तुम्हारे लिए है”,पारस ने कहा तो शगुन को रखना पड़ा। शगुन मुस्कुराते हुए उस लॉकेट को देख रही थी। पारस ने अचानक से कहा,”शगुन,,,,,,,,,,,!!!”
“हां”,शगुन ने पारस की और देखकर कहा
“तुम खुश हो ना ?”,पारस ने पूछा
“हां मैं बहुत खुश हूँ , गुड्डू जी बहुत अच्छे है पारस”,शगुन ने खुश होकर कहा तो पारस मुस्कुरा दिया और कहा,”अपना ख्याल रखना , चलता हूँ”
“बाय , अंकल आंटी से मिलने आउंगी जल्दी ही”,शगुन ने कहा
पारस वहा से चला गया। शगुन भी गेट बंद करके वापस अंदर आ गयी , शाम हो चुकी थी और आसमान अपनी लालिमा लिए बहुत ही प्यारा लग रहा था। शगुन ने पारस का दिया तोहफा सम्हालकर अलमारी में रख दिया। गुप्ता जी बाहर से लौट आये थे। शगुन के आने के बाद से चाची घर ही नहीं आयी थी और शगुन को भी इस बात का ध्यान नहीं रहा। खैर शगुन नीचे आयी जैसे ही खाने की तैयारी करने के लिए किचन की और जाने लगी अमन आया और शगुन से कहा,”शगुन दीदी”
“हां अमन”,शगुन ने अमन के पास आकर कहा
“चलो ना आज घाट की आरती देखने चलते है”,अमन ने कहा
“आज लेकिन आज तो तुम्हारे जीजाजी भी नहीं है , उनके बिना”,शगुन ने कहा
“दी चलो ना पहले भी तो जाते थे ना और जीजू कल आएंगे तब फिर से चलेंगे,,,,,,,,,,,,,,,,प्लीज दीदी चलो ना मेरा बहुत मन है”,अमन ने कहा तो शगुन पास ही खड़ी प्रीति की और देखने लगी तो प्रीति ने उसके पास आकर कहा,”ठीक ही तो कह रहा है अमन थोड़ा टाइम तो भाई बहनो के लिए भी होना चाहिए ना”
“हां दीदी प्लीज”,अमन ने कहा
अब अमन और प्रीति दोनों ठहरे शगुन से छोटे इसलिए उनकी बात भला शगुन कैसे टालती ? उसने कहा,”अच्छा ठीक है लेकिन पहले मैं सबके लिए खाना बना दू उसके बाद”
“अरे दी आप सिर्फ ताऊजी का खाना बना दो हम तीनो बाहर ही खाएंगे”,अमन ने कहा
“अच्छा बाबा ठीक है , तुम दोनों तैयार होकर आओ तब तक मैं पापा के लिए कुछ बना देती हूँ”,शगुन ने कहा
“येह थैंक्यू दी”,अमन ने खुश होकर कहा और चला गया प्रीति भी तैयार होने चली गयी। शगुन ने किचन का काम खत्म किया घड़ी की और देखा 7 बज रहे थे। उसने हाथ मुंह धोया और तैयार होकर नीचे आ गयी। प्रीति भी चली आयी , अमन बाहर खड़ा दोनों का इंतजार कर रहा था। तीनो पैदल ही दशाश्वमेद्य घाट की और चल पड़े। बनारस की शामे बहुत खूबसूरत होती है और ये नजारा ना पैदल चलते हुए देखा जा सकता है। चारो तरफ चमचमाती लाईटे , चेहरे पर ख़ुशी लिए घूमते लोग , धुप अगरबत्ती की खुशबु और पावन माहौल देखकर किसी भी इंसान का वही ठहरने को दिल करेगा। कितने दिनों बाद शगुन आरती के लिए जा रही थी लेकिन गुड्डू को बहुत मिस कर रही थी काश वो भी यहाँ होता और वह उसके साथ महादेव की आरती देख पाती। तीनो बातें करते हुए घाट पहुंचे हमेशा की तरह ही वहा भीड़ थी , साफ पानी जो की दियो और लाईटो की रौशनी में चमक रहा था , खुशबु से भरा माहौल , एक कतार में हाथो में पूजा के बड़े बड़े
दिए लिए लड़के खड़े थे। शगुन एक टक वह नजारा देख रही थी। अमन शगुन और प्रीति को लेकर सीढ़ियों पर चला आया तीनो एक जगह खड़े होकर महादेव की आरती देखने लगे। वो नजारा इतना खूबसूरत था की शगुन ने हाथ जोड़कर आँखे बंद करके मन ही मन महादेव से प्रार्थना की,”काश गुड्डू जी भी यहाँ होते तो कितना अच्छा होता”
“इता का मांग रही हो भगवान से ?”,गुड्डू की आवाज शगुन के कानो में पड़ी तो उसका दिल धड़क उठा
शगुन ने जल्दी से अपनी आँखे खोली और अपनी दांयी और देखा हाथ जोड़े सामने देखते हुए गुड्डू खड़ा था। शगुन को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ उसे लगा जैसे वो कोई सपना देख रही है उसने गुड्डू की और देखते हुए कहा,”आप आप सच में यहाँ है ?”
“नहीं हमाओ भूत है”,गुड्डू ने शगुन की और देखकर कहा
“है,,,,,,,,,,,,,,,,!!”,शगुन को अब भी सब सपने जैसा लग रहा था ये देखकर गुड्डू ने शगुन के गाल पर धीरे से चपत मारते हुए कहा,”अरे हमहि है गुड्डू मिश्रा”
“आप आप लेकिन आप तो जौनपुर गए थे ना”,शगुन को यकीन आ गया की गुड्डू ही उसके सामने खड़ा था
“हां गए तो थे भुआ जी से मिले और वापस चले आये”,गुड्डू ने कहा
“क्यों ?”,शगुन ने कहा
“मन ही नहीं लग रहा था वहा और फिर तुमहू भी तो नहीं थी ना वहा”,गुड्डू ने मासूमियत से शगुन से नजरे चुराते हुए कहा। शगुन बड़े प्यार से गुड्डू को देखने लगी पीछे खड़ी प्रीति ने देखा तो कहा,”दी सामने देखो आरती वहा हो रही है”
लेकिन शगुन तो अभी भी सपने में ही थी शायद महादेव उसकी इतनी जल्दी सुनेंगे उसने सोचा नहीं था। गुड्डू ने देखा तो शगुन के दोनों हाथो को पकड़कर जोड़ा और सामने देखने का इशारा किया। शगुन सामने देखने लगी गुड्डू ने भी सामने देखते हुए हाथ जोड़ लिए लेकिन शगुन की नजरे सामने से हटकर एक गुड्डू पर चली गयी , गुड्डू का चेहरा , उसकी चमकती आँखे , सुर्ख होठ और हवा में उड़ते बाल ,, शगुन अपलक बस गुड्डू को देखती रही , उसके कानो में उस वक्त महादेव की आरती गूंज रही थी और अपने गुड्डू में वह साक्षात् महादेव को ही देख रही थी।
क्रमश – मनमर्जियाँ – 90
Read More – manmarjiyan-88
Follow – facebook
Follow Me On – instagram
संजना किरोड़ीवाल
Kya baat hai ..bahut pyaara part…bas paras ke liye thoda bura lag raha hai …khair koi baat nhi
So much beautiful ❤️❤️❤️
Paras shagun ko psnd krta hh😐😐
Pyar … Pyar…. 😍😍😍😍😍😍😍
Bs ab dono ijhaar kr den….To aur pyar ho jayega….😘😘😘😘😘😘😘
Very nice shayad Banaras me aakar mahadev ki kripa se in dono ko apne pyar ka ahsaas ho jaye
Very beautiful
मैम शगुन को गुड्डू में महादेव नजर आ गये…तब तो मौका भी हैं दस्तूर भी हैं…और दशाश्वमेध घाट जो प्रसिद्ध घाट हैं बनारस का…फिर इजहार तो यहां बनता हैं मैम…बाद में बाबा विश्वनाथ का दर्शन भी करा देना😊 beautiful Part👌👌👌👌👌
Superb part
Bhut hi khoobsurat part tha
अब तो शगुन को गुड्डू से सच्चा प्यार हो गया है…क्योंकि अब शगुन को गुड्डू में महादेव जो नजर आने लगे है…”तुझमे रब दिखता है यारा मैं क्या करू…सजदे सिर झुकता है यारा मैं क्या करू…”ये गाना इस वक्त परफेक्ट है शगुन के लिए
Beautiful part….
Har har mahadev 🙏
Nice
Awesome part
Nice
👌👌👌👌👌
Bahut koobsurat tha e part… Hamesha ki tarak aap banaras ko aur bhi koobsurat bana diya aapki koobsurat lika hua shabdom se ..