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मनमर्जियाँ – 57

Manmarjiyan – 57

Manmarjiyan - 57

Manmarjiyan – 57

गुड्डू ने इस बार जो गलती की उसके बाद मिश्रा जी को अब गुड्डू की चिंता होने लगी थी। उन्हें लगने लगा की शायद शगुन और गुड्डू को एक दूसरे के लिए वक्त नहीं मिल पा रहा यही सोचकर उन्होंने सभी घरवालों के साथ वैष्णो देवी जाने का मन बनाया ताकि गुड्डू और शगुन घर में अकेले रहे और एक दूसरे को वक्त दे। वही शगुन धीरे धीरे गुड्डू को समझ रही थी उसे समझ आ रहा था की गुड्डू दिल का अच्छा है बस पिंकी की वजह से वह ऐसा हो गया है। गुड्डू गलत नहीं था शादी के बाद से ही वह पिंकी से दूर रहने की कोशिश कर रहा था लेकिन पिंकी बार बार उसे टॉर्चर कर रही थी , धमकिया दे रही थी और इस बार तो वह गुड्डू को ऐसी जगह ले गयी जहा जाकर गुड्डू अपनी ही नजरो में गिर गया। गुड्डू भले पिंकी से प्यार करता है लेकिन पिंकी के साथ कभी उसने अपनी हदें नहीं लांघी , लेकिन सबको (पाठको को भी) गुड्डू में कमी नजर आती है सिवाय शगुन के।
गुड्डू सुबह देर तक सोता रहा , शगुन नहाधोकर नीचे चली आयी थी और किचन में काम कर रही थी। मिश्रा जी ने मिश्राइन को पैकिंग करने के लिए बोल रखा था इसलिए वेदी और मिश्राइन उसमे लगी हुई थी। इस बार दादी को भी साथ ले जाने का प्लान था इसलिए उन्होंने कमरे से बाहर आकर मिश्रा जी के पास बैठते हुए कहा,”का रे आनदं इह अचानक से वैष्णो देवी जाने का कैसे सोच लिया ? अभी सादी में इतना सब खर्चा तो हुआ ही है फिर इतनी जल्दी घूमने का सोच रहे”
“अरे अम्मा सादी में सब अच्छे से निपट गवा इहलीये तो जा रहे है माता रानी को धन्यवाद कहने , फिर सोचा तुमहू भी साथ ले चलते है कही बाहर आती जाती नहीं हो अच्छा लगेगा”,मिश्रा जी ने कहा
“इह तो सही कहा तुमने वैसे भी माता रानी का आदेश है तो जाना ही पडेगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ए लाजो सुनो हमाये भी दुई चार कपडे रख दयो”,दादी ने लाजो को आवाज देकर कहा
“सुनो लाजो अम्मा के साथ साथ अपनी भी कपडे रख लेना”,मिश्रा जी ने कहा
“उह काहे चचा ?”,लाजो ने हैरानी से कहा
“अरे तुमहू भी चलो साथ में हिया अकेले का करोगी ? फिर अम्मा की देखभाल के लिए भी तो कोनो चाहिए की नहीं चाहिए ?”,मिश्रा जी ने कहा
“पर हम,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”,लाजो ने कहना चाहा तो मिश्राइन ने अपने कमरे से बाहर आते हुए कहा,”अरे मिश्रा जी सही कह रहे है , तुमहू भी इस घर की सदस्य हो। चलो जाओ जाकर पैकिंग कर लो”
“ठीक है”,लाजो ख़ुशी ख़ुशी अपने कमरे की और चली गयी। शगुन तब तक सबके लिए चाय बना चुकी थी। उसने सबको चाय दी। मिश्राइन मिश्रा जी के पास आयी तो उन्होंने कहा,”गुड्डू उठ गया ?”
“नहीं सायद सो रहा होगा”,मिश्राइन ने कहा
“वेदी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,वेदी बिटिया”,मिश्रा जी ने वेदी को आवाज लगाई
“जी पिताजी”,वेदी ने आकर कहा
“ऊपर जाकर अपने गुड्डू भैया को उठाओ और कहो पिताजी ने बुलाया है”,मिश्रा जी ने चाय पीते हुए कहा। वेदी गुड्डू को उठाने के लिए ऊपर चली गयी शगुन किचन में सबके नाश्ते का इंतजाम करने लगी , मिश्राइन भी चली आयी और उसका हाथ बटाने लगी। वेदी ने ऊपर आकर गुड्डू को जगाया , पिताजी का नाम सुनते ही गुड्डू की नींद एकदम से उड़ गयी और वह नीचे चला आया। आँखे मसलते हुए गुड्डू आकर मिश्रा जी के सामने खड़ा हो गया और कहा,”जी जी पिताजी”
मिश्रा जी ने एक नजर गुड्डू को देखा और कहा,”हम सबके साथ वैष्णो देवी जा रहे है , तुम और शगुन यही रहोगे। शगुन अकेले है इसलिए तुमको शोरूम भी नहीं जाना है ना ही बाहर जाना है। दुई चार दिन में लौट आएंगे”
“हम काहे नहीं जा रहे है ?”,गुड्डू ने पूछा
गुड्डू के सवाल पर मिश्रा जी ने उसे घूरते हुए देखा और कहा,”बेटा जैसे तुम्हाये काण्ड है ना उस हिसाब से तुम्हे हरिद्वार जाना चाहिए अपने पाप धोने,,,,,,,,,,,,,!!!!”
गुदूद दूसरी और देखने लगा तो मिश्रा जी ने कहा,”इह लास्ट वार्निंग है गुड्डू इह के बाद अगर तुम्हायी कोई शिकायत आयी तो उठा के बाहर फेंक देंगे घर से,,,,,,,,,,का समझे ,, अब जाओ जाकर हाथ मुंह धोवो चाय वाय पीओ उसके बाद टिकट बुक करवाने जाना है”
गुड्डू वहा से चला गया और सीधा किचन में आकर मिश्राइन ने कहा,”इह पिताजी को का हो गया है ? अचानक वैष्णो देवी काहे जा रहे है ?”
“जाय के अपने पिताजी से पूछ लो हमे नहीं पता”,मिश्राइन ने चाय का कप गुड्डू को थमाते हुए कहा और वहा से चली गयी। गुड्डू हैरानी से उन्हें देखता रहा और फिर चाय पीने लगा लेकिन जैसे ही एक घूंठ भरा होंठो पर लगी चोट की वजह से गर्म चाय वहा जा लगी और गुड्डू के मुंह से आह निकल गयी। शगुन ने सूना तो वह सब काम छोड़कर गुड्डू के पास आयी और कहा,”क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं”,गुड्डू ने बात टालते हुए कहा
“अब कैसी तबियत है आपकी ?”,शगुन ने पूछा
“ठीक है”,गुड्डू ने कहा
शगुन ने देखा गुड्डू को काफी चोट लगी थी जो की दिन के उजाले में साफ साफ नजर आ रही थी। गुड्डू ने चाय खत्म की और कप शगुन की और बढ़ा दिया गुड्डू के हाथ से कप लेते हुए शगुन की उंगलिया उसकी उंगलियों से छू गयी और एक प्यारा सा अहसास दोनों को छूकर गुजरा। गुड्डू नजरे नीची करके वहा से चला गया। नहाने के बाद गुड्डू शीशे के सामने खड़े होकर शर्ट के बटन बंद करने लगा। जब नजर होंठ के पास लगी चोट पर पड़ी तो गुड्डू को शगुन की याद आ गयी। कैसे आज गुड्डू के लिए फ़िक्र कर रही थी यहाँ तक के उसकी गलती को भी शगुन ने अपने सर पर ले लिया और गुड्डू को बचा लिया। एक एक करके गुड्डू की आँखों के सामने वो हर पल आ रहा था जब शगुन उसके साथ थी ऐसा क्यों हो रहा था गुड्डू नहीं जानता। गुड्डू शीशे के थोड़ा नजदीक आया अपने होंठो के पास लगी चोट को छूकर देखा हल्का सा दर्द हुआ और वह मुस्कुरा उठा। गुड्डू पीछे हटा और शर्ट के बटन बंद किये , बाल बनाये थोड़ा परफ्यूम लगाया और नीचे चला आया। नीचे आकर पहली बार उसकी नजरे शगुन को ढूंढ रही थी लेकिन शगुन शायद वहा नहीं थी गुड्डू ने बाइक की चाबी ली और जाने लगा तो मिश्रा जी ने कुछ रूपये देकर कहा,”केश दे आना उसे और बोलना की अच्छी बस हो”
“हम्म्म ठीक है”,कहकर गुड्डू वहा से निकल गया
बस सर्विस वाले के पास पहुंचा और 5 टिकट्स बुक करने को कहा। बुकिंग वाले ने सूना तो कहा,”का गुड्डू भैया पुरे खानदान को लेकर हनीमून पर जा रहे हो का ? और इह वैष्णो देवी की टिकट्स काहे बुक करवाई है यार कोई गोआ मनाली जाओ”
गुड्डू ने सूना तो उसका माथा ठनक गया और उसने कहा,”अबे सुबह सुबह भांग खा के बैठे हो का साले ? वैष्णो देवी हनीमून पर कौन जाता है ? और तुमहू टिकट बनाओ यार,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हनीमून के बाप बन रहे है”
“बनाते है भैया”,लड़के ने कहा और अपने काम में लग गया। गुड्डू वही अपनी बाइक पर बैठा बैठा आते जाते लोगो को देख रहा था की तभी गोलू वहा से अपनी स्कूटी से निकला और गुड्डू को देखकर स्कूटी रोकते हुए कहा,”अरे भैया सुबह सुबह यहाँ ?”
“टिकट्स बनवाने आये थे गोलू”,गुड्डू ने कहा
“का टिकट्स ? अच्छा अच्छा मतलब हनीमून पर जाय रहे है भाभी के साथ सही है ,, वैसे कहा का बुक करवाए है गोआ के मनाली ?”,गोलू ने गुड्डू को छेड़ते हुए कहा
“हम नहीं जा रहे पिताजी जा रहे है”,गुड्डू ने कही खोये हुए स्वर में कहा
“का ? मिश्रा जी जा रहे है , वो भी इस उम्र में अबे साथिया गए है तुम्हाये पिताजी , इस उम्र में हनीमून जाने की बात कर रहे है”,गोलू ने स्कूटी स्टेण्ड पर लगाकर गुड्डू के पास आते हुए कहा। गुड्डू ने सूना तो उसने गोलू को पहले तो घुरा और फिर अंगूठे को हथेली से लगाकर अपनी चार उंगलिया गोलू को दिखाकर कहा,”अबे बाप है हमारे और हनीमून पर नहीं जा रहे उह वैष्णो देवी जा रहे है ,, कुछ भी बोलते हो”
“हे हे हे हे तो ऐसे कहो ना तुमहू पूरी बात तो बताते नही”,गोलू ने कहा
“बतीसी ना दिखाओ और सुनो मनोहर से मिले के नहीं”,गुड्डू ने कहा
“अरे कहा जाना हुआ भैया टाइम ही नहीं मिला और वैसे भी अभी नई नई शादी हुई है उसकी वो बिजी है रौशनी के साथ तुम्हायी तरह नहीं की सुबह सुबह उठायी अपनी बुलेट और घूम पुरे कानपूर में”,गोलू ने मुंह बनाकर कहा
“वाह वाह गोलू बड़ी जबान चलने लगी है तुम्हायी”,गुड्डू ने जैसे ही कहा गोलू की नजर उसके होंठ के पास लगी चोट पर चली गयी वह थोड़ा सा गुड्डू के करीब आया और चोट देखते हुए कहा,”इह का हुआ ?”
“अरे कुछो नहीं ऐसे ही”,गुड्डू ने बात टालने की कोशिश की तो गोलू ने कहा,”देखो भैया गंगा मैया की कसम है सच्ची सच्ची बताओ का हुआ ?”
“शाम को मिलो बताते है”,गुड्डू ने कहा तो गोलू ने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और शाम को मिलने का वादा करके चला गया , गुड्डू ने टिकट्स लिए और घर
चला आया। उसने टिकट्स मिश्रा जी को दे दिए शाम 4 बजे की बस थी मिश्रा जी ने सभी जरुरी काम निपटाए और किसी काम से बाहर चले गए। गुड्डू भी नाश्ता करके अपने कमरे में चला आया। बदन अभी भी दर्द कर रहा था , गुड्डू थोड़ी देर के लिए लेट गया और फिर उसे नींद आ गयी। दोपहर का खाना भी उसने नहीं खाया 3 बजे शगुन ने उसे उठाया तो गुड्डू नीचे चला आया। मिश्रा जी और बाकि घरवाले सभी तैयारियां कर चुके थे और सभी अपने अपने सामान के साथ आँगन में जमा थे। वेदी तो चाहती थी की शगुन भी उन सबके साथ जाये लेकिन मिश्रा जी ने मना कर दिया
“पिताजी भाभी और गुड्डू भैया काहे नहीं जा रहे है साथ में ? कितना मजा आएगा जब ये लोग भी वहा होंगे”,वेदी ने बच्चो की तरह कहा
“कल इन लोगो ने जो किया है उसके बाद इन दोनों की यही सजा है की ये दोनों यही रहेंगे”,मिश्रा जी ने कहा जबकि ये उनका प्लान था गुड्डू और शगुन को एक करने का।
बातो बातो में 4 बज गए शोरूम से गाड़ी आ चुकी थी मिश्रा जी के कहने पर गुड्डू ने सब सामान दिग्गी में रखा और फिर सब एक एक करके गाड़ी में जा बैठे। गुड्डू वही गाड़ी के पास खड़ा था मिश्रा जी उसके पास आये और धीरे से कहने लगे,”घर और शगुन की जिम्मेदारी तुम्हाये ऊपर छोड़कर जा रहे है गुड्डू किसी तरह की कोई शिकायत ना सुनने को मिले। शगुन का ध्यान रखना और हां उसके साथ रहना ,, चलते है”
गुड्डू ने कुछ नहीं कहा बस हां में गर्दन हिला दी।
मिश्रा जी पुरे परिवार के साथ वहा से चले गए। घर में अब सिर्फ गुड्डू और शगुन बचे थे। शगुन ऊपर चली आयी और छत पर सूखे कपडे एक एक करके उतारने लगी। कपडे लेकर आयी तो देखा गुड्डू कमरे में ही था। शगुन ने कुछ नहीं कहा बस सभी कपडे बिस्तर के एक साइड डाले और एक एक करके उन्हें समेटने लगी। गुड्डू कबर्ड खोले खड़ा था और उलझन में था फिर एकदम से शगुन से कहा,”उह हमे किसी काम से बाहर जाना था”
“ठीक है जाईये”,शगुन ने कहा
“नहीं हमारा मतलब हम कह रहे थे की तुमहू रह लोगी अकेले ?”,गुड्डू ने पूछा
“हम्म्म , टाइम से आ जा जाईयेगा”,शगुन ने कपडे समेटते हुए बिना गुड्डू की और देखे कहा
गुड्डू मुस्कुराया और कबर्ड से शर्ट निकाली और लेकर बाथरूम की और चला गया गुड्डू ने शर्ट चेंज की और बटन बंद करते हुए बाहर आया। शगुन समेटे हुए कपडे उठाकर कबर्ड में रख रही थी। गुड्डू उसके पास आया और कहा,”शर्ट कैसी लग रही है ?”
शगुन ने सूना तो उसे उस दिन वाली बात याद आ गयी जब गुड्डू ने ऐसे ही शर्ट के बारे में पूछा था तो गुड्डू ने उसे सूना दिया था। शगुन को चुप देखकर गुड्डू ने भँवे उचकाई। शगुन ने कबर्ड बंद किया और कहा,”अगर मैंने कहा अच्छी है तो आप फिर शर्ट बदल लेंगे”
कहकर शगुन वहा से चली गयी गुड्डू को अहसास हुआ की अनजाने में ही सही उसने शगुन दिल दुखाया है। गुड्डू ने वह शर्ट उतार कर रख दी और उस दिन वाली सफेद शर्ट पहन ली जिसके लिए शगुन ने कहा था की अच्छी है। गुड्डू निचे आया शगुन की नजर गुड्डू की शर्ट पर गयी तो गुड्डू ने कहा,”वो सच में अच्छी नहीं थी”
शगुन मन ही मन मुस्कुरा उठी और फिर धीरे से हां मे गर्दन हिला दी। गुड्डू ख़ुशी ख़ुशी वहा से चला गया। बाइक चलाते हुए अचानक ही गुड्डू गुनगुनाने लगा आज से पहले शायद ही वह ऐसे गुनगुनाया हो। आज कई दिनों बाद गुड्डू दिल से खुश था। गुड्डू बाइक लेकर गोलू से मिलने पहुंचा।
बाबू गोलगप्पे वाले के पास खड़ा गोलू स्पेशल गोलगप्पे खा रहा था मिर्च तेज होने की वजह से उसके आँखों से गंगा जमना बह रही थी। गुड्डू को देखते ही गोलू ने प्लेट रखी और लड़के से कहा,”बाबू पैसे ना खाते में लिख लेना”
“ठीक है भैया”,बाबू (गोलगप्पे वाला लड़का) ने कहा तो गोलू आकर गुड्डू के पीछे बैठा और कहा,”आह्ह कितने दिन बाद तुम्हाये साथ बैठने का मौका मिला है , चलो”
“कहा चलना है ?”,गुड्डू ने पूछा
“वही हमारी तुम्हारी फेवरेट जगह मोतीझील और कहा”,गोलू ने कहा तो गुड्डू ने बाइक आगे बढ़ा दी। दोनों मोतीझील पहुंचे। गुड्डू ने बाइक साइड में लगाई और दोनों आकर झील किनारे बैठ गए। कुछ देर झील को निहारने के बाद गोलू ने कहा,”हां तो भैया अब बताओ क्या बात है ?”
गुड्डू ने एक साँस में गोलू को सारी बाते बता दी गोलू ने सूना तो उसे पिंकी पर बहुत गुस्सा आया और उसने कहा,”उस पिंकिया की तो मैं,,,,,,,,,,,,,,,,,गुड्डू भैया तुम नहीं होते ना तो उसका तो खून कर देना था मैंने,,,,,,,,,,,,,और तुमहू भी साले चू#या हो उह तुमको बुलाई और तुमहू चले गए ,, थोड़ा सा भी नहीं सोचा कितनी बड़ी समस्या में पड़ जाते तुम,,,,,,,,,,,,माना की तुमको उस से प्यार है पर साला इह कैसा प्यार है जिसमे सिर्फ तुम्हारा कट रहा है,,,,,,,,,,!!
“अबे गोलू कैसा प्यारा ?”,गुड्डू एकदम से उठ खड़ा हुआ , गोलू भी उठ खड़ा हुआ गुड्डू उसकी और पीठ करके कहने लगा,”जबसे प्यार किया है तबसे बस दिल ही टूटा है हमारा,,,,,,,,,,,,,पहले जब उसे देखते थे तो सुकून मिलता था अच्छा लगता था अब जब भी देखते है तो दिल करता है कही चले जाये , पहले उसकी बाते सुनने का मन करता था अब जब उह बोलती है तो मन करता है मुंह में कुछ ठूस दे ,, हमायी अच्छी खासी जिंदगी को झंड बना रखा है। जब शादी का कहे तब की नहीं अब मरी पड़ी है शादी के लिए , ऊपर से धमकिया की नस काट लेगी इस से अच्छा है साला हमारा गला ही काट दो ना काम ही खत्म हो ,, उनकी सुनो तो परेशानी ना सुनो तो परेशानी साला हम करे तो का करे ? पिंकिया के चक्कर में हम सबकी नजरो में गधे बन चुके है , बेवकूफ बन चुके है ,,,,,,वो जैसे मर्जी हमे नचा रही है और हम नाच रहे है (एकदम से गोलू की और पलट जाता है ) हम बताय रहे है गोलू इन लड़कियों को समझना ना नामुमकिन है ये कब क्या करे इन्हे खुद पता नहीं होता है ,,,,,,,,,,बस अपनी ख़ुशी से मतलब है इनको बाकि सब जाये भाड़ में ,,, ये सब लड़किया न ऐसी ही होती है”
“सब एक जैसी नहीं होती है गुड्डू भैया”,गोलू ने बड़े ही प्यार से कहा
गुड्डू को खामोश देखकर गोलू ने कहा,”अच्छा मतलब फिर तुम्हारे हिसाब से शगुन भाभी भी गलत है”
गोलू की बात सुनकर गुड्डू फिर पलट जाता है और कहने लगता है,”नही यार उह बहुते सही लड़की है , अच्छी है ,घर में सब उसे पसंद करते है , सबको खुश रखती है सबकी परवाह करती है। हमारे जैसे इंसान की भी जिसने हर बार उनका दिल दुखाया है ,,,,,,, कल हमारी गलती का इल्जाम भी उन्होंने अपने सर ले लिया,,,,,,,,,,हमे मुसीबत से निकाला और खुद तकलीफ में होकर भी हमारी परवाह कर रही थी। कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है यार गोलू ?”
गोलू को तो यकीन ही नहीं हो रहा था की गुड्डू आज पहली बार पिंकी के बारे में ये सब बोल रहा है और शगुन की तारीफ कर रहा है ,, लेकिन गुड्डू के मुंह से शगुन की तारीफ सुनकर गोलू भी मुस्कुराये बिना नहीं रह सका

क्रमश – manmarjiyan-58

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संजना किरोड़ीवाल

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