Sanjana Kirodiwal

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मनमर्जियाँ – 100

Manmarjiyan – 100

Manmarjiyan - 100

मनमर्जियाँ – 100

गुड्डू अपने प्यार का इजहार करने आया था लेकिन यहाँ कुछ और ही फसाद में पड़ गया। चाचा अपने लालच में इतना गिर जायेंगे किसी ने सोचा भी नहीं था। शगुन और प्रीति अपने पापा को अंदर लेकर आयी। शगुन की आँखों के आगे बस गुड्डू का चेहरा आ रहा था उसकी वजह से गुड्डू को पुलिस पकड़कर ले गयी। प्रीति अपने पापा के पास बैठी थी उसने उन्हें पानी पिलाया तो उनकी जान में जान आयी , उन्होंने अपनी पीठ दिवार से लगायी और दुखी स्वर में कहा,”मेरा सगा भाई पैसे के लिए इतना गिर जाएगा मैंने सोचा भी नहीं था। जिस इज्जत के लिए मैं अब तक खामोश था आज उसे सबके सामने मिटटी में मिला दिया उसने”
“पापा पापा आप बात मत कीजिये आराम कीजिये सब ठीक हो जाएगा”,प्रीति ने उनके सीने पर अपना हाथ मसलते हुए कहा
“वो लोग दामाद जी को ले गए , मैं मैं उन्हें लेकर आता हूँ इन सब में उनकी क्या गलती थी”,गुप्ता जी ने बदहवास सी हालत में कहा।
“जीजू को कुछ नहीं होगा पापा”,प्रीति ने रोते हुए कहा
“मैं गुड्डू जी को लेकर आती हूँ पता नहीं वो लोग उनके साथ क्या करेंगे ? , प्रीति तू तू पापा का ख्याल रख मैं पुलिस स्टेशन जा रही हूँ”,कहते हुए शगुन उठी अपने आंसू पोछे और घर से निकल गयी। रोड पर आकर उसने सामने से आता एक रिक्शा रुकवाया और कहा,”भैया पुलिस स्टेशन जाना है”
“उधर नहीं जायेंगे दीदी”,लड़के ने कहा
“प्लीज भैया बहुत जरुरी है चलिए , प्लीज मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ”,शगुन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा
“माफ़ कीजिये दीदी उधर की सवारी नहीं है”,कहकर रिक्शा आगे बढ़ गया। शगुन की आँखों से आंसू लगातार बहते जा रहे थे , उसने दुसरा रिक्शा रुकवाया और उसे पूछा तो उसने भी मना कर दिया भरी दोपहरी में उस साइड के लिए रिक्शा मिलना मुश्किल था। शगुन ने अपने मुंह पर हाथ रखा पसीना पोछा लेकिन इस वक्त उसे गुड्डू को बचाना था। कोई और रिक्शा आता ना देखकर शगुन पैदल ही चल पड़ी। वह जल्दी जल्दी में चले जा रही थी ,, उसका मन किसी अनहोनी के डर से घबरा रहा था , वह लगातार अपने आंसुओ और अपने मुंह पर आये पसीने को पोछते जा रही थी।
उधर इंस्पेक्टर गुड्डू को थाने लेकर पहुंचा जीप से उतरते ही हवलदार ने जैसे ही गुड्डू की कोलर पकड़नी चाही गुड्डू ने पीछे हटते हुए कहा,”ना बाबू शर्ट को हाथ नहीं लगाना हमायी पत्नी की पसंद की है , अच्छा नहीं लगेगा हमे”
इंस्पेक्टर ने सूना तो हवलदार से कहा,”अंदर लेकर आओ इसे”
गुड्डू अंदर चला आया तो इंस्पेक्टर ने हवलदार से कहा,”कानूनी कार्यवाही में दखल डालने का चार्ज लगाओ इन पर , यहाँ के तो लगते नहीं है वरना बनारस के रूल पता होते इनको , और डालो सलाखों के पीछे एक रात यहाँ रहेंगे तो सारी गर्मी निकल जाएगी इनकी”
हवलदार ने गुड्डू को हवालात में डाल दिया जहा दो लोग और थे , जो की किसी चोरी के जुर्म में वहा थे। गुड्डू को देखते ही उनमे से एक ने कहा,”का भैया लड़की वड़की छेड़े हो का ? कपड़ो से तो अच्छे घर के मालूम होते हो , का मेटर हो गवा ?”
गुड्डू ने दोनों को देखा और फिर एक तरफ जाकर खड़ा हो गया। उसका फोन भी गाड़ी में ही छूट गया इंस्पेक्टर ने गुड्डू को एक नजर देखा और फिर बड़बड़ाया,”मेरा हाथ पकड़ता है , अभी थोड़ी देर में उतरता हूँ इसकी गर्मी”
शगुन जितना तेज चल सकती थी चल रही थी उसकी सांसे फूल रही थी , दुःख की वजह से गले में दर्द होने लगा था , चलते चलते वह मन ही मन कहने लगी,”कही वे लोग गुड्डू जी को मारेंगे पीटेंगे तो नहीं ? मुझे उन्हें वहा से निकालना होगा,,,,,,,,,,,,,,,महादेव अब आप ही कुछ कर सकते है , ये कैसी परीक्षा है मेरे जीवन में,,,,,,,,,,,,गुड्डू जी उनकी तो इन सब में कोई गलती भी नहीं थी फिर वो क्यों आये यहाँ,,,,,,,,,,,,,,,पता नहीं वो किस हाल में होंगे ? ये सब के बाद कही वो मुझसे नफरत ना करने लग जाये,,,,,,,,,,,,मुझे उन्हें वहा से निकालना होगा भले इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े”

शगुन रोते दुखी होते पुलिस स्टेशन पहुंची लेकिन अंदर का नजारा देखकर हैरान रह गईं। गुड्डू आराम से बिना किसी डर के इंस्पेकटर वाली टेबल के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठा था। इंपेक्टर उसके बगल में चाय लेकर खड़ा था और बड़ी ही शालीनता से कह रहा था,”सर आपको पहले बताना चाहिए था आप उन्हें जानते है तो ये सब होता ही नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,ए शुक्ला भागकर सर के लिए गर्मागर्म समोसे लेकर आओ”
शगुन गुड्डू की तरफ आयी उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की आखिर ये सब हो क्या रहा है ? जैसे ही वह गुड्डू के पास आई इंस्पेक्टर ने कहा,”सर मैडम”
गुड्डू उठा और शगुन के सामने आया शगुन ने देखा गुड्डू को मारना पीटना तो दूर उसे एक खरोच तक नहीं आयी है। गुड्डू को सही सलामत देखकर शगुन को तसल्ली मिली वह भूल गयी की इस वक्त वह पुलिस स्टेशन में खड़ी है , उसकी आँखों में आंसू थे और वह गुड्डू के गले आ लगी। एक सुकून गुड्डू के चेहरे पर उभर आया। अब तक जो हाथ शगुन को छूने से भी कांपते थे आज स्थिर थे गुड्डू ने भी शगुन को अपनी बांहो में भर लिया। शगुन कुछ बोल नहीं पायी बस उसकी आँखो से आंसू बहते जा रहे थे। कुछ देर बाद शगुन गुड्डू से दूर हुयी और कहा,”आप आप ठीक तो है ना ?”
गुड्डू ने शगुन का चेहरा अपने हाथो में लिया और उसके आंसू पोछते हुए कहा,”हम ठीक है हमे कुछ नहीं हुआ है , हम्म्म्म”
“का इंस्पेक्टर अब जाए हम या और फोन करवाने की जरूरत है ?”,गुड्डू ने इंस्पेक्टर से कहा
“आप कहे तो मैं पुलिस की जीप भेज देता हूँ उसी में जाईये , और जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाईयेगा प्लीज”,इंस्पेकटर ने मिमियाते हुए कहा
“हम्म्म आगे से ध्यान रखना”,गुड्डू ने कहा और शगुन के साथ पुलिस स्टेशन ने बाहर चला आया
गुड्डू शगुन को अपने साथ लेकर पुलिस स्टेशन से बाहर चला आया। शगुन को समझ नहीं आ रहा था की आखिर गुड्डू ने ऐसा क्या कहा इंस्पेक्टर से की उसने गुड्डू को इतनी आसानी से छोड़ दिया। शगुन को सोच में डूबा देखकर गुड्डू ने कहा,”तुमहू सोच रही होगी की इंस्पेक्टर ने हमे इतनी आसानी से कैसे छोड़ दिया ?”
“हम्म”,शगुन ने गुड्डू की और देखकर कहा
गुड्डू मुस्कुराया और कहने लगा,”का है की कानपूर में बहुत से कांड किये है हमने और गोलू ने , पुलिस के हाथ भी लगे है तो खुद को बचाने के लिए ना हमने और गोलू ने एक कोड रखा है जब भी हम में से कोई ऐसी परेशानी ने होता है हम एक दूसरे को फोन करके कोड बोलते है और बचा लेते है , गोलू ने इस्पेक्टर से कहा की वह बनारस का विधायक है और हम उसके रिश्तेदार , इंस्पेक्टर भी उसकी बात मान गया और हमे छोड़ दिया”
“आपने झूठ बोला ?”,शगुन ने कहा
“यार तुमहू ना ये सच की देवी बनना बंद करो झूठ नहीं बोलते तो वो हमे छोड़ता का , और इह सब छोडो पहले इह बताओ की जे सब हो का रहा है ?”,गुड्डू ने कहा तो शगुन ने उसे सारी बाते बता दी ये सब सुनकर गुड्डू का माथा ठनका और उसने कहा,”यार तुम्हाये चाचा तो कितने भले आदमी है फिर ऐसा काहे कर रहे है ?”
“पता नहीं गुड्डू जी ये सब क्यों कर रहे है ? मुझे तो कुछ नहीं आ रहा है की मैं क्या करू ?”,शगुन ने उदास होकर कहा
गुड्डू शगुन के सामने आया और उसके दोनों कंधे पकड़कर कहा,”तुमहू परेशान न हो हम करते है कुछ जुगाड़ , सबसे पहिले तो घर चलते है प्रीति और पापा अकेले होंगे,,,,,,,,,,,,,,पर उस से पहले हम चाय पिएंगे यार सुबह से कुछो खाया नहीं है हमने”
शगुन ने सूना तो उसने अपने आंसू पोछे और इधर उधर देखा सामने ही एक चाय की दुकान थी। शगुन गुड्डू के साथ वहा चली आयी। गुड्डू ने दुकान वाले से दो चाय देने को कहा और खुद वहा पड़े मग्गे में पानी लेकर मुंह धोने लगा। पोछने के लिए कुछ नहीं था शगुन ने देखा तो अपना दुपट्टा गुड्डू की और कर दिया। गुड्डू को पिंकी की कही बीती बात याद आ गयी जब ऐसे ही उसने दुपट्टे को लेकर गुड्डू को कुछ कहा था। गुड्डू ने शगुन के दुपट्टे से मुंह पोछा और अपने बालो में हाथ घूमाते हुए कहा,”हमे लगता था हमायी जिंदगी झंड है पर तुम्हायी जिंदगी में तो हमसे भी ज्यादा बवाल है”
शगुन ने गुड्डू की और देखा और कहा,”गुड्डू जी महादेव जरूर हमारे सब्र की परीक्षा ले रहे है पर जब तक आप मेरे साथ है मैं हर परीक्षा देने को तैयार हूँ”
शगुन के शब्दों में अपने लिए मोहब्बत और भरोसा देखकर गुड्डू का दिल धड़क उठा वह शगुन को देखता रहा तभी कानो में चाय वाले की आवाज पड़ी,”भैया चाय”
“हम्म्म्म”,गुड्डू ने कहा और दो कप चाय लेकर शगुन की और पलटा एक खुद ले लिया और दुसरा शगुन को पकड़ा दिया। शगुन चाय पिने लगी तो गुड्डू उसे देखते हुए मन ही मन कहने लगा,”शगुन से अपने दिल की बात कहने का जे सही बख्त नहीं है , इह बहुते परेशान है पहिले हमे जे सब ठीक करना होगा,,,,,,,,शुक्र है महादेव का की हमे सही बख्त पर यहाँ भेज दिया,,,,,,,,,तुम चिंता न करो शगुन हम सब ठीक कर देंगे , बस तुमहू भरोसा रखना हम पर”
सामने खड़ी शगुन ने गुड्डू को देखा जो की गर्म चाय को फूंक मारते हुए पी रहा था शगुन उसे देखते हुए मन ही मन कहने लगी,”हमे आप पर पूरा भरोसा है गुड्डू जी की आप सब ठीक कर देंगे,,,,,,,,,,,,,,कितनी परेशानियों के बाद आपकी जिंदगी में कुछ ख़ुशी के पल आये थे और मेरे लिए एक बार फिर आप इन परेशानियों से घिर गए,,,,,,,,,,,,,,पर मैं आपसे इतना प्यार करती हूँ की आपको इन परेशानियों से निकाल लुंगी बस आप कभी मेरा साथ मत छोड़ना”
एक दूसरे के बारे में सोचते हुए गुड्डू और शगुन ने चाय खत्म की और फिर गुड्डू चाय के पैसे चुकाकर सड़क किनारे आ गया। सामने से आते रिक्शा को गुड्डू ने रुकवाया और शगुन के साथ उसमे आ बैठा। रिश्ते वाले ने रिक्शा आगे बढ़ा दिया। रिक्शे में सिर्फ शगुन और गुड्डू ही थे। शगुन को परेशान देखकर गुड्डू ने उसके हाथ को अपने दोनों हाथो में थाम लिया और कहा,”हम है तुम्हारे साथ”
गुड्डू की आँखों में उस वक्त शगुन को अपने लिए असीम प्यार नजर आ रहा था।

प्रीति अपने पापा को सम्हाले हुए थी की कुछ देर बाद रोहन आया और कहा,”सॉरी वो मेरा दोस्त किसी काम में फंस गया इसलिए आ नहीं सका”
प्रीति ने गुस्से से उसे घुरा तो रोहन सहम गया फिर प्रीति के पापा को वहा देखकर उसे कुछ गड़बड़ लगी तो उसने उनके पास आकर कहा,”क्या हुआ अंकल सब ठीक है ना ?”
“कुछ ठीक नहीं है बेटा , सब खत्म हो गया”,गुप्ता जी ने दुखी स्वर में कहा
रोहन ने ये सुनकर प्रीति की और देखा तो प्रीति ने कहा,”घर में पुलिस आयी थी , गुड्डू जीजू को ले गयी दी उन्हें छुड़ाने पुलिस स्टेशन गयी है”
“पर ये सब हुआ कैसे और पुलिस यहाँ क्यों आयी ?”,रोहन ने कहा
“सब अपनों की मेहरबानी है बेटा , जमीन के एक टुकड़े के लिए मेरा भाई इतना गिर जाएगा मैंने कभी सोचा नहीं था। मेरी वजह से मेरी बेटी और दामाद को परेशान होना पड़ा , जेल जाना पड़ा इस से ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है मेरे लिए ? मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया बेटा”,कहते हुए गुप्ता जी रो पड़े।
प्रीति उनके पास बैठी और कहा,”आप रोईए मत पापा सब ठीक हो जाएगा , दी गयी है ना जीजू को लेने उन्हें कुछ नहीं होगा आप बस शांत हो जाईये” पलटकर रोहन से कहती है,”रोहन पापा के लिए पानी देना”
“हां”,कहकर रोहन डायनिंग टेबल के पास जाता है और एक ग्लास पानी लाकर प्रीति को थमा देता है , प्रीति अपने पापा को पानी पिलाती है और उनके सीने से लगते हुए कहते है,”सब ठीक हो जाएगा पापा , महादेव सब ठीक कर देंगे”
ये सब देखकर रोहन को बहुत दुःख होता है साथ ही विनोद पर गुस्सा भी आता है की उसने एक अच्छे इंसान के साथ ऐसा किया।

लखनऊ , उत्तर-प्रदेश
गोलू ने झूठ बोलकर गुड्डू को बचा लिया , वह समझ गया की गुड्डू किसी परेशानी में है लेकिन जब ये पता चला की शगुन साथ में है तो वह निश्चिन्त हो गया। दोपहर में मेहँदी के फंक्शन का उसने अरेजमेंट करवा दिया और शाम में होने वाले संगीत का भी। ये पहली बार था जब गोलू गुड्डू के बिना सब काम अकेले कर रहा था और उस से कोई गड़बड़ भी नहीं हुई। संगीत फंक्शन से पहले गोलू किसी से फोन पर आर्डर की बात कर रहा था की फोन की बैटरी डिस हो गयी और फोन बंद हो गया। गोलू ने उसे जेब में डाल लिया और जींस की पॉकेट से दुसरा छोटा कीपैड फोन निकाल लिया जो की कालिंग के लिए काम आता था। गोलू फिर से फोन पर लग गया चलते चलते उसके पैर में कुछ चुभा और उसके मुंह से आह निकल गयी उसने देखा पैर में एक छोटा सा शीशे का टुकड़ा चुभा हुआ था गोलू ने उसे निकाल फेंका और पैर को सहला कर वहा से चला गया।

बनारस , उत्तर-प्रदेश
मिश्राइन रसोई में किसी काम में लगी थी की अचानक उसका मन घबराने लगा। वह बाहर आयी और पंखे के नीचे आकर बैठ गयी , मिश्रा जी दोपहर का खाना खाने घर आये हुए थे उन्होंने देखा तो पूछा,”का बात है मिश्राइन तबियत तो ठीक है तुम्हायी ?”
“पता नही जी मन बहुते घबरा रहा है”,मिश्राइन ने कहा
“लाजो से कहकर निम्बू पानी बनवाय ल्यो गर्मी बहुते ज्यादा है ना उस वजह से हो रहा है”,मिश्रा जी ने कहा
“गुड्डू का फोन आया था का आपको ? जबसे उह गया है बात ही नहीं हुई है”,मिश्राइन ने बेचैनी से कहा
“चिंता ना करो मिश्राइन गुड्डू अब समझदार हो गया है और गोलू है ना उसके साथ आज शादी का काम निपटा कर कल आ जायेंगे तुम्हाये गुड्डू-शगुन”,मिश्रा जी ने कहा तो मिश्राइन तख्ते के पास सीढ़ियों पर पड़े गुलाब के पौधे को देखने लगी जिस पर लगा फूल एकदम से काला पड़ने लगा था। किसी अनहोनी के डर से मिश्राइन का मन पहले से ज्यादा घबरा उठा और वह वहा से उठकर आंगन की और चली गयी।

शगुन और गुड्डू खामोश रिक्शा में बैठे चले जा रहे थे। कुछ ही पल निकले की सामने से आती एक गाड़ी का बेलेंस बिगड़ा और उसने तेजी से रिक्शा को टक्कर मारी। गुड्डू शगुन और रिक्शा चालक को कुछ समझ नहीं आया की ये एकदम से क्या हुआ ? शगुन रिक्शा से निकलकर कुछ दूर जा गिरी , टक्कर इतनी तेज थी की चालक की मौके पर ही मौत हो गयी ,, गुड्डू रिक्शा के साथ ही पलटता हुआ दूर जा गिरा उसके हाथ और कंधे पर चोट आयी। जिस गाडी ने रिक्शा को टक्कर मारी थी उसका अचानक से ब्रेक फेल हो चुका था , गुड्डू को काफी चोट आयी थी लेकिन उसने जब देखा शगुन आस पास नहीं है तो वो घबरा गया , उसका पैर रिक्शा के नीचे दब गया गया था मुश्किल से उसने अपना पैर निकाला और जैसे ही उठकर जाने लगा पैर में लगी चोट की वजह से गुड्डू लड़खड़ाया धुप तेज थी और उसकी वजह से गुड्डू की आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा मुश्किल से वह दो कदम हो चल पाया की लड़खड़ा कर नीचे गिरा लेकिन गुड्डू की किस्मत आज शायद अच्छी नहीं थी। जैसे ही गुड्डू गिरा उसका सर नीचे पड़े पत्थर पर जा गिरा वो भी इतने जोर से की एक बार गिरने के बाद सर टप्पा खाकर वापस गिरा , मटमैला सा दिखने वाला पत्थर गुड्डू के खून से लाल हो गया , उसकी आँखे खुली थी , नब्ज बहुत धीमे चल रही थी , उसके गले को देखकर लग रहा था की उसे साँस लेने में कितनी दिक्कत हो रही थी। कुछ ही देर बाद वहा लोगो की भीड़ जमा हो गयी , गुड्डू उनका शोर सुन रहा था अधखुली आँखों से देख पा रहा था बस बोल नहीं पा रहा था। मुश्किल से गुड्डू ने अपनी गर्दन बांयी और घुमाई कुछ ही दूर खून से लथपथ शगुन पड़ी थी उसे देखते ही गुड्डू के दिल में एक तेज कसक उठी , उसका मन किया भागकर शगुन के पास जाये उसे सम्हाले लेकिन वह हिल भी नहीं पा रहा था। उसकी आँख से बहकर आँसू की एक बूंद ललाट से होकर खून में जा मिली और अगले ही पल गुड्डू की आँखे मूँद गयी।

समाप्त

सुचना – समाप्त पढ़कर आपके दिल की धड़कने बढ़ गयी होगी , आपके मन में ये सवाल जरुर आया होगा की कहानी का इतना अजीब अंत क्यों ? अभी तो गुड्डू और शगुन का इजहार बाकि था और कितने ही सवाल थे जिनका जवाब बाकि था फिर “समाप्त” क्यों ?
“मनमर्जियाँ” कहानी के 100 पार्ट हो चुके है इसलिए मुझे इस सीजन को यही खत्म करना पड़ा इसके आगे की कहानी “मनमर्जियाँ Season 2” के साथ जल्द ही पब्लिश होगी और एक बार फिर आपके गुड्डू-शगुन आपके साथ होंगे , नए सीजन में होगा कुछ अनएक्सपेक्टेड और इमोशनल जिसे पढ़कर आपको इस कहानी से और ज्यादा प्यार हो जाएगा। मनमर्ज़ियाँ सीजन 1st को इतना प्यार देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मैं लौटूंगी जल्द ही आप सबके बीच “मनमर्जियाँ Season 2” लेकर तब तक के लिए पढ़ते रहे “क्योकि हर कहानी कुछ कहती है”

Continued with मनमर्जियाँ season 2

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