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मैं तेरी हीर – 5

Main Teri Heer – 5

Main Teri Heer by Sanjana Kirodiwal |
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Main Teri Heer – 5

शाम की चाय के बाद अधिराज जी , अम्बिका और काशी घर चले गए। गौरी ने अपना हाथ हिलाकर उन्हें बाय कहा और अंदर चली आयी। नंदिता भी गौरी के पीछे पीछे अंदर आयी और कहा,”कुछ दिनों बाद तुम्हारी सगाई होने वाली है और तुम्हे ठीक से चाय तक बनानी नहीं आती है। ससुराल में मेरी नाक कटवाओगी तुम।”
“किसने कहा मुझे चाय बनानी नहीं आती ? मुझे बिल्कुल आती है वो तो बस जरा सा मेरा ध्यान भटक गया और चाय उफ़न गयी।”,गौरी ने सोफे पर पसरते हुए कहा  


“अगर शादी के बाद भी तुम्हारा ध्यान ऐसे ही भटका तो हो गया कल्याण , चलो मानवेन्द्र जी से मेरी बात करवाओ।”,नंदिता ने कहा
“हहहह कैसी माँ है आप ? क्या अब आप मान से मेरी शिकायत करने वाले हो ?”,गौरी ने हैरानी से कहा
“पागल लड़की मुझे कोई शिकायत नहीं करनी कम से कम उसे बता तो दू कि हम सब इंदौर पहुँच चुके है। चलो फोन लगाओ उसे,,,,,,,,,,,!!”,नंदिता ने कहा


मुन्ना को फोन लगाने की बात सुनकर गौरी को किस वाली बात याद आ गयी और उसने बहाना बनाते हुए कहा,”नानाजी जी ने मुरारी अंकल को बता दिया होगा कि इंदौर आ चुके , मान को परेशान क्यों करना ?”
“अच्छा तो उन्हें एक फोन करने में तुम्हे परेशानी हो रही है और ये क्या है मुरारी अंकल ? वो तुम्हारे होने वाले ससुर है जरा तमीज से बात किया करो,,,,,,,,,,,,,कब अक्ल आएगी तुम्हे ?”,नंदिता ने गौरी की जांघ पर मारते हुए कहा तो गौरी उठकर बैठ गयी और कहा,”तो क्या मैं उन्हें ससुर जी कहकर बुलाऊ ?”


“नहीं वो मानवेन्द्र के पापा है तो तुम भी उन्हें पापा कहकर बुला सकती हो।”,नंदिता ने कहा
पापा शब्द सुनकर गौरी के चेहरे पर एकदम से उदासी आ गयी। वह स्कूल में थी जब उसके पापा इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। तब से नंदिता ने ही गौरी और जय को पाला पोसा और घर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। गौरी को उदास देखकर नंदिता ने कहा,”इतना क्या सोच रही हो अब से मान के मम्मी पापा भी तुम्हारे मम्मी पापा है।”


“नहीं मॉम मैं अपने पापा की जगह किसी को नहीं दे सकती,,,,,,,,,,,,,,मुरारी अंकल को भी नहीं।”,गौरी ने उठते हुए कहा और वहा से चली गयी।
“शायद मैंने उसे हर्ट कर दिया,,,,,,,,,,!!”,नंदिता ने खुद से कहा और गौरी के पापा को याद कर उनकी आँखे भी नम हो गयी।
ऊपर अपने कमरे में आकर गौरी बिस्तर पर आ गिरी और तकिये में मुँह छुपा लिया। हमेशा खुश रहने वाली गौरी आज एकदम से इमोशनल हो गयी। आज कई दिनों बाद उसे अपने पापा की कमी महसूस हो रही थी।

अधिराज जी का घर
“अम्बिका जी आज कई दिनों बाद मन बहुत खुश है।”,अपने कमरे में कुर्सी पर बैठे किसी किताब के पन्ने पलटते हुए अधिराज जी ने कहा
“अगर मैं गलत ना हूँ तो ये ख़ुशी शक्ति और काशी के रिश्ते को लेकर है , है ना ?”,अम्बिका ने बिस्तर की चददर सही करते हुए कहा
“हाँ सही कहा आपने , जो हमने अपनी बड़ी बेटी सारिका और शिवम् जी के साथ किया हम नहीं चाहते थे शक्ति और काशी के साथ भी वैसा कुछ हो।

दोनों बच्चे बालिग है एक दूसरे को पसंद करते है ऐसे में हम सबको ऐतराज नहीं करना चाहिए। उन दोनों को साथ देखकर मन हल्का हो गया लगा जैसे सालों पहले हम से हुई भूल का प्रायश्चित हो गया हो।”,अधिराज जी ने बीते दिनों को याद कर भावुक होते हुए कहा
अम्बिका ने सूना तो अधिराज की के बगल वाली कुर्सी पर आ बैठी और कहा,”आप एक पिता है और एक पिता हमेशा अपने बच्चो की बेहतरी ही चाहते है। सरु के साथ आपने थोड़ी नाइंसाफी जरूर की लेकिन हमारी बेटी का दिल इतना बड़ा है कि उसने सब भुला दिया अब आप भी इन बातो को भूल जाये।”


“आपने ठीक कहा अम्बिका काशी को उसकी पसंद का जीवन साथी मिल गया , हमारे सीधे साधे मुन्ना के जीवन में हंसती मुस्कुराती गौरी आ गयी अब बस वंश का एक्टर बनने का सपना पूरा हो जाये,,,,,,,,,!!”,अधिराज जी ने कहा
“हाँ फिर उसके लिए लड़की मैं अपनी पसंद से देखूंगी , उसकी नानी माँ हूँ इतना तो हक़ बनता है ना मेरा,,,,,,,,,,!!”,अम्बिका ने कहा


“हा हा हा आप भी ना अम्बिका जी अभी वंश की उम्र कहा है शादी की अभी तो उसे अपने सपनो को पूरा करना है , और उसके बाद वो हमारी पसंद की लड़की से शादी क्यों करेगा ? काशी और मुन्ना की तरह वो भी अपने लिए खुद ही पसंद कर लेगा।”,अधिराज जी ने उठते हुए कहा और सोने चले गए।

बनारस , शिवम् का घर
रात के खाने के समय सब थे लेकिन वंश नहीं ये देखकर शिवम ने कहा,”सरु ! वंश कहा है ?”
“वो अपने कमरे है कल शाम उसे मुंबई वापस जाना है तो उसी की तैयारी कर रहा है।”,सारिका ने शिवम् की प्लेट में चपाती रखते हुए कहा
“वो तो ठीक है लेकिन उसे कहो कम से कम आकर सब के साथ खाना तो खाये। वंश,,,,,,,,,,,,,,,वंश”,शिवम् ने सारिका से कहा और फिर वंश को आवाज लगाई लेकिन वंश नीचे नहीं आया ना ही उसने कोई जवाब दिया।


“दीना भैया क्या आप वंश को नीचे बुला देंगे ?”,सारिका ने वही खड़े दीना से कहा तो वे वंश को बुलाने ऊपर चले गए।
कुछ देर बाद दीना भैया नीचे आये और कहा,”वंश बाबा अपने कमरे में सो रहे थे तो मैंने उन्हें उठाना सही नहीं समझा।”
दीना की बात सुनकर शिवम् सारिका को देखने लगा
शिवम को अपनी तरफ देखते पाकर सारिका ने आयी की प्लेट में सब्जी रखते हुए कहा,”क्या बात है आई आपने बहुत थोड़ी सब्जी ली , आज खाना अच्छा नहीं बना है क्या ?”


“अरे ले रहे है बिटिया , और जे का है शिवा हमरी बहु को काहे आँखे दिखाय रहे हो ,, का हो गवा जो वंश नहीं आया उह बाद में खा लेगा।”,आई ने कहा तो शिवम् ने सारिका से अपनी नजरे हटाई और कहा,”आई हम बस ये कह रहे कि वंश अब बड़ा हो चुका है उसमे इतनी समझ तो होनी चाहिए कि उसे किस वक्त सोना है और किस वक्त खाना है। खैर सरु थोड़ी दाल देंगी , खाना अच्छा बना है आज।”
शिवम् की बात सुनकर सारिका हल्का सा मुस्कुरा उठी और शिवम् को दाल परोसने लगी

सिटी हॉस्पिटल , बनारस ( शाम का समय )
डॉक्टर के चेंबर में बैठा प्रताप और जगह डॉक्टर को देख रहे थे जिनके हाथ में राजन की रिपोर्ट्स थी। डॉक्टर ने सभी रिपोर्ट्स देखी और कहा,”राजन की हालत में अब काफी सुधार है हालाँकि दवाईयों और आराम की जरूरत उसे अब भी है। उसकी यादास्त जा चुकी है और बेहतर होगा आप सब जबरदस्ती उसे कुछ याद दिलाने की कोशिश भी ना करे वरना उसकी बची हुई यादास्त भी जा सकती है और हो सकता है इस से उसकी दिक्क़ते और बढ़ जाये।”


“डाक्टर साहब हमका बस जे बताओ कि राजन हमरे साथ घर जा सकता है या नहीं बाकि हम देख लेंगे,,,,,,,,!!”,प्रताप ने बेचैनी भरे स्वर में पूछा 
“हाँ बिल्कुल आप लोग राजन को घर ले जा सकते है। मैं कुछ दवाईया लिख देता हूँ समय समय पर उसे देते रहे और उसका ख्याल रखे , एक दो हफ्ते में वो बिल्कुल ठीक हो जायेगा।”,डॉक्टर ने फाइल में दवाईया लिखते हुए कहा
डॉक्टर की बात सुनकर प्रताप जगत को देखकर मुस्कुरा दिया। आज प्रताप कितनो दिनों बाद मुस्कुराया था।

जगत ने प्रताप के कंधे पर हाथ रखा और कहा,”चलो राजन को घर लेकर चलते है।”
डॉक्टर ने फाइल जगत को थमा दी और दोनों भाई केबिन से बाहर जाने लगे। उन्हें जाते देखकर डॉक्टर ने राहत की साँस ली। प्रताप जाते जाते रुका और पलटकर वापस डॉक्टर के पास आया ये देखकर डॉक्टर मन ही मन थोड़ा परेशान हो गया कि अब प्रताप उस से क्या कहने वाला है ?


प्रताप डॉक्टर के पास आया और हाथ जोड़ते हुए कहा,”आपका बहुत बहुत शुक्रिया डाक्टर साहेब। आपने हमरे रजनवा की जान बचाई हम आपका जे अहसान कबो ना भूले।”
“अरे अरे ठीक है कोई बात नहीं मरीज का इलाज करना हमारा काम है।”,डॉक्टर ने प्रताप से अपनी जान छुड़ाते हुए कहा
प्रतपा जाने लगा लेकिन जाते जाते फिर पलटा और इस बार वह क्या कहेगा सोचकर डॉक्टर की सांसे अटक गयी।

वह घबराया हुआ सा प्रताप को देखे जा रहा था कि तभी प्रताप ने एक बार फिर अपने हाथ जोड़कर कहा,”उह सुबह जो हम बर्ताव आपके साथ किये रहय  उह के लिये हम आपसे माफ़ी चाहते है। का बताये एक ही बेटा है हमारा उह के मोह में हमहू थोड़ा ज्यादा ही गलत बर्ताव कर दिए आपके साथ , वो सब भूल कर हमका माफ़ कर दीजिये।”
प्रताप की बात सुनकर डॉक्टर पहले से ज्यादा हैरान हो गया और कहा,”ठीक है मैंने माफ़ किया अब आप लोग जाईये प्लीज।”


“ना ना डॉक्टर साहेब कुछ , बनारस में कुछो भी काम पड़े सीधा आकर हमसे कह देना हम करवाय देंगे और जे किसी ने हिम्मत की आपके खिलाफ बोलने की ससुरे को काट के रख देंगे,,,,,,,,,,,प्रताप नाम है हमारा”,अगले ही प्रताप ने कहा तो डॉक्टर फिर घबरा गया
जगत ने सूना तो वह प्रताप के पास आया और उसे ले जाते हुए कहा,”जे का कर रहे हो प्रतापवा उह डाक्टर है उसको काहे जे सब में डाल रहे हो। चलो राजन को घर लेकर चलो वैसे भी सूरज ढलने वाला है। चलो”
प्रताप अपने भाई जगत और अपने आदमियों के साथ राजन को लेकर घर के लिए निकल गया।

कुछ देर बाद ही गाड़ी घर के सामने आकर रुकी। राजन को ज्यादा कुछ याद नहीं था इसलिए उसे सब नया नया लग रहा था लेकिन वह खामोश था। जगत की पत्नी और बाकि घरवाले राजन के इंतजार में घर के बाहर ही खड़े थे। प्रताप , राजन और जगत गाड़ी से नीचे उतरे। घर की चकचौंध देखकर प्रताप की आँखे चुंधियाने लगी। जगत भी हैरान था कि जे सब किसने किया जबकि उन्होंने किसी को राजन के घर लौटने के बारे में तो किसी को बताया ही नहीं था।


जगत की पत्नी हाथ में आरती की थाली लेकर राजन के सामने आयी और उसकी आरती उतारकर कहा,”गंगा मैया का लाख लाख शुक्र है जो तुमहू सही सलामत घर लौट आये रजनवा , अब चलो अपना दाहिना पैर घर माँ रखो और अंदर आओ।”
राजन अपने सामने खड़ी अपनी बड़ी माँ को भी नहीं पहचान पा रहा था उसने असमझ की स्तिथि में प्रताप को देखा तो प्रताप ने कहा,”अरे कुछो नहीं बेटा , इते दिनों बाद तुम घर आये हो तो जे सब बस तुम से मिलने आये है। आओ अंदर चलो।”


राजन जैसे ही प्रताप के साथ अंदर जाने लगा एकदम से बेंड बाजे बजने लगे जिस से सबका ध्यान गली के नुक्कड़ पर चला गया। भूषण अपने लड़को के साथ जो कि असल में पहले राजन के लिए काम करते थे को साथ लेकर नाचते गाते राजन की तरफ आ रहा था। भूषण को वहा देखकर प्रताप की त्योरिया चढ़ गयी और गुस्से से आँखे लाल हो गयी। राजन के साथ जो कुछ हुआ उसकी वजह कही ना कही भूषण भी था।

लड़को के साथ नाचते गाते भूषण राजन के पास आया , उसको फूलों का बड़ा सा हार पहनाया और उसको गले लगाते हुए कहा,”बनारस में फिर से बहुत बहुत स्वागत है राजन भैया , अरे हम बता नहीं सकते आपको सही सलामत देखकर हम कितना खुश है।”
राजन हैरान सा भूषण के गले लगा रहा वह उन सब को पहचानने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। प्रताप ने देखा तो बाजे वालो से कहा,”अरे बंद करो जे सब,,,,,,,,,,,!!”


प्रताप की आवाज इतनी कठोर और कड़क थी कि एक बारगी में ही बाजे वालो ने सब बंद कर दिया। प्रताप भूषण की तरफ पलटा और उसे राजन से दूर करके कहा,”ए भूषणवा जे सब का तमाशा लगा रखे हो बे ? तुमको कहे थे हमरे राजन से दूर रहना साला तुम्हरे भेजे कुछो घुसता है कि नहीं,,,,,,,,!!”
“ए चचा देखो ऐसा है हम कोई ऐरे गैरे नहीं है जो आप जे सब बोल रहे है। राजन भैया हमरे दोस्त है आज इते दिन बाद अस्पताल से घर आये है इनके स्वागत में हमने जे सब किया तो का गलत किया,,,,,,,,,,,,,अरे हमरे ख़ुशी दिखाने का अंदाज यही है का समझे ?”,भूषण ने चौडाते हुए कहा


राजन ने सूना तो वह एकटक भूषण को देखने लगा। राजन को अपनी ओर देखते पाकर भूषण ने आसभरे शब्दों में कहा,”का राजन भैया ऐसे काहे देख रहे हो हमको ? अरे हम है भूषण आपके खास भूल गए का हमको ?”
राजन ने भूषण को देखा और फिर प्रताप की तरफ पलटकर कहा,”जे कौन है पापा ? और जे खुद को हमरा ख़ास काहे बता रहा है ?”


राजन के मुंह से ऐसी बात सुनकर भूषण का मुंह खुला का खुला रह गया। भूषण के साथ आये लड़को को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि राजन ये सब बोल रहा है। भूषण राजन के पास आया और कहा,”ए भैया जे का कह रहे हो आप ? अरे हम है भूषण आपके दोस्त , आपके साथी , भूल गए हमरे साथ पूरा बनारस घूमे हो , पुरे शहर में दबंगई किये हो ,, ओह्ह्ह्ह समझ गए हम आपसे मिलने अस्पताल नहीं आये इहलिये हमसे नाराज होकर जे सब बोल रहे हो ना


अरे उसके लिए हमका माफ़ कर दो। का करते प्रताप चचा ने आने से मना किया लेकिन सच कह रहे है हम हर रोज गंगा मैया से तुम्हरे ठीक होने की दुआ करते रहे है। अब गुस्सा थूक दयो और कहो की आप हमको जानते हो।”
राजन बस ख़ामोशी से सब सुन रहा था उसके सामने खड़ा भूषण इस वक्त उसके लिए बस एक अजनबी इंसान था जिसे वह बिल्कुल भूल चुका था। भूषण की बातो और वहा भीड़ देखकर राजन का सर चकराने लगा उसने अपना सर पकड़ लिया।


प्रताप ने देखा तो उसने भूषण को धक्का देकर पीछे किया और कहा,”बस बहुत हुआ भूषणवा , अपना तामझाम उठाओ और चुपचाप हिया से निकल जाओ वरना हमसे बुरा कोई ना होगा।”
“प्रताप चलो अंदर चलो , और राजन को जे सब लौंडो से दूर रखो,,,,,,,,,,,!!”,जगत ने कहा और राजन प्रताप को लेकर घर के अंदर चला गया।
भूषण फ़टी आँखों से उन सबको देखता रहा और अगले ही पल घर का दरवाजा बड़ी जोरो से उसके मुंह पर बंद कर दिया गया


“चलो यहाँ से भूषण भैया , या अभी और बेइज्जत होना है तुमको,,,,,,,,,!!”,साथ आये लड़को में से एक ने भूषण के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा
भूषण ने लड़के का हाथ झटका और वहा से चला गया उसके कानों में बस राजन के कहे शब्द गूंज रहे थे “जे कौन है पापा ? और जे खुद को हमरा ख़ास काहे बता रहा है ?”
चलते चलते आँसू की एक बूंद भूषण की आँख से निकलकर गाल पर लुढ़क आयी

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