Sanjana Kirodiwal

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“मैं तेरी हीर” – 13

Main Teri Heer – 13

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Main Teri Heer – 13

सुबह सुबह वंश बहुत ही प्यारा सपना देख रहा था और मुन्ना ने उसे उठा दिया। कुछ देर बाद वंश भी नीचे हॉल में चला आया। अम्बिका ने सबके लिए गरमा गर्म नाश्ता बनवा दिया। सभी साथ बैठकर नाश्ता करने लगे। नाश्ता करते हुए अधिराज जी ने कहा,”मुन्ना वंश बनारस के लिए कब निकलोगे ?”
“आज शाम में निकल जायेंगे नानाजी”,मुन्ना ने खाते हुए कहा
“मुन्ना कल सुबह जल्दी निकलते है न , देर रात तक बनारस पहुँच जायेंगे। गौरी भी साथ में है तो रात में निकलना सेफ नहीं होगा”,वंश ने अपनी खिचड़ी पकाते हुए कहा।
“बात तो वंश की भी सही है , तुम क्या कहते हो मुन्ना ?”,अधिराज जी ने पूछा तो मुन्ना वंश की तरफ देखने लगा वंश आँखों ही आँखों में मुन्ना से वही रुक जाने की रिक्वेस्ट कर रहा था। मुन्ना ने अधिराज जी को देखा और कहा,”ठीक है नानाजी कल सुबह निकल जायेंगे”
“कभी भी निकलिए लेकिन उस से पहले हमे सब घरवालों के लिए शॉपिंग करनी है”,काशी ने कहा
“ठीक है काशी तुम अपनी किसी सहेली के साथ निकल जाओ”,अम्बिका ने कहा
“नहीं नानी माँ हमारे दोनों भाई यहाँ है हम किसी सहेली के साथ क्यों जायेंगे ? हैं ना भाईयो ?”,काशी ने कहा तो वंश और मुन्ना दोनों ने हामी भर दी।
नाश्ता करने के बाद वंश नहाने चला गया। काशी अम्बिका की कुछ मदद करने लगी और मुन्ना घर देखने लगा। कितने सालो बाद मुन्ना यहाँ आया था , बचपन में एक बार वंश , काशी और अपने मां पापा के साथ आया था। मुन्ना घूमते हुए घर की एक एक चीज नोटिस कर रहा था।

11 बजे के आस पास काशी मुन्ना और वंश को लेकर शॉपिंग के लिए निकल गयी। जाने से पहले अधिराज जी ने उसे अपना कार्ड भी दे दिया अपना ताकि उसे किसी तरह की परेशानी ना हो।
जीप से तीनो सेंचुरी मॉल पहुंचे। मुन्ना ने जीप से उतरते हुए कहा,”काशी ये तो बहुत महंगा मॉल है , यहाँ सिर्फ ब्रांडेड चीजे मिलती है”
“हां इसलिये तो आये है , अनु मौसी को ना पिछली बार एक बैग बहुत पसंद आया था लेकिन वो ले नहीं पाई इसलिए इस बार हम उनके लिए ले लेते है। अब आप ज्यादा मत सोचो चलो”,काशी ने मुन्ना की बाँह थाम आगे बढ़ते हुए कहा।
वंश भी उनके साथ साथ चल पड़ा। ये मॉल इंदौर का सबसे बड़ा मॉल है और यहाँ काफी अच्छा समान मिलता था। काशी अपनी शॉपिंग करने लगी। वंश ने अपने लिए कुछ जींस खरीदे , दो जोड़ी जूते , एक गॉगल्स , सब बैग्स लिए वह वही मॉल में घूमने लगा। इतने बड़े मॉल में मुन्ना को अपने लिए खरीदने को कुछ भी नहीं दिखा। वह कम चीजों में खुश रहने वाला लड़का है सोचकर वह बस काशी के बैग्स उठाये उसके पीछे पीछे घूमता रहा। घर में सबसे छोटे और लाडले होने का यही तो फायदा है जो इस वक्त काशी को मिल रहा था। काशी को अपने लिए कुछ और सामान भी लेना था लेकिन बड़े भाई के सामने कैसे ले सोचकर उसने मुन्ना से कहा,”मुन्ना भैया आप अपने लिए कुछ देखिये तब तक हम आते है”
“ठीक है”,कहकर मुन्ना ने बैग काशी को थमा दिए और खुद वहा से दूसरी तरफ चला आया। चलते हुए उसकी नजर वंश पर पड़ी वह बच्चो के बीच बैठा विडिओ गेम्स खेल रहा था। मुन्ना को उसमे बचपना नजर आया। वह वहा से आगे बढ़ गया चलते चलते उसकी नजर वही कॉर्नर में बने एक बुक स्टोर पर गयी। यहाँ मुन्ना को अपने काम की चीजे दिखाई दी वह उस शॉप में चला आया और वहा बैठे आदमी से कहा,”क्या हम यहाँ बुक्स देख सकते है ?’
“स्योर सर , आपको किस तरह की किताबे चाहिए ? मैं हेल्प कर देता हूँ”,आदमी ने कहा
“शुक्रिया हम खुद देख लेंगे”,मुन्ना ने सहजता से कहा
“या प्लीज , दिस साइड”,आदमी ने मुस्कुराते हुए इशारा किया तो मुन्ना आगे चला गया। वहा रॉ में काफी किताबे रखी हुई थी हिंदी और इंग्लिश दोनों में। मुन्ना उन्हें देखने लगा। एक किताब उसे अच्छी लगी मुन्ना ने उसे उठाया और खोलकर देखने लगा वह किसी हिंदी लेखक की किताब का इंग्लिश एडिशन था मुन्ना उसे पढ़ने लगा। बुक के बारे में पढ़कर उसकी आगे जानने की इच्छा हुई तो उसने किताब का पन्ना पलटा पन्ना पलटते हुए मुन्ना की नजर सामने गई और वही जाकर ठहर गयी। रॉ के दूसरी तरफ उसके सामने गौरी खड़ी थी , कमर से ऊपर तक लाइट फिटिंग जींस , उस पर झीना लॉन्ग कुर्ता जिस से उसकी स्पोर्ट्स इनर साफ़ दिखाई दे रही थी। बालो को समेट कर पोनी टेल बना रखी थी , होंठो पर लिपस्टिक , आँखों में काजल और कानो में बड़े बड़े गोल इयररिंग्स। गौरी को देखने के चक्कर में मुन्ना के हाथ से किताब नीचे जा गिरी। मुन्ना ने किताब उठाकर जैसे ही सामने देखा गौरी गायब थी।
मुन्ना ने किताब वापस रॉ में रखी और उस तरफ आया जिस तरफ गौरी थी। तब तक गौरी दो रॉ छोड़ कर आगे जा चूकी थी , मुन्ना ने देखा तो स्टोर के कोने में किताबे देखती गौरी उसे फिर नजर आयी। मुन्ना वही खड़ा किताब देखने के बहाने उसे देखने लगा। जब गौरी की नजरे मुन्ना से मिली तो उसका दिल धड़क उठा और वह पलट गया। मुन्ना का मन किया एक बार फिर उसे देखे पर जैसे ही पलटा गौरी वहा नहीं थी। मुन्ना का मन बैचैन हो गया , वह बेचैनी से इधर उधर देखने लगा। किताब को हाथ में लिए गौरी को ढूंढने लगा कुछ देर बाद उसे गौरी सीढ़ियों की तरफ जाते हुए दिखाई दी। मुन्ना आगे बढ़ गया ये देखे बिना ही की सामने शीशे की दिवार है और उसका सर शीशे से जा टकराया। गनीमत था मुन्ना और शीशे दोनों को कोई नुकसान नहीं हुआ। गौरी जा चुकी थी बिना किताब लिए अपना सर सहलाते हुए मुन्ना बाहर आया। वह ऐसा क्यों कर रहा था खुद नहीं जानता था , लेकिन गौरी की एक झलक पाने के लिए पहली बार मुन्ना बैचैन था। वह अपना सर सहला ही रहा था की तभी वंश आया और कहा,”यहाँ क्या कर रहे हो ?”
“कुछ नहीं ऐसे ही तुम्हारी शॉपिंग हो गयी (कहते हुए वंश के हाथ में पकडे बैग देखता है और आगे कहता है) कुछ ज्यादा ही शॉपिंग नहीं कर ली तूने”,मुन्ना ने कहा
“अरे सब अपने लिए नहीं किया है आधी तेरे लिए भी की है ,, काशी कहा है ?”,वंश ने आधे बैग मुन्ना को देकर कहा
“वो शायद नीचे है चल चलते है”,मुन्ना ने कहा और वंश के साथ चल पड़ा। एक ही मॉल में होते हुए भी मुन्ना को गौरी दोबारा दिखाई नहीं दी
मुन्ना और वंश गौरी के पास चले आये। तीनो घर जाने के लिए मॉल से बाहर निकले तो वंश ने कहा,”मैं एक मिनिट में आया”
“अब वंश भैया को क्या काम आ गया ?”,गौरी ने बैग्स गाडी में रखते हुए कहा
“उसका कुछ पता नहीं काशी कब क्या करने लगे ? आओ तूम बैठो”,मुन्ना ने कहा
काशी और मुन्ना दोनों आकर जीप में बैठ गए और वंश का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद वंश आया उसके हाथ में तीन वेज रोल थे उसने एक काशी की तरफ बढ़ा दिया दूसरा मुन्ना की तरफ बढ़ा दिया और कहा,”अब तूम दोनों को तो भूख लगती नहीं है सोचा मैं ही कुछ खा लू”
“ये पहली बार तुमने कुछ ढंग का काम किया , चल आ बैठ”,मुन्ना ने कहा तो वंश पीछे आ बैठा और मजे से रोल खाने लगा। कभी अपने हाथ से काशी को खिलाता तो कभी मुन्ना को। तीनो की बॉन्डिंग काफी अच्छी थी तीनो भाई बहन कम दोस्त ज्यादा लगते थे।
दोपहर का खाना सबने घर पर ही खाया , सभी बैठकर सुस्ताने लगे लेकिन वंश को कहा चैन था। उसे तो बाहर जाना था कितनी सारी जगह थी घूमने के लिए लेकिन वह अभी तक सिर्फ दो जगह घुमा था एक पब दूसरा सेंचुरी मॉल। वंश की शक्ल देखते हुए मुन्ना ने तय किया की जाने से पहले वह उसे एक जगह लेकर जरूर जाएगा। इंदौर में वाटरफॉल्स बहुत थे और सबको देखना पॉसीबल नहीं था क्योकि मुन्ना के पास इतना वक्त नहीं था उसने यहाँ ना जाकर कही और ही जाने का प्लान बनाया उस जगह का नाम था “जनपव हिल”
एक नेचर लवर और ट्रेकर के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं थी। मुन्ना ने इस जगह के बारे में बहुत बार पढ़ा सूना था और आज उसके पास जाने का मौका भी था , इंदौर से 45 किलोमीटर दूर ये हिल मालवा पठार की दूसरी सबसे ऊँची जगह थी। मुन्ना ने काशी और वंश के सामने एक सरप्राइज की बात की लेकिन ये नहीं बताया की वह उन्हें कहा लेकर जा रहा है। काशी और वंश ख़ुशी ख़ुशी मुन्ना के साथ जाने को तैयार हो गए। मुन्ना ने शाम का वक्त चुना क्योकि शाम के वक्त ये हिल बहुत खूबसूरत दिखाई देता था।
तीनो दोपहर के 3 बजे ही घर से निकल गए ताकि देर ना हो। वंश तो कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड था लेकिन जैसे ही तीनो महू पहुंचे वहा लगा बोर्ड देखकर वंश का सारा एक्साइटमेंट खत्म हो गया और उसने कहा,”यार मुन्ना ये मठ मंदिर तो बनारस में ही देख लेते , मुझे लगा हम कोई वॉटरफॉल या माउंटेन देखने जा रहे है।”
“सब्र रखो वंश जरुरी नहीं है शुरुआत हमेशा खूबसूरत हो कभी कभी खुबसुरत अंत देखने के लिए भी ऐसी शुरुआत करनी पड़ती है”,मुन्ना ने कहा

“मेरा मूड ऑफ हो चुका है मुन्ना मैं जा रहा सोने”,कहते हुए वंश मुन्ना की बगल से उठकर पीछे सीट पर चला गया और अपना जैकेट मुंह पर डालकर सो गया। मुन्ना ने देखा तो काशी से कहा,”काशी तुम आगे आ जाओ”
काशी आगे मुन्ना की बगल में आ बैठी और कहा,”इस बार तो थोड़ा सा हम भी निराश है मुन्ना भैया , ये मठ मंदिर ये सब तो हमने भी बहुत देखे है बनारस में। नानू वैसे भी बाहर जाने की ज्यादा परमिशन नहीं देते , बस घर से कॉलेज , कॉलेज से घर ,, आपके और वंश भैया के आने के बाद ही हम इतना बाहर घूमे है ,, बट एन्ड ऑफ़ द मोमेंट ये जगह,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!”
“काशी चीजों की इतनी जल्दी जज करना हम इंसानो की फितरत होती है , अक्सर हम बाहरी खूबसूरती देखते है और उसे सच मान लेते है जबकि अंदर की खूबसूरती कभी हम देख ही नहीं पाते ,, तुम्हे हम पर भरोसा है ना काशी देखना ये जगह तुम्हे जरूर पसंद आएगी”,मुन्ना ने काशी को समझाते हुए कहा
“नहीं आएगी मेरी तरफ से 1000 की शर्त”,वंश ने मुंह ढके ढके ही अपना हाथ उठाते हुए कहा
“फिर तो 1000 रूपये तैयार रखना बेटा क्योकि इस बार फिर तुम हारने वाले हो”,कहते हुए मुन्ना ने जीप आगे बढ़ा दी। खूबसूरत रास्तो को चीरते हुए जीप आगे बढे जा रही थी। खूबसूरत घुमावदार मोड़ , चारो और हरियाली ही हरियाली और सुहावनी धुप। आधे रस्ते आते आते काशी को वह जगह अच्छी लगने लगी थी। पहाड़ी की चोटी पर जाने के लिए पैदल चलना था इसलिए मुन्ना , वंश और काशी जीप से उतरे और पैदल ही चल पड़े। जीप से ज्यादा मजा काशी को पैदल चलने में आ रहा था। जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे वंश को भी ये जगह अब पसंद आ रही थी। शहरो की चकाचोंध से दूर कितनी शांति थी यहाँ लेकिन इतनी जल्दी वह इस बात को कैसे मान लेता आखिर शर्त का सवाल था। कुछ समय बाद तीनो चोटी पर पहुँचे। काशी ने वहा का खूबसूरत नजारा देखा तो बस देखते रह गयी। इंदौर में रहने के बाद भी वह इस जगह से अनजान थी , इन खूबसूरत नजारो को वह अपनी आँखों में भरने लगी। वंश भी एक पल के लिए उन नजारो में खोकर रह गया। मुन्ना मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा और अपने पैर नीचे लटकाकर वही बैठ गया। वंश ने देखा तो वह भी उसके पास चला आया और थोड़ी दूरी बनाकर बैठ गया और सामने देखते हुए कहने लगा,”क्या जगह है यार मुन्ना ? मुझे तो लगा था तू फिर से मुझे कोई मंदिर में लेकर आएगा लेकिन ये जगह तो जन्नत से भी खूबसूरत है यार ,, मेरा तो दिल कर रहा है मैं हमेशा के लिए यही रह जाऊ”
“असली खूबसूरती अभी बाकी है वंश”,मुन्ना ने मुस्कुराते हुए कहा
काशी ने उन दोनों की बातें सुनी तो उनके पास चली आई , मुन्ना और वंश ने अपने अपने हाथ काशी की तरफ बढ़ा दिए। काशी ने दोनों के हाथो को थामा और उनके बीच आकर बैठ गयी। तीनो भाई बहन वहा बैठे प्रकृति की सुंदरता को निहार रहे थे। वंश ने अपना फोन निकाला और सेल्फी लेने लगा। जैसे जैसे वक्त गुजर रहा था मौसम और भी खुशनुमा हो रहा था। अपने दोनों भाईयो का हाथ थामे काशी बहुत खुश थी। जब सूर्यास्त होने लगा तो वहा का नजारा और भी खूबसूरत दिखाई देने लगा। वंश ने इस से पहले इतनी खूबसूरत जगह कभी नहीं देखी थी।
कुछ देर बाद मुन्ना ने कहा,”अच्छा तो वंश चले ?”
“मुन्ना थोड़ी और रुकते है ना प्लीज”,वंश ने कहा
“1000 रूपये”,मुन्ना ने कहा तो वंश ने उसे 500-500 के दो नोट पकड़ा दिए और कहा,”अगली बार इस से बदल लूंगा मैं तुझसे”
तीनो कुछ देर वहा रुके और सूर्यास्त से पहले ही नीचे जीप के पास चले आये। 1 घण्टे के सफर के बाद जीप एक बार फिर अधिराज जी के घर के सामने थी। ठंड से तीनो की हालत खराब , वंश तो आते ही कम्बल में घुस गया। खाना बनने में अभी देर थी इसलिए काशी और मुन्ना भी कपडे बदलने चले गए।

रात के खाने के बाद काशी अपने कमरे में आकर अपने बैग ज़माने लगी। वह जानती थी की वंश ऐसे मामलो में बहुत आलसी है इसलिए वह आयी और वंश का बैग भी ज़माने लगी। मुन्ना ने अपना सामान पहले ही पैक कर दिया था। काशी ने देखा वंश सो रहा है लेकिन मुन्ना नरारद है। वंश का बैग जमाने के बाद काशी मुन्ना को ढूंढते हुए ऊपर छत पर चली आयी। मुन्ना को काशी के आने का आभास नहीं हुआ वह छत की दिवार के पास खड़ा सिगरेट के कश लगा रहा था। काशी उसके पास आई , काशी को देखते ही मुन्ना ने सिगरेट बुझाकर तुरंत फेंक दी। वह कुछ कहता इस से पहले ही काशी ने कहा,”अच्छा तो आप ये सब शौक भी रखते है , लेकिन सिगरेट पीना हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है मुन्ना भैया।”
“काशी बस कभी कभार , रोज नहीं पीता मैं और घर में वंश के अलावा किसी को इस बारे में पता भी नहीं है”,मुन्ना ने धीमी आवाज में कहा
“कोई बात नहीं हर इंसान के अपने सीक्रेट्स होते है। हम किसी को नहीं बताएँगे लेकिन उम्मीद करेंगे की आप ये बुरी आदत छोड़ दे ,, क्योकि आप हमसे बड़े है और हम आपको हमेशा एक अच्छे लड़के के रूप में देखते है जो कभी गुस्सा नहीं करता , जो कभी तेज आवाज में बात नहीं करता , जो किसी का भी बुरा नहीं सोचता , जिनमे कोई बुरी आदत नहीं है सिवाय इस सिगरेट के”,काशी ने अपनी पलके झपकाते हुए कहा
मुन्ना काशी को एकटक देखने लगा , और कुछ देर बाद कहा,”कभी कभी तुम बिल्कुल बड़ी माँ की तरह लगती हो काशी”
“हम्म्म वो तो ठीक है पहले ये बताईये सिगरेट कब छोड़ेंगे ?”,काशी ने कहा
“छोड़ दूंगा”,मुन्ना ने मुस्कुरा कर कहा जबकि वह भी जानता था की ये इतना आसान नहीं था
“वैसे एक बात बताये मुन्ना भैया जिस दिन आपकी जिंदगी में कोई सही लड़की आएँगी और वो आपसे सिगरेट छोड़ने को कहेंगी तब देखियेगा आप बिना किसी ऐतराज के सिगरेट छोड़ देंगे”,काशी ने कहा
“अच्छा सिगरेट छोड़ने के लिए लड़की का जिंदगी में आना जरुरी है क्या ?”,मुन्ना ने कहा
“अरे मुन्ना भैया सिगरेट और लड़की का बहुत पुराना रिश्ता है , आप नहीं समझेंगे लव स्टोरी नहीं पढ़ते ना आप”,काशी ने कहा
“अच्छा है नहीं पढ़ते वरना पता नहीं कौन कौन से लॉजिक सुनने को मिलते”.मुन्ना ने कहा तो काशी हसने लगी और फिर दोनों नीचे चले आये।

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क्रमश – “मैं तेरी हीर” – 14

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