“कश्मीर की पनाहों में” – 4

Kashmir Ki Panaho Me – 4

Kashmir Ki Panaho Me
Kashmir Ki Panaho Me

चित्रलेखा को बचाने वाला वो शख्स कोई और नहीं बल्कि केप्टन देवाशीष ही थे। देवाशीष जिन्दा रहे और इस देश की रक्षा करे ये सोचकर चित्रलेखा ने खुद को मौत के घाट उतार दिया। उसने अपनी गर्दन पर चाकू चलाया और खुद को खाई में धकेल दिया। आतंकवादी के लिबास में खड़ा देवाशीष फ़टी आँखों से चित्रलेखा के गिरते शरीर को देखता रहा।
“शाबाश पॉश नंबर 12 बहुत खूब,,,,,,,,,,,,,,अगर हम नियमो में नहीं बंधे होते तो उस कश्मीरी लड़की के साथ खूब मजे करते”,दोनों नकाबपोश लड़को में से एक ने आकर देवाशीष से कहा। उसकी बात सुनकर देवाशीष का खून खौल गया और उसने उस आदमी की गर्दन पकड़कर गुस्से से उसका सर नीचे जमीन पर जोर से दे मारा , आदमी को एक झटका लगा , उसकी गर्दन टूट गयी और नाक , कान , मुँह से खून निकलने लगा।
“पॉश नंबर 12 ये क्या किया तुमने ?”,दूसरे नकाब पॉश ने कहा तो देवाशीष ने अपने चेहरे से अपना नकाब हटाया। चेहरा देखते ही सामने खड़ा नकाबपोश काँपने लगा और कहा,”इंडियन आर्मी केप्टन देवाशीष”
देवाशीष ने उसे आगे बोलने का मौका ही नहीं दिया झट से अपने कोट के आस्तीन में रखे चाकू को निकला और फेंका जो की जाकर सीधा जाकर दूसरे नकाबपोश के गले में लगा और उसके आगे के शब्द गले में ही रह गए। वह घुटनो के बल गिरकर वही ढेर हो गया। देवाशीष ने जल्दी से आकर खाई में झांका लेकिन चित्रलेखा तो कबका उसे अलविदा कहकर जा चुकी थी। देवाशीष का दिल कठोर था शायद इसलिए उसकी आँखों से आँसू नहीं निकले वह घुटनो के बल बैठ गया उसकी आँखों के सामने चित्रलेखा का मुस्कुराता चेहरा आने लगा। चित्रलेखा से उसका पहली बार मिलना , चित्रलेखा का उसे बार बार सेल्यूट करना , मार्किट में चित्रलेखा का उसे छुप छुप कर देखना , सेना से बचने के लिए देवाशीष पर भरोसा कर उसका हाथ थामना , सब देवाशीष की आँखों के सामने किसी फिल्म सा चल रहा था।
देवाशीष के पास ज्यादा वक्त नहीं था , कुछ देर बाद वह उठा और अपने चेहरे को वापस कपडे से ढक लिया और तेज कदमो से वहा से निकल गया। देवाशीष वहा से निकलकर आतंकवादियों के गिरोह में पहुंचा और चुपचाप उनमे शामिल हो गया। कुछ देर बाद लीडर आया और कहा,”सब लोग आ गए ?”
“दो लोग कम है लीडर”,एक नकाबपोश ने कहा
“हो सकता है वो सेना के हाथ लग गए हो , हमे उनके लिए इंतजार नहीं करना चाहिए,,,,,,,,,,,,,,सब चलो और पॉश नंबर 12,,,,,,,वो कहा है ?”,लीडर ने ऊँची आवाज में कहा
“मैं यहाँ हूँ सर”,देवाशीष ने अपना हाथ उठाते हुए कहा
लीडर ने सबको एक लाइन बनाकर चलने को कहा। सभी एक लाइन में होकर चलने लगे , देवाशीष सबसे पीछे था और उसके पीछे था लीडर का सबसे खास आदमी देवाशीष के पीछे। सबने हथियार उठाये हुए थे और लीडर के पीछे चुपचाप चले जा रहे थे। देवाशीष भी ख़ामोशी से चला जा रहा था। इस दिन का वह पिछले 5 महीनो इंतजार कर रहा था , देवाशीष आतंकवादियों को नहीं बल्कि उस जड़ खत्म करना चाहता था जो मासूम कश्मीरी लोगो को आतंकवादी बनने पर मजबूर कर रही थी। लीडर जंगल के रास्ते से सबको लेकर आगे बढ़ा। देवाशीष बड़े ध्यान से उन रास्तो को देख रहा था। लीडर के आदमी ने देवाशीष को इधर उधर नजर मारते देखा तो उसकी पीठ से अपनी बन्दुक की नोक लगाई और कहा,”ए सर झुकाकर चलो”
देवाशीष किसी तरह की गलती नहीं चाहता था इसलिये उसने गर्दन झुका ली और आगे बढ़ गया। वह अपनी पारखी नजरो से सब देखते हुए आगे बढ़ रहा था। काफी देर तक चलने के बाद लीडर सबको लेकर एक पहाड़ के सामने पहुंचा। सभी हैरान थे , आगे कहा जाना है कोई नहीं जानता था

आगे रास्ता बंद था देवाशीष के साथ साथ बाकि सब भी खामोश खड़े इंतजार करने लगे। लीडर ने अपने खास आदमी को इशारा किया वह आगे आया। शामे पड़े पेड़ के मोटे से तने और घास फूस को हटाया। कुछ देर बाद ही एक बड़ा सा पत्थर का दरवाजा नजर आया। लीडर ने इशारा किया तो तीन-चार पॉश आगे आये और उस पत्थर को हटाने लगे। पत्थर हटाने के बाद देखा की वो एक सुरंगनुमा अंदर जाने का रास्ता था। देवाशीष ने देखा तो उसकी आँखे फ़ैल गयी। आज से पहले सेना कितनी बार इस जगह आयी होगी लेकिन इस सुरंग के बारे में किसी को कुछ नहीं पता था। सब एक एक करके अंदर जाने लगे , , उस सुरंग में काफी अन्धेरा था और सब बस रेंगते हुए आगे बढ़ रहे थे। देवाशीष भी अंदर चला आया वह इस बार भी लाइन में सबसे पीछे था और उसके पीछे लीडर का खास आदमी। देवाशीष के पास यही एक मौका था उसके पास कुछ वक्त ही था जिसमे वह इन लोगो को मौत के घाट उतार सके। चलते चलते देवाशीष रुका , लीडर का खास आदमी चलते हुए उस से टकराया तो गुस्से से कहा,”रुक क्यों गए आगे बढ़ो ?”
देवाशीष की पारखी नजरो ने अँधेरे में भी उस आदमी को महसूस कर लिया और अपने हाथ में पकड़ा चाकू उसकी गर्दन में भौंक दिया। आदमी की सांसे अटक गयी , उसकी आवाज तक किसी को सुनाई नहीं दी क्योकि देवाशीष का दुसरा हाथ उसके मुंह पर था,,,,,,,,,,,कुछ वक्त बाद आदमी मर गया देवाशीष ने उसे वही जमीन पर डाला और बाकि लोगो के साथ आगे बढ़ गया। चलते चलते उसने फिर अपने आगे वाले आदमी का मुंह अपने हाथ से बंद कर उसे वही रोक लिया और उसकी गर्दन को एक झटका दिया। एक एक करके देवाशीष उन आतंकियों को मौत के घाट उतारता जा रहा था। सबको मारकर देवाशीष अब लीडर के बिल्कुल पीछे था देवाशीष को कुछ आगे हल्की सी रौशनी दिखाई दी , वह समझ गया की वे लोग मालिक के पास पहुँचने वाले है। लीडर ने चलते हुए
कहा,”सभी पॉश अपना सर झुकाकर आगे बढ़ेंगे , आज तुम सब इस गिरोह के सबसे अहम् इंसान से मिलने जा रहे हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,वही है जो हमे कश्मीर दिला सकता है इसलिए उसके सम्मान में सदैव तुम्हारे सर झुके रहने चाहिए”
लीडर ने जोश के साथ कहा लेकिन कोई जवाब नहीं आया। हैरानी से उसने पलटकर देखा एक पॉश के अलावा पीछे और कोई नहीं था। लीडर हैरान हो गया खतरे को भांपते हुए उसने जैसे ही अपना हाथ हथियार की तरफ बढ़ाया देवाशीष ने बिना एक पल गवाए अपने हाथ में पकडे चाकू को लीडर के हाथ पर चलाया एक झटके में ही लीडर का हाथ कटकर नीचे जा गिरा और वह दर्द से बिलबिलाने लगा। दौड़ते हुए कदमो की आहट देवाशीष के कानो में जैसे ही पड़ी उसने चाकू का दुसरा वार लीडर की गर्दन पर किया और वहा से अंदर चला गया। गिरोह के कुछ लोग आये उन्होंने लीडर को मरा पाया। वे लीडर को सम्हालने लगे , कुछ देर बाद ही एक आतंकी को वहा एक दुर्गन्ध का आभास हुआ। कुछ देर बाद ही उसने महसूस किया वे लोग जिस जगह खड़े है वो जगह गीली है , एक आतंकी ने उस जगह को छूकर नाक से लगाया और हैरानी से अपने साथियो से कहा,”ये तो पेट्रोल है”
बाकि सभी खुद को सम्हाल पाते इस से पहले ही देवाशीष माचिस लिए उनके सामने आया , जैसे ही उन लोगो ने हथियार उठाये देवाशीष ने तीली जलाकर जमीन पर फेंक दी और देखते ही देखते आग ने उन लोगो को पकड़ लिया। दर्द से बिलबिलाते हुए वे सभी इधर उधर भागने लगे। देवाशीष पूरी तैयारी के साथ वहा आया था। वह उन लोगो को छोड़कर आगे बढ़ गया , उसने हाथ में हथियार उठाया था। उसने देखा सामने से कुछ आतंकी भागे हुए आ रहे है , देवाशीष ने आतंकियों वाले कपडे पहने थे और मुँह ढका था इसलिए वे लोग उसे पहचान नहीं पाए। जैसे ही वे देवाशीष के पास आये देवाशीष ने कहा,”लीडर का आदेश है की सभी गुप्त रास्तो को बंद कर दिया जाये”
“जो आदेश पॉश”,कहकर सभी आगे बढ़ गए , देवाशीष के लिए ये थोड़ा आसान हो गया , कुछ आतंकी मारे जा चुके थे और कुछ को देवाशीष भटकाने में सफल हो गया वह तेज कदमो से आगे बढ़ा। जैसे ही वह उस गैलरी से बाहर निकला सामने का नजारा देखकर उसकी आँखे चुँधिया गयी। सैंकड़ो कश्मीरी लड़के वहा मौजूद थे और उनके हाथो में हथियार थे , देवाशीष अगर जंग का ऐलान भी करता तो इतने लोगो से एक साथ नहीं निपट पाता। देवाशीष वही गिरोह के लोगो में शामिल हो गया। पत्थरो से बने ऊँचे सिंहासन पर बैठा आदमी नीचे आया उसने भी नकाब पहन रखा था और उसके हाथ में हथियार था। उसने अपनी भारी भरकम आवाज में कह्ना शुरू किया,”खबर मिली है की सेना का एक आदमी यहाँ घुस आया है , इतनी कड़ी पाबंदी और सुरक्षा के बाद भी सेना के आदमी का यहाँ आना मतलब हम सबकी हार,,,,,,,,,,,,,,,,,लेकिन एक जवान हमारा क्या बिगाड़ लेगा उसे भी उसकी सेना की तरह रौंद दिया जाएगा। कश्मीर घाटी पर कब्जा करने का वक्त आ गया है , सब अपने हथियार उठाओ और कहो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कहो की हम तैयार है”
“हम तैयार है”,एक तेज शोर गुंजा। देवाशीष मन ही मन योजना बना रहा था , इतने लोगो से एक साथ नहीं निपट सकता था इसलिए उसने अपने दिमाग पर जोर डाला उसे अपने मेजर की कही एक बात याद आयी “जब भीड़ को नियंत्रित ना कर सको तो उसे चलाने वाले रिमोट पर प्रहार करो,,,,,,,,,,,,भीड़ का होंसला अपने आप टूट जाएगा”
देवाशीष ने अपनी आँखे खोली उसकी आँखों के सामने आतंकवादियों के गिरोह का मालिक था , देवाशीष समझ गया उसे क्या करना है ? वह गिरोह में सबसे पीछे खड़ा हो गया और अपनी योजना पर काम करने लगा। गिरोह के मालिक ने सबको देखा और कहा,”इस मिशन की शुरुआत करने से पहले हमे एक बलि देनी होगी , पॉश (देवाशीष की तरफ इशारा करके ) तुम आगे आओ”
देवाशीष को लगा की वह नजर में आ चुका है उसने अपने हाथ में पकडी गन पर उंगलिया कस ली और आदमी की तरफ बढ़ गया। देवाशीष उसके सामने आया तो गिरोह के मालिक ने दूसरे पॉश को बलि के लिए आदमी को लाने का इशारा किया। देवाशीष की नजरे उस तरफ चली गयी जैसे ही उसने बलि के लिए लाये जाने वाले आदमी को देखा उसकी आँखे हैरानी से फ़ैल गयी वो कोई और नहीं बल्कि सेना के नए केप्टन “मुरली कृष्ण राव” थे। मुरली कृष्ण राव को शायद बहुत मारा गया था इसलिए उनकी हालत इस वक्त काफी दयनीय थी। आतंकियों ने उनकी मालिक के कदमो में गर्दन पत्थर रख दी और पीछे हट गयी।
“पॉश वो तलवार उठाओ और इस गद्दार की गर्दन धड़ से अलग करके अपनी वीरता का परिचय दो”,मालिक तेज आवाज में चिल्लाया
मुरली कृष्ण राव को वहा देखकर देवाशीष को देश से की उसकी गद्दारी याद आ गयी , उसने बड़ा सा धारदार हथियार उठाया , एक पल को उसका दिल किया की मुरली कृष्ण राव का सर धड़ से अलग कर दे लेकिन उसने नहीं किया , ऐसा करके वह अपने देश का सम्मान कम नहीं करना चाहता था। देवाशीष के हाथो ने मजबूती से हथियार को थाम रखा था सबकी नजरे उस पर थी और देवाशीष की नजरे मुरलीकृष्ण राव पर,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
“पॉश इस गद्दार पर हथियार चलाओ”,मालिक ने जैसे ही चिल्लाकर कहा देवाशीष ने एक हथियार से तेज वार किया। देवाशीष ने वो वार मुरलीकृष्ण राव पर नहीं बल्कि अपने पास खड़े गिरोह के मालिक पर किया था। मालिक की गर्दन एक झटके में कटी और सर धड़ से अलग होकर नीचे जमीन पर जा गिरा। देखने वालो की सांसे अटक गयी , सबकी आँखे हैरानी से फ़ैल गयी और माहौल में एक शांति सी छा गयी। मालिक का धड़ भरभरा कर जमीन गिर पड़ा।
अपने मालिक को मरता देखकर कुछ आतंकियों ने तो घुटने टेक दिए और कुछ ने अपने हथियार उठा लिए। देवाशीष बिना देरी किये झुका और मुरलीकृष्ण राव को उठाकर चटटान के पीछे करते हुए खुद भी उसके पीछे आ गया। उसने अपने दोनों हाथो में हथियार उठाये और अपने ईशवर को याद कर दुश्मन के सामने आ खड़ा हुआ। तड़ातड़ गोलिया बरसाता हुआ देवाशीष , दुश्मनो को लहू लुहान करता आगे बढ़ रहा था। गोलीबारी में एक गोली आकर उसके हाथ पर लगी लेकिन उसे अपनी जान की परवाह नहीं थी उसे आज इन दुश्मनो को जड़ से मिटाना था। वो कश्मीर जंगल का आखरी छोर था जिसके बारे में सेना को भी कोई खबर नहीं थी। मुरली कृष्ण राव अभी समझ नहीं पाया था की एक आतंकवादी अपने ही साथियो को क्यों मार रहा है ?

देवाशीष को अकेले दुश्मनो से लड़ते देखकर मुरली कृष्ण राव को शर्मिंदगी महसूस हुयी , वह काफी घायल था लेकिन फिर भी वह उठा और अपने हथियार लेकर दुश्मनो से लड़ गया। देखते ही देखते वहा दुश्मनो की लाशों का ढेर लग चुका था। गिरोह के जरिये जिन लड़को को आतंकवादी बनाया जा रहा था वे सब सहमे हुए से एक तरफ घुटने टिकाये बैठे थे। उनमे इतनी हिम्मत भी नहीं थी की वे देवाशीष से सामना कर पाए। सभी दुश्मन मारे जा चुके थे , देवाशीष ने अपने मुँह से कपड़ा हटाया जैसे ही मुरली कृष्ण ने देखा हैरानी से कहा,”केप्टन देवाशीष आप ?”
देवाशीष ने नफरत भरी नजरो से मुरली कृष्ण राव को देखा और फिर घुटनो पर गिरे उन लड़को की तरफ आये और कहने लगे,”तुम सबके पास दो चॉइस है या तो मुझसे लड़ो और इन लोगो की तरह मारे जाओ या फिर खुद को सेना के हवाले कर दो। मैं भरोसा दिलाता हूँ तुम्हे कुछ नहीं होगा,,,,,,,,,,,,,,मैं जानता हूँ तुम इसी देश के नागरिक हो लेकिन इन आतंकवादियों ने तुम्हारे दिमाग में ये जहर भर दिया है और तुम सब जवानों को अपना दुश्मन समझने लगे हो। सेना के जवान दिन रात अपनी ड्यूटी करते है बिना अपने बारे में सोचे वो देश के लिए , इस देश में रहने वालो के लिए , तुम सबके लिए शहीद हो जाते है। कुछ आतंकी लोग तुम्हारे जरिये तुम्हारे ही देश को बर्बाद करने का सपना देखते है और सेना का काम होता है डटकर उनका सामना करना , अपने देश की रक्षा करना। इस देश के नागरिक होने के नाते क्या तुम सबका फर्ज नहीं बनता ? कश्मीर हमारा कश्मीर तुम्हारा इस बात को छोड़कर तुम सब ये क्यों नहीं देखते की ये देश , इस देश के लोग और इस देश की सेना भी तुम्हारी ही है। आतंकवादीयो का कोई परिवार नहीं होता इन्हे सिर्फ अपने गलत इरादों को अंजाम देना होता है , लेकिन तुम सब,,,,,,,,,,,तुम सब का परिवार है , तुम्हारे माँ बाप तुम्हारी राह देखते होंगे , क्या सिर्फ इसलिए की एक दिन तुम सब भी आतंकवादी बनकर उनके सामने जाओ,,,,,,,,,,क्या उस वक्त तुम उनसे नजरे मिला पाओगे ?,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं तुम सबको 5 मिनिट का वक्त देता हूँ फैसला कर लो खुद को सेना के हवाले करके एक नयी जिंदगी शुरू करनी है या फिर खुद को आतंकी बनाकर अपने ही देश के खिलाफ जाना है”
देवाशीष की बातें सुनकर एक लड़का खड़ा हुआ और कहा,”मैं भारतीय सेना के साथ हूँ सर , मैं आपके साथ चलूँगा”
“ए क्या कर रहे हो तुम तुम जानते हो ना ये हमारे दुश्मन है , ये हमे कश्मीर कभी लेने नहीं देंगे”,दूसरे लड़के ने उसका हाथ खींचते हुए कहा
देवाशीष ने सूना तो मुस्कुराने लगा उसे मुस्कुराते देखकर सब हैरान हो गए , मुरली कृष्ण राव भी देवाशीष के मुस्कुराने की वजह नहीं समझ पाया। देवाशीष ने सब लड़को को देखा जिनके चेहरे पर मासूमियत थी लेकिन दिमाग में जहर भरा था जो की इन कुछ आतंकवादियों की देन था। देवाशीष ने एक गहरी साँस ली और कहने लगा
“एक जवान जब इंडियन आर्मी ज्वाइन करता है तो ये उसके लिए बहुत गर्व की बात होती है। वह जवान अपना घर , अपना शहर , अपने दोस्त , अपना परिवार , अपनी जान से प्यारे माँ बाप और कोई अपनी प्रेमिका तो कोई अपने बीवी बच्चो को छोड़कर देश के लिए अपना फर्ज निभाने चला आता है। ड्यूटी के पहले दिन से लेकर ड्यूटी के आखरी दिन तक उनका एक ही मकसद रहता है अपने देश की हिफाजत,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,इंडियन आर्मी ने कभी इस देश को शहर या मुल्को के हिसाब से नहीं जाना है आर्मी का हर जवान इसे भारत के नाम से जानता है और अपनी आखरी साँस तक वो अपनी भारत माँ की हिफाजत करता है। जवानो के लिए साल के 365 दिन एक जैसे ही होते है , सर्दी , गर्मी , बारिश या तूफान उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है वो हर मौसम में अपने फर्ज के लिए सीमा पर डटे रहते है। आर्मी का जवान कभी नहीं कहता मेरा कश्मीर , मेरा हिमांचल , मेरा बंगाल वो बस कहता है मेरा भारत,,,,,,,,,,,क्योकि सेना का जवान कभी अपने देश को हिस्सों में नहीं देखता वो उसे एक ही मानकर चलता है फिर तुम सब लोगो को ये क्यों लगता है की सेना का जवान तुमसे तुम्हारा कश्मीर छीन लेगा ? क्यों तुम लोगो ने अपने ही देश के सेनिको को अपना दुश्मन समझ लिया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं “केप्टन देवाशीष राठौर” इंडियन आर्मी का एक जवान होने के नाते ये कहूंगा की आर्मी तुम्हारी सुरक्षा के लिए है तुम्हारी दुश्मन नहीं,,,,,,,,,आज जो सेना कश्मीर में है कल को उनकी ड्यूटी कही और भी होगी तो वो अपना काम उतनी ही मेहनत और ईमानदारी से करेंगे जितना कश्मीर में किया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पर कश्मीर के नागरिक होने के नाते क्या तुम सब ये कर पाते हो,,,,,,,,,,,,,दुश्मन देश से आये आतंकवादी कौन होते है तुम सबको ये बताने वाले की ये देश तुम्हारा है या नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,क्या तुम्हे खुद पर भरोसा नहीं है , क्या तुम इतने कमजोर हो की तुम्हे अपने हक़ के लिए अपने दुश्मनो की मदद की जरूरत पड़ी,,,,,,,,,,,,,,,,सोचकर ही शर्म आती है। अगर मैं अकेला ऐसे 100 दुश्मनो को से लड़ने की हिम्मत रखता हूँ तो क्या तुम सब अपने देश की सुरक्षा के लिए ऐसे दुश्मनो को पनाह देना बंद नहीं कर सकते। अगर इन आतंकवादियों पर इतना भरोसा दिखा सकते हो तो क्या उस सेना पर थोड़ा सा भी विश्वास नहीं दिखा सकते जो तुम्हारी सुरक्षा के लिए हँसते हँसते शहीद हो जाते है,,,,,,,,,,,,,,,,मुझे गर्व है अपनी इंडियन आर्मी पर क्योंकी मेरी आर्मी ने अपने स्वार्थ के लिए कभी किसी बेकसूर को नहीं मारा है और मैं जब तक ज़िंदा हूँ अपने देश के खिलाफ बोलने वाले और इसे बर्बाद करने की भावना रखने वाले हर उस गद्दार से भिड़ने को तैयार हूँ फिर चाहे मैं अपने देश के लिए मर भी क्यों ना जाऊ मुझे अफ़सोस नहीं होगा , बल्कि पुरे गर्व से मैं सीना तानकर अपने देश के उन नौजवानो को सेल्यूट करूंगा जिन्होंने अपनी जिंदगी अपने देश के नाम कर दी और सिर्फ इंडियन आर्मी ही नहीं बल्कि मेरी नजर में वो हर शख्स इंडियन आर्मी का हिस्सा है जो अपने देश के साथ खड़ा है”
देवाशीष की बात सुनकर सबकी आँखे शर्म से झुक गयी , सबको अहसास हुआ की दुश्मनो की बातो में आकर वे अपने ही देश के खिलाफ जाने लगे थे , अपने ही लोगो को मारने लगे थे। देवाशीष ने एक नजर उन सबको देखा और तेज तेज साँस लेने लगा , वह जैसे ही पलटा सामने खड़े “मुरली कृष्ण राव” ने पुरे सम्मान के साथ उसे सेल्यूट किया। मुरली कृष्ण राव की आँखों में पश्चाताप के आँसू थे। कुछ क्षण बाद ही वह लड़खड़ा कर जमीन पर आ गिरा , देवाशीष ने देखा तो उसकी तरफ लपका और उसे सम्हला
“मैं आपकी माफ़ी के लायक नहीं हूँ केप्टन , उन आतंकवादियों की तरह मैं भी तो सेना में गद्दार ही था लेकिन मैं एक बात कहना चाहूंगा केप्टन मैंने कभी देश को बर्बाद करने का नहीं सोचा,,,,,,,,,,,,,,,,मैं हमेशा देश के हक़ में लड़ा हूँ केप्टन ,, मैंने जो पाप किये मुझे उनकी सजा मिल चुकी है,,,,,,,,,,,,,,,,,क्या आप मेरी एक आखरी इच्छा पूरी करेंगे केप्टन ?”,मुरली कृष्ण ने कहा।
“तुम्हे कुछ नहीं होगा राव तुम हिम्मत रखो , मैं तुम्हे यहाँ से ले जाऊंगा,,,,,,,,,,तुमने जो किया वो पद और सम्मान के लालच में किया मैं जानता हूँ। तुम एक बहादुर सिपाही हो और तुम्हे हमेशा अपनी वीरता का परिचय दिया है।”,देवाशीष ने पुरानी बातो को भूलकर कहा
“मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है केप्टन , मैं चाहूंगा जब मैं मरू तो मुझे तिरंगे में ना लपेटा जाये,,,,,,,,,,,,,क्योकि मैंने दुश्मनो से मिलकर अपनी ही सेना को धोखा दिया मैंने अपने देश और अपने तिरंगे का सम्मान नहीं किया , मैं उसका हक़दार नहीं हूँ बस मेरी आखरी इच्छा जरूर पूरी करना केप्टन,,,,,,,,,,,,,,,मुझे जाना होगा”,मुरली कृष्ण ने कहा
“नहीं राव,,,,,,,,,,,,,,,तुम्हे अपनी गलती का अहसास है , मैंने तुम्हे माफ़ किया”,देवाशीष ने कहा
“नहीं केप्टन माफ़ी गलतियों के लिए होती है गुनाहो के लिए नहीं , इस देश को मेरी नहीं बल्कि आप जैसे जवानों की जरूरत है , जय हिन्द सर”,कहते हुए मुरली कृष्ण राव की गर्दन एक तरफ लुढ़क गयी। देवाशीष ने अपना हाथ उसकी आँखों पर फेरकर उसकी आँखे बंद कर दी। अपने साथी को खोने का दुःख उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था।
देवाशीष ने अपनी पीठ वही पास पड़ी चट्टान से लगा ली , इस जंग में उसने ना जाने कितनो को खोया था सब उसकी आँखों के सामने एक एक करके आने लगे। लड़के जो घुटनो के बल बैठते थे एकदम से उठे और देवाशीष की सुरक्षा के लिए उसके चारो ओर एक गोल घेरा बनाकर खड़े हो गए। देवाशीष ने उन्हें देखा तो उसके चेहरे पर सुकून के भाव उभर आये,,,,,,,,,,,,,,,इतनी क़ुरबानी का उसे कुछ तो फल मिला।
कुछ घंटो बाद वहा सेना की टुकडिया पहुंची जब उन्होंने देखा देवाशीष ज़िंदा है तो सबकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। लेफ्टिनेंट सूरज तो ख़ुशी के मारे रो पड़े। सेनिको ने सभी दुश्मनो की लाशो को इकट्ठा किया। केप्टन मुरली कृष्ण राव शहीद हो चुके थे उनके पार्थिव शरीर को रेजीडेंसी भेज दिया गया। गोली लगने और घायल होने की वजह से जैसे ही देवाशीष लड़खड़ाया दो कश्मीरी लड़को ने आकर उसने सहारा दिया और उसके दांये बाँये आ गए। देवाशीष ने देखा सेना पर पत्थर फेंकने वाले , सेना को अपना दुश्मन समझने वाले लोग आज सेना की मदद कर रहे थे।
उसी शाम सभी रेजीडेंसी पहुंचे , देवाशीष को देखकर मेजर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा , देवाशीष की हालत गंभीर थी इसलिए उसे तुरंत इलाज के लिए भेज दिया। जिन लड़को को सेना लेकर आयी थी उन सबको वही रेजीडेंसी के हॉल में रखा गया। जो जवान शहीद हुए उनके पार्थिव शरीर उनके घर भेज दिए गए।

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7 दिन बाद –
देवाशीष अपने टेंट में था उसने अपनी आर्मी यूनिफॉर्म पहनी , जूतों के लेस बांधे , अपनी केप लगाईं और टेंट से बाहर चला आया। देवाशीष मेजर सर के ऑफिस में आया और उन्हें सेल्युट किया। मेजर साहब के अलावा भी वहा कर्नल साहब और कुछ केप्टन थे।
“देवाशीष आपको आपकी कैप्टन्सी वापस दी जा रही है , एक बार फिर आप इंडियन आर्मी की सेना का नेतृत्व करेंगे”,मेजर साहब ने कहा
“थैंक्यू सर”,देवाशीष ने कहा
“केप्टन देवाशीष आपके साहस और वीरता के लिए आपको सम्मान मिला है , दुश्मन सेना से जंग जीतने के साथ साथ यहाँ के युवाओ में जो तुमने जो विश्वास और अपने देश के लिए प्यार जगाया है वो काबिलेतारीफ है। हमे गर्व है की आप हमारी इंडियन आर्मी का हिस्सा है”,कर्नल साहब ने मुस्कुरा कर कहा
“थैंक्यू सर और मुझे गर्व है की मैं अपने देश के नाम से जाना जाता हूँ”,देवाशीष ने कहा
“केप्टन देवाशीष जब आप ज़िंदा थे फिर वापस आने में इतना वक्त क्यों लगा दिया ?”,कर्नल साहब के साथ खड़े केप्टन ने पूछा
देवाशीष हल्का सा मुस्कुराया और कहने लगा,”मैं खाई से गिरा जरूर था लेकिन मौत मेरी किस्मत में नहीं थी। मै दुश्मनो के हाथ लग चुका था वो मुझे जितना टॉर्चर कर सकते थे उन्होंने किया जब उन्हें लगा मैं मर चुका हूँ तो वे मुझे जंगल में फेंककर चले गए। 2 दिन मैं बेहोश पड़ा रहा जब होश आया तो मैंने खुद को उसी जंगल में रहने वाले एक गिरोह में पाया , वे लोग नहीं जानते थे मैं एक सेना का जवान हूँ इसलिए मैं उनके बीच उन्ही की तरह रहने लगा। उस गिरोह से मुझे आतंकियों के बड़े गिरोह का पता चला और मैं उसमे शामिल हो गया। मेरी ही आँखो के सामने उन्होंने कई बेकसूर लोगो को मारा लेकिन मैं उन्हें रोक पाया क्योकि मुझे उनके मालिक तक पहुंचना था। 6 महीने इंतजार करने के बाद आख़िरकार वो मौका आ गया जिसका मुझे इंतजार था। जब कश्मीर घाटी के मिशन के बाद मैंने यहाँ की तहकीकात शुरू की तब समझ आया की आतकवादियो ने यहाँ के नौजवानो को बहला फुसला कर अपनी तरफ कर लिया है और सेना के खिलाफ,,,,,,,,,,,,,,,,,मुझे सिर्फ कश्मीर को ही नहीं बल्कि उन नौजवानो को भी बचाना था और यही वजह थी की मैं अब तक सेना से दूर रहा ताकि मैं अपने दुश्मनो को जड़ से खत्म कर सकू”
“आपकी बहादुरी और आपकी रणनीति की जितनी तारीफ की जाए कम है केप्टन , आपने इस जंग के जरिये कश्मीर को बचा लिया केप्टन और इसके लिए इंडियन आर्मी हमेशा आपको सम्मान की नजर से देखेगी”,कर्नल साहब ने कहा
कुछ देर वहा रुकने के बाद देवाशीष ने जाने की इजाजत मांगी और जाने लगा तो मेजर साहब उसके साथ ही ऑफिस टेंट से बाहर चले आये और कहा,”केप्टन देवाशीष मुझे आपसे कुछ पूछना है , मैं चाहता तो कर्नल साहब के सामने भी ये पूछ सकता था लेकिन मुझे ठीक नहीं लगा”
“यस सर”,देवाशीष ने कहा
“शहीद केप्टन “मुरली कृष्ण राव” ने जो आपके साथ किया उस बारे में अपने कर्नल साहब को सच क्यों नहीं बताया ?”,मेजर साहब ने पूछा
देवाशीष ने सूना तो उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे और उसने सहजता से कहा,”जब लोगो को इस बात का पता चलता की महज एक पद और सम्मान के लिए एक जवान ने दूसरे जवान की जान लेने की कोशिश की तो लोगो का इंडियन आर्मी से भरोसा उठ जाएगा सर। इंडियन आर्मी सिर्फ अपने देश और देश में रहने वाले लोगो की सुरक्षा के लिए जानी जाती है , ऐसे में अगर मैं अपनी ही सेना के जवान को एक “कातिल” के रूप में पेश करता तो मुझमे और दुश्मनो में क्या फर्क रह जाता ? शहीद जवान “मुरलीकृष्ण राव को अपने अंतिम समय में अपनी गलतियों का अहसास था इस से बड़ी सजा उसके लिए और क्या हो सकती है ? मैं अपने जवानो और अपने देश का सम्मान करता हूँ सर , उम्मीद है ये बात दोबारा से नहीं उठेगी और यही खत्म कर दी जाएगी”
मेजर साहब मुस्कुराये और कहा,”बिल्कुल केप्टन ! आपकी यही बातें आपको सबसे अलग बनाती है”
अगले ही पल लोगो की आवाजों से मेजर और केप्टन का ध्यान बटा दोनों ने रेजीडेंसी के गेट की तरफ देखा तो पाया की बहुत से कश्मीरी लोग वहा खड़े थे। उनके हाथो में कुछ बोर्ड्स थे जिन पर लिखा था “We Love Indian Army” कुछ पर लिखा था “वंदे मातरम”
देवाशीष ने देखा ख़ुशी से उसकी आँखों में नमी उभर आयी , उसके होंठ मुस्कुरा उठे और उसका हाथ उन कश्मीरी लोगो के सम्मान में सेल्यूट के लिए उठ गया। मेजर भी मुस्कुरा उठे उन्होंने देवाशीष की तरफ पलटकर कहा,”ये है आपकी मेहनत केप्टन देवाशीष”
“नहीं सर ये इंडियन आर्मी की मेहनत है और अब इन लोगो के इस विश्वास को बनाये रखना हमारा काम”,कहते हुए देवाशीष ने मेजर साहब को सेल्यूट किया और वहा से चला गया। मेजर साहब भी चले गए।

उसी शाम देवाशीष रेजीडेंसी में ही चक्कर काट रहे थे की उन्होंने देखा एक लड़की हाथ में एक बॉक्स लिए अंदर आने की कोशिश कर रही थी और सेना का एक जवान उसे रोकने की,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
“इसे अंदर आने दो”,देवाशीष ने कहा तो जवान ने लड़की को अंदर आने दिया। लड़की सीधा देवाशीष के पास आयी और कहा,”मैं कल से आपसे मिलने की कोशिश कर रही हूँ सर , मुझे आपको ये देने के लिए कहा गया था,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं चित्रलेखा की दोस्त हूँ अरिका उसने मुझसे कहा की आप लौटकर जरूर आएंगे और जब भी आप आये मैं ये बॉक्स आपको दू”
“चित्रलेखा कौन है ?”,देवाशीष ने हैरानी से पूछा क्योकि वह इस नाम की किसी लड़की को नहीं जानता था , हालाँकि देवाशीष चित्रलेखा से कई बार मिल चुका था लेकिन उसने कभी चित्रलेखा से उसका नाम नहीं पूछा था। अरिका ने सूना तो उसे हैरानी हुई और उसने कहा,”आप शायद उसे नहीं जानते होंगे सर लेकिन वो आपको जानती थी,,,,,,,,,,,,,,,,,,आतंकवादियों ने उसके माँ-बाप को मार दिया और अब तो वो खुद भी ना जाने कहा गायब है,,,,,,,,,,,,,,,,ये आखरी अमानत है जो उसने मुझे कुछ हफ्तों पहले दी और कहा जब भी आप वापस आये मैं ये आप तक पहुंचा दू”
देवाशीष ने वो बॉक्स ले लिया तो अरिका जाने लगी , देवाशीष बॉक्स को हाथ में उठाये उसे देखता रहा। अरिका चलते चलते रुकी और नम आँखों के साथ कहा,”क्या आप सच में चित्रलेखा को नहीं जानते ?”
जवाब में देवाशीष ने अपनी गर्दन हिला दी तो अरिका वहा से चली गयी। देवाशीष को राउंड के लिए जाना था , जीप उसकी बगल मे आकर रुकी उसने जवान से उतरने को कहा और खुद ड्राइवर सीट पर आ बैठा उसने बॉक्स को अपनी साइड वाली सीट पर रखा और अकेले ही निकल गया। रास्तेभर देवाशीष के दिमाग में एक ही नाम घूमता रहा चित्रलेखा,,,,,,,,,,,,,,,,,,!! कश्मीर में देवाशीष की सबसे पसंदीदा जगह थी वहा के बर्फीले पहाड़ देवाशीष ने जीप को सड़क किनारे रोका और उस बॉक्स को लेकर पहाड़ी रास्ते की तरफ बढ़ गया। कुछ उंचाइ पर आकर वह रुका और बॉक्स को नीचे रखकर वही उसके बगल में बैठ गया। देवाशीष ने उस बॉक्स को खोला उस बॉक्स से एक बहुत ही अच्छी खुशबु आयी और देवाशीष के आस पास फ़ैल गयी। सबसे ऊपर उसमें एक खत रखा था देवाशीष ने उसे उठाया और खोलकर पढ़ने लगा

“प्रिय केप्टन”
जिस वक्त आप इस खत को पढ़ रहे होंगे शायद मैं आपके से बहुत दूर जा चुकी होंगी। मेरा नाम चित्रलेखा है मैं कश्मीर की रहने वाली हूँ और सबसे पहले आपको बताना चाहूंगी की मुझे अपने देश से बहुत प्यार है। हम पहली बार यू ही अचानक मिले थे,,,,,,,,,,,,आपको शायद याद हो , मेरा मेमना “कोंगपोश” एक सुबह अचानक से आपकी जीप के सामने आ गया था और मैंने आपको डांट दिया था,,,,,,,,,,,,ओह्ह्ह मैं कितनी बेवकूफ थी , आपके बारे में जाने बिना ही मैंने आपको अपना मेमना ढूंढने को कहा लेकिन आप बहुत अच्छे है केप्टन आपने उसे ढूंढा।
उस वक्त मैं आपका शुक्रिया अदा भी नहीं कर पाई केप्टन लेकिन आपका व्यवहार मेरे मन में घर कर गया। अगले रोज मैं आपसे मिलने के लिए परेशान हो उठी , एक अजनबी के लिए मेरी भावनाये क्यों बदलने लगी मैं नहीं जानती थी,,,,,,,,,,,,,,,उसके बाद से हर रोज महज आपको देखने की लालसा मुझे खींच लाती थी , मैं पहाड़ो पर बने अपने घर से उस सड़क पर रोज आने लगी जहा से आपकी जीप गुजरती थी। सिर्फ आपको देख लेने भर से ही मेरा मन खुश हो जाया करता था। मुझे आपका चेहरा याद था मैं आपका नाम नहीं जानती थी,,,,,,,,,,,,फिर एक सुबह मुझे पता चला की आप आर्मी में केप्टन है आपके लिए मेरा सम्मान और बढ़ गया केप्टन। मैं आपसे मिलना चाहती थी , आपसे बात करना चाहती थी , फिर एक रोज आप मुझे मार्किट में मिले। मैं सच बताऊ केप्टन उस दिन आपके हाथ में जो मफलर था वो बहुत खूबसूरत था लेकिन मैंने जान-बुझकर मना कर दिया क्योकि मैं चाहती थी मैं अपने हाथो से बना मफलर आपको भेंट करू और जब आप उसे पहने तो मैं खुश होकर अपनी किस्मत पर इतराऊ। मैंने आपके लिए अपने हाथो से मफलर बना केप्टन वो भी सबसे मुलायम ऊन से,,,,,,उसे बुनते हुए मैं महसूस कर रही थी जैसे आप मेरे साथ है। माँ ने कहा इस साल सर्दी बहुत ज्यादा पड़ने वाली है पता नहीं माँ को इन सब बातो का पूर्वाभास कैसे हो जाता था ? इसलिए मैं चाहती थी आप उसे पहने वो बहुत मुलायम है और बहुत गर्म भी , ठंड में वो आपकी सुरक्षा करेगा जैसे आप करते है हम सबकी,,,,,,,,,,,,,!
उस रोज के बाद से मैंने आपको नहीं देखा केप्टन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कश्मीर के हालात काफी नाजुक थे और इन पलों में मैं बस एक यही दुआ कर रही थी की आप सुरक्षित रहे। गुजरते वक्त के साथ आपके लिए मेरी भावनाये बढ़ती जा रही थी। इसे मैं प्रेम का नाम दू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी केप्टन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हाँ मैं आपसे प्रेम करने लगी थी और ये अनुभूति काफी खूबसूरत और पीड़ादायक थी,,,,,,,,,,,,,,,खूबसूरत इसलिए क्योकि मैं ऐसे इंसान के प्रेम में थी जो अपने देश के लिए समर्पित था और पीड़ादायक इसलिए की मैं अपनी भावनाये उन्हें बता नहीं पायी।
कुछ वक्त गुजरा और एक सुबह जो खबर मैंने देखी उसने मुझे तोड़कर रख दिया केप्टन , आप ऐसे नहीं जा सकते थे
सबने कहा की देश के लिए लड़ते हुए आप शहीद हो चुके है लेकिन मेरा मन इस बात की गवाही नहीं दे रहा था,,,,,,,,,,,,,,,,मैं अब भी पागलों की तरह हर रोज उस रास्ते पर आपका इंतजार करती थी इस उम्मीद में की एक दिन आप आएंगे और मैं आपसे कहूँगी की मुझे आपसे मोहब्बत है,,,,,,,,,,,,और जब आप नहीं आये केप्टन तो मेरी उम्मीद टूटने लगी , इस टूटती उम्मीद के साथ मैंने महसूस किया जैसे मैं धीरे धीरे अंदर से खत्म होते जा रही हूँ। मैं आपको भूल नहीं पा रही हूँ,,,,,,,,,,,,,,,मेरे अंदर मौजूद ये अहसास मुझसे मेरी जिंदगी छीनते जा रहे है,,,,,,,,,,,लेकिन अफ़सोस की मैं आपकी तरह इस देश के काम ना आयी,,,,,,,,,,मरने से पहले अगर मैं अपने देश के लिए कुछ कर जाऊ तो मुझे ख़ुशी होगी केप्टन,,,,,,,,,शायद मेरे ऐसा करने से आपका ध्यान मेरी ओर जाए और आप मुझे पसंद करने लगे। काश मरने से पहले मैं आपकी आँखों में अपने लिए सिर्फ कतरा भर मोहब्बत देख पाऊ , काश आप मेरा हाथ थामकर मुझे इस तरह खत्म होने से रोक सके , काश आपकी तरह मैं भी इस देश के काम आ पाऊ,,,,,,,,,,,,,,,,,मुझे इंतजार रहेगा केप्टन उस पल का जब आप गर्व से मेरा नाम पुकारेंगे,,,,,,,,,,,,,उस वक्त मैं जहा भी रहू सिर्फ मुस्कुराऊँगी और अपनी मोहब्बत आप पर बरसाती रहूंगी,,,,,,,,,,,,,,,,,पर क्या आप मेरा नाम जानते होंगे केप्टन ?”
आपकी चित्रलेखा,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!

देवाशीष ने जैसे ही खत पढ़ा चित्रलेखा के साथ बिताये पल एक एक करके उसकी आँखों के सामने घूमने लगे। देवाशीष की आँखों में नमी उभर आयी लेकिन आज वह खुद को रोक नहीं पाया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसका मन दुःख और पीड़ा से भर उठा। उसने उस खत को अपने होंठो से छू लिया उस खत में लिखी हर बात चित्रलेखा की आवाज में देवाशीष के कानो में गूंजने लगी थी। वह सुबकता रहा , उसकी आँखों से बहते गर्म आँसू उसके दर्द को और बढ़ा रहे थे। देवाशीष ने खत को समेटकर रखा और उसमे रखा सफ़ेद मफलर उठाया। वो बहुत मुलायम था उसे देखकर देवाशीष के कानो फिर चित्रलेखा के शब्द गूंजे “मैं चाहती थी आप उसे पहने वो बहुत मुलायम है और बहुत गर्म भी , ठंड में वो आपकी सुरक्षा करेगा जैसे आप करते है हम सबकी,,,,,,,,,,,,,!”
देवाशीष ने उस मफलर को अपनी गर्दन पर लपेट लिया , चित्रलेखा की छुअन का अहसास उसमे मौजूद था,,,,,,,,,,,,मफलर का कोना जिस पर “देव” लिखा था देवाशीष के सीने पर बांयी तरफ आकर टिक गया बिल्कुल उसके दिल के पास,,,,,,,,,,,,!!
देवाशीष ने बॉक्स में रखे अपने दस्ताने , अख़बार का टुकड़ा जिस पर उसकी तस्वीर छपी थी , बहुत ही खूबसूरत झुमके रखे थे। उन्हें देखकर देवाशीष की आँखों से आँसू फिर बहने लगे। उसने खत वापस उस बॉक्स में रखा और बंद कर दिया , उसने अपनी गर्दन झुका ली और दर्दभरे में स्वर में कहा,”क्यों चित्रलेखा आखिर क्यों ? तुम्हे ऐसे नहीं जाना था,,,,,,,,,,,,,,!!”
बर्फ गिरने लगी थी , देवाशीष का मन भारी हो चला था वह वही लेट गया , उसकी आँखों से आँसू बहकर बर्फ में घुलते रहे और जहन में चलने लगा एक बहुत पुराना गाना जिसे देवाशीष अपने ट्रेनिंग के दिनों में गुनगुनाया करता था

“जो गुजर रही है मुझपर उसे कैसे मैं बताऊ ?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,वो ख़ुशी मिली है मुझको मैं ख़ुशी से मर ना जाऊ”
( Song Credit -: मोहम्मद ऱफी साहब , फिल्म – मेरे हुजूर 1968 )

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समाप्त

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संजना किरोड़ीवाल

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