“कश्मीर की पनाहों में” – 2

Kashmir Ki Panaho Me – 2

Kashmir Ki Panaho Me
Kashmir Ki Panaho Me

अगली सुबह अख़बार में कश्मीर घाटी में हुए आतंकी हमले और सेना से मुठभेड़ की खबर छपी। भारतीय सेना के लिए के लिए ये एक बहुत बड़ी जीत थी। लेफ्टिनेंट ”मुरली कृष्ण राव” तो अपने दूसरे साथियो के साथ जश्न मना रहे थे वही देवाशीष को लेफ्टिनेंट विक्रम को खो देने का दुःख था। मिडिया वाले बाहर आये हुए थे और वे कश्मीर घाटी पर हुयी जंग के बारे में सेना से कुछ बातचीत करना चाहते थे। देवाशीष और टीम अपनी पूरी यूनिफॉर्म में मीडिया के सामने आये। मीडिया ने कई सवाल किये जिनका जवाब देवाशीष ने काफी सहजता से दिया। साथी जवानो ने भी इस मिशन को लेकर अपने विचार रखे , सबको इस जीत के लिए ढेर साडी बधाईया मिली।
“सर सुनने में आया है इस जंग के बाद भारत सरकार ने आपको असाधारण वीरता के लिए आपको सम्मान देने की घोषणा की है , क्या ये सच है ?”,मिडिया से किसी ने पूछा
“इस मिशन में सभी जवानो ने अपनी वीरता और शूरता का परिचय दिया है। शहीद लेफ्टिनेंट आर्य , लेफ्टिनेंट विक्रम और लेफ्टीमेन्ट कौशल ने इस मिशन में बलिदान दिया और भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछवर कर दिए ऐसे वीर जवानो को मैं सेल्यूट करता हूँ,,,,,,,,,,,,,,,,भारत सरकार की तरफ से अगर वीरता सम्मान किसी को दिया जाना चाहिए तो वह उन शहीद जवानो को दिया जाना चाहिए जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना दुश्मनो का डटकर सामना किया”,देवाशीष ने जोश भरे स्वर में कहा। मिडिया वालो ने उनके लिए ख़ुशी से तालियां बजायी लेकिन देवाशीष के बगल में खड़े ”मुरली कृष्ण राव” को उनकी ये बात पसंद नहीं आयी पर मीडिआ के सामने वह चुप रहे।
कुछ देर बाद मिडिया वाले चले गए। मेजर साहब ने देवाशीष को बुलाया। देवाशीष ऑफिस टेंट में आया और मेजर को सेल्यूट किया।
“अब आपका हाथ कैसा है केप्टन देवाशीष ?”,मेजर ने पूछा
“फीलिंग बेटर सर”,देवाशीष ने कहा
“देवाशीष कल जो आपने और आपकी टीम ने किया वो वाकई काबिलेतारीफ था। मिशन जीतने की ख़ुशी के साथ साथ अपने जवानों के खोने का दुःख भी है। आपने इस मिशन में एक अहम् भूमिका निभाई है। दुश्मनो को सबक सीखाने का ये मिशन आख़िरकार खत्म हुआ”,मेजर ने कहा
“मिशन अभी शुरू हुआ है सर”,देवाशीष ने सामने देखते हुए कहा
“मैं कुछ समझा नहीं , क्या आपको लगता है कश्मीर घाटी पर अभी भी खतरा है। हाईकमान से मदद लेकर आज सुबह ही हमें सेना की कुछ टुकड़ियों को वहा तैनात किया है।”,मेजर ने कहा
“सर मुझे एक हफ्ते की छुट्टी चाहिए सर”,देवाशीष ने कहा
“क्या आप घर जा रहे है केप्टन ? वैसे मुझे अच्छा लगेगा पिछले कुछ सालो से आपने घर का रुख तक नहीं किया है। आपको थोड़ा समय अपने लिए निकालना चाहिए केप्टन”,मेजर ने कहा
“थैंक्यू सर लेकिन ये एक हफ्ता मैं यही रहूंगा कश्मीर में , दरअसल मैं इस शहर को जानना चाहता हूँ क्या आप मुझे इसकी इजाजत देंगे ?”,देवाशीष ने कहा
“केप्टन देवाशीष आपकी ये उलझी बातें मुझे कभी कभी बिल्कुल समझ नहीं आती , ठीक है मैं आपको एक हफ्ते की छुट्टी देता हूँ , उम्मीद है आप इस शहर को बेहतर जान सकेंगे”,मेजर ने मुस्कुराते हुए कहा
“थैंक्यू सर”,कहकर देवाशीष ने उन्हें सेल्यूट किया और बाहर निकल गया।

अपने टेंट में आकर उसने अपनी यूनिफॉर्म उतारी और उसे समेटकर अच्छे से बक्से में बंद कर दिया। उसने साधारण कपडे पहने , ठण्ड से बचने के लिए एक लंबा कोट पहना , जूते पहने और अपना जरुरी सामान एक बैग में रखकर टेंट से बाहर निकल गया। मेजर से बात करके देवाशीष ने एक हफ्ते के लिए जीप भी ले ली और खुद ही चलाते हुए वहा से निकल गया। बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच बनी सड़क से देवाशीष अपनी जीप लेकर गुजर रहा था। आज कश्मीर की ये वादियां उसकी आँखों को एक अलग ही सुकून पहुंचा रही थी। देवाशीष धीमी गति से जीप चलाते हुए आगे बढ़ रहा था तभी उसकी नजर पहाड़ी से नीचे आती एक लड़की पर पड़ी। देवाशीष को उसका चेहरा ठीक से दिखा नहीं। पहाड़ी से नीचे आकर वह लड़की सड़क से कुछ ऊपर बर्फ से ढकी पगडंडी पर खड़ी हो गयी। जैसे ही जीप उस लड़की के सामने से निकली लड़की ने ख़ुशी से चहककर देवाशीष को सेल्यूट किया। देवाशीष को अजीब लगा उसने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और जीप आगे बढ़ा दी। जीप के आगे बढ़ने के साथ ही देवाशीष का मन किया की वह पलटकर लड़की को एक बार देखे। उसने जीप की गति धीमी कर दी और अपनी गर्दन घुमाकर पीछे देखा। लड़की ने जैसे ही देवाशीष को देखा उसने फिर से पुरे जोश के साथ उसे सेल्यूट किया। देवाशीष ने वापस गर्दन घुमा ली लेकिन इस बार उसके होंठो पर मुस्कान तैर गयी। वह जीप लेकर वहा से चला गया। लड़की उस जीप को तब तक देखते रही जब तक वह आँखों से ओझल हो गयी हो।
“ए चित्रलेखा तुम अपना ये हाथ सर से लगाए क्यों खड़ी हो ? क्या तुम्हे बुखार है ?”,चित्रलेखा की दोस्त अरिका ने आकर पूछा तो उसकी तंद्रा टूटी उसने अपना हाथ नीचे किया और कहा,”क्या तुमने उन्हें देखा ?”
“किसे ?”,अरिका ने दूर खाली पड़ी सड़क पर नजरे दौड़ाते हुए कहा
“अरे वही जो कुछ देर पहले यहाँ से गुजरे थे , अपनी यूनिफॉर्म के बिना भी वो कितने खूबसूरत लगते है”,चित्रलेखा ने ख्यालो ने खोये हुए कहा तो अरिका ने उसका हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए वापस घर की तरफ जाने लगी क्योकि कल से वह नहीं समझ पा रही थी चित्रलेखा किसकी बात कर रही है ?

अगले दिन अखबारों में केप्टन देवाशीष और उसकी टीम की एक बड़ी सी तस्वीर छपी। उस तस्वीर के साथ ही कश्मीर घाटी पर हुई जंग का जिक्र भी किया गया था। चित्रलेखा अपने घर के बाहर अपने मेमने को घास खिला रही थी। कुछ देर बाद अरिका अपने हाथ में एक अख़बार लिए दौड़ी चली आ रही थी। वह चित्रलेखा के सामने आयी और अख़बार उसके सामने करके हफ्ते हुए कहा,”क्या क्या तुम कल इसकी बात कर रही थी ?”
चित्रलेखा ने हाथ में पकड़ी घास फेंककर अख़बार लिया और देखने लगी। देवाशीष की तस्वीर देखते ही उसका दिल जोरो से धड़कने लगा और उसके होंठो पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी। उसने अरिका की तरफ देखा और कहा,”मैं अभी आयी”
“अरे कहा जा रही हो ? सुनो चित्रा कम से कम ये अख़बार तो देती जाओ , अब्बू ने इसे पढ़ा नहीं है।”,अरिका चिल्लाई लेकिन चित्रलेखा कहा सुनने वाली थी वह जल्दी से अपने घर के अंदर आयी और कैंची उठाकर उस तस्वीर को काट लिया जिसमे देवाशीष था और उसे सहेज कर अपने लकड़ी के उस छोटे बक्से में रख दिया। चित्रलेखा बाकि का अख़बार समेटा और लेकर बाहर आयी। उसने अख़बार अरिका की तरफ बढ़ाकर कहा,”ये लो एक अख़बार के लिए इतना शोर क्यों मचा रही हो ?”
“अच्छा ठीक है क्या वो जवान वही है जिसकी तुम कल बात कर रही थी ,, पता है कुछ दिन पहले ही इन्होने घाटी पर दुश्मनो के साथ जंग लड़ी और उसमे जीत भी हासिल की। पुरे शहर में इन्ही के बारे में बातें हो रही है कितने बहादुर है ये,,,,,,,,,,,,,,,!!”,अरिका ने खुश होकर कहा तो चित्रलेखा को थोड़ी जलन महसूस हुई और उसने कहा,”हाँ बस बस अभी जाओ यहाँ से मुझे बहुत काम है”
चित्रलेखा की बात सुनकर अरिका वहा से चली गयी। कुछ देर बाद चित्रलेखा की माँ आयी और कहा,”लेखा क्या तुम ये गर्म कपड़ो की पोटली अपने पिताजी को दे आओगी , वे सुबह जल्दी जल्दी में इसे ले जाना भूल गए”
“मुझे अपने लिए नए झुमके लेने है अगर तुम उसके लिए भी पैसे दो तो मैं बाजार चली जाउंगी और ये पोटली भी ले जाउंगी,,,,,,,,,,,,,,,,,बोलो क्या कहती हो ?”,चित्रलेखा ने अपनी आँखे मटकाते हुए कहा
“बिना रिश्वत के तुमसे कोई काम नहीं होता , अच्छा ये लो और हाँ बाजार में यहाँ वहा मत घूमना सीधा घर चली आना”,चित्रलेखा की माँ ने उसे कुछ रूपये देते हुए कहा
चित्रलेखा ने पोटली अपने कंधो पर उठायी और बाजार की ओर चल पड़ी। बाजार आकर चित्रलेखा ने अपने पिता को कपड़ो की पोटली दे दी। बदले में उन्होंने भी उसे कुछ रूपये दे दिए जिन्हे पाकर तो उसकी ख़ुशी दुगुनी हो चुकी थी। चित्रलेखा वहा से दूसरे बाजार की ओर चल पड़ी जहा से उसे झुमके लेने थे। एक दुकान पर आकर चित्रलेखा अपने लिए झुमके देखने लगी। वह एक जोड़ी झुमके उठाती उन्हें अपने कानो से लगाती और नाक सिकोड़कर तो कभी मुंह बनाकर वापस रख देती। उसने कई झुमके देखे लेकिन उसे कुछ पसंद नहीं आया। एक झुमके की जोड़ी पर उसकी नजर पड़ी तो उसने दुकानवाले से दिखाने को कहा , उस झुमके की जोड़ी को लेकर वह जैसे ही पलटी उसकी नजर दो दुकान छोड़कर एक दुकान के बाहर खड़े देवाशीष पर चली गयी। चित्रलेखा उसे एकटक देखते रही। देवाशीष ने आज कश्मीरी लबादा पहना था और वह उसमे काफी अच्छा भी लग रहा था। दुकान के बाहर खड़ा वह अपने लिए मफलर देख रहा था। उसे शायद समझ नहीं आ रहा था की उसे कौनसा लेना चाहिए ? एक मेहरून रंग का मफलर लिए वह जैसे ही अपनी बांयी ओर पलटा चित्रलेखा को अपनी तरफ देखते पाया। देवाशीष से नजरे मिलते ही चित्रलेखा ने जल्दी से अपनी गर्दन घुमा ली और झुमके देखने लगी। देवाशीष एक बार फिर मफलर देखने लगा। चित्रलेखा खुद को रोक नहीं पाई उसने देवाशीष की तरफ देखा हाथ में इस बार दूसरे रंग का अजीब सा मफलर था। देवाशीष ने चित्रलेखा की तरफ देखा तो चित्रलेखा ने ना में गर्दन हिला दी। देवाशीष ने उसे रखकर दुसरा उठाया और एक बार फिर चित्रलेखा की ओर देखा इस बार भी चित्रलेखा ने ना में गर्दन हिला दी और वापस अपना ध्यान झुमको पर लगा लिया। कुछ देर बाद उसने फिर से देखा दुकान की तरफ देखा तो पाया देवाशीष वहा नहीं था , वह जा चुका था।

चित्रलेखा के हाथ में हरे रंग के नगीनो से बने बहुत ही खूबसूरत झुमके थे। उसने उन्हें खरीद लिया और लेकर घर चली आयी। रास्तेभर वह मुस्कुराते रही। देवाशीष का वो मासूमियत से भरा चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था। चित्रलेखा घर आयी उसने झुमके रखे और सीधा आँगन में पड़े डिब्बों में कुछ खगालने लगी। उसे देखकर उसकी माँ ने कहा,”लेखा क्या ढूंढ रही है तू ?”
“अरे माँ पिछले हफ्ते जो ऊन पिताजी ने लिया था , वो जो बहुत मुलायम था वो कहा रखा है ? मिल नहीं रहा”,चित्रलेखा ने डिब्बों को खगालते हुए कहा
“उसे मैंने ऊपर रखा है उस से मैं तेरे लिए स्वेटर तैयार करुँगी , इस बार की सर्दियों में उसे पहनना बहुत गर्म रहेगा वो”,चित्रलेखा की माँ ने कहा
“वो ऊन मुझे दो अभी”,चित्रलेखा ने उनके सामने आकर कहा
“तुम्हे क्यों चाहिए ? मैंने कहा ना मैं उस से तुम्हारे लिए स्वेटर बनाउंगी”,चित्रलेखा की माँ ने उसे साइड करते हुए कहा
“माँ माँ माँ वो मुझे दो ना , मुझे स्वेटर नहीं चाहिए ,, तुम मुझे बस वो ऊन दे दो”,चित्रलेखा ने जिद करते हुए कहा
“वहा ऊपर रखा है जाओ ले लो , फिर मुझसे मत कहना इस बार सर्दियों में तुम्हारे पास गर्म कपडे नहीं है”,कहकर चित्रलेखा की माँ चली गयी।

चित्रलेखा ने ऊपर से वो डिब्बा उतरा जिसमे ऊन रखा था। उसने उस मुलायम ऊन को बाहर निकाला और बैठकर उस से मफलर बनाने लगी। देवाशीष के बारे में सोचते हुए चित्रलेखा बड़े ही प्यार से उस मफलर को बुनते जा रही थी। दोपहर से शाम हो गयी लेकिन चित्रलेखा का मफलर तैयार नहीं हुआ। चित्रलेखा की माँ भी ये देखकर हैरान थी की आखिर वह इस मफलर को लेकर इतनी व्यस्त क्यों है ? रात के खाने के लिए उन्होंने चित्रलेखा को आवाज दी तो उसने ऊन को समेटा और एक तरफ रखकर खाना खाने चली आयी। खाना खाकर चित्रलेखा फिर अपने काम में जूट गयी वह रातभर बैठकर उस मफलर को बुनते रही। देर रात जाकर मफलर बन चुका था चित्रलेखा ने उसे अपने दोनों हाथो में लिया और देखकर मुस्कुराने लगी। ख़ुशी उसकी आँखों से साफ झलक रही थी। चित्रलेखा की माँ ने उसे अकेले में मुस्कुराते देखा तो अपने पति से कहा,”लगता है हमारी बेटी पर कोई साया है देखिये अकेले में कैसे मुस्कुरा रही है ?”
“लेखा की माँ ऐसा कुछ भी नहीं है , जब हम मेहनत से किसी काम को पूरा करते है तो ख़ुशी चेहरे पर अपने आप दिखने लगती है ,, देखो उसके हाथ में वो मफलर है जिसे उसने कितनी मेहनत से बना है”,चित्रलेखा के पिता ने कहा और अपनी पत्नी के साथ वहा से चले गए
सफ़ेद रंग की ऊन से बने मफलर में चित्रलेखा को अभी भी कुछ कमी लग रही थी। उसने मफलर को नीचे रखा और डिब्बे में कुछ और ऊन के टुकड़े ढूंढने लगी। उसने लाल रंग की ऊन को बड़ी सूई में पिरोया और फिर मफलर के एक कोने पर “देव” नाम उकेर दिया। सफ़ेद रंग के उस मफलर पर लाल रंग से बना वो नाम बेहद खूबसूरत लग रहा था। वह उठी और मफलर हाथ में लिए शीशे के सामने खड़ी हो गयी। उसने उस नरम मफलर को अपनी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेटा और शीशे में देखकर मुस्कुराने लगी। शीशे में उसे देवाशीष का अक्स नजर आने लगा। वह धीरे धीरे देवाशीष को चाहने लगी थी और यही बात सोचते हुए उसके गाल एक बार फिर गुलाबी हो उठे। उसने उस मफलर को समेटा और एक बक्से में रख दिया जिसमे उसने अख़बार वाली तस्वीर रखी थी। देर रात चित्रलेखा सोने चली गयी लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी , वह करवटें बदलते हुए सुबह होने का इंतजार करने लगी।

देवाशीष छुट्टी पर था और इन दिनों कश्मीर के इलाकों में घूम रहा था। रेजीडेंसी में उसके छुट्टी लेने के पीछे की वजह किसी को नहीं पता थी लेकिन लेफ्टिनेंट “मुरली कृष्ण राव” केप्टन देवाशीष से खासा नाराज था। जो सम्मान उसे आसानी से मिल सकता था उस सम्मान को देवाशीष ने जंग में शहीद हुए जवानों के नाम कर दिया। मुरली कृष्ण राव अंदर ही अंदर जलने लगा उसे कैसे भी करके देवाशीष को नीचा दिखाना था और साथ ही उसकी जगह केप्टन बनना था। देवाशीष इन सबसे बेखबर दिनभर कश्मीर के बाजारों और दुसरो तंग इलाकों में घूमता रहता था। वह वर्दी में ना होकर साधारण कपड़ो में घूमता रहता था ताकि कोई उसे पहचान ना पाए।
सुबह चित्रलेखा उसका इंतजार करते ही रह गयी लेकिन वो नहीं आया। उदास होकर वह घर चली आयी। अगले दिन फिर वो उसी जगह आयी जहा से देवाशीष अपनी जीप लेकर गुजरता था। आज भी जब देवाशीष उस रस्ते से गुजरा तो चित्रलेखा ने फिर से उसे सेल्यूट किया। देवाशीष के सामने वह ऐसी अजीबोगरीब हरकतें क्यों कर रही थी ? देवाशीष समझ नहीं पाया और आगे बढ़ गया। चित्रलेखा जीप को जाते हुए देखते रही अगले ही पल उसे मफलर की याद आयी और उसने अपना सर पीट लिया क्योंकी जो मफलर उसने देवाशीष के लिए बनाया था उसे तो वह घर ही भूल आयी थी। चित्रलेखा वापस घर की तरफ बढ़ गयी।

गुप्त सूत्रों से देवाशीष को एक खबर मिली थी और उसी की पुष्टि करने वह बाजार के बगल वाले इलाके में आया। इधर उधर घूमते हुए वह लोगो पर नजर रखते हुए चल रहा था। कुछ देर बाद देवाशीष की नजर चाय की गुमठी पर खड़े 2 कश्मीरी लड़को पर गयी जिनके हाव भाव से वे दोनों काफी सतर्क दिखाई दिए। देवाशीष ने कश्मीरी लबादा पहन रखा था। लड़को की तरफ बढ़ने से पहले उसने अपना मुंह ढक लिया जिसे से किसी को उस पर शक ना हो। वह आकर उसी चाय की गुमठी के पास खड़ा हो गया। दोनों लड़के धीमी आवाज में एक दूसरे से कुछ बातें कर रहे थे आस पास खड़े लोगो का उन पर ध्यान नहीं था , वे सब अपनी अपनी बातो में लगे थे। देवाशीष ने भी एक चाय देने को कहा और वही खड़ा होकर उन दोनों लड़को पर नजर रखने लगा। लड़के ने एक दो बार देवाशीष को देखा उन्हें शायद अंदाजा हो चुका था की देवाशीष उन पर नजर रखे हुए है इसलिए दोनों लड़के विपरीत दिशाओ में आगे बढ़ गए। देवाशीष दोनों के पीछे एक साथ नहीं जा सकता था इसलिए उसने एक के पीछे जाना सही समझा और उसका पीछा करने लगा

लड़के ने पलटकर पीछे देखा तो पाया की देवाशीष उसका पीछा कर रहा है , वह और तेजी से चलने लगा। देवाशीष का शक अब यकीन में बदल गया ये लड़का उसे संदिग्ध लगा उसने भी तेजी से अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। चलते चलते लड़का सँकरी गलियों में मुड़ गया। देवाशीष भी उसका पीछा करते हुए उन गलियों की ओर चला आया। लड़का ने घबराकर पीछे देखा तो देवाशीष को अपने पीछे आते पाया। घबराकर लड़का भागने लगा , देवाशीष ने भी भागना शुरू किया। दोनों को ही नहीं पता था दोनों कहा जा रहे थे , लड़का देवाशीष से बचने के लिए भाग रहा था और देवाशीष उसे पकड़ने के लिए। भागते हुए देवाशीष ने अपना नकाब और लबादा उतार फेंका , जिसकी वजह से उसे भागने में परेशानी आ रही थी। वह अब साधारण कपड़ो में था हालाँकि ठण्ड थी लेकिन भागने की वजह से उसे इसका अहसास नहीं हुआ। भागते हुए लड़का फिर एक गली में घुस गया। देवाशीष भी उसके पीछे आया लेकिन जैसे ही वह गली में घुसा एक मोटे लकड़े के डंडे का वार सीधा उसकी छाती पर आ लगा। देवाशीष अचानक हुए इस वार से पीछे जा गिरा। वार इतना तेज था की वह खाँसने लगा , उसे मारने वाला वह दूसरा लड़का था जो कुछ देर पहले चाय की गुमठी से विपरीत दिशा में गया था। देवाशीष बिना वक्त गवाए उठा और एक बार फिर उनके पीछे दौड़ पड़ा। दोनों भागते हुए वहा से पहाड़ी इलाको की तरफ चले आये। देवाशीष भी उनका पीछा करते चला आया। लड़को के पास हथियार थे उनमे से एक ने बन्दुक निकाली और तड़ातड़ गोलिया चलाने लगा। सेल्फ डिफेन्स में देवाशीष ने अपनी गन निकाली और एक लड़के के पैर पर चला दी। लड़का दर्द से बिलबिला उठा और वही गिर गया। दूसरे लड़के ने देखा तो पहाड़ी से सीधा नीचे कूद गया और भाग गया। देवाशीष उसे नहीं रोक पाया वह पलटकर वापस दूसरे लड़के के पास आया और उसकी कॉलर पकड़कर उसे उठाकर एक पत्थर से उसकी पीठ लगाकर उसे बैठाया और कठोरता से पूछा,”कौन हो तुम लोग ? और मुझे देखकर भागे क्यों ?”
लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया बस गुस्से से देवाशीष को घूरता रहा। देवाशीष ने खींचकर लड़के को एक घुसा मारा और कहा,”मैं एक ही सवाल बार बार नहीं पूछूंगा”
लड़के के होंठो से खून निकलने लगा जो की ठण्ड की वजह से सफ़ेद पड़ चुके थे। उसने देवाशीष की तरफ देखा और बहुत ही नफरत से कहा,”क्योकि हम लोग तुमसे नफरत करते है , तुम्हारे जवानो ने हमारे कितने ही बेगुनाह भाईयो को मार दिया उन पर दया नहीं की,,,,,,,,,,,,अब क्या हमारा बदला लेने का हक़ नहीं है”
“तो क्या तुम आतंकवादी हो ?”,देवाशीष ने अपनी आँखो के सिकोड़ते हुए पूछा
“ये कश्मीर हमारा है , हम यही पैदा हुए और एक दिन यही मर जायेंगे तो फिर हम आतंकवादी कैसे हुए ?”,लड़के ने चिल्लाकर कहा
“देश के खिलाफ जाने वाले को देशद्रोही कहा जाता है , आर्मी ने तुम्हारा क्या बिगड़ा है ? सेना के जवानो ने सिर्फ आतंकियों को मारा है किसी कश्मीरी को नहीं। सेना ने हमेशा कश्मीर में रहने वाले लोगो की मदद की उनकी रक्षा की , लेकिन कुछ धोखेबाज लोगो ने दुश्मनो को पनाह दी और इसी के दौरान कई सैनिक मारे गए तो क्या अब सेना यहाँ के लोगो से बदला ले ? जवाब दो ?”,देवाशीष ने गुस्से से कहा
देवाशीष की बात सुनकर लड़का उसे घूरने लगा और फिर कहा,”जंग के दौरान तुम्हारी सेना कहा किसी की सुनती है , हम लोग सिर्फ बलि के बकरे है बन्दुक दिखाकर हमे सेना भी डराती है तो सीमा पार से आये आतंकी भी अब किसी एक के हाथो तो हमे मरना होगा ही,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
“सेना को लेकर तुम्हारे मन में इतनी नफरत क्यों है ? आर्मी के जवानों ने कभी किसी बेगुनाह को नहीं मारा है , यहाँ के लोगो की सुरक्षा करने में कितने ही जवानों ने अपना बलिदान दिया क्या नहीं जानते तुम ? ये गुस्सा ये नफरत किसलिए ? क्या तुम्हे देश से प्यार नहीं है ? क्या तुम इस देश के नागरिक नहीं हो ? मुझे बताओ तुम कौन हो और ये सब क्यों कर रहे हो ? ये हथियार तुम्हारे पास कहा से आये और तुम्हे इन्हे लेकर घूमने की इजाजत किसने दी ?”,देवाशीष ने कहा
लड़के मुस्कुराने लगा और फिर एकदम से गुस्से से कहा,”सब बता दू तुम्हे ताकि हमारा मिशन फ़ैल हो जाये 3 दिन बाद कश्मीर में जो तबाही मचेगी उसे तुम तो क्या तुम्हारी सेना भी नहीं रोक पायेगी”
देवाशीष ने सूना तो हैरानी से लड़के की तरफ देखने लगा , वह लड़के से कुछ पूछ पाता इस से पहले ही लड़के ने आस्तीन से छोटा चाकू निकाला और अपनी गर्दन पर फिराते हुए कहा,”ये कश्मीर हमारा है , इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता”
देवाशीष उसे रोक पाता इस से पहले ही लड़के ने अपनी जान ले ली और वही ढेर हो गया। देवाशीष ने उसकी तलाशी ली लेकिन कुछ नहीं मिला। लड़के की कही बात उसके जहन में घूमने लगी उसने फ़ौरन हाईकमान को सुचना भेजी। देवाशीष उसी शाम वापस रेजीडेंसी चला आया। लड़के का शव फोरेंसिक लैब भिजवा दिया जहा से उसकी पहचान कश्मीर के ही एक नागरिक के रूप में हुई। वह 18 साल का लड़का कश्मीर के पहाड़ी इलाको में बने घर में रहता था। कुछ साल पहले ही अचानक छिड़ी जंग के दौरान उसके माता-पिता मारे गए तबसे वह घर छोड़कर चला गया और आज उसका शव मिला।
फोरेंसिक इंचार्ज ने देवाशीष को सभी जानकारी दी साथ ही उसने एक हैरान कर देने वाली बात भी बताई जिसे सुनने के बाद देवाशीष चिंता में पड़ गया। पिछले कुछ दिनों से देवाशीष जो जानकारी हासिल कर रहा था उसमे मरे हुए लड़के की रिपोर्ट बहुत कामगार साबित हुयी। देवाशीष ने इंचार्ज से इस बारे में किसी और से बात ना करने को कहा।

हाईकमान को मिली सुचना के बाद पुरे शहर और पहाड़ी इलाको में रेड अलर्ट जारी करवा दिया गया। सीमा पर कड़ी सुरक्षा तैनात कर दी गयी। सभी जवान पूरी तैयारी के साथ तैनात कर दिए गए। देवाशीष मेजर साहब के ऑफिस टेंट में आया और उन्हें सेल्यूट करते हुए कहा,”सर इस बार मिशन दुश्मनो के साथ नहीं है बल्कि उन लोगो के खिलाफ है जो इस देश में रहते हुए भी यहाँ की सेना को अपना दुश्मन समझ बैठे है”
“मैं आपकी बात समझा नहीं केप्टन देवाशीष ?”,मेजर साहब ने कहा
“सर फोरेंसिक लैब के इंचार्ज से मुझे सुचना मिली है जिस लड़के ने अपनी जान दी थी उसकी उम्र सिर्फ 18 साल है और वो इसी देश का नागरिक है। इस देश में रहते हुए भी उसके मन में सेना के लिए गुस्सा और नफरत देखने को मिली जिसका सीधा सीधा मतलब है कुछ साल पहले जंग में मारे गए कुछ लोग उनके परिवार से थे जो की आतंकियों के हमले का शिकार बने। इसके अलावा ये पता चला है सर की उस लड़के की बॉडी में एक खास तरह का लिक्विड पाया गया है जिसमे 95% ड्रग है और ये कोई ऐसा वैसा ड्रग नहीं है इसके 10% हिस्से के इस्तेमाल से कुछ घंटो के लिए आपका इम्यून सिस्टम बहुत तेजी से काम करता है और आप में 10 लोगो जितनी ताकत आ जाती है। आप अपनी यादास्त खोने लगते है और एक बहुत ही खतरनाक इंसान के रूप में सामने आते है। किसी व्यक्ति विशेष के लिए आपका गुस्सा और नफरत 10 गुना बढ़ जाती है।”,देवाशीष ने कहा
“व्हाट ? ये तुम क्या कह रहे हो ? मैं ऐसा पहली बार सुन रहा हूँ केप्टन देवाशीष , क्या आपको पूरा यकीन है ?”,मेजर साहब ने हैरानी से कहा
“यस सर और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ ये सिर्फ एक या दो नहीं बल्कि सैकड़ो युवा है जिनकी उम्र 18-24 के बीच होगी क्योकि इस उम्र के युवाओ में ये ड्रग काफी तेजी से असर करता है। पिछले कुछ महीनो से मैं इसी पर काम कर रहा था सर , मैंने आपसे एक हफ्ते की छुट्टी इसीलिए ली थी ताकि मैं इसकी गहराई तक जा सकू और नतीजा आपके सामने है। हथियारों से भी ज्यादा खतरनाक है ये ह्यूमन बम जो बदले के लिए खुद को मौत के घाट उतारने को तैयार है ये सेंकडो की तादात में तैयार किये गए है सर ,,, ये काम सीमा पर से आये दुश्मनो का है जिन्होंने इन्हे बहला फुसला कर सेना के खिलाफ कर दिया है और अब ये सब मिलकर जंग की तैयारी में है”,देवाशीष ने कहा
“तो क्या अब हमारे अपने ही हमसे जंग करेंगे ? मुझे यकीन नहीं हो रहा केप्टन ?”,मेजर साहब ने सोचते हुए कहा
“मुझे भी सर लेकिन यकीन करना होगा , हमे इन्हे रोकना होगा सर कश्मीर की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि कश्मीर की युवा पीढ़ी को बर्बाद होने से बचाने के लिए ,,,,,,,,,,,,,,,,यहाँ के लोगो में ये विश्वास होना जरुरी है की सेना उनकी सुरक्षा के लिए है”,देवाशीष ने कहा
“आपने बिल्कुल ठीक कहा केप्टन मैं अभी हाईकमान को सुचना भेजता हूँ , हम सब मिलकर इस मिशन को पूरा करेंगे”,मेजर साहब ने कहा
“यस सर”,देवाशीष ने कहा और फिर सेल्यूट करके वहा से निकल गया।

अगली सुबह देवाशीष ने सेना की टीम तैयार की और सभी टीमों को अलग अलग इलाकों में तैनात कर दिया। उसने अपने साथ भी एक टीम को रखा इस बार भी लेफ्टिनेंट “मुरली कृष्ण राव” केप्टन देवाशीष की टीम में थे। 15 जवानो की टीम अपने अपने हथियारों के साथ देवाशीष के साथ चल पड़ी। देवाशीष खून खराबा नहीं चाहता था इसलिए उसने टीम से कहा की जहा तक हो सके वे लोग ह्यूमन बम के ठिकानो को तलाश करने की कोशिश करे और कैसे भी करके उन्हें वहा से बाहर निकालकर उस जगह को नष्ट कर दे। सभी देवाशीष के आदेशों की पालना करते हुए आगे बढे। पहाड़ी इलाकों से होते हुए वे सब जंगल की तरफ बढ़ने लगे। देवाशीष ने सबको चार टुकड़ो में बट जाने को कहा। सबने वैसे ही किया और आगे बढ़ गए देवाशीष के साथ लेफ्टिनेंट सूरज , मुरलीकृष्ण और दो जवान और थे। सभी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे। हाईकमान से मिली सुचना के आधार पर इस क्षेत्र में कुछ घंटो पहले हलचल देखी गयी थी। देवाशीष सबको चुप रहने का इशारा करते हुए आगे बढे जा रहे थे। लेफ्टिनेंट मुरलीकृष्ण के सामने अचानक से एक लड़का हथियार लेकर आया , उन्होंने तुरंत उस पर गोली चला दी और वह वही ढेर हो गया।
“लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव ये किया तुमने मैंने पहले ही कहा था की हमे किसी पर गोली नहीं चलानी है। ये लोग हमारे दुश्मन नहीं है ,, तुम्हारी इस हरकत की वजह से वो लोग सतर्क हो जायेंगे”,देवाशीष ने गुस्से से लेकिन दबी आवाज में कहा
“आई ऍम सॉरी सर वो बन्दुक लेकर बिल्कुल मेरे सामने आ गया था”,मुरलीकृष्ण ने कहा
“ठीक है जब तक मैं आर्डर ना दू कोई गोली नहीं चलाएगा , अब सभी सावधानी से आगे बढ़ेंगे”,देवाशीष ने कहा और सबके साथ आगे बढ़ गया। सभी आगे बढ़ते हुए उन ठिकानो पर पहुंचे , देवाशीष ने अपनी टीम को उस जगह को चारो ओर से घेरने को कहा। सभी अपने अपने हथियारों के साथ आगे बढे। देवाशीष खतरे को भांपते हुए आगे बढ़ा उसने देखा उस जगह 20-25 लड़के थे जिनकी उम्र 18-22 के आसपास थी। लड़के इतनी बुरी हालत में थे की वे उठ भी नहीं सकते थे। उन्हें रस्सियों से बांधा गया था। देवाशीष ने जैसे ही रस्सी को खोलना शुरू किया दूसरी ओर से नकाब पहने एक लड़का आया। उसने जैसे ही आर्मी के जवान को वहा देखा अपने साथियो को सिग्नल भेजा। उसने देवाशीष पर गोली चलाई लेकिन देवाशीष नीचे जा गिरा और उस गोली से एक लड़का मारा गया।
देखते ही देखते वहा 10-12 नकाबधारी लोग चले आये जिनके हाथो में हथियार थे। देवाशीष ने अपनी बन्दुक उठायी और तड़ातड़ उन पर गोलिया बरसाते हुए चट्टान के पीछे जा छुपा। नकाब धारियो का सारा ध्यान देवाशीष पर था सबने उसे घेर लिया लेकिन देवाशीष ने हार नहीं मानी ना ही वह उनसे डरा बल्कि उसने बहादुरी से डटकर सबका सामना किया और अकेले ही उन सबको मार गिराया इस बीच बाकी जवानो ने उन लड़को की रस्सिया खोलकर उन्हें वहा से बाहर निकाला। देवाशीष ने लेफ्टिनेंट सूरज और बाकि जवानो से उन लड़को सही सलामत जंगल से बाहर पहुँचाने को कहा और खुद लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव के साथ आगे बढ़ गया

देवाशीष और मुरलीकृष्ण राव आगे बढ़ने लगे। जंगल के दूसरी और बर्फ से ढका पहाड़ी इलाका था , वहा पहुंचकर उन्होंने एक चौंका देने वाला नजारा देखा। 8-10 आतंकी वहा हथियारों के साथ मौजूद थे जिसकी जानकारी शायद हाईकमान को भी नहीं थी ,देवाशीष ने मुरलीकृष्ण को दांयी तरफ जाने को कहा और खुद पेट के बल आगे बढ़ते हुए बांयी तरफ जाने लगा। ठंड अपने चरम पर थी उस पर बर्फ ,, आम आदमी की रूह काँप उठे लेकिन मुरलीकृष्ण और देवाशीष को इस वक्त अपनी कोई परवाह नहीं थी दोनों बहुत ही सावधानी से आगे बढे। देवाशीष ने सही मौका देखकर मुरलीकृष्णन को संकेत दिया और दोनों एक साथ दुश्मनो पर गोलीबारी शुरू कर दी। दुश्मन सम्हल पाते इस से पहले ही उनमे से दो आतंकी गोली लगने से वही गिरकर ढेर हो गये।
सेना के जवानो को वहा देखकर आतंकी सतर्क हो गए और तुरन्त अपने बचाव में गोली चलाते हुए यहां वहा चुप गए। देवाशीष भी चट्टान के पीछे आ छुपा और गोलिया चलाने लगा। वही मुरलीकृष्ण भी दूसरी तरफ पेड़ के मोटे से तने की आड़ में छुपा दुश्मनो पर गोलिया चला रहा था। देवाशीष को अंदाजा नहीं था की वहा कितने दुश्मन हो सकते है , उसकी सारी गोलिया खत्म हो चुकी थी। उसने अपनी दांयी और देखा तो पाया की मुरलीकृष्ण वहा नहीं है। उसने अपना हथियार फेंका और चट्टान की आड़ से झांककर देखा एक आतंकी हाथ में बन्दुक उठाये चट्टान की तरफ चला आ रहा था। जैसे ही वह आया देवाशीष ने अपना पैर बीच में किया और उसे नीचे गिरा दिया। दुश्मन के सम्हलने से पहले ही देवाशीष ने उसकी गर्दन को दबोचा और उसका मुँह बर्फ में दबा दिया। देवाशीष उसकी गर्दन दबाये मुरली कृष्ण को ढूंढ ही रहा था की तभी एक दूसरे दुश्मन ने आकर बन्दुक के पिछले हिस्से से उसके मुँह पर वार किया। देवाशीष के गाल पर तेज चोट लगी और वहा से खून निकल आया वह साइड में जा गिरा लेकिन उसने दुश्मन की गर्दन नहीं छोड़ी। दुश्मन के हाथ में बन्दुक थी और उसने वह बन्दुक देवाशीष पर तानते हुए कहा,”खुद को हमारे हवाले कर दो , तुम्हारे सारे साथी मारे जा चुके है अगर तुम चाहते हो हम लोग तुम्हे ज़िंदा छोड़ दे तो हमसे हाथ मिला लो”
देवाशीष ने कहने के लिए जैसे ही अपनी गर्दन उठायी वहा खड़े एक दुश्मन ने उसके सर पर पैर रख दिया। दुसरा आतंकी हथियार हाथ में उठाये इधर उधर देखने लगा लेकिन वहा दूर दूर तक उनके अलावा कोई नहीं था। देवाशीष के पास इस वक्त हथियार नहीं थे और वह पूरी तरह से दुश्मन की गिरफ्त में था। दोनों आतंकियों में से एक ने अपने बाकि साथियो को वहा आने को कहा। उनके आने से पहले देवाशीष को खुद को यहाँ से निकालना था। वह पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था तभी गोलिया चलने की आवाज आयी और दोनों आतंकी ढेर होकर नीचे आ गिरे।
“आप ठीक है केप्टन ?”,लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव ने देवाशीष को सम्हालते हुए कहा
देवाशीष ने देखा उसे बचाने वाला कोई और नहीं बल्कि लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव था। देवाशीष दर्द में भी मुस्कुरा दिया और हामी में अपना सर हिला दिया।
देवाशीष उठा और मुरली कृष्ण के साथ आगे बढ़ गया। सभी दुश्मन मारे जा चुके थे , तभी देवाशीष को कुछ याद आया और उसने कहा,”लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण दुश्मन के कुछ साथी यहाँ पहुंचे वाले है हमे तैयार रहना चाहिए”
“सर सुचना मिली है हमारे जवानो ने इस जगह को चारो और से घेर लिया है और दुश्मनो को मार गिराया है अगर कोई बचता भी है तो वो यहाँ से बाहर नहीं निकल पायेगा”,लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण ने कहा
देवाशीष और मुरली कृष्ण इस वक्त उस इलाके की सबसे ऊँची पहाड़ी पर खड़े थे , जिसके एक तरफ गहरी खाई थी। देवाशीष के गाल से निकला खून ठण्ड की वजह से बहना बंद हो चुका था। उसने खाई के पास खड़े होकर सामने देखते हुए कहा,”तुम्हे क्या लगता है मुरली कृष्ण राव इन सब के पीछे कौन हो सकता है ? इतनी कड़ी सुरक्षा के बाद भी ये लोग इस इलाके में थे सोचकर ही अजीब लगता है ,, तुम इस बारे में क्या कहते हो ?”
“सर इन्ही इलाको में रहने वाले कुछ लोग इनसे मिले हुए है और इन्हे शरण देते है,,,,,,,,,,,,,,,,,कुछ डरकर तो कुछ लालच के चलते , पता लगा पाना मुश्किल है सर की कौन अपना है और कौन दुश्मन ?”,मुरली कृष्ण राव ने कहा
“हां जैसे की तुम”,देवाशीष ने गुस्से और नफरत भरे स्वर में मुरलीकृष्ण की तरफ देखते हुए कहा
“मैं कुछ समझा नहीं केप्टन ?”,लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव ने देवाशीष की आँखों में देखते हुए कहा हालाँकि उसके चेहरे पर इस वक्त कोई भाव नहीं थे।
देवाशीष ने हाथ में पकडे फोन से आखरी नंबर डॉयल किया , कुछ देर बाद ही मुरलीकृष्ण के जेब में रखा फोन बजने लगा , देवाशीष की आँखों में गुस्सा उबलने लगा उसने फोन को साइड में फेंकते हुए कहा,”आखिर क्या रिश्ता था तुम्हारा इन लोगो से ? तुमने अपने ही साथियो को धोखा क्यों दिया ? देश के साथ गद्दारी क्यों की ? जवाब दो”
“ओह्ह तो आप सच जान चुके है केप्टन ,, आप जिन्हे आतंकी समझ रहे है वो कोई आतंकी नहीं है केप्टन वो बस कुछ कश्मीरी लोग है जो अपने कश्मीर को किसी से बाटना नहीं चाहते। आपके साथ अब तक हर मिशन में मैंने आपका साथ दिया , दुश्मनो का डटकर मुकाबला किया और बदले में मुझे क्या मिला ? जो वीरता सम्मान मुझे मिलना चाहिए था वो आपने उन शहीदों के नाम कर दिया। आप भी मेरे साथ एक लेफ्टिनेंट थे लेकिन हर बार सिर्फ आपको ही पदोन्नति मिली मुझे नहीं,,,,,,,,,,,,,,,मैंने देश के साथ कोई गद्दारी नहीं की है , आपकी आँखों के सामने मैंने उन्हें मार गिराया लेकिन इसके बाद भी अगर सम्मान मिलेगा तो आपको , तारीफ होगी तो सिर्फ आपकी क्योकि आप केप्टन है मैं ठहरा एक मामूली लेफ्टिनेंट,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,सेना में हमेशा मेरे साथ अन्याय हुआ है और इसका बदला मैं लूंगा केप्टन देवाशीष,,,,,,,,,,,,,!!”,मुरली कृष्ण राव ने नफरत भरे स्वर में कहा
देवाशीष ने सूना तो उसे अपने कानो पर यकीन नहीं हुआ आज से पहले उसने कभी सेना के किसी जवान में भेदभाव नहीं किया। किसी को छोटा बड़ा नहीं समझा लेकिन आज मुरली कृष्ण की बातें सुनकर उसे बहुत दुःख हुआ साथ ही उसे गुस्सा भी आया की उसी की सेना का जवान दुश्मनो से मिलकर उसके खिलाफ जा चुका था। देवाशीष ने हाथ में पकड़ी बन्दुक जैसे ही उस पर तानी मुरलीकृष्ण ने गोली चला दी और देवाशीष के हाथ से बन्दुक नीचे जा गिरी , उसके हाथ से खून बहने उसने गुस्से से मुरलीकृष्ण की तरफ देखा और कहा,”समझ नहीं आ रहा तुम्हे अपना दुश्मन कहू या देश का गद्दार,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,जिस सम्मान की तुम बात कर रहे हो उसे पाने के लिए अपने देश के लिए बलिदान देना होता है , तुम जैसे गद्दार उस सम्मान को डिजर्व नहीं करते,,,,,,,,,,,,,,,तुम्हे जवान बुलाते हुए भी शर्म महसूस हो रही है मुझे,,,,,,,,,,,,,,,,मैं चाहता हूँ की तुम मुझे मार दो लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव क्योकि अगर मैं ज़िंदा रहा तो तुम्हे नहीं छोडूंगा”
“बिल्कुल सर आपकी ये आखरी इच्छा मैं जरूर पूरी करूंगा”,कहते हुए लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव ने गोली चला दी जो की देवाशीष के सीने पर जा लगी। वह पीछे खाई में जा गिरा। उसकी आँखों में आँसू थे मरते हुए वह अपने देश के लिए कुछ नहीं कर पाया। देवाशीष नीचे खाई में जा गिरा और लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव के होंठो पर एक जहरीली मुस्कान तैर गयी

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क्रमश – “कश्मीर की पनाहों में” – 3

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संजना किरोड़ीवाल

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