“तेरे इश्क़ मे” – 2
Tere Ishq Me – 2
तमिलनाडु , ऊटी शहर
नीलगिरि की पहाड़ियों में बना “टी-हॉउस” इन पिछले कुछ सालो से ऊटी का पर्यटक स्थल बना हुआ था। ऊटी आने वाला हर नया शख्स एक बार तो इस “टी-हॉउस” में जरूर आता था जिसमे दो बाते आकर्षक थी पहली वहा की “चाय” और दूसरी “साहिबा”,,,,,,,,,,,,,!!! पिछले 4 सालो से साहिबा ऊटी में रहकर इस टी-हॉउस को सम्हाल रही थी। परिवार के नाम पर उसके पास सिर्फ एक बिल्ली थी जिसका नाम था “स्टेफी” , दिल्ली में रहने वाली साहिबा के माँ-बाप बचपन में ही एक कार एक्सीडेंट में मारे गए , रिश्तेदारों और परिवार वालो ने इतना अहसासन किया की उसे हॉस्टल डाल दिया वही रहकर उसने अपनी पढाई की और खुद को काबिल बनाया। टी-हॉउस में 7 लोगो का स्टाफ था जो वही ऊटी में रहने वाले लोग थे और पिछले 4 सालो से साहिबा के साथ काम कर रहे थे। इस टी हॉउस के चलते साहिबा ने वही ऊटी में ही अपने लिए एक सुन्दर सा छोटा सा घर भी खरीद लिया। आस पड़ोस वाले उसके बारे में ज्यादा कुछ जानते नहीं थे ना ही साहिबा किसी से ज्यादा बात करती थी , उसका अधिकांश समय अपने टी-हॉउस में गुजरता था या फिर घर में किताबे पढ़ते हुए।
साहिबा का घर अपने आप में एक खासियत रखता था , उसमे हर जगह किताबे ही किताबे थी। 1 कमरा , एक किचन , हॉल , बालकनी , बाथरूम वाला वह घर काफी आलिशान दिखता था जिसे बहुत ही सलीके से सजाया हुआ था। बालकनी में ढेर सारे गमलो में अलग अलग पौधे लगे थे। बालकनी ने नीलगिरि के पहाड़ो पर बने चाय के बागान सुबह सुबह बहुत खूबसूरत नजर आते थे। साहिबा अपनी सुबह की शुरुआत हमेशा यही से किया करती थी एक कप चाय के साथ। उसके कमरे की एक दिवार सिर्फ अलग अलग तस्वीरों से भरी हुई थी , जिनमे साहिबा भी शामिल थी। कुछ लड़कियों की तस्वीरें , कुछ तस्वीरों में साहिबा हंसती मुस्कुराती दो लड़को के साथ खड़ी थी। कमरे के एक कोने में खिड़की के पास उसका बिस्तर था , बिस्तर से कुछ ही दूर बुक रेंक था जिस में कई सारी किताबे रखी हुई थी।
हमेशा की तरह सुबह तैयार होकर साहिबा ने अपनी बिल्ली स्टेफी को खाना दिया और फिर उसे लेकर घर से बाहर चली आयी। अपनी पडोसी “नेंसी” को बिल्ली थमाते हुए कहा,”मैं टी-हॉउस जा रही हूँ , जल्दी ही वापस आ जाउंगी”
“साहिबा तुम्हे रोज रोज ये कहने की जरूरत नहीं है तुम इसे यहाँ छोड़कर जा सकती हो”,नेंसी ने बड़े ही प्यार से कहा तो साहिबा ने बिल्ली का सर सहलाया और वहा से चली गयी।
घर से टी हॉउस ज्यादा दूर नहीं था इसलिए साहिबा हमेशा पैदल ही जाया करती थी , उसे चाय के बागानों से होकर गुजरना पड़ता था और उस वक्त चलते हुए उस खुशबू को महसूस करना साहिबा को बहुत अच्छा लगता था। मौसम भी ठंडा था , आज साहिबा ने जींस और गर्म टीशर्ट के साथ लॉन्ग जैकेट पहना हुआ था , गले में स्कार्फ था और अपने हाथो को कोट की जेब में डाले वह ख़ामोशी से चले जा रही थी।
वह अपने टी-हॉउस पहुंची आज भीड़ रोजाना से कुछ ज्यादा थी , साहिबा अंदर आयी और सीधा अपने रिसेप्शन एरिया में चली आयी। नीलगिरि की पहाड़ियों को बीच बना ये टी-हॉउस बहुत ही खूबसूरत था। टी हॉउस के बीचो-बीच अच्छा फर्नीचर रखा हुआ था। दीवारों की जगह शीशे की दिवार थी जिनके आर-पार देखा जा सकता था। चाय पीते हुए वहा बैठकर बाहर के नजारो को देखा जा सकता था। साहिबा रिसेप्शन पर बैठी अपने लेपटॉप में मेल्स चेक कर रही थी तभी एक नया मेल उसकी स्क्रीन पर पॉप-अप हुआ। साहिबा ने मेल खोला ये प्रिया कौशिक का था। साहिबा ने मेल देखा जिसमे प्रिया साहिबा से अपनी शादी में आने की रिक्वेस्ट कर रही थी। साहिबा ने लेपटॉप वापस बंद कर दिया। प्रिया , रुबीना और पल्ल्वी के साथ साहिबा भी दिल्ली में उनके साथ ही पढ़ती थी। चारो में गहरी दोस्ती थी और कॉलेज के तीन साल चारो साथ ही रही थी लेकिन पल्ल्वी की शादी के बाद सब बदल गया , बाकि सब साथ ले एक दूसरे के टच में थे लेकिन साहिबा सबसे अलग थलग थी। पिछले 4 साल से किसी को नहीं पता था की साहिबा कहा है ? किस हाल में है ?
प्रिया का मेल देखकर साहिबा परेशान सी हो गयी वह उठी और खिड़की के पास आकर खड़ी हो गयी और बाहर देखने लगी। उसका मन बेचैनी से घिरने लगा , आँखों में नमी तैर गयी। अपनी तीनो दोस्तों के साथ बिताये पल एक एक करके उसकी आँखों के सामने आने लगे। कुछ देर बाद वह वापस आयी और अपना लेपटॉप खोलकर उसमे कुछ सर्च करने लगी। साहिबा ने ऊटी से कोयम्बटूर जाने के लिए एक टिकट बुक कर दी। उसने अपना लेप-टॉप बैग में रखा और वहा काम करने वाले किशनलाल को बुलाकर कहा,”अंकल मैं एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर जा रही हूँ , मेरी गैर मौजूदगी में आपको ही ये टी-हॉउस सम्हालना है”
“ठीक है लेकिन ऐसे अचानक सब ठीक तो है ना ?”,किशन जी ने चिंता जताते हुए कहा
“हाँ सब ठीक है मुझे कुछ जरुरी काम से जाना होगा , अभी निकलना होगा सफर बहुत लंबा है”,साहिबा ने अपना बैग उठाते हुए कहा
“ठीक है अपना ख्याल रखना , और यहाँ की चिंता बिल्कुल मत करना मैं सम्हाल लूंगा”,किशनलाल ने कहा।
साहिबा वहा से निकल गयी और सीधा घर चली आयी। घर आकर उसने अपने कुछ कपडे पैक किये , अपना जरुरी सामान रखा , लेपटॉप बंद करके अलमारी में रख दिया। अपनी आई-डी और पासपोर्ट पर्स में रखा और बैग लेकर घर से बाहर चली आयी। साहिबा ने घर को लॉक किया और बैग दरवाजे के बाहर छोड़कर नैंसी के घर के सामने आकर बेल बजा दी। नैंसी ने दरवाजा खोला साहिबा को देखकर थोड़ा हैरान हुई और कहा,”अरे आज तुम जल्दी चली आयी , रुको मैं स्टेफी को लेकर आती हूँ”
“मिसेज डिसूजा मैं स्टेफी को लेने नहीं आयी हूँ , मैं दरअसल ये बताने आयी हूँ की मैं एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर जा रही हूँ तो क्या आप तब तक इसे अपने पास रखेंगी प्लीज ?”,साहिबा ने कहा
“हां स्योर सिया तो इसे रखने के नाम से बहुत खुश हो जाएगी , वापस कब तक लौटोगी ?”,नैंसी ने कहा
“एक हफ्ते बाद , जाने से पहले स्टेफी से मिल लू”,साहिबा ने कहा तो नैंसी ने उसे अंदर आने को कहा
साहिबा स्टेफी से मिली उसे प्यार दुलार किया और अपना बैग लेकर वहा से निकल गयी और कुछ देर बाद ऊटी बस स्टेण्ड पहुंची। साहिबा ने जो टिकट ऑनलाइन बुक की थी उसकी बस ढूंढी और आकर बस में बैठ गयी यहाँ से उसे “कोयंबतूर” जाना था। साहिबा खिड़की की तरफ बैठी थी उसकी बगल में एक महिला अपनी एक साल की बच्ची के साथ बैठी थी। बच्ची दिखने में बहुत ही क्यूट थी साहिबा ने उसे देखा और मुस्कुरा कर खिड़की के बाहर देखने लगी। बस रवाना हुई , बस की खिड़की से साहिबा ऊटी के खूबसूरत रास्तो को निहारते जा रही थी , वे रास्ते जिनसे पिछले चार साल से साहिबा वाकिफ थी। ऊटी में ऐसी कोई जगह नहीं बची होगी जहा से साहिबा ना गुजरी हो , अक्सर अपने टी-हॉउस में बनने वाली चाय के लिए चाय की पत्तिया साहिबा इन्ही बागानों से जो लाती थी। बाहर के नज़ारे देखने में साहिबा व्यस्त थी की तभी उसके कानो में पास बैठी महिला की आवाज पड़ी,”पल्ल्वी , पल्ल्वी बेटा रोते नहीं”
साहिबा ने जैसे ही ये नाम सूना उसने महिला की तरफ देखा जो को अपनी बच्ची को इस नाम से पुकार रही थी और बच्ची लगातार रोये जा रही थी। साहिबा को अपनी ओर देखता पाकर महिला ने कहा,”इसे शायद भूख लगी है लेकिन इसे यहाँ सबके सामने दूध कैसे पिलाऊ ?”
साहिबा अपनी जगह से उठी और कहा,”आप यहाँ बैठ जाईये”
महिला अपनी बच्ची को लेकर खिड़की वाली तरफ बैठ गयी और साड़ी के पल्लू की आड़ में उसे दूध पिलाने लगी। पल्ल्वी नाम सुनकर साहिबा का मन बैचैन हो गया। कोयंबतूर पहुँचने में अभी 2 घंटे लगने वाले थे। साहिबा ने आँखे मूंदकर सर पीछे सीट से लगा लिया। वक्त उसे 5 साल पीछे ले गया
5 साल पहले , दिल्ली यूनिवर्सिटी हॉस्टल
कॉलेज का ये आखरी साल था और सभी अपने अपने इम्तिहान की तैयारियों में लगे हुए थे। पल्ल्वी , प्रिया , रुबीना और साहिबा चारो हॉस्टल के एक रूम में साथ रहती थी। रुबीना , पल्ल्वी और प्रिया बैठकर पढाई कर रही थी लेकिन साहिबा वहा से नरारद थी। पल्ल्वी ने देखा साहिबा वहा नहीं है तो उसने कहा,”ये साहिबा कहा गयी ? ये लड़की ना अपनी पढाई को लेकर बिल्कुल भी सीरियस नहीं है दो दिन बाद से एग्जाम्स शुरू होने वाले है और वो गायब है”
“अरे आ जाएगी , वैसे मैंने उसे कहा था आज हम चारो मिलकर पुरे 6 घंटे पढाई करेंगे”,प्रिया ने किताब के पन्ने पलटते हुए कहा
“शर्त लगा लो वो नहीं आएगी”,रुबीना ने कहा
“तुम्ही ने बिगाड़ा है उसे , पता है पिछले साल कितने कम मार्क्स बने थे उसके”,पल्ल्वी ने कहा
“वाह वाह सब ना तुम्हारे लाड प्यार का नतीजा है , हम दोनों की बात तो वो वैसे ही नहीं सुनती एक तुम्हारी सुनती है तो तुम उसे कुछ कहती नहीं,,,,,,,,,,,!!”,प्रिया ने कहा
तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक लड़की ने अपनी गर्दन अंदर करके कहा,”ए पल्ल्वी तू यहाँ बैठी है वो तेरी साहिबा फिर से 107 वाली से फिर से झगड़ा कर रही है”
“क्या ? ये लड़की कभी नहीं सुधरेगी चलो जल्दी”,पल्ल्वी ने किताब बंद करके साइड जल्दी से उठते हुए कहा। तीनो सहेलिया बाहर आयी तो बालकनी की साइड में भीड़ देखकर पल्ल्वी का दिल घबराने लगा। वह जल्दी से उस तरफ आयी भीड़ को साइड किया तो देखा साहिबा हॉस्टल में रहने वाली तनीशा से बुरी तरह उलझी हुयी थी। पल्ल्वी और रुबीना ने दोनों को अलग किया और पल्ल्वी ने कहा,”पागल हो गयी हो क्या साहिबा ऐसे क्यों लड़ रही हो ?”
“इसने मेरी दोस्त को गाली दी , इसकी तो मैं”,कहते हुए साहिबा जैसे ही तनिशा की तरफ जाने को हुई प्रिया और रुबीना ने उसे रोकते हुए कहा,”अरे कोई बात नहीं हमे कोई फर्क नहीं पड़ा”
“तुम दोनों को दी होती तो मुझे भी नहीं पड़ता इसने पल्ल्वी को गाली दी , इसे तो मैं”,कहते हुए साहिबा ने तनिशा के मुंह पर एक घुसा और जड़ दिया , उसकी नाक से खून निकलने लगा। रुबीना और प्रिया ने सूना तो उन्होंने साहिबा को घूरकर देखा और फिर तीनो उसे लेकर कमरे में चली आयी। साहिबा को अपने सामने बैठाकर पल्ल्वी उसके मुंह पर लगी चोट को दवा लगते हुए उसे दुनियाभर की नसीहतें दे रही थी। वही पास में खड़ी रुबीना और प्रिया उन दोनों को देख रही थी। हफ्ते में तीन-चार बार ये सीन देखने को मिल जाता था।
“उसने मुझे गाली दी तो देने देती उसे मारा क्यों ? अगर ऐसा ही चलता रहा ना तो किसी दिन वार्डन तुम्हे हॉस्टल से निकाल देंगी”,पल्ल्वी ने कहा
“अच्छा वो बकवास करे और मैं कुछ ना बोलू , तुम्हारे बारे में कोई गलत कहे मुंह ना तोड़ दू उसका मैं”,साहिबा ने गुस्से से कहा
“इतना गुस्सा अच्छा नहीं है साहिबा , एग्जाम्स सर पर है पढाई छोड़कर तुम्हे ये सब नहीं करना चाहिये”,पल्ल्वी ने कहा तो साहिबा ने नार्मल होते हुए कहा,”तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं , ना माँ है ना बाप है , ना घर है ना परिवार है ,, तुम मेरा सबकुछ हो अब कोई तुम्हे कुछ कहेगा तो वो तो पिटेगा मुझसे”
कहते हुए साहिबा उठी और कमरे की खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी। उसकी आँखों में अब गुस्से की जगह बेबसी और तकलीफ ने ले ली थी। उसे खामोश देखकर पल्ल्वी ने प्रिया की तरफ इशारा किया तो प्रिया साहिबा के पास आयी और कहा,”अच्छा मतलब सब कुछ यही है हम लोग कुछ भी नहीं ?”
“तुम सब मेरी दोस्त हो , तुम सबके लिए अगर जान भी देनी पड़ी तो दे दूंगी सोचूंगी नहीं , बस पल्ल्वी से रिश्ता थोड़ा ऊपर है”,साहिबा ने कहा
“हमारे लिए इतना काफी है चल अब आकर पढाई कर ले वरना पेपर में क्या लिखेगी ?”,रुबीना ने आकर उसे पीछे से हग करते हुए कहा। सब भूलकर साहिबा उनके साथ आ बैठी और चारो पढाई करने लगी
चारो पढाई करने लगी। दोपहर के खाने के बाद पल्ल्वी फिर पढ़ने बैठ गयी और रुबीना बाहर दूसरे रूम में चली गयी। प्रिया बैठकर अपना फोन चलाने में बिजी थी और साहिबा आराम से किताब मुंह पर रखे सो रही थी। पल्ल्वी ने देखा तो उसके मुंह से किताब उठाई और साइड में रख दी। साहिबा को बेपरवाह सोया देखकर पल्ल्वी मुस्कुरा दी।
दो दिन बाद सभी के एग्जाम्स शुरू हो गए। सभी के पेपर्स अच्छे हुए साहिबा को खुद से ज्यादा उम्मीद भी नहीं थी। सारे पेपर हो चुके थे बस एक आखरी पेपर बचा था जो की 2 दिन बाद था। सुबह सुबह चारो दोस्त हॉस्टल की छत पर बैठी बाते कर रही थी की कुछ देर बाद ही चपरासी ने आकर पल्ल्वी से कहा,”ये तुम्हारा लेटर आया है”
लेटर नाम सुनते ही पल्ल्वी से पहले साहिबा ने हाथ बढ़ाया और चपरासी को जाने का इशारा किया। लेटर देखकर रुबीना ने कहा,”क्या बात है मोबाइल के ज़माने में लेटर आया है , जल्दी खोल ज़रा हम भी देखे कौनसे आशिक ने भेजा है ?”
“मेरा कोई आशिक़ नहीं है”,पल्ल्वी ने चिढ़ते हुए कहा
“अरे रुको मुझे देखने दो यार”,कहते हुए साहिबा ने लिफाफा खोला जिसमे एक खत था। साहिबा ने जब उसे पढ़ा तो उसके चेहरे के भाव बदल गए। पल्ल्वी ने देखा तो लिफाफा उसके हाथ से लेकर पढ़ा , उसके चेहरे से भी ख़ुशी एकदम से गायब हो गयी। पल्ल्वी के पापा की तबियत बहुत खराब थी और उसे जल्द से जल्द घर बुलाया था।
“तू आज ही अपने घर जा वार्डन से मैं बात कर लुंगी”,साहिबा ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा
“हां साहिबा ठीक कह रही है वैसे भी अगला पेपर दो दिन बाद है तब तक तू वापस आ जाएगी”,प्रिया ने कहा
“हाँ अभी बस मिल जाएगी 5-6 घंटे में तू तेरे घर , अंकल से मिलकर वापस चली आना”,रुबीना ने कहा
पल्ल्वी को यही सही लगा वह घर जाने की तैयारी करने लगी।
Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2 Tere Ishq Me – 2
क्रमश – Tere Ishq Me – 3
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हमारे लिए इतना काफी है चल अब आकर पढाई कर ले वरना पेपर में क्या लिखेगी ?”,रुबीना ने आकर उसे पीछे से हग करते हुए कहा। सब भूलकर साहिबा उनके साथ आ बैठी और चारो पढाई करने लगी
चारो पढाई करने लगी। दोपहर के खाने के बाद पल्ल्वी फिर पढ़ने बैठ गयी और रुबीना बाहर दूसरे रूम में चली गयी। प्रिया बैठकर अपना फोन चलाने में बिजी थी और साहिबा आराम से किताब मुंह पर रखे सो रही थी। पल्ल्वी ने देखा तो उसके मुंह से किताब उठाई और साइड में रख दी। साहिबा को बेपरवाह सोया देखकर पल्ल्वी मुस्कुरा दी।
दो दिन बाद सभी के एग्जाम्स शुरू हो गए। सभी के पेपर्स अच्छे हुए साहिबा को खुद से ज्यादा उम्मीद भी नहीं थी। सारे पेपर हो चुके थे बस एक आखरी पेपर बचा था जो की 2 दिन बाद था। सुबह सुबह चारो दोस्त हॉस्टल की छत पर बैठी बाते कर रही थी की कुछ देर बाद ही चपरासी ने आकर पल्ल्वी से कहा,”ये तुम्हारा लेटर आया है”
लेटर नाम सुनते ही पल्ल्वी से पहले साहिबा ने हाथ बढ़ाया और चपरासी को जाने का इशारा किया। लेटर देखकर रुबीना ने कहा,”क्या बात है मोबाइल के ज़माने में लेटर आया है , जल्दी खोल ज़रा हम भी देखे कौनसे आशिक ने भेजा है ?”
“मेरा कोई आशिक़ नहीं है”,पल्ल्वी ने चिढ़ते हुए कहा क्रमश
संजना किरोड़ीवाल
Superb ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Kya hua hoga agey next part ka intezaar rahega
Beautiful part ❤ 💕 💖
beautiful part ❤❤❤❤❤
Nice story