आ अब लौट चले – 5
Aa Ab Lout Chale – 5
Aa Ab Lout Chale – 5
सुमित्रा की तकलीफ अमर समझता था ओर इसी वजह से वह अब सुमित्रा को परेशान करना नही चाहता था अमर उस से दूर रहने लगा l सुमि अगर आस पास भी होती तो अमर दूसरी ओर चला जाता l सुमित्रा अब पहले आए ज्यादा उदास रहने लगी थी , अमर के साथ किया बर्ताव उसे खल रहा था l एक शाम अमर पौधो की साफ सफाई कर रहा था कि सुमित्रा भी आकर उसका हाथ बटाने लगी l अमर ने सुमि को वहाँ देखा तो उठकर जाने लगा सुमित्रा उसके सामने आ खड़ी हुई और कहा – मैंने तुम्हें गलत समझा अमर लेकिन मुझे अच्छा नही लगा जब तुम मेरे बच्चों से मिले और मेरे हिस्से की नफरत तुम्हे मिली l”
“मुझे इस बात का दुख नही है सुमि दुख सिर्फ इस बात का है कि तुम मुझसे ये सब छुपा रही हो , अपना दुख अकेले जी रही हो क्या मुझे ये सब जानने का कोई हक नही ?”,अमर ने कहा
“हक है अमर लेकिन किस मुंह से तुम्हे बताती की मेरे साथ ये सब हो रहा है ? बड़े गर्व से कहा था न मैंने की हम खुश रहेंगे लेकिन ऐसा कुछ नही था हम दोनों की जिंदगियों में l”,कहते कहते सुमि का गला भर्रा गया
अमर उसे लेकर सीढ़ियों के पास आया और बैठने को कहा , खुद कुछ दूर बैठ गया और कहा,”अब बताओ सुमि क्या हुआ था ? मुझे सब जानना है और ये हक मैं खुद दे रहा हु खुद को बोलो , चुप मत रहो सुमि इतने साल चुप रही काश बोला होता तो आज हम यहां नही होते बल्कि एक अच्छी जिंदगी जी रहे होते l कहो सुमि”
अमर की बात सुनकर सुमि पिघल गयी और कहने लगी – मेरी शादी एक बहुत बड़े परिवार में हुई थी जहां सब था बस प्यार नही था l पति दे पैसा , इज्जत , हर जरूरत का सामान मिला लेकिन कभी उनका प्यार , साथ ओर वक्त नही मिला l समाज के सामने मैं दो बच्चों की माँ तो बन चुकी थी पर उनकी पत्नी कभी नही बन पाई और थककर मैंने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया l संयुक्त परिवार टूटकर अकेला हो गया , गांव छोड़कर मैं अपने बच्चों और पति के साथ शहर चली आई l कुछ सालों बाद उनका निधन हो गया बच्चों की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गयी , ससुराल वालों ने हाथ खींच लिए ओर पीहर वालो में इतनी क्षमता नही बची थी कि मुझे ओर मेरे बच्चों को पाल सके l
यहां रहकर मैंने ही उनका पालन पोषण करना शुरू कर दिया ,उन्हें पढ़ाया लिखाया इस लायक बनाया की वो अपने पैरों पर खड़े हो सके ,, बेटा सरकारी ओहदे में अफसर लग गया तो बेटी भी बैंक में कर्मचारी थी उन्हें देखकर मैं अपना हर दर्द भूल गयी लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नही रहता l बेटे बेटी ने अपनी पसन्द से शादी की मैं भला ऐतराज जताती भी कैसे ?
बेटी इसी शहर में अपने पति के साथ रहने लगी और बहू मेरे घर मे ,, कुछ दिन सही रहा लेकिन उसके बाद झगड़े होने लगे बहु को मैं फूटी आंख नही सुहाती थी , मेरे सामने वह अपनी दोस्रो को घर नही बुला पाती थी l
मैं जैसे तैसे करके दिन काट रही थी l एक शाम बेटे ने कुछ पेपर्स देकर कहा की मैं जायदाद उसके नाम कर दु लेकिन कही से बेटी वहां आयी और खूब झगड़ा हुआ l बेटी ने प्यार दिखाया और भरोसा दिलाया कि वो मेरी सेवा करेगी , मैंने दोनो बच्चों को बराबर जायदाद दे दिया l उसी शाम बेटी और दामाद मुझे अपने साथ ले गए उन्होंने मेरी सेवा में कोई कमी नही छोड़ी लेकिन मैं समझ ही नही पाई की ये सिर्फ उनका झूठा प्यार था जो उन्होंने जायदाद के चलते दिखाया था l जब बेटी मेरी जिम्मेदारी उठाते उठाते थक गई तो एक शाम दामाद मुझे यहां छोड़ गया l”
कहते कहते सुमि की आंखे भर आयी अमर की आँख भी नम हो गयी उसने आँखों के किनारे साफ करते हुए कहा,”इतना सब हो गया ओर तुमने एक बार भी मुझसे नही कहा , क्यो सुमि ?”
“मैं पहले ही तुम्हे शादी के लिये ना बोलकर बहुत बड़ी ठेंस पहुंचा चुकी थी अमर , उसके बाद कभी तुम्हारा सामना करने की हिम्मत ही नही हुई पंर जब तुम्हे यहां देखा तो मेरा दिल टूट गया l आखिर हमारे बच्चों ने ऐसा क्यो किया ?”,कहते कहते रो पड़ी सुमित्रा अमर से उसका रोना देखा नही गया तो वह थोड़ा उसके पास आया और उसके हाथ पर हाथ रखकर कहा,”सब वक्त का फेर है सुमि है ,हमारा यहां होना भी हमारी किस्मत है कि हम साथ है , मैं हमेशा तुम्हारे साथ हु सुमि बच्चे न सही हम एक दूसरे से अपना दुख तो बाट ही सकते है l”
अमर की बात सुनकर सुमि ने अपना सर अमर के कंधे पर रख दिया एक अपनेपन का अहसास दोनो को हुआ दोनो खामोश बैठे रहे अंधेरा होने लगा l ऑफिस की खिड़की पर खड़े अनुज ओर सुनिधि मुस्कुराते हुए उन दोनों को देख रहे थे l
“अनुज अंकल आंटी साथ में कितने अच्छे लग रहे है ना ?”,सुनिधि ने कहा
“हा सुनिधि इस उम्र में भी इनका प्यार कही ना कही जिंदा है l मैं सोच रहा था क्यो ना इन दोनों के लिए कुछ किया जाए”,अनुज ने कहा
“वाओ मैं भी यही सोच रही थी , लेकिन उस से पहले हमें इन दोनों को एक दूसरे के करीब लाना होगा , इन्हें अहसास दिलाना होगा l”,सुनिधि ने कहा
“उसकी जरूरत ही नही है सुनिधि जरा देखो उन्हें उनके चेहरे पर जो सुकून है उस से साफ पता चलता है कि वो दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते होंगे”,अनुज ने कहा
“हम्म्म्म चलो , ऐसे छुपकर किसी को देखना सही नही है”,सुनिधि ने कहा और अनुज को खींचते हुए वहां से ले गयी l
कुछ देर बाद अमर ओर सुमि भी वहां से चले गए l दोनो के मन से एक भारी बोझ उतर चुका था और दोनो अब खुश रहने लगे थे l सुमि मोहनराव ओर जगनाथ से भी मिली चारो घंटो बैठकर एक दूसरे के बारे में बातें करते रहते l कभी कभार अमर ओर सुमि एक दूसरे को देखकर खो जाते ओर मोहन जगन वहां से खिसक जाते l
कुछ वक्त हंसी खुशी निकाला l एक सुबह मोहन अखबार पढ़ रहा था कि उसने देखा आज वैलेंटाइन डे है आज के दिन गुलाब का फूल देकर अपने प्यार का इजहार किया जाता है l जैसे ही उसने पढ़ा अखबार लेकर अमर के पास आया और उसे सब बताया तो अमर ने कहा – छि हमारी उम्र है ये सब करने की , बच्चों के लिए होते है ये प्रेम दिवस
“प्यार में क्या बच्चा क्या बूढ़ा , भावनाएं तो सबकी एक ही है ,, तुम आज सुमित्रा जी को गुलाब दोगे अगर उन्होंने ले लिया तो समझ जाना उनके मन मे भी वही भावनाएं है जो तुम्हारे मन मे है”
अमर ने उसकी बात नही सुनी फिर क्या जगन ओर मोहन दिनभर उसके पीछे पड़े रहे और आखिर अमर मान गया शाम को जब सुमि बगीचे में टहल रही थी तभी अमर वहां आया और गुलाब का फूल कांपते हाथों से उसकी ओर बढ़ा दिया सुमि ने कुछ नही कहा और आगे बढ़ गयी अमर उदास हो गया l मोहन ओर जगन उसके पास आये और अफसोस जताने लगे l कुछ देर बाद ही सुमि वापस आयी उसके हाथ मे पिला फूल था उसने फूल अमर को देकर कहा – प्रेम की शुरुआत दोस्ती से होती है l
अमर खामोशी से सुमि को देखता रहा और हाथ मे पकड़ा लाल गुलाब पीछे छुपा लिया सुमि मुस्कुरा कर वहां से चली गयी l अमर किसी नोजवान की तरह शर्माने लगा तो मोहन ने कहा – आज दोस्ती हुई है कल प्यार भी हो जाएगा l
अमर की हालत देखकर जगन्नाथ गाने लगा – दिल तो बच्चा है जी , थोड़ा कच्चा है जी l
अमर बस उस खिले हुए पीले फूल को देखता रहा जिसमे से दोस्ती की भीनी खुशबू आ रही थी
सुमित्रा ओर अमर अच्छे दोस्त बन चुके थे l वक्त गुजरता गया और देखते ही देखते 6 महीने गुजर गए इन 6 महीनों में काफी कुछ बदला बस नही बदला तो अमर ओर सुमित्रा के बच्चों का मन l
अमर इस उम्र में किसी अपने का साथ पाकर खुश था तो सुमित्रा भी अपने सुख दुख अमर से बांट लिया करती थी l अनुज ओर सुनिधि ने उन दोनों से शादी कर लेने को कहा लेकिन अमर ओर सुमित्रा दोनो ही नही चाहते थे कि वे किसी ऐसे बंधन में बंधे , कही ना कही उन दोनों के मन में अपने अपने जीवनसाथी को लेकर ईमानदारी अभी भी थी l
अनुज ने भी उन्हें ज्यादा नही कहा l कुछ दिन बाद पता चला कि सुनिधि माँ बनने वाली हैं ओल्डएज होंम में खुशी का माहौल बन गया l सभी बहुत खुश थे ओल्डएज होंम में अब बस 17 लोग ही रह गए थे बाकी लोग वहां से कही चले गए l
अमर ने बाकी लोगो के साथ मिलकर ओल्डएज होंम को सजाया ओर शाम को वहां जलसा रखा l अनुज ओर सुनिधि अनाथ थे उनका कोई अपना नही था इसलिए बस अनुज के ऑफिस से कुछ लोग आए ,, सभी बहुत खुश थे ,,नाच गा रहे थे खुशियां मना रहे थे कि तभी एक बड़ी सी गाड़ी आकर गेट के पास रुकी उसमें से सूट बूट पहने एक आदमी उतरा उसके हाथ मे कुछ पेपर्स थे उसे देखते ही अनुज उसके पास आया शायद वह उसे जानता था l
आदमी ने अनुज को पेपर्स देकर कहा – मुख्तार भाई ने ये कागज भेजे है तुमने 6 महीने के लिए जो पैसे लिए थे वो वक्त खत्म हो चुका अब लिए हुए रुपयों का दुगुना लेकर मुख्तार भाई के सामने हाजिर हो जाना वरना ये ओल्डएज होंम खाली कर देना l
अनुज ने सुना तो टेंशन में आ गया और कहा – लेकिन उन्होने तो एक साल के लिए कहा था , इतनी जल्दी मैं इतनी बडी रकम कहा से लाऊंगा ?”
“वो सब मुझे नही पता दो हफ्ते का टाइम है तुम्हारे पास , पैसे दो वरना ये जगह खाली कर देंना भाई को यहां कॉम्प्लेक्स बनाना है ,, चलता हूं”,कहकर आदमी वहां से चला गया l
अनुज मुंह लटकाए पेपर्स हाथ मे लिए वापस आया उसे देखकर सब शांत हो गए अनुज सीढ़ियों पर आकर बैठ गया सुनिधि उसके पास आई ओर कहा – क्या हुआ अनुज ? तुम इतने परेशान क्यो हो ?
अनुज ने सबको सारी बात बताई तो सभी के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आये , अनुज ने निराशा से कहा – उनके हिसाब से मुझे उन्हें 2 लाख 40000 रुपये देने है लेकिन इतनी जल्दी इतनी बड़ी रकम मैं कहा से लाऊंगा ?
“तुम अपने ऑफिस में बात करके देखो , शायद वो कुछ मदद करे “,सुनिधि ने कहा
“नही सुनिधि उनसे मदद ली भी तो वो 50 हजार से ज्यादा मदद नही काट पाएंगे , मुझे कुछ करना होगा मैं ऐसे इस ओल्डएज होंम को बर्बाद होने नही दे सकता l”,अनुज ने कहा
वहां खड़े सभी लोग चुपचाप अनुज की बाते सुन रहे थे अमर ने सबको आंख से कुछ इशारा किया तो सभी अंदर चले गए l सुनिधि अनुज के कंधे पर हाथ रखकर उसे हिम्मत दे रही थी l कुछ देर बाद सभी बाहर आये अमर के हाथ मे कुछ रुपये थे अमर ने रुपये अनुज की ओर बढ़ाकर कहा – बेटा ये 55000 हजार रुपये है हम सबने मिलकर जमा किये है , तुम इन्हें रखो शायद तुम्हे कुछ मदद मिले l
“अरे नही अंकल ये आप सबके लिए है मैं ये पैसे कैसे ले सकता हु ? नही अंकल मैं ये नही ले सकता”,अनुज ने कहा
“क्यो नही ले सकते ? आज तुम्हारी जगह अगर हम सबका बेटा होता तो क्या हम उसकी मदद नही करते ? तुम तो हमारे बेटों से भी बढ़कर निकले बेटा तुम्हारी वजह से हमे छत मिली दो वक्त का खाना मिला ,, तुमने जो हम सबके लिए किया उसके सामने तो ये कुछ भी नही है”,जगन्नाथ ने कहा
अनुज की आँखों मे आंसू आ गए मोहन उसके पास आया और उसका हाथ थामकर कहा – रख लो बेटा , मदद समझकर नही बल्कि हम सबका प्यार समझकर ,, तुमने कभी हमे पराए होने का अहसास नही दिलाया तो आज मुसीबत के वक्त हम लोग तुम्हारा साथ कैसे छोड़ सकते है ? रख लो !”
“जब सुमित्रा की जान बचाने के वक्त तुमने घर गिरवी रखा तब एक बार नही सोचा तो फिर आज क्यो ? तुम बिल्कुल चिंता मत करो हम सब तुम्हारे साथ है”,अमर ने कहा तो अनुज उनके गले आ लगा l सबकी आँखों मे खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे l अनुज सीढ़ियों पर बैठा गया बाकी सब लोग भी वही बैठकर बाकी के पैसों के इंतजाम के बारे में सोचने लगे l कुछ देर बाद वहां बैठे असलम ने कहा – मेरे पास एक आईडिया है ।
सबकी नजर उसकी ओर घूम गयी तो अमर ने कहा – हा बताओ असलम
“चार दिन बाद नवरात्र शुरू होंने वाले है क्यो ना हम सामने वाले मैदान में माता की स्थापना करे , लोग दर्शन के लिए आएंगे तो यहां आकर प्रशाद , फूल , नारियल लेंगे l
दूर से आएंगे तो उन्हें भूख प्यास भी लगेगी तो यही मैदान में खाने के दुकान लगाएंगे , लोगो के मनोरंजन की व्यवस्था भी करेंगे तो सभी आएंगे l इन सब से आने वाले पैसे हम अनुज को देंगे l कहो कैसा है आईडिया ?”
“मुस्लमान होकर तुम नवरात्र की बात कर रहै हो असलम ?’,मोहन ने हैरानी से कहा
“मुस्लमान हु तो क्या हुआ ? हु तो इंसान ही ना ओर ये धर्म का बटवारा हम इंसानों ने किया है उस ऊपरवाले ने नही ,, इस से अनुज बेटे की समस्या तो हल हो गई जाएगी”,असलम ने कहा
अमर आकर उसके गले लगा और कहा – असलम भाई हम सब ये करेंगे ,, इस ओल्डएज होंम को बचाएंगे”
“ठीक है फिर मैदान की सफाई का सारा काम हम सब मिलकर कल से ही शुरू कर देंगे”,जगह ने कहा
“मैं प्रशाद ओर फूलों की दुकान लगा लूंगा”,अमर ने कहा
“मैं राधा और सुमित्रा मिलकर खाने की दुकान खोल लेंगे”,जानकी ने कहा
“मैं निम्बू पानी और सोढा बनाऊंगा”,मोहन ने कहा
“मैं लोगो के मनोरंजन के लिये , नई नई प्रतियोगिता लगाऊंगा”,जगन ने कहा
ओर इस तरह एक एक करके सबने काम बांट लिए , अनुज ओर सुनिधि ने सुना तो उनके पास आकर कहा – मैं ओर सुनिधि माता की मूर्ति बनाएंगे और उनका दरबार सजायेंगे l
सभी बहुत खुश थे और जोश से भरे हुए थे l इसके बाद सबने साथ बैठकर खाना खाया और अगले दिन के प्रतीक्षा में सो गए l सुबह जल्दी उठकर सभी कुदाल फावड़ा लेकर सामने वाले मैदान की ओर बढ़ गए l अनुज ने जगह के मालिक से परमिशन ले ली और सभी काम पर लग गए l
मैदान में झाड़ घासफूस ज्यादा था सबने मिलकर उसे हटाना शुरू किया l काम करते हुए अमर की नजर सामने से आती सुनिधि पंर गयी वह उसके पास आये और उसके हाथ से थर्मस लेकर कहा – अरे बिटिया तुम क्यो चली आयी , इस हाल में तुम्हे ये सब काम नही करने चाहिए तुम बस आराम करो ,, ओर ये वजन तो बिल्कुल नही उठाना l
“आप लोग इतनी मेहनत कर रहे है , आपके लिए इतना तो कर ही सकती हूं ना अंकल ,, अच्छा अभी सभी को बुला लीजिए चाय के लिए”,सुनिधि ने वहां पड़े पत्थर पर बैठते हुए कहा l अमर ने सबको बुलाया सभी हंसी खुशी चाय पीने लगे l
उधर 6 महीनों में रवि ओर विकास का धंधा ठप हो गया l अमर के साइन न करने की वजह से वो कॉन्ट्रेक्ट उन लोगो को नही मिला और जो बचा खुचा पैसा था वो भी उन लोगो ने कॉन्ट्रेक्ट में लगा दिया l दोनो भाई परेशान से बैठे थे तभी बड़ी बहू का भाई वहां आया और उनसे बात की बातों बातों में सारी बाते सामने आई तो बहु के भाई ने कहा – तुम लोगो को बर्बाद करके वह वहां आराम से अपनी जिंदगी जी रहा है ,,
“लेकिन हम कर भी क्या सकते है ?”,रवि ने कहा
“घी जब सीधी उंगली से ना निकले तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है”,भाई ने सोचते हुए कहा
“मतलब ?”,विकास ने कहा
“मतलब ये की अगर तुम्हें जिंदगी बनानी है तो उसे अपने रास्ते से हटाना होगा”,आदमी ने कहा
दोनो भाई खामोशी से एक दूसरे की ओर देखते रहे l
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संजना किरोड़ीवाल
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