Sanjana Kirodiwal

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आ अब लौट चले – 4

Aa Ab Lout Chale – 4

Aa Ab Lout Chale
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Aa Ab Lout Chale – 4

ओल्ड ऐज होंम में अब खुशी का माहौल था l अनुज ओर सुनिधि को माँ बाप मिल चुके थे और बुजुर्गों को सहारा l अमर ओर सुमि में थोड़ी थोड़ी बाते होने लगी थी l उन्हें साथ देखकर मोहनराव ओर जगन्नाथ अक्सर अमर को छेड़ते नजर आते थे l सुमित्रा सुबह शाम पौधों में पानी देने बगीचे की देखभाल करती थी l अनुज ओर सुनिधि ने उन्हें मना करना चाहा लेकिन सुमित्रा ने कहा कि वह अपनी खुशी से ये सब करती है l सुमित्रा को देख बाकी लोगो ने भी कुछ ना कुछ काम करना शुरू कर दिया ,, कोई सब्जियां काटने में मदद करता तो कोई बाजार से सामान ले आता l ओल्डएज होंम एक हंसता खेलता घर बन चुका था जहां सभी एक दूसरे की देखभाल करते थे l अपने अपने दुखों को भूलकर सभी खुश थे l
एक शाम अमर जगननाथ ओर मोहन बैठे थे तभी मोहन ने कहा – भाई अमर क्या अब भी तुम्हारे मन मे सुमित्रा के लिए भावनाएं है 
अमर – ये कैसा सवाल है ? 
मोहन – बस मैं जानना चाहता था , तुम दोनो का यहा आना कोई संजोग नही है क्या पता किस्मत फिर से तुम्हे मिलाना चाहती हो 
जगन्नाथ – हा भाई जानना तो मैं भी चाहता हु , काफी दिनों से देख रहा हु की एक अदृश्य रिश्ता है तुम दोनो के बिच 
अमर – ये आज कैसी बचकानी बातें कर रहे हो तुम दोनो , सुमि के लिए मेरे मन मे कोई गलत भावनाएं नही है , ना तब थी ना अब है 
मोहन – हम लोग कब कह रहे है कि तुम्हारी भावनाएं गलत है l देखो अमर तुम ओर सुमित्रा दोनो एक दुशरे को जानते हो उम्र के इस पड़ाव में चाहो तो एक दूसरे का साथ दे सकते हो l हम तुम्हारी शादी करवाएंगे , क्यो जगन ? 
जगन्नाथ – बात तो तुम्हारी सही है मोहन ,, वैसे भी दोस्त होकर इतना तो करना बनता है 
उनकी बातें सुनकर अमर खीज उठा ओर कहा – कैसी बाते कर रहे हो दोनो ? ना तो मैं 20 साल का युवक हु ओर ना ही ये सब सोचने की मेरी उम्र ,, सुमि के सामने भूल से भी ऐसी बात मत करना तुम समझे l 
मोहन – अरे भाई मजाक कर रहे है l पर जरा सोचो तुम्हे ओर सुमित्रा को बुढ़ापे में सहारा मिल जाएगा सालों पहले जो प्यार अधूरा रह गया था वो पूरा हो जाएगा l आखिर में तुम दोनो के पास भले कुछ न हो कम से कम एक दूसरे को सुनने का वक्त तो रहेगा 
जगन्नाथ – सबकी किस्मत में ये नही होता है अमर तुम चाहो तो इस रिश्ते को एक नया मोड़ दे सकते हो आगे तुम्हारी मर्जी

अमर अपनी जगह से उठा और कहा – मुझे इस बारे में कोई बात नही करनी l 
कहकर अमर वहां से चला गया l मोहन ओर जगन वही बैठे रहे l जानते थे अमर बहुत जिद्दी इंसान है लेकिन दोनो उसकी ओर सुमित्रा की जिंदगी में खुशियां लाना चाहते थे l वे लोग सही कर रहै थे या गलत ये तो कोई नही जानता था लेकिन उन्हें ये करना था अमर के लिए l l बुजुर्ग होकर भी दोनो 20-22 साल के लड़को की तरह बात कर रहे थे 


शाम की पूजा संध्या के समय सभी इकट्ठा हुए l अमर हाथ जोड़े भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि सुमि की जिंदगी में खुशियां लौट आये और वह खुश रहे l उधर सुमि का मन अभी भी अमर को लेकर पीड़ा से भरा हुआ था उसने पहली बार अमर की आंखो में आंसू देखे थे l शादी के बाद उसने कभी अमर की सुध नही ली ये सोचकर वह बहुत दुखी थी l 

आरती समाप्ति के बाद सभी खाना खाने चले आये l यहां मौजूद लोगों में एक साफ सुथरा रिश्ता था सभी एक दूसरे की इज्जत करते और अपना धर्म निभाते l 
खाना खाने के बाद अमर अपने कमरे में चला आया मोहन ओर जगन कि बातों ने उसे बहुत परेशान कर दिया था l उसे नींद नही आई तो वह बाहर बरामदे में चला आया l सीढ़ियों पर बैठा वह अपने अतीत में खोया था कि तभी किसी के गिरने की आवाज आई अमर ने आवाज वाली दिशा में देखा तो उसके होश उड़ गए सीढ़ियों के पास कुछ ही दूर सुमि नीचे जमीन पर गिरी हुई थी अमर ने उसे देखा उठाने की कोशिश की लेकिन सुमि तब तक बेहोश हो चुकी थी l उसकी नाक से खून बह रहा था l अमर ने अनुज को आवाज लगाई कुछ ही देर में सभी दौड़ते हुए आये l

सुनिधि ने एम्बुलेंस वाले को फोन किया सभी बहुत घबरा गए थे l अमर ने मजबूती से सुमि के हाथ को थामा हुआ था और उसका सर अमर के घुटने पर था l अनुज लगातार सुमि के पैरों के तलवो को मसल रहा था l कुछ देर बाद एम्बुलेंस आयी तो अनुज , मोहनराव ओर अमर सुमित्रा को लेकर एम्बुलेंस में आ बैठे l कुछ ही देर में एम्बुलेंस हॉस्पिटल पहुंची सुमित्रा को स्ट्रेक्चर पंर लेटाया ओर अंदर ले जाने लगे इस बीच अमर ने उसका हाथ नही छोड़ा , नर्स स्ट्रेचर को अंदर ले जाने लगी तब। अमर का हाथ धीरे धीरे सुमि के हाथ से छूटने लगा और उस वक्त उन्हें उसी पीड़ा का अहसास हो रहा था जो सालों पहले हुआ था जब वह सुमित्रा से आखरी बार मिला था 

शहर से लौटने के बाद अमर नदी किनारे खड़ा अपनी सुमि का इंतजार कर रहा था l जब सुमि वहा आयी तो उसके चेहरे पर खुशी के बजाय उदासी के भाव थे l सुमि अमर के सामने आकर चुपचाप खड़ी हो गयी तो अमर ने चहकते हुए उसके हाथो को पकड़कर कहा – देखो सुमि शहर से मैं तुम्हारे लिए सोने के कंगन लाया हूं अब तुम्हे ये कांच की चूड़ियां पहनने की जरूरत नही पड़ेगी ll 
लेकिन अगले ही पल सुमि के हाथों में लगी मेहंदी देखकर अमर हैरान रह गया और कहा – सुमि ये सब , मैं समझा नही “
सुमि की आंखो से आँसू बहने लगे उसने कहा – मुझे माफ कर दो अमर पिताजी ने मेरी शादी किसी से तय कर दी है l 
“तुमने उन्हें मेरे बारे में नही बताया ?”,अमर ने हैरानी से कहा 


“”बताया था लेकिन तुम दूसरी जाती से हो , ओर पिताजी इस रिश्ते को कभी स्वीकार नही करेंगे उन्होंने साफ मना कर दिया”,सुमित्रा ने रोते हुए कहा 
“तो चलो अभी हम शादी कर लेते है फिर किसी को हमारे साथ रहने से ऐतराज नही होगा”,अमर ने मजबूती से सुमित्रा का हाथ थामकर कहा 
सुमित्रा ने अपने आंसू पोछे ओर कहने लगी – नही अमर ऐसा किया तो पिताजी की इज्जत खराब होगी और मैं ऐसा कभी नही चाहती , हमारा रिश्ता पवित्र था और हमेशा पवित्र रहेगा ,, हम दोनों कही भी रहे किसी के भी साथ रहे हमेशा खुश रहेंगे l”
सुमित्रा की बात सुनकर अमर का दिल टूट गया लेकिन वह सुमि के जज्बातों की कद्र करता था इसलिये उसने वह कंगन सुमित्रा को पहनाते हुए कहा,”यह मेरी आखरी निशानी संमझ कर रख लो सुमित्रा l 


सुमित्रा कि आंख से आंसू बहने लगे उसने अपने साथ लायी किताब अमर को दे दी दोनो आखरी बार एक दूसरे के गले मिलकर खूब रोये l जाते जाते अमर ने सुमित्रा का हाथ थाम लिया और कहा – सुमि क्या तुम मुझे भूल जाओगी ? 
“नही अमर तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे इन कंगनों के रूप में ,चलती हु ज्यादा देर यहां रुकी तो कमजोर पड़ जाऊँगी”,कहकर सुमि आगे बढ़ गयी अमर का हाथ। धीरेधीरे उस के हाथ से छूटता रहा l 

तभी किसी ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखा अमर ने चोंककर देखा मोहन खड़ा था अमर अपने अतीत में लौट आया l मोहन ने कहा – चिंता मत करो डॉक्टर साहब आ गये है , उन्हें कुछ नही होगा l 

अमर सुमि को लेकर बहुत परेशान था तभी डॉक्टर आया और कहा – ब्रेस्ट के कुछ नीचे एक गांठ है जो लगभग फूटने वाली है जल्द से जल्द ऑपरेशन करके उसे निकालना होगा वरना इनकी जान को भी खतरा हो सकता है”
“तो कीजिये किसी भी हालत में उन्हें बचा लीजिए”,अमर ने बेचैनी से कहा 
अनुज ने उनके कंधे पर हाथ रखा और कहा – अंकल मैं बात करता हु 
अनुज डॉक्टर की तरफ़ आया और कहा – डॉक्टर आप जल्द से जल्द ऑपरेशन की तैयारी कीजिये ,, उन्हें कुछ नही होना चाहिए !


“ऑपरेशन में डेढ़ लाख का खर्च आएगा , उसके बाद मेडिसिन हॉस्पिटल का चार्ज मिलाकर कुल 2 लाख रुपए ,, आप पैसे जमा करा दीजिए मैं अपनी टीम से कहकर ऑपरेशन की तैयारी करता हु l”,डॉक्टर ने कहा 
“2 लाख ?”,अनुज ने कहा 
“पहले इंतजाम कर लीजिए उसके बाद ऑपरेशन होगा”,डॉक्टर ने कहा 
“इंतजाम हो जाएगा डॉक्टर , आप ऑपरेशन शुरू कीजिए तब तक मैं पैसे लेकर आता हूं l”,अनुज ने कहा तो डॉक्टर उसके कंधे पर हाथ रखकर वहां से चला गया 


अमर ओर मोहनराव अनुज के पास आये और अमर ने कहा – 2 लाख , पर इतनी बड़ी रकम तुम कहा से लाओगे ? 
“आप घबराइए मत मैं इंतजाम करता हु”,अनुज ने कहा और हॉस्पिटल से निकल गया ओल्डएज होंम आकर उसमें सुनिधि को बताया सुनिधि ओर अनुज ने तुरंत अपने जमा पैसों को निकाला वो सिर्फ 80000 ही थे , उन्हें देखकर अनुज ने कहा – बाकी पैसे कहा से आएंगे ? आंटी की जान बचाना बहुत जरूरी है l 
“अनुज तुम ये पैसे जमा करवाओ ताकी उनका इलाज शुरू हो , बाकी के पैसे भी हम लोग अरेंज कर लेंगे”,सुनिधि ने कहा 
अनुज ने डॉक्टर से रिक्वेस्ट कर आधे पैसे जमा करवाये , ऑपरेशन शुरू हुआ अनुज ने मोहन ओर अमर को भी घर भेज दिया

और खुद अपने दोस्तो को मदद के लिए फोन करने लगा पर हर किसी से निराशा ही मिली अनुज को संमझ नही आ रहा था क्या करे ? 
उधर अमर पैसे की चिंता में रातभर सो नही पाया उसने आफिस रूम से सुमित्रा के घर वालो का पता लगाया उसका बेटा ओर बेटी इसी शहर में थे अमर बिना किसी को बताये सुबह सुबह ही वहां से निकल गया l सुबह के 9 बजे वह सुमित्रा के बेटे के घर पहुंचा वहां जाकर उसने उन्हें सुमित्रा के बारे में बताया लेकिन बेटे बहु को कोई फर्क नही पड़ा यहां तक के बेटे ने तो ये तक कह दिया – मेरे पास उनपर खर्च करने को एक फालतू पैसा नही है ,, उनसे कहो जाकर सरकारी हॉस्पिटल में इलाज करवाये l


“जरा भी शर्म नही आई ये कहते हुए , वो माँ जिसने तुम्हे जन्म दिया उसके लिए ऐसी सोच , छः कैसे बेटे हो तुम ?”,अमर ने कहा
लड़के को गुस्सा आ गया उसने एक थप्पड़ खींचकर अमर को मारा और घर से बाहर धक्का दे दिया , अमर नीचे आ गिरा लड़के ने उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया l अमर को बहुत दुख हुआ कि वह ऐसे इंसान से सुमित्रा के लिए मदद मांग रहा था l 
उम्मीद की एक किरण बाकी थी वह सुमित्रा की बेटी के घर पहुंचा उसे सुमित्रा के बारे में बताया तो बेटी के शब्दों ने अमर का कलेजा चिर दिया 


“मेरी कोई माँ नही है मेरे लिए तो वो तब ही मर गयी थी जब उन्होंने सारी जायदाद अपने बेटे के नाम कर दी ओर मुझे एक फूटी कौड़ी तक नही दी , जाकर उनके बेटे से कहिए ये सब” 
“किस मिट्टी के बने हो तुम सब ? क्या तुम्हारे मन मे जरा भी दया भावना नही है ,, वो औरत वहा जिंदगी और मौत से लड़ रही है और तुम्हारे मुंह से ऐसी बातें”,अमर रो पड़ा 
“वो मरे या जिये हमे क्या ? , निकलो यहाँ से पता नही सुबह सुबह भीख मांगने कहा से आ जाते है”,कहकर लड़की वहां से चली गयी l 


अमर हताश हो गया उसे खुदसे ज्यादा सुमित्रा के लिए दुख हो रहा था आज समझ आया की सुमित्रा को अपनी बेटी से नफरत क्यो थी ? 
वह बेबस सा हॉस्पिटल लौट आया सुमित्रा का ऑपरेशन रात में ही हो चुका था अभी वह बेहोश थी अमर अनुज के पास आया तो अनुज ने कहा – अंकल परेशान मत होइए , आंटी अब ठीक हैं 
“लेकिन पैसे ?”, अमर ने कहा 


“उनका इंतजाम भी हो गया , कुछ पैसे मेरे ओर सुनिधि के पास थे , बाकी पैसों के लिए ओल्डएज होंम को गिरवी रख दिया”,अनुज ने कहा 
“ये तुमने क्या किया बेटा ? वो तुम्हारी मेहनत थी हमारे लिए उसे गिरवी रख दिया”,अमर ने कहा 
“अंकल पैसा किसी की जान से बढ़कर नही है , आप बैठिए मैं चाय लेकर आता हूं”,अनुज ने कहा और चला गया 
अमर बेंच पर बैठ गया उसे बहुत हैरानी हुई एक तरफ उनके बच्चे थे जो इतना गिर चुके है और एक तरफ अनुज था जो बिना किसी मतलब के इन सबके लिए अपना सब कुछ दे रहा था l 


अनुज चाय ले आया , ओल्डएज से कुछ लोग सुमित्रा से मिलने आये दोपहर तक उन्हें भी होश आया , सभी उनसे मिले लेकिन अमर बिना मिले ही चला गया उसकी हिम्मत नही हो रही थी सुमित्रा से नजर मिलाने की ll
वह अपने कमरे मे बैठा सुमित्रा के बारे में सोच रहा था l उसके बच्चों ने जो बात कही वह मन ही मन उसे पपरेशान कर रही थी
धीरे धीरे सुमित्रा की तबियत में सुधार होने लगा , अनुज ओर सुनिधि अपना सारा काम छोड़कर सुमित्रा की देखभाल में लगे रहे , ओल्डएज होंम का सारा भार अमर ओर मोहनराव पंर आ गया l 


एक हफ्ते बाद सुमित्रा को घर ले आये सभी उसे देखकर खुश थे अमर भी वही भीड़ में खड़ा था l सुमित्रा अपने कमरे में आराम करने चली गयी l अनुज अपने ऑफिस चला गया , सुनिधि ऑफिस में बैठकर काम देखने लगी l शाम के समय सुमित्रा बगीचे में टहल रही थी तभी अमर उसके पास आया ओर गुस्से से कहा – इतना सब हो गया तुम्हारे साथ तुमने मुझे कभी बताया क्यो नही ?”
“मैं अपनी मर्जी से यहां आयी हु “,सुमित्रा ने नजर बचाते हुए कहा 


“मैं तुम्हारे बच्चों से मिल चुका हूं सुमि , क्यों तुम अकेले इस दुख को झेलती रही , क्या एक बार भी तुम्हे मेरी याद नही आई ,, l मुझे क्यो नही बताया इस बारे में ?’,अमर ने कहा 
सुमित्रा ने अमर को पीछे की ओर धक्का देकर कहा – तुम होते कौन हो मुझसे ये सब पूछने वाले ? क्यो बताऊँ मै तुम्हे ये सब , आखिर रिश्ता क्या है हमारा ?” 
“क्या हमारा कोई रिश्ता नही है सुमि ?”,अमर ने कहा 
“यहां से चले जाओ अमर”,कहकर सुमित्रा ने पीठ घुमा ली 


अमर की आँखों मे आंसू आ गए वह चुपचाप वहां से चला गया l रात के खाने पर अमर नही आया वह चुपचाप अपने कमरे में लेते सोच में डूबा था , मन कि पीड़ा चेहरे से साफ झलक रही थी l मोहनराव ओर जगन्नाथ कमरे में आये लेकिन अमर को चुप देखकर दोनो अपने अपने बिस्तर पर चले गए l रात के 11 बज रहे थे लेकिन अमर जाग रहा था उसे जागता देखकर मोहन ने गुस्से से कहा – तुम्हारी नींदें उड़ाकर वो खुद चैन से सो रही है l 


अमर ने उसकी ओर नजर घुमाई तो मोहन ने कहा – आज शाम उसने जो कहा सुना मैंने , कितनी मतलबी निकली वो ओर तुम्हे उसकी परवाह थी
अमर उठकर बैठ गया और कहा – वो जाग रही है मोहन , मोहन ने सुना तो खिड़की से बाहर देखने लगा सुमित्रा बरामदे में खड़ी खिड़की की ओर ही देख रही थी l 

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क्रमशः – Aa Ab Lout Chale – 5

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संजना किरोड़ीवाल 

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