Sanjana Kirodiwal

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“कश्मीर की पनाहों में” – 1

Kashmir Ki Panaho Me – 1

Kashmir Ki Panaho Me
Kashmir Ki Panaho Me

“हर हर महादेव”

“कश्मीर की पनाहों में” एक काल्पनिक कहानी है। इस कहानी में भारतीय थल सेना और कश्मीर में आये आतंकवादियों के बीच के कुछ पहलुओं को उजागर किया गया है जो की पूरी तरह से काल्पनिक है। इस कहानी में बताई जाने वाली घटनाये , पात्र और संवाद काल्पनिक है जिनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। इस कहानी का उद्देशय सिर्फ पाठको का मनोरंजन करना है ना की किसी भी धर्म या व्यक्ति विशेष को ठेस पहुँचाना।

दिसंबर महीने की हाड कपकपा देने वाली ठण्ड में , बर्फ से लदे रास्तों पर अपनी जीप में सवार “कैप्टन देवाशीष राठौर” सुबह के राउंड पर निकले थे। उनके साथ एक सिपाही भी था जो की जीप चला रहा था और देवाशीष उनके बगल में बैठे अपनी पेनी नजरो से रास्तों को देखे जा रहे थे। इन दिनों कश्मीर में हो रहे आतंकी हमलो को लेकर भारतीय सेना काफी सतर्क थी। सेना के मेजर “रघुवेन्द्र चौधरी” इन दिनों खास मिशन पर थे और उन्होंने कैप्टन देवाशीष को ये जिम्मेदारी सौंपी थी की वह अपनी सेना के साथ कश्मीर में हो रही गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे। किसी भी “संदिग्ध व्यक्ति” के पाए जाने पर उसे तुरंत गोली मारने के आदेश भी थे। कश्मीर के जिन इलाको में कड़ी पाबंदी की गयी थी वहा रहने वाले लोगो को भी घरों में ही रहने के आदेश दिए गए थे और किसी जरुरी काम से ही बाहर आने की इजाजत थी क्योकि इन दिनों हालात काफी गंभीर थे।
बर्फ से ढकी सड़कों पर जीप धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। देवाशीष ने गर्म कपड़ो के साथ एक लंबा कोट पहना था साथ चमड़े से बने आर्मी वाले जूते पहने थे। हाथो को ठण्ड से बचाने के लिए उन्होंने दस्ताने पहने हुए थे। सिपाही ख़ामोशी से जीप चला रहा था। सेना में देवाशीष का काफी रूतबा था , बहुत कम समय में उसने काफी तरक्की हासिल की थी और उच्च अधिकारियो में भी उसका काफी अच्छा रिश्ता था यही वजह थी की सेना में उसके साथ ही काम करने वाले लेफ्टिनेंट अधिकारी “मुरली कृष्णा राव” उनसे जलन-भावना रखते थे लेकिन देवाशीष ने कभी इन सब पर ध्यान नहीं दिया। उनके लिए उनकी पहली प्राथमिकता हमेशा इंडियन आर्मी थी।

उसी इलाके में ऊंचाई पर बने कुछ मकानों में कश्मीरी लोग रहते थे। आज ठंड बहुत ज्यादा थी और तापमान भी काफी कम थी जिस वजह से चारो ओर बर्फ जमी थी। उसी इलाक़े में बने एक घर का दरवाजा खुला और एक अधेड़ उम्र की महिला ने बाहर देखते हुए कहा,”पता नहीं ये लड़की इस वक्त कहा होगी ? कितनी बार कहा उसे बाहर मत जाओ लेकिन वो सुनती नहीं है”
“लेखा की माँ अंदर आ जाओ बाहर बहुत ठण्ड है , क्या कुछ गर्म पीने को मिलेगा ?”,ठंड में काँपते अधेड़ उम्र के आदमी ने कहा जो की देखने में उस महिला का पति मालूम पड़ता था। महिला ने दरवाजा बंद किया और अंदर आते हुए कहा,”क्या तुम्हे अपनी बेटी की जरा भी परवाह नहीं है ? उसे गए कितना वक्त हो गया लेकिन वो अभी तक वापस नहीं लौटी है , कुछ दिन पहले ही गुलमर्ग में जो आतंकी हमला हुआ उसके बाद से ही माहौल सही नहीं है,,,,,,,,,,,,लेकिन ये लड़की इसे जरा भी परवाह नहीं है,,,,,,,,,,,,,,उफ़ मैं क्या करू ?”
“चिंता ना करो वो आ जाएगी , वैसे भी ये इलाका सबसे सुरक्षित इलाका है कैप्टन के रहते यहाँ आतंकी हमला तो दूर कोई आने से भी डरता है”,आदमी ने कहा तो महिला वहा से चली गयी। कुछ वक्त बाद वह बड़े प्याले में गर्मागर्म सूप ले आयी और आदमी की तरफ बढ़ा दिया। आदमी ने काँपते हाथो से कटोरे को पकड़ा और पीते हुए कहा,”आज वाकई में ठण्ड बहुत है”
महिला वही पास पड़े कालीन पर बैठी गर्म शॉल की बुनाई करने लगी।

बर्फीले पहाड़ी रास्तो पर एक 22 साला लड़की मेमने के छोटे बच्चे पीछे दौड़ी चली जा रही थी। मेमना भी तेजी से भाग रहा था। लड़की जिसने सलवार और लंबा कुर्ता पहना था , उस पर गर्म लम्बी स्वेटर। उसके सर पर एक रंगीन कपड़ा बंधा था जो की ललाट तक आ रहा था और जिस पर सुनहरी गोटे वाली लेस लगी थी। उसके कानों में पड़े झुमके हवा में झूल रहे थे। उसकी आँखे गहरी काली और चमकदार थी , उसके होंठ सुर्ख लाल थे जिनके बीच उसके सफ़ेद दाँत चमचमा रहे थे। उसके चेहरे का रंग दूधिया था लेकिन ठंड की वजह से लाल हो चुका था जिस वजह से उसे गाल किसी कश्मीरी सेब जैसे लग रहे थे। उसने नक् में बांयी तरफ हीरे का नगीना पहना हुआ था और वह बला की खूबसूरत लग रही थी। मेमने के पीछे भागते हुए अचानक से उसका जूता निकलकर गिर गया। लड़की रुकी और अपना जूता पहनते हुए कहा,”रुक जाओ मेरे प्यारे कोंग्पोश , वहा मत जाओ मेरी बात सुनो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आह्ह आज तो ये कुछ ज्यादा ही तंग कर रहा है लेकिन मैं इसे पकड़कर रहूंगी,,,,,,,,,,,,,,,,हे कोंग्पोश वापस आ जाओ”
चिल्लाते हुए लड़की फिर उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ी। ठण्ड की वजह से उसका चेहरा लाल पड़ चुका था और हाथ जम चुके थे। भागते हुए मेमना सड़क पर चला आया और भागने लगा , लड़की भी उसके पीछे चली आयी भागते हुएलड़की एकदम से जीप के सामने आ गयी और सिपाही को अचानक से ब्रेक लगाना पड़ा। घबराकर लड़की ने अपने हाथो को अपने कानो से लगाया और वही पंजों के बल सड़क के बीचों बीच बैठ गयी। देवाशीष ने देखा तो तुरंत जीप से नीचे उतरा और लड़की के पास चला आया उसने अपनी रौबदार आवाज में कहा,”ए लड़की कौन हो तुम और ऐसे भाग क्यों रही हो ?”
लड़की ने जैसे ही देवाशीष की आवाज सुनी अपनी आँखे खोली और धीरे से अपनी जगह उठ खड़ी हुई। उसने जैसे ही देवाशीष को देखा बस देखते ही रह गयी।
ऊंचा लंबा कद , सांवला रंग लेकिन आकर्षक , गहरी भूरी आँखे जो की काफी तेज थी , सुर्ख होंठ , क्लीन शेव , छोटे बाल , नाक के दांयी तरफ एक छोटा सा काला तिल , उसका सीना चौड़ा था और गर्दन उठी हुई। उसके चेहरे पर कठोर भाव थे और उसने एक बार फिर लड़की तरफ देखकर कहा,”खामोश क्यों हो जवाब दो ?”
देवाशीष की आवाज से लड़की की तंद्रा टूटी और उसका चिढ़ते हुए कहा,”एक तो आपकी वजह से कोंग्पोश भाग गया और उसे पकड़ने के बजाय आप मुझसे ही सवाल कर रहे है ?”
“कोंग्पोश ?”,देवाशीष ने हैरानी से कहा
“मेरा मेमना,,,,,,,,,,,उसी का नाम कोंग्पोश है। अब खड़े खड़े मेरा मुंह क्या देख रहे है , उसे पकड़ने में मेरी मदद कीजिये”,लड़की ने कहा और जैसे ही ढलान की तरफ जाने लगी देवाशीष ने कहा,”रुको ! वहा काफी फिसलन है , तुम यही ठहरो मैं उसे लेकर आता हूँ”
देवाशीष की बात सुनकर लड़की वही रुक गयी , उसने देखा ढलान के नीचे काफी बर्फ जमी थी और नीचे जाने का कोई रास्ता भी नहीं था। लड़की वही रुक गयी और देवाशीष उस मेमने के पीछे चला गया। लड़की को अब तक ये पता नहीं था की देवाशीष कौन है ? वह वही जीप के पास खड़े होकर देवाशीष का इंतजार करने लगी , काफी देर तक जब देवाशीष नहीं आया तो सिपाही को चिंता होने लगी वह लड़की के पास आया और कहा,”ए लड़की तुम्हारी वजह से सर को उस मामूली से मेमने के पीछे जाना पड़ा , तुम जानती हो उनका वक्त कितना कीमती है ?”
“क्या कहा सर ?”,लड़की ने हैरानी से पूछा
“क्या तुम उन्हें नहीं जानती ? वो इंडियन आर्मी के नए कैप्टन है कुछ महीनो पहले ही उनकी पोस्टिंग यहाँ कश्मीर बॉर्डर पर हुई है और तुमने उन्हें अपना मेमना ढूंढकर लाने को कहा,,,,,तुम में जरा भी अक्ल नहीं है क्या ?”,सिपाही ने लड़की को डांट लगाते हुए कहा
लड़की ने जैसे ही सूना उसका दिल धड़कने लगा और साँसे हलक में अटक गयी। उसने सूना था की आर्मी ऑफिसर्स बहुत गुस्से वाले होते है। लड़की पलटी और अपने नाख़ून चबाते हुए जीप से साइड में चली गयी। डर के मारे उसकी हालत खराब थी वह नाख़ून चबाते हुए मन ही मन खुद से कहने लगी,”ये तुमने क्या किया चित्रलेखा ? तुमने एक आर्मी अफसर से अपना मेमना ढूंढने को कहा। तुम एक नंबर की पागल लड़की हो अगर उसने तुम्हारी शिकायत कर दी तो क्या होगा ? क्या वो मुझे और मेरे परिवार को इस इलाक़े से निकाल देगा ? ओह्ह्ह ये मैने क्या किया ? मुझे बिना सोचे समझे ऐसा नहीं करना चाहिए था,,,,,इसलिए माँ ने कहा था की मैं किसी अजनबी से ज्यादा बात ना करू अब मेरा क्या होगा ?”
“तुम्हारा मेमना,,,,,,,,,,,,,,,,!!”,एक बार फिर देवाशीष की आवाज चित्रलेखा के कानो में पड़ी
“हाँ,,,,,,,,,,,,,हाँ”,चित्रलेखा ने देवाशीष की तरफ पलटकर कहा। उसका दिल अब भी तेजी से धड़क रहा था। चित्रलेखा को खामोश देखकर देवाशीष ने अपने हाथो में पकड़ा मेमना उसकी ओर बढ़ा दिया। चित्रलेखा ने उस मैंने को अपने हाथो में लिया तो सहसा ही उसकी उंगलिया दस्ताने पहने देवाशीष के हाथो को छू गयी। देवाशीष ने देखा की ठण्ड की वजह से उसके हाथ सफ़ेद पड़ चुके है उसने अपने दस्ताने निकाले और उसकी तरफ बढाकर कहा,”इन्हे पहनो और अपने घर जाओ ,, इतनी ठंड में ऐसे बाहर घूमना सही नहीं है”
देवाशीष ने ये बात इतने रौब के साथ कही की चित्रलेखा उसे ना नहीं कह पायी और वो दस्ताने ले लिए। देवाशीष जीप की तरफ बढ़ गया। चित्रलेखा अपने बर्ताव के लिए उस से माफ़ी मांगना चाहती थी लेकिन वह कुछ बोल ही नहीं पायी। जीप आकर उसके बगल में फिर रुकी और देवाशीष ने कहा,”जाओ अपने घर जाओ”
चित्रलेखा ने एक हाथ से मेमने को सम्हाला और दूसरे हाथ से देवाशीष को सैल्यूट किया। देवाशीष ने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और सामने देखते हुए सिपाही से जीप आगे बढ़ाने का इशारा किया। जीप के चले जाने के बाद चित्रलेखा ने अपना हाथ नीचे किया और मेमने को सम्हाले कर कहा,”तुम्हारी वजह से मैंने उन्हें डाँट दिया कोंग्पोश , आज तुम्हे दोपहर का खाना नहीं मिलेगा अब घर चलो मेरे साथ”
मेमना भी ठण्ड में भागते हुए थक चुका था इसलिए चित्रलेखा की गोद में दुबक गया। चित्रलेखा ने उन दस्तानो को पहना और मेमने को उठाये घर की तरफ बढ़ गयी।

देवाशीष अपने रेजीडेंसी पहुंचा जहा जवानो के रहने के लिए कई अलग अलग टेंट बने थे। देवाशीष जीप से उतरा और अपने टेंट की ओर बढ़ गया। वह जैसे ही टेंट की तरफ जाने लगा एक जवान ने आकर उसे सेल्यूट करते हुए कहा,”सर मेजर साहब आये हुए है और कुछ देर बाद वो आपसे मिलना चाहते है”
“ठीक है”,कहकर देवाशीष जाने लगा और फिर एकदम से रुककर कहा,”लेफ्टिनेंट विक्रम , तुमने छुट्टी के लिए एप्लिकेशन दी है कोई खास वजह ?”
“सर दरअसल मेरी शादी तय हो गयी है उसी के लिए एक महीने की छुट्टी के लिए अर्जी दी है”,विक्रम ने कहा
“मुबारक हो ! वैसे मैं मेजर साहब से मिलूंगा तब उनसे तुम्हारी छुट्टी की बात भी कर लूंगा”,देवाशीष ने कहा
“थैंक्यू सर”,विक्रम ने मुस्कुरा कर कहा और सेल्यूट करके वापस चला गया। देवाशीष अपने टेंट में आया उसने अपनी वर्दी पहनी , जूतों को चमकाया , अपनी कैप पहनी और टेंट से बाहर चला आया। देवाशीष मेजर रघुवेन्द्र चौधरी के टेंट में आया और उन्हें सेल्यूट करते हुए कहा,”कैप्टेन देवाशीष राठौर रिपोर्टिंग सर”
“कैप्टन देवाशीष हाईकमान से जानकारी मिली है की कल रात में कुछ आतंकवादी सीमा में घुस आये है और उन्होंने कश्मीर घाटी के आस पास ही अपना ठिकाना जमाया है। मैं चाहूंगा जवानों की एक टुकड़ी लेकर आप इस मिशन को सम्हाले तब तक मैं कर्नल साहब से बात कर उन्हें यहाँ के हालात की जानकारी देकर उनसे और जवान भेजने और कश्मीर घाटी पर सुरक्षा बढ़ाने की बात करता हूँ। ये एक एक सीक्रेट मिशन है कैप्टन देवाशीष इस बात का ध्यान रहे की दुश्मन को पता ना चले की उनपर हमला होने वाला है।”
“यस सर”,कैप्टन देवाशीष ने जोश से भरकर कहा
“कैप्टन क्या इस मिशन के लिए आपको किसी तरह की मदद की जरूरत होगी ?”,मेजर साहब ने पूछा
“नहीं सर मैं अपनी टीम के अलावा बस कुछ हथियार साथ रखना चाहूंगा , उन दुश्मनो के लिए मैं और मेरी टीम ही काफी है। हाईकमान से और कोई जानकारी सर , वो कितने लोग होंगे ? उनके पास हथियार कितने है ? इस वक्त वो घाटी के कोनसे क्षेत्र में होंगे ? अगर ये जानकारी हमे मिल जाये तो इस मिशन की तैयारी और बेहतर तरीके से की जा सकती है सर”,कैप्टेन देवाशीष ने कहा
“मैं हाईकमान से बात करता हूँ तब तक आप अपनी टीम के साथ निकलने की तैयारी करे”,मेजर साहब ने कहा
“यस सर”,देवाशीष ने एक बार फिर पुरे जोश के साथ उन्हें सेल्यूट किया और टेंट से बाहर चला आया। देवाशीष ने तुरंत जवानो की एक टुकड़ी तैयार की जिसमे 10 जवान थे। देवाशीष उन्हें नए मिशन के बारे में बताने लगा। उन 10 जवानो में “लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव” भी शामिल था। देवाशीष ने सबको तैयारी करने को कहा। सभी जवान तुरंत वहा से चले गए साथ ही देवाशीष भी वापस अपने टेंट में चला आया और अपना जरुरी सामान बैग में डालने लगा।

हाईकमान से आदेश मिलने के बाद “कैप्टन देवाशीष” अपने जवानो की टुकड़ी के साथ कश्मीर घाटी के लिए निकल गए। लेफ्टिनेंट विक्रम और देवाशीष के बीच अच्छी बनती थी इसलिए दोनों जवानो को ले जाने वाले ट्रक में ड्राइवर के बगल में साथ साथ बैठे थे बाकि सभी जवान अपने अपने सामान और हथियारों के साथ पीछे बैठे थे। देवाशीष के दिमाग में इस वक्त बस कश्मीर घाट चल रही थी , वह खामोश बैठा बस अपने मिशन के बारे में सोच रहा था। पास बैठे विक्रम ने देवाशीष को सोच में डूबे देखा तो कहा,”सर हम जरूर सफल होंगे”
“हाँ लेफ्टिनेंट विक्रम लेकिन मैं इस बारे में नहीं सोच रहा मैं बस ये सोच रहा हूँ की सीमा पर इतनी सुरक्षा होने के बाद भी वो लोग अंदर कैसे घुसे ? हम जवानो का एक ही मकसद है इन दुश्मनो को खदेड़ कर अपनी सीमा से बाहर करना और इस बार इन्हे ऐसा सबक सिखाएंगे की ये की वो सीमा में कदम रखने से पहले सोचेंगे”,देवाशीष ने कहा
“यस सर”,विक्रम ने कहा
“तुम्हे अपनी शादी के लिए छुट्टी चाहिए थी लेकिन मैं तुम्हे इस मिशन पर ले आया”,देवाशीष ने कहा
“देश पहले है सर शादी तो बाद में भी हो जाएगी , वैसे भी साक्षी बहुत समझदार है सर मैं उसे कहूंगा तो वो समझ जाएगी उसी की जिद की वजह से तो मैं सेना में आया।”,विक्रम ने खुश होकर कहा
“साक्षी ?”,देवाशीष ने पूछा
“मेरी होने वाली पत्नी सर , बचपन से हम दोनों साथ ही खेलकर बड़े हुए है ,, एक ही स्कूल में थे मैं आर्मी ज्वाइन कर लू ये उसी का सपना था”,विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा
“जानकर ख़ुशी हुई , वैसे भी इस मिशन के बाद वो तुम पर गर्व महसूस करने वाली है विक्रम”,देवाशीष ने कहा तो विक्रम फिर मुस्कुरा उठा और कहा,”सर आप कब शादी करेंगे ?”
विक्रम से अचानक इस सवाल की उम्मीद देवाशीष की नहीं थी इसलिए उसने विक्रम को घूरकर देखा तो विक्रम ने नजरे नीची करते हुए कहा,”आई ऍम सॉरी सर”
“विक्रम मेरी जिंदगी में मेरी ये नौकरी ही मेरा सबकुछ है , मेरी पोस्टिंग जहा होती है वही मेरा घर होता है और वहा के लोग मेरा परिवार,,,,,,,,,,,,,,,मैं खुद को ऐसे किसी बंधन में नहीं बांधना चाहता। रिश्ते इंसान को कमजोर बनाते है और मैं अपना पूरा जीवन पहले ही अपने देश के नाम कर चुका हूँ।”,देवाशीष ने कहा उसकी आँखों में एक सच्चाई और चेहरे पर कठोरता नजर आ रही थी। उसके बाद विक्रम ने देवाशीष से कोई सवाल नहीं किया और ट्रक तेजी से आगे बढ़ने लगा।

चित्रलेखा अपने मेमने को लेकर घर पहुंची। जैसे ही उसकी माँ ने उसे देखा घर के बाहर पड़ी छड़ी उठायी और उसे मारने उसके पीछे भागने लगी। चित्रलेखा बचने के लिए यहाँ वहा भागने लगी और कहा,”अरे माँ क्या हो गया ? अब मैंने क्या किया ?”
“लेखा तुम्हे जरा भी डर नहीं है , कश्मीर घाटी में आतंकवादीयो ने घुसपैठ कर दी है। सभी लोगो को अपने अपने घरो में रहने को कहा गया है और तूम बाहर घूम रही हो। क्या तुम भूल गयी कुछ महीनो पहले ही इस जंग के चलते हमने तुम्हारे भाई को खोया था , अब तुम ही हमारा एकमात्र सहारा हो लेकिन तुम्हे किसी की परवाह नहीं”,चित्रलेखा की माँ ने उसे छड़ी से मारते हुए कहा
“अरे वो कोंग्पोश (मेमना) की वजह से मुझे पहाड़ी से नीचे जाना पड़ा , ये नीचे चला गया था इतनी ठण्ड में ये बीमार पड़ जाता तो,,,,,,,,,,,,,तुम भूल क्यों जाती हो माँ ये भी इस घर सदस्य है”,चित्रलेखा ने कहा तो मेमना उसके पैरो के पास दुबक कर बैठ गया।
“किसी दिन तुम्हे और तुम्हारे इस मेमने दोनों को घर से बाहर निकाल दूंगी , अब उठाओ अपने इस मेमने को और अंदर चलो”,चित्रलेखा की माँ ने उसे फटकारते हुए कहा। चित्रलेखा ने उस ममेमने को उठाया और अंदर चली आयी। अंदर आकर उसने देखा उसके पिता अपने चारो और नए ऊन के गोले बिखेरे बैठे है और नया कपड़ा बुनने में लगे हुए है। चित्रलेखा को देखते ही उन्होंने कहा,”आ गयी तुम , तुम्हारी माँ कितनी परेशान हो रही थी”
“अरे बाबा माँ को तो आदत है परेशान होने की , आप ये क्या कर रहे है ?”,चित्रलेखा ने अपने हाथो में पहने दस्ताने उतारकर उन्हें ऊँची दलान पर रखते हुए पूछा
“इस बार ठंड बहुत है और बाजार भी लगभग बंद रहने वाला है तो सोचा कुछ गर्म दस्ताने और शॉल लेकर पास के शहर चला जाऊ , कुछ पैसो का बंदोबस्त भी हो जायेगा”,चित्रलेखा के पिता ने ऊन के धागो को सुलझाते हुए कहा
“हम्म्म्म क्या मैं इसमें आपकी कोई मदद करू ?”,चित्रलेखा ने अपने घुटनो पर बैठकर ऊन के धागो को सुलझाते हुए कहा
“हाँ क्यों ना तुम बचे हुए ऊन के इन धागो से कुछ बढ़िया मफलर बना दो”,चित्रलेखा के पिता ने कहा तो वह ख़ुशी ख़ुशी उनकी मदद करने लगी। चित्रलेखा की भी चली आयी और अपने पति की मदद में लग गयी। चित्रलेखा ने सबसे बढ़िया वाला ऊन का गोला उठाया और जैसे ही उसे छुआ उसे एकदम से देवाशीष की कही बात याद आयी “इन्हे पहनो और अपने घर जाओ ,, इतनी ठंड में ऐसे बाहर घूमना सही नहीं है”
देवाशीष का चेहरा चित्रलेखा की आँखों के सामने घूमने लगा। वह उसके ख्यालो में खोई मुस्कुराने लगी। चित्रलेखा के माँ-बाबा ने देखा तो दोनों ने एक दूसरे की ओर देखकर अपनी भँवे उचकाई लेकिन दोनों को ही चित्रलेखा के मुस्कुराने की वजह नहीं पता थी।
“लेखा , लेखा कहा खोई हो ? जल्दी जल्दी हाथ चलाओ अभी और भी काम बाकि है ,, ये धागे सुलझाने में मेरी मदद करो”,चित्रलेखा की माँ ने कहा तो उसकी तंद्रा टूटी और वह अपने काम में लग गयी।

शाम होते होते सेना का ट्रक कश्मीर घाटी के समीप पहुंचा। देवाशीष ने ट्रक को घाटी से कुछ पहले ही रोकने को कहा ताकि दुश्मनो तक उनके आने की खबर ना पहुंचे और वे पूरी तैयारी से अपनी टीम के साथ उन पर धावा बोल सके। देवाशीष ने सबको नीचे उतरने का आदेश दिया सभी देवाशीष के सामने आ खड़े हुए। देवाशीष ने उन सबको आदेश देना शुरू किया।
“लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव , तुम तीन जवानो के साथ पश्चिम दिशा से दुश्मनो पर नजर रखोगे”,देवाशीष ने कहा
“यस सर”,मुरली कृष्ण राव ने कहा
“लेफ्टिनेंट सूरज तुम तीन जवानो के साथ पूरब दिशा से उन पर कड़ी नजर रखोगे”,देवाशीष ने कहा
“यस सर”,लेफ्टिनेंट सूरज ने पुरे जोश के साथ कहा
“लेफ्टिनेंट विक्रम और लेफ्टिनेंट आर्य हम सामने से उन पर नजर रखेंगे”,देवाशीष ने कहा
“ओके सर”,विक्रम और आर्य ने भी पुरे जोश के साथ कहा
“जवानो वक्त आ गया है की हम सब मिलकर उन आतंकियों को सीमा से बाहर खदेड़ दे। ये देश हमारा घर है इसकी रक्षा के लिए अगर हमे अपनी जान भी देनी पड़े तो हम हँसते हँसते कुर्बान कर देंगे क्या आप सब इसके लिए तैयार है ?”,देवाशीष ने पूछा
“हम तैयार है सर”,जवानो ने जोश से भरकर कहा
“लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव और लेफ्टिनेंट सूरज जब तक जवानो की दूसरी टुकड़ी नहीं आती तब तक आप अपनी टीम का नेतृत्व करेंगे , तीन दिशाओ से होकर हम सभी एक पॉइंट पर मिलेंगे उस से पहले अगर आप किसी भी तरह की गतिविधि देखते है या कोई संदिग्ध व्यक्ति देखे तो तुरंत एक्शन लेंगे मेरे आदेश का इंतजार नहीं करेंगे”,देवाशीष ने कहा
“यस सर”,दोनों लेफ्टिनेंट ने कहा
देवाशीष ने सबको अपने अपने हथियारों के साथ आगे बढ़ने को कहा और खुद भी विक्रम और आर्य के साथ आगे बढ़ गया। ठण्ड होने की वजह से घाटी की चढ़ाई धीरे धीरे मुश्किल होती जा रही थी लेकिन देवाशीष के जोश को देखकर विक्रम और आर्य में भी जोश आ गया और वे आगे बढ़ने लगे। देवाशीष की ये 10 जवानो की टीम अब तक की सबसे मजबूत और ताकतवर टीम थी जिन्होंने कई बार दुश्मनो के छक्के छुड़ाए। मेजर साहब ने हाईकमान से बात की और देवाशीष तक खबर पहुंचा दी साथ ही उन्होंने और जवान भेजने का बंदोबस्त भी कर दिया।
हाईकमान ने खबर दी की कश्मीर घाटी में छुपे आतंकवादी 8-10 हो सकते है और उनके पास हथियारों के साथ साथ बारूद होने की संभावना भी है। देवाशीष अपने दिमाग मे प्लानिंग बनाते हुए आगे बढे जा रहे थे। शाम होने लगी थी और देवाशीष भी अपनी टीम के साथ घाटी के पहाड़ी इलाके में पहुँच गए। सभी एक बार फिर एक साथ थे , देवाशीष ने देखा की सूरज की टीम से एक जवान गायब है तो उसने पूछा,”तुम्हारे साथ वाला एक जवान कहा गया ?”
“चढ़ाई करते वक्त उसका पैर फिसला और वह गिर पड़ा जिस वजह से उसके पैर की हड्डी टूट गयी उसे वापस टेंट भेज दिया है सर”,सूरज ने कहा
“सेना की दूसरी टुकड़ी आने में अभी वक्त लगेगा और रात भी होने वाली है , हमे रात यही गुजारनी होगी ताकि कल सुबह हम उन पर धावा बोल सके”,देवाशीष ने कुछ सोचते हुए कहा
“सर हमे इतना वक्त नहीं लेना चाहिए , अब तक तो उन्हें पता चल गया होगा की हमे उनके यहाँ होने की खबर है”,आर्य ने कहा
लेफ्टिनेंट आर्य की बात सुनकर देवाशीष मुस्कुराने लगा। उसे मुस्कुराते देखकर कुछ हैरान हुए तो कुछ समझ गए की देवाशीष अब तक अपना जाल फैला चुका है। देवाशीष ने आर्य की तरफ देखा और कहा,”हमारे यहाँ पहुँचने से पहले ही सेना की एक टुकड़ी पहले ही दक्षिण दिशा से उनकी तरफ भेजी जा चुकी थी
और उनका एक आतंकी सेना के कब्जे में है। दुश्मनो का ध्यान अभी सिर्फ और सिर्फ दक्षिण की तरफ है उन्हें अंदाजा भी नहीं है बाकि तीन दिशाओ से हमारी टीम उन पर हमला करेगी। कल सुबह ही हम सब टुकड़ो में तीनो दिशाओ में फ़ैल जायेंगे और मेरे संकेत देने पर एक साथ हमला करेंगे,,,,,,,,,,,,,,,,यू गोट इट”

“यस सर”,सबने एक साथ कहा वही “मुरली कृष्ण राव” का मन ईर्ष्या से भर उठा की देवाशीष ने उन सबको ये पहले क्यों नहीं बताया ? सभी एक सुरक्षित जगह देखकर वही रुक गए। कुछ बैठकर सुस्ताने लगे और कुछ आग जलाकर हाथ तपने लगे क्योकि रात बढ़ने के साथ ही वहा ठंड भी बढ़ने वाली थी। खाने के लिए थोड़ा सामान था जिसने सबने आपस में बाँट लिया और खाकर आराम करने लगे। विक्रम ने देखा देवाशीष सबसे अलग थलग बैठा अपनी गन साफ कर रहा है वह खाना लेकर उसकी तरफ आया और कहा,”सर ठंड बहुत ज्यादा हैं क्यों ना आप वहा आग के पास चलकर बैठे , और ये मैं थोड़ा खाना लेकर आया हूँ सर आप खा लीजिये”
“विक्रम तुम सब खाओ मुझे इसकी जरूरत नहीं है”,देवाशीष ने कहा
विक्रम ने खाना साथ वाले जवान को दिया और खुद वही बैठकर देवाशीष को देखने लगा। विक्रम को अपनी ओर देखता पाकर देवाशीष ने कहा,”तुम मुझे ऐसे घूर क्यों रहे हो ?”
“सर आप अपने प्रति इतने कठोर क्यों है ? हम सब जानते है आप ज्यादा किसी से बात नहीं करते है , ना ही आप कभी छुट्टी पर जाते है , आप खुद से पहले जवानो की सोचते है ? ऐसा क्यों है सर ? क्या आपको नहीं लगता की कोई आपका ख्याल रखने वाला भी हो”,विक्रम ने कहा उसने अपनी बात पूरी नहीं की इस से पहले ही देवाशीष ने उसकी तरफ देखकर कहा,”तुम्हे फिर से मेरी शादी की चिंता होने लगी ? लेफ्टिनेंट विक्रम इस वक्त हम जहा है वहा से हम लोग ज़िंदा वापस जायेंगे भी या नहीं मुझे ये भी नहीं पता ,, हम जवान देश की रक्षा के लिए अपनी जान हथेली पर लेकर घूमते है विक्रम और हमे कब देश के लिए कुर्बानी देनी पड़ जाये ये हम में से कोई नहीं जानता,,,,,,,,,,,,,,,,मैं अपना ख्याल रख सकता हूँ इसके लिए मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं है”
“हाँ सर लेकिन क्या आप पूरी जिंदगी ऐसे रहने का सोच रहे है ? मेरा मतलब आपने सीने में भी दिल है , क्या इस सख्त चेहरे के पीछे की मासूमियत नहीं हो सकती ?”,विक्रम ने डरते डरते कहा
देवाशीष मुस्कुराने लगा और कहा,”विक्रम कोई ऐसी लड़की जो मुझसे भी ज्यादा मेरे इस देश को प्यार करे , जो मेरी तरह इस देश के लिए समर्पित हो , जिसे मेरी कुर्बानी पर गर्व हो ना की वो और लड़कियों की तरह अफ़सोस जताये , जो मुझसे आँख मिलाकर बात कर सके , जो किसी के सामने भयभीत ना हो और खुलकर अपनी बात कहे कोई ऐसी लड़की मिली तो मैं इस बारे में जरूर सोचूंगा , फिलहाल हमे मिशन के बारे में सोचना चाहिए”
“लगता है आपने ब्रह्मचारी बनने का फैसला कर लिया है”,विक्रम उठते हुए बड़बड़ाया
“कुछ कहा तुमने ?”,देवाशीष ने पूछा
“नहीं सर कुछ नहीं”,कहते हुए विक्रम देवाशीष से नजरे बचाकर चला गया।

सुबह सुबह बर्फ़बारी शुरू हो गयी जिस वजह से ठंड और ज्यादा बढ़ गयी। देवाशीष ने अपनी टीम को आगे बढ़ने का आदेश दिया सभी टुकड़ो में बँट गए और आगे बढ़ने लगे। बर्फ गिरने की वजह से उन्हें आगे बढ़ने में दिक्कत आ रही थी लेकिन फिर भी सबने जारी रखा। जैसा की देवाशीष ने कहा था सभी आतंकी दक्षिण की तरफ ही मौजूद थे उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं था की बाकि तीन दिशाओ से सेना ने उन्हें घेर लिया है। देवाशीष ने अपने सैनिको को झुकने का इशारा किया। सभी नीचे झुक गए , दुश्मन सामने ही थे देवाशीष ने एक जवान को आगे बढ़ने का इशारा किया ताकि वह आगे जाकर ये संकेत दे सके कितने आतंकवादी वहा मौजूद है। जवान जैसे ही कुछ कदम आगे बढ़ा एक तेज धमाका हुआ और वह जवान तेजी से हवा में उछलकर दूर जा गिरा। देवाशीष दुश्मन की चाल समझ गया उसने गोलीबारी का इशारा किया और तड़ातड़ गोलिया बरसनी शुरू हो गयी। दुश्मन भी पहले से सतर्क थे , जवाब में उन्होंने ने भी गोलिया बरसाना शुरू कर दिया। देवाशीष सावधानी से आगे बढ़ने लगा , आगे दुश्मनो ने जगह जगह बारूद बिछाया था ताकि सेना का कोई जवान उन तक ना पहुँच पाए लेकिन देवाशीष ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए आगे बढ़ना जारी रखा। वह कुछ ही आगे बढ़ा था की तभी लेफ्टिनेंट आर्य की आवाज उनके कान में पड़ी। देवाशीष जैसे ही पलटा एक गोली बिल्कुल उसके बगल से निकली अगर वह साइड नहीं होता तो गोली उसके सीने के आर पार हो जाती। देवाशीष के माथे पर एकदम से बल पड़े , आर्य को गोली लगी थी और वह नीचे पड़ा था ,, एक आतंकी हाथ में हथियार लिए खड़ा था ,, तभी कुछ कदमो की आवाजे देवाशीष के कानों में पड़ी , 5-6 आतंकी एक साथ उसकी तरफ चले आ रहे थे। देवाशीष बिजली की गति से नीचे झुका और अपनी गन उठाकर वहा पड़े पत्थरो के बीच कूद गया। उसने अपने साथियो को संकेत देना चाहा लेकिन वो सब आसपास नहीं थे। देवाशीष के पास अब एक ही चॉइस थी “मरो या मारो” बर्फ़बारी की वजह से भी काफी मुश्किलें आ रही थी देवाशीष ने अपनी गन लोड की और एकदम से उठ खड़ा हुआ उसने अपने सामने खड़े दुश्मनो को सम्हलने का मौका ही नहीं दिया और उनके सीने में गोलियां दाग दी। एक गोली आकर देवाशीष के हाथ पर लगी और उसकी गन नीचे जा गिरी। सामने एक दुश्मन खड़ा हथियार लिए खड़ा था वह देवाशीष की तरफ बढ़ने लगा। देवाशीष अपने हाथ को थामे घुटनो पर आ गिरा , दुश्मन को लगा उसने घुटने तक दिए ये देखकर वह कुटिलता से मुस्कुराया और जैसे ही उसकी तरफ बढ़ा देवाशीष ने पास पड़ा पत्थर उठाया और तेज गति से उठकर उसका मुंह कुचल दिया। आतंकी नीचे जा गिरा। देवाशीष ने गन उठायी और गोली सीधा आतंकी के भेजे के आर पार कर दी। उसने आर्य को सम्हाला लेकिन तब तक वह मर चुका था। देवाशीष ने उसकी खुली आँखों को अपने ठंडे पड़े हाथो से बंद कर दिया। दूसरी तरफ गोलीबारी अभी भी जारी थी उसने वहा पड़े हथियारों में से कुछ हथियार उठाये और सावधानी से दूसरी तरफ चला आया। आर्य का चेहरा बार बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था और इसी गुस्से को लेकर वह आगे बढ़ा उसने बिना दुश्मन की परवाह किये उन पर गोली बरसाना शुरू कर दिया। लगभग आधे घंटे बाद ही सारे आतंकी मारे गए , साथ ही सेना के तीन जवान भी शहीद हो गए जिनमे आर्य भी था। कुछ जवान घायल भी हो चुके थे। मुरली कृष्ण राव ने विजय का उद्घोष किया। घाटी के जिस हिस्से पर इन आतंकियों ने कब्जा किया था कैप्टन देवाशीष उस जगह आये उन्होंने जैसे ही वहा तिरंगा लहराया घाटी पर “वन्दे मातरम” का उद्घोष गूंज उठा। देवाशीष और उसकी टीम ने एक बड़े मिशन पर सफलता हासिल की थी। सभी “वन्दे मातरम” का उद्घोष कर ही रहे थे की तभी लेफ्टिनेंट विक्रम की नजर कुछ ही दूर खड़े एक आतंकी पर गयी जिसके हाथ में बन्दुक थी और जिसका निशाना देवाशीष पर था। वह आतंकी कैप्टन पर गोली चलाता इस से पहले ही विक्रम तेजी से उसकी तरफ भागा और उसे साथ लेकर बारूद वाली तरफ जा गिरा। एक बड़े धमाके के साथ दोनों हवा में उछले और नीचे आ गिरे। इस अचानक हुए हमले से जवान फिर हरकत में आ गए। देवाशीष ने उन्हें आदेश दिया की वह आस पास की सभी जगह देखे और खुद तेजी से विक्रम की तरफ आया। विक्रम का चेहरा खून से लथपथ था और उसकी वर्दी के चीथड़े उड़ चुके थे। उसकी सांसे अभी भी चल रही थी। देवाशीष उसके बगल में आ बैठा , उसने उसे उठाया और उसका सर अपने घुटने पर रखते हुए कहा,”ये तुमने क्या किया विक्रम ? मेरी जिंदगी बचाने के लिए अपनी जान दाँव पर लगा दी।”
“आपसे ही सीखा है सर , हम जवानो के लिए देश पहले है बाकि सब बाद में,,,,,,,,,,,,,,मुझे ख़ुशी है की मरने से पहले मैंने अपने दुश्मन को भी मार दिया , अब मैं चैन से मर सकता हूँ सर”,विक्रम ने बड़ी ही मुश्किल से कहा
“तुम्हे कुछ नहीं होगा विक्रम मैंने हाईकमान में सुचना भिजवा दी है वो जल्द ही कोई मदद भेज देंगे”,देवाशीष ने बेचैनी भरे स्वर में कहा
“मेरे पास चंद साँसे बची है सर जाने से पहले मैं आखरी बार आपको सेल्यूट करना चाहता हूँ सर”,कहते हुए विक्रम ने अपने काँपते हाथ से देवाशीष को सेल्यूट करते हुए कहा,”जय हिन्द सर”
देवाशीष उस से कुछ कहता इस से पहले विक्रम की गर्दन और हाथ एक ओर लुढ़क गए। देवाशीष के पास खड़ा लेफ्टिनेंट सूरज फफक पड़ा। देवाशीष की आँखों के सामने विक्रम के साथ बिताये पल आने लगे। विक्रम की कही बात उसके कानो में गूंजने लगी
“देश पहले है सर शादी तो बाद में भी हो जाएगी , वैसे भी साक्षी बहुत समझदार है सर मैं उसे कहूंगा तो वो समझ जाएगी उसी की जिद की वजह से तो मैं सेना में आया।”
“बचपन से हम दोनों साथ ही खेलकर बड़े हुए है ,, एक ही स्कूल में थे मैं आर्मी ज्वाइन कर लू ये उसी का सपना था”
“देखियेगा सर इस बार जब मैं घर जाऊंगा तो उसे मुझ पर बहुत गर्व होगा”
विक्रम के कहे शब्द जैसे ही देवाशीष को याद आये उसने विक्रम के पार्थिव शरीर को अपने सीने से लगा लिया। उसकी बाँयी आँख से बहकर आँसू नीचे गिर गया। देवाशीष ये मिशन तो जीत चुका था लेकिन उसने आर्य और विक्रम को खो दिया ।
देवाशीष और उसकी टीम ने दुश्मनो का सफाया कर दिया और कश्मीर घाटी के उस हिस्से पर अपना झंडा लहरा दिया। कुछ देर बाद ही वहा जवानो की एक दूसरी टुकड़ी पहुँच गयी सभी दुश्मनो और घायल जवानो को ले जाने लगे। देवाशीष के हाथ से भी खून बह रहा था , सबके साथ वह भी आगे बढ़ गया। विक्रम का चले जाना उसे अंदर ही अंदर बहुत तकलीफ पहुंचा रहा था। देवाशीष मेडिकल टेंट में पहुंचा , मेजर ने तुरंत सभी घायलों का ट्रीटमेंट शुरू करने को कहा। डॉक्टर ने देवाशीष की बांह से गोली निकाली और पट्टी कर दी। इंजेक्शन की वजह से वह कुछ देर के बेहोश हो गया। देवाशीष को उसके टेंट में सुला दिया और साथ ही एक जवान को उसका ध्यान रखने का कहकर बाकि जवानो को देखने निकल गए।
लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव इस मिशन के बाद काफी खुश थे , उन्होंने अकेले 4 दुश्मनो को मार गिराया था और अगर केप्टन देवाशीष बीच में ना आये होते तो तिरंगा फहराने का श्रेय भी उसे ही मिलता। वह ख़ुशी ख़ुशी दूसरे जवानो को अपनी बहादुरी के किस्से सूना रहा था जिसमे सिर्फ और सिर्फ खुद की तारीफ थी। लेकिन मेजर को एक बड़ी सफलता के साथ साथ अपने कुछ जवानो को खोने का गम भी था। देवाशीष अपने टेंट में था और इस वक्त वह बेहोश था।
हाईकमान को जब सुचना मिली तो कर्नल साहब खुद देवाशीष से मिलने रेजीडेंसी पहुंचे। शाम तक देवाशीष को भी होश आ चुका था वह अपने टेंट में आराम कर रहा था। कर्नल साहब , मेजर और कुछ जवानों के साथ देवाशीष के टेंट में आये उन्हें देखकर देवाशीष ने उठकर पुरे जोश के साथ उन्हें सेल्यूट किया लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे दर्द उभर आया क्योकि उसने जिस हाथ से सेल्यूट किया गोली उसी हाथ में लगी थी। उसने हाथ नीचे किया और सीना तानकर खड़ा हो गया
कर्नल साहब ने कहा,”केप्टन देवाशीष आपने और आपकी टीम ने बहुत ही सराहनीय काम किया है। भारतीय सेना को आप पर गर्व है कल सुबह आपका और आपकी टीम का प्रेस वालो के साथ एक इंटरव्यू है तैयार रहिएगा”
“यस सर”,केप्टन देवाशीष ने फिर से उन्हें सेल्यूट करते हुए कहा तो कर्नल साहब मुस्कुरा उठे और कहा,”रिलेक्स केप्टन अभी तुम्हारे हाथ पर चोट लगी है , कल सुबह मिलते है”
“यस सर , थैंक्यू सर”,देवाशीष ने कहा तो सभी वहा से चले गए

चित्रलेखा ने जबसे देवाशीष को देखा था वह बस उसी के बारे में सोचे जा रही थी। ना उसका किसी काम में मन लग रहा था ना ही किसी से बात करने में। आज भी वह सुबह वह खुद को रोक नहीं पायी और महज ये सोचकर पहाड़ी से नीचे सड़क पर चली आयी की शायद देवाशीष की जीप फिर से यहाँ से गुजरे और वह उसे देख पाए। चित्रलेखा काफी समय तक वहा खड़ी रही लेकिन कोई जीप उधर से नहीं निकली। चित्रलेखा वापस घर की ओर चली आयी। रास्ते में ही बर्फ गिरने लगी चित्रलेखा जल्दी जल्दी अपने कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ रही थी। कुछ दूर जाकर वह उलझकर गिर पड़ी , गनीमत था उस जगह भारी मात्रा में बर्फ गिरने की वजह से उसे चोट नहीं आयी लेकिन ठण्ड से उसके हाथ काँपने लगे। उसे देवाशीष के दिए उन दस्तानो की याद आयी जिन्हे वह घर छोड़ आयी थी।
नीचे गिरी वह ठंड से काँप रही थी की तभी उसके कानो में एक मधुर आवाज पड़ी,”लाओ अपना हाथ दो”
चित्रलेखा ने देखा उसके सामने आर्मी की वर्दी पहने एक नौजवान खड़ा था। चित्रलेखा ने देखा वो कोई और नहीं देवाशीष ही था उसका दिल धड़कने लगा उसने अपना काँपता हाथ उसके हाथ की ओर बढ़ा दिया। जैसे ही उसने उस हाथ को थामा वो हाथ हवा में गायब हो गया। चित्रलेखा को काफी हैरानी हुई वह उठी और इधर उधर देखा दूर दूर तक सिर्फ बर्फ गिर रही थी। वहा देवाशीष नहीं था बल्कि उसका वहम था जो उसके सामने देवाशीष बनकर खड़ा था और उसके छूते ही हवा में गायब हो गया। चित्रलेखा अपनी ही हरकत पर मुस्कुरा उठी और आगे बढ़ गयी। उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए वो कुछ शब्द काफी थे “लाओ अपना हाथ दो”
हालाँकि ये शब्द भी उसके अपने ही दिमाग की उपज थे लेकिन वो सुन पा रही थी जैसे ये देवाशीष ने ही कहे हो। चित्रलेखा घर पहुंची। शाम तक बारिश भी रुक गयी लेकिन मौसम काफी सुहावना हो चला था। चित्रलेखा जो की आज सुबह से काफी उदासीन थी वह घर के बाहर चली आयी। बगल में ही उसने कुछ लकडिया इक्क्ठा करके आग जलाई और अपने हाथ तपने लगी। वो रौशनी चित्रलेखा की आँखों को सुकून पहुंचा रही थी लेकिन चेहरे पर उदासी बढ़ने लगी। वह देवाशीष को देखना चाहती थी , उस से फिर मिलना चाहती थी लेकिन वह तो उसके बारे में कुछ भी नहीं जानती थी। वह घुटनो के बल बैठी थी उसने अपनी दोनों बांहो को घुटनो पर रखा और अपना चेहरा उस पर टीकाकार एक टक उस जलती आग को देखने लगी
“ए चित्रलेखा ध्यान कहा है तुम्हारा अभी तुम्हारा ये कपड़ा जल जाता”,चित्रलेखा के घर के बगल में रहने वाली अरिका ने कहा
“तुम यहाँ कैसे ?”,चित्रलेखा ने अपने कपड़ो को ठीक करते हुए कहा
“तुम्हे अकेले बैठे देखा तो चली आयी , वैसे दो दिन से काफी ठण्ड है ,, और तुम इतनी उदास क्यों हो ? तुम्हारी माँ से तुम्हारा फिर झगड़ा हुआ क्या ?”,अरिका ने हाथ तपते हुए पूछा
“नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ है”,चित्रलेखा ने फिर अपना चेहरा घुटनो पर टिकाते हुए कहा
“कुछ तो बात है बताओ क्या हुआ है ?”,अरिका ने फिर पूछा
“अरिका क्या तुम जानती हो आर्मी वालो की रेजीडेंसी कहा है ?”,चित्रलेखा ने एकदम से अरिका की तरफ देखकर पूछा
“नहीं लेकिन मेरे अब्बू को पता है , वो अक्सर वहा जाते है लेकिन तुम ये क्यों पूछ रही हो ?”,अरिका ने कहा
“बस ऐसे ही , क्या तुम्हारे अब्बू मुझे वहा ले जा सकते है , मुझे एक बार उनकी रेजीडेंसी देखनी है,,,,,,,,,,,,,,क्या ऐसा हो सकता है ?”,चित्रलेखा ने आँखों में चमक भरते हुए पूछा
“नहीं वहा आम कश्मीरियों का जाना मना है बहुत कड़ी सुरक्षा है वहा और तो और उनकी रेजीडेंसी के आस पास अगर कोई बेवजह घूमता दिखाई दे तो उसे तुरंत गोली मार दी जाती है ,, ऐसा मेरे अब्बू बता रहे थे एक बार”,अरिका ने अपनी आँखों को बड़ा करते हुए कहा
“तो फिर मैं उस से कैसे मिलूंगी ?”,चित्रलेखा ने अपना चेहरा फिर से अपने घुटनो पर रखी बांहो पर रखते हुए कहा
“किस से ?”,अरिका ने हैरानी से पूछा
अरिका पूछते रही लेकिन चित्रलेखा ने कोई जवाब नहीं दिया। देवाशीष से मिलना अब उसे और मुश्किल लग रहा था।

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संजना किरोड़ीवाल

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