Sanjana Kirodiwal

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मोहल्ला 24 बट्टे 7

Mohalla 24 Batte 7

Mohalla-24 Batte 7

उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले में “मोहल्ला 24/7” अपने आप में ही खास था। इस शहर में ये ऐसा मोहल्ला था जहा हर धर्म और जाति के लोग रहते थे हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई लेकिन इसके साथ साथ ये मोहल्ला चर्चित था ‘केशव पंडित’ और ‘सलीम भाई’ की दुश्मनी की वजह से। ‘केशव पंडित’ ब्राह्मण परिवार का जनेऊ धारी पंडित था। अच्छा खासा बड़ा परिवार था , पत्नी , बच्चे , भाई उनका परिवार सभी मिलजुलकर रहते थे। मोहल्ले में उसकी मिठाईयों की दुकान थी जिसकी वजह से मोहल्ले में उसकी अच्छी खासी इज्जत थी। सुबह से लेकर शाम तक दुकान पर भीड़ रहती थी। दुकान से लगकर ही उनका बड़ा सा घर था जिसमे वे अपने छोटे भाई के परिवार के साथ रहते थे। केशव पंडित के घर के बिल्कुल सामने सलीम भाई का घर था। ‘सलीम भाई’ 5 वक्त नमाजी मुस्लमान थे। घर के बाहर ही उनकी चिकन/मटन की दुकान थी और उनके वहा भी दुकान पर काफी भीड़ रहती थी। सलीम भाई के परिवार में उनकी बेगम , तीन बेटे और एक बेटी के साथ कुछ रिश्तेदार भी थे जिनमे उनका साला यूनुस दुकान सम्हालता था। दोनों का घर आमने सामने था और उनकी दुश्मनी के चर्चे पुरे मोहल्ले में थे। ये दुश्मनी क्यों थी ? आज तक कोई नहीं जान पाया बस जिसने भी उन्हें अब तक देखा तो झगड़ा करते हुए ही देखा। कभी कभी तो बात इतनी बढ़ जाती थी की सुलझाने के लिए पुलिस तक को आना पड़ता था लेकिन मजाल है पुलिस उन दोनों में से किसी को हाथ लगा ले। दोनों का मोहल्ले में अपना ही दबदबा था। केशव और सलीम में झगडे के तीन पड़ाव थे पहला ‘मूक युद्ध’ जिसमे दोनों बिना बोले एक दूसरे को किसी न किसी वजह से परेशान करते थे , दूसरा पड़ाव था ‘वाक युद्ध’ इसमें दोनों ही एक दूसरे को गाली गलौच और अनाप शनाप बोलते थे और तीसरा था ‘हाथापाई’ इनकी हर लड़ाई आखिर में हाथापाई पर पहुँच ही जाती थी इसमें ना जाने कितनी बार सलीम भाई का सर फूटा और केशव पंडित का हाथ टुटा लेकिन इनकी दुश्मनी में कोई कमी नहीं आयी दिन दिन ये गुस्सा , झगड़ा और नफरत बढ़ती ही गयी। पहले पहले मोहल्ले के लोगो ने एक आध बार इन्हे समझाया भी लेकिन उसके बाद मोहल्ले वाले भी इन दोनों के झगड़ो को मजे लेकर देखने लगे।
एक सुबह केशव पंडित की धर्म पत्नी सुबह सुबह मंदिर में पूजा पाठ कर रही थी। घर के आँगन में लगे टेप रिकॉर्डर पर उन्होंने “मंगल भवन अमंगल हारी” चला रखा था। केशव पंडित की सुबह पण्डितायन की पूजा से ही होती थी वे उठे और शौच की और जाने लगे। जाते जाते उनकी नजर सामने छत पर खड़े सलीम भाई पर गयी तो उन्होंने टेप की आवाज को थोड़ा बढ़ा दिया और बाथरूम में चले गए। सलीम भाई ने सूना वे कहा पीछे हटने वाले थे वे भी कमरे में रखा अपना टेप रिकॉर्डर उठा लाये और उस पर कव्वाली चला दी वो भी तेज आवाज में “भर दो झोली मेरी या मोहम्मद लौटकर मैं ना जाऊंगा खाली”
केशव अभी बाथरूम में घुसा ही था की ये सुनकर उसका पारा चढ़ गया वह बाहर निकला और सलीम को घूरते हुए टेप रिकॉर्डर के पास आकर उसकी आवाज को और तेज कर दिया। सलीम ने देखा तो उसने भी आवाज और तेज कर दी। पुरे मोहल्ले में “मंगल भवन” और “भर दो झोली” दोनों साथ साथ चलने लगे। सलीम भाई की बेगम ने अपना सर पीट लिया और पंडित जी के घर में उनके छोटे भाई के लड़के “बिट्टू” ने छत से निचे आते हुए अपनी बहन से कहा,”लगता है बड़े पापा फिर शुरू हो गए”
“अब तो आदत हो चुकी है भैया”,बहन ने आँखे मसलते हुए कहा
पंडिताइन ने सूना तो तुरंत आँगन में पहुंची और टेप रिकॉर्डर बंद कर दिया। बाथरूम में बैठे पंडित जी ने सूना तो जल्दी जल्दी निपट कर बाहर आये और कहा,”का पंडिताइन ठीक से शौच भी ना करने दी हो ?”
“ये सुबह सुबह घर में इतना जोर से संगीत काहे बजा रखा है , आप लोग अपनी दुश्मनी के चलते काहे पुरे मोहल्ले का जीना हराम किए हो ?”,पंडिताइन ने बिफरते हुए कहा
“अच्छा मतलब हम ही सबकुछ किये है , उह कछु ना किये है। हमहू डरते है का उनसे”,पंडित ने अपना हाथ घुमाकर कहा तो पंडिताइन की नजर उनके हाथ में पकडे लौटे पर गयी और उन्होंने पंडित जी को झिड़कते हुए कहा,”इह बहादुरी बाद में दिखाइयेगा पहिले जाकर सोच का लौटा बाथरूम में रख दीजिये”
पंडित जी ने देखा तो झेंप गए लेकिन सामने छत पर खड़े सलीम ने जब ये सूना तो जोर जोर से हसने लगा फिर क्या था केशव पंडित ने घुमा के लौटा मारा सलीम की और , लेकिन सलीम झुक गया और लौटा कही और जा गिरा। दनदनाते हुए सलीम निचे उतरा इधर से पंडित जी बाहर निकले दोनों अपने अपने घरो के गेट पर आकर खड़े हो गए। मोहल्ले के बच्चे ने जैसे ही उनको देखा चिल्लाता हुआ मोहल्ले में भागते हुए कहने लगा,”अरे सुनो सुनो सुनो शो शुरू होने वाला है , सब अपनी अपनी छतो पर आ जाओ।”

भाग 2

केशव पंडित और सलीम भाई अपने अपने घर के बाहर खड़े थे और एक दूसरे को खा जाने वाली नजरो से देख रहे थे। मोहल्ले के लोग अपनी अपनी छतो और घरो के बाहर खड़े हो चुके थे। सलीम भाई ने पंडित जी को घुरा और कहा,”अरे ओह्ह ! पंडित रात की उतरी नहीं जो सुबह सुबह बोहराया हुआ है ,, निशाना तो तेरा पहले भी खराब था और अब भी खराब ही है।”
“शिव शिव शिव , का बोल रहे हो बे ? शराब और हम , अरे हमउ शराबियो के पास नहीं बैठते पीना तो बहुते दूर की बात है ,, अपनी जबान को लगाम देओ नहीं ते काट के फेंक दिए है नाले में”,केशव पंडित भी भड़क उठा
“हाहाहाहा तू क्या काटेगा , चाकू तो पकड़ा नहीं जाता इस उम्र में तुमसे ,, अरे मैं रोज 50 किलो मटन काटता तेरे जैसे की गर्दन काटना कौनसी बड़ी बात है”,सलीम भाई ने अपनी दाढ़ी पर हाथ घुमाते हुए कहा।
“तुमहे इंसान और जानवर में फर्क ही का पता है ? कबहु इंसानो की बिच तो रहे नहीं हो”,केशव पंडित ने कहा तो सलीम ने सोचने की एक्टिंग की और फिर कहा,”हम तो पिछले कई सालो से तुम्हारा थोड़बा देख रहे है , ;लेकिन एक बात समझ नहीं आयी केशव पंडित तुम खुद को जानवर काहे कह रहे हो ?”
इस बात से तो पंडित जी बौखला से गए और दरवाजे पर पड़ा डंडा उठाकर जैसे ही आगे बढे उनकी धोती खुलकर नीचे गिर गयी गनीमत था की उन्होंने अंदर धारियों वाला कच्छा पहन रखा था। ये देखते ही पूरा मोहल्ला हंस पड़ा। सलीम तो तालियां बजा बजा कर हंस रहा था। केशव पंडित का सबके सामने पोपट हो गया तो सलीम भाई ने कहा,”अरे पंडित पहले अपनी धोती तो सम्हाल ले”
“तुम पहिले अपनी जबान सम्हाल लो , रोज सुबह तुम्हरी सड़ी शक्ल देखकर दिन तो वैसे ही बेकार जाता है मेरा”,केशव पंडित ने अपनी धोती सम्हालते हुए कहा
“अबे जा , जा पंडित तेरी सड़ी मिठाईयों से तो अच्छी है मेरी सुरत , झूठा इंसान मिठाईया बासी बनाता है और कहता है शुद्ध घी की मिठाई है ,, भक्क तेरे दहीभल्ले का खट्टा”,सलीम ने कहा
केशव पंडित सब सुन सकता था लेकिन अपनी मिठाईयों के खिलाफ एक शब्द नहीं उसने गुस्से से कहा,”हां हां तू तो जैसे बड़ा ही साफ सुथरा माल रखता है ना , दुष्ट मानव जानवरो को मारकर उन्हें बेचता है तुझे तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी”
“कैसे मिलेगी मियां ? तुमने पहले से ही वहा अपने लिए जगह बुक कर रखी है”,सलीम ने नहले पर दहला मारा। आधे घंटे तक दोनों का वाक् युद्ध चलता रहा उधर सलीम भाई के घरवाले परेशान इधर पंडित जी के घरवाले दुःखी , समझाना दोनों को बेकार था क्योकि दोनों किसी की नहीं सुनते थे और ये रोज का ड्रामा था इनका मोहल्ले वालो का मनोरजन हो जाता और इन दोनों की भड़ास एक दूसरे पर निकल जाती। अभी उनका गाली गलौच चल ही रहा था की पंडिताइन बाहर निकल कर आयी और पंडित जी से कहा,”का पंडित जी ? सबेरे सबेरे का है इह सब ? अरे कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज कीजिये ऐसी अर्नगल बातें कर रहे उह भी मोहल्ले वालो के सामने ,, शर्म नहीं आती।”
पंडिताइन की बात सुनकर पंडित जी चुप हो गए तो पंडिताइन पलटी सलीम भाई की तरफ और कहा,”का सलीम भाई कमसे कम आप तो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!! पंडिताइन ने बस इतना ही कहा था की सलीम भाई अपने घर के भीतर हो लिए। मोहल्ले के लोग अभी भी बाहर खड़े होकर देख ही रहे थे की पंडिताइन ने उन्हें भी झिड़कते हुए कहा,”और तुम सब का टुकुर टुकुर देख रहे , चलो जाओ अपने अपने घर ,, सुबह सुबह हिया जलसा लगा रखा है।”
सभी अपने अपने घरो में चले गए पंडिताइन भी बड़बड़ाते हुए वापस अंदर आ गयी। अंदर आयी तो आँगन में केशव का छोटा भाई सरस , उसकी पत्नी जया , बिट्टू , अदिति सब आँगन में ही खड़े थे। पंडित जी ने बाल्टी से पानी लेकर हाथ पैर धोये और सबके बिच से जैसे ही जाने लगे पंडिताइन ने कहा,”हमहू पूछत रहे की इह दुश्मनी कब तक चली है ?”
“जब तक हम जिन्दा रही है इह दुश्मनी खत्म ना होई हैं , उस सलीम को तो हमहू सबक सीखा के रही है। केशव पंडित पर हसता है किसी दिन मिर्जापुर से कट्टा लाय के सारी की सारी गोलियां उसकी छाती में दाग देही है”,केशव पंडित ने भुनभुनाते हुए कहा
“हे भगवान ! तुम्ही जानो का होई इस घर का ?”,कहते हुए पंडिताइन जया और अदिति को लेकर वहा से चली गयी। सरस ने केशव पंडित से कहने के लिए जैसे ही मुंह खोला पंडित जी ने कहा,”दुकान खोल ली ?”
“नहीं !”,सरस ने कहा
“तो जाकर खोलो , हमाये सामने मुंह काहे खोल रहे हो ?”,कहते हुए पंडित जी चले गए। बिट्टू ने देखा तो खी खी करके हसने लगा और जैसे ही सरस ने उसे घुरा बिट्टू वहा से 9 2 11 हो गया ! किचन में नाश्ते की तैयारी करते हुए पंडिताइन भुनभुना रही थी। उनका गुस्सा देखकर जया ने तो कुछ ना बोलना ही ठीक समझा। पंडिताइन ने एक ग्लास में दूध डाला और अदिति को आवाज लगाई,”अदिति ओह्ह्ह अदिति बिटिया जरा इह दूध का गिलास शिवम् भैया को देकर आओ”
“जी बड़ी माँ”,कहकर अदिति ने दूध का ग्लास लिया और जीने (सीढ़ियों) की और चली गयी। ऊपर दूसरे माले की छत पर सोये शिवम् को निचे हुई बहस से कोई मतलब नहीं था उसे अपनी सुबह सुबह की नींद बहुत प्यारी थी। अदिति ऊपर आयी और दूध का ग्लास रखते हुए कहा,”का भैया बड़े पापा की वजह से पूरा मोहल्ला जाग गया और तुम हो के अभी तक सोये पड़े हो”
शिवम् उठा और दूध का ग्लास उठाकर एक साँस में पीया और ग्लास अदिति की और बढाकर कहा,”पंडित जी चाहे पुरे उन्नाव जिले को उठा दे हमायी सुबह तो किसी ओर के दीदार से होती है।” कहते हुए शिवम् ने सामने सलीम भाई के घर की छत पर खड़ी आरफा को देखकर कहा जो की कपडे सुखाने आयी थी। अदिति को कुछ समझ नहीं आया वह ग्लास लेकर निचे चली आयी।

भाग 3

शिवम् छत पर अपने बिस्तर पर बैठा सामने छत पर कपडे सुखाती आरफा को देख रहा था। आरफा सलीम भाई की इकलौती बेटी है पुरे घर में सबसे प्यारा आरफा को ही मिलता है। सलीम के घर में लड़कियों को ज्यादा पढ़ने की मंजूरी नहीं थी लेकिन उसने आरफा को कॉलेज जाने की परमिशन दी। बचपन से शिवम् उसे देखता आ रहा है लेकिन अपने पिताजी और सलीम भाई की दुश्मनी की वजह से आरफा से उसकी बात नहीं हो पाई। आरफा जिस कॉलेज में पढ़ती थी शिवम् भी उसी कॉलेज में था लेकिन अपने पिताजी और आरफा के अब्बू के डर से कभी उसने आरफा से बात नहीं की बस दोनों एक दूसरे को देखते रहते थे। पिछले कई सालो से आरफा इसी वक्त छत पर कपडे सुखाने आती और उसे देखकर शिवम् की सुबह होती। ये एक मूक मोहब्बत थी जिसका ना इजहार हुआ था ना ही इकरार। आरफा नीची नजरे किये कपडे सुखाती जा रही थी और फिर तार पर डाले गए कपड़ो को साइड करके नजरे उठाकर शिवम् को देखा शिवम् हल्का सा मुस्कुरा दिया।
“आरफा क्या कर रही हो ऊपर इतनी देर से ? कपडे सुखाने गयी हो या इस्त्री करने”,निचे आँगन में बैठी आरफा की खाला (भुआ) रुक्सार ने पान चबाते हुए कहा। वही कुछ ही दूर बैठा सलीम सुबह का अखबार पढ़ रहा था !
“जी आयी”,कहते हुए आरफा तेजी से वहा से चली गयी शिवम् अभी ठीक से उसे देख भी नहीं पाया था। वह उठा और अंगड़ाई लेते हुए निचे चला आया। केशव पंडित नहाने के बाद तैयार होकर रसोई की तरफ आये और अंदर काम करती हुई अपनी पंडिताइन से कहा,”का पंडिताइन आज चाय ना पिलाई हो सबेरे से ?”
“चाय काहे पिएंगे आप तो हमारा खून पीजिये”,पंडिताइन ने गुस्से से कहा
“अरे काहे बिगड़ती हो पंडिताइन ? जब तक तुम्हारे हाथ की चाय नहीं ना पिए शुरुवात कहा होती है दिन की , अभी गुस्सा थूक दो”,केशव पंडित ने उन्हें मनाते हुए कहा
“कहा थूके ?”,पंडिताइन ने बाहर आकर कहा
“ल्यो हमाय मुंह पे थूक दयो , अरे छोडो ना पंडिताइन का सुबह सुबह तुम मुँह फुला ली हो इह उम्र में अच्छा लगता है इह सब”,पंडित जी ने कहा
“ये पकड़ो चाय और जाकर अपनी दुकान देखिये”,कहते हुए वे वापस रसोई में चली गयी। केशव पंडित चाय ले आये और कुर्सी पर बैठकर पिने लगे जिने से निचे उतरते हुए शिवम् बचकर निकलने की सोच ही रहा था की केशव पंडित ने कहा,”का बेटा ? सूरज देवता जब तक आँगन में दर्शन ना दे तुमरे भी दर्शन नहीं होते है। कित्ती बार कहे है बेटा सुबह जल्दी उठा करो , पूजा पाठ करो , दुकान पर बैठो पर नहीं आजकल के लौंडो को तो घर के बिजनेस में कोई इंट्रेस्ट नहीं है”
बेचारा शिवम् सुबह सुबह उसे लेक्चर सुनने पड़ गए अब पिताजी को तो जवाब दे नहीं सकता इसलिए पंडिताइन को ही आवाज लगा दी,”अम्मा नाश्ता बनाय दयो कॉलेज जाना है”
“बेटा बाहरवीं तो तुमने तीन बार कोशिश करके पास की , कॉलेज में कित्ते साल लगे है ?”,केशव पंडित ने कहा तो शिवम् ने उनके सामने आकर कहा,”जितने भी साल लगे पिताजी हमहू दुकान पर बैठ कर जलेबी ना तली है”
“हां हां बेटा तुम काहे करि हो , तुमहू तो राजा महाराजा के घर से हो।”,केशव पंडित ने कहा
शिवम बिना कुछ बोले वहा से चला गया तैयार होकर आया और नाश्ता करके अपनी किताब उठाकर वहा से निकल गया। बाहर आकर उसने किताब को बाइक में फसाया और बैठकर आँखों पर चश्मा लगा लिया। पूरा मोहल्ला उसे शिवम् के नाम से कम और पंडित जी के लौंडे के नाम से ज्यादा जानता था। शिवम् ने बाइक स्टार्ट की ही थी की बिट्टू पीछे आकर बैठा और कहा,”अरे भैया कॉलेज जा रहे हो तो हमे भी रस्ते में छोड़ देना , का है कम्प्यूटर क्लास के लिए फॉर्म भरना है”
“छोटे पंडित जी मान गए तुम्हारी कम्प्यूटर क्लास के लिए ?”,शिवम् नेबाइक आगे बढाकर कहा
“काहे नहीं मानेंगे ? तुम्हाये पिताजी की तरह थोड़े है की कछु सुनो ही ना”,बिट्टू ने मुंह बनाकर कहा शिवम् ने बाइक रोकी और बिट्टू को उतरने को कहा !
“का बाइक बंद पड़ गयी है ? या टंकी खाली है ?”,बिट्टू ने कहा
“ऐसा है बेटा हमाये पिताजी से हम चाहे जितना झिले कोनो दुसरा बोले तो बर्दास्त नहीं है , पैदल आ जाना”,कहकर शिवम् बाइक लेकर चला गया और बेचारा बिट्टू पैदल ही चल पड़ा।
शिवम् कॉलेज पहुंचा क्लास में आते ही नजर फर्स्ट बेंच पर बैठी आरफा पर चली गयी। काले बुरखे से ढकी आरफा की बस आँखे नजर आ रही थी शिवम् की नजरे उस से मिली और वह तीन लाइन छोड़कर पीछे बैठ गया। टीचर्स आये और पढ़कर चले गए। पीछे बैठे शिवम् ने आज आरफा से अपने दिल की बात करने का मन बना लिया था। उसने एक कागज पर कुछ लिखा और आरफा तक पहुंचा दिया। आरफा ने कागज खोलकर देखा उसमे लिखा था “आज कॉलेज के बाद हमसे लालू कचौड़ी वाले की दुकान पर मिलो”
आरफा ने पलटकर देखा तो पाया शिवम् उसे ही देख रहा है। आरफा ने कागज को मोड़कर अपनी मुट्ठी में छुपा लिया। आरफा के साथ उसकी खाला की बेटी शबनम भी कॉलेज आती थी। कॉलेज खत्म होने के बाद दोनों आकर रिक्शा में बैठी। आरफा ने रिक्शा वाले को लालू कचौड़ी वाले की गली चलने को कहा।
“वहा क्यों जाना है ? घर तो उस तरफ है”,शबनम ने टोका तो आरफा ने कहा,”तू चुप करके बैठ , आप चलिए भैया”
रिक्शा वाले ने रिक्शा आगे बढ़ा दिया। रिक्शा दुकान से कुछ पहले रुका आरफा और शबनम निचे उतरी दुकान के पास ही शिवम् अपनी बाइक पर बैठा आरफा का इंतजार कर रहा था। आरफा को देखते ही बाइक से उतरकर आँखों से चश्मा उतारकर शर्ट में टांग लिया। आरफा और शबनम उसके सामने आयी शिवम् को वहा देखकर शबनम ने कहा,”ये यहाँ क्यों आया है किसी ने हम दोनों को इसके साथ देख लिया और मामू जान को बता दिया तो हमारी खैर नहीं”
“चुप करो हमने बुरखा पहना है कोई हमे नही पहचानेगा”,आरफा ने कहा। शिवम् उनके पास आया और आरफा से कहा,”कचौड़िया खानी है ?”
“आपने हमे कचौड़िया खाने के लिए बुलाया है ?”,आरफा ने सवाल किया
शिवम् मुस्कुरा उठा और कहा,”नहीं हमाय मतलब कचौड़िया खाते खाते बातें कर लेंगे”
आरफा ने कुछ नहीं कहा तो शिवम् ने तीन स्पेशल कचौरी प्लेट लगाने को कहा और दोनों के साथ साइड में आकर खड़ा हो गया। शिवम् बोलना तो बहुत कुछ चाहता था लेकिन शुरू कहा से करे ? उसे उलझन में देखकर आरफा ने कहा,”तो क्यों बुलाया हमे यहाँ ?”
“उह हमउ कहना चाहते थे की , मतलब हम वो , हमे तुम पसंद हो , मतलब इतना की आज तक तुमाए अलावा मोहल्ले की किसी लड़की को नहीं देखे है। बहुते बार बात करने की कोशिश किये पर हिम्मत नहीं कर पाए , तुम तो जानती ही हो हमारे घर की दुश्मनी लेकिन का करे दिल दुश्मनी थोड़े ना समझता है उह तो जिसपे आना होता है आ जाता है , हर सुबह हम तुमाए छत पर आने का इंतजार करते है ना जाने कितने सालो से बस उह एक झलक काफी है तुमई हमार लिए ,, आज हिम्मत करके तुमसे ये सब कह रहे है।”,शिवम् ने कहा
आरफा खामोश रही तो उसे टेंशन होने लगी और उसने कहा,”देखो कोई जल्दबाजी नहीं है , तुम अपना फैसला कभी भी बता सकती हो। अगर तुमने ना भी कहा तो तुम्हारा पीछा नहीं करेंगे बल्कि एक अच्छे प्रेमी की तरह दूर हो जायेंगे। तुम्हारी ख़ुशी जरुरी है”
“आपको क्या लगता है हम रोज छत पर सिर्फ कपडे सुखाने आते है ?”,आरफा ने उलझन भरी बात कही
“मतलब ?”,शिवम् ने कहा
“मतलब ये की हम कपड़ो की आड़ देखने आते है , अब्बू और आपके पिताजी की दुश्मनी की वजह से आपसे बात तो हो नहीं सकती थी इसलिए आपको एक नजर देखने के लिए चले आते थे , कपड़े सुखाने के बहाने। बचपन से आपको देखते आ रहे है और आपके अलावा किसी और को देखने की इंशाअल्लाह कभी जरूरत नहीं पड़ी”,आरफा ने कहा
शिवम् का दिल ख़ुशी से नाचने लगा आरफा ने साफ साफ तो नहीं कहा लेकिन अपनी और से शिवम् को हरी झंडी दिखा दी !

भाग 4

शिवम् आरफा के सामने अपनी मोहब्बत का इजहार कर चुका था और आरफा ने भी कह दिया था की वह उसे पसंद करती है। शिवम् की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। दुकान पर काम करने वाला लड़का तीन प्लेट कचौड़िया देकर चला गया। अब तक शिवम् ने आरफा को दूर से ही देखा था कभी नजदीक से देखने का मौका नहीं मिला था। आरफा ने जैसे ही अपना नकाब ऊपर किया शिवम् तो बस उसे देखता रह गया। दूध सा सफेद गोरा रंग , गहरे काजल से सनी खूबसूरत बड़ी बड़ी आँखे , सुर्ख लाल होंठ और होंठो से हल्का सा निचे काला तिल , एक बड़ा टिल आरफा के दांये गाल पर भी था। शिवम् को अपनी और देखता पाकर आरफा ने आँखों से इशारा किया। शिवम् ने मुस्कुरा कर गर्दन ना में हिला दी। शबनम उन दोनों को साथ देखकर मन ही मन घबरा रही रही और बार बार आरफा से चलने का इशारा कर रही थी। जल्दी जल्दी खाकर आरफा ने शिवम् से कहा,”अच्छा तो हम चलते है”
“दोबारा कब मिलेंगे ? हमको ना तुमसे बहुत सारी बातें करनी है”,शिवम् ने कहा
“अपना फोन दो”,आरफा ने कहा तो शिवम् ने अपना फोन उसकी और बढ़ा दिया आरफा ने अपना नंबर शिवम् को फोन में सेव करते हुए कहा,”इसमें हमारा नंबर है आप जब चाहे फोन कर सकते हो”
शिवम् ने खुश होकर फोन जेब में रख लिया सामने से आते रिक्शा को रोका और आरफा को बैठने का इशारा करते हुए कहा,”वैसे चाहते तो थे की हमाये साथ बाइक पर चलो पर कोई नहीं फिर कभी”
आरफा शबनम को साथ लेकर रिक्शे में जा बैठी और चली गयी। शिवम् आज बहुत खुश था ख़ुशी ख़ुशी बाइक उठाकर वह भी घर के लिए निकल गया।
कुछ देर की ख़ामोशी के बाद शबनम ने कहा,”बाजी ये आपने क्या किया ? मामू जान को पता चला आप पंडित जी के लड़के से मिली है तो हम दोनों की खाल खिंचवा देंगे , जानती है ना आप उन्हें”
“उन्हें कौन बताएगा ? तुमने अगर बताया तो तुम्हारी खैर नहीं”,आरफा ने शबनम को आँखे दिखाते हुए कहा
“मैं तो नहीं कहूँगी लेकिन कभी ना कभी तो पता चल ही जाना है , और तो और पंडित जी का लड़का है वो जिनसे मामू जान का 36 का आंकड़ा है। जानती हो ना”,शबनम ने आरफा को सलीम और केशव की दुश्मनी याद दिलाते हुए कहा
“जानते है लेकिन दिल इन सब नहीं बातों को नहीं मानता , हम बचपन से शिवम् को पसंद करते है आज उसने खुद सामने से इजहार किया हम कैसे मना कर देते ? अब तो तय है शब्बो हमारा निकाह अगर किसी से होगा तो वो शिवम् से वरना किसी से भी नहीं”,आरफा ने कहा
बेचारी शबनम उसे तो सोचकर ही डर लग रहा था। दोनों घर पहुंची और सबको सलाम कर अपने कमरे में चली गयी। शबनम आरफा के साथ ही रहती थी। रात के खाने के बाद आरफा सबसे छुपते छुपाते छत पर चली आयी और पंडित जी के घर की और नजरे दौड़ा दी। शिवम् निचे आँगन में था आरफा को देखते ही वह दौड़कर ऊपर चला आया और उसका नंबर डायल किया। आरफा ने तुरंत फोन उठा लिया तो शिवम् ने कहा,”अरे वाह लगता है हमाये फोन का इंतजार कर रही थी।”
“ऐसा भी कुछ नहीं है बस चेक कर रहे थे की नंबर सही दिए है या नहीं”,शबनम ने कहा और उसके बाद शुरू हो गयी दोनों में कभी ना खत्म होने वाली बातें। आरफा और शिवम् के प्यार की खुशबु भला कब तक बंद रहती , दोनों अब घरवालों से छुपकर मिलने जुलने लगे थे। दिनभर मेसेज फोन में बाते होती रहती थी। शिवम् भी बिट्टू और अदिति से ना झगडे करता था ना ही पंडित जी से बहस बस दिनभर अपने फोन में ही लगा रहता था। सलीम भाई और केशव पंडित के झगड़ो में कोई सुधार नहीं इनकी दुश्मनी जितनी गहरी होती जा रही थी उधर आरफा और शिवम् का प्यार परवान चढ़ता जा रहा था। एक शाम शिवम् ने जिद करके आरफा को मिलने बुला लिया और आरफा आज पहली बार अकेले ही चली आयी इतना भरोसा तो हो चुका था उसे शिवम् पर।

कुछ देर दोनों बैठे बातें करते रहे और फिर आरफा बड़े प्यार से शिवम के चेहरे को देखने लगी। आरफा को अपनी और देखता पाकर ने कहा,”ऐसे काहे देख रही हो हमको ?”
“शिवम् आप बहुत अच्छे हो , हमारा बस चले ना तो हम जिंदगी भर आपको यु ही देखते रहे”,आरफा ने कहा
“अच्छा ऐसी बात चलो फिर शादी कर लो , रहो हमारे साथ हमारे घर फिर दिन रात देखती रहना हमे”,शिवम् ने कहा
“शादी ? घर में अगर किसी को पता भी चला हम आपसे मिलने आये है तो हंगामा हो जायेगा , आप जानते है ना आपके पिताजी और मेरे अब्बू का झगड़ा”,आरफा ने कहा
“तो इसका मतलब हमाई शादी नहीं होगी ?”,शिवम् ने कहा
“होगी न जरूर होगी लेकिन पहले घरवालों को मनाना होगा”,आरफा ने कहा
“मतलब पहले प्यार के लिए पापड़ बेले अब शादी के लिए , कोई ना करेंगे कुछ न कुछ अब प्यार किये है तो निभाएंगे भी”,शिवम् ने कहा
“अच्छा अब हम जाते है”,आरफा ने उठते हुए कहा तो शिवम् ने अपना गाल उसके आगे कर दिया तो आरफा ने कहा,”शादी से पहले ये सब ?”
“गाल पे ही तो करना है कौनसा इंग्लिश वाली करने को बोले है ? नहीं करना तो तुम्हारी मर्जी”,कहते हुए शिवम् ने जैसे ही साइड होना चाहा आरफा ने उसके गाल पर किस करके कहा,”बाय !” आरफा चली गयी। अगले दिन सुबह सुबह सलीम गुस्से से चिल्लाया – आरफा , आरफा बाहर आओ।”
आँगन में सलीम , सलीम की बीवी , सलीम का साला , रुक्सार , शबनम , आरफा के दोनों भाई , उनकी बीवी सभी जमा थे आरफा डरते डरते आँगन में आई घरवालों के अलावा दुकान पर काम करने वाला नौकर वहा खड़ा था। आरफा को वहा देखते ही सलीम ने उसके गाल पर थप्पड़ मारकर कहा,”बेगैरत लड़की शरम नहीं आयी सरे आम एक लड़के को चूमते हुए ,, तुम्हे क्या लगता है मुझे कुछ पता नहीं चलेगा ? इसने (नौकर की और हाथ करके) इसने देखा है तुम्हे उस पंडित के लौंडे के साथ ,, मोहल्ले में तुम्हे वही एक लड़का मिला था इश्क़ करने को”
“अरे सलीम भाई मैंने तो पहले ही कहा था , लड़की को कॉलेज नहीं भेजो पर मेरी इस घर में सुनता कौन है ?”,रुक्सार ने मुंह बनाकर कहा
“आप चुप रहिये , जरूर उस लड़के ने इसे बहला फुसला कर अपने जाल में फसाया है”,आरफा की अम्मी ने कहा
“ऐसा कुछ नहीं हुआ है अम्मी , शिवम् बहुत अच्छा लड़का है।”,आरफा ने अपने आंसू पोछकर कहा
“अच्छा हो बुरा हो मुझे कोई मतलब नहीं है , इस घर की होकर तू दुश्मन के घर में जाएगी ,, अपने अब्बू की इज्जत का ज़रा भी ख्याल नहीं है तुम्हे ,, कान खोलकर सुन लो आरफा दुनिया में किसी भी लड़के से तुम्हारा निकाह पढ़वा दूंगा लेकिन उस पंडित के लौंडे से नहीं। आज से तुम्हारा कॉलेज जाना बंद और रुक्सार फोन छीन लो इसका,,,बहुत हुआ लाड़ प्यार”,सलीम भाई ने गुस्से से कहा और अपना छुरा निकालकर घर से बाहर जाने लगे। किसी में हिम्मत नहीं थी की उनको रोके सभी दरवाजे पर चले आये। सलीम ग़ुस्से से लाल केशव पंडित के घर के सामने आया और चिल्लाया,”अरे ओह्ह केशव पंडित , मुझसे नहीं जीत पाए तो अपने लौंडे को आगे कर दिया। बाहर निकल आज तेरे टुकड़े टुकड़े कर दूंगा मैं , बाहर निकल”
केशव पंडित बाहर आया और कहा,”का है बे दढ़ियल काहे इतना गला फाड् रहे हो सुबह सुबह का भूचाल आ गवा है मोहल्ले में ?”
“भूचाल तो तब आएगा जब तुझे तेरे लौंडे के कारनामे पता चलेंगे , मेरी बेटी को बहकाता है”,सलीम भाई ने गुस्से से कहा
“कौन शिवम् ? मोहल्ले की और लड़किया का मर गयी है जो तुम्हरी लड़की को पसंद करेगा”,पंडित ने चौडाते हुए कहा
“अगर ऐसा है ना तो जाकर पूछ अपने लौंडे से सारा सच पता चल जाएगा , और उसे बोलना मेरी बेटी से दूर रहे नहीं तो उसके टुकड़े टुकड़े करके मीट की दुकान पर बेच दूंगा वो भी किलो के भाव में”,कहते हुए सलीम गुस्से में वहा से चला गया
सलीम का गुस्सा देखकर पंडित जी अंदर चले आये और शिवम् को बुलाया। कुछ देर में शिवम् वहा आया तो पंडित जी ने कहा,”का बेटा का चल रहा है आजकल ? दुशमन की बेटी से प्यार करने लगे हो ?”
“हम प्यार करते है उस से”,शिवम् ने धीरे से कहा तो केशव पंडित ने अपने पैरो से चप्पल निकालकर शिवम् की और फेंकते हुए कहा,”अरे काहे खानदान का नाम डुबोने में लगे हो ,, कैसा कपूत पैदा की हो पंडिताइन ? मुस्लमान की लड़की से प्यार किये है उह भी हमारे सबसे बड़े दुश्मन के घर में”
“हां तो मुस्लिम है तो का हुआ ? कोई पाप किये है का ?”,शिवम् ने कहा तो पंडित जी ने दूसरी चप्पल भी फेंक के मारी और निशाना चूक गया। जहा दुश्मनी थी वह उनका ही बेटा रिश्ता बनाने चला है सोचकर ही केशव पंडित का बीपी हाई होने लगा और वे कुर्सी पर बैठ गए। सरस बाहर से आया उसे कुछ पता नहीं था वह सीधा पंडित जी के पास चला आया और आकर कहा,”दादा दुकान खोल दे ?”
“हमाये सुपुत्र ने हमाय लिए नर्क के दवार खोल दिए तुम दुकान खोल दो ,,!”,पंडित जी ने कहा

भाग 5

केशव पंडित और सलीम भाई के घर में तनाव का माहौल था। आरफा का कॉलेज जाना और घर से बाहर निकलना भी बंद हो चुका था और उधर शिवम् को भी उस से बात ना करने और आरफा से ना मिलने की सख्त हिदायत दी गयी। सलीम अपनी दुकान पर बैठा था और केशव पंडित भी अपनी दुकान पर दोनों आमने सामने बैठकर एक दूसरे को घूर रहे थे। सलीम ने केशव पंडित को घूरते हुए अपना गंडासा मॉस के लोथड़े पर दे मारा। केशव पंडित कहा पीछे हटने वाला था उसने भी रसगुल्ला हाथ में उठाया और सलीम को घूरते हुए उसे निचोड़ दिया। दोनों का मूक युद्ध शुरू हो चुका था। सलीम भाई का साला जो की उनके पीछे बैठा दुकान में चिकन साफ कर रहा था उसने कहा,”आप कहे तो इनके लौंडे को ठिकाने लगा दू ?”
“नहीं फारुख मिया , ऐसा कुछ नहीं करना है मेरी दुश्मनी केशव पंडित है उसके घरवालों से नहीं”,सलीम ने कहा
“तो हाथ पैर तुड़वा देता हूँ , हमारे घर की लड़की से प्यार करने की उसने हिम्मत कैसे की ?”,फारुख ने गुस्से से कहा
“सही वक्त आने दो मिया इस बेइज्जती का बदला मैं जरूर लूंगा , पंडित के लौंडे की आँखों के सामने ही अपनी आरफा का निकाह करूंगा ,, तुम अपनी बिरादरी में उसके लिए कोई लड़का देखो”,सलीम ने हाथ धोकर कहा
सामने अपनी दुकान पर बैठे केशव पंडित ने सरस से कहा,”हिम्मत तो देखो उस लड़की की हमारे बेटे से प्यार करती है , अपने बाप की दुश्मनी भूल गयी वो लड़की ,, अरे कहा हम पंडित और वो मास मछली खाने वाला घर उस घर की लड़की को हमारे घर कबो ना लाएंगे”
“इस बार तो शिवम् ने हद ही कर दी , उन्नाव में लड़कियों की कमी थी का जो ,,छोड़िये भाईसाब आप टेंसन मत लीजिये हम करते है इंतजाम”,सरस ने कहा

4 दिन गुजर गए लेकिन ना शिवम् आरफा से मिल पा रहा था ना उस से बात कर पा रहा था। सलीम भाई ने उसका फोन छीन लिया था और छत पर जाना भी बंद कर दिया हर वक्त आरफा घरवालों की नजर में रहती थी। आरफा की वजह से शबनम का भी कॉलेज जाना बंद हो चुका था और इसलिए वह आरफा से नाराज थी। एक रात आरफा शबनम के साथ अपने कमरे में लेटी हुई थी। शबनम कबका सो चुकी थी लेकिन आरफा को नींद नहीं आ रही थी उसे शिवम् की बहुत याद आ रही थी। कुछ देर बाद उसने दिवार चढ़कर ऊपर आते हुए एक साये को देखा जैसे ही वह साया खिड़की के पास आया आरफा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा वह कोई और नहीं बल्कि शिवम् ही था। आरफा उठकर खिड़की के पास आयी और फुसफुसाते हुए कहा,”आप यहां क्या कर रहे हो ? अब्बू ने देख लिया तो आफत हो जाएगी।”
“हम किसी से नहीं डरते , 4 दिन से तुम्हे देखा तक नहीं है जानती हो कितना परेशान थे उस पर पिताजी हमसे नाराज है ,, इन दोनों की दुश्मनी मे हमारे प्यार की बेंड बजी है।”,शिवम् ने कहा
“प्यार करते हो ना हमसे ?”,आरफा ने बेचैनी से पूछा
“बिल्कुल करते है , तुमको भरोसा नहीं है हम पे ?”,शिवम् ने पूछा
“है , चलो भाग चलते है ,, कही दूर चले जाते है इन सबसे , इनकी दुश्मनी से , इस मोहल्ले से”,आरफा ने शिवम् के हाथ पर अपना हाथ रखकर कहा
“काहे भाग जायेंगे , प्यार किये है कोई पाप नहीं किये है , भागना कायरो का काम है और हम कायर नहीं है”,शिवम् ने कहा
“तो फिर क्या करेंगे ? अब्बू हमारे लिए रिश्ता देख रहे है वो हमारा निकाह करके हमे यहाँ से बहुत दूर भेज देंगे और आप कुछ नहीं कर पाओगे , इसलिए कह रही हूँ शिवम् भाग चलते है।”,आरफा ने उदास होकर कहा
“अरे तुम चिंता मत करो , इनकी दुश्मनी की वजह से हमरा प्यार ख़त्म नहीं होगा। हम करते है कुछ ऐसे अपने प्यार को किसी और का होने नहीं देंगे”,शिवम् ने आरफा के हाथ को अपने हाथो में लेकर कहा
“हममममम !”,आरफा को शिवम् की आँखों में अपने लिए प्यार और परवाह नजर आ रही थी।
शिवम् जैसे ही वापस जाने लगा तो आरफा ने उसे रोककर कहा,”शिवम् आई लव यू”
शिवम उसके पास आया ओर आरफा के होंठो को अपने होंठो से छूकर कहा,”इसके बाद कुछ बोलने की जरूरत नहीं है , भरोसा रखो हम सब सही कर देंगे”

शिवम् चला गया और आरफा भी ख़ुशी ख़ुशी आकर शबनम की बगल में लेट गयी ! सुबह फारुख किसी लड़के के परिवार वालो के साथ घर में आया लड़के ने आरफा को देखते ही पसंद कर लिया। आरफा ने कुछ नहीं कहा बस सर झुकाये खड़ी रही उसका उदास चेहरा सलीम को अच्छा नहीं लग रहा था। लड़के वाले चाय नाश्ते के बाद वहा से चले गए और आरफा भी अपने कमरे में चली गयी कुछ देर बाद सलीम आया और कहा,”आरफा मुझे पता है तुम इस रिश्ते से खुश नहीं हो लेकिन मैं तुम्हारी शादी उस पंडित के लड़के से तो बिल्कुल नहीं कर सकता। तुम तो जानती ही हो उसकी और मेरी दुश्मनी के बारे में तुम क्या चाहती हो मैं उस से हार जाऊ ? उसके सामने घुटने टेक दू ,,,!”
“उस से बदला लेने के लिए ही तो मैंने उनके लड़के से प्यार का नाटक किया है अब्बू”,आरफा ने पलटकर कहा
“क्या मतलब ? तुम उस लड़के को पसंद नहीं करती ?”,सलीम ने हैरानी से कहा
“हुंह्ह पसंद और उसे उसकी और मेरी कोई बराबरी ही नहीं है ,, वो तो बचपन से मैं उस केशव पंडित को आपका मजाक उड़ाते देखती आयी हूँ , उसने हमेशा आपको परेशान किया है , आपको दुःख पहुँचाया है और इन सबका बदला लेने के लिए ही मैंने उनके लड़के को अपने प्यार में फंसाया है , उस से शादी का नाटक करके उनके घर में जाकर मैं उन सबका जीना हराम कर दूंगी और देखना एक दिन वह केशव पंडित आकर आपके पैरो में गिरकर अपने किये की माफ़ी मांगेगा।”,आरफा ने कहा तो सलीम के होंठो पर मुस्कराहट तैर गयी और उन्होंने आरफा को सीने से लगाकर कहा,”ये हुई ना बात , तुमने तो मेरा कलेजा ठंडा कर दिया आरफा , अब बताऊंगा उस केशव पंडित को की सलीम भाई क्या चीज है ? जो ना कर सके हथियार वो करेगा प्यार”

उधर सरस सुबह सुबह फोन कान से लगाए परेशान सा इधर उधर घूम रहा था। शिवम् ने देखा तो उनके पास आकर कहा,”का हुआ चचा परेशान काहे हो ?”
“तुम तो बात ही ना करो बिटवा सारे फसाद की जड़ तुम्ही हो ,, का जरूरत थी उह सलीम भाई की लौंडिया से इश्क़ लड़ाने की ?”,सरस ने शिवम् को लताड़ा
“अरे चचा काहे इतना गरमा रहे हो , हम कोई प्यार वयार नहीं करते है उस लड़की से वो तो हमहू पिताजी के लिए किये इह सब”,शिवम् ने कहा
“का का का किये पिताजी के लिए ? बेटा देखो अगर मजाक करने के मूड में हो ना तो हम बिल्कुल फ्री नहीं है ! हमे बुलाने है लठैत कानपूर से सलीम भाई के लिए इस बार दुश्मनी खत्म और सलीम भाई भी खत्म”,सरस ने फिर से नंबर डॉयल किया तो शिवम ने फोन छीनकर कहा,”उसकी जरूरत नहीं है चचा, बिना खून खराबे के भी दुश्मन को हराया जा सकता है।”
“मतलब ?”,चचा ने कहा तो शिवम् उन्हें कान में कुछ कहने लगा और चचा मुस्कुरा उठे !

भाग 6

शिवम् की बात से खुश होकर सरस निचे आया और आँगन में बैठे केशव पंडित से कहा,”भाईसाहब आपकी समस्या का समाधान मिल गया है”
“अरे जिओ सरस , अब बताता हूँ उस सलीम के बच्चे को की केशव पंडित का चीज है।”,पंडित जी ने खुश होकर कहा
जैसे ही सरस ने उन्हें शिवम् की कही बात बताई केशव पंडित ने कहा,”अरे इह का बात कर रहे हो तुम ? दिमाग सही है ना तुमरा जिस घर का पानी पिने का धर्म नहीं उह घर में रिश्ता जोड़ने की बात कर रहे हो। हम दुश्मन के घर में मातम की की तैयारी में है और तुम हो की शहनाई बजवाना चाहते हो”
“अरे भाईसाहब आप मेरी बात नहीं समझे , उह लड़की एक्को बार हमरे घर मा आ गयी उसके बाद सलीम को घुटनो पर लाना आसान है , का है की उह अपनी बिटिया को तकलीफ में तो देख नहीं पायेगा और उसका सारा घमंड चूर चूर। उसके बाद जीत किसकी आपकी।”
“अरे वाह वाह वाह सरस का बात कही है , अगर मुंह में जुबान केसरी ना होता ना तो मिठाई की कसम मुंह चूम लेते तुम्हारा , अब आएगा ऊँट पहाड़ के निचे ,, अब देखता हूँ वो दढ़ियल कैसे नहीं झुकता मेरे आगे !”,केशव पंडित ने ख़ुशी से भरकर कहा !
सरस की बात सुनकर केशव पंडित बहुत खुश था ! अब परेशानी ये थी सलीम भाई और केशव पंडित में रिश्ते की बात करे कौन ? ऐसे मामलो में मोहल्ले में एक आदमी था जिनसे सब सलाह लिया करते थे उनका नाम था “सरताज खान” मोहल्ले के सारे मसले इन्ही के यहाँ सुलझाए जाते थे , बस फिर क्या था सरताज खान के हुकुम से केशव पंडित और सलीम भाई को बुलाया गया और मीटिंग रखी गयी जिसमे केशव पंडित की और से पंडित जी खुद , उनका भाई सरस और पंडित जी के जीजाजी शामिल हुए। वही सलीम भाई के यहाँ से सलीम भाई , उनका साला फारुख और उनका बड़ा बेटा उस्मान आया ! दोनों परिवार आमने सामने बैठे थे और उनके बिच में अपनी कुर्सी पर बैठे थे सरताज खान। उन्होंने सबको नमस्ते की और केशव पंडित से कहा,”हां भाई पंडित जी सूना है आपका लड़का इनकी लड़की को बहका रहा है , दुश्मनी खत्म करने का फैसला कर लिया है क्या ?”
“दुश्मनी तो जिंदगीभर रहेगी सरताज भाई , इसी की लड़की ने हमरे बेटे को अपने प्यार के झांसे में लिया है।”,केशव पंडित ने कहा
“ए केशवा जबान खिंच लेंगे मेरी बेटी के बारे में कुछ कहा तो”,सलीम गुस्से से उठ खड़ा हुआ तो केशव पंडित कहा पीछे रहने वाला था उसने भी गुस्से से कहा,”क्यों तुम्हारी बिटिया के लिए कछु कहा तो बुरा लग गवा और हमार लौंडा तो जैसे आसमान से टपका है”
“हां टपका होगा तभी ऐसी हरकते कर रहा है”,फारुख ने कहा
तनातनी होते देखकर सरताज ने कहा,”अरे बैठो सब यहाँ मामला सुलझाने आये हो या खुद उलझने , देखो केशव पंडित और सलीम भाई दोनों बच्चे बालिग है , एक दूसरे को पसंद करते है , कल को दोनों घर से भाग वाग गए तो बदनामी किसकी होनी है , तुम दोनों की। इस से अच्छा है मामले को शांति से सुलझाए और विचार विमर्श करे। मैं तो कहता हूँ समझौता कर लीजिये इस से दोनों बच्चे भी खुश और साथ ही साथ तुम दोनों की दुश्मनी भी खत्म।”
“अरे ये क्या कह रहे हो सरताज खान ? इन पंडितो के घर जाएगी हमारी लड़की , घास फुस खायेगी कभी नहीं”,सलीम भाई ने गुस्से से कहा
“हां तो हम भी मरे नहीं जा रहे है तुम लोगो से रिश्ता जोड़ने के लिए , हमारे बेटे को हम ना ब्याही है ऐसे कसाईयो के घर !”,पंडित जी ने कहा
“तुम्हारी मिठाई से तो लाख गुना अच्छा धंधा है , साले झूठे शुद्ध मावा बोलकर बासी मिठाई बेचते है”,सलीम भाई ने कहा
“हां तो तुम भी तो चिकन मटन छी छी छी क्या नाम बोल दिए हम , अरे तुम लोगो जितना मक्कार तो कोई नहीं है ,, झूठे तुम”,पंडित जी ने कहा
सरताज खान को एक बार फिर उठना पड़ा और उन्होंने कहा,”अपनी ये मिठाई और मटन बाहर जाकर बेचो जब मेरी कोई बात सुननी ही नहीं है तो फिर यहाँ आये क्यों हो मेरा वक्त बर्बाद करने ? अगर ऐसे ही अपनी दुश्मनी पर अड़े रहे ना दोनों तो घर की इज्जत हो जानी है नीलाम , और सलीम भाई की लड़की जाएगी तो घर का लड़का आपका भी जायेगा पंडित जी ,, अब फैसला कर लीजिये करना क्या है ?”
केशव पंडित और सलीम भाई जो की अब तक जान बुझकर दुश्मनी दिखाने का नाटक कर रहे थे अब मुंह लटका कर बैठ गए। वे दोनों तो यही चाहते थे की कैसे भी करके ये रिश्ता हो जाये और उन्हें आगे जाकर बदला लेने का मौका मिल जाये। कुछ देर की चुप्पी के बाद सरताज खान ने कहा,”देखो अपनी दुश्मनी के चलते तुम दोनों अपने बच्चो की जिंदगी बर्बाद मत कर , मेरी तो यही सलाह है की बीती बातें भूलकर दोनों रिश्तेदारी का हाथ बढ़ा ले।”
सरताज खान की बात सुनकर सलीम और केशव ने एक दूसरे की और देखा। बाहर से दोनों के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और मन ही मन दोनों के लड्डू फुट रहे थे। सरताज के कहने पर दोनों उठे और एक दूसरे को बेमन से गले लगा लिया ! सलीम भाई के गले लगे हुए केशव ने कहा,”अब आएगा दुश्मनी में मजा , हमाय बेटे से एक बार तुम्हारी बेटी की शादी हो जाये उसके बाद बताते है हम क्या चीज है।”
उधर सलीम भाई मन ही मन कह रहा था,”अब आये हो बेटा हमारे सिकंजे में , खून के आंसू ना रुलाये ना तुमको पंडित तो फिर कहना ,, अपनी हर बेइज्जती का बदला लेंगे तुमसे।” बाकि सब बस हैरानी से इन दोनों को देख रहे थे और सरताज खान मुस्कुरा रहा था !
कुछ देर बाद दोनों अपने अपने लोगो के साथ घर चले आये। सलीम भाई जैसे ही घर आये उनका बड़ा लड़का उन पर बरस पड़ा और कहा,”ये क्या करके आये हो आप ? छोटी की शादी वो भी उस पंडित के लड़के से ,, अगर ऐसा हुआ ना तो सबको काट देंगे और खून की नदिया बहा देंगे बता रहे है हम”
“इतना गरम मत हो उस्मान , बाप है तेरे तुझसे ज्यादा जुम्मे देखे है। तुम्हे क्या लगता है इतनी आसानी से पंडित के घर दे देंगे अपनी लड़की अरे देखते जाओ उस पंडित और उसके लड़के को अपने पैरो पर नहीं गिराया ना तो मेरा नाम सलीम भाई नहीं समझे”,सलीम ने कहा
“हां लेकिन रिश्ता करने की क्या जरूरत थी ऐसे भी सब हो जाता ना”,फारूक ने गुस्से से कहा
“सब्र रखो फारुख , बेटी का मामला नहीं होता न काट के फेंक देता सबको लेकिन बात मोहल्ले में भी फ़ैल चुकी है। दुश्मन को मारने से पहले ना उसे कुचलना जरुरी होता है।”,सलीम ने कहा और फिर वहा से चला गया !
दूसरी और पंडित जी घर आये तो उनके जीजाजी उन पर बरस पड़े,”हम पूछते है का जरूरत थी उन लोगो से रिश्ता जोड़ने की , जानते हो ना किस खानदान से है वो लोग , दुश्मनी से मन नहीं भरा जो अब पंडितो के घर में छुरिया चलवाना चाहते हो ! अगर उस घर में शादी हुई तो हम और आपकी बहन नहीं आएंगे ,, समझे आप”
पंडित जी ने कुछ नहीं कहा तो जीजाजी गुस्सा होकर चले गए। पंडिताइन ने रोकना चाहा तो पंडित जी ने कहा,”अरे जाने दो पंडिताइन वैसे भी इन मौसा फूफा के रूठे बिना कोई शादी कहा सम्पन्न होती है !”

भाग 7

केशव पंडित और सलीम भाई के घर रिश्ते की बात सुनकर पूरा मोहल्ला हैरान था। जो इतने सालो में नहीं हुआ वो आज हो रहा था। जहा केशव पंडित के रिश्तेदार इस रिश्ते से नाराज थे वही सलीम भाई के घर भी माहौल तनातनी का था। केशव पंडित और सलीम भाई दोनों मन ही मन खुश हो रहे थे उधर शिवम् और आरफा भी खुश थे। दो दिन बाद पंडित जी के कहने पर घरवाले शिवम् की शादी का शगुन लेकर सलीम भाई के घर आये। सलीम भाई ने उनके लिए अच्छा इंतजाम कर रखा था लेकिन केशव पंडित के मन में तो शंका थी ही वही सलीम भाई को भी उन पर कुछ गहरा विश्वास नहीं था उन्होंने भी अपने अपने कुर्ते के निचे छुरे हथियार छुपा रखे थे। शगुन टेबल पर रखने के बाद केशव पंडित ने अपने पीछे से छुरा निकाला ये देखते ही सलीम भाई के घर में खड़े सभी लोगो ने अपने अपने छुरे चाकू निकाल लिए शिवम् और उसके घरवाले घबरा गए जबकि खुद सलीम भाई ने अपना छुरा केशव पंडित के आगे कर दिया।
“अरे इह का कर रहे हो आप लोग ? हमाये पिताजी यहाँ शगुन लेकर आये है और आप लोगन”,शिवम् ने सलीम भाई के हाथ को निचे करते हुए कहा
“अपने बाप से पूछो ये रिश्ता करने आया है या दुश्मनी निभाने ,, चाकू निकालकर हमे डराता है”,सलीम ने कहा
“इत्ता बड़ा सर दिए है भगवान उह मा थोड़ा सा दिमाग नहीं दिए , अरे हम लोग रिश्ता जोड़ने आये है लेकिन लगता है तुम्हारी नियत में ही कोनो खोट है ,, इह चाकू से थोड़े मरोगे तुम”,केशव पंडित ने चाकू थाल के पास रखकर कहा। सलीम ने अपने आदमियों से इशारा किया तो सबने अपने अपने हथियार वापस रख लिए और हँसते हुए कहा,”अरे तो हम भी मजाक कर रहे है पंडित देख रहे थे कीतने बहादुर हो तुम ! आओ चलो रस्मे निभाते है !”
केशव पंडित अपने परिवार के साथ घर के अंदर चला आया। पंडिताइन और सरस की पत्नी ने मिलकर आरफा को शगुन दिया और कुछ रस्मे की ! शिवम् वही बैठा सब देख रहा था बिट्टू और अदिति भी वही पास ही बैठे थे तो बिट्टू ने फुसफुसाते हुए कहा,”भाईसाहब कैसे किया ये सब ? कल को तो बड़े पापा दुशमन थे इनके और आज इतना प्यार दोनों में ,, और का लड़की मिली है तुमको।”
“चुप बे भाभी है तुम्हारी , और बेटा मोहब्बत सच्ची हो न तो मिल ही जाती है।”,शिवम् ने भी फुसफुसाते हुए कहा !
“सही है भैया , मोहल्ले में ही सेटिंग हो गयी आपकी , भाभी की कोई छोटी बहन वहन देख के हमाय जुगाड़ भी करा दो”,बिट्टू ने शिवम् के गले पड़ते हुए कहा
“पहले मेरी हो जान दो , बिच में काहे फुदक रहे हो और चुप करके बैठो”,शिवम् ने कहा
सभी रस्मो के बाद दावत की बारी आयी तो पंडित जी कह उठे,”हम इस घर का पानी भी नाही पिए है”
“अगर ऐसा है तो फिर रिश्ता केंसल”,फारुख ने कहा
शिवम् ने सूना तो अपने पिताजी से कहा,”पिताजी खा लीजिये दावत , जब रिश्तेदार बन ही गए है तो जे खाना पीना तो चलता रहेगा अब”
“बेटा प्यार में आँखे चुंधिया गयी है तुमरी , अरे हम ठहरे ब्राह्मण और इह मुस्लमान का घर कितने ही जीवो की ह्त्या होती है इनके हाथो ऐसे कैसे खा ले दावत इनके यहाँ ?”,पंडित जी ने कहा
सलीम ने सूना तो उसने कहा,”हां जानते है तुम पंडित हो इसलिए तुम्हारी जाति का रसोईया बुलाकर अलग से शुद्ध शाकाहारी खाना बनवाया है , हम लोगो में से किसी के हाथ भी ना लगे है उसमे लेकिन तुमको तो आदत है हर बात में खुद को बढ़ चढ़कर दिखाने की !”
सलीम की बात सुनकर पंडिताइन ने पंडित जी से कहा,”जब इतना कह रहे है तो खा लीजिये , वैसे भी रिश्ता जोड़े है इतना मान रखना तो बनता है !”
पंडित जी भला पंडिताइन की बात कैसे टालते ? उन्होंने हामी भरते हुए कहा,”ठीक है लेकिन हमारी एक शर्त है , दो दिन बाद तुम सबको भी हमारे घर दावत पर आना होगा। वही शादी की तारीख पक्की कर लेंगे !
“अरे हां हां बिल्कुल , लेकिन पहले यहाँ तो दावत का मजा लीजिये”,सलीम ने कहा। पंडित जी अपने परिवार के साथ खाना खाने लगे। सलीम भाई के यहाँ से खाना खाकर अपने घर चले आये। केशव पंडित तो मन ही मन बहुत खुश था सलीम से बदला लेने का उसे मौका जो मिलने वाला था उधर सलीम भी खुश था की जल्दी ही उसे केशव से बदला लेने का मौका मिलेगा !
दो दिन बाद सलीम अपने परिवार के साथ केशव के घर आया। केशव ने भी खूब स्वागत सत्कार किया चलते चलते सलीम भाई की नजर पंडिताइन से जा मिली और एकदम से उनका मिजाज बदल गया और उन्होंने बड़ी ही शराफत से कहा,”आदाब !”
“नमस्ते !”,पंडिताइन ने कहा और वहा से दूसरी और चली गयी। एक पंडिताइन ही थी जिसके सामने सलीम भाई चुप हो जाते थे। आरफा और बाकि लोग बरामदे में शिवम् के घरवालों के साथ थे और केशव पंडित कुछ लोगो के साथ बैठे थे वही सलीम और उसका साला फारुख बैठा हुआ था। बातो बातो में एक आदमी केशव पंडित पर भड़क उठा। केशव पंडित भी उसे सुनाने लगा , बातों बातों में बात कुछ ज्यादा ही बिगड़ गयी तो आदमी ने केशव पंडित की कॉलर पकड़ ली सलीम ने देखा तो उठकर उस आदमी को एक घुसा मारकर कहा,”अकेला समझा है क्या ? हाथ कैसे लगाया समधी है मेरा”
केशव पंडित ने सूना तो सलीम का मुंह ताकने लगा सलीम ने उन्हें डांटकर भगा दिया हालांकि वे सब थे पंडित जी के रिश्तेदार लेकिन पंडित जी सलीम को नहीं रोका बल्कि वे पहली बार हैरान थे की हमेशा उनका मजाक उड़ाने वाला सलीम आज उसके साथ खड़ा था ! केशव पंडित ने खुश होकर सलीम की और देखा तो सलीम ने कहा,”क्या पंडित ऐसे क्यों देख रहा है ? तेरे लिए नहीं लताड़ा है उसको , तेरे घर में ऐसे रिश्तेदार होंगे तो मैं नहीं भेजूंगा अपनी बेटी को इसलिए लताड़ा ,, खाने का कोई इंतजाम है या ऐसे ही भेजने का इरादा है।”
“अरे पूरा इंतजाम है तुम आओ तो सही !”,कहकर केशव पंडित उसे साथ लेकर बैठक में चला आया जहा सबके खाने का इंतजाम था। सलीम मासाहारी था लेकिन खाना पंडिताइन ने बनाया था इसलिए खा लिया। खाना खाने के बाद सभी वही बैठकर शादी के बारे में और लेंन देंन की बातें करने लगे बातें करते हुयी केशव पंडित ने मन ही मन सोचा,”ऐसा हिसाब चुकता करूंगा दढ़ियल की जिंदगी निकल जाएगी तेरी सोचते सोचते”
उधर सलीम भाई उन्हें देखकर सोच रहे थे,”देखता जा पंडित ऐसा झटका दूंगा ना तुझे की मिठाई की दुकान पर बैठना भूल जाएगा।”
पंडित जी ने आरफा और शिवम् की शादी के लिए एक हफ्ते बाद का शादी का मुहूर्त शुभ बताया। मौलवी साहब ने भी उसके अगले दिन निकाह पढ़वाने की बात कही दोनों परिवार मान गए और एक बार फिर सबके सामने सलीम भाई और केशव पंडित को गले मिलने का नाटक करना पड़ा !

भाग 8

आरफा और शिवम् की शादी तय हो चुकी थी घरवालों को छोड़कर मोहल्ले वाले सकते में थे और रिश्तेदार नाराज। आरफा की भुआ तो नाराज होकर घर में मुंह फुलाए बैठी थी क्योकि आरफा की शादी वह अपने जेठ के लड़के से करवाना चाहती थी ताकि उसके बदले में उसे भी अपने घर जाने का मौका मिल जाते लेकिन सलीम ने तो उसके सारे अरमानो पर पानी फेर दिया था। उधर केशव पंडित के जीजाजी नाराज थे पंडिताइन के कितनी ही मिन्नते करने के बाद वे इस शादी में आने को तैयार हुए। शिवम् के मामा भी इस बेमेल रिश्ते से नाराज थे लेकिन पंडित जी के आगे उनकी एक ना चली। दोनों घरो में शादी की तैयारियां शुरू हो गयी। आरफा और शिवम् को शादी से पहले मिलने से साफ मनाही थी इसलिए दोनों छत से ही एक दूसरे का दीदार कर लिया करते थे। बिट्टू खुश था क्योकि शिवम् की शादी के बाद उसी का नंबर था शादी का लेकिन पंडित जी दिनभर उसे शादी की तैयारियों के कामो में पेलते रहते थे। अदिति खुश थी क्योकि उसे नए नए कपडे पहनने को मिलेंगे शादी में। पंडित जी भी दिल खोलकर खर्चा कर रहे थे खुद को सलीम से एक कदम भी पीछे रखना नहीं चाहते थे। उधर सलीम भाई भी तैयारियों में लगे हुए थे। उन्होंने मोहल्ले में सबको न्योता भिजवा दिया , सेम न्योता पंडित जी की तरफ से गया और मोहल्ले वाले परेशान की किसके यहाँ जाये और किसके यहाँ नहीं ? मोहल्ले के मैदान में ही शादी के सभी इंतजाम किये गए। पंडित के घर रिश्तेदारों का आना शुरू हो चुका था। उनमे से कुछ रिश्तेदारों ने इस रिश्ते को मौन स्वीकृति दे दी लेकिन कुछ ऐसे थे जो अब भी चाहते थे की ये शादी ना हो। कुछ ने पंडित जी के कान भरने शुरू कर दिए और नयी नयी शर्ते रखने की राय दी। पंडित जी इंकार भी करते तो रिश्तेदारों ने ये कहकर उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ा दिया की “अरे पंडित जी लड़के वाले हो आप ये मांग तो होनी ही चाहिए”
ऐसे ही रिश्तेदारों के बहकावे में आकर केशव पंडित ने फरमान भिजवाया की शादी से पहले लड़की वालो को एक अच्छी दावत का इंतजाम करना होगा जिसमे पंडित जी की और से मोहल्ले वाले और रिश्तेदार शामिल होंगे। सलीम भाई के घर जब ये बात पहुंची तो उनका साला फारुख भड़क गया और कहा,”ये क्या बात हुयी भला , पंडित की मर्जी थोड़ी चलेगी वो लड़के वाले है तो क्या हम उनकी हर बात मानेंगे ?’
“फारुख सब्र रखो वक्त सबका आता है अपना भी आएगा , तुम आज शाम दावत का इंतजाम करो”,सलीम भाई ने कहा
पंडित जी को लगा सलीम उस से झगड़ा करने आएगा लेकिन यहाँ मामला उल्टा पड़ गया और सलीम ने सबको शाम की दावत पर आने को कहा। दावत
मोहल्ले के उसी मैदान में रखी गयी। केशव पंडित के घरवाले और रिश्तेदार सभी शामिल हुये। घरवालों के साथ साथ मोहल्ले वाले भी शानदार दावत का मजा लेने लगे। केशव पंडित के रिश्तेदार भी कम नहीं थे जान बूझकर बार बार खाने में कमी निकाल रहे थे जिस से सलीम को बुरा लगे और वह यह रिश्ता तोड़ दे लेकिन सलीम ने ऐसा कुछ नहीं किया और साथ ही अपने आदमियों को चुप रहने का इशारा किया। सलीम को चुप देखकर केशव पंडित के एक रिश्तेदार ने कहा,”ये कैसी पूरिया बनाई है ? इतनी सख्त है और रायता ये तो इतना खट्टा है की दाँत ही किटकिटाने लगे है।”
सलीम ने जैसे ही सूना अपने साले फारुख से कहा,”अरे फारुख मियाँ , इन भाईसाहब को ज़रा स्पेशल डाइट देना !”
“क्या स्पेशल डाइट ?”,रिश्तेदार ने कहा
“हां हां भाईसाहब खाने के साथ साथ पीने का इंतजाम है , आप इनके साथ जाईये”,सलीम ने कहा तो आदमी की आँखे चमक उठी और वह अपनी प्लेट रखते हुए कहने लगा,”अरे तो पहले बताना चाहिए था।”
सलीम ने फारुख से इशारा किया तो फारुख उसे घर के पिछवाड़े में ले गया और उसकी जमकर धुलाई कर दी। बेचारा रिश्तेदार गिरते पड़ते केशव पंडित के सामने पहुंचा और उसे बढ़ चढ़कर कहा बस फिर क्या था गुस्से से बोखलाए पंडित जी ने ऊँची आवाज में सरस से कहा,”अरे ओह्ह सरसवा कानपूर से जो लठैत बुलाये है भेजो उन्हें , मुझे तो इस दढ़ियल पर पहले से ही शक था की इसके मन में चोर है।”
उधर सलीम ने सूना तो गुस्से से कहा,”हां हां तू खुद तो जैसे बड़ा दूध का धुला है ना ? साले कमीने इंसान अपने रिश्तेदारों को बुलाकर मेरी इज्जत का कचरा करवाना चाहता है ,, मुझे मालूम था तूने अपने आदमी बुला रखे है तो तुझे क्या लगा मैं ऐसे खाली हाथ बैठूंगा ?” कहते हुए सलीम ने पलटकर कहा,”सब आओ यहाँ !” सलीम के इतना कहते ही उसके आदमी भी वहा चले आये। बस फिर क्या था दोनों के आदमियों के बिच झगड़ा शुरू हुआ , टेंट उखाड़ दिए गए , एक दूसरे के ऊपर खाना फेंका जाने लगा , कुर्सियां टेबल फेंके जाने लगे आधे घंटे में सब तहस नहस हो गया। मोहल्ले में से किसी ने पुलिस को खबर कर दी जैसे ही पुलिस की गाड़ी आयी भीड़ तीतर बितर हो गयी सभी आदमी वहा से भाग गए। बस टूटे हुए टेंट के बिच सलीम भाई और केशव पंडित खड़े एक दूसरे को घूर रहे थे। पुलिस की गाड़ी वहा पहुंची उसमे से इंस्पेक्टर उतरकर निचे आया और उन दोनों के पास आकर कहा,”का केशव पंडित और सलीम भाई काहे उत्पात मचाये हो इतनी रात में और कब ख़त्म होगा तुम्हारा ये झगड़ा ? बैठ कर काहे नहीं सुलझा लेते इसे ?”
“कुछ नहीं हुआ है इंस्पेक्टर कुछ गुंडे घुस आये थे यहाँ बाकि सब ठीक है आप जाईये !”,सलीम ने कहा
“हां गुंडे ही थे दाढ़ी वाले गुंडे।”,केशव पंडित ने सलीम को घूरते हुए कहा !
पुलिस की गाड़ी वहा से वापस चली गयी। सलीम और केशव एक दूसरे को घूरते हुए अपने अपने घर चले गए। शिवम छत पर खड़ा था वह निचे आया और टूटे हुए टेंट में रखी कुर्सी पर आ बैठा वहा का नजारा देखकर उसे बड़ा दुःख हो रहा था। शिवम् अपना सर पकड़कर बैठ गया। कुछ देर बाद किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा शिवम् ने सर उठाकर देखा सामने आरफा खड़ी थी शिवम् ने उसके दोनों हाथ को अपने हाथो में ले लिया आरफा उसके पास पड़ी कुर्सी पर आ बैठी और कहा,”ये लोग कभी नहीं बदलेंगे शिवम् , भले हम कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन इनके बिच की नफरत और दुश्मनी को खत्म नहीं कर पाएंगे। ये लोग कभी नहीं सुधर पाएंगे !”
“सुधर सकते है , सुधारना चाहते भी है तो ये हरामखोर रिश्तेदार नहीं सुधरने देंगे। हमहू पिताजी से कहे भी थे की इन्हे ना बुलाओ लेकिन नहीं सुनी , अब झेलो इन्हे ,,, जब तक इनके बिच की दुश्मनी खत्म नहीं होती इह शादी करने में वो ख़ुशी ना होगी आरफा ,, हम सोचे रहे की हमारे रिश्ते के बाद इनका झगड़ा भी खत्म हो जाएगा लेकिन नहीं खत्म होने के बजाय ये और बढ़ता जा रहा है।”, शिवम् ने कहा
“ऐसे तो इनकी दुश्मनी कभी खत्म नहीं होगी। “,आरफा ने उदास होकर कहा
“होगी और हमहू ही खत्म करेंगे ,, पहले इस झगडे की जड़ तक पहुंचना होगा , इस झगडे की शुरुआत ही इसे खत्म कर सकती है. हम अपने प्यार को ऐसे हारते हुए नहीं देख सकते आरफा अपने प्यार को बचाने के साथ साथ हमे इनकी दुश्मनी भी खत्म करनी है !”,शिवम् ने कहा
“शिवम् हम आपके साथ है।”,आरफा ने कहा शिवम् वहा से उठकर चला गया और आरफा अपने घर की और !

भाग 9

केशव पंडित और सलीम भाई के बिच हुए झगडे के बाद सबको लगने लगा था की अब ये शादी नहीं होगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। केशव और सलीम अभी भी दोनों एक दूसरे से बदला लेने की चाह में थे। अगले दिन से फिर रस्मे शुरू हो गयी और रिश्तेदारों के कलेजे पर सांप लौटने लगे। सब मिलकर फिर से योजना बनाने लगे इस बार रुक्सार ने सलीम के कान भरने शुरू कर दिए और कहा,”भाई जान एक ही बेटी है आपकी और वो लड़का शिवम् वो तो कोई काम धंधा भी नहीं करता तो ऐसे घर में लड़की क्यों दे रहे हो ? अरे कम से कम लड़के के नाम कुछ तो होना चाहिए ना कल को अगर पंडित ने अपने लड़के को घर से निकाल दिया तो हमारी बेटी कहा जाएगी ?’
रुक्सार की बात कही ना कही सलीम के दिमाग में जा लगी उसने पंडित के घर फरमान भिजवाया ओर मीटिंग बैठायी। केशव पंडित , उनका जीजा , सरस और कुछ रिश्तेदार शामिल हुए। इधर सलीम , फारुख और उनके रिश्तेदार शामिल हुए। एक घंटे की बहस के बाद तय हुआ की घर की दुकान शिवम के नाम की जाएगी। सरस ने ऐतराज जताया तो केशव पंडित ने बाजार में पड़ी 2 दुकाने उसके और बिट्टू के नाम हुयी। थोड़ी आनाकानी के बाद सरस मान गया। उसी शाम शिवम् के घर में हल्दी का फंक्शन रखा गया। सभी मेहमान जमा हुए ख़ुशी का माहौल था ,सलीम के घर से भी कुछ मेहमान आये। सब सही चल रहा था की तभी शिवम् के फूफाजी किसी बात पर बिगड़ गए और कहने लगे,”ये कैसी चाय बनी है इसमें अदरक ही नहीं डाली है ?”
पंडिताइन भागकर आयी और कहा,”लाईये हम दूसरी ले आते है।”
“नहीं रहने दो , इंतजाम कुछ सही नहीं कर रखा है ,, एक तो मुसलमानो के घर में शादी करने जा रहे हो उस पर ये चाय भी ढंग की नहीं है”,फूफाजी ने कहा
“लेकिन चाय का शादी से क्या कनेक्शन है ?”,केशव पंडित ने उनकी और आते हुए कहा
सलीम के घरवाले चुपचाप उनकी बातें सुन रहे थे और फिर फारुख ने फुसफुसाते हुए कहा,”यहाँ इनके खुद के मसले नहीं निपट रहे , कैसा परिवार है ? मेरी मानो तो अभी भी वक्त है शादी रोक दो।”
“चुप करके बैठो फारुख उनके घर का मामला है , लड़ने दो।”,सलीम ने कहा
“कैसे कनेक्शन नहीं है ? उन लोगो से रिश्ता जोड़कर तुम्हारा रहन सहन भी वैसा ही होता जा रहा है। बिना अदरक की चाय पीला रहे हो , मुझे नहीं पीनी चाय”,फूफाजी ने ग्लास रखते हुए कहा
“अरे जीजाजी का आप भी लाईये दुसरा चाय बनवा देते है , बच्चो की तरह रूठ रहे है”,केशव पंडित ने उन्हें मनाते हुए कहा।
फूफाजी वहा से चले गए केशव पंडित परेशान से वही खड़े रह गए तो सलीम उनके पास आया और कहा,”क्या पंडित ? तुम्हारे तो रिश्तेदार भी बड़े विचित्र है”
“ए दढ़ियल तुम ना अपना काम करो , हमाय घर के मामले में टाँग अड़ाने की कोनो जरूरत ना है”,केशव पंडित ने कहा
बस फिर क्या था दोनों में फिर झगड़ा शुरू हो गया। गाली गलौच होने लगा और बात हाथापाई तक पहुँच गयी। एक दो घुसे पंडित जी को पड़े तो दो चार लाते सलीम को भी पड़ी एक बार फिर घर में फिर नजारा भयानक हो गया। मोहल्ले वाले देखकर मजे ले रहे थे और दोनों पक्षों के रिश्तेदार आपस में उलझे पड़े थे। आधे घंटे बाद सलीम ने कहा,”अब ये शादी हरगिज नहीं होगी , चलो सब यहाँ से”
सलीम अपने रिश्तेदारों के साथ वहा से चला गया। फारुख और रुक्सार तो बहुत खुश थे शादी टूटने से उधर पंडित जी के रिश्तेदार आपस में ही उलझ पड़े। हल्दी लगाए बैठे शिवम् का चेहरा उतर गया। कुछ देर बाद ही उसके दोस्त वहा आये और कहा,”और शिवमवा हो गयी तेरी हल्दी ,शायद हम लोग लेट हो गए”
“हां भाई उधर देखो ज़रा”,शिवम् ने बुझे मन से कहा दोस्तों ने देखा पंडित जी अपना सर पकडे बैठे है और बाकि रिश्तेदार आपस में ही बहस कर रहे है ! शिवम् उठा और नहाकर ऊपर चला आया। छत पर आया तो उसके दोस्त भी उसके पीछे पीछे चले आये और कहा,”शिवम् भाई दोनों परिवार में इतनी ही अनबन है तो शादी कर ही क्यों रहा है ? यार तुझे तो और लड़किया मिल जाएगी।”
शिवम् ने सूना तो दोस्त का हाथ पकड़कर उसे दिवार के पास लेकर आया और सामने सलीम भाई के घर की छत पर खड़ी आरफा को दिखाकर कहा,”उसके लिए कर रहे है ये शादी , देख रहे हो उह लड़की को , उसे बचपन से चाहते है और वो भी हमको बचपन से चाहती है। ऐसे कैसे छोड़ दे उसके अकेले ?”
“हां तो भाई फिर फिर उसे यहाँ से दूर लेजा और कर ले शादी , दिक्कत क्या है ?”,दूसरे दोस्त ने कहा
“तुमको का लगता है उसने हमसे इह सब कहा नहीं होगा लेकिन हम नहीं चाहते ऐसे मुंह छिपाकर भागना ,, हम सोचे की हमारी शादी से ही सही कम से कम इन दो परिवारों की दुश्मनी खत्म हो जाएगी लेकिन नहीं , ख़त्म होने के बजाय इह दुश्मनी और बढ़ती जा रही है। समझ नहीं आ रहा का करे ?”,शिवम् ने कहा
“शिवम् अगर तेरा प्यार सच्चा है ना भाई तो तुम दोनों को एक होने से कोई नहीं रोक सकता। इनकी दुश्मनी खत्म करने का एक ही तरिका है दोनों में से एक को क़ुरबानी देनी होगी। “,शिवम् के दोस्त ने कहा
“भाई लेकिन क़ुरबानी देगा कौन वो सलीम भाई अपने आप में गुंडे है और इनके पिताजी की तो पूछो मत जब भी कुछ कहो तो कट्टा निकालने की बात करते है। और क़ुरबानी देने की बात उन दोनों से जाकर करेगा कौन ?’,शिवम् के दूसरे दोस्त ने कहा
“हम करेंगे ! हमारा प्यार बचाने के लिए अब हमे ही कुछ करना होगा।”,शिवम ने कहा और फिर अपने दोस्त से कुछ इंतजाम करने को कहा।

शिवम् के दोस्तों ने रात में शिवम् के कहे अनुसार इंतजाम कर दिया। शिवम् के घर के पीछे वाले घर की ऊपरी छत पर टेबल उसके पास तीन कुर्सियां रखी थी। टेबल पर खाने पिने का सामान रखा हुआ था साथ में कुछ ग्लास और पिने के लिए रम भी। शिवम् वहा आकर बैठ गए उसके दोनों दोस्त भी बैठ गए। कुछ देर बाद सलीम वहा आया और शिवम् से कहा,”अब ये क्या नया नाटक है ?’
शिवम् ने उनकी बात का कोई जवाव नहीं दिया और बोतल से ग्लास में रम निकालकर पिने लगा। सलीम भाई हैरानी से शिवम् को देखा तो शिवम् के दोस्त ने सलीम से कहा,”देखिये ना सलीम भाई , आपने रिश्ता तोड़ दिया तो उसके गम में ये यहाँ बैठकर शराब पि रहा है।”
सलीम शिवम् के सामने आकर बैठा और कहा,”अरे ऐसा क्यों कर रहे हो ? देखो बुरा मत मानना लेकिन शराब पीना हराम है और रिश्ता तुम्हारी वजह से नहीं तुम्हारे बाप की वजह से तोड़ा है।” “हम यही तो जानना चाहते है की आखिर आप दोनों की बिच झगड़ा है किस बात का ? काहे इतने सालो से इतना बवाल कर रखे हो ?”,शिवम् ने लड़खड़ाती जबान में कहा “अब तुम्हे क्या बताये ? तुम्हारा बाप बड़ा हरामी इंसान है ,, दुश्मन होने से पहले हम दोनों दोस्त हुआ करते थे , स्कूल में साथ साथ जिगरी यार थे।”,सलीम ने कहा “फिर ?”,शिवम् का एक दोस्त बिच में बोल उठा सलीम भाई ने उसकी और देखा और आगे कहने लगे,”12 वी में थे हम दोनों , तब हमारी क्लास में एक लड़की आयी पहली ही नजर में वो लड़की मुझे भा गयी लेकिन तुम्हारे बाप ने उसे भी हमसे छीन लिया।” “पंडित जी स्कूल में चक्कर था ?”,शिवम् के उसी दोस्त ने फिर पूछा “हां !”,सलीम भाई से कहा “लेकिन किस से ?”,इस बार शिवम् ने पूछा सलीम भाई ने एक गहरी साँस ली और कहा,”सरोजा से !!

भाग 10

शिवम् ने जैसे ही सलीम के मुंह से सरोजा नाम सूना हक्का बक्का रह गया। तभी उसके पास खड़े उसके दोस्त ने कहा,”अब ये सरोजा कौन है ?”
शिवम् ने उसको एक झापड़ मारा और कहा,”साले अम्मा है हमायी (सलीम की और पलटकर कहा) और आप का अंट शंट बके जा रहे उनके बारे में बता रहे है जबान खींच लेंगे आपकी”
“क्यों जबान खिंच लोगो ?उनको हम पसंद करते थे , दिन रात उनके गली मोहल्ले में चक्कर काटते थे , ईद पर सेवईया , दिवाली पर मिठाई सब खिलाया है उन्होंने हमको लेकिन जब शादी करने की बारी आयी तो तुम्हारे पिताजी से कर ली , और वो साला पंडित उसने भी मेरी पीठ में छुरा भौंका मुझे नहीं बताया की वो उसी लड़की से शादी कर रहा है जिस को हम पसंद करते है। बस ये दुश्मनी तबसे ही है ,,, बाकि और कुछ जानना हो तो जाकर अपने पिताजी से पूछो”,कहते हुए सलीम भाई उठे और वहा से चले गए उनके जाते ही शिवम् के दोनों दोस्त हँसते हँसते निचे गिरकर कहने लगे,”अरे कमाल ! तुमाये पिताजी तो पुरे रंगबाज निकले””
“सालो दाँत ना निपोरो , हमे का मालूम था ऐसी भी कोई घटना हुई है।”,शिवम् ने कहा
“देखो शिवम् पंडित बेचारे सलीम भाई का दिल तो टूटा है , उनकी खुद की पसंद को तुम्हाये पिताजी ले आये और अब तुम उनकी बेटी लाने की सोच रहे हो तो इसमें रिस्क है।”,शिवम् के दोस्त ने कहा
“साला हमायी किस्मत ही ख़राब है , बचपन से एक ही सपना देखे थे की हमायी शादी आरफा से हो पर साला उस में भी इतनी मुश्किलें।”,शिवम् ने उदास होकर कहा
“अरे चिंता मत करो पंडित करते कुछ जुगाड़ !”,कहते हुए उसके दोस्तों ने उसे गले लगा लिया।

अगली सुबह सलीम भाई अपने घर में दातुन कर रहे थे की दरवाजे पर पंडिताइन को देखकर तुरंत दातुन फेंक दिया और कहा,”अरे आप इतनी सुबह सुबह !”
“सलीम भाई हमे आपसे कछू बात करनी है।”,पंडिताइन ने कहा
“हां कहिये ना।”,सलीम भाई ने माथे पर आये पसीने की बुँदे पोछते हुए कहा क्योकि इतने सालो में पहली बार वह उनके सामने उनसे बात करने के लिए खड़ी थी। सलीम ने उन्हें अंदर चलकर बैठने को कहा और कुछ देर बाद आकर कहा,”हां कहिये !”
“सलीम भाई आपको याद होगा 12वी के पत्र आपने और हमने साथ ही दिए थे। आपने पढ़ने में हमरी बहुते मदद भी की रही और उसके बदले में हम आपको ईद पर सेवईया और दिवाली पर मिठाई खिलाये रहे। परीक्षा के बाद पंडित जी का रिश्ता हमारे लिए आया और हमाये पिताजी ने हां कह दी , उस वक्त लड़का लड़की को मिलने की अनुमति नहीं थी जैसा घरवाले तय करते सब हो जाता था। आपको ऐसा काहे लगता है की पंडित जी आपके साथ धोखा किये है। आपने कभो हमसे नहीं कहा की आप हमे पसंद करते है और अगर कहे भी होते तो हम स्वीकार नहीं कर पाते का है की हम हमेशा से आपको सलीम भाई कहते आये है ,, हमारे यहाँ भाई शब्द का बहुत मान रखा जाता है ,, बस इसलिए हमने हमेशा आपको उसी नजर से देखा ,,, शादी के बाद हमे पता चला की पंडित जी आप आप दोस्त है और कल रात आपके बिच की दुश्मनी का पता चला। आप दोनों दोस्त हमारी वजह दुश्मन बने सोच कर ही बहुते बुरा लग रहा है”,कहकर पंडिताइन चुप हो गयी
सलीम ने सूना तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ अतीत में उसके साथ जो हुआ उसमे ना तो केशव पंडित की गलती थी और ना ही सरोजा यानि पंडिताइन की। सलीम भाई ने शर्मिन्दा होकर कहा,”माफ़ कर दो पंडिताइन बहुत गलत समझ बैठे थे हम , अंधे हो गए थे दिखावे के प्यार में और ये सब हरकत कर बैठे। खामखा ही हमने केशव को इतने सालो में गलत समझा उस से नफरत की और आज तक ना जाने क्या क्या कहा है उसे ,, मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ पंडिताइन।”
गेट पर खड़े केशव ने सूना तो अंदर आया और कहा,”शर्मिन्दा तो हम है सलीम भाई , अपने झूठे शानो शौक़त के चलते तुम्हारा कितना दिल दुखाये है ,, हमायी दोस्ती की पूरा उन्नाव मिसाल देता था लेकिन हम दोनों ने उसे दुश्मनी में बदल लिया वो भी एक लड़की के लिए। हमे माफ़ कर दो यार , हम दिल से तुमसे माफ़ी मांगते है !”
“अरे माफ़ी तो मैं मांगता हूँ तुझसे पंडित आज तक कितना अपमान किया है मैंने तुम्हारा , आज पंडिताइन की बात सुनकर अहसास हुआ मैं कितना गलत था”,सलीम ने आँखों में आंसू भरकर कहा
“अरे भाई तो आ गले लग और भुला दे सारे गीले शिकवे।”,केशव पंडित ने कहा

दोनों दोस्त गले आ लगे। पंडिताइन की आँखो में ख़ुशी के आंसू आ गए सलीम की बेगम ने आकर उनके कंधे पर हाथ रखा तो पंडिताइन मुस्कुरा दी। केशव पंडित और सलीम भाई के बीच की सारी गलतफहमियां दूर हो गयी। बरसो पुरानी दुश्मनी खत्म हो चुकी थी। सलीम भाई ने ख़ुशी ख़ुशी आरफा और शिवम् के रिश्ते को स्वीकार कर लिया था और तय तारीख पर ही शादी के लिए भी मान गए। आरफा और शिवम् दोनों खुश थे उनका प्यार बच गया और उनके घरवालों के बिच की दुश्मनी भी खत्म हो चुकी थी। शादी की तैयारियां एक बार फिर शुरू हुयी और इस बार मोहल्ले वालो की आँखे फटी की फटी रह गयी। दोनों साथ मिलकर काम कर रहे थे , हँसते मुस्कुराते हुए। जिन मुंह से एक दूसरे के लिए गालियाँ निकलती थी आज उसी मुंह से एक दूसरे के लिए तारीफे निकल रही थी। रिश्तेदार भी परेशान थे लेकिन क्या कर सकते थे बेचारे जब सलीम और केशव में दुश्मनी थी तब हर कोई उनके कान भर देता था लेकिन अब दोस्ती हो चुकी थी
शादी वाले दिन सभी सज धज कर मंडप में मौजूद थे। पंडित जी ने सलीम भाई को भी उनकी शादी की शेरवानी पहना दी और खुद भी सफेद धोती कुर्ता पहनकर उनके साथ खड़े थे। शादी के मंडप में शिवम् और आरफा मौजूद थे। सब खुश थे और सब सही चल रहा था की तभी पंडित जी की साइड से किसी रिश्तेदार ने आकर कहा,”ये कैसा पनीर बनाया है ? इतना सख्त और पुरिया तो बिल्कुल कच्ची है !”
सलीम भाई ने उनकी और जाना चाहा तो पंडित जी ने उन्हें रोका और खुद अपने रिश्तेदार के पास आये और कहा,”भाईसाहब शादी में आये है किसी फाइव स्टार होटल में नाही जो इतनी फरमाईशें कर रहे है ,, खाना खाओ बच्चो को आशीर्वाद दो और निकलो यहाँ से।”
आदमी मुंह बनाकर वहा से चला गया तो सलीम उनके पास आया और कहा,”अरे रिश्तेदार है बुरा मान जायेंगे !”
“अरे मानने दो हम लोगो में जब तक दो चार रिश्तेदार बुरा ना माने शादी का मजा ही नहीं आता ,, आओ चलो बच्चो को आशीर्वाद दे देते है।”,कहते हुए केशव पंडित सलीम भाई के साथ मंडप की और चला आया !
शादी सम्पन्न हुयी , अगले दिन मौलवी साहब ने शिवम् और आरफा को निकाह पढ़ा दिया। दोनों धर्मो का मान रखा गया और सलीम ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी आरफा को सामने पंडित के घर भेज दिया। अगली सुबह पंडित जी उठे आँगन में टेप बज रहा था उस पर कोई भक्ति गीत चल रहा था पंडित जी उसकी और आये और गाना बदल दिया गाना बजने लगा,”भर दो झोली मेरी या मोहम्मद , लौटकर मैं ना जाऊंगा खाली” पंडित जी ने आवाज बढ़ा दी। गाने की आवाज जैसे ही सलीम के कानो में पड़ी उन्होंने उस से भी तेज आवाज में गाना बजा दिया,”मंगल भवन अमंगल हारी”
पंडित जी ने छत की और देखा सलीम खड़ा था लेकिन आज पंडित जी ने उसे लौटा फेंक के नहीं मारा बल्कि मुस्कुरा दिया सामने खड़ा सलीम भी मुस्कुरा उठा

तो ऐसी थी मोहल्ला 24 बट्टे 7 के सलीम और केशव की कहानी जिसमे दो दिल टूटने से बच गए और दो टूटे हुए दिल एक हो गए !! धन्यवाद !

समाप्त

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संजना किरोड़ीवाल

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