साक़ीनामा – 28
Sakinama – 28
Sakinama – 28
मृणाल की लिखी किताब से सागर को एक क्लू मिला कि मृणाल बनारस में हो सकती है। सागर उठा और तुरंत नीचे चला आया। उसने हर्ष को बाहर बुलाया और कहा,”मुझे तेरी गाड़ी चाहिए”
“गाडी , वो भी इस वक्त , सब ठीक है ना ?”,हर्ष ने सागर के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा
“मुझे बनारस जाना है”,सागर ने कहा
“हाँ चले जाना पर तू इतना परेशान क्यों है ? एक काम अंदर चल,,,,,,,,,अरे चल ना”,कहते हुए हर्ष उसे अंदर ले आया। हर्ष के मम्मी पापा खाना खा रहे थे उन्होंने सागर को देखा तो कहा,”अरे सागर आओ बैठो खाना खा लो”
“नहीं आंटी आप लोग खाइये”,सागर ने कहा
“माँ मैं और सागर मेरे कमरे में है आप खाना खाकर हम दोनों के लिए 2 कप चाय बना देना”,हर्ष ने सागर को अपने कमरे में ले जाते हुए कहा और दरवाजा बंद कर लिया।
सागर बिस्तर पर आ बैठा और बड़बड़ाया,”मेरा जाना बहुत जरुरी है , पता नहीं वो किस हाल में होगी ?”
“कौन किस हाल में होगी ? सागर तू मुझसे कुछ छुपा रहा है,,,,,,,,,,,बता ना क्या हुआ है ?”,हर्ष ने पूछा
“इस वक्त मैं तुझे कुछ नहीं बता सकता,,,,,,,,,,,,मेरा बनारस जाना बहुत जरुरी है प्लीज मुझे तुम्हारी गाडी की जरूरत है प्लीज”,सागर ने हर्ष की आँखों में देखते हुए सर्द स्वर में कहा
“ठीक है मैं तुझसे कुछ नहीं पूछूंगा ये रही गाड़ी की चाबी,,,,,,,,,,,,,अपना ख्याल रखना”,हर्ष ने चाबी सागर की ओर बढ़ाते हुए कहा
सागर ने चाबी ली और उठकर जैसे ही जाने लगा दरवाजे पर हर्ष की मम्मी चाय के कप हाथो में लिए मिल गयी और कहा,”अरे सागर चाय तो पीकर जाओ बेटा”
“फिर कभी आंटी अभी मै थोड़ा जल्दी में हूँ,,,,,,,,,,,बाय हर्ष”,सागर ने कहा और वहा से निकल गया
सागर अपने फ्लेट में आया अपने कुछ कपडे , जरुरी सामान और मृणाल की लिखी किताब बैग में रख ली। सागर ने फ्लेट बंद किया और नीचे चला आया। पार्किंग में खड़ी हर्ष की गाड़ी निकाली और वहा से निकल गया।
कानपूर से बनारस का रास्ता 350 किलोमीटर था जिसे तय करने में 7-8 घंटे लगना तय थे। सागर ने अपने हाथ पर बंधी घडी में समय देखा रात के 10 बज रहे थे। सागर ने अंदाजा लगाया अगर वह लगातार गाड़ी चलाये तो सुबह तक बनारस पहुँच जाएगा। सागर ने महादेव का नाम लिया और चल पड़ा। जहन में बस मृणाल और उस से जुड़े ख्याल चल रहे थे। उसे कैसे भी करके मृणाल को ढूंढना था।
सुबह के 3 बजे सागर प्रयागराज पहुंचा उस ने एक चाय की दुकान के सामने गाड़ी रोकी।
वह थोड़ा थक चुका था इसलिए गाड़ी साइड में लगाई और दुकान के पास चला आया। सागर ने एक कप चाय देने को कहा। सुबह के वक्त यहाँ ठण्ड थोड़ी ज्यादा ही थी। अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए वह उन पर फूंक मारने लगा। चाय वाले ने चाय का कप सागर की तरफ बढ़ा दिया। सागर ने चाय ली और पीने लगा चाय पीकर वह कुछ देर वही बैठकर सुस्ताने लगा। आधे घंटे बाद सागर उठा और गाड़ी लेकर वहा से निकल गया। सुबह होते होते सागर वाराणसी पहुंचा जिसे बनारस भी कहा जाता है।
सागर गाड़ी लेकर बनारस की सड़को पर मृणाल को ढूंढता रहा लेकिन मृणाल उसे कही दिखाई नहीं दी। दोपहर होने को आयी सागर ने गाड़ी एक होटल के सामने रोकी और अंदर चला आया उसने अपने लिए एक कमरा बुक किया। ये होटल घाट के बिल्कुल पीछे ही था। सागर कमरे में चला आया वह काफी थक चुका था लेकिन खुद को थकान का अहसास तक नहीं होने दिया। उसने कमरे की खिड़की खोल दी और सामने दूर तक फैले घाट के पानी को देखने लगा।
एक सुकून जो उसकी आँखों में उतर रहा था उसे सागर महसूस कर सकता था। सामने देखते हुए वह बड़बड़ाया “कुछ तो बात है इस जगह में वरना मृणाल इस जगह को अपना इश्क़ नहीं कहती”
ठंडी हवा के झोंके से सागर की तंद्रा टूटी और वह खिड़की के सामने से हटकर बिस्तर की तरफ चला आया उसने अपने बैग से कपडे निकाले और नहाने चला गया। नहाकर सागर ने कपडे बदले और उस किताब को लेकर वहा से बाहर निकल गया।
सागर को भूख लगी थी वह रिसेप्शन पर आया और जैसे ही खाने के बारे में पूछने लगा उसे एकदम से मृणाल की लिखी बात याद आ गयी “अगर बनारस का असली स्वाद वहा के बड़े बड़े होटल में नहीं बल्कि सड़को पर लगे छोटे छोटे ठेलो पर मिलेगा”
“सर आपको कुछ चाहिए ?”,रिसेप्शन पर खड़े लड़के ने पूछा
“आह्ह नहीं थेंक्यू !”,सागर ने कहा और वहा से बाहर निकल गया। किताब को उसने अंदर अपने जैकेट की जेब में रख लिया। सड़क पर आकर सागर पैदल
ही चल पड़ा। रास्ते में उसने खाना खाया जो कि सच में काफी अच्छा था। पैदल चलते हुए वह हर गुजरने वाली लड़की को ध्यान से देखते जा रहा था और मन ही मन महादेव से प्रार्थना कर रहा था कि मृणाल उसे मिल जाये।
मृणाल को ढूंढते ढूंढते शाम के 5 बज चुके थे लेकिन मृणाल उसे नहीं मिली। गर्मी और लगातार चलने के कारण सागर अब थकने लगा था। वह रास्ते बने महादेव के मंदिर की सीढ़ियों पर आ बैठा। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मृणाल को कहा ढूंढे ?
सागर ने महादेव का नाम लेकर आँखे बंद की और सोचने लगा। सहसा ही उसे ख्याल आया और वह बड़बड़ाया,”मृणाल अक्सर अपनी कहानियो में बनारस के घाटों का जिक्र करती थी , क्या मुझे उसे वहा ढूंढना चाहिए,,,,,,,,,,शायद वो वहा मिल जाये”
सागर उठा और महादेव का शुक्रिया अदा कर वहा से आगे बढ़ गया। सागर अस्सी घाट के दरवाजे पर पहुंचा ,जैसे ही उसने सीढ़ियों से नीचे उतरने के लिए कदम रखा उसका दिल धड़कने लगा।
वह अपने आस पास बहती उस हवा को महसूस कर रहा था। सागर ने अपने सीने पर बांयी तरफ हाथ रखा और आगे बढ़ गया। शाम का वक्त था और आसमान अपनी लालिमा घाट के पानी में बिखेर रहा था जिस से अस्सी घाट का नजारा और भी खूबसूरत दिखाई दे रहा था। सागर वो नजारा देखते हुए धीमे कदमो से सीढ़ियों से नीचे उतर आया। वहा कुछ लोग थे जो बैठे थे , कुछ यहाँ वहा घूम रहे थे , चाय की दुकान से लेकर खाने के छोटे ठेले भी वहा मौजूद थे। कुछ बच्चे थे जो सीढ़ियों से निचे मिटटी पर खेल रहे थे।
सागर उन सब नजारो को अपनी आँखों में भरते जा रहा था। उसकी धड़कने अब सामान्य हो चुकी थी। उसकी पलकों ने जैसे झपकने से इंकार कर दिया हो। उसने एक गहरी साँस लेकर छोड़ते हुए मन ही मन कहा,”तुम सही कहती हो मृणाल इस शहर की हवा में भी अहसास है,,,,,,,,,,,,,,,,अहसास तुम्हारे होने का , मुझे यकींन है तुम मुझे मिल जाओगी”
सागर कुछ देर अस्सी घाट रुका और फिर आगे बढ़ गया। सीढ़ियों पर चलते हुए उसके जहन में मृणाल की लिखी बातें आ रही थी जो बनारस से जुडी थी।
आज बनारस उसे उन बातो से भी ज्यादा खूबसूरत नजर आ रहा था।
धीरे धीरे सूरज डूब रहा था अँधेरा होने लगा और उसी के साथ घाटों पर लगी लाइट्स जलने लगी। ये नजारा शाम से भी ज्यादा खूबसूरत था। सागर ठहरकर देखने लगा , वह उन नजारों में खो सा गया। सागर आते जाते लोगो में मृणाल को ढूंढने लगा लेकिन वह उसे कही दिखाई नहीं दी। उसका चेहरा उदासी से घिर गया और वह आगे बढ़ गया। कुछ दूर आकर एक घाट पर सागर रुक गया जहा माँ गंगा की आरती होने वाली थी।
सागर के साथ ही वहा काफी लोग मौजूद थे सागर एक बार फिर उन चेहरों में मृणाल को ढूंढने लगा लेकिन मृणाल उसे दिखाई नहीं दी।
“भैया दीपक लीजियेगा ?”,एक छोटी सी बच्ची ने आकर सागर से कहा तो उसकी तंद्रा टूटी
“नहीं मुझे नहीं चाहिए”,सागर ने उदास मन से कहा उसे बस मृणाल की फ़िक्र हो रही थी
“ले लीजिये भैया ! अगर आप ये दीपक जलाकर गंगा में बहायेंगे और सच्चे मन से महादेव से कुछ मांगेंगे तो आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी”,बच्ची ने अपनी आँखो में चमक भरते हुए कहा
उसकी बातो में सागर को सच्चाई दिखी , फ़िलहाल तो उसकी मनोकामना सिर्फ मृणाल को ढूँढना था। उसने बच्ची से एक दोना लिया और उसे पैसे देकर पानी की तरफ बढ़ गया। सागर ने दीपक जलाया और उस दोने को पानी में बहाकर महादेव् से प्रार्थना करने लगा।
कुछ देर बाद वहा माँ गंगा की पूजा-अर्चना शुरू हो गयी। सागर भीड़ के पास चला आया और शामिल हो गया। गंगा आरती के बाद सब एक एक करके वहा से जाने लगे। सागर का मन अब भारी होने लगा था , सुबह से वह पागलों की तरह मृणाल को ढूंढ रहा था लेकिन वो उसे नहीं मिली। लोग वहा से जा चुके थे बस इक्का दुक्का लोग वहा बचे थे
सागर उदास मन से जाने के लिए जैसे ही पलटा सीढ़ियों के पास दिवार के पास बैठे कुछ लोगो पर उसकी नजर पड़ी।
सबसे आखिर में बैठी लड़की को सागर ने जैसे ही देखा उसका दिल धड़क उठा। फ़टेहाल मृणाल सीढ़ियों पर दिवार से पीठ लगाए बैठी थी। उसके चेहरे पर कोई रौनक नहीं थी चेहरा मुरझा चुका था और आँखों में एक इंतजार था। अगले ही पल वहा खाना बाटने वाले कुछ लोग आये बाकी लोगो के साथ मृणाल ने भी अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए। लड़के ने दो रोटी मृणाल के हाथो पर रख दी और आगे बढ़ गया। सागर ने जब देखा तो उसकी बांयी आँख से आसुंओ की बून्द निकलकर नीचे जा गिरी और उसके चेहरे पर दर्द दिखाई देने लगा।
मृणाल जैसे ही रोटी का निवाला तोड़ने लगी पास से गुजरते लड़के का हाथ उस पर लगा और रोटी नीचे सीढ़ी पर जा गिरी। मृणाल ने बुझी आँखों से लड़के को देखा और फिर रोटी उठाकर उन्हें झटककर साफ़ करने लगी। उन पर मिटटी लग चुकी थी , मृणाल ने एक निवाला तोड़ा और जैसे ही खाने लगी किसी ने आकर उसकी कलाई को थाम लिया। मृणाल ने देखा उसके सामने एक लड़का खड़ा था जो आँखों में आँसू लेकर उसे देख रहा था।
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संजना किरोड़ीवाल
आखिर कार महादेव ने सागर की सुन ली…बहुत ही भावुक था ये पल सागर के लिए जब उसने मृणाल को इस साल में देखा… मैं खुद भावुक हो रही हूं उसको इस साल में देखकर और जिसने हकीकत में सहा हो, उसकी तो कल्पना भी नही कर सकती हूं, पर लेकिन ये हुआ… खैर उम्मीद है कि अब मृणाल की जिंदगी में कुछ अच्छा होगा… क्योंकि वो महादेव की शरण में है
Kahani bahot acchi h 👍
Apne mahadev ki nagari me mrinal ka Aisa haal kese ho gya…sabe achhi bat ye h ki aakhir Sagar ne mrinal ko dhundh liya
Sagar ne itna mehnat karke Murnal ko dhundh hai liya Murnal mil toh jayge ye toh pata tha par ise haal me milege ye nai socha tha
Sagar Harsh ki bike lekar Banaras agaya Mrunal ko dhoonte ne yaha akr usne Mehsoos kiya ki kyu Mrunal ko is city se itna lagav tha..usse yaha ki har baat uski yaad dilarahi hai..aur Mahadev ki aashirvaad se usse finaaly Mrunal mil hi gayi…