साक़ीनामा – 15
Sakinama – 15
Sakinama – 15
राघव मुझसे दूर जा रहा था ये बात मैं जानती थी राघव नहीं । कुछ दिन यु ही गुजर गए। राघव और मेरे बीच सिर्फ खामोशियों का रिश्ता था। हमारे बीच ज्यादा कोई बात नहीं होती थी। एक दूसरे के साथ वक्त बिताना तो दूर शादी के बाद राघव ने कभी मुझसे ये भी नहीं पूछा कि मैं खुश हूँ भी या नहीं,,,,,,,,,,,,,,मेरे हालातो से वो अनजान तो नहीं था शायद,,,,,,!
एक दोपहर जिया का फोन आया। मैंने फोन उठाया और कहा,”हेलो !!”
“हाय दी ! कैसी हो ? ससुराल जाकर तुम हम सबको भूल ही गयी”,जिया ने कहा
“मैं ठीक हूँ तू बता , मम्मी कैसी है ?”,मैंने पूछा
“ठीक है तुझे याद करती है , और बताओ जीजू कहा है ? वो तेरा ख्याल तो रखते है ना ?”,जिया ने एकदम से पूछ लिया
जिया की इस बात पर मेरी आँखे भर आयी , मैंने खुद को मजबूत रखने की कोशिश करते हुए कहा,”वो अच्छे है , ऑफिस गए है”
मेरी आवाज से जिया भांप गयी इसलिए कहा,”दी तू वहा खुश तो है ना ?”
जिया मेरे साथ मेरी बहन कम और मेरे साथ मेरी दोस्त की तरह ज्यादा रही थी इसलिए ना चाहते हुए भी मैंने उसे सब बता दिया। जिया ने सूना तो उसे भी बहुत दुःख हुआ और उसने कहा,”तुम उनसे बैठकर बात करो और पूछो ना क्या प्रॉब्लम है ?”
“मैंने बहुत बार कोशिश की लेकिन वो कुछ नहीं बताते है , ना ठीक से बात करते है।”,मैंने रोते हुए कहा
“यार वो ऐसा क्यों कर रहे है ? शादी से पहले तो सब कितना सही था फिर उनको अचानक से क्या हो गया है ? तुम जीजू की मम्मी से बात करो शायद उन्हें कुछ पता हो”,जिया ने मुझे समझाते हुए कहा
“नहीं उनकी मम्मी से कुछ नहीं कहना है वो गुस्सा करेंगे , तुम हमारी मम्मी से भी कुछ मत कहना। इतने दिनों से मैं बस अकेले परेशान हो रही थी इसलिए तुम्हे बता दिया बस और कुछ नहीं”,मैंने जिया को समझाते हुए कहा
“हम्म्म मैं नहीं कहूँगी पर प्लीज तुम उनसे बात करो , हो सकता है कुछ मिस अंडरस्टैंडिग हुई हो”,जिया ने कहा
“कोई मिसअंडरस्टैंडिंग नहीं है , यहाँ आने के बाद उनका व्यवहार ही एकदम से बदल गया है। उन्हें ना मेरी परवाह है ना मुझसे कोई मतलब,,,,,,,,,,,,वो एकदम से बदल गए है और यही बात मुझे बार बार परेशान कर रही है”,मैंने कहा
“तुम एक काम करो राघव के बड़े जीजाजी से बात करो , वो जीजू को समझायेंगे”जिया ने कहा
बड़े जीजाजी ही थे जो घर में राघव से बात कर सकते थे।
जिया से बात करने के बाद मैंने जीजाजी से बात की और उन्हें राघव के बदले व्यवहार के बारे में बताया। उन्होंने मुझे तसल्ली दी और कहा कि वो राघव से बात करेंगे। जीजाजी से बात करने के बाद मन और परेशान हो गया। मैं बार बार सोचने लगी कि मुझे उनसे ये सब नहीं कहना चाहिए था लेकिन मैं किस से कहती। मम्मी पापा से मैं कुछ कहना नहीं चाहती थी और अपने घरवालों से इसका जिक्र कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी। दिनभर मैं यही सब सोचते रही। शाम में राघव घर आया तब मैं ऊपर अपने कमरे में थी।
“आज तुम्हारे फेवरेट जीजाजी का फोन आया था”,राघव ने कमरे में आते हुए कहा
मैं वहा रुकना नहीं चाहती थी इसलिए जाने लगी लेकिन राघव ने मुझे रोक लिया और मेरे बिल्कुल मेरे सामने आ खड़ा हुआ। मैं ख़ामोशी से उसे देखते रही। मेरे करीब खड़ा वह मेरे उतरे हुए चेहरे को देखता रहा। मुझे खामोश देखकर उसने कहा,”जीजाजी से क्या कहा तुमने ?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस वहा से जाने की कोशिश करने लगी लेकिन राघव ने अपना हाथ बीच में कर दिया।
उस पल एक अजीब सी घुटन का अहसास हो रहा था और जैसे ही उसने मुझे छुआ वो घुटन और ज्यादा बढ़ गयी। उसने मेरी बाँह पकड़ी हुई थी और बार बार एक ही सवाल कर रहा था “जीजाजी से क्या कहा तुमने ?”
इतने कम दिनों में मैं उस से इतना खौफ खाने लगी थी कि मैं उसके सामने कुछ नहीं बोल पायी। मैं बस नम आँखों से उसे देखते रही।
उसकी आँखों में अब प्यार और परवाह दिखाई नहीं देती थी बल्कि उसकी आँखों में देखने से भी डर लगता था। वह कुछ देर मुझे रोककर वही खड़ा रहा और फिर दूर हटकर कहा,”चलो तैयार हो जाओ पिज़्ज़ा खाने चलते है”
“मुझे नहीं जाना”,मैंने डरते डरते धीमी आवाज में कहा
“चलते है , तैयार होकर नीचे आ जाओ”,राघव ने कहा
“मुझे नहीं जाना”,मैंने फिर अपनी बात दोहराई
“चलो मैं लेकर जा रहा हूँ , जल्दी से नीचे आ जाओ। साड़ी में चलना है साड़ी में चलो , सूट पहनना है सूट पहन लो”,कहते हुए राघव कमरे से बाहर चला गया। आज से पहले राघव ने कभी बाहर जाने को नहीं कहा था आज कहा भी तो शायद जीजाजी के कहने पर,,,,,,,,,,,,,कुछ देर बाद मैं नीचे चली आयी। देखा बड़े भैया का बेटा आया हुआ है। भाभी ने उसके साथ इडली भेजा था।
“आज तो भाभी के घर से इडली आ गयी , हम लोग फिर कभी चलेंगे”,राघव ने मेरे पास आकर कहा और वहा से चला गया
मुझे वैसे भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं थी। मैं किचन एरिया में आकर रात का खाना बनाने लगी। खाना खाकर मैं ऊपर कमरे में चली आयी और धुले हुए कपडे तह करके रखने लगी। कपडे तह करते हुए राघव की शर्ट मेरे हाथ में आयी। उसे तह करने के बजाय मैं उसे हाथो में लेकर बैठ गयी और राघव के बारे में सोचने लगी। राघव को लेकर जो मैं महसूस करती थी वह राघव ने मुझे लेकर शायद कभी महसूस नहीं किया।
कमरे में किसी के आने की आहट हुयी तो मैंने जल्दी से शर्ट को तह करके कबर्ड में रख दिया।
वो राघव ही था , वह अंदर आया और बालकनी की तरफ चला गया। मैं बिस्तर पर रखे कपडे उठाकर कबर्ड में रखने लगी। कुछ देर बाद राघव कमरे में आया और कबर्ड से एक बैग निकालकर बाहर रखते हुए कहा,”इसमें मेरे कुछ कपडे है उन्हें बस पानी से निकालकर सूखा देना”
“हम्म्म ठीक है”,मैंने कहा
राघव अपना फोन लेकर बिस्तर पर आकर लेट गया।
मैं भी अपनी साइड आकर लेट गयी हालाँकि नींद नहीं आ रही थी फिर भी मैंने अपनी आँखे मूँद ली। देर रात मेरी नींद खुली मैंने देखा राघव जाग रहा है और बिस्तर पर करवटें बदल रहा है। उसे देखकर ही समझ आ गया कि वो परेशान है। मैंने उठकर बैठते हुए कहा,”क्या हुआ ?”
“पेट में दर्द हो रहा है”,उसने दर्द से कराहते हुए कहा
“पेट में दर्द ऐसे अचानक , आपने कुछ गलत खा लिया था क्या ?”,मैंने चिंता करते हुए पूछा
“नहीं नार्मल ही तो खाया था।”,राघव ने कहा
“मैं आपके लिए कुछ लेकर आउ ? आपको शायद एसिडिटी हो गयी है अगर आप सौंफ और चीनी खाएंगे तो आराम आ जाएगा”,मैंने कहा तो राघव ने हाँ में गर्दन हिला दी। रात के 11 बज रहे थे और घर में सब सो चुके थे। मैं नीचे आयी मैंने राघव के लिए सौंफ और चीनी ली और लेकर ऊपर चली आयी। मैंने राघव को खाने के दिया और थोड़ी देर आराम करने को कहा लेकिन उस से कोई फर्क नहीं पड़ा। दर्द थोड़ा और बढ़ गया मुझे राघव को देखकर चिंता होने लगी।
राघव को किडनी स्टोन प्रॉब्लम भी है जब मुझे इसका ख्याल आया तो मैंने कहा,”शायद आपको स्टोन का दर्द हो रहा है , आप हॉस्पिटल चलिए डॉक्टर को दिखा लीजिये”
“मुझे कही नहीं जाना”,राघव ने बिस्तर पर करवट बदलते हुए कहा
“लेकिन ऐसे तो आप और परेशान हो जायेंगे , आपको कितनी तकलीफ हो रही है आप चलिए ना मैं आपके साथ चलती हूँ”,मैंने परेशानी भरे स्वर में कहा मुझसे राघव को दर्द में देखा नहीं जा रहा था।
“मैंने कहा ना मुझे नहीं जाना , हो जाएगा ठीक तुम सो जाओ”,राघव ने थोड़ा गुस्से से कहा
मुझे इस वक्त उसके गुस्से से फर्क नहीं पड़ा बल्कि मुझे उसे इस हाल में देखकर अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करू ? मैं उसे हॉस्पिटल जाने के लिए ज्यादा फ़ोर्स भी नहीं कर सकती थी। वह अपना पेट पकडे बिस्तर पर करवटें बदल रहा था।
अचानक मुझे याद आया कि मेरे पास हमेशा पैन किलर की दवा रहती है मैंने अपने बैग में देखा नहीं मिली फिर याद आया कि वो नीचे फ्रीज पर रखी है। मैं उठकर नीचे आयी मैंने मेडिकल लाइन में 8 साल काम किया था इसलिए कुछ दवाओं की जानकारी मुझे थी। मेरे पास एमरजेंसी के लिए पैन किलर हमेशा होता था। मैंने नीचे आकर दवा ली , पानी लिया और वापस ऊपर चली आयी।
राघव अपना पेट पकडे बिस्तर पर बैठा था मैंने दवा उसकी तरफ बढाकर कहा,”आप ये दवा खा लीजिये , ये दर्द की दवा है इस से आपका दर्द कम हो जाएगा”
“पक्का ?”,उसने दवा लेकर पूछा
“हाँ आप मेरा यकीन कीजिये ये बहुत स्ट्रांग दवा है इस से आराम आ जायेगा”,मैंने विश्वास भरे स्वर में कहा तो राघव ने वह दवा खा ली और लेट गया।
दवा ने कुछ देर में ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। राघव को आराम से सोया देखकर मैं भी बिस्तर पर लेट गयी लेकिन अब तक मेरी नींद उड़ चुकी थी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन नींद नहीं आयी। कुछ देर बाद राघव ने कहा,”थैंक्यू !!”
“थैंक्यू किसलिए ?”,मैंने हैरानी से पूछा
“दवा देने के लिए और मेरी वजह से तुम्हारी नींद भी खराब हो गयी”,राघव ने कहा
“कोई बात नहीं , ये मेरा फर्ज है। आप,,,,,,आप आराम से सो जाईये”,मैंने पास पड़ी कंबल राघव को ओढ़ाते हुए कहा। कुछ देर बाद राघव को नींद आ गयी और मैं खुली आँखों से सुबह होने का इंतजार करने लगी।
सुबह तैयार होकर मैं नीचे चली आयी। मैंने सूट पहना था और ये काफी लूज था। मैंने बाल बनाये , सिंदूर लगाया , बिंदी लगाई और दुपट्टा सर पर ओढ़कर नीचे चली आयी। घर का रूटीन शुरू हो गया। रूटीन के साथ ही आज नया काम मिला था पीछे गैलरी के फर्श पर काफी दाग धब्बे थे मुझे उन्हें साफ करना था।
मैं पीछे गैलरी में चली आयी और उन्हें घिसने लगी लेकिन वो छूटने का नाम नहीं ले रहे थे। मैं फिर भी लगी रही और धीरे धीरे वो सब साफ होने लगे। मेरा चेहरा अब मुरझाया रहता था , आँखे उदास और होंठो पर मुस्कुराहट का नामों निशान तक नहीं। मैं बस चुपचाप अपना काम करती रहती थी। गैलरी साफ करते हुए मैं मेन गेट की तरफ चली आयी जहा कॉमन वाशबेसिन था। वो काफी गंदा है देखकर मैं उसे भी साफ करने लगी। मेन गेट के बाहर अपनी गाड़ी के पास खड़ा राघव मुझे देखे जा रहा था लेकिन मुझे इस बात का अहसास तक नहीं था।
अंदर जाने के लिए मैं जैसे ही पलटी तो उसे गाड़ी के पास खड़े पाया। मुझे देखकर राघव ने गाड़ी का दरवाजा खोला और अंदर जा बैठा। शुरू शुरू में दिल करता था कि वो ऑफिस जाने से पहले मुझसे मिलकर जाए या कहकर जाए लेकिन अब ये ख्याल भी मैं अपने दिल से निकाल चुकी थी। मैं वही खड़ी उसे जाते हुए देखते रही और फिर अंदर चली आयी।
दिनभर काम करने के बाद मैं ऊपर चली आयी। बैग से राघव के कपडे निकाले और बाथरूम में लाकर उन्हें धोने लगी। धोने के बाद उन्हें बालकनी में ही तार पर सूखा दिया। मैं काफी थक चुकी थी इसलिए आकर बिस्तर पर लेट गयी। अभी कुछ वक्त ही गुजरा था कि कमर में अचानक से दर्द होने लगा। मैंने करवट बदल ली लेकिन दर्द और बढ़ गया। मैं पेट के बल लेट गयी लेकिन कमर के साथ साथ अब दर्द पेट में भी होने लगा। ये असहनीय था और आज से पहले कभी नहीं हुआ था।
मैं कमरे में यहाँ से वहा टहलने लगी लेकिन दर्द बढ़ते ही जा रहा था। जब सहन नहीं हुआ तो मैं नीचे चली आयी मम्मी हॉल में थी और पापा भी वही थे। मैंने आकर मम्मी से कहा,”मेरी कमर में बहुत दर्द हो रहा है”
“मेरे साथ आओ”,कहकर मम्मी मुझे अपने कमरे में ले आयी और कबर्ड से बाम निकालकर लगाते हुए कहा,”कुछ वजन उठाने से हो गया होगा , थोड़ी देर आराम कर लो ठीक हो जायेगा”
“हम्म्म”,मैंने कहा और वही बिस्तर पर लेट गयी लेकिन दर्द कम होने के बजाय और बढ़ गया।
मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे वो सामान्य दर्द नहीं था। मैंने वापस आकर मम्मी को बताया तो उन्होंने कहा,”चलो फिर हॉस्पिटल चलते है।”
मम्मी मुझे ऑटो से लेकर हॉस्पिटल जाने लगी तो पापा भी अपनी स्कूटी लेकर साथ चल पड़े। इस घर में सिर्फ पापा ही थे जिन्हे मेरी परवाह थी। मम्मी का चेहरा देखकर ही समझ आ रहा था कि उन्हें ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा है। कुछ देर बाद ऑटो एक क्लिनिक के सामने पहुंचा।
मम्मी मुझे लेकर वहा चली आयी वो उनका फैमिली डॉक्टर था उसने मेरी हालत देखकर कहा,”ये किडनी स्टोन का दर्द है , अभी मैं एक इंजेक्शन लगा देता हूँ बाद में सोनोग्राफी करवा लेना”
डॉक्टर ने चेक अप किया और इंजेक्शन लगा दिया। थोड़ी देर मुझे वही इमरजेंसी वार्ड में लेटने को कहा। दर्द कुछ कम हुआ तो उन्होंने सोनोग्राफी के लिए भेज दिया। सोनोग्राफी में ये कन्फर्म हो गया कि मेरी किडनी में स्टोन था और ये दर्द भी उसी वजह से हो रहा था।
आज से पहले मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ था , मुझे याद भी नहीं है कि मुझे कभी बुखार भी हुआ था लेकिन ये सब चीजे अचानक मेरे साथ हो रही थी। शाम होते होते मम्मी पापा और मैं घर लौट आये। पापा ने कुछ पैन किलर लाकर मुझे दे दी। डॉक्टर ने मुझे आराम करने को कहा लेकिन मम्मी ने आकर मुझे शाम के खाने का मेनू बता दिया और मैं किचन की तरफ चली आयी।
राघव के घर आने का टाइम हो चुका था उसने फोन किया और कहा,”10 मिनिट में घर आ रहा हूँ तैयार रहना , बाहर चलते है”
“मैं नहीं जा सकती , मैंने घर पर खाना बना लिया है”,मैंने कहा
“तुम्हे पता था न बाहर जाना है फिर क्यों बनाया ? और तुम क्यों नहीं जा सकती ?”,राघव ने पूछा
“मेरी तबियत खराब है , अचानक से दर्द होने लगा तो आज ही हॉस्पिटल गए थे”,मैंने धीरे से कहा
“हॉस्पिटल क्यों ?”,राघव ने पूछा
मैंने उसे अपने किडनी स्टोन के बारे में बताया तो पहले वह हसने लगा और फिर कहा,”ठीक है मैं घर आके बात करता हूँ”
“हम्म्म !”,उसका हँसना मुझे अच्छा नहीं लगा मैंने फोन रख दिया और वापस अपने काम में लग गयी
शाम में राघव आया तो मम्मी ने उसे मेरी तबियत के बारे में बता दिया ना जाने क्यों वो इस बात पर हंस रहा था। उसने मुझसे भी आकर पूछा लेकिन उसकी बातो में परवाह कम और मजाक ज्यादा था।
खाना खाने के बाद वह ऊपर चला गया और मैं किचन की साफ सफाई में लग गयी। हल्का हल्का दर्द अब भी महसूस हो रहा था इसलिए मैंने दवा खाई और अपने कमरे में चली आयी। राघव बालकनी में फोन पर किसी से बात करने में बिजी था मैंने तार पर सुख रहे कपडे उतारे और उन्हें लेकर अंदर चली आयी। मैं बैठकर कपडो को तह करने लगी। उन्हें कबर्ड में रखा और आकर बिस्तर पर लेट गयी। दवा का असर था या दर्द का मुझे आज जल्दी नींद आ गयी।
मुझे नहीं पता राघव कब कमरे में आया और सोया। देर रात मुझे तेज दर्द महसूस हुआ , मैंने सोने की कोशिश की लेकिन नहीं सो पायी। मैं उसे नींद में उठाना नहीं चाहती थी लेकिन दर्द बहुत हो रहा था इसलिए मैंने राघव का कंधा थपथपाया। उसने अपनी आँखे खोली और मेरी तरफ पलटकर नींद में कहा,”क्या हुआ ?”
कमर में दर्द हो रहा है”,मैंने आँखों में आँसू भरकर कहा क्योकि वो दर्द मुझसे सहन नहीं हो रहा था
“क्या करना है हॉस्पिटल जाना है ?”,उसने नींद में पूछा
हॉस्पिटल का नाम सुनते ही इंजेक्शन का ख्याल आ गया और मैंने कहा,”नहीं वहा नहीं जाना”
“नहीं जाना तो फिर सो जाओ और मुझे भी सोने दो”,कहते हुए राघव करवट बदल कर वापस सो गया।
उसकी बेरुखी का दर्द शायद मेरे दर्द से ज्यादा था इसलिए मैंने आगे उस से कुछ नहीं कहा और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ देर बाद दर्द धीरे धीरे कम होने लगा लेकिन मेरी नींद उड़ चुकी थी। मैं उठी और बालकनी में चली आयी।
रात के डेढ़ बज रहे थे और आसमान में चाँद चमक रहा था। गर्मियों का मौसम था और उस पर ठंडी हवाएं चल रही थी। बालकनी की रेलिंग के पास खड़ी मैं आसमान में चमकते चाँद को देखते हुए खुद से कहने लगी,”काश तुम समझ पाते
कि पत्नी अगर दर्द में हो तो पति का प्यार से अपनी पत्नी का सर सहला देना या पीठ थपथपा देना भी दवा का काम करता है। मैं नहीं जानती महादेव आपने मेरी किस्मत में क्या लिखा है ?
जिसे हम पसंद करते है , जिस से प्यार करते है उसका नजरअंदाज करना , उसकी ख़ामोशी नहीं सह पाते। मुझे इतना दर्द मत दीजिये महादेव कि मैं आपके सामने उसका नाम लेते हुए रो पडू , मेरे आंसुओ की वजह वो ना बने,,,,,,,,,,,,,,आप तो मेरे सब कुछ हो ना महादेव फिर आप सब ठीक क्यों नहीं करते ? आप सब ठीक कर दीजिये , आप राघव को पहले जैसा कर कर दीजिये न महादेव,,,,,,,,,,,!!”
कहते हुए मेरी आँखो में ठहरे आँसू गालों पर लुढ़क आये। इस वक्त मैं जिन हालातों गुजर रही थी मैं खुद समझ नहीं पा रही थी कि मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है ? मैं बस अपने महादेव के सामने अपने दिल की बात करती थी और मैंने उनसे कहा भी लेकिन इस बार वो नहीं सुन रहे थे।
उन्होंने मेरे नसीब में क्या लिखा था ये सिर्फ़ वो जानते थे
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