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साक़ीनामा – 14

Sakinama – 14

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 14

कुछ दिन यू ही गुजर गए , मैं सबके सामने खुश रहने का दिखावा करने लगी थी पर अंदर से खुश नहीं थी। मैंने महसूस किया जैसे धीरे धीरे मैं अंदर से खाली होते जा रही थी। वहा कोई नहीं था जिस से मैं बात कर सकू , कुछ सकू ,  सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक मैं घर के कामो में बिजी रहती। राघव से बहुत कम बात होतीं , अगर होती झगड़ा हो जाता।


एक सुबह मेरी आँख खुली देखा मेरे बगल में बैठा राघव अपने कपडे प्रेस कर रहा है। ये सोचकर कि आज शायद मुझे उठने में देर हो गयी है मैंने खिड़की की तरफ देखा बाहर अन्धेरा था। मैंने फोन में टाइम देखा सुबह के 3 बज रहे थे।
“आप इस टाइम प्रेस क्यों कर रहे है ?”,मैंने उठकर बैठते हुए पूछा  
“मुझे एक मीटिंग के लिए शहर से बाहर जाना है , वहा पहुँचने में 3-4 घंटे लग जायेंगे इसलिए अभी निकलना पड़ेगा। तुम्हे मम्मी ने बताया नहीं था क्या ?”,राघव ने प्रेस किया शर्ट पहनते हुए कहा


“नहीं उन्होंने नहीं बताया”,मैंने कहा
“कोई बात नहीं , अगर काम खत्म हो गया तो रात में देर तक आ जाऊंगा वरना कल सुबह आना होगा”,राघव ने घडी पहनते हुए कहा
“हम्म्म ठीक है”,मैंने कहा
“सपना आएगी तुम्हे लेने उसके साथ चली जाना”,राघव ने परफ्यूम लगाते हुए कहा
“कहा ?”,मैंने पूछा


“वो तुमने कहा था ना तुम्हे कुछ कपडे चाहिए तो वो आ रही है उसके साथ मार्किट चली जाना और फिर उसके साथ उसके घर चली जाना। 2-4 वही रुकना है उसने गणपति रखा है अपने घर में तो उसकी हेल्प कर देना काम में”,राघव ने कहा
“मुझे नहीं जाना”,मैंने धीरे से कहा क्योकि अब तक मैं उसके गुस्से से डरने लगी थी
“चली जाना मैं उसे हाँ बोल चुका हूँ”,राघव ने मेरी तरफ देखकर कहा


“लेकिन आपने मुझसे पूछा भी नहीं कि मुझे जाना है या नहीं”,मैंने कहा
“इसमें पूछना क्या है घर की बात है , मैं उसे बोल चुका हूँ। वैसे भी उसे थोड़ी हेल्प चाहिए”,राघव ने मेरी तरफ आते हुए कहा। उसने मुझे साइड हग किया और कहा,”चली जाना”
“हम्म्म !”,मैंने कहा तो राघव ने अपना बैग उठाया और वहा से चला गया। मैं बालकनी में चली आयी और उसे जाते हुए देखते रही। जाने से पहले उसने पलटकर भी नहीं देखा। मैं अंदर चली आयी। सोने की कोशिश की लेकिन नींद नहीं आयी।


सपना दीदी मुझे अपने घर लेकर जा रही थी और मुझे इस बात की खबर तक नहीं थी। राघव और उसकी मम्मी ने आपस में ही फैसला कर लिया। ससुराल में पति की इज्जत बहू के हाथ में होती है सोचकर मुझे ना चाहते हुए भी वहा जाना पड़ा। शादी के बाद पति ही लड़की का सबकुछ होता है , उसका रहबर होता है , उसका मालिक होता है , उसका फैसला ही अंतिम फैसला होता है , किसने बनाये ऐसे नियम ? क्या शादी के बाद एक लड़की की मर्जी कोई मायने नहीं रखती ?

मेरे पास सिर्फ सवाल थे जवाब नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं तैयार होकर अपने कुछ कपडे लेकर नीचे चली आयी। कुछ देर बाद सपना दीदी आयी और मुझे लेकर चली गयी। नए घर में आये अभी मुझे एक हफ्ता ही हुआ था। मैं घर का माहौल ठीक से समझ भी नहीं पायी थी कि मुझे 4 दिन के लिए घर से दूर भेज दिया गया। दिनभर बाजार में घूमने के बाद शाम में सब घर पहुंचे। मुझे देखते ही दीदी के दोनों बच्चे खुश हो गए। दीदी की फ्रेंड माया वही रुक गयी और दीदी किसी काम से घर से बाहर चली गयी। सुबह से राघव का कोई मैसेज या फोन नहीं आया था।

गणपति बप्पा की पूजा आरती और भजन कीर्तन में ही रात के 11 बज गए। देर रात सबने खाना खाया और फिर सोने चले आये। मैंने राघव को मैसेज किया , उनसे ज्यादा बात नहीं हुई वह शायद थके हुए थे इसलिए सो गए।
दीदी के घर में सब अच्छा था लेकिन राघव के बिना मुझे वहा अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे चुप देखकर दीदी मुझसे बात करने लगी बातो बातो में उन्होंने कहा,”अब तुम्हे ही रघु को कंट्रोल करना है , कैसे भी करके उसे अपना बनाना है”


“मैं कुछ समझी नहीं आप ऐसी बात क्यों रही है ?”,मैंने असमझ की स्तिथि में कहा
“रघु बहुत सीधा है वो जल्दी ही किसी की बातो में आ जाता है। ऐसा ही कुछ वक्त पहले हुआ था उस लड़की ने उसे अपनी बातो में फंसा लिया। रघु तो उसके पीछे पागल हुआ घूमता था। उसे बस हर जगह वही दिखाई देती थी। मुझे तो वो लड़की बिल्कुल पसंद नहीं थी ,, काली थी और सुंदर भी नहीं थी,,,,,,,,,,,,पैसो के लिए उसने रघु को अपने पीछे घुमाया था। भैया ने तो रघु को घर भी नहीं आने दिया था तब रघु उसे यहाँ भी लेकर आया था , 4 दिन यही रुका था।

तब तेरे जीजाजी और मैंने उसे बहुत समझाया था। बहुत मुश्किल से उस लड़की से पीछा छुड़वाया है इसलिए अब तुम ही उसे सम्हालना और उसे थोड़ा कंट्रोल में रखना”,दीदी ने एक साँस में पूरी कहानी कह सुनाई
उनकी बात सुनकर मन अजीब हो गया लेकिन अगले ही पल मैंने कहा,”ये राघव जी का पास्ट है मुझे उनके पास्ट से कोई मतलब नहीं अगर वो अब मेरे साथ सही है तो सब सही है ,, पीछे उन्होंने क्या किया क्या नहीं किया मुझे उस से कोई मतलब नहीं”


“तुम बहुत समझदार हो”,सपना ने कहा
ना जाने क्यों राघव के लिए मैं यहाँ एकदम से पतिव्रता बन गयी। कुछ देर बाते करने के बाद सपना दीदी सोने चली गयी लेकिन मुझे नींद नहीं आयी। मैं बस राघव के बदले रवैये के बारे में सोच रही थी साथ ही सोच रही थी कि मुझसे कहा गलती हुई लेकिन मुझे जवाब नहीं मिला इस बार भी सिर्फ सवाल थे जिनका जवाब सिर्फ राघव दे सकता था।

सुबह मैं देर तक सोते रही दीदी ने भी मुझे नहीं उठाया। जब उठी तो कमर और पीठ में दर्द महसूस हुआ। मैं बाथरूम गयी तो वजह समझ आयी। मेरे पीरियड्स शुरू हो चुके थे और ये देखकर मैं परेशान हो गयी क्योकि ये 15 दिन से ही वापस शुरू हो चुके थे। मैं नहाकर कपडे बदलकर अंदर आयी और राघव को मैसेज किया “मैं घर वापस आना चाहती हूँ”
“क्यों क्या हुआ ?” राघव ने भेजा


मैंने राघव को अपनी समस्या बताई तो उसने लिख भेजा “तुमने सपना को इस बारे में बताया”
“मुझे हॉस्पिटल जाना है , ये प्रॉब्लम बार बार हो रही है मुझे डॉक्टर को दिखाना है” मैंने लिख भेजा
“मैं तो किसी डॉक्टर को नहीं जानता , तुम सपना से कह दो वो तुम्हे लेकर चली जाएगी” राघव ने लिख भेजा
“ठीक है” मैंने लिखा और ऑफलाइन हो गयी। राघव को मेरी बिल्कुल परवाह नहीं थी जानकर मन उदास हो गया।

मैंने दीदी को अपनी प्रॉब्लम बताई तो उन्होंने कहा,”संडे को यहाँ डॉक्टर नहीं मिलता और मुझे लगता है ये गर्मी की वजह से हो गया है , शाम में माता के यहाँ ले चलूंगी वो कुछ उपाय बता देगी”
दीदी से मुझे इस जवाब की उम्मीद नहीं थी लेकिन उनकी बात मानने के अलावा मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था क्योकि मैं वहा कुछ नहीं जानती थी। तबियत ठीक नहीं लग रही थी इसलिए मैं आकर बिस्तर पर लेट गयी। कुछ देर बाद दीदी की दोस्त ने आवाज लगाई। वो मेरे लिए नाश्ता लेकर आयी थी मैंने और बच्चो ने साथ में नाश्ता किया।


दीदी के घर रहना मुझे इसलिए भी अच्छा नहीं लग रहा था क्योकि ना तो मैं बप्पा की आरती में शामिल हो सकती थी ना ही उनसे जुड़े काम कर सकती थी। शाम में मैं घर की गैलरी में खड़ी थी। दीदी के घर के पीछे बड़ा सा खाली मैदान था। मैं वहा खड़े होकर उसे ही देख रही थी। राघव से बात करने का मन हुआ तो उसे फोन लगा दिया। कुछ देर रिंग जाने के बाद उसे फोन उठा लिया
“हेलो !!”,मैंने धीरे से कहा


“हाँ बोलो”,राघव ने कहा
“क्या कर रहे हो ?”,मैंने पूछा
“कुछ नहीं बस ऑफिस के काम से फ्री होकर बैठा हूँ , तुम बताओ ?”,राघव ने कहा
“ऐसे ही आपकी याद आयी तो फोन कर लिया”,मैंने कहा
“अच्छा”,राघव ने कहा


“मेरा मन नहीं लग रहा यहाँ , मुझे घर आना है”,मैंने अपनी आँखों में आये आंसुओ को लगभग रोकते हुए कहा
“एक दो दिन की बात है फिर आ जाना”,राघव ने कहा
“आप आएंगे ना लेने ?”,मैंने उम्मीदभरे स्वर में पूछा
“हाँ फ्री रहा तो मैं आ जाऊंगा”,राघव ने कहा
“यहाँ सब अच्छा है दीदी , जीजाजी , बच्चे सब बस आप नहीं हो तो थोड़ा अच्छा नहीं लग रहा”,मैंने अपनी आँखों के किनारे पोछते हुए कहा


“धीरे धीरे मन लग जायेगा। अभी सब नया है ना तुम्हारे लिए इसलिए तुम्हे ऐसा लगता है।”,राघव ने कहा
“मेरे सब फँस ने हमे शादी की बहुत सारी गुड विशेज दी है”,मैंने कहा
“हम्म्म्म ! तुमने हमारी शादी के फोटो शेयर किये होंगे ?”,राघव ने सवाल किया
“हाँ कुछ किये थे , कर सकती हूँ ना ?”,मैंने पूछा
“हाँ तुम कर सकती हो , लेकिन मैं नहीं करूंगा।

तुम गलत मत समझना मैं ये सोशल मिडिया और लोगो को अपनी पर्सनल लाइफ दिखाने में ज्यादा विश्वास नहीं रखता। लोगो की नजर लग जाती है”,राघव ने कहा
 कोई भी समझ जायेगा कि ये बात सिर्फ मुझे बहलाने के लिए थी लेकिन मैं राघव के लिए पूरी तरह से समर्पित थी , उसने जो कहा मैंने एक छोटे बच्चे के जैसे मान लिया। उसने कुछ देर मुझसे बात की और फिर फोन रख दिया।
रात में मुझे पूजा में शामिल नहीं होना था इसलिए दीदी की फ्रेंड माया मुझे अपने घर ले गयी।

वो मेरे लिए वेज बिरयानी बनाने वाली थी और बनाने के साथ साथ उन्होंने मुझे सिखाया भी। वो बहुत अच्छी थी बिरयानी बनने के बाद वो मेरे साथ आकर बालकनी में बैठ गयी। उन्हें शायद दीदी ने बताया कि मुझे चाय बहुत पसंद है इसलिए वो मेरे और अपने लिए चाय भी ले आयी और बैठकर बातें करने लगी। बातों बातों में उन्होंने मुझसे पूछा,”अच्छा मृणाल राघव से शादी करके तुम्हे पछतावा तो नहीं हो रहा है ना ?”


उनका सवाल सुनकर मुझे थोड़ी हैरानी हुई मैंने उनकी ओर देखा और कहने लगी,”नहीं दी ! मुझे पछतावा क्यों होगा ? हाँ वो थोड़ा कम बोलते है लेकिन अच्छे इंसान है। मैंने उन्हें उनकी शक्ल सूरत या फिर उनका स्टेटस देखकर पसंद नहीं किया था बल्कि उनकी सादगी देखकर पसंद किया था। मुझे नहीं पता क्यों बस वो मुझे अच्छे लगते है और मैं हमेशा उन्हें खुश देखना चाहती हूँ। मेरे लिए उनकी एक स्माइल भी बहुत बड़ी बात है। अगर कोई मुझसे पूछे कि उनसे मोहब्बत करने की क्या वजह है तो शायद मैं कभी कोई वजह नहीं दे पाऊँगी।”


 कहते कहते मैं थोड़ा भावुक हो चुकी थी माया ने मेरी तरफ देखा तो मैं नम आँखों के साथ मुस्कुरा उठी। मेरा मन राघव से इतना जुड़ चुका था कि उसका जिक्र भी मेरे होंठो पर मुस्कुराहट ले आता था। माया काफी देर तक मुझसे बातें करती रही। कुछ वक्त बाद मैं वापस दी के घर चली आयी। अगला दिन भी यू  गुजर गया। राघव की तरफ से कोई फोन या मैसेज नहीं था मैं ही उसे सामने से फोन या मैसेज कर लिया करती थी और वो थोड़ी देर बात कर लेता।


गणपति विसर्जन वाले दिन सुबह दीदी मुझे अपने किसी रिश्तेदार के घर लेकर गयी। उन्होंने मुझे सादगी में देखा तो कहने लगी,”राघव के सामने अच्छे से तैयार होकर रहा करो”
कुछ औरतो की ये बातें मुझे आज तक समझ नहीं आयी। क्या मेकअप करने से और बहुत ज्यादा सज-धजकर रहने से पति हमे पसंद करने लगेंगे। वे कुछ औरते शायद ये नहीं जानती कि जो अच्छा लगता है वो हर हाल में अच्छा लगता है।

मैंने उनकी बात का जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा दी पर उनकी बात ने ना जाने क्यों मेरे मन पर चोट की और मैंने घर आकर राघव को मैसेज किया  
“अगर मैं बहुत सारा मेकअप करू और आपके सामने अच्छे से तैयार होकर आउ तो आपको अच्छा लगेगा ?”
“एक दिन करके आना बता दूंगा” राघव ने भेजा

शाम में गणपति विसर्जन था , मैं खुश थी क्योकि आज राघव आने वाला था और मैं उसके साथ घर जाने वाली थी। शाम में सबके साथ मैं तैयार हुई , आज मैंने भारी साड़ी पहनी थी। रोजाना से ज्यादा मेकअप किया था। हाथो में चूड़ा पहना था , आँखों में काजल , होंठो पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक , ललाट पर छोटी लाल बिंदी , मैंने शीशे में खुद को देखा मैं रोजाना से ज्यादा अच्छी लग रही थी। मेरा चेहरा खिला हुआ था और आँखों से ख़ुशी झलक रही थी।

ये ख़ुशी राघव के आने की थी पुरे चार दिन बाद मैं उसे देखने वाली थी। मुझसे दूर रह के भले उसे कुछ अहसास ना हुआ हो लेकिन उस से दूर रहकर मैंने महसूस किया कि वो मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है।
शाम के 6 बज रहे थे और विसर्जन के बाद सभी घर चले आये। सपना दीदी मेरे पास आयी और कहा,”रघु से पूछ लो वो कब आएगा ? फिर तुम अपने कपडे वगैरह रख लो और खाना दोनों बाहर ही खा लेना आज”


शादी के बाद मैं और राघव साथ में कही बाहर नहीं गए थे इसलिए दीदी ने ये कहा। मैंने राघव को फोन करके पूछा तो उन्होंने कहा वो 1 घंटे में आ जायेंगे। मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने कपडे पैक करने लगी। मैंने एक बार फिर से अपने बाल बनाये , साड़ी ठीक की। राघव आया और कुछ देर हॉल में जीजाजी के साथ बैठ गया। बाहर खाना खाने के बजाय उन्होंने घर में ही खाना खाया। मैं फिर भी खुश थी कि साथ में खाना ना सही कम से कम 1 घंटे के सफर में हम साथ होंगे तब मैं आराम से उनसे बात कर लुंगी।


दीदी , जीजाजी और बच्चो को बाय बोलकर हम लोग वहा से निकल गए। गाड़ी सोसायटी से बाहर निकली मैं बार बार अपने हाथो में पहने चूड़े को सही कर रही थी , कोशिश कर रही थी कि राघव मुझे देखे और कहे कि मैं अच्छी लग रही हूँ पर उसने ध्यान ही नहीं दिया। गाड़ी में एक ख़ामोशी फैली थी। मैंने कुछ कहा तो राघव बस हाँ ना में जवाब देता रहा। कुछ देर बाद उसने कहा,”तुम्हारी वो दोस्त है ना मरियम ,जरा उसको फोन लगना उस से बात करते है”
सुनकर अजीब लगा , मैं राघव के साथ थी मुझसे बात करने के बजाय वह मुझसे बात ना करने के बहाने ढूंढ रहा था।

मैंने मरियम को फोन लगाया लेकिन उसने नहीं उठाया। मेरी एक दोस्त थी जो काफी दिनों से राघव से बात करने को बोल रही थी मैंने उसका नंबर लगाया तो उसने फोन उठा लिया। मैंने फोन राघव की तरफ बढ़ा दिया। राघव गाड़ी चलाते हुए उस से बात करने लगा। मैं बस बगल में बैठी मुस्कुराने की नाकाम कोशिश कर रही थी। बाते करते करते हम काफी दूर आ चुके थे। राघव ने फोन मेरी तरफ बढ़ा दिया तो मैंने अपनी दोस्त से कुछ देर बात की और फोन काट दिया।


आगे जाकर गाड़ी एक ट्रेफिक में कुछ देर के लिए रुकी मैंने खिड़की से बाहर देखा बगल में ही कुछ दूरी पर एक चाय का रेस्टोरेंट था जहा काफी भीड़ लगी थी। उसे देखकर मुझे राघव की कही बात याद आ गयी “मेरे शहर में चाय का एक फेमस रेस्टोरेंट है वहा कपल्स जाते है , मैं भी वहा कॉफी पीने जाता था तब कपल्स को देखकर सोचता था कि एक दिन मैं भी अपनी पार्टनर के साथ यहाँ आऊंगा। आप टी लवर हो ना तो शादी के बाद आपको लेकर चलूँगा वहा”


मैंने राघव की तरफ देखा वो ख़ामोशी से सामने देखते हुए ट्रेफिक के क्लियर होने का इंतजार कर रहा था। मैं एक बार फिर खिड़की के बाहर देखने लगी। गाड़ी आगे बढ़ गयी। मैं राघव से बात करना चाहती थी लेकिन नहीं कर पायी वो जब खामोश रहता था तो मुझे उस से डर लगता था कि ना जाने कब कौनसी बात पर गुस्सा कर दे या झिड़क दे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं उस से डरने लगी थीं।
देर रात हम घर लौट आये।  अंदर आकर राघव सीधा ऊपर कमरे में चला आया।

मैं मम्मी से मिली और कुछ देर बाद ऊपर चली आयी। राघव सो चुका था। मैं हाथ मुंह धोने बाथरूम में चली आयी। मेरे मन में बार बार एक ही ख्याल आ रहा था कि उसने एक नजर मुझे देखा तक नहीं। मैंने चूड़ा निकालकर रख दिया , गहने निकाल दिये ,बाल समेटते हुए मुझे खुद पर ही गुस्सा आ रहा था और आखिर में अपने होंठो पर लगी लिपस्टिक को पोछ दिया। मेरी आँखे एक बार फिर भर आयी।

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