Pasandida Aurat – 27

Pasandida Aurat – 27

Pasandida Aurat
Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

अवनि को गाते सुनकर पृथ्वी सिद्धार्थ के साथ आगे बढ़ा गया उसने अवनि पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जैसे ही वह अस्सी घाट की आरती वाली जगह से गुजरा उसकी निगाहे उस जगह पर चली गयी जहा कुछ देर पहले उसने अवनि को देखा था। पृथ्वी चलते चलते रुक गया ये देखकर नकुल ने कहा,”क्या हुआ ??”
“कुछ नहीं चलो चलते है”,पृथ्वी ने कहा


“नाव में चले ? एक काम करते है यहाँ से मणिकर्णिका घाट चलते है”,नकुल ने पृथ्वी के सह सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए कहा और नदी किनारे चला आया
“मणिकर्णिका ? वहा क्या है ?”,पृथ्वी ने जिज्ञासा भरे स्वर में कहा
“दुनिया का सबसे बड़ा श्मशान घाट ‘मणिकर्णिका घाट’ है, जिसे महाश्मशान के नाम से भी जाना जाता है। यह घाट हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है और ऐसा माना जाता है कि यहां अंतिम संस्कार होने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है”,नकुल ने कहा


“मतलब तुम ये कहना चाहते हो कि जिंदगीभर बुरे कर्म करने के बाद अगर मैं यहाँ आकर मरता हूँ तो मुझे मोक्ष मिल जायेगा ? हाह ! ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे  जिंदगी भर कालिख में रहकर आखरी दिन खुद को चमका लेना”,पृथ्वी ने दार्शनिक अंदाज में कहा
पृथ्वी की बात सुनकर नकुल भी कुछ देर के लिए शांत हो गया क्योकि पास इस बात का कोई जवाब नहीं था।

नकुल को खामोश देखकर पृथ्वी ने नाव की तरफ बढ़ते हुए कहा,”फिर भी चलो देखते है क्या है उस  घाट पर जो इंसान को मोक्ष देता है”
नकुल ने सुना तो पृथ्वी के साथ नाव पर चला आया और कुछ लोगो के आने के बाद नाव आगे बढ़ गयी।

अवनि को गाते सुनकर गंगा किनारे घूमने वाले लोग रूककर उसे सुनने लगे। सिद्धार्थ भी वही से गुजर रहा था जब उसने अवनि को गाते सुना तो रुक गया और जब उसने देखा गाना गाने वाली कोई और नहीं बल्कि अवनि है तो उसका दिल धड़कने लगा और वह एकटक उसे देखता रहा। अवनि ने अपनी आँखे मूँद रखी थी और गा रही थी
“लहरों पे नाचे , किरणों की परिया
मैं खोयी जैसे , सागर में नदिया”
सिद्धार्थ ने जैसे ही ये लाइन सुनी ना जाने क्यों वह एकदम से उदास हो गया और गाते हुए आगे बढ़ गया


“हम्म तू ही अकेली तो खोयी नहीं है,,,,,!!”
अवनि ने जैसे ही किसी को अपने साथ गाते सुना वह पलटी और जाते हुए सिद्धार्थ को देखा लेकिन उसका चेहरा नहीं देख पायी और सिद्धार्थ के साथ साथ गाने लगी
“सागर किनारे , दिल ये पुकारे , तू जो नहीं तो मेरा कोई नहीं है”
जैसे जैसे सिद्धार्थ आगे बढ़ा उसके गाने की आवाज भी धीमी होती चली गयी और फिर वह अवनि की आँखों से ओझल हो गया

उसे जाते देखते हुए अवनि का स्वर भी धीमा हो गया। सुरभि उठी और अवनि के गले लगकर कहा,”तुमने बहुत अच्छा गाया,,,,,!!”
अवनि की तंद्रा टूटी और उसने सुरभि की तरफ देखकर कहा,”थैंक्यू ! अब चलकर कुछ खाये बहुत भूख लगी है”
“थैंक गॉड तुमने कहा तो सही वरना मैंने तो सोचा था बनारस में आकर तुम्हे भूख ही नहीं लगती,,,,,,,,मैग्गी खाये ?”,सुरभि ने आँखे चमकाकर कहा


“वहा ऊपर “लाली भैया” की दुकान है वहा चलकर खाते है उनकी मैग्गी और तुलसी वाली चाय पुरे अस्सी घाट पर फेमस है,,,,,,,,,!!”,अवनि ने कहा और उठकर नाव से बाहर चली आयी
“क्या बात है अवनि तुम्हे ये सब भी पता है ? बनारस पर लिखी कौनसी किताबों में पढ़ा है ये सब ?”,सुरभि ने भी नाव से बाहर आकर कहा


“ये सब किताबों में नहीं लिखा यहाँ आकर ढूँढना पड़ता है,,,,,,आओ चलते है”,अवनि ने कहा और सुरभि को लेकर लाली भैया की छोटी सी दुकान की तरफ बढ़ गयी , अवनि ने दो प्लेट मैग्गी और चाय बनाने को कहा।

दुकान के पीछे ही बने ऊँचा सा चबूतरा खाली था तो अवनि सुरभि के साथ वही आ बैठी और सच में वो जगह कमाल की थी क्योकि वहा बैठकर सामने फैले अस्सी घाट को आराम से देखा जा सकता था और उस पर रात का वक्त , ठंडी हवाएं , खुला आसमान और उसमे जगमगाते सितारे,,,,,,,,,,,यकींन मानिये साधारण सी दिखने वाली मैग्गी भी वहा दुनिया का सबसे लजीज पकवान लगती है।

सुरभि के फोन की बैटरी कम थी इसलिए उसने वही दूकान वाले से फोन चार्जिंग पर लगाने को कहा और लाली भैया इतने प्यारे कि मना भी नहीं कर पाए।

सुरभि ने सोचा जाने से पहले अपना फोन ले लेगी। चाय मैग्गी आयी , अवनि और सुरभि बाते करते हुए खाने लगी। चाय पीने और मैग्गी खाने के बाद दोनों वहा से नीचे उतरी अवनि ने पैसे चुकाए और दोनों ने तय किया कि यहाँ से बाते करते हुए पैदल ही घाट से होते हुए दशाश्वमेध घाट जाएगी और फिर गोदौलिया से रात का खाना खाकर वही से “काशी-विश्वनाथ” की शयन आरती देखने जायेगी।

सुरभि बातों बातों में अपना फोन लेना भूल गयी और लाली भैया भी अपने काम में व्यस्त हो गए। सुरभि अवनि से बाते करते हुए आगे बढ़ गयी , शिवाला घाट आते आते सुरभि ने जब अपना जेब टटोला तब उसे याद आया कि वह अपना फोन तो दूकान पर ही भूल आयी है।
“एक काम करते है वापस चलते है”,अवनि ने कहा
“तुम यही रुको मैं लेकर आती हूँ तुम खामखा परेशान हो जाओगी”,सुरभि ने कहा


“अरे लेकिन तुम अकेले,,,,,,,,,मैं चलती हु ना साथ”,अवनि ने कहा
“मैडम जी ! आपने क्या कहा था ये बनारस है यहाँ लड़कियो की रक्षा खुद महादेव करते है , मैं यू गयी और यू आयी”,सुरभि ने कहा
“लेकिन तब तक मैं क्या करू ?”,अवनि ने कहा
“ये घाट कितना सुन्दर है अवनि तुम यहाँ बैठकर तब तक गंगा को निहारो मैं आती हूँ”,सुरभि ने कहा और वहा से चली गयी।

अवनि सीढ़ियों पर आ बैठी और ख़ामोशी से अपने आने वाले वक्त के लिए माँ गंगा से प्रार्थना करने लगी। इस घाट पर लोग बहुत कम थे , बस अपनी दुनिया में खोये इक्का दुक्के जोड़े बैठे थे बाकी हर 1 मिनिट में कोई न कोई वहा से गुजर रहा था। सुरभि को गए अभी कुछ वक्त ही हुआ था कि अवनि की नजर अपनी कुछ ही दूर घाट की सबसे आखरी सीढ़ी पर पड़ी जो पानी के बिल्कुल पास में थी

ना आस पास कोई नाव थी ना ही लोग बस एक लड़का अकेला खड़ा था रौशनी कम होने की वजह से अवनि उसका चेहरा ठीक से देख नहीं पा रही थी लेकिन किसी अनहोनी के डर से वह उठी और उस तरफ चली आयी।

अवनि सीढ़ियों से उतरकर नीचे आयी। अवनि का ख्याल सच था लड़का पानी में कूदने जा ही रहा था कि तभी अवनि ने मजबूती से उसकी कलाई पकड़ ली और लड़का पलटकर सीढ़ियों से पैर टिकाये पानी के ऊपर झूल गया। अवनि ने मजबूती से उसका हाथ पकड़ा था और उसके चेहरे पर घबराहट के भाव थे। अवनि ने को देखा तो घाट की मध्यम रौशनी में उसे लड़के का चेहरा नजर आया जो कि कोई और नहीं बल्कि सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ ने जब अवनि को अपने सामने देखा तो उसका दिल फिर धड़क उठा।

वह उदास आँखों से एकटक अवनि को देखे जा रहा था। अवनि ने उसे खींचा और सिद्धार्थ ठीक उसके सामने आ खड़ा हुआ। अवनि को अपने सामने इस तरह और इतना करीब देखकर उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या कहे और क्या करे ? वह बस ख़ामोशी से उसे देखे जा रहा था।

“आप पागल है क्या ? यहाँ खड़े होकर क्या करने जा रहे थे ? हाँ मैं मानती हूँ जिस उम्र में आप अभी है उस उम्र में लोग अपनी जिंदगी में ऐसी बहुत सी परिस्तिथियों से गुजरते है जो उनके लिए सम्हालना मुश्किल हो जाता है पर इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि गलत कदम उठाये। आप जानते है कितनी मुश्किल से हमे ये मनुष्य जीवन मिलता है और हम जिंदगी के संघर्षो से हारकर इसे गवा देते है एक मिनिट भी नहीं सोचते,,,,,,,,,,,ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हल ना हो

हमारे जीवन में हालात कभी इतने नहीं बिगड़ते कि उन्हें ठीक ना किया जा सकते लेकिन इस तरह हार मान लेना कायरता है”,अवनि सिद्धार्थ को डाटते ही चली गयी लेकिन सिद्धार्थ को तो उसकी डाँट में भी प्यार नजर आ रहा था
अवनि ने देखा सिद्धार्थ खामोश खड़ा है तो उसने सिद्धार्थ की कलाई पकड़ी और उसे ऊपर ले जाते हुए कहा,”आप पहले यहाँ से ऊपर आईये”
सिद्धार्थ अवनि की बात मानकर उसके साथ ऐसे चल पड़ा जैसे कोई छोटा बच्चा और चलते हुए उसने पहली बार अपनी बड़ी बड़ी पलकें झपकाई।

अवनि कुछ सीढ़िया चढ़कर ऊपर आयी और सिद्धार्थ का हाथ छोड़कर कहा,”आप ठीक है ?”
“हम्म्म्म , अब ठीक हूँ”,सिद्धार्थ ने अवनि की आँखों में देखकर कहा
“आप वहा किनारे पर क्या कर रहे थे वो भी ऐसे अकेले ? इस वक्त किनारे पर अकेले ऐसे खड़े होना सही नहीं होता , कई बार जिंदगी की उलझनों से तंग आकर खुद को खत्म कर देने का ख्याल एक क्षण में आता है और हम गलत कदम उठा लेते है,,,,,,माफ़ करना ! मैं आपको नहीं जानती पर जब यंग जेनेरेशन को ऐसे देखती हूँ तो थोड़ी विचलित हो जाती हूँ”,अवनि ने अपनी सफाई में कहा


सिद्धार्थ ने अवनि से नजरे हटाकर सामने गंगा को देखा और सर्द आवाज में कहा,”थैंक्यू ! वहा खड़े होकर खुद को खत्म कर देने का ख्याल एक क्षण के लिए मेरे मन में भी आया था लेकिन उस से पहले आप आ गयी,,,,,,,,,,,मैं इतना कमजोर नहीं हूँ कि आत्महत्या कर लू , मैं बस उस क्षण को महसूस करने की कोशिश कर रहा था ताकि उसके डर से मैं अपने मन से वो सब अहसास निकाल दू जो इस वक्त मुझ पर हावी हो रहे है”
सिद्धार्थ की बातें सुनकर अवनि को लगा जैसे वह किसी काल्पनिक कहानी के किरदार से मिल रही है।  

अवनि ये तो नहीं जानती थी कि सिद्धार्थ इस वक्त किन अहसासों से गुजर रहा था लेकिन उसे ऐसे बातें करते देखकर अवनि को ना जाने क्यों अच्छा नहीं लगा।  वह सिद्धार्थ के बगल में आ खड़ी हुई और कहा,”अपने हाथ दो”
सिद्धार्थ ने अपना हाथ अवनि की तरफ बढ़ा दिया अवनि ने सिद्धार्थ का हाथ थामा और सामने गंगा को देखते हुए कहा,”अपना दुसरा हाथ भी साइड में फैलाओ और मेरे साथ एक गहरी साँस लो,,,,,,,,,,,,,लो”
अपने हाथ में अवनि का हाथ सिद्धार्थ को बहुत ही प्यारा लग रहा था।

उसने अवनि के साथ एक गहरी साँस ली और अवनि के कहने पर धीरे से उसे छोड़ा तो अवनि ने दो तीन बार और ऐसा किया। उसने सिद्धार्थ का हाथ छोड़ा और कहा,”अब कैसा लग रहा है ?”
“ऐसा लग रहा है जैसे मन से कोई बोझ उतर गया हो,,,,,,,,थैंक्यू”,सिद्धार्थ ने कहा  
अवनि मुस्कुराई और कहा,”मैंने कहा ना हालात कभी इतनी भी नहीं बिगड़ते कि उन्हें ठीक ना किया जा सके , आप चाहे तो थोड़ी देर यहाँ बैठ सकते है यहाँ कि हवा अपनेआप में एक नेचुरल हीलिंग का काम करती है।

इसके बाद भी मन अगर अशांत हो तो “काशी विश्वनाथ” की शयन आरती में आईये इस शहर का असली सुकून वही है”
कहकर अवनि जाने लगी तो सिद्धार्थ ने कहा,”आप शयन आरती में आएँगी ?”
अवनि पलटी और मुस्कुराकर अपनी गर्दन हामी में हिला दी , सिद्धार्थ भी धीरे से मुस्कुरा उठा और अवनि वहा से चली गयी। सिद्धार्थ वही सीढ़ियों पर खड़ा होंठो से ऊँगली लगाए मुस्कुराने लगा।

एक मीठा सा दर्द उसे महसूस हो रहा था , अगले ही पल उसे याद आया कि उसने अवनि से उसका नाम तो पूछा ही नहीं , वह ऊपर आया लेकिन अवनि उसे कही दिखाई नहीं दी और सिद्धार्थ बड़बड़ाया,”कोई बात नहीं आज शयन आरती के समय पूछ लूंगा,,,,,,,,,,लगता है आज की शयन आरती में जाना ही पडेगा”

आज रात सिद्धार्थ का कुछ और ही प्लान था लेकिन अवनि शयन आरती में आने वाली है ये जानने के बाद उसने अपना मन बदल दिया और होटल के लिए निकल गया। होटल आकर सिद्धार्थ ने एक गर्म पानी का शॉवर लिया और कपडे बदलकर शीशे के सामने चला आया। सिद्धार्थ जब से बनारस आया था उदास था लेकिन अब मुस्कराहट उसके होंठो से हटने का नाम नहीं ले रही थी। उसने चेहरे पर क्रीम लगाई , बालों में जेल लगाकर उन्हें सेट किया , महंगा परफ्यूम लगाया , अपना नया जैकेट पहना और अपना फोन और पर्स लेकर कमरे से बाहर निकल गया।

नकुल और पृथ्वी जिस नाव में बैठे थे वह नाव मणिकर्णिका जाने से पहले दशाश्वमेध घाट आकर बंद हो गयी और सबको उतरना पड़ा। महादेव की मर्जी मानकर नकुल पृथ्वी को लेकर गोदौलिया चला आया। चमचमाती दुकाने , हँसते मुस्कुराते लोग , “हर हर महादेव” का नारा लगाते साधु सन्यासी , खाने की खुशबु , मंदिरो से आती घंटी की आवाजे सब पृथ्वी को काफी रोमांचक लग रहा था। पृथ्वी का मन खुश हो गया और वह हर पल का आनंद लेते हुए आगे बढ़ रहा था। एक जगह उसे साबुन के बुलबुले वाला खिलौना दिखा उसने वो खरीद लिया और अब वह सैंकड़ो लोगो की भीड़ में बेपरवाह होकर हवा में बबल्स उड़ा


रहा था और खुश हो रहा था। नकुल ने पहली बार पृथ्वी को इतना बेपरवाह और खुशमिजाज देखा था। वह भी पृथ्वी के साथ हँसते मुस्कुराते चल रहा था साथ ही उसने पृथ्वी का विडिओ भी बना लिया ताकि बाकी दोस्तों को दिखा सके।
चलते चलते एक बहुत ही अच्छी खुशबु पृथ्वी को छूकर गुजरी और उसने कहा,”ए नकुल ! चलो ना वहा कुछ खाते है”


“हाँ चल”,नकुल ने कहा और खाने के स्टॉल की तरफ चला आया जहा उत्तप्पम बन रहा था , जिसे खुशबूदार सांभर और मूंगफली की चटनी के साथ परोसा जा रहा था। पृथ्वी ने दो प्लेट लगाने को कहा और बाकि लोगो की तरह साइड में चला आया और इंतजार करने लगा। इत्तेफाक से सिद्धार्थ भी उसी स्टॉल पर आकर रुका उसने सामने खड़े पृथ्वी नकुल को एक नजर देखा और फिर एक प्लेट उत्तप्पम लगाने को कहा।  
नकुल और पृथ्वी किसी बात पर बहस कर रहे थे और तभी लड़के ने प्लेट पृथ्वी की तरफ बढ़ाई तो सिद्धार्थ ने कहा,”अरे और कितना वेट करना पडेगा , मैं कब से खड़ा हूँ यहाँ,,,,,,,,,!!”


“आर्डर किया ना भैया बन रहा है थोड़ा टाइम लगेगा थोड़ा सब्र रखिये,,,,,,,,!!”,आदमी ने उत्तप्पम बनाते हुए कहा
“इसमें सब्र की क्या बात है पैसे नहीं ले रहे क्या तुम लोग ? इतना टाइम लगाना है तो फिर दो चार लोग और रखो ना काम करने के लिए”,सिद्धार्थ ने चिढ़कर कहा तो आदमी ने हाथ जोड़कर कहा,”बस भैया बन रहा है”
पृथ्वी ने सिद्धार्थ की बात पर ध्यान नहीं दिया वह मस्त अपना उत्तपम खा रहा था लेकिन नकुल को सिद्धार्थ का ये बिहेव अच्छा नहीं लगा और उसने पृथ्वी से कहा,”हाह ! इतना ही घमंड है तो फाइव स्टार होटल में जाकर खाओ ना,,,,,,,,,!!”


“जाऊ दे न , तू तुझे जेवण कर ( जाने दे ना , तू खाना खा )”,पृथ्वी ने कहा तो नकुल चुपचाप खाने लगा
आदमी ने सिद्धार्थ की तरफ प्लेट बढ़ा दी और अपना ध्यान अपने काम में लगा लिया। सिद्धार्थ ने दो चार निवाले खाये और बाकी ऐसे ही छोड़कर प्लेट पास ही पड़े डिब्बे में डालकर कहा,”छः ! इस खाने के लिए मैंने इतना इंतजार किया , इसमें ना कोई टेस्ट है न ही ये ढंग का बना है,,,,,,!!”
आदमी ने सिद्धार्थ की तरफ देखा वह कुछ कहता इस से पहले सिद्धार्थ ने जेब से 100 का नोट निकाला और लगभग आदमी की तरफ फेंककर कहा,”ये पकड़ो अपने पैसे”


पैसे हवा में उड़कर आदमी के बगल में खड़े पृथ्वी के पैरों में आ गिरे। सिद्धार्थ को इस से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा लेकिन आदमी जैसे ही पैसे उठाने के लिए पृथ्वी के पैरों में झुकने को हुआ पृथ्वी ने अपनी प्लेट नकुल को दी और आदमी को बीच में ही रोक लिया और उठाकर कहा,”एक मिनिट काका”


पृथ्वी ने सिद्धार्थ पर अब तक ध्यान नहीं दिया था लेकिन यहाँ वह खुद को रोक नहीं पाया और सिद्धार्थ के पास आया और कहा,”इन्होने तुम्हे इज्जत से खाना दिया तो तुम्हारा भी फर्ज बनता है उतनी ही इज्जत से तुम भी इन्हे पैसे दो,,,,,,पैसे उठा”
“अबे भो,,,,,,,,,,,,,,,!!”,सिद्धार्थ ने कहा लेकिन वह आगे कहता इस से पहले उसकी कोलर पृथ्वी के हाथ में थी और वह बस उसे घूर रहा था।

( क्या सिद्धार्थ और अवनि की ये पहली मुलाक़ात लाएगी उन्हें एक दूसरे के करीब ? क्या शयन आरती में सिद्धार्थ को देखकर सुरभि अवनि के सामने खोल देगी उसकी पोल स? क्या पृथ्वी कर चुका है सिद्धार्थ के साथ अपनी दुश्मनी का ऐलान ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” ) 

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संजना किरोड़ीवाल  

Pasandida Aurat
Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal
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