Pasandida Aurat – 25

Pasandida Aurat – 25

Pasandida Aurat
Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

धन्वंतरि कूप से कुछ ही दूर सामने पृथ्वी अपनी बांह में सुरभि को थामे हुए था और दोनों एकटक एक दूसरे को देखे जा रहे थे।
सुरभि ने पृथ्वी को देखा गहरी काली आँखे , सुर्ख गुलाबी होंठ, हल्की दाढ़ी मुछे ,सांवला रंग और ललाट पर बिखरे बाल , वही पृथ्वी को सुरभि दिखाई भी नहीं दे रही थी उसके जहन में तो अभी तक “धन्वंतरि कूप” का इतिहास चल रहा था। पृथ्वी को सोच में डूबा देखकर सुरभि ने कहा,”ओह्ह हेलो ! ठीक हूँ मैं तुम क्या मुझ पर लाइन मार रहे हो?”


पृथ्वी ने सुना तो उसने अपनी पलकें झपकाई और अगले ही पल सुरभि को छोड़ दिया और सुरभि धड़ाम से जमीन पर आ गिरी। पृथ्वी ने सुरभि को देखा और कहा,”इस ग़लतफ़हमी में मत रहना कि मैं तुम पर लाइन मार रहा था , मेरा टेस्ट इतना ख़राब भी नहीं है”
“क्या ?”,सुरभि ने कहा और पृथ्वी वहा से चला गया। नीचे गिरी सुरभि जाते हुए पृथ्वी को देखते रही क्योकि पहली बार सुरभि पर कोई लड़का भारी पड़ा था। ना वह सिद्धार्थ की तरह था जो बहस करे और ना ही नकुल की तरह जो चुपचाप सब सुन ले। सुरभि अपनी कमर को हाथ लगाकर कराहते हुए उठी और मंदिर की तरफ चली गयी।

पृथ्वी बाहर आया और नकुल की तरफ आकर चिढ़े हुए स्वर में कहा,”ये लड़कियों को हमेशा ये क्यों लगता है कि हम लड़के उन पर लाइन मार रहे है , क्या कोई लड़का किसी लड़की की जेनुअन हेल्प नहीं कर सकता ?”
“होती है कुछ लड़किया वो छोड़ मेरी बात सुन मुझे वो लड़की फिर मिली थी”,नकुल ने पृथ्वी के जूते उसकी तरफ बढाकर कहा
“कौन लड़की ?”,पृथ्वी ने कहा


“अरे वही लड़की जिसके बारे में मैंने तुम्हे कुछ देर पहले बताया था”,नकुल ने कहा
पृथ्वी अब तक अपने जूते पहन चुका था इसलिए नकुल की तरफ देखा और घूरकर कहा,”मुझे ये बता कि तू उस लड़की के पीछे क्यों पड़ा है ?”
“मैं उसके पीछे क्यों पडूंगा ? इन्फेक्ट मेरे पास मेरी गर्लफ्रेंड है मैं तो उसे तुम्हारे लिए देख रहा हूँ”,नकुल ने कहा
“तू पुन्हा माझी आई होण्याचा प्रयत्न करत आहेस ( तू फिर मेरी आई बनने की कोशिश कर रहा है )”,पृथ्वी ने गुस्से से कहा


“अरे नाही ना ! पर पता नहीं यार क्यों उसे देखकर लगा जैसे वो तेरे लिए परफेक्ट है , जैसे तू है न शांत , चुपचाप रहने वाला वैसी ही वो है शांत , सरल और बहुत प्यारी भी,,,,,,,,,तू चल ना मैं तुझे उस से मिलवाता हूँ”,नकुल ने पृथ्वी का हाथ पकड़कर उसे मंदिर की तरफ ले जाते हुए कहा
पृथ्वी ने मंदिर की तरफ ना जाकर आगे बढ़ते हुए कहा,”मैं कही नहीं जा रहा और मुझे किसी से नहीं मिलना चलो यहा से,,,,,,,,,,!!”


नकुल भी उसके पीछे पीछे चला आया और दोनों चौराहे पर चले आये। रिक्शा रुका और दोनों उसमे आ बैठे। इसके बाद उन्हें “काशी विश्वनाथ दर्शन” थे। नकुल ने ऑटोवाले को वही चलने को कहा।

मंदिर से काफी पहले ही रिक्शा रुका और उसने पलटकर नकुल से कहा,”भैया ! यहाँ से आपको पैदल जाना पड़ेगा , भीड़ इतनी है रिक्शा आगे नहीं जाएगा”
पृथ्वी ने नकुल को देखा तो नकुल ने कहा,”अरे चलते है ना यही पास ही में है मंदिर , पैदल पहुँच जायेंगे इसी बहाने बनारस के दर्शन भी हो जायेंगे”
पृथ्वी नीचे उतर गया और नकुल के साथ पैदल ही मंदिर के लिए चल पड़ा।

इतनी भीड़ पृथ्वी ने मुंबई में या तो गणपति के समय देखी थी या फिर किसी शादी में , नकुल और पृथ्वी चलते रहे लेकिन मंदिर अभी तक नहीं आया था ऑटोवाले ने उन्हें बहुत पहले ही उतार दिया था। चलते चलते पृथ्वी को भूख लगने लगी तो उसने नकुल को रोककर कहा,”पहले कुछ खाते है फिर मंदिर चलते है”
नकुल ने इधर उधर देखा तभी उसे सामने एक गली दिखाई दी ,

उस गली के बारे में नकुल ने पढ़ा था इसलिए वह पृथ्वी को लेकर उसमे चला आया जिसमे “लक्ष्मी टी स्टॉल” नाम से चार पांच दुकाने थी और वहा काफी भीड़ भी थी। पृथ्वी को ये संकरी सी गली काफी इंट्रेस्टिंग लगी उसने नकुल से कहा,”यहाँ क्या मिलेगा ?”
“बनारस की फेमस मक्खन और मलाई टोस्ट के साथ चाय , तुम वहा बैठो मैं लेकर आता हूँ”,नकुल ने कहा
पृथ्वी ने देखा गली में पड़ी लकड़ी की बेंच खाली थी वह उस पर आ बैठा और वहा खड़े लोगो को देखने लगा।

पृथ्वी ने देखा वहा कुछ भारतीय थे तो कुछ बाहर देशो से आये लोग भी थे। सबके चेहरों पर हंसी , मुस्कराहट और चमक थी। कुछ बाते कर रहे थे , कुछ चाय पी रहे थे और कुछ ब्रेड मक्खन खा रहे थे। पृथ्वी ने देखा वहा मौजूद लोग अपनी ही दुनिया में खुश थे। धीरे धीरे ही सही पृथ्वी को ये शहर पसंद आ रहा था। उसके होंठो पर भी एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी। सामने खड़ी एक विदेशी महिला ने पृथ्वी को देखा तो मुस्कुरा दी और नमस्ते का इशारा किया। जवाब में पृथ्वी ने भी इशारे से उसे नमस्ते कहा।


“ये पकड़ मैं चाय भी लेकर आता हूँ”,नकुल ने कागज की दो प्लेट पृथ्वी की तरफ बढ़ा दी और वापस चला गया। पृथ्वी ने दोनों प्लेट बेंच पर रखी तभी एक दुबला पतला सा कुत्ता उसके पास आया और उसके पैरो पर अपना सर झुका लिया। पृथ्वी ने उसके सर पर हाथ घुमाया तो कुत्ता सजल आँखों से पृथ्वी को देखने लगा। उसकी आँखों से ही पृथ्वी समझ गया कि वह भूखा है उसने प्लेट से एक ब्रेड उठाया जिस पर भर भर कर मक्खन लगा था और कुत्ते को खिला दी। कुत्ते ने बड़े चाव से उस ब्रेड को खाया और पृथ्वी की तरफ देखने लगा।

पृथ्वी ने दूसरा टुकड़ा भी उसे खिला दिया। कुत्ता अभी भी भूखा था ये देखकर पृथ्वी ने बाकी ब्रेड भी कुत्ते को खिला दी। नकुल चाय के कुल्हड़ लेकर आया पर जब उसने पृथ्वी को ब्रेड का आखरी टुकड़ा कुत्ते को खिलाते देखा तो कहा,”भाई यार ये  क्या किया तुमने ? मैं कितनी मुश्किल से लाइन में लगकर लाया था , तुमने सब इसे क्यों खिला दिया ?”


“क्योकि इसे ज्यादा जरूरत थी”,पृथ्वी ने कहा
“पर तूने सब क्यों खिला दिया ?”,नकुल ने बुझे स्वर में कहा
“क्या तुझे इसमें ईश्वर नजर आ रहा है ?”,पृथ्वी ने गंभीर स्वर में पूछा
“भाई मुझे इसमें बस एक कुत्ता नजर आ रहा है जो मेरे हिस्से के टोस्ट खा चुका है”,नकुल ने चिढ़कर कहा
“अगर तू इसमें ईश्वर नहीं देख सकता तो फिर तुझे मंदिर में ईश्वर ढूंढना बंद कर देना चाहिए”,पृथ्वी ने उतनी ही गंभीरता से कहा


नकुल ने सुना तो ख़ामोशी से पृथ्वी को देखा कुत्ता तब तक आखरी ब्रेड भी गले से नीचे उतार चुका था उसने आसमान की तरफ देखा और एकदम से पृथ्वी का कुर्ता खींचा। पृथ्वी समझ नहीं पाया वह ऐसा क्यों कर रहा है ? वह उठा और साइड में चला आया अगले ही पल छज्जे का छोटा टुकड़ा आकर बेंच पर गिरा। पृथ्वी को समझ आ गया कुत्ते ने ऐसा क्यों किया ? वह पृथ्वी को वहा से नहीं हटाता तो वह पत्थर सीधा आकर उसके सर पर लगता।

सभी हैरान थे और अगले ही पल सब फिर सामान्य हो गया। कुत्ता वहा से चला गया नकुल अवाक् था उसने हाथ में पकडे कुल्हड़ में से एक पृथ्वी की तरफ बढ़ाया और कहा,”इस शहर के कुत्ते भी स्मार्ट है भाई”
पृथ्वी ने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुरा दिया। दोनों ने चाय पी और इसी के साथ नकुल ने एक बार फिर दोनों के लिए टोस्ट आर्डर कर दिए लेकिन इस बार मलाई टोस्ट जिन्हे लेने उसने पृथ्वी को भेजा।

पृथ्वी को मलाई टोस्ट अच्छा लगा लेकिन चाय का स्वाद कुछ ख़ास पसंद नहीं आया उसके होंठो पर अभी भी सुबह वाली अस्सी घाट का स्वाद था। दोनों ने चाय टोस्ट खत्म किया और वहा से निकल गए।

सुरभि अवनि के पास आयी लेकिन उसने पृथ्वी से हुई मुलाकात के बारे में अवनि को नहीं बताया क्योकि अब कौन इंसान अपनी बेइज्जती सामने से बतायेगा। अवनि ने पूजा की और फिर सुरभि के साथ वहा से निकल गयी। दोनों को काशी विश्वनाथ दर्शन करने थे इसलिए सीधा वही निकल गयी। मंदिर के बाहर से अवनि और सुरभि ने प्रशाद लिया और गेट नंबर 4 की लाइन में आ लगी। सुबह सुबह काफी भीड़ हो चुकी थी और धीरे धीरे ये भीड़ बढ़ने लगी थी। अवनि खुश थी और अवनि को खुश देखकर सुरभि भी खुश थी।

उनसे काफी आगे नकुल और पृथ्वी भी लाइन में लगे थे और उनसे भी आगे उसी लाइन में सिद्धार्थ था लेकिन सब एक दूसरे से अनजान अपनी अपनी दुनिया और विचारो में गुम , सिद्धार्थ ने दर्शन किये और साइड में चला आया। नकुल और पृथ्वी मंदिर के सामने पहुंचे और दूध और जल अर्पित कर साइड में चले आये। कुछ देर बाद अवनि और सुरभि भी पहुंची उन्होंने भी दर्शन किये और साइड में चली आयी। सिद्धार्थ मंदिर में ज्यादा ना रुककर वहा से सीधा अन्नपूर्णा माता के दर्शन करने निकल गया।

पृथ्वी भी जल्दी वहा से निकलना चाहता था लेकिन नकुल उसे पकड़कर मंदिर के सामने खाली जगह ले आया और हाथ जोड़कर कहा,”यहाँ खड़े होकर महादेव से अपने अच्छे जीवन और आने वाले भविष्य के लिए प्रार्थना करो”
पृथ्वी को ये सब उबाऊ लगता था उसने दोनों हाथ आपस में ना जोड़कर ऐसे उठाये जैसे भगवान् से कुछ मांग रहा हो और अपनी आँखे बंद कर ली। नकुल पहले ही आँखे बंद कर अपने हाथ जोड़ खड़ा था।

अचानक पृथ्वी की धड़कने बढ़ने लगे , उसका दिल सामान्य से तेज धड़कने लगा , उसने अपनी आँखे नहीं खोली और उस अहसास को समझने की कोशिश करने लगा . पृथ्वी का दिल धड़कना जायज था अवनि उसके बगल से जो गुजरी थी और वही बेचैनी अवनि को भी हुई लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया।
अवनि ने पृथ्वी को नहीं देखा लेकिन चलते चलते उसकी नजर ऐसे हाथो पर जरूर पड़ी जो प्रार्थना के लिए उठे जरूर थे पर आपस में मिले नहीं थे।

ना जाने अवनि को क्या सुझा उसने अपने प्रशाद की टोकरी में से एक फूल उठाया और उन दो हाथो में रख दिया जो खुले थे और आगे बढ़ गयी। ये हाथ पृथ्वी के थे और अवनि उसे नहीं जानती थी। सुरभि ने पृथ्वी नकुल को नहीं देखा लेकिन किसी अनजान के हाथो में अवनि को फूल रखते देखकर कहा,”तुमने उसके हाथो में फूल क्यों रखा , क्या तुम उसे जानती हो ?”


“अह्ह्ह्हह नहीं”,अवनि ने सुरभि के साथ आगे बढ़ते हुए कहा
“फिर तुमने उसके हाथ में फूल क्यों रखा ?”,सुरभि ने पूछा
“उसने महादेव के सामने प्रार्थना के लिए अपने हाथो को उठाया था , जब वह आँखे खोलेगा और अपने हाथो में उस फूल को देखेगा तो उसका महादेव में विश्वास बढ़ेगा,,,,,,और उसे लगेगा कि महादेव ने उसकी प्रार्थना सुन ली है”,अवनि ने मुस्कुरा कर कहा


“वाह क्या लॉजिक है ना तुम्हारा,,,,,,,,!!”,अवनि ने कहा और दोनों मंदिर प्रांगण से बाहर निकल गयी।
“सुरभि ! पता है इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे है जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखते पर मंदिर चले आते है , वही अगर एक छोटा सा झूठ उनमे ईश्वर के प्रति भाव जगा दे तो इसमें गलत क्या है ? और मुझे पूरा यकीन है अपने महादेव पर वे उस अनजान के दिल में अपने लिए जगह बना लेंगे”,अवनि ने कहा


“और अगर तुम्हारी जिदंगी में कोई ऐसा आ गया जिसे ईश्वर में विश्वास ही ना हो तो,,,,,,,,,,,,!!”,सुरभि ने पूछा
“तब तो बहुत मुश्किल हो जाएगा , मैं तो ऐसा इंसान चाहती हु जो महादेव का भक्त हो और ईश्वर में विश्वास करता हो,,,,,,,!!”,अवनि ने कहा
“ऐसा ही मिलेगा , अब चले मुझे बहुत भूख लगी है”,सुरभि ने मासूम सा मुंह बनाकर कहा क्योकि सिवाय चाय के दोनों के गले से अभी तक कुछ भी नीचे नहीं उतरा था।  

पृथ्वी को अपने हाथो में कुछ महसूस हुआ उसने अपनी आँखे खोली तो हाथो में फूल देखकर उसने हैरानी से इधर उधर देखा , आस पास कई लोग मौजूद थे लेकिन ये उसके हाथो में किसने रखा पृथ्वी समझ नहीं पाया। उसने इधर उधर पलटकर देखा तभी उसे अपने पैरो में कुछ महसूस हुआ। पृथ्वी नीचे बैठा और नीचे गिरी चीज को उठाकर देखा तो पाया कि वो चाँदी की एक बहुत ही सुन्दर पायल थी , थोड़ी पुरानी हो चुकी थी लेकिन उसका डिजाइन बहुत ही प्यारा था। पृथ्वी उसे लेकर उठा और इधर उधर देखा।

उसने वहा घूम रही लड़कियों और औरतो के पैरो को देखा लेकिन काफी लड़कियों के पैरो में पायल नहीं थी और जिनके पैरो में पायल थी उनके दोनों पैरो में थी। पृथ्वी ने उस पायल को एक बार फिर देखा और अपने कुर्ते की जेब में रख लिया। नकुल अपनी प्रार्थना करके पृथ्वी की तरफ पलटा और उसके हाथ में फूल देखकर कहा,”ये कहा से आया ?”
“पता नहीं कोई हाथ में रखकर चला गया”,पृथ्वी ने खोये हुए स्वर में कहा
“कोई नहीं खुद महादेव ने तुम्हे आशीर्वाद दिया है , और तू कह रहा था तुझे ये शहर तुझे पसंद नहीं आया”,नकुल ने कहा


पृथ्वी ने पलटकर मंदिर के शिखर को देखा और कहा,”ये शहर इतना अजीब भी नहीं है,,,,,,,!!”
“अरे अभी तो शाम होने दे उसके बाद देखना इस शहर की खूबसूरती ,, तू कहता है ना मुंबई से खूसबूरत रातें कही नहीं हो सकती तो आज तू बनारस की रात देखना उसके बाद मुंबई की रातें भूल जाएगा”,नकुल ने कहा
“जरूर देखूंगा लेकिन अब मैं और नहीं घूम सकता , होटल चलकर थोड़ा रेस्ट करते है फिर बाहर निकलते है प्लीज”,पृथ्वी ने रिक्वेस्ट की। नकुल भी थक चुका था , दोनों अनपूर्णा माता के दर्शन करके अपने होटल के लिए निकल गए।

रास्ते भर पृथ्वी उस अहसास के बारे में सोचता रहा जो अब तक उसे दो बार महसूस हो चुका था। पृथ्वी समझ नहीं पा रहा था आखिर ये क्यों हुआ ? आज से पहले उसे ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ , रुषाली के साथ था तब भी नहीं फिर एक अनजान शहर में ये सब अहसास क्यों ? पृथ्वी के पास सवाल थे पर जवाब नहीं,,,,,,,,,,,,,दोनों होटल पहुंचे और खाना खाकर ऊपर अपने कमरे में चले आये , नकुल रिया से बात करते हुए बालकनी में चला गया और पृथ्वी बिस्तर पर आ लेटा


पृथ्वी ने जेब से पायल निकाली और उसे अपने सामने हाथ में लटका कर देखने लगा। ये पायल किसकी हो सकती है और इतनी भीड़ में आखिर ये उसे ही क्यों मिली ? पृथ्वी इन्ही सब सवालो में उलझता जा रहा था। उसने पायल को अपने बैग के सेफ पॉकेट में रखा और बिस्तर पर लेट गया। कुछ देर बाद ही उसकी आँखे मूंदने लगी। उसने कपडे भी नहीं बदले और ऐसे ही सो गया।

नकुल रिया से बात करके वापस आया तो पृथ्वी को चैन से सोया देखकर कहा,”हाह ! यहाँ आने के लिए कितने नाटक कर रहा था और अब देखो कितने चैन से सो रहा है , मुंबई में कभी इतने सुकून से सोया है,,,,,,,,,,,,,,बिल्कुल नहीं सोया होगा , बस यही सुकून देने के लिए तो तुझे यहाँ लाया था,,,,,,और देखना जब तू बनारस से मुंबई वापस जाएगा ना तो तू बदल जाएगा पृथ्वी,,,,,,,,ये शहर ऐसा ही है हमारे उस दर्द को भी खींच लेता है जिसे हम सबसे छुपाकर रखते है”


नकुल प्यार से सोये हुए पृथ्वी को देखता रहा और फिर खुद भी उसके बगल में आकर लेट गया और नींद के आगोश में चला गया।

( पृथ्वी को मिली वो पायल क्या अवनि की थी या फिर किसी और की ? क्या सिद्धार्थ और पृथ्वी टकराएंगे एक दूसरे से ? क्या सुरभि अवनि को बताएगी पृथ्वी के बारे में या खुद पड़ जाएगी उसके प्यार में ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” मेरे साथ )

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संजना किरोड़ीवाल

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