Pasandida Aurat – 23
Pasandida Aurat – 23

पृथ्वी , अवनि और सिद्धार्थ तीनो इस वक्त बनारस में थे और तीनो ही एक दूसरे से अनजान थे हालाँकि अनजाने में तीनो एक पल के लिए साथ थे पर अजनबी बनकर , इन तीनो को मिलाने के लिए महादेव ने बनारस ही क्यों चुना ये तो सिर्फ महादेव जानते थे। एक तरफ उनके प्रेम में पूर्ण रूप से समर्पित अवनि थी , एक तरफ अपने स्वार्थो की पूर्ति करने के लिए महादेव में विश्वास रखने वाला सिद्धार्थ तो एक तरफ इन सब में विश्वास ना करने वाला पृथ्वी,,,,,,,,,,,!!”
अवनि और सुरभि बातें करते हुए अस्सी घाट चली आयी और ऊपर सीढ़ियों पर आ बैठी। सुरभि ने अवनि से वही बैठने को कहा और खुद उसके लिए चाय लेने चली गयी। वह दो कुल्हड़ चाय लेकर आयी और अवनि के बगल में बैठकर एक कुल्हड़ उसकी तरफ बढाकर कहा,”अब तुम इत्मीनान से यहाँ बैठकर अपने पसंदीदा शहर को देख सकती हो अवनि , यहाँ तुम्हे कोई परेशान नहीं करेगा”
“इसके लिए मैं तुम्हारा जितना शुक्रिया करू कम होगा सुरभि”,अवनि ने सुरभि की तरफ देखकर कहा
“अगर तुम्हे सच में मेरा शुक्रिया अदा करना ही है तो फिर आज “काशी विश्वनाथ” दर्शन के समय तुम मेरे साथ साड़ी पहनोगी वो भी बालों में सफ़ेद गजरे के साथ और दर्शन के बाद हम बनारस की गलियों में अपनी अच्छी अच्छी फोटोज लेंगे , मैंने इंस्टाग्राम पर देखा था”,सुरभि ने बच्चो की तरह खुश होकर कहा
अवनि ने सुना तो हसने लगी और कहा,”अच्छा बाबा ठीक है लेकिन सबसे पहले हम लोग “काल-भैरव” मंदिर जायेंगे”
“वहा क्यों ?”,अवनि ने पूछा
“क्योकि वे बनारस के कोतवाल है और उनकी परमिशन के बिना तुम बनारस में नहीं रह सकती , समझी”,अवनि ने कहा
“जी मैडम जी समझ गयी आपसे ज्यादा भला यहाँ के बारे में कौन जान सकता है ? अभी आपकी नस काटकर देखी जाये तो खून की जगह बनारस बहने लगेगा”,सुरभि ने एक्टिंग करके कहा तो अवनि खिलखिलाकर हसने लगी। सुरभि की बात पर अवनि एक बार हंसी तो बस हँसते ही चली गयी , हँसते हुए वह इतनी प्यारी लग रही थी कि अवनि भी प्यार से उसे देखने लगी और कहा,”अवनि ! तुम हमेशा ऐसे ही खुश रहा करो ना , हँसते हुए कितनी प्यारी लगती हो”
अवनि ने सुना तो मुस्कुराई और सामने बहती माँ गंगा को देखकर कहा,”इस शहर में आकर मैं अपना हर दुःख भूल जो जाती हूँ सुरभि , इस शहर में उदास होने की मेरे पास कोई वजह ही नहीं होती”
“फिर तो इस बार मैं बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना करुँगी कि वो तुम्हे हमेशा के लिए इस शहर में बुला ले और अपनी शरण में रखे”,सुरभि ने कहा
चाय खत्म होने के बाद दोनों कुछ देर वही बैठी रही और फिर उठकर होटल के लिए निकल गयी क्योकि इसके बाद उन्हें दर्शन करने भी जाना था और जैसा कि सुरभि ने कहा था कि आज वो दोनों साड़िया पहनने वाली है और लड़कियों को सजने सवरने में कितना वक्त लगता है ये आप सब जानते ही है।
नकुल के पीछे भागते हुए पृथ्वी “हरिश्चंद्र घाट” तक चला आया। हरिश्चंद्र घाट, बनारस का एक प्राचीन श्मशान घाट है, जिसका नाम राजा हरिश्चंद्र के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिए स्वयं को इसी घाट पर एक ब्राह्मण को बेच दिया था। यह घाट काशी के दो प्रमुख श्मशान घाटों (हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका) में से एक है और सत्य, भक्ति और त्याग के महत्व का प्रतीक है। घाट पर जलती चिताओं को देखकर पृथ्वी के कदम ठहर गए और नकुल थोड़ा आगे चला गया।
जलती चिताओं के आस-पास लोग खड़े थे जिन्हे देखकर लग रहा था जैसे वो मरने वाले के रिश्तेदार हो। पृथ्वी ने देखा अंतिम संस्कार के बाद भी लोग वहा सामान्य थे। ना वहा मौजूद लोगो के चेहरों पर दुःख के भाव थे ना ही कोई रो रहा था उलटा सब खुश थे मुस्कुरा रहे थे और दूसरे अंतिम संस्कारो को लेकर जल्दी कर रहे थे। एक घाट से दूसरे घाट जाने वाले लोग वही से होकर गुजर रहे थे ना कोई डर ना ही किसी तरह की झिझक ,, वही घाट के पास में एक ऊँचे से सीढ़ीनुमा मंदिर में कुछ साधु सन्यासी बैठकर पूजा कर रहे थे।
पृथ्वी पहली बार ये सब देख रहा था , उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे और वह एकटक सब देखे जा रहा था। तभी उसकी नजर बुझी हुई चिता के पास खड़े बाबा पर पड़ी जिनके शरीर पर कपड़ो के नाम पर बस एक छोटा कपड़ा था जिस से गुप्त अंग ढका जा सके। पृथ्वी ने खुद को देखा जिसने गर्म इनर , उस पर बढ़िया शर्ट और उस पर भारी भरकम मोटा जैकेट पहना था और फिर भी उसे अपनी ठण्ड भगाने के लिए बार बार अपने हाथो को आपस में रगड़ना पड़ रहा था।
पृथ्वी उस बाबा को देख ही रहा था कि उसकी आँखे हैरानी से फ़ैल गयी जब उसने देखा वही बाबा बुझी हुई चिता से राख उठाकर अपने शरीर पर मलने लगा है। पृथ्वी बड़बड़ाते हुए पलटा,”हाह ! कितना अजीब शहर है ?”
पृथ्वी जैसे ही पलटा अपने सामने खड़े बाबा को देखकर गिरते गिरते बचा , उसका दिल जोरो से धड़कने लगा और हाथ ठन्डे पड़ गए। उसके सामने वही बाबा खड़े थे जिन्हे कुछ देर पहले उसने चिता के पास खड़े देखा था
पृथ्वी कुछ कहता इस से पहले बाबा ने गंभीर स्वर में कहा,”अजीब ये शहर नहीं बल्कि यहाँ आने वाले लोग होते है। सम्पूर्ण संसार में बस यही शहर है जो सत्य है बाकी सब भरम है,,,,,,,,!!”
पृथ्वी ने सुना तो ख़ामोशी से बाबा को देखने लगा। बाबा ने अपने हाथ पर लगी भस्म को पृथ्वी के ललाट पर लगाया और कहा,”ये जो तू देख रहा है वही आखरी सत्य है सबको यही आना है और ख़ाक हो जाना है। तुझे हैरानी इस बात कि है न कि यहाँ लोग अपने करीबी लोगो को खोने के बाद भी खुश क्यों है ?
तो ये शहर ही ऐसा है यहाँ “मौत” ही सबसे बड़ा जश्न है। काशी हर किसी को नहीं अपनाती और जिसे एक बार अपना ले उसे फिर कभी खुद से दूर नहीं करती,,,,,,अजीब कहता है , अजीब तो वो है जो तेरे अंदर चल रहा है , जो जीवन से जा चुका उस से जुड़ा है अरे उस आगे बढ़कर देख जीवन कितना खूबसूरत है,,,,,,,,!!”
पृथ्वी ने महसूस किया कि जैसे ही बाबा ने उसे छुआ उसकी धड़कने एकदम से सामान्य हो गयी है , मन एकदम से शांत , ना उसे ठंड का आभास हो रहा था , वह बाबा की बाते सुनकर हैरान था आखिर एक अनजान आदमी उसके अंदर कैसे झांक सकता है ?
पृथ्वी अब भी खामोश था ये देखकर बाबा ने उसकी आँखों में देखकर कहा,”तेरे जीवन में बहुत उथल-पुथल मचने वाली है , एक तूफान आएगा जो सब बदलकर रख देगा। तू जो चाहेगा वो तुझे मिलेगा लेकिन आखरी साँस तक लड़ना पडेगा , इस भरमजाल के खिलाफ खड़े होना पडेगा और जो चाहता है उसे पाने के लिए संघर्ष करना पडेगा , अगर कर लिया तो वो भी तेरा होगा जो तेरी किस्मत में नहीं है”
कहते हुए बाबा आसमान की तरफ देखने लगा , पृथ्वी ने आँखे बंद कर ली उसे इस वक्त कुछ महसूस नहीं हो रहा था वह सुन्न हो चुका था तभी किसी ने आकर उसकी बांह को छूआ , पृथ्वी ने आँखे खोली सामने नकुल खड़ा था। पृथ्वी ने इधर उधर देखा उसे बाबा कही नजर नहीं आया। पृथ्वी को परेशान देखकर नकुल ने कहा,”ए पृथ्वी ! क्या हुआ तुझे ? किसे ढूंढ रहा है और तू यहाँ क्या कर रहा है ? चल आ चलते है,,,,,,,,,,!!”
पृथ्वी नकुल के साथ वहा से चल पड़ा। उसके जहन में अभी भी बाबा की कही वो सब बाते चल रही थी और नकुल को ये सब बताकर पृथ्वी उसे परेशान करना नहीं चाहता था। दोनों घाट से बाहर आये और फिर पैदल ही होटल की तरफ चल पड़े। नकुल अपने फोन में देखते देखते चल रहा था हालाँकि पृथ्वी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योकि उसके हिसाब से तो नकुल को इस शहर के बारे में सब पता था। रास्ते में पृथ्वी को भूख लगी एक इडली वाले की दुकान देखकर पृथ्वी उसके सामने रुक गया। नकुल भी उसके पास चला आया।
ये दुकान शिवाला में अपनी इडली और चटनी के लिए काफी फेमस थी और सुबह सुबह यहाँ काफी भीड़ भी थी। पृथ्वी ने दो प्लेट देने को कहा और लेकर साइड में चला आया। एक प्लेट उसने नकुल की तरफ बढ़ा दी और दूसरी खुद लेकर खाने लगा। पृथ्वी ने जैसे ही एक निवाला खाया उसने महसूस किया आज से पहले इतनी अच्छी और मुलायम इडली उसने नहीं खायी थी और चटनी का तीखापन और हलकी मिठास ने तो पृथ्वी को उसका दीवाना ही बना दिया था।
“भाई ! ये इडली कितनी सॉफ्ट है यार”,नकुल ने कहा
“हाँ ! मैं हैरान हूँ इस शहर में इतना अच्छा खाना भी मिल सकता है”,पृथ्वी ने खाली प्लेट को साइड में रखकर कहा
“अरे यार ! अभी तूने खाया ही क्या है अभी तो बहुत कुछ है यहाँ , तू खायेगा ना दीवाना हो जाएगा”,नकुल ने भी प्लेट रखकर कहा
पृथ्वी मुस्कुराया और पैसे देने चला गया , उसने जब पैसे दिए तब ज्यादा हैरानी हुई क्योकि दो प्लेट इडली का दाम सिर्फ 50 रूपये था यानि एक प्लेट मात्र 25 रूपये की थी। इतना सस्ता और टेस्टी खाना तो पृथ्वी पहली बार खा रहा था।
इसके बाद दोनों होटल के लिए निकल गए।
केदार घाट पर बैठे सिद्धार्थ को काफी वक्त हो चुका था लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह कहा जाये ? क्या करे ? वह अकेला आया था और उसके पास बात करने वाला भी कोई नहीं था। ऐसा नहीं था कि सिद्धार्थ बुरा इंसान था बल्कि उसमे कुछ कमिया था जिन्हे एक सही इंसान के जरिये दूर किया जा सकता था जिसके बाद सिद्धार्थ एक बेहतर इंसान बन सकता था लेकिन वो सही इंसान अभी तक उसकी जिंदगी में नहीं आया था।
सिद्धार्थ खोया हुआ सा पानी को देख ही रहा था कि तभी एक सन्यासी बाबा आकर उसके बगल से गुजरे और नीचे आकर स्नान करने लगे। नहाकर उन्होंने सूर्य को अर्घ दिया और वापस जाने के लिए जैसे ही मुड़े नजर सिद्धार्थ पर चली गयी
“का बात है इत्ता परेशान काहे हो ?”,सन्यासी ने पूछा
उनकी आवाज से सिद्धार्थ की तन्द्रा टूटी और उसने कहा,”कुछ नहीं बाबा , आप मेरी परेशानी नहीं समझेंगे”
“अरे हम नाही समझे है पर उह्ह तो समझे है,,,,,,,,हिया आओ गंगा मा दुइ डुबकी लगाओ और परेशानियों को बहा दो,,,,,,,,,जे शहर उदासियों के लिए नाही बना है बबुआ हिया तो आदमी दुःख मा भी जश्न मनावत है,,,,,,,,,,आवा गंगा स्नान करा”,सन्यासी ने कहा
सिद्धार्थ को ना जाने क्या हुआ उसने सन्यासी की बात मान ली , अपना जैकेट निकालकर रखा और बाकी कपडे पहने ही गंगा में उतर गया , हाथ जोड़े , आँखे मुंदी और पानी में पहली डुबकी लगायी तो नंदिनी का ख्याल आया और सिद्धार्थ पानी से ऊपर आया। बगल में खड़े सन्यासी ने उसके सर पर हाथ रखा और दूसरी डुबकी लगवाई तो दूसरी बार उसे अपनी नौकरी और अपने बॉस का धोखा याद आया , जैसे ही सिद्धार्थ ने तीसरी डुबकी लगाईं उसे अपने माँ-बाप का ख्याल आया और उसने अपनी आँखे खोली।
उसकी बड़ी बड़ी पलकों से पानी टपक रहा था , उसने देखा सन्यासी बाबा नहाकर अपनी लुटिया हाथ में उठाये सीढिया चढ़कर ऊपर जा रहे थे। सिद्धार्थ उन्हें देखकर चिल्लाया,”अब मैं कहा जाऊ ?”
सन्यासी पलटे और कहा,”बाबा की नगरी मा आकर पूछत रहा कहा जाए ? अबही भी मन मा कोनो विचार है तो जा काल-भैरव के दर्शन करा और ओकरे बाद काशी विश्वनाथ चला जा ,, जो गलती किये रहा ओह्ह की माफ़ी मांग और समर्पण कर दे , बाबा सब अच्छा करे है,,,,,,,,,,,महादेव”
सिद्धार्थ वही खड़ा रहा और बाबा वहा से चले गए। ठण्ड का अहसास हुआ तो सिद्धार्थ पानी से बाहर आया और अपना जैकेट हाथ में उठाकर होटल की तरफ निकल गया। होटल आकर उसने कपडे बदले और तैयार होकर “काल-भैरव” मंदिर के लिए निकल गया। उसने पीले रंग का कुर्ता और जींस पहनी थी , बालों में जेल लगाकर उन्हें सेट किया था , महंगे परफ्यूम की खुशबु से वह महक रहा था , कलाई पर महंगी घडी पहनी , अपना फोन और पर्स जेब में रखा और कमरे से बाहर चला आया। बाहर आकर उसने एक रिक्शा वाले से “काल-भैरव” चलने का पूछा और उसमे आ बैठा।
अवनि और सुरभि ने बहुत ही सुन्दर बनारसी साड़िया पहनी थी। अवनि की साड़ी सफ़ेद रंग की थी जिसका बॉर्डर लाल था और वही सुरभि ने हलके हरे रंग की साड़ी पहनी थी जिसका बॉर्डर गहरा गुलाबी था। दोनों ने कानों में बड़े बड़े झुमके पहने। अवनि के बाल लम्बे और घने थे तो उसने सीधी मांग निकालकर अपने बालों का जुड़ा बना लिया और अवनि ने खुशबूदार मोगरे के फूलो का गजरा जुड़े के चारो और लपेट दिया। अवनि ने आँखों में गहरा काजल , होंठो पर लिपस्टिक लगाई और ललाट पर एक छोटी काली बिंदी चिपका ली जिसने उसकी खूबसूरती को और बढ़ा दिया।
सुरभि ने भी आँखों में काजल के साथ आई लाइनर भी लगाया और होंठो पर लिपस्टिक लगा ली उसे बिंदी लगाना कम पसंद था , उसके बाल छोटे थे इसलिए उसने खुले बालों में ही क्लिप्स के सहारे गजरा लगाया और परफ्यूम लगाते हुए अवनि की तरफ पलटी तो देखा बिस्तर पर बैठी अवनि अपने पैर में पायल पहन रही है। सुरभि ने देखा तो उसके पास आकर कहा,”ओह्ह्ह अवनि ! अब तो तुम्हे इन पायलों को साइड रख देना चाहिए , देखो ना ये कितनी पुरानी हो चुकी है और तुम इन्हे यहाँ बनारस भी ले आयी”
अवनि ने पायल का हुक बंद करने की कोशिश करते हुए कहा,”जरूर रख देती अगर ये मेरे 18 वे जन्मदिन पर पापा ने गिफ्ट ना की होती , उनकी एक यही तो निशानी है मेरे पास बाकि सब तो मैं उसी घर में छोड़ आयी हूँ”
सुरभि ने सुना तो उसका मन उदास हो गया लेकिन ये कहते हुए अवनि के चेहरे पर ना उदासी थी ना ही दुःख के कोई भाव वह बस पायल को बंद करके की कोशिश कर रही थी। सुरभि नीचे बैठी और अपने हाथो से उस पायल के हुक को अपने हाथो से लगाकर कहा,”फिर तो ये बहुत अनमोल है तुम इन्हे रोज पहना करो,,,,,,,और हमेशा सम्हालकर रखना”
अवनि मुस्कुरा दी और उसके बाद दोनों होटल से बाहर चली आयी , उन्होंने सामने से गुजरते रिक्शा को रोका और उसे “काल-भैरव” मंदिर चलने का कहकर उसमे आ बैठी और रिक्शा आगे बढ़ गया।
नकुल के जिद करने पर पृथ्वी ने वही कुरता पजामा पहन लिया जो इस दिवाली लता ने उसके लिए खरीदा था। सफ़ेद रंग का चिकनकारी कुरता और उसके नीचे सफ़ेद चूड़ीदार पजामा। पृथ्वी ने शीशे में खुद को देखा और कहा,”तू क्यों मेरा मजाक बना रहा है , ये पहनकर मैं बाहर जाऊ , ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी शादी में आया हूँ,,,,,,,!!”
“बहुत अच्छा लग रहा है,,,,,,,,अब चल”,नकुल ने अपने गले में दुपट्टा डालकर उसका एक हिस्सा कंधे पर डालकर कहा। पृथ्वी ने देखा नकुल उस से भी ज्यादा तैयार हुआ है तो अफ़सोस में अपना सर हिलाया और उसके साथ होटल से बाहर चला आया। बाहर आकर नकुल परेशान सा कभी सामने रास्तो को देखता तो कभी अपने फोन को , पृथ्वी पिछले पांच मिनिट से बस उसे ही देख रहा था और आखिरकार उसके सब्र का बांध टूट गया और उसने कहा,”आखिर तुम मुझे बताओगे हमे जाना कहा है”
“यार किताब में तो यही लिखा था कि अस्सी से 5 किलोमीटर पश्चिम की तरफ तरफ चलेंगे तो “काल-भैरव” मंदिर पहुँच जायेंगे”,सोच में डूबा नकुल बड़बड़ाया
“किताब में लिखा है ? तुम यहाँ पहली बार आये हो ?”,पृथ्वी ने हैरानी से पूछा
“हाँ,,,,,,,बट डोंट वरी किताब में सब जानकारी है कैसे कहा घूमना है ?”,नकुल ने आराम से कहा
पृथ्वी ने अपना सर पकड़ लिया और फिर नकुल की गर्दन अपनी बांह में दबाकर गुस्से से कहा,”तुम एक बेकार सी किताब के भरोसे इतनी दूर चले आये,,,,!!”
नकुल को गरियाने और लतियाने के बाद पृथ्वी ने सामने से गुजरते ऑटो को रोका और उसे “काल-भैरव” मंदिर चलने को कहा और नकुल के साथ वहा से निकल गया।
( क्या सिद्धार्थ करेगा अपनी गलतियों के लिए महादेव के सामने खुद को समर्पित ? क्या अवनि विश्वास जी की दी उन पायलों को सम्हालकर रख पायेगी ? क्या नकुल और पृथ्वी घूम पाएंगे बनारस या भटक जायेंगे इस शहर में ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” )
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संजना किरोड़ीवाल
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