Pasandida Aurat – 22
Pasandida Aurat – 22

सिद्धार्थ के घर , सिरोही
सुबह सुबह सिद्धार्थ को तैयार होते देखकर गिरिजा ने कहा,”सिद्धू ! तुम कही जा रहे हो क्या ?”
“हाँ मम्मी ! मैं दो दिन के लिए बनारस जा रहा हूँ , पंडित जी ने भी कहा था मुझसे वहा जाने के लिए तो सोचा एक बार दर्शन कर आता हूँ”,सिद्धार्थ ने कहा
“हाँ लेकिन तुमने अचानक जाने का प्लान बना लिया मुझसे और तेरे पापा से कहा होता तो हम भी साथ चलते”,गिरिजा ने सिद्धार्थ के बिस्तर पर बिखरे कपड़ो को उठाकर समेटते हुए कहा
“आपको और पापा को अगले साल साथ लेकर चलूँगा अभी तो मैं अकेले ही जा रहा हूँ,,,,,,!!”,सिद्धार्थ ने कहा
“हाँ कोई बात नहीं और गरम कपडे रखे ना तुमने देखो इस वक्त वहा काफी ठण्ड होगी”,गिरिजा ने कहा
“मैंने सब रख लिया है मम्मी आप बस मेरे लिए नाश्ता बना दीजिये मैं बस खाकर निकलूंगा 9 बजे बस है”,सिद्धार्थ ने कहा
गिरिजा सिद्धार्थ के साथ कमरे से बाहर चली आयी। सिद्धार्थ ने अपने पापा को बनारस जाने के बारे में बताया तो उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं जताई और साथ ही उसे कुछ मंदिरो के दर्शन करने को भी कहा। सिद्धार्थ सोफे पर आ बैठा और गिरिजा ने उसकी पसंद के मेथी के पराठे , चटनी , अचार और दही के साथ परोस दिए। सिद्धार्थ खाने लगा और जगदीश जी भी चाय पीते हुए अपना सुबह का अखबार पढ़ने लगे।
नाश्ता करके सिद्धार्थ ने गिरिजा जगदीश जी के पैर छुए और अपना सामान लेकर घर से निकल गया। सर्दियों का मौसम था इसलिए कपडे भी ज्यादा हो गए और सिद्धार्थ को एक छोटे सूटकेस के साथ एक बैग और लेना पड़ा जिसमे उसका जरुरी सामान और कुछ कपडे थे। उसने जो बस बुक की थी उसकी लोकेशन पर पहुंचा और अपनी स्लीपर सीट पर कब्जा जमा लिया। सिद्धार्थ को पढ़ने का शौक था लेकिन वह किताबे कम और फोन में ही कुछ न कुछ पढ़ना पसंद किया करता था।
उसने एक फिक्शन स्टोरी का pdf निकाला और पढ़ने लगा। सिद्धार्थ का सफर शुरू हो चुका था और कुछ ही देर में बोर होकर उसने फोन साइड में रख दिया और आँखे मूंद ली आखिर 24 घंटे का ये सफर उसे इसी बस से जो करना था।
जोधपुर रेलवे स्टेशन
अवनि और सुरभि भागते हुए प्लेटफॉर्म पर पहुंची और देखा बनारस जाने वाली ट्रेन सामने खड़ी है तो दोनों ने राहत की साँस ली और अपना कोच देखकर उसमे चढ़ गयी। सुरभि ने सीटे देखी दोनों को आमने सामने लोअर सीट मिली थी ये देखकर सुरभि और खुश हो गयी। दोनों ने सीट के नीचे अपना सामान रखा और खिड़की के पास आमने सामने आ बैठी। अवनि के चेहरे पर चमक और होंठो पर मुस्कुराहट देखकर सुरभि ने कहा,”अवनि ! तुम खुश हो ना ?”
“थैंक्यू सुरभि , ये ख़ुशी और होंठो पर मुस्कुराहट तुम्हारी वजह से है,,,,,,,!!”,अवनि ने कहा
“अरे बाबा ठीक है कितना थैंक्यू बोलोगी ? तुम्हारे चेहरे पर ये ख़ुशी देखने के लिए ही तो मैंने बनारस चुना वरना घूमने के लिए तो मैं कही भी जा सकती थी”,सुरभि ने कहा
“अगले साल तुम जहा कहोगी वहा चलेंगे”,अवनि ने खुश होकर कहा
“पक्का ? पलट तो नहीं जाओगी कही तुम अगले साल फिर बनारस चली आओ”,सुरभि ने कहा जिसे अवनि के बनारस प्रेम के बारे में अच्छे से पता था
“मैं तो हमेशा के लिए वहा ठहर जाना चाहती हु सुरभि , वो सिर्फ शहर है बल्कि वो अहसास है जिसे मैं ताउम्र खुद में ज़िंदा रखना चाहती हूँ”,अवनि ने खोये हुए स्वर में कहा
“तुम और तुम्हारा बनारस प्रेम , तुम बनारस में ही अपने लिए कोई अच्छा सा लड़का क्यों नहीं ढूंढ लेती , फिर हमेशा के लिए बनारस में रहने को भी मिल जाएगा और तुम्हारी जिंदगी में एक तुम्हारा ख्याल रखने वाला भी कोई होगा”,सुरभि ने आलथी पालथी मारकर बैठते हुए कहा
“तुम्हे लड़को और शादी के अलावा कुछ नहीं दिखता क्या ?”,अवनि ने सुरभि को एक मीठी सी झिड़की देकर कहा
“मेरा ना बाय गॉड ड्रीम है अवनि एक शानदार शादी का , फूलो से सजा मंडप हो , हर तरफ जगमगाती लाइट्स हो , आसमान में रॉकेट ही रॉकेट और उनकी रौशनी हो , आसपास लोगो की भीड़ हो और ऑरेंज कलर का महंगा और डिजायनर लहंगा पहनकर उस दिन मैं सबसे सुन्दर दिखू”,सुरभि ने एक्साइटेड होकर कहा लेकिन वह ये भूल गयी कि अवनि कुछ वक्त पहले ही एक बुरे अहसास से गुजर चुकी है।
सुरभि की बाते सुनकर अवनि की आँखों के सामने अपनी शादी की शाम आ गयी जब वह भी दुल्हन के जोड़े में ऐसे ही मंडप में बैठी थी और उसके बाद जो हुआ वो याद आते ही अवनि की आँखे नम हो गयी। सुरभि ने कहते कहते जैसे ही अवनि को देखा उसे अहसास हुआ कि उसे अवनि के सामने ये सब बातें नहीं बोलनी चाहिए थी उसने तुरंत बात बदलकर कहा,”अच्छा अवनि , बातों बातों में मैं तुम्हे ये तो बताना ही भूल गयी , अनुज सर की वाइफ को प्यारी सी बिटिया हुई है और पता है अनुज सर ने उसका नाम क्या रखा है ?”
“क्या ?”,अवनि ने नम आँखों के साथ मुस्कुरा कर पूछा
“अवनि,,,,,,,!!”,सुरभि ने मुस्कुरा कर कहा
अवनि ने सुना तो मुस्कुरा उठी उसे मुस्कुराते देखकर सुरभि ने कहा,”पूरी कोचिंग में तुम अनुज सर की फेवरेट स्टूडेंट थी और देखो अपनी फेवरेट स्टूडेंट का नाम उन्होंने अपने सर आँखों पर रख लिया”
“सर बहुत अच्छे है सुरभि , कभी उदयपुर आयी तो उनसे और उनकी बिटिया से मिलने चलेंगे”,अवनि ने कहा
“कभी क्यों इस मकरसंक्रांति उदयपुर आ जाओ , अपने घर ना सही अवनि पर वहा एक घर और है जहा तुम जब चाहो तब आ सकती हो,,,,,,,,,,!!”,सुरभि ने अवनि की तरफ देखकर प्यार से कहा
“नहीं सुरभि जब तक पापा मुझे माफ़ नहीं कर देते मैं उदयपुर नहीं आउंगी,,,,,,,,मुझे यकीन है वो एक दिन मुझे फोन करेंगे और घर आने के लिए कहेंगे तब मैं उदयपुर जरूर आउंगी”,अवनि ने कहा
सुरभि इसके आगे कुछ बोल ही नहीं पायी , वह अवनि से और बातें करती इस से पहले उसका फोन बजा और सुरभि अवनि को वही छोड़कर फोन कान से लगाए साइड में चली गयी।
अवनि समझ गयी फोन किसका था इसलिए कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा कर अपने बैग से किताब निकाली और अपने बालों को समेटकर उनमे क्लेचर खोंस लिया और किताब खोलकर पढ़ने लगी , ये अवनि की पढ़ी अधूरी किताब थी जिसे पूरा करने का सबसे अच्छा वक्त यही था। ट्रेन अपनी गति से दौड़े जा रही थी और अवनि किताब पढ़ने में मग्न थी ,उसके चेहरे पर झूलती बालों की लटें यहाँ वहा झूल रही थी जिनका अहसास अवनि को नहीं था होता भी क्यों लटें जब उसे तंग करती तो कही से हवा का एक झोंका आता और उन लटों को पीछे कर देता।
पनवेल रेलवे स्टेशन , महाराष्ट्र
प्लेटफॉर्म पर खड़ा नकुल पृथ्वी को मना रहा था और आखिरकार पृथ्वी मन मानकर बनारस जाने के लिए तैयार हो गया। ट्रेन ने हॉर्न दे दिया था वह बस चलने वाली थी। नकुल पृथ्वी के साथ 2nd AC कोच के डिब्बे में चढ़ा और दोनो अपनी बर्थ पर चले आये। दोनों को साइड लोअर और अप्पर बर्थ मिली थी। पृथ्वी को नेचर से बहुत प्यार था इसलिए उसे लोअर बर्थ पर कब्जा जमा लिया
नकुल को अपर बर्थ पर जाना पड़ा लेकिन वह खुश था क्योकि वह ऊपर आराम से अपनी गर्लफ्रेंड रिया से रातभर बात जो कर सकता था लेकिन रात होने में अभी 12 घंटे थे इसलिए वह पृथ्वी की बर्थ पर चला आया और दोनों साथ बैठकर सफर का आनंद लेने लगे लेकिन सिर्फ पृथ्वी जानता था कि ये ट्रिप उसके लिए कितनी बोरिंग होने वाली थी।
अगला दिन , सुबह 7 बजे
जोधपुर से चली ट्रेन वाराणसी आकर रुकी सुरभि और अवनि ने अपना अपना सामान और बैग उठाये और ट्रेन से नीचे उतर गयी। स्टेशन से बाहर आकर अवनि ने अपनी आँखे बंद की और एक गहरी साँस ली। वही खुशबु जो पहली बार बनारस आने पर उसे महसूस हुई थी आज भी इस शहर की हवाओ में बह रही थी। सुरभि ने अपने फ़ोन में अवनि की तस्वीर ली जो कि बहुत प्यारी आयी थी। स्टेशन से बाहर आकर सुरभि ने एक ई-रिक्शा वाले से शिवाला चलने का पूछा 100 रूपये किराये में रिक्शा वाला मान गया और दोनों सहेलिया सामान के साथ रिक्शा में आ बैठी और शिवाला के लिए निकल गयी।
सुबह के 7 बज रहे थे और पनवेल से निकली ट्रेन आख़िरकार कई घंटो के बाद बनारस पहुँच ही गयी। पृथ्वी बिल्कुल भी नहीं सोया था क्योकि ठण्ड की वजह से रातभर उसकी नाक बंद रही जिस से उसे सोने में काफी तकलीफ हुई और बार बार नींद टूट रही थी। ट्रेन जैसे ही वाराणसी जंक्शन पर आकर रुकी पृथ्वी उठा और देखा नकुल घोड़े बेचकर सोया हुआ है तो उसने उसे उठाया और फिर दोनों अपना अपना सामान लेकर स्टेशन से बाहर चले आये।
बाहर आकर पृथ्वी का मूड और खराब हो गया कहा वह गोआ के मस्त बीच देखता और कहा उसे ढेर सारे ऑटोरिक्शा वाले दिखाई दे रहे है। नकुल अपना बैग उठाये उसके बगल में आया और एक्साइटेड होकर कहा,”कैसा लगा बनारस ?”
“ये बनारस है ?”,पृथ्वी ने नकुल को गुस्से से देखकर कहा
पृथ्वी का उखड़ा हुआ मूड देखकर नकुल समझ गया इसलिए उसे बहलाने के लिए कहा,”अरे नहीं ये थोड़े है बनारस ये तो स्टेशन है असली बनारस तो आगे है , तू चल ना मैं दिखाता हूँ”
पृथ्वी के पास नकुल के साथ जाने के अलावा दुसरा कोई उपाय भी तो नहीं था वह बैग उठाये उसके साथ बढ़ गया। नकुल ने एक रिक्शा वाले को अपने होटल का एड्रेस बताया और दोनों रिक्शा में आ बैठे। सुबह का समय था और काफी भीड़ थी। पृथ्वी ने जैकेट पहना था लेकिन ठण्ड का अहसास अभी भी हो रहा था रिक्शा एक जगह ट्रेफिक में आकर रुका तो पृथ्वी अपने हाथो को मसलते हुए उन पर फूंक मारने लगा। ठण्ड की वजह से उसके गाल लाल होने लगे थे और बाल बिखरकर ललाट पर आ रहे थे।
उसके सामने बैठ नकुल ने बढ़िया कोट पहना था साथ में टोपा ओढ़ रखा था उसे ठंड लगने का सवाल ही पैदा नहीं होता। पृथ्वी अपने हाथो को रगड़ते हुए उन पर फूक मार रहा था कि अभी एक रिक्शा आकर उनके रिक्शा के बगल रुका और यकायक ही पृथ्वी का दिल धड़कने लगा। उसी धड़कने सामान्य से तेज चलने लगी और ऐसा क्यों हुआ वह नहीं समझ पाया ?
उसने अपने बगल में खड़े रिक्शा की तरफ देखा जिसमे दो लड़किया बैठी थी , एक बातें किये जा रही थी और दूसरी अपने हाथो को आपस में रगड़ते हुए उन पर फूंक मारे जा रही थी वैसे ही जैसे कुछ देर पहले पृथ्वी कर रहा था। पृथ्वी लड़की का चेहरा ठीक से देख पाता इस से पहले लड़की दूसरी तरफ देखने लगी
पृथ्वी को खोया हुआ देखकर नकुल ने उसके पैर को थपथपाकर कहा,”क्या हुआ ?”
“अह्ह्ह्हह कुछ नहीं”,पृथ्वी ने कहा और रिक्शा से नजरे हटा ली। ये वही रिक्शा था जिसमे अवनि और सुरभि बैठी थी। सुरभि जहा शांत थी और बाते कर रही थी वही जैसे ही रिक्शा रुका अवनि का मन एक अजीब बेचैनी से घिर गया। अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए वह अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ने लगी और उन पर फूँक मारने लगी। एक अहसास जो जाना पहचाना सा लग रहा था जो आज से पहले कभी महसूस नहीं हुआ।
अवनि ने जैसे ही अपने बगल में खड़े रिक्शा की तरफ देखा उसमे बैठे लड़के ने मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया और ये पृथ्वी था जिसका चेहरा अवनि नहीं देख पायी। ट्रेफिक क्लियर हुआ और अवनि वाला रिक्शा आगे बढ़ गया। धीरे धीरे पृथ्वी वाला रिक्शा भी आगे बढ़ा और दोनों रिक्शा आगे पीछे चलने लगे लेकिन ना पृथ्वी ने अवनि पर ध्यान दिया ना ही अवनि ने पृथ्वी पर,,,,,,दोनों ही अपनी अपनी दुनिया में खोये थे। अवनि जहा बनारस को देखकर खुश हो रही थी वही पृथ्वी ये सब देखकर मन ही मन खीज रहा था कि आखिर उसने मुकुल की बात क्यों मानी ?
सिद्धार्थ भी सुबह सुबह बनारस पहुँच चुका था और बस स्टेण्ड से सीधा अपने होटल चला आया। अवनि की तरह सिद्धार्थ भी साल में एक बार बनारस आता जरूर था लें अनजाने में भी वह कभी अवनि से नहीं टकराया पर इस बार शायद उसकी किस्मत को कुछ और मंजूर था इसलिए तो इस बार अवनि भी बनारस में ही और सिद्धार्थ भी। सिद्धार्थ का होटल केदार घाट के पास ही ना था उसने सामान कमरे में रखा और घाट से पैदल ही अस्सी की तरफ चल पड़ा। सुबह के समय में भला घाट किसे पसंद नहीं आते ,
वही सुरभि और अवनि ने होटल में चेक इन किया अपना सामान रखा और सीधा शिवाला घाट चली आयी। वहा आकर उन्होंने चाय पी और फिर अस्सी की तरफ चल पड़ी आखिर 84 घाटों में अवनि का सबसे पसंदीदा घाट वही तो था। नकुल ने जो होटल बुक किया था वो अस्सी घाट से 100 कदम पहले ही एक गली में था इसलिए उसने भी पृथ्वी के साथ चेक इन किया और उसे लेकर अस्सी घाट चला आया। अस्सी पर जमा भीड़ देखकर पृथ्वी जैसे ही वापस जाने को हुआ नकुल ने उसकी बाँह पकड़ी और कहा,”चलो तुम्हे यहा की सबसे अच्छी चाय पिलाता हूँ”
पृथ्वी नकुल के साथ चला आया अस्सी घाट की सीढ़ियों के ठीक नीचे एक चाय की टपरी थी जहा काफी भीड़ थी और कई सारे लोग सीढ़ियों पर बैठकर चाय और अस्सी की सर्द सुबह का आनंद ले रहे थे। नकुल ने दो चाय ली और पृथ्वी की तरफ चला आया।
पृथ्वी ने चाय का एक घूंठ भरा और हैरान रह गया इस से अच्छी चाय उसने आज से पहले शायद ही कभी पी हो , उसने नकुल की तरफ देखा और कहा,”ये सच में अच्छी है”
“अरे भाई क्योकि ये बनारस की चाय है,,,,,,इसे ख़त्म करो फिर तुम्हे जन्नत दिखाता हूँ”,नकुल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा
सिद्धार्थ केदार घाट से अस्सी की तरफ जा रहा था और शिवाला से आगे आते आते उसका मन अचानक भारी होने लगा। उसने घाट किनारे साफ सुथरी सीढिया देखी और उन पर आ बैठा। वह उदास हो गया और दिमाग में एक साथ कई ख्याल चलने लगे। नंदिनी का प्यार , बॉस का धोखा , अवनि की वो पहली झलक , घर की जिम्मेदारियां , गाडी का लॉन और भी कई चीजे जिनकी वजह से सिद्धार्थ गहरी सोच में चला गया।
वह जिस घाट की सीढ़ियों पर बैठा था वो घाट अस्सी और शिवाला के बिल्कुल बीच में था। सिद्धार्थ से कुछ ऊपर सीढ़ियों से ही बना चौड़ा रास्ता था जहा से होकर लोग एक घाट से दूसरे घाट पैदल आ जा रहे थे।
नकुल पृथ्वी को अस्सी घाट से कुछ आगे लेकर आया और सामने बहती माँ गंगा की तरफ इशारा करके कहा,”ये देखो ये है बनारस”
पृथ्वी ने सामने दूर तक बहती माँ गंगा को देखा और फिर नकुल को घूरकर कहा,”अपने मुंबई में समंदर क्या कम है जो तू मुझे ये दिखाने यहां लेकर आया है,,,,,,,,तुझे तो मैं छोड़ने वाला नहीं हूँ”
कहते हुए पृथ्वी ने अपने पैर से जूता निकाला और नकुल को मारने उसके पीछे दौड़ पड़ा , नकुल अस्सी से शिवाला की तरफ भागने लगा और पृथ्वी उसके पीछे , उसी रास्ते से अवनि और सुरभि बाते करती चली आ रही थी और उसी रास्ते के बीच में बैठा था सिद्धार्थ ,, भागते भागते नकुल पृथ्वी के हाथ आ ही गया और नकुल की गुद्दी पकड़कर अवनि के बिल्कुल बगल से गुजरा लेकिन उसका ध्यान नकुल पर था इसलिए वह अवनि को देख ही नहीं पाया। वह तो नकुल को मारने में लगा हुआ था वही अवनि सुरभि को वहा के घाट के बारे बता रही थी।
एक पल ऐसा आया जब पृथ्वी , अवनि , सिद्धार्थ और ऊपर बना महादेव का मंदिर , चारों एक सीध में थे और फिर चारों चार दिशाओं में बट गए। अवनि सुरभि के साथ अस्सी घाट की तरफ बढ़ गयी जो कि पूरब दिशा में था , पृथ्वी नकुल को पीटते हुए शिवाला की तरफ बढ़ गया जो कि पश्चिम दिशा में था , सिद्धार्थ उत्तर दिशा की तरफ मुँह किये गंगा किनारे बैठा था और दक्षिण दिशा में था महादेव का मंदिर जिन्होंने इन तीनो की किस्मत लिखी थी। पर किस की किस्मत में कौन था ये या तो महादेव जानते थे या फिर आपकी लेखिका,,,,,,,,,,!!”
( आखिर क्यों धड़का पृथ्वी का दिल ऐसी लड़की के लिए जिसका चेहरा पृथ्वी देख तक नहीं पाया ? क्यों है अवनि को इस शहर से इतनी मोहब्बत है वजह है महादेव या फिर कुछ और ? कौन पहले टकराएगा अवनि से सिद्धार्थ या पृथ्वी ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” )
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संजना किरोड़ीवाल
Teeno ki kismat m kya yeh to Mahadev jante hai aur uske baad writer shahiba…jinhone apne readers ko ek baar fir sochne k liye mazboor kar diya ki wo log bhi iss saal ya agle saal Banaras zarur jaye aur waha ki fiza m bhate huye ishq ko mahsoos kare… mujhe esa lagta hai ki Avni ko phele mulakat Siddarth se hogi…quki wo bhi wahi feel krta hai Banaras ko lekar jo Avni feel krti hai… Prithvi to abhi bhi Nakul pe gussa kar rha hai…par jab Banaras goomega aur Avni se milega tab usko Avni aur Banaras dono se pyar ho jayega…lakin yeh hoga kab