Pasandida Aurat – 16

Pasandida Aurat – 16

Pasandida Aurat
Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

सिरोही , सिद्धार्थ का घर
भुआ जी को उनके घर छोड़कर सिद्धार्थ अपनी मम्मी के साथ डी-मार्ट चला आया। उसने गिरिजा के साथ मिलकर कुछ घर का सामान खरीदा और फिर घर के लिए निकल गया। घर आकर वह इतना थक चुका था कि खाना खाया और सोने चला गया। कुछ देर बाद ही सिद्धार्थ का फोन बजा और उसकी आँख खुली , उसने झुंझलाकर अपना फोन उठाया और स्क्रीन पर बॉस का नाम देखकर मज़बूरी में फोन उठाकर कहा,”हेलो सर ! गुड आफ्टरनून”
“गुड आफ्टरनून सिद्धार्थ ! कम्पनी की तरफ से एक मीटिंग के लिए तुम्हे शहर से बाहर जाना होगा।

दूसरी ब्रांच की पूरी टीम वहा पहले से मौजूद है तुम्हे बस जाकर उन्हें ज्वाइन करना है कल रात जिस प्रोजेक्ट की रिपोर्ट तुमने तैयार की थी उसकी प्रेजेंटेशन देनी है”,सिद्धार्थ के बॉस ने कहा
सिद्धार्थ ने सुना तो उसे गुस्सा तो बहुत आया कि वह अभी इसी वक्त मना कर दे लेकिन उसकी इसी जॉब से उसका घर चलता था और वह इसे छोड़ नहीं सकता था फिर भी उसने एक कोशिश करते हुए कहा,”सर क्या मेरा जाना जरूरी है ? आई मीन मैं अपनी टीम से किसी को भेज देता हूँ”


“नो सिद्धार्थ ! इट्स अ बिग प्रोजेक्ट और मैं तुम्हारे अलावा किसी पर भरोसा नहीं कर सकता सो ये तुम्हे ही देखना पडेगा,,,,,,,,वैसे उदयपुर यहाँ से 130 किलोमीटर है तुम आज रात मीटिंग खत्म करके कल सुबह तक आराम से आ सकते हो , तुम्हारे टिकट्स और रुकने का सब इंतजाम कम्पनी देख लेगी।”,बॉस ने कहा
“बट सर”,सिद्धार्थ ने एक आखिरी कोशिश की


“सिद्धार्थ ! भूलो मत दिवाली के बाद तुम्हारा प्रमोशन होने के चांस सबसे हाई है और इस मीटिंग के बाद तुम इसे और बढ़ा सकते हो। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है इस बात को समझो , ओनली वन प्रेजेंटेशन एंड यू बी नेक्स्ट ब्रांच मैनेजर इन आवर कम्पनी”,बॉस ने कहा  
“कौनसी जगह बताई आपने ?”,सिद्धार्थ ने पूछा


“उदयपुर सिटी में हमारे ऑफिस की जो ब्रांच है वही मीटिंग है,,,,,,,,अभी 3 बज रहे है शाम 5 बजे उदयपुर के लिए ट्रेन है। मीटिंग की टाइमिंग और डिटेल्स तुम्हे मेरी सेकेरेट्री भेज देगी,,,,,,,,,स्टेशन पहुंचकर जस्ट टेक्स्ट मी”,बॉस ने कहा और फोन काट दिया  
सिद्धार्थ ने फोन साइड में रखा और बिस्तर से नीचे उतरकर शीशे के सामने आकर खुद को देखते हुए कहा,”मिस्टर सिद्धार्थ माथुर , इट्स टाइम टू बी अ न्यू अचीवमेंट्,,,,,,,,,,उदयपुर , क्या पता इस बार उदयपुर में तुम्हे तुम्हारी सही मंजिल मिल जाये”


सिद्धार्थ वहा से हटा कबर्ड के सामने आया और अपने कपडे निकालकर बिस्तर पर रखे। उसने बैग निकाला अपने कपडे , लेपटॉप और सभी जरुरी सामान पैक किया और नहाने चला गया ताकि उसकी नींद उड़ जाये क्योकि आज रात उसे फिर जागना था।


मौर्या Pvt Ltd कम्पनी , नवी मुंबई
शाम तक पृथ्वी ऑफिस के काम में व्यस्त रहा। कुछ जरुरी मीटिंग्स और उसके बाद कुछ ऑनलाइन मीटिंग्स में पृथ्वी इतना व्यस्त रहा कि लंच करना ही भूल गया या यू कहे उसे लंच करने का टाइम नहीं मिला। दिनभर वह बस चाय कॉफ़ी पीता रहा। आज पृथ्वी बहुत थक चुका था और शाम में जैसे ही वह जाने लगा जयदीप उसके सामने आ धमका और कहा,”हे पृथ्वी ! घर जा रहे हो ?”
“नहीं सर मैं फुटपाथ पर रहता हूँ वही जाकर अपना बिस्तर लगाऊंगा”,पृथ्वी ने चिढ़ते हुए कहा


“ओहके ! अच्छा छोडो आज मैं भी तुम्हारी साइड ही जा रहा हूँ पनवेल,,,,,,,,तो क्या तुम,,,,,,!!”,जयदीप ने कहा
“और आप चाहते है मैं आपको लेकर चलू ?”,पृथ्वी ने कहा
“अह्ह्ह तुम कितने समझदार हो,,,,,,,,ये लो मेरी गाड़ी की चाबी पार्किंग से निकालो तब तक मैं अपना बैग लेकर आया”,जयदीप ने गाडी की चाबी पृथ्वी के सामने करके कहा
“मैं आपके साथ नहीं जा रहा,,,,,!!”,पृथ्वी ने जयदीप का हाथ नीचे करके कहा


“सोच लो अगर तुम चलते हो तो मैं तुम्हारी दिवाली के बाद की एक हफ्ते वाली छुट्टिया बिना अप्रूव कर दूंगा वरना तुम्हे देने के लिए मेरे पास,,,,,,,,,,!!”,जयदीप ने इतना ही कहा कि पृथ्वी ने जयदीप के हाथ से चाबी लेकर आगे बढ़ते हुए कहा,”मैं पार्किंग के बाहर आपका इंतजार करूंगा और अगर आप 5 मिनिट में नहीं आये तो मैं गाड़ी लेकर निकल जाऊंगा”
“हाहाहाहा तुम्हे कैसे लाइन पर लाना होता है ये मैं जानता हूँ पृथ्वी,,,,,,,,!!”,जयदीप ने कहा और अपने केबिन की तरफ चला गया।

ऑफिस से बाहर आकर पृथ्वी ने जयदीप की गाड़ी निकाली और पार्किंग से बाहर चला आया। पृथ्वी ड्राइवर सीट पर बैठा था थकान उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी। उसने अपनी शर्ट की बाजू फोल्ड कर ली और शर्ट के ऊपरी दो बटन भी खोल लिए , पृथ्वी ने घडी में टाइम देखा 5 मिनिट से ज्यादा हो चुके थे लेकिन जयदीप अभी तक नहीं आया था। पृथ्वी ने गाड़ी का हॉर्न दबाया और तब तक दबाये रखा जब तक जयदीप आकर उसके बगल में नहीं बैठ गया।


“क्या कर रहे हो पृथ्वी ? तुम्हारा ये हॉर्न बाहर सबको डिस्टर्ब कर रहा है बंद करो इसे,,,,,,,,,,!!”,जयदीप ने पृथ्वी का हाथ हॉर्न से हटाकर कहा
“और आप जो मेरी शाम बर्बाद कर रहे है उसका क्या ?”,पृथ्वी ने जयदीप की तरफ देखकर कहा
“तुम्हे लगता है मैं तुम्हारी शाम बर्बाद कर रहा हूँ ? ओह्ह कम ऑन पृथ्वी वैसे भी ट्रेन में धक्के खाते हुए जाने के अलावा क्या अच्छा है तुम्हारी इस शाम में ?”,जयदीप ने सीट बेल्ट लगाते हुए कहा


पृथ्वी ने गाडी आगे बढ़ाई और कहा,”आप नहीं समझेंगे सर ! एक बोरिंग से ऑफिस में 8 घंटे की नौकरी के बाद , मुंबई की शाम हो , उस पर ट्रेन का सफर हो , ठंडी हवाएं , कानों में लगे ईयर फोन और फोन में बजता पसंदीदा म्यूजिक काफी होता है”
“तुम्हारी बातें सुनकर तो लगता है पृथ्वी तुम इस दुनिया के हो ही नहीं , अरे मुंबई जैसे शहर में रहकर तुम इतनी बोरिंग कैसे हो सकते हो ? आई मीन तुमने कभी यहाँ लाइफ स्टाइल जीया है , कभी क्लब , नाईट पार्टी गए हो,,,,,,,,,,,!!”,जयदीप ने कहा


“हम सबकी एक अलग दुनिया होती है सर जिसे हम सबसे छुपाकर रखते है और जहा हम जैसे चाहे वैसे रह सकते है,,,,,,,,,,!!”,पृथ्वी ने कहा
“मतलब तुम्हारी भी ऐसी कोई सपनो की दुनिया है जिसमे तुम खुश रहते हो”,जयदीप ने कहा
“मैं इस दुनिया में भी खुश हूँ सर”,पृथ्वी ने कहा
“ओह्ह्ह प्लीज पृथ्वी मुझे सर बुलाना बंद करो , हम अभी ऑफिस में नहीं है We are just friends,,,,,,,!!”,जयदीप ने कहा


“क्या रे जयदीप ? मैं तेरी बात नहीं मानूंगा तो तू मुझे छुट्टी की धमकी देगा , भूल मत ऑफिस के बाहर जो 10 मिनिट का ब्रेक लेकर जाता है ना वो उस बेकरी वाली के लिए होता है। अगर गलती से भी मैंने कभी तेरी बीवी को बता दिया ना तो तेरे पाव सेंक देगी वो”,पृथ्वी ने एकदम से टपोरी स्टाइल में कहा
जयदीप ने सूना तो मुंह फाड़कर पृथ्वी को देखा और कहा,”सर ही ठीक है,,,,,,,,,!!”
“जी सर , लेफ्ट या राइट ?”,पृथ्वी ने पूछा क्योकि वे पनवेल पहुँचने वाले थे  


“अह्ह्ह्ह लेफ्ट , लेफ्ट”,जयदीप ने कहा वह अभी भी पृथ्वी की इस स्प्लिट पर्सनालिटी से हैरान था। कुछ देर बाद गाड़ी एक भारी भरकम ट्रेफिक में पहुंची , पृथ्वी इस जगह को अच्छे से पहचानता था इसलिए उसने गाड़ी बेक ली और दूसर रस्ते से निकल गया। अभी कुछ दूर ही चला होगा कि एक स्कूटी पर सवार बुजुर्ग आदमी गाडी के सामने आ गया और पृथ्वी के अचानक ब्रेक लगाने से उसकी स्कूटी सीधा गाड़ी को आ लगी। अंदर बैठा पृथ्वी एकटक स्कूटी वाले को देखने लगा ये देखकर जयदीप को लगा वह स्कूटी वाले को मारने वाला है तो उसने कहा,”अह्ह्ह्ह पृथ्वी,,,,,,,,,,!!”


जयदीप आगे कहता इस से पहले ही पृथ्वी ने गाडी का दरवाजा खोला और नीचे उतरकर आदमी की तरफ बढ़ गया। जयदीप भी उसके पीछे उसे रोकने गाड़ी से नीचे उतरा क्योकि मुंबई में ऐसी छोटी मोटी भिड़ंत अक्सर देखने को मिल जाती है।
“आप ठीक है , आपको लगी तो नहीं ?”,पृथ्वी ने कहा
आदमी हैरान परेशान सा पृथ्वी को देखने लगा क्योकि अब तक पृथ्वी की जगह कोई और होता तो पक्का उसे गाली दे चुका होता क्योकि आदमी गलत साइड से आ रहा था उलटा पृथ्वी ने ब्रेक मारकर उसकी जान बचाई थी।

आदमी को घबराया देखकर पृथ्वी वापस गाडी की तरफ आया अंदर रखा पानी का बोतल उठाया और ढक्कन खोलकर बोतल आदमी की तरफ बढाकर कहा,”काका, तुम्ही काय करत आहात ? तुला दुखापत झाली तर , तू ठीक आहेस ना” ( अंकल ! आप क्या कर रहे है ? अभी आपको चोट लग जाती , आप ठीक है ना )”
“हो, मी ठीक आहे, मला माफ कर बेटा , मला थोडी घाई होती” ( हाँ ! मैं ठीक हूँ मुझे माफ़ करना बेटा मैं थोड़ा जल्दी में था )”,आदमी ने पानी पीकर बोतल पृथ्वी की तरफ बढाकर कहा


“हरकत नाही , काळजी घ्या ( कोई बात नहीं , ख्याल रखो )”,पृथ्वी ने आदमी की बांह थपथपाकर कहा और गाड़ी की तरफ बढ़ गया। जयदीप भी उसके पीछे चला आया और गाड़ी में आ बैठा। आदमी ने गाडी के आगे से स्कूटी हटाई और पृथ्वी वहा से निकल गया।

“मुझे लगा तुम उसे मारोगे ?”,जयदीप ने पृथ्वी को देखकर हैरानी से कहा
“किसलिए ? हाँ वो रोग साइड से आ रहा था और घबराहट में उसने आपकी गाड़ी पर मार दी लेकिन इसमें उस से झगड़ा करने या मारने जैसा कुछ नहीं था। वैसे भी अगर मैं उस मारता या गाली देता तो इसका गुस्सा वह घर जाकर अपने बीवी बच्चो पर निकालता , अब उसकी गलती का हर्जाना उसके घरवाले क्यों भुगते ?”,पृथ्वी ने सामने देखते हुए कहा
“मैं तुम्हे समझ नहीं पा रहा पृथ्वी”,जयदीप ने कहा क्योकि बहुत कम वक्त में उसने एक साथ पृथ्वी के कई रूप जो देख लिए थे।


“मैं भी आपको समझ नहीं पा रहा हूँ सर , आखिर आप मुझे अपने साथ लेकर क्यों आये है ?”,पृथ्वी ने चिढ़े हुए स्वर में कहा
“अभी बताता हु यहाँ से राइट ले लो,,,,,,,,!!”,जयदीप ने कहा
पृथ्वी ने गाडी राईट ली और कुछ दूर चलने के बाद जयदीप ने गाडी रोकने को कहा। पृथ्वी ने गाडी साइड में लगा दी और जयदीप के साथ गाड़ी से नीचे उतर गया। पृथ्वी ने देखा सामने कुछ ही दूर आर्ट एंड क्राफ्ट का एक बड़ा सा पांडाल लगा था जहा बाप्पा की कई मुर्तिया रखी थी।

पृथ्वी को याद आया कल “गणेश चतुर्थी” है और कल से पुरे मुंबई के साथ साथ भारत में कई जगह लोग अपने घरो में गणपति जी को रखेंगे। पृथ्वी गाडी के पास खड़ा हो गया और जयदीप गणपति लेने जैसे ही आगे बढ़ा पृथ्वी को अपने साथ ना आते देखकर कहा,”क्या हुआ तुम क्यों नहीं आ रहे ?”
“आप जाईये ना , मैं यही ठीक हूँ”,पृथ्वी ने हाथो को बांधकर पीठ गाडी से लगाकर कहा
जयदीप पृथ्वी की तरफ आया और कहा,”पृथ्वी ! क्या तुम नास्तिक हो ?”
“अह्ह्ह नहीं ये किसने कहा आपसे ?”,पृथ्वी ने चौंककर कहा


“तो फिर बप्पा की मूर्ति लेने मेरे साथ चलो ना , क्या पता इस साल वो तुम्हारी सुन ले और एक सुन्दर सुशील लड़की तुम्हारी जिंदगी में भेज दे,,,,,,,,,!!”,जयदीप ने पृथ्वी को छेड़ते हुए कहा
पृथ्वी ने जयदीप की तरफ देखा और कहा,”ये पूरी दुनिया बनाने वाले भगवान से मैं इसी दुनिया की कोई चीज या इंसान माँगने जाऊ , आपको ये कुछ अजीब नहीं लगता ? वैसे भी जो मेरा है वो मेरे पास आ जाएगा मुझे किसी से मांगने की जरूरत नहीं”
“अह्ह्ह तुमसे तो बहस करना ही बेकार है,,,,,,,,,,तुम रुको मैं अभी आता हूँ”,कहकर जयदीप वहा से चला गया और पृथ्वी वही खड़ा रहा।

ऐसा नहीं था कि पृथ्वी नास्तिक था वह बस बाकी लोगो की तरह पूजा-पाठ में बहुत ज्यादा विश्वास नहीं करता था। मंदिर जाना , घंटो वहा बैठना , अपने स्वार्थपूर्ति के लिए भगवान् को मनाना , उनसे प्रार्थनाये करना उसे उबाता था और यही वजह थी कि पृथ्वी इन सब से दूर रहता था और अपने कर्म में विश्वास रखता था। घर में कोई पूजा पाठ होता तो वह शामिल हो जाता था।


पृथ्वी जयदीप का इंतजार कर रहा था तभी अपने दोनों हाथो में बप्पा की मूर्ति थामे रुषाली उसके सामने से गुजरी , मूर्ति को उसने लाल रुमाल से ढक रखा था और उसके साथ में उसका बॉयफ्रेंड राज भी था। पृथ्वी किसी सोच में डूबा था उसने सामने से गुजरती रुषाली पर ध्यान ही नहीं दिया लेकिन रुषाली पृथ्वी को देखकर रुक गयी और उसके सामने आकर कहा,”कैसे हो पृथ्वी ?”
रुषाली की आवाज से पृथ्वी की तंद्रा टूटी उसने सामने देखा तो रुषाली को देखकर मन बेचैनी से घिर गया। रुषाली पृथ्वी को देखकर मुस्कुराई और उसे गाडी के खड़े देखकर पूछा,”तुमने गाडी ले ली ?”


“अह्ह्ह नहीं ! ये मेरे बॉस की है वो वहा है”,पृथ्वी ने पंडाल की तरफ इशारा करके कहा।
“ओह्ह्ह तो ड्राइवर हो , वैसे भी इतनी बड़ी गाड़ी लेना तुम्हारे औकात से बाहर है,,,,,,,,,राइट रुषाली ?”,राज ने रुषाली के बगल में आकर पृथ्वी का मजाक उड़ाते हुए कहा
पृथ्वी ने सुना तो उसकी भँवे तन गयी और गुस्से में आकर उसने मुट्ठी कस ली लेकिन रुषाली सामने खड़ी थी सिर्फ इसलिए उसने राज पर हाथ नहीं उठाया ना ही उसे कोई जवाब दिया।

रुषाली ने उखड़े भाव के साथ राज की तरफ देखा तो राज ने कहा,”ओह्ह्ह कम ऑन रुषाली , वैसे भी तुम्हे ऐसे मिडिल क्लास दोस्तों की जरूरत नहीं है,,,,,,,,,आओ चले”
रुषाली ने पृथ्वी की तरफ देखा तो पाया कि पृथ्वी बस एकटक उसे ही देख रहा था लेकिन मुंह से एक शब्द नहीं कहा। रुषाली वहा से चली गयी एक बार फिर वह पृथ्वी के भरे जख्मो को कुरेद कर जा चुकी थी।
जयदीप गणपति जी लेकर आये और पृथ्वी से दरवाजा खोलने को कहा। उन्होंने गणपति जी को अपनी सीट पर रखा और खुद ड्राइवर सीट की तरफ आते हुए बोले,”पृथ्वी आओ बैठो मैं तुम्हे घर तक छोड़ देता हूँ”


“थैंक्यू सर ! वैसे मेरा घर यही पास में है तो मैं चला जाऊंगा , आप परेशान मत होईये”,पृथ्वी ने बुझे स्वर में कहा
“आर यू स्योर ?”,जयदीप ने पूछा
“हाँ,,,,,,,,मैं कल आपसे ऑफिस में मिलता हूँ”,कहकर पृथ्वी ने पिछली सीट पर पड़े अपने बैग को उठाया और कंधे पर डालकर वहा से निकल गया।  

पृथ्वी कंधे पर क्रॉस बैग डाले वहा से पैदल ही घर के लिए निकल गया। हालाँकि जयदीप ने उसका वक्त बर्बाद नहीं किया था अगर वह ट्रेन से आता तब भी इसी वक्त घर पहुंचता या शायद इस से भी लेट , सूरज ढलने लगा था और शाम की वो सुनहरी किरणे बहुत ही प्यारी लग रही थी। सड़क किनारे फुटपाथ पर चलता पृथ्वी खामोश था और उदासी उसके चेहरे से टपक रही थी। कितने दिनों बाद वह थोड़ा खुश था और आज रुषाली ने उसके सामने आकर फिर से उसे कुछ पल की उदासी दे दी।

चलते चलते पृथ्वी के पैरो के नीचे कोल्डड्रिंक का एक खाली केन आया जो किसी ने पीकर फेंक दिया था। अपने मन के खालीपन और उदासी को दूर करने के लिए पृथ्वी ने उसे धीरे से लात मारी और वह कुछ आगे चला गया। पृथ्वी आगे बढ़ा और फिर लात मारी वह फिर आगे , अब पृथ्वी के साथ साथ वह डिब्बा भी उसके साथ घर जा रहा था। अन्धेरा होने लगा था और चारो तरफ लाइट्स जलने लगी थी।

पृथ्वी उस केन से खेलते खेलते सोसायटी वाली रोड पर  चला आया और सोसायटी की तरफ बढ़ गया आज फ्लेट से पहले उसे अपने घर जाना था क्योकि उसने अपनी आई से वादा जो किया था उन्हें पावभाजी खिलाने का,,,,,,,,,,,!!”
पृथ्वी आगे बढ़ता रहा और चलते चलते गुनगुनाने लगा,,,,,,,,,,,!!


सच तो है ये कि जिंदगी में तेरी कमी नहीं
और झूठ ये कि तुझसा कोई हंसी नहीं
जब जा चुकी हो जिंदगी से मेरी , तो आना क्यों बार बार है
जब दूरिया ही है दरमियान , तो क्यों कहे ये प्यार है
अब यही है दुआ आये न मुझको तेरी याद
ना दुखाये कोई दिल तुझसे पहले , ना तेरे बाद
ओह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्ह्हह
ह्म्म्मम्म ह्म्म्मम्म ह्म्मम्म्म्म
अब यही है दुआ आये न मुझको तेरी याद

( क्या सिद्धार्थ का उदयपुर जाना बदल देगा उसकी किस्मत ? क्या अवनि और सिद्धार्थ उदयपुर में एक दूसरे से टकराएंगे ? क्या पृथ्वी की जिंदगी में आएगा कभी वो पल जब ईश्वर में बढ़ेगा उसका विश्वास ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” )

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संजना किरोड़ीवाल 

Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal
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