Sanjana Kirodiwal

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मनमर्जियाँ – 77

Manmarjiyan – 77

Manmarjiyan - 77

मनमर्जियाँ – 77

गुड्डू और शगुन के दिलो में एक दूसरे के लिए भावनाये पनपने लगी थी। शीशे के सामने खड़ी शगुन गुड्डू के बारे में ही सोच रही थी और नीचे बैठा गुड्डू भी शगुन के साथ नजदीकियों के बारे में हालाँकि दोनों अभी इन भावनाओ को कोई नाम नहीं दे पाए थे पर ये अहसास बहुत खूबसूरत थे जिनसे दोनों गुजर रहे थे। शगुन ने बाल बनाये , चेहरा पोछा और फिर नीचे चली आयी। शगुन जैसे ही गुड्डू के पास आयी मिश्राइन ने किचन से आते हुए कहा,”का हुआ शगुन कही जा रही हो का गुड्डू के साथ ?”
गुड्डू ने सूना तो पलटकर कहा,”हां अम्मा उह बाहर लेकर जा रहे है इनको थोड़ी खुली हवा में”
गुड्डू ने तो सामान्य तौर पर ही कहा लेकिन मिश्राइन ने उसे सामान्य ना लेकर कहा,”हां हां सही है इस वक्त में बेचैनी और जी मिचलाना होता है , थोड़ी देर खुली हवा में जाएगी तो अच्छा लगेगा ,, लेकर जाओ”
शगुन ने सूना तो बेचारगी से गुड्डू की और देखा तो गुड्डू ने पलके झपकाकर उसे आश्वस्त रहने को कहा और मिश्राइन से कहकर शगुन के साथ वहा से चला गया। गुड्डू और शगुन को जाते देखकर मिश्राइन ने खुद से कहा,”तुम दोनों का साथ हमेशा ऐसे ही बना रहे”
गुड्डू ने बाइक स्टार्ट की और शगुन को बैठने को कहा। शगुन गुड्डू के पीछे आ बैठी और अपना दाहिना हाथ गुड्डू के कंधे पर रख लिया। गुड्डू ने बाइक आगे बढ़ा दी। दोनों खामोश , गुड्डू शगुन के सामने बहुत कम बोलता था और शगुन को उसका बोलना अच्छा लगता था। गुड्डू को खामोश देखकर शगुन ने कहा,”आपका काम कैसा चल रहा है ?’
“ठीक ही चल रहा है”,गुड्डू ने कहा
“थोड़ा टाइम लगेगा फिर धीरे धीरे सेट हो जाएगा”,शगुन ने कहा
“अच्छा अगले महीने हमे लखनऊ जाना होगा , हमाये दोस्त की बहन की शादी है तो उसकी शादी का आर्डर हमे ही मिला है”,गुड्डू ने कहा
“ये तो अच्छी बात है , कानपूर के बाहर भी लोग आपको जानने लगेंगे”,शगुन ने ख़ुशी से कहा
“हम्म तुमहू चाहो तो साथ चल सकती हो”,गुड्डू ने कुछ सोचते हुए कहा
“मैं क्या करुँगी वहा ?”,शगुन ने पूछा जबकि गुड्डू का पूछना उसे अच्छा लग रहा था
“करना का है शादी एन्जॉय करना और का ? हो सके तो हमायी हेल्प कर देना , लेकिन हां उस से पहले तुमको बनारस लेकर जाना है ,, तुम्हाये पिताजी का फोन आया था हमे उन्होंने बुलाया है”,गुड्डू ने कहा
“तो आप बनारस जायेंगे ?”,शगुन ने हैरानी से पूछा
“हां हम ही जायेंगे , शादी के बाद तुम भी मिली नहीं हो उनसे तो मिल लेना”,गुड्डू ने कहा तो शगुन के होंठो पर मुस्कराहट तैर गयी। गुड्डू ने शगुन के परिवार को अपना लिया है जानकर ही शगुन बहुत खुश थी। बाते करते हुए दोनों बाबू गोलगप्पे वाले के पास पहुंचे। बाइक रोककर गुड्डू और शगुन नीचे उतरे , बाबू ने पहली बार गुड्डू को शगुन के साथ देखा था , देखते ही समझ गया की शगुन गुड्डू की घरवाली है।
“सुनो बाबू लगाओ दुई प्लेट एक इनके लिए एक हमाये लिए और हां तीखा थोड़ा कम”,गुड्डू ने बाबू के कंधे को थपथपाते हुए कहा
“हां भैया अभी बनाते है”,बाबू ने खुश होकर कहा और स्पेशल गोलगप्पे बनाने लगा। गुड्डू उसकी बगल में खड़े होकर सुखी पपड़ी खा रहा था। शगुन की नजर गुड्डू पर पड़ी तो थोड़ा अजीब लगा उसे , गुड्डू में कई बार उसे बचपना देखने को मिल जाया करता था। शगुन दूसरी और देखने लगी , कितना अच्छा नजारा था , लाइट से चकाचौंध सड़के , दौड़ती गाड़िया और आते जाते लोग ,, उन्हें देखकर लग रहा था जैसे सब अपने में मस्त है किसी को किसी की परवाह नहीं। शगुन उन्ही में खोयी थी की बाबू की आवाज उसके कानो में पड़ी,”लीजिये भाभी”
शगुन ने प्लेट ले ली तो गुड्डू भी उसकी और चला आया और दोनों खाने लगे। शगुन ने एक पीस उठाया और खाया तो महसूस हुआ की सच में वो बहुत अच्छे थे। खाते वक्त जरा सी चटनी शगुन के होंठ के बाहर भी लग गयी गुड्डू की नजर पड़ी तो उसने बिना शगुन की इजाजत लिए ही उसे अपने अंगूठे से हटा दिया। जैसे ही गुड्डू ने छुआ शगुन का दिल धड़क उठा और वह गुड्डू की और देखने लगी ,, गुड्डू हल्का सा मुस्कुराया और पीस मुंह में ठूसते हुए कहा,”खाओ ना”
“हम्म्म”,शगुन ने कहा उसके मन में इस वक्त सैंकड़ो तितलियाँ एक साथ उड़ रही थी। दोनों ने गोलगप्पे खत्म किये और उसके बाद गुड्डू ने जेब से 100 का नोट निकालकर बाबू की और बढ़ा दिया। गुड्डू ने ऐसा जानबूझकर ही किया था खुद को शगुन की नजरो में सही दिखाने के लिए जबकि सच्चाई कुछ और थी। बाबू ने देखा तो कहा,”अरे नहीं नहीं भैया , आपसे कभी पैसे लिए है जो आज लेंगे”
गुड्डू ने सूना तो शगुन की और देखकर झेंपते हुए कहा,”मजाक कर रहा है” कहते हुए लड़के की और आता है और फुसफुसाते हुए कहता है,”अबे रख लो , काहे इज्जत का फालूदा कर रहे हो”
“भैया जे ना हो पायेगा हमसे”,बाबू ने डरते हुए धीरे से कहा
शगुन को समझ तो कुछ नहीं आया पर उसने गुड्डू के हाथ से पैसे लिए और बाबू की और बढ़ाकर कहा,”रख लीजिये” और ये कहते हुए शगुन ने गुड्डू की और देखा गुड्डू समझ गया फिर से शगुन का लेक्चर सुनना पडेगा। वह चुपचाप वहा से निकल कर बाइक की और चला गया। बाबू ने भी पैसे लिए और कहा,”आप कहती है तो रख लेते है , बस गुड्डू भैया से कुछ ना कहियेगा”
“हम्म्म ठीक है”,कहकर शगुन वहा से चली गयी। बाइक के पास आयी और आकर खड़ी हो गयी गुड्डू बाइक स्टार्ट किये खड़ा था शगुन जब नहीं बैठी तो गुड्डू ने कहा,”बइठो”
“नीचे उतरिये”,शगुन ने बिना किसी भाव के गुड्डू को देखते हुए कहा। शगुन के चेहरे को देखकर गुड्डू समझ गया उसे फिर से डांट पड़ने वाली है। वह चुपचाप नीचे उतरा और शगुन के सामने खड़ा हो गया। शगुन कुछ देर चुपचाप गुड्डू को देखती रही ओर फिर कहा,”गुड्डू जी एक बात कहे आपसे ये जो छोटे छोटे कामकाजी लोग होते है ना ये लोग अपना पेट भरने के लिए कमाते है ना की अमीर बनने के लिए ,, 10-20 रूपये के लिए ऐसे लोगो पर धौंस ज़माने से अच्छा है की हम उनसे कुछ ना ही खरीदे।”
“बाबू ने कुछो कहा तुमसे ?”,गुड्डू ने कहा
“उनके कहे बिना भी समझ आ रहा था की कैसे डरा रखा है आपने उन्हें ?”,शगुन ने कहा
गुड्डू ने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप सुनता रहा। गुड्डू की चुप्पी पर शगुन को और गुस्सा आ गया तो उसने कहा,”गुड्डू जी वो लड़का कितनी मेहनत से ये सब कमाता है और आप लोग उन्हें धौंस दिखाते है , फ्री में खाते है ,, वो आपके डर की वजह से कुछ कहता नहीं है इसका मतलब ये नहीं की आप अपनी मनमर्जी करे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी”
गुड्डू ने कुछ नहीं कहा शगुन का हाथ पकड़ा और उसे बाबू के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया और कहा,”बाबू जरा बताओ इनको तुमने हमसे पैसे काहे नहीं लिए ?”
बाबू ने गुड्डू और शगुन को देखा और फिर कहा,”भैया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
“नहीं बताओ इनको,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”,गुड्डू ने थोड़ा सख्ती से कहा और शगुन को छोड़कर बाइक की और चला गया
शगुन ने बाबू की और देखा तो बाबू ने पहले गुड्डू की ओर देखा और फिर कहने लगा,”कानपूर में आये 4 साल हो चुके है हमे , जब पहली बार आये थे तो कोई काम नहीं था हमारे पास तब गुड्डू भैया ने ही जे ठेला हमे खरीदकर दिया था और यहाँ खड़े होने की जगह भी दिलवाई। शुरू शुरू में कमाई कम होती थी तो घर चलाने में भी दिक्कत होती थी। तब गुड्डू भैया ने ही हमाये घर में खाने पीने का सामान दिया ,,हमायी बेटी पढ़ना चाहती थी पर फीस नहीं थी गुड्डू भैया आज भी उसके स्कूल का फीस देते है। इह सब बाते गुड्डू भैया किसी को भी बताने से मना किये थे क्योकि उह नहीं चाहते थे हम उनकी मदद को अहसान समझे,,,,,,,,,,,उन्होंने जो हमाये लिए किया उसके बदले में हम उन्हें कुछो नहीं दे सकते बस इसलिए कभी कभी जब वो यहाँ आते है तो उनसे पैसे नहीं लेते,,,,,,,,उन्हें गलत मत समझियेगा भाभी गुड्डू भैया थोड़े मूडी है पर उनका दिल सोने का है”
बाबू की बात सुनकर शगुन को हैरानी हुयी और गुड्डू से जो कहा उसके लिए भी बहुत बुरा लगा
बाबू की बाते सुनकर शगुन को खुद पर गुस्सा आया की बिना कुछ जाने उसने गुड्डू को इतना सब सूना दिया। शगुन धीरे धीरे चलती हुई वापस गुड्डू के पास आयी उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी गुड्डू से कुछ कहने की गुड्डू ने बाइक स्टार्ट की और बैठने को कहा। शगुन गुड्डू के पीछे आ बैठी , गुड्डू ने बाइक आगे बढ़ा दी रस्ते भर दोनों खामोश रहे , पहली बार गुड्डू शगुन के साथ बाहर आया था वो भी अच्छे मूड के साथ लेकिन शगुन ने उसे सुना दिया। खैर दोनों घर पहुंचे गुड्डू हाथ मुंह धोने वाशबेसिन की और चला गया। हाथ मुंह धोकर जैसे ही वह पलटा शगुन हाथ में छोटा तौलिया लिए खड़ी थी। गुड्डू ने अपने शर्ट की बांह से ही मुंह पोछा और ऊपर चला गया। शगुन समझ गयी गुड्डू उस से नाराज है। उसने तौलिया कुर्सी के हत्थे पर रखा और ऊपर चली आयी। ऊपर आकर देखा गुड्डू कपडे बदल चुका है और शीशे के सामने खड़े होकर टीशर्ट के बटन बंद कर रहा है। शगुन गुड्डू के पास आयी और कहा,”मुझे पता नहीं था इसलिए अनजाने में,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
शगुन अपनी बात पूरी करती इस से पहले ही गुड्डू बिना उसकी बात का जवाब दिए कबर्ड की और चला गया। शगुन को समझ आ गया की गुड्डू बहुत ज्यादा नाराज है तो वह उसके पीछे पीछे आयी और कहने लगी,”गुड्डू जी मुझे सच में नहीं पता था उन्होंने आपसे पैसे किस वजह से नहीं लिए”
गुड्डू ने सूना तो नाराजगी में पलटा और कहा,”हां हमहू तो गुंडे है ना कानपूर के जो हमाये डर की वजह से लोग हमसे पैसे नहीं लेंगे , डराते धमकाते है ना हम तो सबको की हमसे पैसा मांगोगे तो ठोक देंगे”
गुड्डू की बात सुनकर शगुन थोड़ा सहम गयी और दो कदम पीछे हट गयी गुड्डू उसे घूरे जा रहा था और फिर वापस कबर्ड खोलकर ना जाने उसमे क्या ढूंढने लगा , शायद शगुन को इग्नोर करने की कोशिश कर रहा था। शगुन कुछ देर चुप रही और फिर कहने लगी,”आपकी गलती नहीं है गुड्डू जी मैं ही आपको समझ नहीं पाई , आप इतने उलझे हुए इंसान है की कोई कब तक अपनी और से आपको समझ पायेगा। आपके और मेरे बीच इतनी बातें भी कहा होती है। पर मुझे बहुत अच्छा लगा आपने उस लड़के के लिए जो किया उस से आपका सम्मान आज मेरी नजरो में और बढ़ गया है,,,,,,,,,,,,,,मेरी बातो ने आपके दिल को ठेस पहुंचाई उसके लिए मैं सिर्फ आपसे माफ़ी माँग सकती हूँ”
गुड्डू ने सूना तो उसका दिल पिघल गया वह जैसे ही पलटा उसने देखा शगुन अपने दोनों कान पकड़कर उठक बैठक लगा रही है। गुड्डू को ये देखकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा तो उसने शगुन को रोकते हुए कहा,”इह का कर रही हो ? इह सब मत करो ना यार हमे अच्छा नहीं लग रहा है”
शगुन रुक गयी तो गुड्डू कहने लगा,”तुम्हायी भी कोई गलती नहीं है इसमें अब तुम्हाये सामने हमाये इतने कांड आ चुके है की तुमहू लगता है हम कानपूर के वो लोफर टाइप लड़के है जो दिनभर बकैती करते है , लोगो को डराते धमकाते है पर हम वैसे नहीं है शगुन , हमे घूमना फिरना पसंद है , दोस्तों के साथ देर रात बैठना गप्पे लड़ाना पसंद है , खाना खिलाना पंसद है लेकिन किसी को धौंस दिखाकर की मिश्रा जी के लड़के है हमने आज तक कुछो नहीं किया है ,हमाये पिताजी ने हमे जो सिखाया है उसे हमेशा बनाये रखने की कोशिश की है हमने फिर चाहे वो किसी का सम्मान हो या किसी से प्रेम”
शगुन ने सूना तो उसे अहसास हुआ की गुड्डू सच में बहुत अच्छा और सीधा लड़का था जो अपनी अच्छाई की वजह से परेशानियों में फंसता था। गुड्डू ने शगुन को चुप देखा तो उसकी और पलटकर कहा,”बाबू की मदद इसलिए नहीं किये की उस पर अहसान जताये या लोगो के बीच अपना नाम करे इसलिए किये क्योकि वो बहुत मेहनती था ,, आज जब उस बिटिया को स्कूल जाते देखते है तो अच्छा लगता है”
“गुड्डू जी”,शगुन ने गुड्डू की और देखकर कहा
“हम्म्म”,गुड्डू ने कहा
“आप सच में बहुत अच्छे है”,शगुन ने कहा
गुड्डू मुस्कुराया और कहा,”ये कुछ शब्द सुनने के लिए ना हमने ना जाने कितनी बार आपका लेक्चर सूना है”
“मैं लेक्चर देती हूँ”,शगुन ने गुड्डू को घूरते हुए पूछा
“अब मास्टरनी हो तो लेक्चर ही दोगी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पर इक ठो बात ध्यान रखो हमहू तुमाए स्टूडेंट नहीं है”,गुड्डू ने मुंह बनाकर कहा और बिस्तर की और चला गया। शगुन मुस्कुरा उठी और कहा,”हां पता है”
“हां बहुत कुछ पता है तुमको”,गुड्डू ने पलटकर कहा तो शगुन भी बिस्तर की और चली आयी और तकिया सही करते हुए कहा,”बहुत कुछ नहीं पर इतना पता है की आप एक बहुत अच्छे बेटे , बहुत अच्छे दोस्त , बहुत अच्छे भाई और एक बहुत अच्छे इंसान है”
गुड्डू ने सूना तो प्यार से शगुन की और देखने लगा और मन ही मन कहा,”एक दिन हम तुम्हे बहुत अच्छे पति भी बनकर दिखाएंगे शगुन”
गुड्डू को अपनी और देखता पाकर शगुन ने भँवे उचकाई तो गुड्डू ने मुस्कुराते हुए गर्दन ना में हिला दी और करवट बदलकर सो गया ! शगुन भी आकर अपनी जगह लेट गयी , उसने गुड्डू की और मुंह घुमा लिया और मन ही मन कहने लगी,”जैसे जैसे आपको जानते जा रहे है समझ आ रहा है गुड्डू जी की आप बहुत अच्छे है। आप एक अच्छे बेटे है क्योकि आपने हमेशा अपने पापा की बात का सम्मान रखा है वो भले आपको कितना भी डांटे चीखे चिल्लाये आपने कभी उन्हें पलटकर जवाब नहीं दिया ,, उनकी हर बात मानी भले उसमे आपकी ख़ुशी ना हो इतना प्यार कोई बेटा अपने पापा से शायद ही करेगा। आप एक बहुत अच्छे भाई है जिन्होंने कभी अपनी बहन पर कोई पाबन्दी नहीं रखी , उसे हमेशा बुरे लोगो की नजरो से बचाये रखा , उसे इतना प्यार दिया की वह हमेशा अपने गुड्डू भैया की माला जपती है। आप एक बहुत अच्छे दोस्त भी है गुड्डू जी और जीता जागता सबूत है गोलू भैया और रौशनी , उनकी जिंदगी में जो खुशिया है उनकी वजह भी आप ही है , दोस्तों पर जान छिड़कते है आप और अब तो मेरे भी अच्छे दोस्त बन चुके है। बाकि इंसान तो आप अच्छे है ही बस थोड़ा सा बचपना और अल्हड़पन खत्म हो जाये तो आप एक परफेक्ट इंसान होंगे,,,,,,,,,,,,,,,,,,और देखियेगा जिस दिन आपने हमारे बीच के रिश्ते को समझ लिया उस दिन आप एक अच्छे पति भी बनेंगे”
शगुन ये सब सोच ही रही थी की गुड्डू नींद में उसकी और पलटा और नींद में उसका हाथ शगुन के हाथ पर जा लगा। गुड्डू का चेहरा शगुन के चेहरे के बिल्कुल सामने था
उसकी गर्म सांसे शगुन के चेहरे को छूकर गुजर रही थी और उसी के साथ छू रहा था एक अनछुआ अहसास !! शगुन बस एकटक गुड्डू के चेहरे को देखे जा रही थी और गुड्डू इस से बेखबर सो रहा था !

Manmarjiyan - 77
Manmarjiya – 77

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संजना किरोड़ीवाल

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