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लेटते ही नींद आ गयी-08

Lette Hi Neend Aagyi-08

Lette Hi Neend Aagyi-08

नक़ाब पोश औरत के अचानक चले जाने के बाद  रमीज़ वापस अपने काम में लग जाता है , पूरे क़ब्रिस्तान में झाड़ू देकर वो अपने अम्मा- अब्बा के क़बर की मिटटी को सही कर के नहाने चला जाता है और मस्जिद में ही अपने अम्मा अब्बा के मगफिरत के लिए इमाम साहब से क़ुरआन खानी करवाता है !

माज़ी की यादें उसके ज़हन में ताज़ा रहती है के कैसे उसके अम्मा के मरते ही उसके भाइयों ने उसके साथ और भी बुरा रवैया अख्तियार कर लिया था ज़िन्दगी की रौनके अम्मा के मरते ही ख़ाक होगयी थी ! सोचते हुए रमीज़ की आँखों से बेइन्तेहाँ आँसूं बहने लगते है! 

””रमीज़ भाई कुरआन खानी तो होगयी आज आप की अम्मी के बरसी के मौके पर रमीज़ भाई यह क्या आप के आँखों में आँसू ?” इमाम साहब ने रमीज़ को रोते देख कहा !

” कुछ नहीं इमाम साहब बस ऐसे ही अपनों की याद आगयी खैर यह कुछ रुपय है आप मेरे तरफ से मस्जिद के लिए और कुछ गरीबों को दे दिजियेगा   मेरे अम्मा अब्बा के ईसाल सवाब क लिए!” रमीज़ ने आँसू पोछते हुए अपने कुर्ते की जेब से कुछ रुपय निकाल कर इमाम साहब की तरफ बढ़ाते हुए कहा !
‘’मैं गरीबों में यह रुपय तकसीम करदूँगा आगे यह बताओ अब तो कोई ऐसा वैसा वाक़िया क़ब्रिस्तान में पेश तो नहीं आरहा?” इमाम साहब ने पूछा !
”इमाम साहब क़ब्रिस्तान अन गिनत राज अपने अंदर दफ़नाये हुए है आज तो फ़िलहाल कुछ भी ऐसा वैसा नहीं हुआ  हाँ आगे और क्या क्या  होने वाला है यह हम नहीं जानते यह तो बस उस ऊपर वाले को ही पता होता है वैसे आप की बेटी की शादी का क्या हुआ आप कह रहे थे ना के उसका रिस्ता लग गया है !’’ रमीज़ ने कहा !

”बस इंतजाम में लगा हूँ कुछ रुपय घट रहे है आप तो जानते ही है के बिना दहेज़ लिये कोई भी रिस्ता नहीं करना चाहता !” इमाम साहब ने परेशान होते हुए कहा !

”आप परेशान ना हो अल्लाह बहतर मदद अता करेगा मुझसे अगर कुछ होगा तो मैं भी आप की मदद जरूर करूँगा अच्छा अब मुझे इजाजत दिजीए मैं चलता हूँ बारिश की वजह से क़ब्रिस्तान में काफी घांस उग आये है साफ़ करना है उन्हें!” रमीज़ ने कहा !

”आप का शुक्रिया मगर रमीज़ भाई जाने से पहले एक बात तो सुनते जाईये ?” इमाम साहब ने रमीज़ को रोकते हुए कहा !
”जी इमाम साहब कहिये क्या बात है ?” रमीज़ ने पूछा !
”उस लड़की को मारने वाले दूसरे आदमी ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया है उसकी दिमागी हालत कुछ सही नहीं है बार बार कहता है के उसके साथी को क़ब्रिस्तान में रहने वाली रूहों ने मारा है और अब वो उसे भी मार देंगी वो जब भी सोता है उसे एक साथ कई रूहे ख्वाब में डराती है बिलकुल ही पागलों की तरह बातें कर रहा था वो !” इमाम साहब ने कहा !

”जैसी करनी वैसी भरनी मगर इमाम साहब आप को यह सब किसने बताया !” रमीज़ ने पूछा !

”उस मरहूम लड़की के बाप ने बताया, जो भी बोलो रमीज़ भाई भले ही उनलोगों को उनके किये की सजा मिल गयी मगर एक बेक़सूर माँ बाप ने तो अपनी औलाद को खो दिया उनके उस दर्द का हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते बस खुदा सभी की बच्चियों की हिफाजत करे!” इमाम साहब ने कहा !
”इमाम साहब क़ुदरत अपने तरीके से सजा देना जानती है उन गुनाहगारों को सजा मिलनी ही थी चलिये अब मुझे इजाजत दिजिये बाद में आता हूँ वरना अँधेरा हो जायेगा और काम अधूरा रह जायेगा !” रमीज़ कहता हुआ चला जाता है !

बादल फिर से उमड़ने लगते है , हवायें भी तेज़ रफ़्तार से चलने लगते है हलकी हलकी बारिश शुरू होजाती है ! मस्जिद से मगरिब की नमाज़ पढ़ कर रमीज़ तस्बीह पढ़ते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ रहा होता है तभी उसकी नज़र फिर से उस औरत शबीना  पर पड़ती है जो उस लड़की के क़ब्र पर बैठ फिर से कुछ पढ़  रही होती है इस बार रमीज़ को थोड़ा गड़बड़ का एहसास होता है तो वो सीधा उस औरत के पास ही थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ के पीछे छुप  कर देखता है के आखिर वो किया कर रही है !

 ”इस तरह छुप कर क्या देख रहे हो आप मेरे सामने आओ !” अचानक से शबीना ने कहा !

”जी आप इस तरह इस बच्ची की कबर के पास बैठ कर क्या कर रही हो?” रमीज़ ने औरत शबीना के सामने आकर पूछा!
” सच बताऊँगी तो आप मुझे मेरा काम करने नहीं दोगे और मुझे यह भी खबर थी की आप एक ना एक दिन मेरे लिए रास्ते का कांटा बनोगे इसलिए सच बताने से पहले क्यों ना एक सौदा कर ले हम आपस में!” शबीना ने शैतानी मुस्कराहट अपने लबों पर सजाते हुए कहा !
”कैसा सौदा और आप क्या करना चाहती है आखिर?” रमीज़ ने हैरत से उस औरत को देखते हुए कहा !
”हम्म.. कुछ खास नहीं माज़ी के कुछ सवालात तुम्हारे ज़हन में चलते है ना उन सब के जवाब दे दूंगी तुम्हे और हाँ मस्जिद के इमाम साहब आप से अपनी बेटी की शादी के लिए मदद का कह रहे थे ना अगर आप अपना मुँह बंद रखोगे तो मैं इतना दौलत दे सकती हूँ के आप उनकी मदद कर सकते हो !” शबीना ने कहा !
”मेरे माज़ी के बारे में और इमाम साहब और मेरे बीच की बात तुम्हे कैसे मालूम हुई ?” रमीज़ ने हैरत से पूछा !
”और भी बहुत कुछ पता है मुझे कहो तो गांव में ये बात आम करदूँ के कोई नक़ाब पोश खातून क़ब्रिस्तान के मोजाबीर से मिलने रोज रात के सन्नाटों में क़ब्रिस्तान में आती है !” शबीना ने धमकाते हुए सख्त लहज़े में कहा !

रमीज़ इज्जत पर आंच आने वाली बात सुन कर खामोश होजाता है फिर कहता है !” ठीक है तुम जैसे बेगैरत लोगों के मुँह लगने का कोई फायदा नहीं है जो सही लगे करो बेकार का इनसब में मुझे मत घसीटो रही बात उस औरत की तो वो क़ब्रिस्तान मुझसे मिलने नहीं बल्के अपने बेटे के क़बर पर आती है !”
”यह सही बात है वैसे बिना तुम्हारी मदद के मैं अपना काम पूरा नहीं कर सकती हूँ !” औरत शबीना ने कहा !
”पहले यह बताओ तुम क्या करना चाहती हूँ कहि मैं तुम्हारे साथ साथ किसी गुनाह में शरीक ना होजाऊं !” रमीज़ ने कहा !
”मैं बस अमल के ज़रिये औलाद पाना चाहती हूँ दस बरस होगये मेरे शादी को आज तक मुझे कोई औलाद नहीं है अब वाहिद यह अमल ही है सहारा वरना मेरे शौहर किसी और से निकाह कर लेंगे !” शबीना ने झूठा दुःख दिखाते हुए कहा !

”औलाद किस्मत से होती है अगर आप को अल्लाह ने औलाद नहीं दिया अभी तक जरूर उसके पीछे कोई आप का ही फायदा छुपा हो ! इस का मतलब यह नहीं के आप गलत रास्तों को चुने आप किसी यतीम को माँ का प्यार दे सकती है हो सकता है आप के नसीब में यही लिखा हो!” रमीज़ ने समझाते हुए कहा !

”आप मुझे सही गलत ना समझाये तो ही बेहतर है यह कुछ रुपय रख ले और मेरी बात ध्यान से सुने मैं अगले कुछ दिनों तक अपना अमल जारी रखूंगी आखिरी दिन बस आप को यह करना है के इस लड़की की लाश को क़ब्र से निकाल कर दूसरे क़ब्र में रखना है जो के ठीक इसी के बगल में खोदना होगा आप को !” शबीना ने रमीज़ की हाथों में नोटों की गड्डी थमाते हुए कहा !

”आखिर आप ने यह सब करने के लिए इसी बच्ची के क़बर का इंतेखाब क्यों किया ? मुझे आप की दिमागी हालत सही नहीं लगती है !” रमीज़ हैरान होते हुए कहता है !

”मेरी दिमागी हालत बिलकुल सही है और हाँ अपनी टांग दूसरों के काम में नहीं अड़ाना चाहिये आप अपने काम से मतलब रखे बस वैसे काफी बहस मिज़ाज़ रखते हो आप मैं चलती हूँ कल आऊँगी खुदा हाफिज !” शबीना कहते हुए चली जाती है रमीज़ हैरान वा परेशान उसे जाते हुए देख रहा होता है !

 ”अल्लाह ही रहम करे ऐसे लोगों से खैर कम से कम इमाम साहब की मुश्किलें थोड़ी हल होजायेगी इन रुपयों से कल ही उन्हें दे दूँगा !” रमीज़ खुद में बड़बड़ाता हुआ अपने कमरे की तरफ चल देता है !

रात सुकून से गुज़र जाती है  कोई भी ख्वाब रमीज़ को नहीं आता है  अगले दिन फज़र की नमाज़ के बाद रमीज़ इमाम साहब को रुपय थमा  देता है !
”रमीज़ भाई आप ने तो हमे अपना क़र्ज़ दार बना दिया है मैं कैसे आप का एहसान चुकाऊंगा !” इमाम साहब ने आँखे नम करते हुए कहा !
”कोई क़र्ज़ नहीं है इमाम साहब आप को यह पैसे लौटाने की कोई जरुरत नहीं है आप की बेटी मेरी भी तो बेटी है !” रमीज़ ने कहा !
”फिर इतने सारे रुपय की मदद भला कौन करता है रमीज़ भाई आज कल के ज़माने में !” इमाम साहब ने कहा !
”मेरे जैसे लोग जिनको दुनियाँ की ऐश वा आराम से कोई मतलब नहीं है बस जीने के लिए दो वक़्त की रोटी साल भर में पहनने के लिए दो जोड़ी कुर्ते मिल जाते  है वो बहुत है मेरे लिए !” रमीज़ ने मुस्कुराते हुए कहा !
”अल्लाह आप को खुश रखे वैसे रमीज़ भाई अकेला इंसान भी खुश रह सकता है क्या ?  चलिये चाय पीते है साथ में !” इमाम साहब ने हँसते हुए कहा !
”क्या मैं आप को दुःखी लगता हूँ ? इमाम साहब मेरा दिल अब ख़ुशी गम उदासी इन सब एहसासों से वास्ता नहीं रखता है एहसास तब होते जब मेरे अपने मेरे साथ होते है अकेले किस बात की ख़ुशी और गम ?” रमीज़ ने कहा !

शबीना हर रोज अपने तय वक़्त पर आकर अपना अमल जारी  रखती  है इसी तरह शबीना के अमल का आखिरी दिन भी आजाता है जिस दिन रमीज़ को उस लड़की के क़ब्र के बगल में दूसरी क़ब्र खोदनी रहती है ! हलकी हलकी बारिश होरही होती है रमीज़ शाम के वक़्त क़ब्र खोद कर नहा धो कर अपने कमरे में चारपाई पर लेट जाता है लेटते ही उसे नींद अपने आगोश में लेलेती है तभी वो ख्वाब में देखता है के वो बीचों बीच नदी में एक नाव के किनारे  पर बैठा है जिसके दूसरे किनारे पर सफ़ेद कफ़न पहने एक खूबसूरत सी लड़की बैठी रो रही होती है ! नाव से दूर दूर तक सिर्फ और सिर्फ पानी ही दिख रहा होता है !

“यह कौन सी जगह है, बेटा तुम कौन हो और इस तरह तुम रो क्यों रही हो ?” ख्वाब में रमीज़ ने उस कफ़न पहने लड़की से पूछा !

“चाचा मैं वही लड़की हूँ जिसको कुछ दिन पहले उन दो हैवानो ने अपनी हवस का शिकार बनाया था और मेरे मुर्दा जिस्म को हिस्सो में बांट दिया था !” कफन पहने हुए लड़की ने दर्द भरी आवाज़ में कहा !

“तुम तो मर चुकी हो फिर तुम यहाँ क्या कर रही हो ? तुम्हे तो आलमे बरजख में होना चाहिये !” रमीज़ ने सवाल किया !

“हाँ मैं मर चुकी हूं और मैं एक रूह हूँ और इस वक्त आप के ख्वाब में किसी खास मक़सद से आयी हूँ , दुनियाँ  और आखरत के बीच का वो मुकाम जिसे आलम_ऐ _बरज़ख़ कहते है जहाँ इंसानी रूह मरने के के बाद क़यामत तक रहती है मैं वही थी मगर उस औरत ने अपने काले अमल के जरिये मेरे रूह को मज़बूर कर दिया है वापस इस दुनिया में आने को वो गलत कर रही फिर भी आप उसका साथ दे रहे है आप को पता भी है उसके काले जादू की वजह मेरी रूह कितनी बेचैन है !” लड़की की रूह संजीदगी के साथ कहती हुई खामोश होजाती है !

”मगर वो औरत तो औलाद पाने के लिये अमल कर रही है भला वो तुम्हारे रूह को अज़ीयत क्यों देगी ? मैंने उसपर नज़र रखी है वो बस खामोश बैठ कर वज़ीफ़ा पढ़ती है !” रमीज़ ने कहा !

”उसे औलाद की कोई ख्वाहिश नहीं है उसने झूठ कहा है आप से, चाचा वो मेरी रूह को अपना गुलाम बनाना चाहती है ताके उसके बाद मेरी रूह का क़त्ल कर वो हमेशा जवान और हसीन बनी रही उसे हमेशा जवान और खूबसूरत रहने की बेहद खवाहिश है वो कब से इस तलाश में थी के कोई जवान लड़की की  किसी भी तरह हादसे में मौत हो और वो अपने गंदे अमल को अंजाम दे सके और मेरी मौत के बाद उसे यह मौका मिल चूका है आज रात में वो मेरे मुर्दा जिस्म के हिस्सों पर अमल करेगी चाचा आप मुझे बचा ले आप के वजह से मुझे मौत के बाद अपने इस्लामिक तरीके से दफनाया गया वरना वो वहशी तो बिना गुसुल और नमाज़ जनाज़े के मुझे दफना देते और मेरे माँ बाप ज़िन्दगी भर मुझे ढूंढते रहते है !” वो लड़की कहते हुए रोने लगती है !

”मुझे माफ़ करना बेटी मैं उस औरत के इरादों से अनजान था तुम्हारी मदद के लिए मुझे क्या करना होगा ?” रमीज़ ने पूछा !

”उसकी मौत ही मेरे रूह को उसके क़ैद से रिहा कर सकती है वैसे में अगर वो ज़िंदा रही तो जाने कितने ही और मासूम रूहें उसके क़ैद में होगी !” कफ़न पहने हुई लड़की ने कहा !

”देखो बेटा मैं तो तुम्हे बचा लूँ मगर किसी को क़त्ल करना मेरे बस की बात नहीं मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी अल्लाह के सपुर्द कर रखी है गुनाह मुझसे नहीं होगा कोई और उपाय है तो बताओ !” रमीज़ ने इंकार करते हुए कहा !

”किसी बेगुनाह को बचाना भी अल्लाह की रज़ा में शामिल है चाचा बाकी आप की मर्ज़ी या तो आप मेरे टुकड़ो में पड़े जिस्म और इस रूह को काले अमल का शिकार होने देंगे या जो क़ब्र आप ने आज खोदी है उसमे उस औरत को दफना देंगे !” लड़की की रूह कहती हुई नाव से गायब होजाती है!

लड़की की बातें सुन कर रमीज़ सोच में पड़ जाता है ! वो सर झुकाये नाव में बैठे बस पानी को को देख रहा होता है ! तभी नाव नदी में उल्ट जाती है !

रमीज़ हड़बड़ा कर उठ बैठता है  उसका पूरा वजूद पसीने में नहाया हुआ होता है घड़ी में रात के एक बज रहे होते है तभी रमीज़ को सिसकियों की आवाज़ सुनायी देती है रमीज़ जल्दी से उठ कर दरवाज़ा खोल कर उस सिमत बढ़ता है जिधर शबीना बैठ कर अमल कर रही होती है! पुरे क़ब्रिस्तान में चारो तरफ अगरबत्ती की खुश्बू फैली हुई रहती है!

शबीना लड़की की क़ब्र के पास ही ढेर सारी मोमबत्तियाँ और अगरबत्तियाँ जला रखी होती है साथ में कई अजीबो गरीब चीज़ें रखी होती है जिनके पास ही एक कपड़े की गुड़ियाँ बनी होती है जिसको उसने कफ़न का कपड़ा पहना कर रखा होता है !

रमीज़ काफी देर तक इधर उधर हैरान वा परेशान देखता है के आखिर सिसकियों की आवाज़ किधर से आरही है तभी उसे अपने ही क़बर के पास कफ़न पहने बैठी वही लड़की रोते हुए दिखती है ! जो रमीज़ को देख कहती है !”चाचा आगये आप देखिए इसका काम मुकम्मल होने वाला है आप कुछ करिये इसके अमल से मेरे रूह को तकलीफ होरही है !”

”हाँ कुछ करता हूँ तुम परेशान ना हो !” रमीज़ कहता है !

” किसे कह रहे हो आप के परेशान ना हो ?” शबीना अपनी जगह से उठते हुए कहती है !

”किसी को नहीं !” रमीज़ ने मुख़्तसर सा जवाब दिया !

”चलो अच्छा ही हुआ के आप खुद आगये अभी मैं आप को बुलाने ही वाली थी कुदाल लाये हो ना साथ में चलो अब जल्दी से इस लड़की की क़बर खोद डालो मुझे चार बजे से पहले सारे काम पूरे करने है !” शबीना ने कहा !

रमीज़ को समझ नहीं आरहा होता है के वो क्या करे ? क़ब्रिस्तान और उसके रोज रोज के मामलात रमीज़ परेशान हाल अपने कमरे से कुदाल लेने चला जाता है उसके कानों में बार बार एक ही आवाज़ गूंज रही होती है !

चाचा मुझे बचा लिजिये यह औरत मेरी रूह को भी नहीं छोड़ेगी।, चाचा मुझे बचा लिजिये !

क्रमशः lette-hi-neend-aagyi-09

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Written By- Shama Khan

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