“तेरे इश्क़ में” – 4
Tere Ishq Me – 4
साहिबा कोयंबतूर बस स्टेण्ड से एयरपोर्ट पहुंची उसकी फ्लाइट निकलने में अभी 10 मिनिट ही बाकी थे साहिबा ने जल्दी से अपना टिकट कन्फर्म करवाया। आपना सूटकेस जमा करवाया और हैंड बैग हाथ में लिए फ्लाइट की और बढ़ गयी। उसका मन अजीब बेचैनी से घिरा हुआ था। अपना बैग और टिकट्स सम्हाले साहिबा फ्लाइट में आयी उसकी सीट थी 16A , साहिबा आकर अपनी सीट पर बैठ गयी। अपनी सीट पर बैठी उदास नजरो से वह बाहर देख रही थी। कुछ देर बाद एक 26-27 साल का लड़का आकर उसकी बगल में बैठा साहिबा ने उसकी तरफ देखा तक नहीं उसका ध्यान खिड़की के बाहर था। फ्लाइट टेक ऑफ हो चुकी थी। अंदर बैठे सभी पैसेंजर्स अपने अपने में लगे थे। प्लेन आसमान की उंचाईयों पर उड़ रहा था साहिबा खिड़की के बाहर उड़ते बादलों देखे जा रही थी। वक्त एक बार फिर उसे पीछे ले गया
दिल्ली रेलवे स्टेशन – शाम 6:30
ट्रेन के दरवाजे पर खड़ी साहिबा बाहर प्लेटफॉर्म पर ट्रेन पकड़ने के लिए भागते उस लड़के को देखे जा रही थी जिसका नाम पार्थ था। साहिबा को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वह क्या करे ? तभी उसके बगल में खड़े लड़के ने साहिबा को पीछे किया और अपना हाथ बाहर निकालकर पार्थ की तरफ बढ़ा दिया। पार्थ ने लड़के का हाथ पकड़ा और ट्रेन में चढ़ गया। पार्थ हांफने लगा उसने एक नजर साहिबा को देखा और अपने दोस्त से कहा,”सही टाइम पर हाथ दे दिया यार तूने वरना आज तो ट्रेन छूट जाती मेरी”
साहिबा वहा से हटकर अंदर चली गयी एक डिब्बा छोड़कर अगले डिब्बे में उसे सीट मिल गयी साहिबा ने अपना बैग सीट के नीचे रखा और बैठ गयी। उस पुरे डिब्बे में गुजरती फैमिली बैठी थी जिनकी बाते साहिबा के सर के ऊपर से जा रही थी। बैठे बैठे साहिबा को महसूस हुआ की सामने खड़ा लड़का उसे देख रहा है , साहिबा थोड़ा सा अपनी दांयी और झुकी और तो सामने खड़ा लड़का पार्थ भी उसके साथ उसी और झुका। दोनों की नजरे एक दूसरे से मिली तो साहिबा वापस सीधे होकर बैठ गयी और खुद को कोसते हुए मन ही मन कहा,”क्या कर रही है ऐसे क्यों देख रही है उसे ?”
साहिबा ने अपना ध्यान कही और लगाने की कोशिश की लेकिन कुछ देर बाद उसे फिर महसूस हुआ और वह थोड़ा सा दांयी और झुकी , इस बार भी पार्थ ने वही किया और जैसे ही साहिबा से नजरे मिली पार्थ मुस्कुरा उठा। साहिबा ने मुंह बनाया और वापस सीधे बैठ गयी। लड़के से अपना ध्यान हटाने के लिए
साहिबा ने अपने बैग से किताब निकाली और खोलकर बैठ गयी। साहिबा किताब पढ़ने में बिजी थी कुछ देर बाद जैसे ही उसने किताब अपनी आँखों के सामने से हटाई उसका दिल धड़क उठा। पार्थ बिल्कुल उसके सामने बैठा था और वहा बैठी गुजराती फॅमिली से उन्ही की भाषा में कुछ बात कर रहा था। जैसे ही उसने साहिबा को देखा साहिबा उसे घूरने लगी। पार्थ ने साहिबा को एक नजर देखा और फिर नजरे हटा ली। साहिबा ने किताब वापस बैग में रख ली , दिल्ली से बरेली का सफर काफी लंबा था ऐसे में अकेले वह बोर हो जाएगी सोचकर उसने अपना फोन निकाला और रुबीना , प्रिया से चैट करने लगी।
साहिबा – कहा पहुंचे तुम लोग ?
रुबीना – हम दोनों तो कबका पल्ल्वी के घर पहुँच चुके तू देर कर रही है
प्रिया – जल्दी आजा यार तेरे बिना सब बोरिंग लग रहा है यहाँ
साहिबा – अभी ट्रेन में ही हूँ और लगता है पहुँचते पहुँचते रात हो जाएगी
प्रिया – कोई मस्त लड़का दिखा के नहीं
रुबीना – हां यार अगर ट्रेन में कोई अच्छा लड़का साथ हो तो सफर कब कटता है पता ही नहीं चलता
साहिबा – लड़का ? एक लड़का है पहले स्टेशन पर मुझसे टकराया और अब आकर मेरे सामने ही बैठ गया है ,, जबसे घूरे जा रहा है
प्रिया – हाउ रोमांटिक , दिखने में कैसा है ?
रुबीना – तेरा सही है यार हमे तो अंकल के साथ बैठकर आना पड़ा था पुरे रास्ते खाँसता रहा
साहिबा – दिखने में ठीक ठाक है
प्रिया – तो बात आगे बढ़ा ना यार क्या पता पल्ल्वी के साथ साथ तेरा भी नंबर लग जाये
साहिबा – ओह्ह जस्ट शट अप
रुबीना – चल बाय पल्ल्वी बुला रही है उसकी हल्दी है ना और तू ध्यान से आना कही वो स्टेशन वाला लड़का तेरे साथ ही ना चला आये
प्रिया – बेस्ट ऑफ़ लक (हार्ट वाला इमोजी)
साहिबा – ओके बाय
कुछ देर की चेटिंग के बाद साहिबा ने फोन वापस बैग में रख लिया। ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी। साहिबा ने देखा पार्थ दांयी तरफ बैठे अपने दोस्तों से बात कर रहा था। हंस रहा था उसे हँसता हुआ देखकर कुछ पल के लिए साहिबा उसके चेहरे में खोकर रह गयी। पहली बार उसने पार्थ को गौर से देखा था। काली आँखे , पतला सा लंबा नाक , सुर्ख पतले होंठ , कान में एक छोटी सी काले रंग की बाली , लम्बे लेकिन सलीके से कटे बाल जिन्हे बार बार वह अपने हाथो से सेट कर रहा था। सफ़ेद रंग की शर्ट में पार्थ अच्छा लग रहा था। वह इतना भी बुरा नहीं था जितना साहिबा उसे समझ रही थी। अभी साहिबा अपनी आँखों से पार्थ को चेक आउट कर ही रही थी की पार्थ ने साहिबा की तरफ देखा तो साहिबा ने नजरे घुमा ली। अगले स्टेशन पर पार्थ के दोनों दोस्त उतर गए पार्थ अब अकेला था वह सीधा बैठ गया और गुनगुनाते हुए खिड़की के बाहर देखने लगा। रात के 8 बजे गाड़ी एक स्टेशन पर 10 मिनिट के लिए रुकी। पार्थ उठा और ट्रेन से नीचे उतर गया। बाहर दुकान पर आकर उसने एक पानी की बोतल खरीदी कुछ पीया और बाकि से मुंह धो लिया। उसने दुकान वाले से खाने का पूछा तो बगल की दुकान की ओर इशारा कर दिया। पार्थ साइड वाली दुकान पर आया वह कुछ फ़ास्ट फ़ूड जैसा था उसने अपने लिए एक वेज रोल देने को कहा। वेज रोल लेकर पार्थ जैसे ही जाने के लिए पलटा उसे साहिबा का ख्याल आया और उसने एक रोल उसके लिए भी ले लिया।
ट्रेन चलने वाली थी पार्थ फटाफट आकर ट्रेन में चढ़ गया और आकर अपनी सीट पर बैठ गया। साहिबा उस वक्त आँखों पर बड़े बड़े ग्लास का चश्मा लगाए किताब पढ़ने में बिजी थी पार्थ उसे देखता रहा। चश्मे में कितनी मासूम लग रही थी वह , पार्थ उसे एकटक देखने लगा , उसकी खूबसूरत बड़ी बड़ी आँखे , सुर्ख लाल होंठ , नाक में एक छोटी सी नोजपिन , कानो में झुमके , हाथ में घडी और साथ ही किताब ,, इस वक्त साहिबा पार्थ को बहुत ही सीधी साधी लड़की नजर आ रही थी। जैसे ही साहिबा ने पार्थ की तरफ देखा उसे अपनी ओर देखता पाया तो पार्थ ने अपने हाथ में पकड़ा एक रोल साहिबा की तरफ बढ़ा दिया। साहिबा ने देखा तो उसे बचपन की बात याद आ गयी “ट्रेन में अक्सर लोग खाने में नींद की दवा मिला देते है और फिर सारा सामान लूट लेते है”
“हेलो मैंने इसमें कुछ मिलाया नहीं है , सोचा तुम अकेली हो इसलिये एक तुम्हारे लिए भी ले आया”,साहिबा को खोया हुआ देखकर पार्थ ने कहा
“ले लो बेटा इतने प्यार से लेकर आया है , शक्ल से तो शरीफ ही लगता है”,साहिबा के बगल में बैठी बुजुर्ग आंटी ने कहा
“थैंक्यू आंटी”,कहते हुए पार्थ ने रोल एक बार फिर साहिबा की तरफ कर दिया। साहिबा ने रोल लिया और धीरे से कहा,”थैंक्यू !!”
“योर वेलकम”,पार्थ ने सधी हुई आवाज में कहा और फिर बैठकर अपना रोल खाने लगा। साहिबा को ऐसे सबके सामने खाने में थोड़ी झिझक महसूस हो रही थी लेकिन और कोई जगह भी थी नहीं थी। उसने वही बैठकर धीरे-धीरे खाना शुरू कर दिया।
पार्थ ने साहिबा को देखा और मन ही मन मुस्कुरा उठा। साहिबा ने रोल खाया और अपने बैग से पानी की बोतल निकालकर पानी पीया देखा पार्थ पानी को बोतल को देख रहा है तो उसने पानी की बोतल उसकी और बढ़ा दी। पार्थ ने पानी पिया और बोतल वापस साहिबा की तरफ बढ़ा दी। कुछ देर बाद पार्थ ने अपने जेब से फोन निकाला और बैग से हेडफोन निकलकर कानो पर लगाकर अपने फोन में बिजी हो गया। साहिबा भी एक बार फिर अपनी बुक के पन्ने पलटने लगी।
बरेली आने से आधे घंटे पहले ट्रेन एक स्टेशन पर फिर रुकी इस बार ट्रेन 15 मिनिट के लिए रुकी तो पार्थ को सिगरेट की तलब होने लगी। उसने देखा साहिबा अपनी बुक में लगी हुई है तो वह उठा और ट्रेन से नीचे उतर गया। दुकान पर आकर उसने एक सिगरेट खरीदी और जलाकर मुंह में रख ली। अभी उसने सिगरेट का एक कश भी नहीं लिया था पैसे चुकाकर वह जैसे ही पलटा नजर साहिबा पर पड़ी। साहिबा को अपनी ओर घूरता पाकर पार्थ ने मुंह से सिगरेट निकाली और बुझाकर डस्टबिन के हवाले कर दी। साहिबा दुकानवाले की तरफ बढ़ गयी और दो चाय देने को कहा। चाय लेकर साहिबा पार्थ के पास आयी और एक कप उसकी और बढाकर कहा,”चाय”
“थैंक्स”,पार्थ ने कप लेते हुए कहा जिस से उसकी उंगलिया साहिबा की उंगलियों से सहसा ही टकरा गयी।
“पार्थ शर्मा”,पार्थ ने अपना हाथ साहिबा की तरफ बढ़ाते हुए कहा
साहिबा ने एक नजर पार्थ को देखा और फिर उससे हाथ मिलाते हुए कहा,“साहिबा सिंह”
वर्तमान-एयर इंडिया फ्लाइट
साहिबा अपने अतीत में खोई हुई थी की उसके कानो में आवाज पड़ी। फ्लाइट टेक ऑफ होने वाली थी। साहिबा ने खुद को अतीत की यादो से बाहर निकाला और खिड़की से नजरे हटा ली। उसने देखा बगल में बैठा लड़का उसे देख रहा है और फिर सामने देखने लगता है। प्लेन टेक ऑफ हुआ साहिबा नीचे उतरी। शाम के 6 बज रहे थे साहिबा इस वक्त चैनई प्लेफॉर्म पर थी यहाँ से उसे दिल्ली के लिए फ्लाइट लेनी थी जो की 4 घंटे बाद थी। साहिबा अपना सामान लेकर एयरपोर्ट से बाहर आयी। सामने एक कैफे था साहिबा वहा चली आयी उसने अपने लिए एक कॉफी और सेंडविच आर्डर किया। सर्दी बढ़ गयी थी साहिबा ने अपने उस लम्बे से कोट के सभी बटन बंद कर लिए और बैठकर अपने आर्डर का इंतजार करने लगी। कुछ देर बाद वेटर उसके लिए कॉफी और सेंडविच रखकर चला गया। साहिबा ने सेंडविच खाया कॉफी पि और फिर वहा से बाहर चली आयी। हल्का अन्धेरा हो चुका था साहिबा वहा सड़क किनारे पड़े बेंच पर आकर बैठ गयी और आती जाती गाड़ियों को देखने लगी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे !!
Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4 Tere Ishq Me – 4
क्रमश – Tere Ishq Me – 5
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संजना किरोड़ीवाल
Parth aur sahiba ka jarur koi ateet h
Superb ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Kuch to hua h bt dheere 2 pta chlega
Nice story