Sanjana Kirodiwal

Story with Sanjana Kirodiwal

Telegram Group Join Now

मेरे महबूब शहर “बनारस”

Mere Mahboob Shahar Banaras

Banaras
Banaras

Mere Mahboob Shahar Banaras

मैं अक्सर कहती थी की “बनारस सिर्फ शहर नहीं बल्कि इश्क़ है हमारा” और ये बात उस वक्त सही साबित हो गयी जब एक शहर मेरे जहन में इस कदर उतरा की के फिर कुछ याद ना रहा। मेरी बातो में , मेरी कविता-कहानियो में बनारस का जिक्र होने लगा और धीरे धीरे वह मेरे दिल में बसता चला गया। हम सबकी जिंदगी में सपनो का बहुत महत्व है। “बनारस” भी मेरे लिए एक सपने जैसा ही था।
कई सालो से मैं इस कोशिश में थी की मुझे बनारस जाने को मिले और मैं उसे करीब से देख पाऊ , इसके पीछे एक खास वजह ये भी थी की बनारस को लेकर मैंने अब तक जो कुछ भी लिखा है वो सच है भी या फिर मेरी कपोलकल्पना थी। ऐसे ही सैंकड़ो सवाल थे मन में जिन्हे सोचकर लगता था की इनका जवाब शायद वही मिलेगा और बस मैं निकल पड़ी अपने शहर से उस शहर के लिए जो की मेरा “इश्क़” बन चुका था। आईये जानते है मेरे बनारस जाने की छोटी सी कहानी,,,,,,,,,,,,,,,,,

15-20 प्लान कैंसल होने के बाद आख़िरकार 2021 के अंत से पहले हमारा बनारस जाने का प्रोग्राम बन ही गया। बहुत मिन्नतों के बाद कुछ दोस्त तैयार हुए लेकिन मुझे अभी भी डर था की इनमे से कोई केंसल ना कर दे। महादेव चाहते थे की इस बार हम उनसे मिले इसलिए प्लान ज्यों का त्यों रहा और हमारी तैयारियां भी जोरो शोरो से थी। इस ट्रिप में जाने वाली थी मैं , मेरी छोटी बहन ( माँ की नजर में सिक्योरिटी गार्ड ) , शमा खान ( जिसे काफी लोग जानते है मेरी दोस्त के रूप में ) मेरे एक बहुत ही अच्छे दोस्त जिनका नाम तो भैया मैं बिल्कुल शेयर नहीं करने वाली हूँ ( क्योकि मुझे पढ़ने वाले कुछ लोगो को बड़ी दिलचस्पी है मेरी निजी जिंदगी में ताका-झाँकी करने की ) हालाँकि मैं उसे नाम से कम और “मास्टर” ज्यादा बुलाती हूँ , मास्टर के साथ उसका एक छोटा भाई अनू था ( मास्टर के हिसाब से जैक ताकि वो घर पर बोल सके भाई के साथ जा रहा है ) और इन सबके बाद थे इस ट्रिप की जान हमारे “ननु भैया”
ये बंदा इतना फ्रेंक और फ्रेंडली है की इसके साथ आप कभी बोर नहीं हो सकते , इसके पास करने के लिए हजारो मजेदार बातें होती है और इसमें वो खूबी है की ये किसी को भी हंसा दे,,,,,,,,,,,,,,,,,इन सबके अलावा ये बहुत जिम्मेदार इंसान भी है।
तो बनारस जाने के लिए हमारे सारे दोस्त तैयार थे लेकिन समस्या ये की सभी अलग अलग जगह से,,,,,,,,,,,,,,,,,,खैर हमे मिलना ही था।

9 नवम्बर 2021
9 नवम्बर को शाम की बस थी मेरे शहर से कानपूर के लिए लेकिन मैं सुबह से ही काफी ज्यादा खुश थी , बार बार अपना बैग जमाती , चेक करती कुछ छूट तो नहीं गया , मम्मी भी मुझे ऐसे देख रही जैसे मन ही मन सोच रही हो “जे लड़की घर वापस ना आएगी” आज का दिन मुझे रोजाना से कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा था। मैं बार बार घडी में वक्त देखती और झुंझला जाती की ये वक्त इतना धीमे क्यों कट रहा है ? हालाँकि कही जाने में मुझे मौत आती है और मैं बाहर जाना कम ही पसंद करती हूँ लेकिन यहाँ बात कुछ और थी।
शाम 6 बजे अपने बैग्स उठाये हम लोग पहुंचे बस के लिए जिसे 7 बजे आना था। राजस्थान में इस वक्त ठण्ड पड़नी शुरू हो चुकी थी इसलिए हम पूरी तैयारी के साथ चले थे। मेरे घर में लड़कियों को अकेले घर से बाहर जाने की परमिशन कम ही मिलती है इसलिए मम्मी भी बस तक छोड़ने साथ ही आयी थी और अब तक वो वहा मौजूद आधे से ज्यादा लोगो से ये कह चुकी थी की मेरा और मेरी बहन का ध्यान रखे , उनकी इन बातो की वजह से मैंने अपनी हुडी का केप पहना और उसे नाक तक खींच लिया ताकि लोगो की नजर मुझपर तो बिल्कुल ना पड़े। 7 बजे बस आयी मैं और बहन दोनों आकर बस में बैठ गए और बस चल पड़ी कानपूर की ओर क्योकि बाकि सब लोग वही मिलने वाले थे।
बस का सफर काफी बोरिंग होता है अगर आपके बगल में कोई अच्छा बंदा ना हो या फिर आपके दोस्त ना हो। बहन अपने फोन में बिजी और मैं कानो में ईयर फोन लगाकर गाने सुनने में,,,,,,,,,हालाँकि मुझे खिड़की वाली सीट भी मिली लेकिन वो इतनी ऊपर थी की बाहर का कुछ दिखाई नहीं दे रहा और रात के सफर में वैसे भी क्या ही देख लेना था मैंने,,,,,,,,,,,,,!! लेकिन मैं खुश थी क्योकि बहुत कम मौका मिलता है ऐसे घर से बाहर जाने का।
तो बस का आधे से ज्यादा वक्त मैंने सोकर गुजारा , सुबह के 5 बजे आँख खुली तो देखा बाहर मौसम काफी ज्यादा अच्छा था , ठण्ड की वजह से हल्का कोहरा था और बस तेज स्पीड में किसी बढ़िया हाईवे से गुजर रही थी। मैं उस नज़ारे को मिस करना नहीं चाहती थी इसलिए अपनी सीट से उठकर दरवाजे के पास लगी सीट के पास आकर बैठ गयी। वहा से नजारा काफी खूबसूरत था,,,,,,,,,,,,,,,,मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है की जब भी मुझे कुछ अच्छा दिखता है मैं उसे कैमरे कैद करना भूल जाती हूँ , उस दिन भी यही हुआ,,,,,,,,,,,!!
आगे जाकर बस 5 मिनिट के लिए रुकी मुझे बाथरूम जाना था और एक अच्छा मौका भी था की बस से बाहर जाकर कोहरे के उस मोमेंट को फील कर सकू। मेरे बाद एक एक करके कई लोग उतरे और जल्दी वापस भी आ गए बस एक अंकल को छोड़कर,,,,,,,,,,,,,,,,इनका एक मजेदार किस्सा सुनाती हूँ , ये पुरे सफर में बार बार बस रुकवाते और वाशरूम जाते तो कभी यू ही निकल जाते,,,,,,,,,,,,,,,,सुबह भी यही हुआ था सब वापस आ गए लेकिन ये नहीं और इनकी वजह से थोड़ी देरी भी हो रही थी। कुछ देर बाद ये आये और बस आगे बढ़ी। बस का कंडक्टर बड़ा रौबदार आदमी था वह ऊपर वाली बर्थ पर सो रहा था जैसे ही अंकल आये उसने बाहर गर्दन निकालकर बड़े प्यार से उस से सवाल जवाब किये की वह कहा गया था , क्यों गया था ?
अंकल भी खुश होकर जवाब दे रहे लेकिन अगले ही पल कंडक्टर उन पर भड़का और उन्हें जो सुनाया है मतलब मेरी हंसी नहीं रुक रही थी। वो होता है ना स्कूल कॉलेज में पढ़ाने वाले टीचर पहले प्यार से कुछ पूछते है और फिर पेल देते है बस यही इनके साथ भी हुआ था। मंजिल अब ज्यादा दूर नहीं थी इसलिए किशोर कुमार जी के गाने सुनते हुए हम आगे बढ़ गए।

10 नवम्बर 2021
सुबह के 6 बजे फजलगंज चौराहे पर आकर बस रुकी और हम नीचे उतरे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आप यकीन करेंगे बस से उतरते ही मेरी नजर सबसे पहले पड़ी वहा लगे “जुबान केसरी” के बोर्ड पर,,,,,,,,,,,,,कानपूर शहर में ये मेरा फेवरेट मोमेंट है , मैंने अपनी तो नहीं पर हाँ बहन की तस्वीर जरूर निकाल दी। नानु भैया ने कैब किया था और उसे आने में थोड़ा वक्त था इसलिए हम लोग वही खड़े होकर इंतजार करने लगे। कुछ ऑटो वाले वही थे उन्होंने पूछा भी “कहा जाओगी बिटिया ?”
उप्र की सबसे बढ़िया बात यही लगती है मुझे की यहाँ लोग इतना प्यार से बात करते है ना की तुम्हे लगेगा अपना दिल निकाल कर रख दे उनके सामने,,,,,,,,,,हालाँकि सब ऐसे नहीं होते पर मैं अब तक जितने भी लोगो से मिली हूँ सब बहुत अच्छे थे। कैब का इंतजार करते हुए नजर अचानक सामने खड़ी गाड़ी में बैठे लड़के पर चली गयी , वो भी किसी को लेने ही आया था लेकिन जितने प्यार से वो देख रहा था लगा जैसे हमे ही लेकर जाएगा। एक पल को मुझे भी लगा “साला कही ये ही तो नहीं है हमाये गुड्डू मिश्रा” पर नहीं यार हमने नजरे घुमा ली क्योकि भैया देखो ऐसा है “गुड्डू मिश्रा” जितना मर्जी रंगबाजी करे कभी लड़की नहीं ताड़ते थे।
कुछ देर बाद कैब आयी , सामान रखा और निकल पड़े फजलगंज से नानू भैया के घर की ओर जो की यहाँ से 10 KM दूर था। कानपूर की सुबह , ठंडी हवाएं , हल्की ठंड जो की आपके बदन में झुरझुरी सी पैदा कर दे , और नए चेहरे,,,,,,,,,,,,,,सब देखकर काफी अच्छा लग रहा था। कैब कई बार ट्रेफिक में भी रुकी तो कई बार भीड़ को चीरते हुए निकल गयी। कानपूर में सुबह सुबह काफी भीड़ देखने को मिली। मैं ख़ामोशी से बस वहा की सड़को , दुकानों , लोगो को देख रही थी , सड़क किनारे बने फुटपाथ एरिया में कुछ लोग सायकिल चला रहे थे। कुछ सुबह की चाय के साथ शायद राजनितिक विषयो पर चर्चा कर रहे थे। कुछ पुलिस वाले भी तैनात थे। सूरज अभी निकला नहीं था लेकिन सवेरा हो चुका था।
आधे घंटे बाद ही कैब पहुंचा नानू के घर के सामने , ये चीज अच्छी थी की उनका घर मेन रोड पर ही था। नानू बाहर ही खड़ा था उसने बैग लिया और सब अंदर चले आये। कानपूर में बने कुछ घर काफी तंग होते है , लेकिन इन घरो में रहने वाले लोगो में अपनापन बहुत होता है। एक रूम हमारे लिए बुक था मैं और बहन ऊपर कमरे में चले आये। सफर की वजह से काफी थक चुके थे इसलिए बहन लेट गयी और मैं खिड़की के पास चली आयी। खिड़की से परदे हटाए तो देखा सामने ही सूरज उदय हो रहा है और जैसे कह रहा है “उप्र में तुम्हारा स्वागत है”
एक मुस्कराहट जो अक्सर कम ही देखने को मिलती है मेरे होंठो पर तैर गयी। मैं वही खड़े होकर उसे देखते रही कुछ देर बाद नानू भैया की मम्मी आयी हमारे लिए चाय नमकीन लेकर,,,,,,,,,,,,,,,चाय बहुत अच्छी बनी थी बस थोड़ा मीठा कम था और मुझे मीठा ज्यादा पीने की आदत रही है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,( अब तुम लोग कहोगे इतना मीठा पीकर भी मैं कड़वा कैसे बोल लेती हूँ ?,,,,,,,,,,,,,,मजाक था )
चाय पीते हुए उनसे कुछ बातें हुयी और उसके बाद हमे आराम करने का कहकर वो चली गयी। मुझे सुबह 6 बजे के बाद नींद कम ही आती है इसलिए चाय पीकर मैं नहाने चली गयी क्योकि इसके बाद मुझे कुछ लोगो से मिलना था और फिर शाम में बनारस के लिए भी निकलना था। नहाने के बाद मैं जैसे ही आकर लेटी मेरी आँख लग गयी ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योकि सफर काफी थका देने वाला था। 10 बजे नानू भैया की आवाज से मेरी आँख खुली वो नाश्ते की ट्रे लेकर खड़ा था बिल्कुल वैसे ही जैसे एक लड़की लेकर आती है जब लड़के वाले उसे देखने आते है।
नाश्ते में पोहा , हरी चटनी , मिठाई और चाय थी। सब काफी टेस्टी था। नाश्ते के बाद तैयार होकर हम लोग निकले एक दोस्त से मिलने जो की स्टेशन पर थी उसकी इलाहबाद की ट्रेन थी और उसे हम सबसे मिलकर ही जाना था। स्टेशन पर उस से मिले और वहा से फोन लगाया एक बहुत ही खास इंसान को जिनका नाम है “मृदुल कपिल पांडे जी” ये कानपूर के जाने माने लेखक और हमारे मित्र है , पहली बार कानपूर आना हुआ था और इनसे भी पहली बार ही मिल रहे थे। कानपूर काफी बड़ा शहर है और जिनसे हमे मिलना था या जो हमसे मिलना चाहते थे वो सब काफी दूर दूर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,सर ने भी Z स्केवयर में मिलने की बात कही और हम निकल पड़े कानपूर की सड़को की खाक छानते। मॉल के अंदर आये वो सामने ही मिल गए थे हालाँकि उन्होंने मास्क पहना था लेकिन मैंने पहचान लिया क्योकि उनकी पर्सनालिटी जबरदस्त है। पहली बार में उन्हें देखकर लगेगा वो किसी राजनितिक पार्टी के सदस्य है। मैं उनसे मिली उन्हें अपना परिचय दिया हालाँकि इसकी जरूरत नहीं थी क्योकि हम एक दूसरे को जानते थे।
उनसे बात करते हुए आगे बढे। नानू भैया और छोटी बहन साथ में घूम रहे थे। मृदुल सर के बात करने का लहजा इतना अच्छा था की मुझे उनके साथ सहज होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। अच्छा मुझे लगता था की जब दो लिखने वाले लोग मिलते है तो उनमे काफी बातें होती है लिखने को लेकर , लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ,,,,,,,,,क्योकि किसी के साथ सहज होने के बाद मुझसे प्रोफेशनल बाते नहीं हो ही नहीं सकती। हल्की फुलकी बातो का दौर चल रहा था मेरी बातों में जहा हंसी मजाक ज्यादा था वही उनकी बातें एक गहराई लिए हुयी थी। वैसे वो भी मेरी तरह खुद को लेखक नहीं मानते पर भैया लिखते इतना गजब का है की सीधा दिल में उतरेगा ( इनकी कहानियाँ आपको प्रतिलिपी पर मिल जाएगी )
अब मॉल में है तो चाय मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता लेकिन सर के लिए कॉफी को भी हाँ बोलना पड़ा और बातें करते हुए हम सबने उसे गले से उतारा भी,,,,,,,,,,,,,,,,,सर की भी वही हालत थी जो हमारी , पहली बार हम दोनों ने अमीरो वाले चोंचले को हाँ जो कहा था,,,,,,,,,,,,,,,,,,,खैर उनके और हमारे पास वक्त कम था इसलिए हमे वहा से निकलना पड़ा। उनसे मिलकर काफी अच्छा लगा और उम्मीद है की उन्हें भी लगा होगा !

सर से मिलने के बाद हम लोग पैदल ही चल पड़े जहा नानू भैया अपनी किसी पुरानी महिला मित्र की चर्चा कर रहे थे लाइक “उनको जे लगता की मोहल्ले में हमसे ज्यादा खूबसूरत कोई और है ही नही” अब नानू भैया को क्या पता हो सकता है उनकी वो महिला मित्र खुद को कानपूर की “पिंकी शर्मा” समझती हो।
दोपहर के 3 बज रहे थे और 5 बजे थी बनारस के लिए ट्रेन इसलिए जल्दी से घर पहुंचे खाना खाया और अपने अपने बैग्स लेकर निकल गए स्टेशन के लिए,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
स्टेशन पर मिलने वाले थे हमारे दोस्त मास्टर और उनके छोटे भाई,,,,,,,,,,,,,,हम तीनो इन्तजार कर रहे थे की कुछ देर बाद दिखाई दिए मास्टर जी और जैसे ही हमारी नजर पड़ी उनकी मुस्कराहट दुगुनी हो गयी क्योकि पुरे 2 साल बाद हम फिर मिल रहे थे। सांवला रंग , घुंघराले बाल , अच्छी हाईट , फॉर्मल कपडे और उसकी स्माइल मतलब गजब्ब,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अगर तुम सब होती ना फ्लेट हो जाती,,,,,,,,,,,,,,,,,अब सोचोगी मैं क्यों नहीं हुई ?
“भैया अपन सख्त अपन ऐसे पिघलते नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अरे बकैती कर रहे है , अब वो है हमारे मित्र तो तारीफ से ज्यादा तो बेइज्जती कर देते है हम उनकी फ्लेट वलेट खाक होंगे। 6 लोगो में से 5 लोग आ चुके थे बची शमा खान वो डायरेक्ट बनारस में मिलने वाली थी क्योकि उसका शहर पास पड़ता है। घडी में समय देखा और ट्रेन की तरफ चल पड़े। जिस डिब्बे में हमारी सीटे थी हम सब उस से विपरीत भाग रहे थे क्योकि ट्रेन बस चलने वाली थी , काफी दूर जाने के बाद फिर सही दिशा में भागे,,,,,,,,,,,,बैग उठाये भागते हुए फुल सिमरन वाली फीलिंग आ रही थी लेकिन मेरे साथ राज नहीं बल्कि तीन अमरीश पूरी थे जिन्हे ये तक नहीं पता जाना किस डिब्बे में है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ट्रेन जैसे ही चलने को हुयी हमे डिब्बा मिल गया और हम सब अंदर , अगले 10 मिनिट तक मुझे ये अहसास हो चुका था की ये ट्रिप काफी बवाल होने वाला है। हम सब आकर अपनी अपनी सीटों पर बैठे चार एक तरफ पांचवा अलग जो की अनु था और अभी उसकी हम सब से ज्यादा बातें नहीं हुई थी इसलिए थोड़ा असहज था। हमारे सामने वाली बर्थ पर एक फॅमिली की तीन लड़किया और उनके साथ उनकी मम्मी और अनु के सामने उनके पिताजी।
जैसे ही ट्रेन चली मैं मुस्कुराने लगी मुझे मुस्कुराता देखकर मास्टर ने कहा,”का हुआ मुस्कुराय काहे रही हो ?”
“क्योकि मैं पहली बार ट्रेन में बैठी हूँ”,मैंने आँखों में चमक भरकर उसकी तरफ देखते हुए कहा
“का सच में ? अये दादा गज्जब”,उसने हैरानी से कहा जैसा की वह हमेशा करता है। ट्रेन अपनी गति से चलने लगी। मेरी और मास्टर के बीच कुछ औपचारिक बातें होने लगी काम और करियर को लेकर , लाइफ को लेकर , बहन अपने फोन में और नानू भैया बस इस जुगाड़ में थे की कुछ खाने को मिल जाये। सामने बैठी लड़किया कभी हम सबको देखती तो कभी आपस में बाते करने लगती , हम सब बस बातो में लगे थे। कुछ घंटो बाद ट्रेन स्टेशन पर रुकी सोचा कुछ खा पी लिया जाये , खाने पीने के बाद सभी फिर ट्रेन में चले आये और बातो का दौर , हसना हसाना शामिल हो गया। नानू भैया की बातें इतनी मजेदार थी की सामने बैठी आंटी और लड़किया भी हॅसने लगी। कुछ लोगो में ये हुनर पैदायशी जो होता है।
ट्रेन रात के 1 बजे बनारस पहुँचने वाली थी , आधे रास्ते के बाद सामने बैठी फॅमिली उतर गयी और वहा कुछ दूसरे लोग चले आये जिनसे हम लोग बिल्कुल इंटरेक्ट नहीं कर पाए क्योकि वो सब काफी सीरियस शक्ल बनाकर बैठे थे।

अब बचा फोन तो हम सब खेलने लगे लूडो , मास्टर को मुझे हराने में बड़ा मजा आता है शायद इसलिए वो बड़े ध्यान से खेल रहा था। कुछ वक्त बाद ट्रेन रुकी ये कोनसा स्टेशन था मुझे नहीं पता था लेकिन मास्टर उठकर चला गया और कुछ देर बाद आकर कहा,”सुनो यहाँ आओ”
“क्यों ?”,मैंने कहा
“अरे आओ तो बताते है”,उसने जल्दी में कहा और वहा से चला गया मैं भी उठकर उसके पीछे चली आयी। ट्रेन से नीचे उतरी तो उसने कुछ ही दूर लगे बोर्ड की तरफ इशारा किया,”तुम्हारे सपनो के शहर का बोर्ड लगा है , चलो जल्दी से एक फोटो ले लो”
मैंने पलटकर देखा बड़े से बोर्ड पर हिंदी , अंग्रेजी , संस्कृत और उर्दू में “बनारस” लिखा था। मेरी आँखे चमक उठी , होंठो पर मुस्कान तैर गयी मेरे अलावा मेरे दोस्त भी शायद ये जानते थे की बनारस मेरे लिए क्या है ? मेरी धड़कने इस वक्त सामान्य से तेज थी बिल्कुल वैसे ही जब आप पहली बार अपने पसंदीदा इंसान से मिलते है। मैं उस वक्त अपनी भावनाये व्यक्त कर पाने में असमर्थ थी। मास्टर ने मेरी कुछ तस्वीरें ली और सारी बेकार,,,,,,,,,,,,,,,,,एक अच्छी थी जिसे मैंने तुरंत अपने सोशल अकाउंट पर पोस्ट भी किया चंद लाइन्स के साथ।
ट्रेन वहा कुछ देर के लिए ही रुकी थी क्योकि हमे आगे वाराणसी जंक्शन पर उतरना था लेकिन सच कहू तो इस पल से ही मेरे दिन की शुरुआत हो चुकी थी। हम सब एक बार फिर ट्रेन में आ बैठे यहाँ से वाराणसी जंक्शन में सिर्फ आधा घंटा बाकि रहा होगा। मेरे होंठो से मुस्कराहट हटने का नाम नहीं ले रही थी , इतना तो शायद मैंने कभी अपने क्रश के लिए ब्लश ना किया हो। दिमाग में बस यही चल रहा था अभी से ये अहसास है तो आगे क्या होगा ?

रात 2 बजे हम सब पहुंचे वाराणसी स्टेशन यानि हमारे महबूब शहर “बनारस” इसे काशी , बनारस , वाराणसी सब कहते है। अपना अपना सामान सम्हाले हम सब स्टेशन से बाहर और यकीन मानिये इस वक्त भी यहाँ काफी चहल पहल थी। मैंने एक गहरी साँस लेकर उस हवा को महसूस किया,,,,,,,,,,,,,,,,,आह्ह्ह्ह ये वही थी जिसका जिक्र मैंने ना जाने कितनी बार किया है। स्टेशन पर खड़े हम सब फोटो ले रहे है , घूम रहे है , काफी मजा आ रहा था और मैं बस अपनी आँखों में उन नजारो को कैद कर रही थी। लाइट्स से वो शहर जगमगा रहा था , उस जगह को देखकर लगा जैसे यहाँ रात होती ही नहीं है मतलब इतनी चकाचोंध,,,,,,,,,,,,,,,,,,कुछ देर रुकने के बाद हम सभी वहा से होटल के लिए निकले क्योकि शमा की ट्रेन सुबह 5 बजे आने वाली थी और वहा रुकने के लिए इन चारो में से कोई भी तैयार नहीं था। अपने बैग्स सम्हाले हम सभी फुटपाथ पर चल रहे थे की नानू भैया होटल वाले से बात करने के लिए रुक गए। उन्होंने जब तक बातें की तब तक मैंने फिर से वहा आस पास की चीजों को देखना शुरू कर दिया और अचानक से मेरी नजर जाकर रुकी सामने खड़ी गाड़ियों पर जिनके पिछले शीशे पर काफी धूल जम चुकी थी। मुझमे एक अजीब आदत है गाड़ी के धूल जमे शीशे पर मुझे अपना नाम लिखना बहुत अच्छा लगता है तो मैंने यहाँ भी एक गाड़ी के पिछले शीशे पर अपना नाम लिख दिया “संजना किरोड़ीवाल”
हालाँकि बाकी सबको ये मेरा बचपना लगा पर मुझे बड़ा अच्छा लगता है ये सब करके , बाकि एक वजह ये भी थी कोई इधर से गुजरते हुए इस नाम को पढ़े और फिर मुझे ढूंढे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ओह्ह्ह्हह्ह लगता है मेरी कहानियो का असर मुझपर ही हो गया है कुछ भी सोच रही मैं,,,,,,,,,,!
स्टेशन से निकलकर सबने खाना खाने का सोचा और स्टेशन के सामने वाली गली में चले आये जहा वेज और नॉनवेज दोनों तरह का खाना था। हम सब एक रेस्त्रो में आये जिसका नाम मैं यहाँ शेयर नहीं करुँगी लेकिन भैया ये एक बात मैं पर्सनल एक्सपीरियंस से कह रही हूँ की जितना अच्छा खाना तुम्हे बाहर रेहड़ी पर मिलेगा उतना अच्छा रेस्त्रो या होटल में नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,उस रात बिल के साथ साथ हमारा चू#या भी कटा। खाना खाकर सबने चाय पीने की इच्छा जाहिर की बनारस की सबसे स्पेशल बात ये की यहाँ चाय मिटटी के कुल्हड़ में मिलती है। 5 चाय का आर्डर देकर हम सब साइड में आ गए। चाय आयी सबने चाय पी ये बनारस में मेरी पहली चाय थी और यक़ीनन लाजवाब,,,,,,,,,,,,,,,,,,हम जैसे नशेड़ियों को और क्या चाहिए बस एक कप अच्छी चाय। चाय पीकर सबने कुल्हड़ डस्टबिन में फेंके लेकिन मेरे हाथ रुक गए मैं उसे डस्टबिन में नहीं फेंक पायी सब मुझे अजीब नजरो से देख रहे। मैंने दुकानवाले से एक पन्नी ली उस खाली कप को जैसे ही उसमे रखना चाहा दुकानवाले ने कहा,”अरे मैडम इसे फेंक दीजिये आपको चाहिए तो हम दुसरा दे देते है”
“नहीं भैया ये ठीक है”,मैंने कहते हुए उस कप को अपने बैग में रख लिया , लगा जैसे मेरे महबूब की तरफ से वो मुझे पहला तोहफा है,,,,,,,,,,,,!!

वहा से एक ऑटो बुक किया और निकले होटल की तरफ , रात का चौथा पहर और हमारी आँखों में बिल्कुल नींद नहीं , मेरे मन में बस ये चल रहा था की कही मुझसे कुछ छूट ना जाये तो मैं बस वहा की सड़के , गलिया , ऊँची ऊँची इमारतें देखे जा रही थी। ऑटो वाले को होटल नहीं मिल रहा तो वो थोड़ा परेशान हो रहा था , लेकिन आख़िरकार उसने हमे वहा तक पहुंचा ही दिया।
होटल – साईकृपा , शिवाला
अगर आप कभी बनारस जाये और रहने के लिए अच्छी , सस्ती और शांत जगह देखे तो एक बार यहाँ जरूर आईयेगा। ये होटल अस्सी घाट से 500 मीटर की दूरी पर ही था इसलिए मैंने इसे पसंद किया और इसके दूसरी तरफ 1 किलोमीटर पर दशाश्वमेध घाट था। अंदर आये चेक इन सुबह 8 का था लेकिन होटल वाले से बात की तो उसने चेक इन करने दिया। बन्दा अच्छा था और काफी पोलाईटली बात की उसने।
मास्टर जी , नानू भैया , बहन और अनु सब थके हुए ,, दो रूम बुक थे वो तीन अपने कमरे में हम दो अपने में ,, मेरी बहन बहुत आलसी है इसलिए वो तुरंत सोने चली गयी लेकिन मेरी आँखों से नींद एकदम गायब ,,,,,,,,,,,,,,,,,, मैं तो बस ये सोच रही की कब सुबह हो और कब मैं यहाँ से भागू ?

11 नवम्बर 2021
सुबह के 5 बज रहे थे मैं टीशर्ट ट्राउजर , जूते और जैकेट पहने शमा का इंतजार कर रही थी। सब सो रहे थे और बाहर काफी अन्धेरा भी था , शमा को आने में अभी भी थोड़ा वक्त था इसलिए मैं वही कॉरिडोर में घूम रही थी , कभी सीढिया चढ़ती उतरती , कभी रेलिंग से झूलती तो कभी , खिड़की से बाहर झांककर देखती की कोई आया या नहीं ? मैं 26 साल की हूँ लेकिन इस वक्त मेरी हरकते एक टीनेजर की तरह थी। कुछ देर बाद शमा आयी ,, उसने आते ही गले लगाया अच्छा लगा क्योकि पिछले कुछ महीनो से काफी गहमा गहमी चल रही थी सबके बीच लेकिन यहाँ आकर जैसे मैं सब भूल चुकी थी। हम कमरे में आये बहन अभी भी सो रही थी उसने बाकि लोगो के बारे में पूछा तो बताया की वो सब भी सो रहे है। किसी पर मेरा जोर चले न चले मास्टर पर चल जाता है इसलिए उसे फोन करके नीचे बुलाया और फिर हम निकले सुबह की चाय पीने,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
बनारस की साफ सुथरी सड़क पर हम तीनो मस्त चले जा रहे थे लेकिन अभी तक एक भी चाय की दुकान नहीं खुली थी। हल्की ठण्ड भी थी ऐसे में चाय का लालच हमे आगे तक खींच लाया। एक टपरी अभी खुली ही थी इसलिए वही रुक गए। चाय ली और पीते हुए आगे के प्लान के बारे में बातें करने लगे। अब हमारे मास्टर जी निकले बड़े धार्मिक तो उनको याद आया आज छट पूजा है और उन्होंने कहा चलो देखने चलते है
“लेकिन हम लोग नहाये नहीं है”,मैंने कहा
“हाँ तो सिर्फ देखना है पूजा नहीं करनी है चलो ये मौका बार बार नहीं मिलता”,उसने खाली कप फेंकते हुए कहा
मैं और शमा उसके साथ साथ चल पड़े , मैं एक बार फिर सड़क के दोनों और बने दुकानों को देखते जा रही थी , छोटी बड़ी दुकाने , होटल , शोरूमस सब था वहा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,लगता जैसे ये शहर अपने आप में पूरा संसार समेटे हो। छत पूजा का दिन था इसलिए काफी भीड़ थी। हम तीनो अस्सी घाट के सामने पहुंचे मेरी धड़कने एक बार फिर सामान्य से तेज थी मेरे कदम वही जम गए ऐसा क्यों हो रहा था मैं नहीं जानती पर हाँ हो रहा था,,,,,,,,,,!!
मैंने अब तक बनारस को लेकर जो लिखा वो सिर्फ तस्वीरों के जरिये लिखा लेकिन उन तस्वीरों में मैंने कभी अस्सी घाट के मुख्य द्वार को नहीं देखा था वह बस कल्पना से लिखा गया लेकिन जब मैंने असल में देखा तो पाया की वो वैसा ही था जैसी मेरी कल्पना,,,,,,,,,,,,,,,,और मेरे कदमो के रुकने की वजह यही थी मैं सोचने पर मजबूर हो गयी की क्या वास्तव में किसी इंसान की कल्पना इतनी मजबूत हो सकती है। मैंने वही खड़े होकर सामने का नजारा देखा , दूर तक गंगा मैया का पानी फैला था और बनारस के सब घाट माँ गंगा को अपनी भुजाओ में समेटे हुए थे ,, सुबह का वो नजारा काफी खूबसूरत था जिसे देखकर मेरी आँखों में सहसा एक नमी उतर आयी , उस वक्त मैं थोड़ा इमोशनल हो चुकी थी और मेरे लिए सबसे मुश्किल काम है अपने आँसुओ को रोकना लेकिन वहा मैंने खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश की मैं कुछ सीढिया उतरकर नीचे चली आयी और हाथ बांधकर एक तरफ खड़े हो गयी। वहा पूजा में काफी लोग शामिल थे लेकिन मुझे सिर्फ नजर आ रहा था माँ गंगा का वो साफ , निश्चल पानी जो मेरी आँखों को सुकून पहुंचा रहा था
“चलो आगे चलते है”,मास्टर ने कहा और हम तीनो आगे चले आये। एक प्रेमिका जैसे वियोग के बाद अपने प्रेमी से मिलने दौड़ी चली जाती है ऐसे ही मेरे कदम भी घाट की उन सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए। अस्सी घाट की सीढ़ियों पर खड़े होकर उगते सूरज को देखना मेरी जिंदगी के बेहतरीन पलों में से एक रहा है और उस वक्त मैंने वैसे ही अपने दोनों हाथो से बलाये ली जैसे एक प्रेमिका अपने प्रेमी की नजर उतारती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आप चाहे तो इसे मेरा पागलपन कह सकते है लेकिन ये सच था,,,,,,,,,,,,,,,,!!

छट पूजा के बाद हम सब वापस होटल आये , तैयार हुए और दोबारा अस्सी घाट के लिए निकल गए। अब चूँकि वो सफ़ेद सूट इसलिए खरीदा था ताकि बनारस में पहना जा सके तो हमने वही पहना , साथ में सतरंगी दुपट्टा , कानो में झुमके , आँखों में काजल , होंठो पर लाली और ललाट पर एक काली बिंदी,,,,,,,,,,,,,,इन दिनों लिखने की वजह से चश्मे का नंबर काफी बढ़ चुका था इसलिए उसे भी अपनी नाक पर टिका ही लिया हमने लेकिन हमे नहीं पता था उसके बाद हमारी लेखिका वाली छवि उभर कर आएगी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
अस्सी घाट पहुँच कर सबने खूब सेल्फी ली , यहाँ वहा घूमे , हमारा मन था अपने रीडर्स के साथ लाइव आये लेकिन कसम से यार वो नजारा इतना खूबसूरत था ना की उसे देखने का मौका भैया मैं तो कभी ना छोड़ती। हमारी एक सोशल मिडिया मित्र है जिनसे हमने थोड़ी विडिओ कॉल पर बात जरूर की थी और भई उनका रिएक्शन ऐसा था की हमारी मुस्कराहट नहीं जा रही। वो काफी ज्यादा खुश थी उस कॉल से और मुझे भी काफी अच्छा लगा उनसे बात करके। घाट पर घूमते हुए ये तय हुआ की सभी नौका में जायेंगे और सभी घाटों के दर्शन करेंगे , क्योकि गली गली जाकर दर्शन करना मुश्किल था और एक दिन में ये हो भी नहीं पाता। एक नौका वाले भैया की नौका बुक की सिर्फ हम 6 लोगो के लिए और चल पड़े बनारस शहर के सबसे खूबसूरत सफर पर
अगर आप कभी बनारस जाते है तो नौका की सवारी जरूर करना क्योकि यहाँ बैठकर ही आप बनारस की असली खूबसूरती देख पाएंगे , जब वो पानी पर दौड़ती है और वहा तैरने वाले पक्षी आपके आस पास उड़ते है तब आपको लगता है जैसे आप किसी स्वर्ग में है , और चाहते है की ये नौका बस चलती रहे। नौका वहा आपको 150-200 प्रति व्यक्ति के हिसाब से मिल जाएगी। ठंडी हवा , खुशनुमा माहौल में वो नौका एक के बाद एक घाट के सामने से गुजर रही थी , नौका वाले भैया भी बड़े अच्छे थे हर घाट की जानकारी दिए जा रहे थे। चलते हुए नौका मणिकर्णिका घाट के सामने पहुंची और यहाँ मेरी धड़कने फिर तेज , मणिकर्णिका घाट को शमसान के नाम से भी जाना जाता है लेकिन जब आप इसकी गहराई में जाते है तो आप जानते की जीवन का असली सार यही है। जात-पात , धर्म , स्टेटस , पैसा , रूतबा , नाम , शानो-शौकत ये सब यहाँ शून्य नजर आती है , इनका यहाँ कोई मोल नहीं होता है जब चिता से उठते धुएं को देखो तो महसूस होता है की सब नश्वर है हमारे साथ कुछ नहीं जाना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,जो मोह हमने दुनिया से , लोगो से , भौतिक चीजों से बांधा है वो सब यही छूट जाएगा।
बनारस आने से पहले मेरे मन में काफी नफरत थी , काफी गुस्सा था , फ्रस्ट्रेशन थी , मैं काफी लोगो से नाराज थी लेकिन इस घाट के सामने आते ही वो सब मेरे मन से धीरे धीरे करके निकलने लगा। मैंने कुछ देर के लिए अपनी आँखे मूंदी और एक गहरी साँस के साथ अपने उस मन को वही छोड़ दिया जो की मैला हो चुका था। हालाँकि इस से मेरे किये पाप कम नहीं होंगे लेकिन हाँ ऐसा करने से मैं कुछ वक्त के लिए खुद को भूल सकती हु।
नौका आगे बढ़ गयी और इसी के साथ मेरा मन भी काफी शांत था। दोस्त कभी कभी बड़े अच्छे होते है , मैं पहली बार बनारस आयी हूँ इसे सेलेब्रेट करने के लिए शमा मेरे लिए फ्रूट केक लेकर आयी , सबने मिलकर खाया अच्छा लगा। नौका से घूमते हुए काफी वक्त हो चुका था और सबको भूख भी लगने लगी थी इसलिए सभी अस्सी घाट से बाहर चले आये। अस्सी घाट से निकलते ही आपके बांये हाथ की तरफ दो रेस्त्रो है जिनमे से एक काफी फेमस है “ठेठ बनारसी लिट्टी चोखा” उसके बिल्कुल बाहर में एक भैया अपनी छोटी सी चाय की दुकान लगाते है। सबने आकर पहले चाय पी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अस्सी घाट आओ तो भैयया इनकी चाय जरूर पीना तबियत खुश हो जाएगी,,,,,,,,,,,,,,,,,गज्जब चाय बनती है यहाँ बाकि लिट्टी चोखा तो है ही वो भी खा लेना हाँ थोड़ा महंगा जरूर होगा।
चाय पी लेकिन जल्दी जल्दी के चक्कर में कुछ खाया नहीं , वही से ऑटो पकड़ा और निकल गए फिर घूमने। मुझे लगा नानू भैया और मास्टर जी को सब पता होगा लेकिन नहीं वो दोनों तो खुद मेरे भरोसे आये थे खैर हमने ऑटो वाले से ही कहा की कही घुमा दे तो उसने रामनगर जाने की बात कही , लेकिन वहा तक पहुँचते उस से पहले ही नानू भैया को लगी भूख और उन्होंने कहा कुछ खाते है। ऑटोवाले ने भी ऑटो पहलवान लस्सी वाले के सामने लाकर रोक दिया। सबके लिए लस्सी आर्डर हुई लेकिन नानू भैया को चैन कहा उन्होंने उठाया समोसा और खाने लगे,,,,,,,,,,,,,,,वैसे उसकी गलती नहीं है घूमने के चक्कर में हम लोग खाना पीना भी भूल गए थे।
एक लड़का बड़े से जग में लस्सी घोट रहा था , उसमे से आती दही की सोंधी सोंधी महक बहुत अच्छी लग रही थी। मिटटी के बड़े से कुल्हड़ में लस्सी और उस पर रबड़ी डाली गयी। ये बनारस में काफी फेमस थी , खाने में भी काफी मजेदार बस रबड़ी ने लस्सी का टेस्ट चेंज कर दिया। वही पास में रखा था लौंगलत्ता , तो उसे भी टेस्ट करने का सोचा एक पीस लिया मैं उसे पूरा नहीं खा पाई क्योकि वो काफी ज्यादा मीठा था लेकिन अगर आप मीठे के शौकीन है और बनारस जाये तो लौंगलत्ता जरूर टेस्ट करे।
ऑटोवाला इंतजार में था की हम चले लेकिन हम सब थे कन्फ्यूजन के फूफा हमारे प्लान पल पल में चेंज हो रहे थे। पहलवान लस्सी वाले के सामने ही बनारसी पान वाला था और उसके बगल वाली रोड पर आगे जाकर BHU था यानि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी ( काशी हिन्दू विश्वविद्यालय )
मास्टर जी ने कहा,”पहले पान खाएंगे फिर BHU चलेंगे ,, रामनगर का किला कल देखेंगे”
सबको उनकी बात माननी पड़ी ऑटोवाला जाने लगा तो मेरी बहन ने जोर से कहा,”अरे ! उसमे बोतल रह गयी है”
मुझे पता नहीं क्या हुआ मैं ऑटो के पीछे गयी , कम्बख्त मेरी चपली फिसली और मैं नीचे आ गिरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरे सब दोस्त खड़े हंस रहे है कोई उठाने तक नहीं आया और झूठ दिखाते है हिंदी फिल्मो में की लड़की गिरे तो 4 लौंडे उठाने आ जायेंगे , एक भी नहीं आया था बस सब देख रहे थे। अपने कपडे झाड़ते हुए हम ही उठ खड़े हुए और चले आये सबकी तरफ लेकिन सब खी खी करके हंस रहे और जब मैंने सोचा की मैं एक बिसलरी बोतल के लिए रिक्शा के पीछे गयी थी तो मुझे भी हंसी आ गयी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हालाँकि दोस्तों ने पूछा था क्या तुम अपने ब्लॉग में ये लिखोगी ?
लिख दिया है पढ़ो , हंसो और निकल लो,,,,,,,,,,,,,,!!!
हाँ तो भैया बनारस के प्यार में तो हम पहले ही गिर चुके थे अब उनकी सड़को पर भी गिरने लगे। सड़क क्रॉस कर पहुंचे पान वाले के पास सबने पान खाया और फिर निकले BHU के लिए ,, वहा से कॉलेज ज्यादा दूर नहीं था इसलिए पैदल ही चल पड़े और बनारस की सड़को पर पैदल चलने का जो मजा है न वो ऑटो में नहीं है। एक बार फिर वहा की चकाचोंध ने मेरी आँखों को अपनी गिरफत में ले लिया था और हम बावरी बने बस चले जा रहे थे। चौराहे पर पहुंचकर नजर गयी सामने जहा BHU का बड़ा सा प्रवेश द्वार बना था। उसे देखकर पता है सबसे पहले किसकी याद आयी , अरे वही हमारे मानवेन्द्र मिश्रा और वंश गुप्ता,,,,,,,,,,,,,,कॉलेज के अंदर आते ही मेरी नजरो ने तो उन्हें वहा से गुजरते लड़को में ढूंढना भी शुरू कर दिया था बाद में याद आया वो सब तो हमारी कल्पना है। BHU कोई सामान्य कॉलेज नहीं था बल्कि एशिया का सबसे बड़ा कॉलेज माना जाता है जो की लगभग 4000 एकड़ में फैला है ,, तो अगर आप पूरा BHU घूमने का सोच रहे है तो एक दिन में तो नहीं घूम पाएंगे ,, BHU में हमारे लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र था “काशी विश्वनाथ मंदिर” जो की कॉलेज में बना था हालाँकि काशी विश्वनाथ का बड़ा मंदिर विश्वनाथ गली में है।
मंदिर थोड़ा दूर था और हमारे साथ वाले लोगो को पैदल चलने में मौत आ रही थी इसलिए सभी ऑटो से पहुंचे मंदिर। मंदिर खुलने में थोड़ा वक्त था इसलिए सभी बाहर ही रुक गए। मंदिर के बाहर एक बहुत ही खूबसूरत पार्क बना था , कुछ बेंच लगे थे , पार्क के कोनो में कुछ कपल्स भी थे जो की मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मतलब तुमको चोंच लड़ाने के लिए यही जगह मिली भैया कही और चले जाओ।
गार्ड ने दो लाइन बनाने को कहा जिसमे से एक महिला और दूसरी पुरुष भक्तो की थी , और यहाँ मजे की बात ये थी की जैसे ही दरवाजा खुला सबसे पहले पुरुषो को अंदर भेजा मतलब लेडीज फर्स्ट वाली थ्योरी धरी की धरी रह गयी लेकिन मुझे अच्छा लगा बेचारे मर्दो को कही तो न्याय मिला,,,,,,,,,,,,,,,,,,मजाक कर रहे है महिलाये इस बात पर आहत ना हो
मंदिर काफी अच्छा था और काफी शांति थी वहा सबने दर्शन किये और वही घूमते हुये मंदिर देखने लगे। बेहतरीन कारीगरी की गयी थी। कुछ देर बाद मैं बाहर चली आयी , शमा मंदिर नहीं जाती इसलिए वो बाहर ही थी हम दोनों साथ साथ घूमने लगे। सामने ही पानी का नल लगा था पानी पीते हुए नजर फिर एक तोता मैना पर चली गयी और मन खिन्न हो गया। मैं इन चीजों के खिलाफ बिल्कुल नहीं हूँ यार लेकिन लोग माहौल और जगह क्यों नहीं देखते ?
खैर इस बारे में बात नहीं करते अच्छी बात ये सुनो की बनारस में पीने का पानी बहुत अच्छा और मीठा था।
मंदिर से निकलकर हम सब बाहर आये कुछ खाने पीने की दुकाने थी और अब तक हम सब थक भी चुके थे सोचा पहले कुछ खा लिया जाये। हम सभी एक छोटी दुकान के अंदर चले आये जहा कुछ टेबल्स लगे थे। पास ही के टेबल पर दो लड़किया बैठी थी वो जो नहीं होती तोतापरी टाइप बस वैसी ही जो भैया टोन चेंज करके कहती है भाया , जिन्हे लगता है ऐसा करके वो यूनिक लगती है नहीं बल्कि वो बहुत ही च,,,,,,,,,,,,,,,,,,खैर जाने दो।
हमने सबके लिए डोसा आर्डर किया , BHU का डोसा भी उसी की तरह विशाल था , मतलब काफी बड़ा था और इतना था की एक से आपका पेट भर जाएगा,,,,,,,,,,,,मुझसे एक खाया भी नहीं गाया। सब खा रहे थे और इसी बीच उस लड़की ने एक दो बार और कहा “भाया कितना टाइम लगेगा ?” बस यही से हमारे मास्टर जी को सूझी शरारत और वो जान बूझकर वहा काम करने वाले लड़के को इसी नाम से बुलाने लगे,,,,,,,,,,,,,,,शर्मिंदा होकर बेचारी लड़की चुप हो गयी और अपना खाना खाने लगी लेकिन मास्टर तुमने ये ठीक नहीं किया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,भाया मतलब कुछ भी
अभी डोसा खा ही रहे थे की मेरी नजर दुकान के सामने से गुजरते एक 7-8 साल के बच्चे पर चली गयी। वो बाहर खड़ा हम सबको ही देख रहा था। सब खाना खाने में मस्त थे मैंने जैसे ही उसकी तरफ देखा वह मुस्कुरा दिया , उसकी मुस्कराहट इतनी प्यारी थी की मैं खुद को उसके पास जाने से रोक नहीं पायी मैंने बाहर आकर उस से कुछ बाते की अच्छा लगा वो काफी प्यारा था और जैसे ही मैंने उसे एक फोटो के लिए पूछा वो तुरंत अपनी दो उंगलिया उठाकर मेरी बगल में आकर खड़े हो गया और मुस्कुरा उठा। वो तस्वीर शायद मेरे हर दोस्त ने क्लिक की थी सच में वो बहुत खूबसूरत भी थी। वो वहा से चला गया और खाना खाकर हम सब भी बाहर चले आये। मैं कॉफी बहुत कम पीती हूँ लेकिन यहाँ डोसा खाने के बाद कई सालो में पहली बार कॉफी पीने का मन हुआ और मैंने एक कोल्ड कॉफी अपने लिए ली और पैदल ही चल पड़े बाकि सबने चाय पी।
काफी वक्त हो चुका था और अब तक सब थकने लगे थे इसलिए तय हुआ की अब होटल जाया जाये और कुछ रेस्ट किया जाये। एक बार फिर हम सब ऑटो में थे BHU की खूबसूरती निहारते हुए वहा से चल पड़े। बनारस की सड़को पर ट्रेफिक बहुत होता है और साथ ही ये बाइक वाले और रिक्शा वाले कही से भी निकल जाते है। होटल पहुंचकर सब अपने अपने कमरों में चले आये और आराम करने लगे लेकिन मेरी आँखों से नींद कोसो दूर , मुझे लग रहा था सोने से शायद मैं वक्त बर्बाद कर दू इसलिए मैं बस बैठकर बनारस के बारे में सोचती रही , क्या सच में कोई शहर मुझे इतना अजीज हो सकता है सिर्फ इसलिए की वो शहर “बनारस” है। उस शाम मैं बहुत खुश थी पूरा दिन मैं सिर्फ बनारस की सड़को पर घूमते रही। शाम 5 बजे मैंने सबको उठाया और तैयार होने को कहा क्योकि हमे दशाश्वमेध घाट पर की गंगा आरती देखने जाना था। शाम में थोड़ी ठण्ड होती है इसलिए मैंने गर्म टीशर्ट पहना और उसे पहनते ही मेरी लेखिका वाली छवि गायब हो चुकी थी और सच कहु तो मुझे वैसा ही लुक पसंद है। सभी तैयार होकर निकले और सभी काफी अच्छे लग रहे थे। जैसे ही हम सब दशाश्वमेध घाट के चौराहे पर पहुंचे मेरी आँखे चमक उठी वो जगह रौशनी से भरी हुई थी , वहा से 500 मीटर की दूरी ऊपर घाट था जहा गंगा आरती होने वाली थी और काफी लोग जा रहे थे। मेरी आँखे नहीं हट रही थी उन सब से , सबके हँसते मुस्कुराते चेहरे , रंगीनिया , रौशनी से भरा वो शहर इस वक्त मेरी आँखों में उतर रहा था। हम सब घाट की तरफ चल पड़े , भीड़ काफी ज्यादा थी लेकिन अच्छा लग रहा था। हम सब घाट की सीढ़ियों पर पहुंचे , गंगा आरती में काफी लोग शामिल हुए थे आधे लोग अगर सीढ़ियों पर थे तो बाकि आधे लोग पानी में खड़ी नौकाओं सवार थे। वो काफी ज्यादा खूबसूरत था इतना की आपको उस से प्यार हो जाये।
आरती शुरू होने में थोड़ा वक्त था हम सब भी सीढ़ियों पर खड़े होकर सब देखने लगे। गंगा आरती के बाद वहा पानी में दिए बहाये जाते है। मैंने भी एक खरीदा और उसे जलाकर हाथ में रख लिया। आरती शुरू हुई और यकीन मानिये उस वक्त मेरी नजरे बस सामने थी और लग रहा था जैसे मैं कोई खूबसूरत सपना देख रही हूँ। माँ गंगा की आरती में हर कोई डूब चुका था। आरती के बाद मैंने दिये को पानी में छोड़ दिया बिना कुछ माँगे क्योकि मेरे महादेव ने बिना मांगे ही मुझे वो सब दिया है जो मेरे लिए सही था। पूजा अभी जारी थी इसलिए मैं वापस अपनी दोस्त के पास चली आयी और वही खड़े होकर आगे की पूजा देखने लगी। उस वक्त वहा खड़े होकर महसूस हो रहा था जैसे ये मेरी जिंदगी का दिन हो , इसके बाद शायद मेरा मन इतना शांत ना हो , इसके बाद शायद मैं कभी वो महसूस ना पाउ जो इस वक्त हो रहा है। उस जगह पर खड़े होने से पहले मेरे अंदर बहुत कुछ भरा था , बहुत सारा गुस्सा , बहुत सारी झुंझलाहट , बहुत सारी उलझने और धीरे धीरे वो सब खाली हो रहा था।
वहा खड़े होकर मैंने महसूस किया की बीते कुछ सालों में मैंने खुद को बहुत सख्त बना लिया है। जाने अनजाने में ना जाने कितने ही लोगो का दिल दुखाया है , वहा खड़े होकर मुझे ना पैसा याद आ रहा था , ना अपना स्टेटस , ना अपना काम और ना ही कोई पूर्व प्रेमी,,,,,,,,,,,,,,,,मुझे बस याद आ रही थी वो लड़की जो अब पहले जैसी नहीं रही। उस वक्त मैंने वो गुस्सा वो नफ़रत निकालकर फेंक दी जो अब तक मेरे अंदर था , मैंने वो एकतरफा अहसास वही छोड़ दिए जिनका अब कोई मतलब नहीं रह गया था। मैंने उन सपनो को वही छोड़ दिया जो अब बेमकसद थे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हाँ मैं खाली हो चुकी थी और उस वक्त मैंने महसूस किया की मैं अब खुद को सम्हाल लुंगी।
इन बातो से शायद आप थोड़ा इमोशनल हो सकते है लेकिन ये मैंने सच में किया ,, बहुत आसान होता है दुसरो से सवाल करना लेकिन खुद से सवाल करना उतना ही मुश्किल , उस रात मैंने खुद से सवाल किये और यकीनन मेरे पास हर सवाल का जवाब था। मेरे गले में कुछ चुभने लगा , आँखे नम होने लगी , पैर काँप रहे थे मैंने एक गहरी साँस ली महादेव को याद किया। जब आप उस जगह खड़े होते है तब आप खुद से झूठ नहीं बोल सकते , आपको अपना अहम् शून्य नजर आने लगता है , आप सब भूल जाते है बस याद रहता है तो महादेव का नाम,,,,,,,,,,,,,,,,,,,और मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानती हूँ की उस शाम मैं वहा गयी। मैं काफी हल्का महसूस रही थी और खुश भी थी। आरती समाप्ति के बाद सभी वहा से जाने लगे , कुछ वही रुककर उस माहौल को महसूस कर रहे थे , कुछ तस्वीरों और विडिओ में व्यस्त तो कुछ एक दूसरे का हाथ थामे घाट की उन सीढ़ियों पर घूमने लगे।
वही सीढ़ियों से लगकर एक छोटा लड़का महादेव की पोशाक में बैठा था , उन्ही के साथ बैठी थी छोटी माँ पार्वती और कुछ दक्षिणा लेकर वो सबके साथ फोटो खिंचवा रहे थे। दोस्त ने कहा की मुझे भी उनके साथ एक तस्वीर निकालनी चाहिए
मैं जाकर उन दोनों के बीच बैठ गयी , छोटे महादेव ने मेरे बाँयी तरफ थे उन्होंने नन्हे हाथो से मेरी बाँह थाम ली , वही दाँयी तरफ बैठी छोटी माँ पार्वती ने अपना सर मेरे कंधे पर टिका लिया। वो पल काफी खूबसूरत था यार मुझे जैसे इंसान को और क्या चाहिए ? बच्चो का ये दुसरा रूप देखने को मिला। फोटो लेकर हम सब वहा से निकल गए। काफी खूबसूरत नजारा था उस वक्त , चारो ओर चमचमाती दुकानें , दुकानों पर लगी लोगो की भीड़ काफी आकर्षक लग रही थी। चलते चलते मेरी नजर पड़ी एक आदमी पर जिसके हाथ में था बबल्स वाला पाइप , वो नहीं होता जिस से साबुन के बुलबुले निकलते है,,,,,,,,,,,,,,मुझे ये बड़ा पसंद है मैंने खरीद लिया और तो और मैंने चलते चलते उसे इस्तेमाल करना भी शुरू कर दिया। एक बेपरवाह लड़की जिसे दुनिया की कोई खबर नहीं उन बुलबुलो को देखकर खुश हो रही थी मुस्कुरा रही थी जबकि वो जानती थी ये बस कुछ वक्त के लिए है। इस हरकत में काफी लोगो को मेरा बचपना नजर आता है लेकिन मैं सबसे एक बात कहना चाहती हूँ जिम्मेदारियां तो यू ही आती जाती रहेगी लेकिन अपने अंदर के बच्चे को ना हमेशा ज़िंदा रखे।
घूमते घामते हम सब फिर से चौराहे पर चले आये और यहाँ नानू भैया को फिर से भूख लगी। विश्वनाथ गली के चौराहे से लगकर कोने पर ठंडाई की कई दुकाने है तो ये तय हुआ की सब ठंडाई पिएंगे। अब देखो महादेव की नगरी में आकर तुमने भैया ठंडाई नहीं पी तो क्या पीया ? सभी दुकान के अंदर और वहा भांग वाली ठंडाई भी चलती है लेकिन हम में से किसी ने नहीं पी। ठंडाई एक बड़े से मिटटी के कुल्हड़ में आयी लेकिन जैसे ही मैंने देखा मेरी भँवे चढ़ गयी इसमें भी रबड़ी डाली हुयी थी
यार ! हर चीज में रबड़ी कौन डालता है ? उस रबड़ी से असल चीज का टेस्ट ही कम हो जाता है पर शायद ये बनारस का फैशन होगा,,,,,,,,,,,,,,,मैंने थोड़ा सा खाया बाकि अनु को दे दिया। बनारस की ठंडाई भी काफी स्ट्रांग होती है ये मुझे अगले 5 मिनिट में पता चल गया जब दुकान से बाहर निकलते हुए सामने ध्यान नहीं दिया और सामने से आते एक अंकल से टकरा गयी
“अरे अरे अरे अरे अरे”,उनके मुंह से बस यही निकला मैंने खुद को पीछे किया उनसे सॉरी कहा और साइड हो गयी मेरे दोस्त एक बार फिर मुझ पर हंस रहे थे। इस हरकत के बाद उन्हें एक नयी चीज मिल गयी और उन्होंने झूठ ही कह दिया की मेरी ठंडाई में भांग थी,,,,,,,,,मैंने भी मान लिया हालाँकि उस वक्त मेरा सर घूम रहा था क्योकि मैं 3 दिन से बिल्कुल भी सोइ नहीं थी। वहा से निकलकर हम सब साइड में चले आये ! उस वक्त सब खुश थे इसलिए सबने कहा की यही घूमेंगे होटल देर से जायेंगे तो भैया हम सब निकल पड़े एक बार फिर बनारस की सड़को पर वो भी पैदल,,,,,,,,,,उस शहर की सबसे खूबसूरत बात मुझे ये लगी की यहाँ देर रात भी आप लोग बिना किसी डर के घूम सकते है , यहाँ कोई लड़का आपको घूरकर नहीं देखेगा , भीड़ में कोई गलत तरीके से नहीं छुएगा , किसी तरह की कमेंटबाजी तो बिल्कुल नहीं , सब प्यार से दीदी भैया कह के बात करते है,,,,,,,,,,,,,!!
हम सब पैदल चले जा रहे है , किधर जा रहे ? क्यों जा रहे ? किसी को नहीं पता बस चले जा रहे। आधे घंटे घूमने के बाद सबको भूख का अहसास हुआ तो सब खाना ढूंढने लगे , अब जिस सड़क पर हम सब चल रहे थे वहा बड़े होटल्स थे और हम ठहरे मिडिल क्लास तो कुछ और जुगाड़ ढूंढने लगे। थोड़ा आगे चलकर ही हमे दिखाई दिया और ठेला जहा मिल रहा था गरमा गर्म लिट्टी चोखा बस हम सब वही रुक गए और खाने लगे। आधे से ज्यादा पेट भर चुका था हम सब फिर चल पड़े लेकिन खाना अभी भी चाहिए था सबको,,,,,,,,,,,,,सड़क पर घूमते हुए हम सबको 3 घंटे से ज्यादा हो चुके थे रात 11 बजे के आस पास एक दुकान मिली वहा से खाना पैक करवाया और सीधा होटल,,,,,,,,,,,,,,बनारस आने के बाद ये पहली बार था जब हम सबने साथ खाना खाया था। खाना खाने के बाद सब सोने चले गए लेकिन उस से पहले मैंने और मास्टर ने तय किया की सुबह 5 बजे अस्सी घाट चलेंगे और वहा उगता सूरज देखंगे।

12 नवम्बर 2021
मैं अपने तय समय पर उठ चुकी थी,,,,,,,,,उठी क्या यू मान लीजिये मैं सोइ ही नहीं थी। ट्राउजर टीशर्ट और जैकेट पहने मैं तैयार थी,,,,,,,,,,,,,,,,लेकिन सिर्फ मैं बाकि सब सो रहे थे और जिस तरह से सो रहे थे उन्हें देखकर लगा नहीं था की वो उठेंगे। मुझे देखकर शमा उठ चुकी थी इसलिए अस्सी घाट तो नहीं लेकिन हाँ सुबह की चाय पीने जरूर हम बाहर चले आये। बनारस का एक रूल है इसे ना आप बाइक , ऑटो , कार से घूमो तो वो फील नहीं आएगा जो पैदल घुमकर आता है। बनारस की गलिया , सुबह की हल्की गुलाबी ठण्ड , जेब में हाथ डाले जब आप चले जाते है और सहसा ही आपके कानो में पड़ता है “जय शिव शंभो”
सुनकर दिल खुश हो जाता है।
होटल के बगल वाली गली में थोड़ा आगे जाकर मेन रोड के कॉर्नर से लगकर ही चाय वाला मिल गया। उसे दो कुल्हड़ चाय देने को कहा। हमारे अलावा भी कुछ लोग वहा थे कुछ बगल वाले ठेले पर सब्जी कचौड़ी खा रहे थे। लड़के ने चाय रखी , मैंने चखी वो चाय अब तक की सबसे बढ़िया चाय थी , मतलब हम दो दिन बनारस में थे और हमे पता ही नहीं की हमारे बगल में ही इतनी बढ़िया चाय मिल रही है। एक कुल्हड़ चाय की कीमत थी मात्र 6 रूपये , तो आप लोग जब भी बनारस जाये शिवाला में सिटी मॉल के बिल्कुल सामने आपके बांयी तरफ आपको एक छोटी गुमठी मिलेगी वहा चाय जरूर पीना।

चाय पीकर घूमते घामते वापस आये तब तक 8 बज चुके थे। आकर सबको उठाया और तैयार होने कहा। ये सारे लोग पहले दिन इतना घूम चुके थे की अगले दिन उठने में इन सबको मौत आ रही थी। खैर जैसे तैसे सब उठे , लड़को को नहाना था गंगा में तो उन्होंने बैग में भरे कपडे और होटल से बाहर वहा से रिक्शा लिया और निकल पड़े काशी विश्वनाथ बाबा के दर्शन करने। हमे आज भी उसी जगह जाना था जहा दशाश्वमेध घाट था , उसी में बाकि सब नहाने वाले भी थे ,, घाट से कुछ पहले ही मंदिर के लिए जाने वाली गली थी। सभी दशाश्वमेध घाट चले आये , सुबह में भी यहा थोड़ी भीड़ थी लोग नहा रहे , कुछ पंडित बैठे थे जो सबके माथे पर चंदन और तिलक लगा रहे थे , कुछ संकल्प करवा रहे थे , कुछ फोटोग्राफर भी थे जो 20 रूपये में तुरन्त फोटो निकालकर दे रहे थे , कुछ नहाने के बाद वही कपडे बदल रहे थे , कुछ नहाते नहाते फोटो निकलवा रहे थे , कुछ में बहस चल रही थी जैसे की एक आंटी जी ने कहा,”ए रिंकिया के पापा उह गमछा नहीं रखे हो”
काफी परिवारिक माहौल लग रहा था मैं होटल से नहाकर तैयार होकर आयी थी इसलिए बस एक साइड होकर उन सबको देख रही थी। एक चोटी वाले भैया हाथ में DSLR पकडे मेरे सामने आये बड़े ही प्यार से कहा,”दीदी फोटो निकलवाईयेगा , 20 रूपये में एक है तुरंत निकाल के देंगे”
ये लोग इतना प्यार से पूछेंगे की पहली बार में तो आप मना ही नहीं कर सकते , मतलब इतने प्यार से अगर वो ये भी कह दे ना की “भैया अपना एक ठो किडनी दीजियेगा बाबू के लिए आई फोन खरीदना है”
मैं कह रही हूँ तुम अपनी एक किडनी के साथ साथ बगल वाले की भी एक किडनी दे दोगे। तो जब तक हम उन भैया को ना कहते तब तक उन्होंने फिर पूछ लिया और मुझे हाँ कहना पड़ा। एक दो तस्वीरें मेरी , बहन और दोस्त की निकलवाई। बाकि सब भी नहाकर तैयार होकर आ चुके थे इसलिए उनका भी फोटोशूट हो गया। उसके बाद सबने फिर बैग उठाये और निकल पड़े काशी विश्वनाथ बाबा के दर्शन करने,,,,,,,,,,,,,,,,,,अच्छा जिस जोश के साथ हम सब निकले थे वो गली में आते ही ठंडा पड़ गया। मंदिर जाने के लिए 1 किलोमीटर लम्बी लाइन लगी थी , और जो लाइन में थे वो सुबह 8 बजे से खड़े थे लेकिन दर्शन नहीं हुए। घूमकर हम सब भी सबसे आखिर में आ लगे। लाइन आगे खिसक ही नहीं रही और हम सब बस एक दूसरे की शक्ल देख रहे।
लाइन में लगने वालो के लिए एक सुविधा और थी वहा बगल में बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था “VIP दर्शन मात्र 300 रूपये में” मंदिरो के बाहर लिखी गयी इस लाइन से मुझे बेहद नफरत है भले वो पैसा मंदिर के विकास में ही क्यों ना खर्च हो लेकिन लोगो की श्रद्धा का क्या ? उनके हिसाब से लाइन में खड़े लोग तो पागल है,,,,,,,,,,,,,,,,महादेव के दर पर कोई VIP नहीं होता सब समान है इसलिए मैंने ये सुविधा को दरकिनार कर दिया और कहा की भले 4 घंटे लाइन में लगना पड़े जायेंगे तो लाइन से ही,,,,,,,,,,,,,,,,!!
और मेरा ये फैसला बहुत सही था क्योकि उस लाइन में लगकर आगे बढ़ते हुए मैंने सेंकडो दुकाने देखी , कई नए चेहरे देखे , कई भाषाएँ सुनी , कई रंग देखे , नयी नयी बातें सुनी कुछ मजाकिया कुछ गंभीर , अगर मैंने 300 वाला टिकट लिया होता तो ये सब देखने को थोड़े ना मिलता और जो मैं अक्सर बनारस की संकरी गलियों की बातें करती हूँ ना ये वही गलिया थी मतलब इतनी संकरी की सिर्फ दो बाइक साथ निकल सके। इन गलियों में तरह तरह की दुकाने थी हर दुकान पर कुछ नया। एक जगह लाइन रुकी तो वहा नजर पड़ी 4 छोटे लड़को पर यही कोई 14-15 की उम्र वाले वो सब रंगीन चश्मा लगाकर फोटो खिंचवा रहे , एक ने आकर सर पर चपत मारी और चश्मा ले गया। उन को देखकर लग रहा था जैसे शिवम् मुरारी का बचपन हो , जैसे वंश मुन्ना इन्ही गलियों में बड़े हुए हो और ये एक कहानी लिखने वाला हर चेहरे में अपने किरदारों को ढूंढने का भरकस प्रयास करता है। मैं भी उस वक्त वही कर रही थी , बगल से बनारसी साड़ी में लिपटी लड़की निकली तो लगा सारिका है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बस यही सब चल रहा था और मुझे तो भैया लाइन में लगने का जरा भी अफ़सोस नहीं था

2 घंटे बाद हम सब पहुंचे मंदिर , इन दिनों वहा काम चल रहा था इसलिए सब अस्त व्यस्त था लेकिन लोगो की आवाजाही काफी थी। उस मंदिर के कॉरिडोर में सारे बंदर भी थे जिन्हे देखकर मुझे मेरे रिश्तेदारों की याद आ गयी।,,,,,,,,,,,,,,,ओके सॉरी ,, तो आगे बढे अंदर बाबा विश्वनाथ का मंदिर था , मंदिर में एक कोने में “शिवलिंग” स्थापित थे और उन्ही के दर्शन के लिए हम सब आये थे। भारत में 12 ज्योतिर्लिंग है और काशी विश्वनाथ उनमे से एक है। मुझे ख़ुशी है की मैंने ज्योतिलिंग दर्शन का ये सफर बनारस से शुरू किया है और मेरी हमेशा कोशिश रहेगी की ये सफर जरूर पूरा हो। भीड़ होने की वजह से सब जल्दी जल्दी में दर्शन करके वहा से निकाले जा रहे थे। हम सब भी बाहर आ गए मैं इस अपना सौभाग्य ही कहूँगी की उस दिन मुझे दो बार दर्शन करने का मौका मिला। पहली बार में मैं अपने हाथ में पकड़ा फल उन पर नहीं चढ़ा पायी और बाहर चली आयी मास्टर ने देखा तो कहा,”अरे इसे चढ़ाना चाहिए था चलो”
कहकर हम एक बार फिर लाइन में थे और मैंने दूसरी बार उनका दर्शन किया।
बाबा विश्वनाथ के दर्शन करके हम सब आये “माँ अनपूर्णा” के मंदिर जो की बगल में ही था लेकिन घूमकर जाना पड़ा। यहाँ भी काफी लोग थे पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। हम सबने अच्छे से दर्शन किये और वही रुक गए। हमारे हिन्दू धर्म में एक मान्यता है की आप किसी भी मंदिर जाये आपको मंदिर के प्रांगण या सीढ़ियों पर कुछ देर बैठना होता है,,,,,,,,,,,,,,,मैंने ये बचपन से देखा है तो वही मंदिर में ही एक बरामदे की सीधी थी वहा मै आकर बैठ गयी , दूसरी और मास्टर जी थे ,, यहाँ मेरे साथ एक मजाकिया हादसा हुआ। मैं जैसे ही आकर बैठी उसके अगले ही पल एक अंकल आये उन्होंने मेरे सामने चुटकी बजाकर मुझे उठने का इशारा किया , मुझे लगा मुझसे कोई गलती हुई है या मैं गलत बैठी हूँ , या फिर वो कोई पंडित होंगे इसलिए मैं बिना कुछ कहे साइड हो गयी। अंकल आये मेरी जगह बैठे हाथ जोड़े मुंडी ऊपर उठायी कुछ बुदबुदाया और निकल गए , मैं बस मुंह फाडे उनको देख रही थी इसके बाद मास्टर जी जो हँसे है मतलब हमे भी ये फील हुआ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गज्जब बेइज्जती है यार।
माँ के मंदिर से निकलकर हम सब वापस विश्वनाथ गली में चले आये , वहा से चलते हुए मेंन सड़क पर आये और एक बार फिर आवाज आयी की “चलो कुछ खाते है” विश्वनाथ गली से निकलते ही साइड में एक बड़ा सा रेस्त्रो था जहा काफी भीड़ थी हम सब भी उसी में चले आये। कुछ खाने बैठो तो सबसे बड़ी समस्या ये की “क्या आर्डर करे ?” कुछ देर बाद नानू भैया ने ही आर्डर किया सबके लिए खस्ता पूरी और सब्जी साथ में जलेबी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मतलब खाकर मजा आ गया साथ में था मठ्ठा।
खा पीकर सब बाहर आये शाम हो चुकी थी और अब तक शमा 10 बार याद दिला चुकी थी की तुम्हे इंस्टा पर लाइव जाना है अपने रीडरस के लिए , अब वादा किया था निभाना भी जरुरी था , हम सभी दशाश्वमेध घाट चले आये जो की पास में ही था। मैं नहीं जानती थी लाइव में क्या होता है और कैसे बातें की जाती है ? लेकिन आप सबकी ख़ुशी के लिए मैं आना चाहती थी , आधे टाइम तो मैंने आप सबको सिर्फ घाट के ही दर्शन करवाए , वहा काफी लोग थे तो मुझे हिचकिचाहट हो रही थी साथ ही काफी शोरगुल भी था। खैर लाइव सेशन खत्म कर हम सब फिर निकले होटल की ओर लेकिन मेरे दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था इसलिए मैंने कहा अस्सी घाट चलेंगे , 2 लोग काफी थक चुके थे इसलिए वो होटल चले गए और बाकि चार चले आये अस्सी घाट , मास्टर और उनके भाई अलग घूमने लगे मैं और शमा अलग वहा भी शाम की आरती चल रही थी लेकिन ज्यादा भीड़ नहीं थी बस कुछ ही लोग थे और आप आराम से कही भी बैठकर उस आरती का आनंद ले सकते है। मैं और शमा सीढिया उतरकर नीचे चले आये,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं जो अक्सर बनारस में सुकून की बातें करती हूँ वो यही था अस्सी घाट पर , मैंने 2 दिन बनारस खूब घुमा लेकिन जो सुकून और राहत अस्सी घाट पर मिली वो कही नहीं थी। यहाँ मैंने फिर कुछ दीप गंगा में बहाये और इस बार कहा की “बस महादेव मेरी जिंदगी में शांति बनाये रखे”
आरती खत्म हो चुकी थी , सभी नौका किनारे आ लगी थी कुछ लोग रात में नौका की सवारी करने जा रहे थे तो कुछ वही आस पास बैठकर बतिया रहे थे। सीढ़ियों से निचे कुछ दूर तक रेतीली जमींन थी जहा लोग घूम रहे थे। कुछ कपल्स भी थे सब अपने आप में गुम किसी को किसी की परवाह नहीं किसी को किसी से कोई मतलब नहीं ,, मैं और शमा भी वही घूमने लगे चलते चलते हम किनारे चले आये पानी से कुछ दूर पहले मैंने शमा से वही बैठने की इच्छा जाहिर की। उसने एक नजर नीचे देखा वह बस मिटटी थी जो अब जम चुकी थी। मैं उसकी दुविधा समझ चुकी थी इसलिए उसे बैठाते हुए कहा,”कोई बात नहीं कपडे धूल जायेंगे”
खामोश हम दोनों वही बैठकर सामने पानी में तैरती नौकाओं देखने लगे। वो वक्त काफी खूबसूरत था , रात का वक्त , खुला आसमान , हल्की ठंडी हवाएं , सुगंधित माहौल और साथ ही एक सुकून जिसे सिर्फ वहा बैठकर महसूस किया जा सकता है। बातें करने से ज्यादा उस वक्त खामोश बैठकर उन नजारो को देखना अच्छा लग रहा था। खामोश बैठी मैं बस गंगा के पानी को निहार रही थी , इस वक्त मेरे मन में कुछ नहीं था वो बिल्कुल खाली था , दिमाग एकदम शांत और हाथ बंधे हुए।
“दीदी दिया जलाईयेगा , ले लीजिये ना”,एक छोटी लड़की की आवाज मेरे कानो में आकर पड़ी और मेरा ध्यान टूटा मैंने सामने देखा एक बहुत ही प्यारी सी लड़की हाथ में टोकरी लिए खड़ी थी जिसमे कुछ दीपक रखे थे। वो अपनी बड़ी बड़ी आँखों से मुझे देखे जा रही थी और फिर उसने बड़े ही प्यार से अपने माथे पर आते उन बालो को साइड करते हुए कहा,”ले लीजिये ना”
“मैंने अभी अभी दो दीपक जलाये”,मैंने धीरे से कहा हालाँकि ऐसा नहीं था मुझे उसे वहा से भगाना था बल्कि जो दिए हम सब पानी में बहा रहे थे वो सब कुछ देर जलते और फिर पानी में डूब जाते जो की मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।
“ले लीजिये ना सिर्फ 10 रूपये का है”,उसने फिर आसभरे स्वर में कहा
मैं चाहती तो उसे 10-20 रूपये ऐसे भी रखने को दे देती लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया क्योकि इतनी कम उम्र में भी वो बच्ची काम करके पैसे कमा रही थी उसकी यही बात अच्छी लगी और मैंने उस से एक दीपक लेकर उसके हाथ में रखते हुए कहा,”ये लो , इसे जलाओ और वहा पानी में बहा दो”
“अरे आप बहाइये”,उसने अपनी बड़ी बड़ी आँखे मिचमिचाते हुए कहा
“नहीं इसे तुम जलाओ और तुम ही बहाओ और गंगा मैया से कहना की वो तुम्हे एक अच्छी जिंदगी दे , तुम खूब तरक्की करो और महादेव हमेशा तुम्हारी रक्षा करे , चलो जाओ”,मैंने उसके मासूम से चेहरे को देखते हुए कहा
उसने जब सूना तो ख़ुशी ख़ुशी पानी की तरफ चली गयी। उसने अपने नन्हे हाथो से वो दीप जलाया और माँ गंगा में प्रवाहित कर दिया। उस वक्त उसके चेहरे पर जो चमक और होंठो पर जो मुस्कराहट थी वो देखकर आप सब भूल सकते है। वो बहुत प्यारी लग रही थी , दीप बहाकर वो वापस आयी तो मैंने और शमा ने उसे पैसे दिए उसने अपना नाम “रुपसा” बताया ,, वो बिल्कुल अपने नाम की तरह थी साथ ही बातूनी भी अपने बालो को साइड में करते हुए उसने एक बार
फिर कहा,”मैंने इस बार बेबी कटिंग करवाया है”
उसकी बातें सुनकर मैं फिर मुस्कुरा उठी , मैंने उस से कुछ बातें की तो बातो बातो में उसने बताया की वो यहाँ बस अपनी दोस्त की मदद करने आयी थी ये दिए ये टोकरी उसकी नहीं है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,एक छोटी सी बच्ची के मन में दोस्ती को लेकर इतना खूबसूरत अहसास था सुनकर ही आँखे नम हो गयी , बड़े होकर हम सब दोस्ती के मॉयने भूल चुके है छोटी छोटी बातो पर दोस्ती खत्म , रिश्ते खत्म लेकिन उस वक्त उस छोटी सी बच्ची ने मुझे ये अहसास दिलाया की दोस्ती से बड़ा इस संसार में कुछ भी नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
बातो बातो में उसने ये भी बताया की उसे 50 कमाने है ताकि उनसे वह झूला झूल सके , 30 तो उसके पास हो चुके थे 20 और बचे थे और दो दिए भी मैंने उन्हें भी खरीदने का सोचा इस से पहले ही मुझसे कुछ पीछे बैठे एक लड़के ने उसे अपनी तरफ बुलाया। अब जैसा की रुपसा बातुनी थी तो वह उनसे भी बातें करने लगी। लड़के ने 2 दीपक लिए और रुपसा से कहा की वह उन्हें जलाकर गंगा में बहाये और कुछ अपने लिए मांगे। सुनकर अच्छा लगा , रुपसा भी ख़ुशी ख़ुशी दिये लेकर गंगा किनारे जा पहुंची और दीपक जलाकर बहा दिए अब उसके पास झूला झूलने के पर्याप्त पैसे थे और उसके चेहरे की ख़ुशी दुगुनी हो चुकी थी।

हमारे पीछे बैठा लड़का उठकर हमारी बगल से जैसे ही जाने लगा मैंने पूछ लिया,”भैया आप कहा से है ?”
“यही बनारस से”,लड़के ने रूककर कहा वो हमारी ही उम्र का था या शायद एक दो साल बड़ा हो
“मतलब यही जन्म हुआ है आपका ?”,मैंने एक बहुत बचकाना सवाल पूछा क्योकि वो देखने में साऊथ साइड का लग रहा था
“हां जी यही से , वो सामने हमारी ही नौका है”,उसने सामने पानी में खड़ी अपनी नाव की तरफ इशारा करके कहा
“आपका नाम क्या है ?”,मैंने फिर सवाल किया
“अज्जू”,उसने मुस्कुरा कर कहा
“सिर्फ अज्जू या कोई और नाम ?”,मैं ना जाने क्यों एक अनजान से इतने सवाल कर रही थी ?
“हाँ बस अज्जू ही है”,उसने कहा
“तो अगली बार जब हम लोग आये तब ऐसे बुलाये “अज्जू भाईईई”,मैंने अपना हाथ उठाकर सामने देख ऊँची आवाज में कहा तो वो हसने लगा और कहा,”हाँ बिल्कुल , वैसे आप लोग कहा से ?”
“मैं राजस्थान से , ये धनबाद बाकि उप्र से”,अब तक मास्टर और अनु भी आ चुके थे
जैसे ही मैंने राजस्थान कहा सामने से आती एक आंटी ने कहा,”मैं जयपुर से”
“अरे वाह ! हेलो मेम , कैसा लगा आपको बनारस ?”,मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया
“ठीक ही है , हमारे सब धार्मिक स्थल सब एक जैसे से ही है”,आंटी ने थके हुए स्वर में कहा
“हम बेटर आंसर की उम्मीद किये थे आपसे आंटीजी खैर कोई नहीं मै फिर भी उनके जवाब पर मुस्कुरा दी और कहा,”लेकिन मुझे तो बहुत पसंद आया मेरा तो दिल कर रहा है की मैं पूरी जिंदगी यही बिता दू , एक नौका खरीदू , कुछ दिए और एक चाय की टंकी और यहाँ चिल्लाऊं चाय चाय गर्म चाय”
“इंसान जिंदगीभर पानी में नहीं रह सकता , इंसान जिंदगी भर जंगलो में नहीं रह सकता , इंसानो की कुछ हदे होती है उन्हें उसी में रहना होता है , एक वक्त के बाद घर लौटना पड़ता है”,आंटी ने दार्शनिक अंदाज में कहा और क्यों कहा मुझे नहीं पता मैंने हाँ में गर्दन हिलायी तो वह वहा से आगे बढ़ गई मैंने थोड़ा तेज आवाज में फिर कहा,”आपसे मिलकर अच्छा लगा”
आंटी ने कोई जवाब नहीं दिया शायद मेरा अल्हड़पन उन्हें खटक गया। मैं जैसे ही अज्जू भैया से बात करने को पलटी वो वहा से जा चुके थे , मैंने सामने देखा तो पाया की कुछ लड़को के साथ वो अपनी नौका पर थे और वहा से निकलने वाले थे मैंने हवा में हाथ उठाया और हिलाया वो मुस्कुरा उठे। राह गहराने लगी थी ठंडी हवा के थपेड़ो में आकर मेरे गालो को कुछ यू छूआ जैसे एक थकानभरे दिन के बाद एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के गाल को सहलाते हुए उसे ये तसल्ली देता है की वह उसके साथ है , कुछ ऐसा ही बनारस की हवाओ ने किया
कुछ देर बाद हम चारो भी अस्सी घाट से बाहर चले आये मेरी नजरे एक बार फिर रुपसा को तलाशने लगी लेकिन वो नहीं दिखी। अस्सी घाट से बाहर आकर सबसे पहले चाय पी हाँ उन्ही के पास जिनकी गुमठी ठेठ बनारसी के पास है। चाय पीकर कुछ खाने का मन हुआ तो उन्ही से लगकर एक मोमोज की दुकान थी हम चारो वहा चले आये। अगर आप अस्सी घाट आये तो यहाँ के मोमोज जरूर ट्राय करना , दो वजह है पहली तो ये की मोमोज अच्छे बनाते है 40 के 10 पीस और दूसरी ये की भैया बड़े फ्रेंक है और बड़ी मजेदार बातें करते है।
हम सब खा ही रहे थे की दो दुबले पतले लड़के आये यही कोई 17-18 उम्र होगी उनकी , उनमे से एक के पास कुरकुरे का पैकेट था , जिसे देखकर दूसरे ने भड़कते हुए कहा,”अबे जे काहे लाये हो ? नमकीन लाने को बोले थे”
“दुकानवाले के पास यही था”,दूसरे ने कहा
“ठीक है हम पूछकर आते है”,पहले लड़के ने कहा और मोमोज वाले भैया की तरफ चला गया। बच्चो को देखकर मुझे लगा कुरकुरे लाये है साथ में फ्रूटी लेनी होगी लेकिन अगले ही पल बच्चे ने कहा,”भैया दारू पी ले क्या ?”
“जल्दी निपटाओ और निकलो”,दुकानवाले ने कहा और अपने काम में लग गया , जैसे कुछ हुआ ही नहीं मैं हैरानी से उन दो बच्चो को देख रही बस मतलब इतना खुले में,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पर ये गलत चीज है यार भैया इसके लिए आपकी कड़ी निंदा करेंगे हम कसम से !!

मोमोज खाकर 2 प्लेट पैक करवाया और एक बार फिर पैदल ही वापस होटल के लिए चल पड़े। बनारस की सड़को पर अगर घूमना हो तो रात में ही घूमना ज्यादा अच्छा लगेगा ,, तो यहाँ कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है की अब तक मैं बनारस की कुछ गलियों की खाक छान चुकी थी और ये काफी मजेदार एक्सपीरियंस रहा मेरे लिए। खाना लेकर होटल आये सबने खाया चूँकि बनारस में आखरी रात थी और मेरा मन थोड़ा भारी हो चुका था बस मैंने उसे अपने चेहरे पर नहीं आने दिया , अपनी भावनाओ पर काबू करना अब तक सीख चुके थे हम। खाना खाकर दोस्तों ने कहा की सब थोड़ा चिल करते है , बातें वाते करते है और इसलिए सब ऊपर टेरेस पर चले आये , सब साथ बैठकर बातें कर रहे है , हंसी मजाक चल रहा है , गाने गाए जा रहे है और मैं साइड में बैठकर इन सबको अपने फोन के कैमरे में कैद कर रही थी क्योकि मैं जानती थी कुछ वक्त बाद ये शहर नहीं होगा , ये लोग नहीं होंगे , ये वक्त नहीं होगा बस ये सब एक खूबसूरत याद बनकर हम सबकी जिंदगी में रह जाएगा। कुछ वक्त बाद सभी नीचे चले आये , बनारस में रहकर मैंने उगता सूरज नहीं देखा मुझे इस बात का दुःख था लेकिन अभी मेरे अगला दिन था क्योकि ट्रेन शाम 5 बजे थे और घूमने के लिए हम सबके पास एक एक्स्ट्रा दिन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,नानू भैया मेरी भावना समझ गए इसलिए कहा की वो सुबह मेरे साथ अस्सी घाट चलेंगे।

13 नवम्बर 2021
सुबह नानू और शमा मेरे साथ अस्सी घाट जाने के लिए तैयार थे। सुबह सुबह हम तीनो पैदल ही अस्सी घाट की तरफ चल पड़े। हल्का अन्धेरा था और सूर्योदय में अभी वक्त था। हम तीनो घाट पर चले आये , नानू भैया काफी थक चुके थे लेकिन मेरे लिए चले आये , वही शमा को मैं कही भी जाने को कहू वो चल पड़ेगी। अस्सी घाट पर घूमते हुए हम लोग सूर्योदय का इंतजार करने लगे लेकिन मेरी किस्मत आज अच्छी नहीं थी , कोहरे की वजह से सूरज दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन सूर्योदय हो चुका था। अस्सी घाट पर हम तीनो ने सुबह की आरती देखी , भजन सुने , साथ ही वहा होने वाला योगा भी देखा। मैं घूमते हुए बार बार आसमान को देखती और मन ही मन महादेव से दुआ करती की बस एक बार ये देखने को मिले , मेरी दुआ उस दिन बहुत जल्दी सुनी गयी और आखिरकार कोहरा हटा और सूर्य देवता के दर्शन हुए मैं खुश थी मैंने जो सोचा वो सब मुझे देखने को मिला लेकिन अगले ही पल ये ख़ुशी उदासी में बदलने लगी क्योकि आज बनारस में मेरा आखरी दिन था और मेरा बिल्कुल मन नहीं था वहा से जाने का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!! नानु भैया जाकर सीढ़ियों पर बैठ गए और मैं शमा के साथ अस्सी घाट का चक्कर लगाने लगी। सीढ़ियों से होकर ऊपर आये , वहा कुछ लोग बैठे थे , कुछ सुबह की चाय पी रहे थे तो कुछ बातो में लगे थे। मैं और शमा भी वहा पड़े तख्ते पर आ बैठे बातो बातो में मेरी नजर कुछ दूर बैठे लड़के पर पड़ी और कुछ पल के लिए उसी पर ठहर गयी , उस चेहरे में ना जाने क्यों मैं फिर अपनी कहानियो के किरदार ढूंढ रही थी।
उस लड़के ने जैसे ही देखा मैंने गर्दन घुमा ली मुझे ऐसा करना बड़ा अजीब लग रहा था इसलिए हम लोग वहा से उठे और निकल गए। चलते हुए शमा ने कहा चाय पीते है। चाय लेकर हम दोनों वही पास चबूतरे पर आ बैठे , हमारे सामने ही मंदिर के पंडित जी एक बच्चे को छोटी साइकिल पर घुमा रहे थे और वही गोल गोल चक्कर लगा रहे थे। मैं चाय का कप हाथो में पकडे खाली आँखों से उसे देखे जा रही थी। कुछ देर बाद ही उसी बच्चे की उम्र का एक छोटा लड़का आया और वहा खड़े होकर बड़े ध्यान से उस सायकिल को देखने लगा। उस बच्चे की आँखों में साफ दिख रहा था की वह भी उस सायकिल पर बैठकर एक चक्कर लगाना चाहता है लेकिन वह कहने से डर रहा था क्योकि उसे देखकर लग रहा था की उसके हालात अच्छे नहीं है। साइकिल वाले बच्चे से हटकर मेरी नजरे दूसरे बच्चे पर जा टिकी , मेरे जहन में ना जाने क्यों बहुत सी चीजे अचानक चलने लगी , मैं बस ख़ामोशी से उसे देखे जा रही थी वह बच्चा डरते डरते पंडित जी के पास गया लेकिन वह कुछ कहता इस से पहले ही पंडित ने बच्चे और साइकिल को उठाया और वहा से चले गए। दुसरा बच्चा वही रुक गया लेकिन उसकी नजरे अभी भी पंडित जी के हाथो में पकड़ी उस साईकिल पर थी। वो मोमेंट ऐसा था की मै खुद को नहीं रोक सकी और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मुझे अपने सीने में कुछ चुभता हुआ महसूस हो रहा था और मेरा गला भर आया था। मैंने खुद को कंट्रोल करने की कोशिश की लेकिन नहीं हो पाया और आँसू बहते गए , दोस्त का हाथ मेरे कंधे पर था उसने मुझे हिम्मत दी लेकिन उस वक्त में शायद कुछ काम नहीं करता। मैंने जैसे तैसे खुद नार्मल किया और एक गहरी साँस ली ,, इस वक्त मैं उस बच्चे को शायद खुद से जोड़कर देख रही थी , ऐसा कई बार हुआ जब बहुत सी चीजे बहुत से लोग मेरे सामने रहे होंगे और जैसे ही मैंने उन्हें पाने के लिए हाथ बढ़ाया वो एकदम से चले गए। और ये एक चीज मैं आज सबके सामने कन्विंस करना चाहूंगी की ऐसी चीजे देखकर मैं जल्दी इमोशनल हो जाती हूँ क्योकि कही ना कही वो सब मैंने भी अपनी जिंदगी में देखा है जिया है महसूस किया है।

बच्चा उदास मन से पलटकर जैसे ही जाने लगा मैंने उसे अपने पास बुलाया उस से उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम बताया “कृष्णा”
“क्या हुआ साईकिल चलानी है ?”,मैंने उस से पूछा तो उसने धीरे से ना में गर्दन हिला दी क्योकि वो जानता था की वो उस नहीं पा सकता , कुछ बच्चे कितनी कम उम्र में समझदार हो जाते है मुझे फिर चुभन का अहसास हुआ और मैंने उस से पूछा,”कुछ खाना है ?”
उसने हाँ में गर्दन हिला दी , मैं उठी मैंने शमा को वही बैठने को कहा और उसे साथ लेकर आगे बढ़ गयी , वही अस्सी घाट के अंदर सीढ़ियों पर सुबह सुबह हल्का नाश्ता मिलता है। बच्चे ने कुछ दूर खड़े एक खोमचे वाले की तरफ इशारा करके कहा,”छोला पपड़ी खाना है”
“चलो खाते है”,कहते हुए मैंने अपने दाहिने हाथ की ऊँगली उसकी तरफ बढ़ा दी , मेरी ऊँगली पकड़ने में पहले तो वो झिझका पर जब मैंने अपनी पलके झपकाई तो उसने ऊँगली थाम ली और चल पड़ा , मैंने पहली बार उसे मुस्कुराते हुए देखा। मेरी आँखों में एक बार फिर नमी थी और गला दुःख रहा था लेकिन मैं उसे लेकर खोमचे वाले के पास आयी और उस से एक प्लेट देने को कहा। कुछ पपड़ी के साथ गर्म छोले और साथ में थोड़ा रस उसने दोने में दिया। बच्चे ने उसे लिया और वही बैठकर खाने लगा तो मैंने उसे वापस चलने को कहा और हम दोनों एक बार फिर चबूतरे पर थे वह आराम से बैठकर खाने लगा , उसे खाते देखकर अच्छा लग रहा था , मैं उसके लिए ज्यादा नहीं कर पाई लेकिन मैंने एक कोशिश की उसके साथ थोड़ा वक्त बिताया ताकि वो खुद को बाकि बच्चो जैसा ही समझे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अगर मैं फिर से बनारस गयी तो मैं सबसे पहले इसी से मिलना चाहूंगी।

कृष्णा अपना खाना खाकर जा चुका था खाने के बाद जो ख़ुशी उसके चेहरे पर थी वो दुनिया की सबसे अनमोल ख़ुशी थी मेरे लिए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ऐसे ही ना जाने कितने कृष्णा वहा होंगे तो अगर कभी बनारस जाये और कोई कृष्णा आपके सामने आ जाये तो अपना स्टेटस और अहम साइड में रखकर उसे मुस्कुराने की वजह देना भूलना। अस्सी घाट से निकलकर हम तीनो ने अस्सी घाट की आखरी चाय पी , आज भी वही स्वाद था जो पहली चाय का था , चलते चलते मैंने पलटकर अस्सी घाट को देखा बिल्कुल वैसे ही जैसे एक प्रेमिका अपने प्रेमी से बिछड़ने से पहले देखती है। भारी मन के साथ हम सब वापस होटल चले आये।
आज होटल से चेक आउट करना था इसलिए हम सबके बैग पैक हो चुके थे साथ ही तैयार होने के बाद तय हुआ की सारनाथ , महाकाल मंदिर , रामनगर किला और शास्त्री जी का घर घुमा जाएगा। सामान नीचे रिसेपशन पर रख हम आखरी सवारी के लिए निकल पड़े। इन सब जगह घूमने के लिए एक ऑटो फिक्स किया और सभी आ बैठे। सबसे पहले हम सब गए रामनगर किला , उसके बाद शास्त्री जी के घर , अब वहा से निकले सीधा सारनाथ के लिए जो की थोड़ा दूर था। ट्रेफिक बहुत था और एक रिक्शा में 6 लोग एडजस्ट मुश्किल से हो पाते है इसलिए शमा और नानू भैया जो की हट्टे कट्टे वो आ बैठे ऑटो वाले भैया के बगल में , अब देखो कानपूर के लौंडो को स्वैग में रहने की आदत होती है इसलिए हमारे नानू भैया भी अपना घुटना बाहर निकाल कर बैठे थे और फिर हुआ यू की ट्रेफिक से निकलते हुए एक गाड़ी ने उनके घुटने को ही ठोक दिया।
सब थोड़ा घबरा गए हालाँकि उनको अंदरूनी चोट लगी थी और मुझे बुरा लग रहा था क्योकि वो मेरे लिए ही बनारस आये थे तो मैं बार बार उनसे पूछ रही थी की घुटना ठीक है या नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,सच में आज का दिन अच्छा नहीं था। कुछ घंटे बाद हम सारनाथ पहुंचे , नानू भैया को देखकर लगा नहीं की वो चल पाएंगे लेकिन हम सबके उतरे चेहरे देखकर उन्होंने कहा की वो चल लेंगे
मैंने उन्हें एक पैन किलर खाने को दिया और उसके बाद वो थोड़ा थी थे। सारनाथ घूमने के बाद हम सब गए बनारसी मील , जहा बनारसी साड़ियों और दुप्पटो का होलसेल का बिजनेस है। हमने कुछ साड़िया खरीदी भी और वापस चले आये। इतिहास में रूचि रखने वालो के लिए सारनाथ बहुत अच्छी जगह है लेकिन मेरे दोस्त काफी जल्दी बोर हो गए थे।

एक बार फिर हम सब अपने ऑटो में थे और वहा से चल पड़े महादेव के दूसरे मंदिर जिसका नाम है “काल भैरव” मंदिर , ये मंदिर पांडेयपुर रोड , गोलघर , नईबस्ती , वाराणसी में मिलेगा। ये महादेव का काफी पुराना मंदिर है और ऐसा कहा जाता है की अगर आप बनारस आते है तो आपको “काल भैरव” के दर्शन जरूर करने चाहिए साथ ही इन्हे बनारस शहर का कोतवाल भी कहा जाता है। ये मंदिर आपको 24 घण्टे खुला मिलेगा इसलिए आप जब भी बनारस आये तो यहाँ दर्शन जरूर करे।
काल भैरव मंदिर से निकलकर हम सबने तय किया की अब वापस होटल चला जाये ताकि सामान लेकर वहा से निकल सके। आज का दिन सच में अच्छा नहीं था वापसी के समय हम सब एक बड़े ट्रेफिक में फंस गए जहा हमारा काफी समय लग गया और सब चिड़चिड़ाने भी लगे थे। शाम के 4 बज रहे थे और अभी भी हम सब ट्रेफिक में ही थी हालाँकि शमा की ट्रेन रात 9 बजे थी लेकिन हम लोगो की तो टिकट ही बुक नहीं थी इसलिए सोचा बस से जायेंगे। गलियों से निकलकर ऑटो मेन सड़क पर चला आया लेकिन यहाँ भी ट्रेफिक बस मजेदार बात ये थी की यहाँ बहुत कुछ देखने सुनने को मिल रहा था। एक लड़का बाइक लहराते हुए आया लेकिन ट्रेफ़िक की वजह से उसे भी रुकना पड़ा। बनारस मे एक बड़ी गाली बड़े आराम से दी जाती है जिसका जिक्र तो मैं यहाँ नहीं करुँगी ,लड़के ने किसी को वही गाली दी तभी बगल वाली ऑटो में बैठी आंटी चिढ गयी और उस से झगड़ पड़ी की तुमने गाली हमे दी।
थोड़ी सी बहस के बाद ही आंटी जी ने गुस्से से कहा,”अभी चप्पल उतार के बात करेंगे”
बात आगे बढ़ती इस से पहले ही ट्रेफिक क्लियर हुआ और सब आगे बढ़ गए। होटल पहुंचे शाम के 5 बज चुके थे सबने अपने अपने बैग उठाये और होटल वाले भैया को अलविदा कहकर वहा से बाहर निकल गए। मेरा यहा से जाने का बिल्कुल मन नहीं था , अब तक वो होटल मेरा घर बन चुका था और वो गली जिस में ना जाने मैंने कितने ही चक्कर लगाए होंगे मेरी पसंदीदा बन चुकी थी। मैंने भारी मन से अपना बैग उठाया और होटल वाले लड़के को अलविदा कहकर जैसे ही जाने को हुई उसके साथ वाले लड़के ने कहा,”अरे हमे बाय नहीं कहा”
मैंने उसे भी बाय कहा और आगे बढ़ गयी। मेरा दिल कर रहा था मैं सबसे एक दिन और वही रुकने को कह दू लेकिन मैं ना कह सकी क्योकि सिर्फ मेरे लिए वो सब अपनी अपनी नौकरी अपना काम छोड़कर आये थे। आगे बढ़ते हुए मेरे सभी दोस्त पलटकर देख रहे थे सिवाय मेरे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं पलटकर एक बार उन गलियों को देखना चाहती थी लेकिन मैंने नहीं देखा क्योकि मुझे लगता है किसी से बिछड़ते वक्त अगर हम पलटकर देखे तो हमारे रुकने के चांस 70 प्रतिशत तक बढ़ जाते है और मैं ये नहीं चाहती थी। कुछ चीजे बनारस में अधूरी रही पर मैं ये भी मानती हूँ की अक्सर अधूरी चीजे फिर से मिलने की निशानी होती है। हम सब गली से निकलकर सड़क किनारे आ गए और सबको भूख भी लगी थी। सबने उस शाम बनारस की आंखरी चाय को अपने होंठो से लगाया, वो चाय मुझे फीकी लगी ये शायद इसलिए था की बनारस छोड़ने का दुःख मेरे मन पर अब हावी होने लगा था। वही खड़े होकर कुछ मोमोज खाये और उसके बाद खाया शिवाला का डोसा जो की काफी लजीज था। सबने अपना अपना पेट भरा और हम सब निकले स्टेशन के लिए। मन काफी उदास था और मैं नहीं चाहती थी की मेरे दोस्तों को इस बात का अहसास हो इसलिए मैंने अपना सर गोद में रखे बैग पर टिका लिया और खामोश आँखों से आखरी बार उस शहर को देखने लगी , मैं नम आँखों के साथ मन ही मन खुद से एक वादा कर चुकी थी की मैं तुमसे फिर मिलूंगी
ऑटो रेलवे स्टेशन पहुंचा शमा को यहाँ से अकेले जाना था उसने हम सबको अलविदा कहा और चली गयी। स्टेशन से कुछ आगे ही बस स्टेण्ड था इसलिए हम सब भी चले आये , हमारी किस्मत अच्छी थी की कानपूर जाने वाली आखरी बस हमे मिल गयी और हम सब अंदर चले आये। सबसे आखरी सीट खाली थी इसलिए हमे वही जगह मिली लेकिन आखरी सीट के कोने में एक दुबला पतला सा लड़का बैठा था मैंने आकर उस से कहा,”भैया आप आगे वाली सीट पर बैठ जायेंगे क्या ? हम 5 लोग है पीछे साथ बैठ जायेंगे”
“नहीं,,,,,,,,,!!”,उसने एकदम से मना कर दिया
“क्यों ?”,मैंने भी पूछा
“अरे नहीं बैठना हमे”,उसने उखड़े स्वर में कहा थोड़ा बुरा भी लगा क्योकि इस से पहले ऐसा किसी से सुनने को नहीं मिला था। मैंने नानू भैया को आगे वाली सीट पर बैठने को कहा और खुद उसके बगल में आ बैठी , कुछ देर बाद उसे शायद अपनी बात का अहसास हुआ हो तो उसने मेरी तरफ पलटकर कहा,”हमने दो घंटे पहले आकर ये सीट रोकी है क्योकि ये AC बस है और इस बस में यही एक खिड़की खुलती है”
“तो ?”,मैंने हैरानी से पूछा
“अरे गुटखा थूकने के लिए चाहिए , इसलिए नहीं उठ सकते यहाँ से”,उसने इस बार आराम से कहा तो मैं मुस्कुरा उठी , मतलब कुछ भी कहो कानपूर के लौंडे सच में बवाल है।
बस चल पड़ी और हम सब अपनी अपनी सीटों पर , बनारस आते वक्त हम सब जितना जोश में थे जाते वक्त उतना ही मुरझाये हुए थे। सभी सो रहे थे एक मेरी ही आँखों से नींद गायब थी। देर रात बस खाना खाने के लिए रुकी सबने खाना खाया , यहाँ पहली बार कुछ अच्छा खाने को मिला और हम सब एक बार फिर बस में ,, मैं और नानू भैया साथ में ही बैठे थे बाकि तीन लोग पीछे सो रहे थे। यहाँ नानू भैया ने जिंदगी से जुड़े कुछ अनुभव शेयर किए , कुछ अच्छी बातें भी बताई जिन्हे सुनकर मुझे महसूस हुआ की सच में वो इंसान कितना समझदार है , हालाँकि कभी कभी वो बहुत हंसी मजाक भी करता है लेकिन उसकी कुछ बातो में काफी गहराई होती है शायद उसने जिंदगी को बहुत करीब से देखा होगा।
सुबह 4 बजे हम सब पहुंचे कानपूर बस स्टेंड , अपने अपने सामान के साथ सभी बस नीचे उतरे और बाहर चले आये। यहाँ से मास्टर और अनूप को हमसे विपरीत जाना था और जाने से पहले मैं चाहती थी एक आखरी चाय पी ली जाये क्योकि इसके बाद इन सबसे कब मिलना होगा मैं नहीं जानती थी , उस वक्त ना जाने क्यों लगने लगा जैसे उस से ये मेरी आखरी मुलाकात हो। खैर हम सब बस स्टेण्ड के बाहर बनी चाय की दुकान पर आये और चाय ली,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,उसे चाय नहीं कहेंगे उसे गर्म पानी कह सकते है , जैसे तैसे उसे निगला और उन दोनों को अलविदा कहकर मैं , बहन और नानू भैया ऑटो में आ बैठे।
सुबह का वक्त था और काफी ठंड थी , ऑटो वाला अपनी मस्ती में चला जा रहा था। आधे घंटे बाद हम सब एक बार फिर नानू भैया के घर के सामने थे।

14 नवम्बर 2021
सुबह देर तक मैं सोती रही , नानू भैया चाय लेकर दरवाजे पर खड़े थे दरवाजा खटखटाया तो आँख खुली , मैंने चाय पी और नहाने चली गयी , वापस आकर सभी कपड़ो को ठीक से जमाया क्योकि आज शाम हमे कानपूर से वापस अपने शहर के लिए निकलना था। कुछ देर बाद नाश्ता आया अच्छा यहाँ नाश्ते में इतना सब देंगे की आप खा नहीं पाओगे , लेकिन मेरे पास तो नानू भैया थे मैंने उनसे भी साथ ही खाने को कहा और सब खत्म,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,वो खाने के बड़े शौकीन है इसलिए मेरा हुडी भी उन्हें फिट आ गया था।
नाश्ते के बाद नानू भैया चले गए क्योकि उन्हें भी अपनी दुकान खोलनी थी और मैं वही कमरे में रूक गयी। बहन भी नहाकर आ चुकी थी और हमे वहा से जल्दी निकलना था ताकि जाने से पहले अपनी एक दोस्त से मिल सके। बैग लेकर जैसे ही नीचे आये नानू भैया की मम्मी ने कहा की खाना खाकर जाओ।
इतना भारी भरकम नाश्ता करने के बाद किस में इतनी हिम्मत थी की वो खाना खा सके लेकिन उन्होंने इतने प्यार और मेहनत से बनाया था की ना कहने का मन नहीं हुआ। उन्होंने खाना खिलाया लेकिन साथ में पैक भी करके दे दिया , महादेव उन्हें हमेशा खुश रखे,,,,,,,,,,,,!!
नानू भैया के घर से निकलते निकलते शाम के 4 बज चुके थे जैसे ही बाहर निकले हमे मिल गए “कुमार साहब” ये वो इंसान है जिसने “हाँ ये मोहब्बत है” गाने को अपनी आवाज दी थी गाने के बदले मैंने इनसे वादा भी किया था की मैं इनके साथ चाय जरूर पिऊँगी लेकिन यहाँ वो बात हो गयी “वो हमे मिले भी तो सफर की आखरी शाम में”
मैंने उनसे अगली बार मिलने का वादा किया तो उन्होंने एक बहुत ही प्यारी सी धमकी भी दे डाली “की वो मुझ पर केस करेंगे” वो बंदा कुछ ज्यादा ही क्यूट है इसलिए अगली बार जब भी कानपूर जाना हुआ मैं उसके साथ चाय तो पक्का पीने वाली हूँ। कैब आ चुकी थी हमने अपने बैग रखे और निकल गए फजलगंज की ओर जहा मिलने वाली थी हमे हमारी बस और उसी के बगल में था बहन की एक दोस्त का घर तो सोचा क्यों ना उस से मिल लिया जाये। दोस्त के घर पहुंचे एक बार फिर चाय नाश्ता हमारे सामने था , दोस्त की मम्मी से हम 2019 में पहले भी मिल चुके थे कोमल की शादी में उन्होंने देखते ही पहचान लिया और वो है बड़ी मस्त,,,,,,,,,,,,,,,,,,हमारे बीच एक अच्छा बातचीत वाला माहौल बन चुका था और उस पल लग रहा था की मुझे कुछ दिन और रुकना चाहिए था
लेकिन टिकट्स बुक हो चुके थे और घर से निकले भी एक हफ्ता हो चुका था।
सोशल मिडिया पर दोस्ती मैं बहुत कम करती हूँ लेकिन वही कानपूर से एक वैभव भैया थे जिनसे अक्सर बात हो जाया करती थी , उस शाम उन्हें अचानक पता चला की मैं कानपूर हूँ और वो मिलने चले आये। उनसे मिलकर काफी अच्छा लगा , वो बिल्कुल मेरी तरह है गोलू मोलू साथ ही चश्मिश भी , यहाँ तक के हम दोनों की शक्ल भी सेम सी ही थी। जाने से पहले उनके साथ एक एक कप चाय पी , वो मेरे लिए कानपूर का मक्खन मलाई लेकर आये थे। एक अनजान शहर में लोगो से इतना प्यार मिलना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी और मैं शुक्रगुजार हूँ उन सबकी जिन्होंने इस काबिल समझा। मुझसे ज्यादा मेरी बस छूट जाने की जल्दी वैभव भैया को थी इसलिए उन्होंने ऑटो रुकवाया सामान रखा , हम वहा से निकल गए। जैसे ही बस के पास पहुंचे हमारी कहानियाँ सुनने वाली एक बहुत ही प्यारी लड़की हंसिका जी हमे मिली ,, हमे देखते ही उसने कहा,”संजना ?”
“जी !!”,मैंने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा , मेरी बस निकलने वाली थी और ये शायद वो भी जानती थी इसलिए उन्होंने एक प्यारा सा तोहफा बढाकर कहा,”आपकी बस निकलने वाली है , आप जाईये”
मैंने जल्दी से उनके साथ एक फोटो ली और उनसे सॉरी कहा , मुझे अफ़सोस था की मैं उनसे ठीक से बात भी नहीं कर पाई और मुझे जाना पड़ा लेकिन मैं बहुत खुश भी थी की वो काफी वक्त से यहाँ खड़े होकर मेरा इंतजार कर रही थी। मैं बहन के साथ आकर अपनी सीट पर बैठ गयी बस चल पड़ी और मैंने भारी मन से कानपूर को अलविदा कहा ,, यहाँ भी काफी चीजे अधूरी रही , काफी लोग थे जिनसे मिलना नहीं हो पाया।
कानो में इयरफोन लगाकर आँखे मूंद लेने के अलावा मेरे पास कोई और चारा नहीं था , एक अच्छे हफ्ते के बाद मुझे वापस अपनी दुनिया में लौटना था और इस बार मैं बहुत सारी अच्छी यादे अपने साथ लेकर लौट रही थी। इस बार मेरे मन में कोई उलझन नहीं थी बस था तो एक सुकून,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

अगली सुबह 5 बजे हम फिर अपने शहर में थे , अपने शहर की सड़को पर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!
अपने शहर से बनारस तक का ये सफर कभी ना भूलने वाला सफर था जिसने हमे बहुत कुछ सिखाया , उस शहर ने बाँहें फैलाकर हमारा स्वागत किया तो हमारी आँखों में सुकून भरकर अलविदा भी कहा , उस शहर ने हमे सिखाया की बुरी से बुरी परिस्तिथियों में भी मुस्कुराया जा सकता है , उस शहर ने हमे सिखाया की दोस्ती इस दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता है , उस शहर ने हमे सिखाया की हम इंसान कम इच्छाओ के साथ भी खुश रह सकते है , उस शहर ने हमे सिखाया की अगर हम किसी की तरफ मदद का हाथ बढ़ाये तो वो यक़ीनन वो हम पर भरोसा करेगा , इस शहर ने हमे सिखाया की महज थोड़े से प्यार के बदले में लोग हम पर अपना सब कुछ न्योछावर कर देते है , इस शहर ने हमे सिखाया की सपने देखो,,,,,,,,,,,,वो जरूर पुरे होते है , इस शहर ने हमे सिखाया की जो हमारा नहीं है उसके पीछे भागने से बेहतर है हम उसे अपना ले जिसकी जिंदगी में हमारी कमी है , इस शहर ने हमे सिखाया की गलतिया सिर्फ और सिर्फ माफ़ करने के लिए होती है , इस शहर ने हमे सिखाया की महज एक मुस्कुरा देने से हमारा मन हल्का हो सकता है , इस शहर ने हमे सिखाया की एक वक्त के बाद हमे घर लौट जाना चाहिए और आखिर में इस शहर ने हमे ये सिखाया की शायद हम फिर से लोगो पर भरोसा कर सकते है , उन्हें अपना सकते है , उनसे प्यार कर सकते है।
तो अगर आप बनारस जाये तो अस्सी घाट पर नौका की सवारी जरूर करना , दशाश्वमेध घाट पर शाम में माँ गंगा की आरती में जरूर शामिल होना , मणिकर्णिका घाट पर जाकर जीवन के अंतिम सच को स्वीकार करना , काशी विश्वनाथ और माँ अन्नपूर्णा के दर्शन जरूर करना , काल भैरव बाबा के दर्शन करना , BHU घूमना , सारनाथ देखना , रामनगर का किला देखना , पूजनीय शास्त्री जी के घर जाना तो बिल्कुल मत भूलना , वक्त मिले तो बनारस की संकरी गलियों की खाक छान आना , अस्सी घाट के बाहर चाय पीना , विश्वनाथ गली के चौराहे पर ठंडाई जरूर पीना , पहलवान की लस्सी , बनारस का मीठा पान , खस्ता कचोरी , लोंगलत्ता , जलेबी और समोसा , सुबह के नाश्ते में पूरी सब्जी , शिवाला में इडली चटनी , BHU में डोसा और कोल्ड कोफ़ी विथ आइसक्रीम खाना मत भूलना , रात के वक्त में अस्सी घाट पर नदी किनारे बैठकर उस हवा में बहते सुकून को महसूस करे , अस्सी घाट की लेमन टी पिए , कुछ दिए लेकर माँ गंगा में बहाने के बजाये उन्हें घाट की सीढ़ियों पर यू ही जलता छोड़ दे और उस रौशनी को निहारे , बनारस सिर्फ शहर नहीं है वो बल्कि जिंदगी है जो हमे ये अहसास दिलाती है की इस संसार मे प्रेम , दया , विश्वास , ख़ुशी , मुस्कराहट और समर्पण से बढ़कर कुछ नहीं है।

इसलिए जिंदगी में एक बार तो वहा जरूर जाये , बानरस को लेकर मैं जितना भी लिखू कम ही होगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,इसलिए इस सफर को यही विराम देना चाहूंगी क्योकि अधूरी चीजे फिर से मिलने की निशानी होती है।

हर हर महादेव और इस सफर में कौनसा पार्ट आपको अच्छा लगा कमेंट में जरूर बताये।

Read More – मेरी पहली मोहब्बत (1)

Follow Me On – facebook | instagram | youtube

Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras

संजना किरोड़ीवाल

Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras Mere Mahboob Shahar Banaras

Banaras
Banaras

17 Comments

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!