Pasandida Aurat – 29

Pasandida Aurat – 29

Pasandida Aurat
Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

नकुल ने पृथ्वी को ठंडाई में भांग पीला दी और अब पृथ्वी को वह चढ़ गयी थी। पृथ्वी होश में नहीं था और नकुल रिक्शा वाले की मदद से जैसे तैसे करके उसे रिक्शा में बैठाया। पृथ्वी का सर घूम रहा था और उसे अपने आस पास सब घूमता नजर आ रहा था। नकुल ने उसकी बाँह मजबूती से थाम रखी थी ताकि पृथ्वी नीचे ना गिर जाए। रिक्शा वाला साइकिल के पैदल पर पैर चलाते हुए उन्हें लेकर आगे बढ़ गया। नकुल होश में था उसे बस मीठा मीठा नशा हो रहा था।

पृथ्वी कभी गाना गा रहा था तो कभी हसने लगता , नकुल के लिए उसे सम्हालना मुश्किल हो रहा था। रिक्शा वाले ने रिक्शा साइड में रोका और नीचे उतरा तो नकुल ने कहा,”क्या हुआ भैया ? होटल तो आगे है ना,,,,,,,,,!!”
“एक मिनिट भैया”,कहकर रिक्शा वाला साइड में चला गया। कुछ देर बाद वह हाथ में एक कागज का गिलास लेकर आया और नकुल की तरफ बढाकर कहा,”जे भैया को भांग चढ़ गयी है जे निम्बू पानी पिला दीजिये होटल पहुंचने तक थोड़ा नशा कम हो जायेगा”


नकुल ने गिलास लिया और पृथ्वी की तरफ बढ़ाया तो कहा,”लो इसे पी लो”
“नहीं मैं पिऊंगा , मुझे तो ठंडाई पीनी है”,पृथ्वी ने छोटे बच्चे की तरह मचलकर कहा
“मैं ही गधा था जो मैंने इसे ठंडाई पिलाई”,नकुल बड़बड़ाया
“तुम गधे हो तो फिर तुम्हारी पूंछ क्यों नहीं है ?”,पृथ्वी ने कहा
नकुल को पृथ्वी पर गुस्सा भी आ रहा था और तरस भी , तभी उसका दिमाग चला और उसने निम्बू पानी का गिलास पृथ्वी की तरफ बढाकर कहा,”अरे ये ठंडाई ही तो है लो पीओ , मैंने ख़ास तुम्हारे लिए मंगवाई है”


“ठंडाई है तब तो मैं जरूर पिऊंगा”,पृथ्वी ने नकुल के हाथ से गिलास लेकर कहा और एक साँस में ही पूरा गिलास खाली कर दिया। नकुल ने राहत की साँस ली और रिक्शा वाले उन्हें लेकर आगे बढ़ गया। रिक्शा वाला नकुल को भांग के फायदे और नुकसान बताता चल रहा था साथ ही उसने नकुल को बताया कि उसे कल सुबह जल्दी “सनराइज” देखने अस्सी घाट जाना चाहिए।

नकुल को याद आया कि रिक्शा वाला जिन जिन जगहों के बारे में बता रहा था उन जगहों का जिक्र उस किताब में भी था जिसकी Writer का नाम नकुल पृथ्वी को बताते बताते रह गया था। दूसरी तरफ पृथ्वी भांग के मीठे नशे में मस्त अपना दाहिना हाथ हवा में उठाये लहरा रहा था। सर्दियों की ठंडी रात उस पर ठंडी हवाएं बदन में सिहरन पैदा करने के लिए काफी थी  

लेकिन नकुल और पृथ्वी को ठण्ड का अहसास कम हो रहा था। रिक्शा वाला नकुल को काशी के बारे में बता ही रहा था कि अगले ही पल उनके कानो में पृथ्वी के गाने की आवाज पड़ी। नकुल पृथ्वी की तरफ देखने लगा जो कि अपनी ही दुनिया में खोया अपना पसंदीदा गाना गुनगुना रहा था।


“ताना-बाना , ताना-बाना बुनती हवा , बुनती हवा
बुँदे भी तो आये नहीं बाद यहाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,हाय
साजिश में शामिल सारा जहा है
हर जर्रे जर्रे की ये इल्तिजा है,,,,,,,,!!”
“जे भैया तो बहुते बढ़िया गावत है”,रिक्शा वाले ने मुस्कुरा कर कहा


“हाँ मैंने भी आज ही सुना है”,नकुल ने कहा जो कि पृथ्वी को गाते देखकर हैरान था। अस्सी घाट पर गाना गाते वक्त नकुल को पृथ्वी का गाना अजीब नहीं लगा लेकिन इस वक्त पृथ्वी की आवाज में एक अलग ही दर्द था जिसे नकुल महसूस कर रहा था। पृथ्वी मुस्कुराते हुए फिर गाने लगा
“नजरे बोले , दुनिया तोले , दिल की जबा हाय दिल की जबा
इश्क़ मांगे इश्क़ चाहे कोई तूफान,,,,,,,,,,,,,,,हाय”
चलना आहिस्ते इश्क़ नया है,,,,,,,पहला ये वादा तुमने किया है”


आखरी दो लाइन गाते हुए सहसा ही पृथ्वी की आँखों के सामने वो पल आ गए जब उसने आरती के उस पार अवनि को देखा था। उसके और अवनि के बीच जलती आरती की लपटें थी और वो पल याद आते ही पृथ्वी का स्वर धीमा हो गया। पृथ्वी को खामोश देखकर नकुल ने कहा,”क्या हुआ तुमने गाना क्यों बंद कर दिया ? इसके आगे की लाइन ही तो इस गाने की जान है गाकर सुनाओ”


“ये गाना मुझे अधूरा ही अच्छा लगता है इसे पूरा करने वाली का मेरी जिंदगी में आना अभी बाकि है”,पृथ्वी ने अपनी पलकें झपकाकर मुस्कुराते हुए कहा। इस वक्त वह इतना प्यारा लग रहा था कि नकुल भी उसे देखकर मुस्कुरा उठा। कितने दिनों बाद वह पृथ्वी को इतना बेफिक्र और खुश देख रहा था। पृथ्वी को भांग पिलाने का उसका गिल्ट अब कुछ कम हो गया और उसके बाद वह भी पृथ्वी के साथ गाना गाने लगा , हसने मुस्कुराने लगा।

रिक्शा होटल के सामने आकर रुका। पृथ्वी और नकुल रिक्शा से नीचे उतरे। नकुल ने पर्स से पैसे निकाले और रिक्शा वाले से कहा,”ये आपका किराया और ये वो नींबू पानी के लिए”
“अरे नाही बाबू जे तुम रखो”,आदमी ने किराया लिया और निम्बू पानी के पैसे नकुल की तरफ वापस बढ़ा दिए।
नकुल को हैरानी हुई और उसने कहा,”अरे रखिये ना प्लीज”
“अरे बस मालिक ! इतना काफी है और फिर भैया इत्ता बढ़िया गाना सुनाय रहे रस्ते मा,,,,,,जे आप रखो और जाकर आराम करो हमहू भी चलते है,,,महादेव भैया”,आदमी ने रिक्शा आगे बढ़ाते हुए कहा


नकुल ने मुस्कुराते हुए पैसे जेब में रखे और कहा,”महादेव”
“महादेव नहीं हर हर महादेव”,पृथ्वी ने कहा तो नकुल को याद आया कि अभी तो उसे पृथ्वी को ऊपर कमरे में लेकर भी जाना है। बेचारा जैसे तैसे करके पृथ्वी को लेकर कमरे में पहुंचा और उसे सुलाने के बाद बेचारा खुद इतना थक चुका था कि वहा पड़े सोफे पर ही निढाल होकर गिर पड़ा। भांग के नशे की वजह से पृथ्वी गहरी नींद में सो गया।

अगली सुबह , अस्सी घाट बनारस
“यार अवनि ! तुम कितनी निर्दयी हो इस ठण्ड में तुम सुबह सुबह मुझे अस्सी घाट लेकर जा रही हो , मेरी तो कुल्फी जम जाएगी”,लम्बे और मोटे कोट से लदे होने के बाद भी ठंड से काँपती सुरभि ने अपने हाथो को आपस में रगड़ते हुए कहा
“कुछ नहीं होगा और इतनी भी ठण्ड नहीं है , अगर मेरी तरह नहाकर आती तो तुम्हे ठण्ड नहीं लगती”,अवनि ने कहा
“तुम किस मिटटी की बनी हो भाई ! अगर मैं नहाकर आती तो फिर उदयपुर वापस मैं नहीं मेरा सामान ही जाता और मुझे यही बनारस में मोक्ष मिल जाता”,सुरभि ने ठिठुरते हुए कहा।


नवम्बर की ठण्ड और धुंध चारो और फैली थी लेकिन अवनि पर तो जैसे इन दोनों का कोई असर ही नहीं हो रहा था एक पतली सी साड़ी और उस पर अपना गरम शॉल लपेटे वह सुरभि के साथ अस्सी घाट चली आयी ताकि सुबह की गंगा आरती और उगता सूरज देख सके। घाट पर सुबह की आरती की तैयारियां चल रही थी। ठंड से बचने के लिए सुरभि ने वही पास की टपरी से गर्मागर्म एक कुल्हड़ चाय ली और सुड़कने लगी।

चाय के बाद सुरभि अवनि के साथ वही घूमने लगी और कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ कि उसे अब इतनी ठण्ड भी नहीं लग रही है। दोनों ने सुबह की आरती देखी और साथ ही उगता सूरज ऐसे लग रहा था जैसे काशी में सूरज को भी आरती के जरिये जगाया जाता हो।  

 धुंध अभी भी मौजूद थी और सूरज से ऐसे लिपटी थी जैसे कोई प्रेमिका अपने प्रेमी के आलिंगन में हो। हालाँकि सूरज निकल आया था लेकिन ठंड और ढूंढ की वजह से वह अभी भी छुपा हुआ था। आरती के बाद वहा मौजूद कुछ लोग “सुबह-ए-बनारस” वाले बरामदे के सामने योगा करने के लिए जमा हो गए , कुछ घाट की मिटटी पर घूमने लगे। कुछ लोग सामने किनारे पर खड़ी नावों में जाकर बैठने लगे क्योकि सर्दियों में सुबह सुबह नाव से बनारस के घाटों को देखने का अपना अलग ही आनंद है।

सुरभि और अवनि भी एक छोटी नाव में आ बैठी जिसमें बैठे दो आदमी चप्पू के सहारे उसे चला रहे थे। सुरभि ने देखा आस पास और भी कई बड़ी नावें , क्रूज और मोटर बोट थी लेकिन अवनि ने चप्पू वाली नाव को चुना।
“तुमने इसमें बैठने का क्यों सोचा ? वहा किनारे पर कितनी सारी मोटर बोट भी तो थी”,अवनि ने कहा


“क्योकि ये नाव बनारस की सबसे पुरानी नावों में से एक है और पुरानी चीजों का इस शहर में अपनी ही इम्पोर्टेंस है। मोटर बोट में 50 लोगो के साथ बैठकर  , जेनेरेटर की तेज आवाज के साथ तुम इस शहर की हवा में फैले संगीत को महसुस ही नहीं कर पाओगी”,अवनि ने कहा
“जैसे की ?”,सुरभि ने पूछा
“अपनी आँखे बंद करो और एक गहरी साँस लेकर धीरे-धीरे छोडो और महसुस करो क्या सुनाई देता है”,अवनि ने कहा जिनकी चप्पू वाली नाव किनारा छोड़ काफी दूर आ चुकी थी और बाकि नावों से अलग ही चल रही थी।


सुरभि ने वैसा ही किया तो उसके कानों में हवा के साथ पानी पर नाव के आस पास उड़ते साइबेरियन पक्षियों के चहचाने की आवाज पड़ी। अगले ही पल मंदिर से आती घंटियों और शंखनादों की आवाज , कल कल करती नदी की आवाज और कभी कभी दूर से आती मोटर बोट के जेनेरेटर की आवाज भी पड़ी। बंद आँखे किये सुरभि मुस्कुराने लगी। उसे अपने सवाल का जवाब मिल चुका था।

नकुल और पृथ्वी मस्त सो रहे थे ना उन्होंने अस्सी का सनराइज देखा ना ही सुबह की गंगा आरती , और तो और उन्हें नींद से जगाने वाला भी कोई नहीं था। वही सिद्धार्थ सुबह सुबह तैयार होकर अपने होटल के सामने वाले घाट पर हो रही सुबह की गंगा आरती देखने चला आया। बीती रात पृथ्वी के साथ हुई झड़प से उसका मूड खराब था और इसलिए वह शयन आरती देखने भी नहीं गया लेकिन सुबह सुबह गंगा आरती देखने के बाद अब सिद्धार्थ का मन एकदम शांत और खुश था।

वह बस दो दिन के लिए बनारस आया था और आज शाम उसे सिरोही के लिए वापस भी निकलना था इसलिए जाने से पहले उसने लोकल मंदिरो के दर्शन करने का मन बना लिया। अवनि के बारे में वह कुछ नहीं जानता था क्योकि बीती रात उसने अवनि से ना उसका नाम पूछा ना ही उसके बारे में कुछ पूछा वैसे भी अवनि का उसके सामने आना उसके लिए किसी सपने के सच हो जाने से कम नहीं था। सिद्धार्थ ने आरती ली और सीढिया चढ़कर गलियों से होते हुए पैदल ही सड़क किनारे चला आया। सबसे पहले उसने चाय नाश्ता किया और फिर निकल गया मंदिर में दर्शन करने।


अवनि और सुरभि आज बनारस में रुकने वाली थी इसलिए उन्हें कोई जल्दी नहीं थी वे आराम से होटल आयी। सुरभि तैयार होकर आयी और दोनों आस पास के मंदिरो में दर्शन करने निकल गयी।
दोनों साकेत नगर पहुंची जहा वाराणसी का “संकट मोचन हनुमान मंदिर” भगवान हनुमान को समर्पित एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिर है, जिसकी स्थापना 16वीं शताब्दी के आरंभ में कवि-संत गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। इस मंदिर की मान्यता है कि यहीं पर हनुमान जी ने तुलसीदास जी को साक्षात दर्शन दिए थे, जिसके बाद उन्होंने मिट्टी की प्रतिमा के रूप में हनुमान जी को विराजमान कराया था।

यह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय कॆ नजदीक दुर्गा मंदिर और नयॆ विश्वनाथ मंदिर के रास्ते में स्थित हैं। दक्षिण दिशा में मंदिर के एंट्री गेट के सामने बड़ा सा पार्किंग बना हुआ था जहा कई बाइक स्कूटी खड़ी थी , एंट्री गेट से लगकर एक दो दुकाने और लॉकर बने थे क्योकि फोन अंदर ले जाने की अनुमति यहाँ नहीं थी। पश्चिम दिशा में कई बड़ी दुकाने और प्रशाद की दुकाने थी। पीले रंग से रंगे प्रवेश द्वार के दोनों तरफ नारंगी और दूसरे अलग अलग रंगो से बहुत ही सुन्दर चित्रकारी की गयी थी।

अवनि और सुरभि ने अपनी सैंडिल्स उतारी और अंदर चली आयी। अंदर आकर उन्होंने हाथ धोये और वही मंदिर के अंदर बनी प्रशाद की दुकान से प्रशाद लिया। इस मंदिर में मिलने वाला “लाल पड़े का प्रशाद” बहुत ही स्वादिष्ट और प्रसिद्ध था।
अवनि और सुरभि सबके साथ लाइन में आ लगी और “हनुमान जी” के दर्शन करने के बाद उसी मंदिर के ठीक सामने बने “श्री राम जी” के मंदिर चली आयी और दर्शन कर बाहर आयी।


अवनि को “हनुमान जी” में बड़ी श्रद्धा थी इसलिए उसने सुरभि से कहा,”सुरभि ! मैं कुछ देर पाठ करना चाहती हूँ तब तक क्या तुम मेरा इंतजार करोगी ? तुम अगर चाहो तो बाहर चलकर कुछ खा पी लो या अपने लिए कुछ खरीदारी कर लो , मुझे बस 15 मिनिट चाहिए”
“हम्म्म समझ गयी तुम आराम से बैठकर अपने “हनुमान जी” से बाते करो तब तक मैं ये मंदिर घूम लेती हूँ ये जगह मुझे काफी अच्छी लग रही है”,सुरभि ने कहा


“थैंक्स,,,,,,,,,मैं तुम्हे एंट्री गेट के बाहर मिल जाउंगी”,सुरभि ने कहा
“हाँ चलेगा”,सुरभि ने कहा और ख़ुशी ख़ुशी वहा से चली गयी। अवनि हनुमान मंदिर के सामने बने प्रांगण में चली आयी जहा उसके जैसे कितने ही हनुमान भक्त बैठे प्रार्थना कर रहे थे। अवनि भी वही एक जगह देखकर आ बैठी और ध्यान लगाने लगी।

सुरभि मंदिर में घूमने लगी। मंदिर में यहाँ वहा चक्कर लगाने और घूमने के बाद वह बगीचे की तरफ चली आयी जहा मंदिर में आने का एक लंबा सा रास्ता बना था। सुरभि के पास कोई और काम तो था नहीं इसलिए वह उसी रास्ते चल पड़ी। उसी रास्ते से सामने से सिद्धार्थ चला आ रहा था। सुरभि अपने फोन में गूगल पर आगे कहा जाना है , बनारस में क्या क्या फेमस ये सब देख रही थी कि तभी सामने से आते सिद्धार्थ से ऐसी टकराई की दोनों के सर एक दूसरे से जा भिड़े। सुरभि ने सामने देखते हुए गुस्से से कहा,”अंधे हो क्या ? दिखाई नहीं देता,,,,,,,,,,!!”


सुरभि की आवाज अवनि को जानी पहचानी लगी और जैसे ही उसने सामने देखा आवाज के साथ साथ शक्ल भी जानी पहचानी ही थी जिसे देखते ही सिद्धार्थ का मुंह बन गया और उसने कहा,”ओह्ह्ह तो ये तुम हो , तुम मेरा पीछा करते करते यहा तक चली आयी,,,,,,,,,,!!”
“हाह ! तुम और यहाँ , तुम से देखकर चलने की उम्मीद भला मैं कैसे कर सकती हूँ ? और तुम्हे ये क्यों लगता है मैं तुम्हारे पीछे आयी हूँ इन्फेक्ट तुम अपनी सड़ी हुई शक्ल लेकर मेरे सामने आये हो,,,,,,,,,!!”,सुरभि ने कहा


“तो क्यों देख रही हो साइड हटो और मुझे जाने दो”,सिद्धार्थ ने कहा
“इतना बड़ा रास्ता है , चले जाओ”,सुरभि ने उसे घूरकर कहा
सुरभि से बहस करके सिद्धार्थ अपना अच्छा मूड खराब करना
नहीं चाहता था इसलिए साइड से आगे बढ़ गया। अब सुरभि तो सुरभि है जैसे ही सिद्धार्थ बगल से निकला उसने अपना पैर बीच में किया और सिद्धार्थ लड़खड़ा गया  बेचारा नीचे गिरते गिरते बचा और सुरभि को घूरते हुए आगे बढ़ गया। सुरभि ने भी उसे देखकर अपने दोनों हाथो को झाड़ा और वहा से चली गयी।

अपना पाठ और ध्यान ख़त्म कर अवनि उठकर साइड में चली आयी। मंदिर के सामने ही एक छोटा सी जगह थी जहा पानी की व्यवस्था थी। अवनि वहा चली आयी उसने हाथ मुंह से लगाकर थोड़ा पानी पीया , उसके ठीक बगल में उसी वक्त सिद्धार्थ भी आया और पानी पीकर जैसे ही जाने को हुआ अवनि को वहा देखकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और उसने कहा,”अरे आप यहाँ ?”


अवनि ने सिद्धार्थ को देखा तो धीरे से मुस्कुराई , उसके हाथ गीले थे और उन्हें पोछने के लिए अपनी साड़ी का पल्लू लेने ही वाली थी कि सिद्धार्थ ने अपना रूमाल उसकी तरफ बढ़ा दिया। अवनि ने मना करना चाहा लेकिन सिद्धार्थ पहले ही बोल पड़ा,”अरे इट्स ओके ! पोछ लीजिये”
अवनि ने रूमाल लिया और हाथ पोछकर रूमाल सिद्धार्थ की तरफ बढ़ा दिया। दोनों साथ साथ चलने लगे। चलते चलते सिद्धार्थ ने कहा,”थैंक्यू सो मच”


“किसलिए ?”,अवनि ने सिद्धार्थ की तरफ देखकर पूछा
“वो कल रात आपने मेरी इतनी अच्छी क्लास जो लगाई , एक्चुली मैं थोड़ा परेशान था और वहा जाकर बैठ गया लेकिन आपकी बाते सुनकर मेरी सब परेशानी दूर हो गयी इसलिए इन्हे थैंक्यू बोलने चला आया और देखिये आप भी यहाँ मिल गयी”,सिद्धार्थ ने बहुत ही सधे हुए स्वर में कहा
“इसमें थैंक्यू की क्या बात है , वैसे आप कल शयन आरती में नहीं आये”,सिद्धार्थ के साथ चलते हुए अवनि ने पूछा
“आप मेरा इंतजार कर रही थी ?”,सिद्धार्थ ने अवनि की आँखों में झाँकते हुए कहा


सिद्धार्थ का यू आँखों में देखना एक पल के लिए अवनि को खामोश कर गया , सिद्धार्थ की गहरी आँखों में कुछ तो था जो अवनि को उसकी तरफ खींच रहा था।
“अह्ह्ह्ह नहीं , हां , अहह मेरा मतलब काशी में एक बार शयन आरती सबको देखनी चाहिए,,,,,,,,,!!”,अवनि ने सिद्धार्थ से नजरे हटाकर धड़कते दिल के साथ कहा ,

जैसे सिद्धार्थ ने उसकी चोरी पकड़ ली हो तभी सामने से जल्दी में आते कुछ लोग अवनि  बगल से निकले और अवनि सिद्धार्थ के थोड़ा और करीब आ गयी , वह गिर ना जाए सोचकर सिद्धार्थ ने उसकी बाँह को हाथ लगाकर उसे गिरने से बचा लिया। सिद्धार्थ ने गर्दन घुमाई और जाने वालो से कहा,”अरे भाई ! देखकर,,,,,,,,,!!”
अवनि ने कुछ नहीं कहा वह बस ख़ामोशी से सिद्धार्थ को देखती रही और सिद्धार्थ उन लोगो को जिनकी वजह से अवनि उसके इतना करीब थी।

( क्या अवनि के दिल मे जगने लगे है सिद्धार्थ के लिए अहसास ? क्या सिद्धार्थ के सामने आएगा सुरभि और अवनि की दोस्ती का जिक्र ? क्या पृथ्वी और नकुल के सर से उतरेगा भांग का नशा या दोनों ऐसे ही सोते रहेंगे ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” मेरे साथ )

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संजना किरोड़ीवाल  

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Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal
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