Manmarjiyan Season 3 – 76
Manmarjiyan Season 3 – 76

अनजाने में ही सही गोलू गुड्डू के पास चला आया और इस बार भी वह गुड्डू को पहचान नहीं पाया। सुबह से गोलू इतनी मार खा चुका था कि अब उसमे किसी से बात करने की हिम्मत नहीं बची थी। गुड्डू के बगल में बैठे गोलू ने अपना सर गुड्डू के घुटने पर टिका लिया। लल्लन के 2 लड़के उनका ध्यान रखने के लिए वही थे। गुड्डू ने देखा तो दबी आवाज में गोलू से कहा,”गोलू , गोलू अबे हमे छुड़ाने के बजाय तुम हमाये घुटने पर सर रखकर सो रहे हो”
गुड्डू की बात का गोलू पर कोई असर नहीं हुआ उस ने सर वैसे ही टिकाये रखा और कहा,”गुड्डू भैया ! हमहू आपसे बहुते मोहब्बत करते है पर इतनी भी नाही करते कि फिर से इन लोगो से अपनी फील्डिंग सेट करवा ले,,,,,,,वैसे भी घर जाकर का करेंगे आप ? अरे हिया कम से कम शांति से पड़े तो है वहा तो मिश्रा जी ने अलग से पिरोगराम सेट रखा है आपके और हमाये लिए , मिश्रा जी बच भी गए तो फूफा छुरा लेकर बैठे है हमायी तरकारी बनना तय है गुड्डू भैया”
“तुमने फिर कोई गड़बड़ की होगी गोलू वरना पिताजी ऐसे गुस्सा नहीं होते है हम लोगो पर”,गुड्डू ने कहा
“अरे उह्ह आदमी को बस अपनी चप्पल हाथ में उठाने का बहाना चाहिए गुड्डू भैया , माँ कसम मिश्रा जी आज तक जितनी भी बाटा की चप्पल खरीदे है ना गुड्डू भैया उनमे से पहिने एक भी नाही है , दोनों चप्पलो पर बस गुड्डू और गोलू लिखवा के रख लेते है , कौन जाने कब जरूरत पड़ जाए,,,,,,,,,,,!!”,गोलू ने कहा
उसकी बाते गुड्डू के सर के ऊपर से जा रही थी उसने परेशानी भरे स्वर में कहा,”अरे गोलू लेकिन वहा घर में लवली गुड्डू बनकर फिर घुस गवा है , पता नहीं उह्ह का करेगा ?”
गोलू ने सुना तो अपना सर घुटने से हटाया और गुड्डू की तरफ देखकर हँसते हुए कहा,”अरे उह्ह्ह कुछो नाही कर सकता गुड्डू भैया इह बार बहुते सही हाथो मा आया है लबली , गुड्डू बनना इत्तो आसान भी ना है और हम तो कहते है कि थोड़ी परसादी ओह्ह का भी खाय दयो मिश्रा जी से,,,,,,,,,,,दुई दिन मा खुद नाही भाग गवा ना उह्ह्ह घर से तो हमाओ नाम बदल देना”
“मतलब ?”,गुड्डू ने पूछा
“मतलब इह की अभी थोड़ी देर पहिले हमाये साथ उह्ह भी गुड्डू बनकर मिश्रा जी से मार खाये रहय,,,,,,,,हमको अगर 50 चप्पल पड़ी है न तो 30-32 तो उह्ह भी खाये है,,,,,,,!!”,गोलू ने खुश होकर हाथो को नचाते हुए कहा
गुड्डू ने सुना तो सोच में पड़ गया। गुड्डू को सोच में डूबा देखकर गोलू ने कहा,”का हुआ गुड्डू भैया का सोचने लगे ? अरे आप टेंशन नाही ल्यो मिश्रा जी के घर मा लबली की अच्छे से खातिरदारी होय रही है।
मिश्रा जी के गुस्से से आज तक आप और हम नाही बच पाए उह्ह लवली का बच पायेगा , हम तो चाहते है कि अब तो तेहरवी तक लवली वही रहे और रोज मिश्रा जी से थोड़ी थोड़ी परसादीखाते रहे”
“गोलू,,,,,,,,,पिताजी ने उसको मारा तो उसने चुपचाप मार कैसे खा ली ? उह्ह विरोध काहे नाही किया ? पिताजी से मार तुम खा सकते हो , हम खा सकते है पर कोई अजनबी काहे खायेगा ?”,गुड्डू ने अपनी उलझन गोलू के सामने जाहिर की
गोलू ने सुना तो वह भी सोच में पड़ गया और कहा,”ए साला ! जे बात हमाये दिमाग मा काहे नाही आयी गुड्डू भैया , मिश्रा जी जब गुड्डू समझकर लवली को मार रहे थे तब उसने एक ठो बार भी विरोध नाही किया उल्टा सर झुकाकर चुपचाप मार खाता रहा,,,,,,!!”
“यही बात तो हमाये समझ में नाही आ रही गोलू कि उसे पिताजी से मार कैसे खा ली ? उह्ह चाहता तो पिताजी को रोक सकता था,,,,,,,आखिर ऐसा का रिश्ता है ओह्ह्ह का पिताजी के साथ,,,,,,!!”,गुड्डू ने कहा
गोलू एकदम से गुड्डू की तरफ पलटा और कहा,”ए गुड्डू भैया ! कही मिश्रा जी का बाहर किसी के साथ कोनो चक्कर तो नाही चल रहा , और आपकी तरह लबली भी उनका बेटा हो,,,,,,,,,,,साला तभी मैं सोचु आपकी और उह्ह लबली की शक्ल इत्ती मिलती काहे है ? खेत चाहे अलग अलग हो खेती करने वाला तो एक ही है ना”
गोलू की बेवकूफी भरी बाते सुनकर गुड्डू का चेहरा गुस्से से लाल हो गया लेकिन उसने बड़े प्यार से कहा,”गोलू , ज़रा हिया हमाये सामने तो आना”
गोलू उठकर गुड्डू के सामने चला आया तो गुड्डू ने कहा,”अब पलट जाओ,,,,,,,,!!”
गोलू ने तुरंत गुड्डू के आदेश का पालन किया और पलट गया तो गुड्डू ने अपना पैर उठाया और एक जोर की लात गोलू के पीछे मारकर कहा,”साले पिताजी है उह्ह्ह हमाये , का कुछ भी बोल रहे हो,,,,,,,,,!!”
लात खाकर गोलू सीधा जाकर गिरा सामने पड़े सोफे पर वह उठा और गुड्डू की तरफ आते हुए कहा,”अरे जे बात ऐसे भी कह सकते थे साला इत्ती जोर से लात मारने की का जरूरत थी ? दोनों बाप-बेटे मिलकर एक ही दिन मा हमे नोरा फ़तेही बनाने की सोच लिए हो का ?”
“लातों के भूत बातों नहीं मानते गोलू और तुमहू तो साले उह्ह भूत हो जो ना लातों से मानते है ना बातों से,,,,,,का बकवास कर रहे तुम पिताजी के बारे में , हमाये सामने बोल दिए सो बोल दिए , गलती से भी पिताजी के सामने मत बोल देना वरना उसी खेत मा ज़िंदा गाड़ देंगे तुम्हे,,,,,,,,!!”,गुड्डू ने बिफरते हुए कहा
गुड्डू को गुस्से में देखकर गोलू शांत हो गया और कुछ देर बाद कहा,”अच्छा सॉरी ! आ बताये ददिया जब से मरी है तब से दिमाग ही नाही चल रहा है और चल भी रहा है तो उलटा ही चल रहा है , इहलीये जो मुंह मा आया बोल दिए रहय,,,,,,,,,!!”
गोलू की बात सुनकर गुड्डू ने उसकी तरफ देखा और गुस्से से दाँत पीसकर कहा,”तो ददिया का तुम्हायी बुद्धि लेकर मरी है ? बिना सोचे समझे कुछो करोगे , कहोगे तो मुसीबत मा ही फसोगे ना,,,,,,,,!!”
गुड्डू की बात सुनकर गोलू चुपचाप आकर उसके बगल में बैठ गया। चुंगी के बुलाने पर लल्लन के बाकी आदमी भी बाहर चले गए। गोलू और गुड्डू दोनों अकेले थे जिसमे गुड्डू कुर्सी से बंधा था और गोलू उसके बगल में बैठा जमीन पर ऊँगली घुमाते हुए ना जाने क्या लिख रहा था ?
गुड्डू ने देखा गोलू उसे छुड़ाने के बजाय टाइमपास कर रहा है तो उसने अपना पैर गोलू के घुटने पर मारते हुए कहा,”अबे का मुहूर्त निकलवाए तुम्हाये लिए , खोलो हमे,,,,,,,!!”
गोलू होश में आया और गुड्डू को खोलने लगा। गुड्डू ने जल्दी से रस्सियों को साइड किया और गोलू को साथ लेकर जैसे भागने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ा गोलू ने कहा,”गुड्डू भैया एक ठो एमर्जेन्सी है”
“अब का हुआ गोलू ?”,गुड्डू ने बाहर नजर रखते हुए दबी आवाज में कहा
“बहुते जोर से लगी है हमहू होकर आये का ?”,गोलू ने कहा
गुड्डू ने सुना तो अपनी गर्दन घुमाकर गोलू को देखा और कहा,”थोड़ी देर के लिए रोककर रखो ना गोलू , यहाँ से निकलकर कर लेना”
गोलू से रुकने का कहकर गुड्डू ने एक बार फिर नजरे दरवाजे के बाहर टिका ली तो गोलू ने कहा,”गुड्डू भैया मौत और मूत बताकर नाही आते है और हमाये रोकने से ना मूत रखे है ना मौत,,,,,,,,!!”
गुड्डू ने सुना तो फिर पलटकर गोलू की तरफ देखा तो गोलू ने मासूम सा चेहरा बनाकर कहा,”कल ही रूप का नया कच्छा खरीदे है खराब हो जाएगा , हमायी एमर्जेन्सी समझो गुड्डू भैया,,,,,,,,!!”
गुड्डू ने देखा बाहर तो लल्लन के आदमी घूम रहे थे इसलिए उसने कहा,”बाहर तो नाही जा सकते यही कही कोई कोना देखकर सुलटाय ल्यो तब तक हमहू बाहिर नजर रखते है”
गोलू जल्दी से भागा , कमरे के कोने में अँधेरे में उसे थोड़ी सी जगह दिखी गोलू ने हल्का हुआ और वापस चला आया। जो सुकून उसके चेहरे से झलक रहा था लगा जैसे गोलू की आत्मा को शांति मिल गयी हो।
गुड्डू ने देखा लल्लन वहा नहीं है और लड़के भी इधर उधर हो गए तो वह छुपाते छुपाते गोलू को साथ लेकर लल्लन की गाड़ी तक जा पहुंचा। गुड्डू ड्राइवर सीट पर आ बैठा और गोलू उसके बगल वाली सीट पर , गुड्डू ने गाडी स्टार्ट करने का सोचा लेकिन गाड़ी की चाबी ना पाकर गुड्डू यहाँ वहा ढूंढने लगा तभी चाबी पकड़ा एक हाथ गुड्डू के पास आया और आवाज आयी,”जे ढूंढ रहे हो ?”
गुड्डू से पहले गोलू ने चाबी ली और कहा,”जे ही तो ढूंढ रहे थे , गुड्डू भैया जे ल्यो चाबी और बनाय दयो इह गाडी का पिलेन,,,,,,,,जे से पहिले की उह्ह्ह बैंगन हमे फिर से पकड़ ले,,,,,,,,,!!”
गुड्डू ने पलटकर देखा तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया , तभी पीछे बैठे लल्लन ने गोलू की गर्दन दबोची और कहा,”अबे सरकारी स्कूल के बिगड़े हुए मास्टर हमाओ नाम बैंगन नाही लल्लन है लल्लन चकिया वाले,,,,,,,,तुम दोनों को का लगा तुम दोनों इत्ती आसानी से हमायी आँखों मा धूल झोंककर भाग जाओगे”
गोलू ने गुड्डू की तरफ देखा तो गुड्डू की रोनी सूरत देखकर गोलू खुद रोआँसा हो गया , कुल मिलाकर गुड्डू और गोलू फिर पकडे गए।
मिश्रा जी का घर , कानपूर
मिश्रा जी से मार खाकर लवली ऊपर चला आया। वह गुड्डू के कमरे में आया और गुस्से से भरकर अपना हाथ दिवार पर दे मारा और शीशे के सामने आकर खुद को घूरते हुए देखने लगा और फिर गुस्से से खुद से ही कहने लगा,”का हो गवा है तुझे लवली , उह्ह साले मिश्रा ने तुझपर हाथ उठाया और तू चुपचाप मार खाता रहा उसे रोका तक नहीं , अरे का तेरे अंदर की बदले की आग कम हो गयी है ? भूल मत लवली तू हिया उह्ह मिश्रा से बदला लेने आया है , उसको बर्बाद करने आया है फिर तुम्हरे मन मा ओह्ह के लिए जे हमदर्दी कैसे जाग गयी ?
का अपने बाप की मौत को भूल गवा तू ? अपने आखरी बख्त मा कैसे उह्ह आनंद मिश्रा का नाम लेते लेते मर गवा पर जे आदमी ने ओह्ह से मिलना तो दूर 25 सालों मा कबो ओह्ह की खबर तक नाही ली,,,,,,,,,,ऐसे आदमी के लिए तुमको हमदर्दी दिखाने की कोई जरूरत नाही है लवली तुम्हरी जिंदगी का बस एक ही मकसद है और उह्ह है आनंद मिश्रा की बर्बादी,,,,,,,,,,!!”
लवली की आँखो में बदले की भावना साफ़ दिखाई दे रही थी , चेहरे पर गुस्सा और तकलीफ के भाव थे। लवली का गला सूखने लगा उसने पानी का बोतल उठाया और एक साँस में आधी बोतल खाली कर दी। वह बिस्तर पर आ बैठा , दिवार पर जो हाथ मारा था उस पर चोट लगने से सूजन आ चुकी थी लेकीन उस दर्द से भी ज्यादा दर्द इस वक्त लवली के सीने में मौजूद था। खामोश बैठा लवली मिश्रा जी के बारे में सोचने लगा आखिर क्यों उसने उन पर हाथ नहीं उठाया ?
क्यों उसने पलटकर जवाब नहीं दिया , क्यों उन्हें नहीं रोका जबकि वे तो गुड्डू के पिता थे उसके नहीं , लवली अपने ही ख्यालो में उलझते जा रहा था कि तभी वेदी आयी और कहा,”गुड्डू भैया ! अम्मा ने आपको नीचे बुलाया है चलकर खाना खा लीजिये,,,,,,,,,,!!”
वेदी की आवाज से लवली की तंद्रा टूटी और उसने बुझे स्वर में कहा,”हमे भूख नहीं है,,,,,,,,तुम जाओ यहाँ से”
“थोड़ा सा खा लेते,,,,,,,,,!!”,वेदी ने कहा
“हमने कहा ना हमे भूख नहीं है , एक बार बोलने से समझ नाही आता तुमको , जाओ यहाँ से हमाओ दिमाग खराब नाही करो”,लवली ने मिश्रा जी का गुस्सा वेदी पर निकालते हुए कहा
वेदी चुपचाप वापस लौट गयी। नीचे आकर उसने शगुन और मिश्राइन को जब गुड्डू के गुस्सा होने और खाना ना खाने की बात बताई तो मिश्रा जो को सुन गया और उन्होंने कहा,”कोनो जरुरत नाही है खाने के लिए ओह्ह्ह की मनुहार करने की भूख लगेगी तो खुद आकर खा लेंगे , और अगर हवा खाकर पेट भरता है तो ओह्ह से कहो उह्ह्ह खाकर पेट भर ले। ससुरे एक तो गलती करे है ऊपर से तेवर दिखा रहे है”
“बिल्कुल सही बात कही आपने जे साला गुडडुआ अपने आपको पता नहीं का समझता है ? उह्ह गोलू के साथ मिलकर सबकी नाक मा दम किये रहता है ,बहुते सही सजा सुनाई आपने और बहुते अच्छा किया जो दोनों को अलग कर दिया अब थोड़े कम काण्ड करेंगे , और गुडडुआ को रहे दयो दुइ चार दिन भूखे अकल अपने आप ठिकाने आ जाही है,,,,,,,,,,,ज़रा उह्ह बुकनू दीजियेगा ?”,फूफा ने कहा और जैसे ही मिश्रा जी की तरफ देखा उन्हें घूरते पाकर उठे और अपनी थाली उठाकर जाते हुए कहा,”हम ज़रा खुली हवा मा बैठकर खाएंगे,,,,,,हिया बहुते गर्मी है”
मिश्रा जी अफ़सोस से अपनी गर्दन हिलायी और खाना खाने लगे लेकिन खाना उनके गले से भी नहीं उतर रहा था और ये बात सिर्फ वही जानते थे। गुड्डू गोलू को पीटने का दुःख उन्हें भी था लेकिन वे क्या करते ? गुड्डू और गोलू की हरकते दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी जिस से आस पास के लोग परेशान हो रहे थे।
शगुन की तबियत खराब थी तो मिश्राइन ने उसे खाना खिलाकर दवा दी और आराम करने को कहा। शगुन गुड्डू के पास जाना चाहती थी लेकिन मिश्राइन ने उसे रोक दिया और कहा,”शगुन इह बख्त उह्ह गुस्से मा है , तुम्हरी तबियत पहिले ही खराब है तुम उसके पास जाओगी तो उह्ह्ह अपने पिताजी का गुस्सा तुम पर निकालेगा , जे समय मा तुम्हरे लिए फिजूल का तनाव सही नाही है बिटिया तुम्हरी और बच्चे की सेहत पर बुरा असर पडेगा। तुमहू आराम करो सुबह तक गुड्डू का गुस्सा शांत हो जाएगा और उह पहले जैसे,,,,,,,,,,!!”
“लेकिन माजी ! उन्होंने खाना भी नहीं खाया है”,शगुन ने उदासी भरे स्वर में कहा
“उसकी चिंता तुम नाही करो , हम गुड्डू के लिए खाना लेकर जाते है उह्ह सबको मना कर सकता है हमे नाही,,,,,,,,,ए वेदिया शगुन के सर मा थोड़ा घी तो मल दयो हमहू गुडडुआ को खाना खिलाकर आते है”,मिश्राइन ने कहा और कमरे से बाहर निकल गयी
मिश्राइन ने गुड्डू के लिए एक थाली में खाना लिया और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी। मिश्रा जी ने देखा लेकिन कहा कुछ नहीं क्योकि गुड्डू को भूखे तो वे भी देखना नहीं चाहते थे। मिश्राइन ऊपर आयी और गुड्डू के कमरे में चली आयी। लवली बिस्तर पर लेटा था भूख के मारे उसके पेट में चूहे कूद रहे थे लेकिन खाना खाने नीचे किस मुंह से जाता। मिश्राइन कमरे में आयी और थाली लेकर बिस्तर पर आ बैठी उन्होंने लेटे हुए लवली के सर पर हाथ फेरा और प्यार से कहा,”गुड्डू , ए गुडडुआ , चल उठ खाना खा ले,,,,,,,,,,,!!”
मिश्राइन के हाथ की छुअन से ममता वाला अहसास पाकर लवली की आँखों में ना जाने क्यों नमी उभर आयी और मन भारी हो गया। वह उठकर बैठ गया और धीरे से कहा,”हमे भूख नाही है”
मिश्राइन ने थाली साइड में रखी और कहा,”का रे गुड्डू ! मानते है तुम्हाये पिताजी ने जो किया उह्ह गलत था पर तुमहू तो अपने पिताजी का गुस्सा जानते हो न , उह्ह्ह पहिले ही अपनी अम्मा के जाय से इत्ता परेशान है और तुम गोलू मिल के और परेशान कर दिए तो गुस्सा आएगा ना बिटवा।
बाप है तुम्हाये हाथ उठा भी दिए तो भूल जाओ और ओह्ह का गुस्सा खाने पे काहे उतार रहे हो , जे देखो हमहू का लेकर आये है तुम्हाये लिए अरहर की दाल , आलू का भरता , चपाती चावल , जाओ हाथ धोकर आओ और खाना खाय लयो,,,,,,,,,भूखे पेट नींद नहीं ना आती है बेटा”
लवली ने सुना तो एकटक मिश्राइन को देखने लगा और मन ही मन खुद से कहने लगा,”गुड्डू की अम्मा गुड्डू से कितना प्यार करती है , अपने पति के गुस्सा करने के बाद भी ओह्ह के लिए खाना लेकर आयी है। हमने तो हमायी अम्मा का ना कबो पिरेम देखा ना ही ममता , उह्ह तो बचपन मा ही हमे छोड़कर चली गयी। गुड्डू के बहाने ही सही कम से कम कुछ दिनों के लिए हमे माँ का प्यार और ममता तो मिल जाएगी,,,,,,,,,गुड्डू सच माँ बहुते नसीब वाला है”
लवली को सोच में डूबा देखकर मिश्राइन ने हाथो में थाली उठाई और एक निवाला तोड़कर लवली की तरफ बढ़ाते हुए कहा,”छोडो हमहि खिला देते है अपने हाथ से , ल्यो खाओ”
लवली ने निवाला देखा तो उसकी आँखों में आँसू भर आये ये देखकर मिश्राइन ने रोआँसा होकर कहा,”ए गुड्डू ! अब देख तू ऐसा करेगा ना तो फिर हम भी रो देंगे , अरे माँ है तुम्हायी सबने खाना खाया पर तुमने नाही खाया जानते हो कित्ती मुश्किल से खाना हमाये गले से नीचे उतरा था।
का करे तुम्हाये पिताजी के गुस्से के आगे हमहू भी कुछो नाही बोल पाते पर जे का मतलब इह नाहीं है कि हमे तकलीफ नाही होती,,,,,,,,,अरे मार तुमको पड़ी पर दर्द हमे हुआ,,,,,,ल्यो खाओ”
मिश्राइन की आँखों में आँसू देखकर लवली ने निवाला खा लिया। माँ चाहे गुड्डू की हो पर उनके हाथ से निवाला खाकर जो सुकून लवली को मिला उसे शब्दों में बया करना मुश्किल था।
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संजना किरोड़ीवाल