साक़ीनामा – 9
Sakinama – 9
देखते ही देखते एक महीना गुजर गया और इस बीच राघव से मेरी बातें होती रही। इस एक महीने में हम दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानने-समझने लगे थे। जून महीने का आखरी हफ्ता चल रहा था। मम्मी ने भैया और मौसी मौसाजी के साथ गुजरात जाने का प्लान बनाया ताकि वहा जाकर राघव का घर देख सके और शगुन की रस्म भी पूरी कर सके। राघव के घरवालों ने मुझसे भी आने को कहा लेकिन शादी से पहले वहा जाना मुझे थोड़ा ठीक नहीं लगा और मैंने मना कर दिया।
मैं नहीं जा रही थी इसलिए जिया ने कहा कि वह चली जाएगी। दो दिन बाद के टिकट्स बुक हो चुके थे। गुजरात जाने से एक दिन पहले मैं ऑफिस में थी और अपने काम में लगी कि अचानक से ख्याल आया “मम्मी राघव के घर पहली बार जा रही है , क्या मुझे राघव के लिए कुछ भेजना चाहिए ?”
मैंने अपना लेपटॉप साइड किया और पास पड़े खाली पेपर्स उठा लिए। मैं राघव के लिए “खत” लिखने जा रही थी। चैट और कॉल्स के जमाने में खत लिखना भी अपने आप में एक खूबसूरत अहसास है।
आज से पहले मैंने किसी के लिए खत नहीं लिखा था। उस खत में मैंने हर वो बात लिखी जो मैं अपने और राघव के रिश्ते को लेकर महसूस करती थी। ये सब क्यों हो रहा था मैं नहीं जानती थी पर राघव के लिए ये सब करना मुझे अच्छा लग रहा था। मेरी जिंदगी में कुछ अहसास थे जो मैं सिर्फ उसके लिए बचाकर रखना चाहती थी।
उस खत को मैंने एक लिफाफे में रखा और अपने बैग में रख लिया। शाम में ऑफिस से जल्दी निकल गई ताकि राघव के लिए कोई तोहफा खरीद सकू।
मैं अपने शहर के एक ब्रांडेड शोरूम में चली आयी। अपने 28 साल की जिंदगी में मैंने कभी ब्रांडेड कपडे नहीं पहने थे ना ही कभी ब्रांडेड शोरूम आयी थी। मुझे राघव के लिए हलके आसमानी रंग का एक शर्ट पसंद आया लेकिन साइज का पता नहीं था। मैंने अंदाजे से ही शर्ट खरीद लिया। शर्ट पैक करवाते वक्त मेरी नजर रेंक में लगे एक और शर्ट पर चली गयी जिसका रंग डार्क मेहरून था। मुझे वो शर्ट भी बहुत पसंद आया मैंने उसे भी पैक करने को कह दिया और बिल चुकाकर वहा से निकल गयी। घर की ओर जाते हुए नजर बेकरी शॉप पर चली गयी तो मैं उसके अंदर चली आयी।
राघव को चॉकलेट्स बहुत पसंद थे और इस बार मैंने उसके लिए एक नहीं दो नहीं बल्कि 40 चॉकलेट्स खरीदे जिनमे सभी मिक्स थी। वो सब लेकर मैं घर चली आयी।
घर आकर देखा मम्मी और जिया जाने के लिए अपना बैग पैक कर रही थी। अगले दिन सुबह 7 बजे ट्रैन थी इसलिए उन्हें सुबह जल्दी निकलना था। मैंने शर्ट जिया को देते हुए कहा,”इन्हे भी अपने बैग में रख लो”
जिया ने मुस्कुराते हुए उन्हें बैग में रख लिया।
मैंने चॉकलेट्स को एक बॉक्स में पैक कर दिया और वो भी जिया को दे दिया ताकि वह मेरी तरफ से राघव को दे सके। जो खत मैंने राघव के लिए लिखा था उसे मैंने उसी शर्ट की जेब में रख दिया ताकि वो सिर्फ राघव को मिले। मैंने कुछ सामान निकालने के लिए अपनी अलमीरा खोली तो उसके कोने में रखे एक बॉक्स पर मेरी नजर चली गयी। मैंने उस डिब्बे को उठाया और खोला उसमे “आदिनाथ महादेव” की काले रंग से बनी ध्यान की मुद्रा में एक बहुत ही खूबसूरत मूर्ति थी।
उसे मैंने कुछ सालों पहले खरीदा था लेकिन किसी को तोहफे में दिया ना घर में रखा क्योकि मेरा मानना था कि कोई भी चीज सही वक्त पर एक सही इंसान के पास पहुँच ही जाती है। मैंने उसे एक अच्छे रैपर में पैक किया और जिया को दे दिया। आज से पहले मैंने अपने महादेव को किसी से नहीं बांटा था लेकिन राघव मेरे लिए महादेव का भेजा तोहफा ही तो था जिसने मेरी बेरंग जिंदगी में रंग भरने का काम किया था।
रात का खाना खाकर मैं छत पर चली आयी। कुछ देर बाद ही राघव का फोन आ गया और उसने आने का पूछा
“मम्मी , जिया , भैया और मौसी मौसाजी कल सुबह निकल जायेंगे”,मैंने कहा
“आप भी आ जाओ”,राघव ने कहा
“नहीं मैं बाद में आउंगी , हमेशा के लिए”,मैंने मुस्कुरा कर कहा
“ठीक है !”,राघव ने कहा
कुछ देर राघव से बातें होती रही और फिर मैं नीचे चली आयी। सुबह सब जल्दी ही उठ गए। मम्मी और जिया तैयार होकर , सामान लेकर घर से निकल गए। भैया और मौसी मौसाजी उन्हें स्टेशन पर मिलने वाले थे। उनके जाने के बाद मैं भी तैयार होकर ऑफिस चली आयी।
रात 9 बजे वो लोग गुजरात पहुंचे। जिया ने बताया कि राघव उन्हें लेने स्टेशन आया था। राघव उनके साथ बिजी थी इसलिए मैं खाना खाकर सोने चली गयी।
अमूमन मैं रात में फोन साइलेंट ही रखती थी। रात 11 बजे राघव का फोन आया और मैं सो चुकी थी। सुबह उठी तो देखा राघव का फोन आया हुआ था और मैसेज भी था। मैंने उसे गुड मॉर्निंग ना भेजकर सीधा फोन कर दिया।
“हेलो ! गुड मॉर्निंग”,राघव ने कहा
“गुड मॉर्निंग ! आपने रात में फोन किया था ?”,मैंने उठकर बैठते हुए कहा
“हाँ जिया ने मुझे कुछ गिफ्ट्स दिए थे , उन्हें अकेले खोलने का मन नहीं किया इसलिए आपको कॉल किया था लेकिन आपने उठाया नहीं”,राघव ने कहा
“कल मैं जल्दी सो गयी थी।”,मैंने कहा
“कोई बात नहीं , मैं तैयार हो जाता हूँ फ्री रहूंगा तब फोन करूंगा आपको”,राघव ने कहा
“ठीक है”,मैंने कहा फोन काट दिया।
धीरे धीरे मेरी ही तरह राघव भी मुझे अपनी जिंदगी का हिस्सा मानने लगा था जानकर मुझे अच्छा लग रहा था। मैं घर की साफ सफाई और नाश्ता बनाने में जुट गयी। कुछ देर बाद राघव का मैसेज आया “थैंक्यू !”
“थैंक्यू किसलिए ?” मैंने लिख भेजा
“आपने मेरे लिए ये सब भेजा उसके लिए” राघव ने लिख भेजा
“ठीक है फिर आज आप वही शर्ट पहनना जो मैंने भेजा है और अपनी फोटो जरूर भेजना” मैंने लिख भेजा
कुछ देर बाद राघव ने अपने 2 फोटो भेजे जिनमे वह काफी अनकम्फर्टेबल दिख रहा था। अगले ही पल उसका मैसेज आया “यार शर्ट तो अच्छा है लेकिन काफी लूज है”
“कोई बात नहीं आप मम्मी के साथ वापस भिजवा दीजिये मैं चेंज करवा दूंगी” मैंने लिख भेजा
“अरे नहीं पहली बार आपने कुछ भेजा है मैं रख लेता हूँ। मैं इसे अपने टेलर को दे दूंगा वो ठीक कर देगा” राघव ने लिख भेजा
“ठीक है , वैसे शर्ट की जेब में कुछ और भी था” मैंने लिख भेजा क्योकि अब तक राघव ने उस लेटर का कोई जिक्र नहीं किया था
“आपने मेरे लिए लेटर लिखा है” राघव ने लिख भेजा
“आपने पढ़ा ?” मैंने लिख भेजा
“मेरे हाथ में ही है” राघव ने लिख भेजा। ये देखकर मेरा दिल धड़क उठा , क्योकि उस खत में जो अहसास थे उनका जिक्र आज तक मैंने राघव के सामने नहीं किया था। मैंने अपनी धड़कनो के सामान्य होने का इंतजार किया और लिख भेजा “अच्छा लगा आपको ?”
“हम्म्म , इस बारे में मैं आपसे शाम में बात करूंगा। अभी सब मुझे बाहर बुला रहे है” राघव ने लिख भेजा
“हम्म्म ठीक है जाईये” मैंने लिख भेजा
मैंने फोन साइड में रख दिया और ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगी। ऑफिस आकर मैं अपने काम में लग गयी। वहा घरवालों ने राघव का तिलक किया , उसे शगुन दिया और रिश्ता पक्का कर दिया। राघव का फोन आया और उसने कहा,”आज मैं आपको बार बार परेशान कर रहा हूँ क्योकि आज मेरी ऑफिस से छुट्टी है और आप ऑफिस में हो”
“कोई बात नहीं , कैसे फोन किया ?”,मैंने पूछा
“वो मुझे आपसे कुछ पूछना था”,राघव ने कहा
“हां कहिये !”,मैंने कहा
“गिफ्ट क्या चाहिए आपको ?”,राघव ने एकदम से पूछा
“कुछ भी नहीं आप काफी हो मेरे लिए”,मैंने कहा
“मैं तो आपको मिल चुका और आज तो कन्फर्म भी हो गया मेरे अलावा बताओ गिफ्ट क्या चाहिए ? देखो मुझे लड़कियों के लिए गिफ्ट खरीदना नहीं आता , अब जल्दी से बताओ क्या चाहिए ?”,राघव ने कहा
“आप अपनी पसंद से कुछ भी भेज दीजिये”,मैंने कहा क्योकि राघव से कुछ मांगने में मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था।
“हम्म्म ठीक है , मुझे आपकी मम्मी और जिया को लेकर बाहर जाना है तो मैं आपसे बाद में बात करता हूँ”,कहकर राघव ने फोन रख दिया
मैं मुस्कुरा उठी और सोचने लगी क्या सच में कोई इतना सीधा और मासूम हो सकता है ? बॉस के आवाज लगाने पर मेरी तंद्रा टूटी और मैं वहा से चली गयी
शाम में मैं ऑफिस से घर चली आयी। राघव ने फोन किया लेकिन 2 मिनिट भी बात नहीं कर पाया और किसी ने उसे बुला लिया। मैं समझ रही थी कि आज सबने उसे खूब परेशान किया है। घरवालों की वापसी की ट्रेन अगले दिन सुबह 7 बजे थी इसलिए सब रात में वही रुक गए। देर रात राघव का फोन आया
“हाँ जी”,मैंने राघव की तरह बात करते हुए कहा
“आज तो सबने मिल कर मुझे ड्राइवर बना दिया। बहन और बच्चो को लेकर बाहर मार्किट छोड़कर आया हूँ ,
एक घंटे बाद उन्हें लेने वापस जाऊंगा सोचा थोड़ी देर आपसे बात कर लेता हूँ”,राघव ने कहा
“थक गए होंगे ना आप ?”,मैंने पूछा
“हां ना यार ! सर भी दर्द रहा है”,राघव ने थोड़ा थके हुए स्वर में कहा
“दवा ले लीजिये”,मैंने चिंता जताते हुए कहा
“घर जाकर लूंगा अभी रास्ते में हूँ , आप बताओ क्या कर रहे हो ?”,राघव ने पूछा
“बस खाना खाया है और थोड़ा काम कर रही थी”,मैंने कहा
राघव ने मुझे दिनभर का हाल कह सुनाया मैं बस मुस्कुराते हुए उसकी बातें सुने जा रही थी। उस से कुछ कहने से ज्यादा मुझे उसे सुनना अच्छा लगता था। इन दिनों उस आवाज की मुझे एक आदत सी हो चुकी थी। घर पहुंचकर राघव ने फोन काट दिया और मैं भी सोने चली गयी फोन को इस बार मैंने वाइब्रेशन मोड़ पर रख दिया ताकि दोबारा मैं राघव के फोन को मिस ना करू।
अगली सुबह फोन के वाइब्रेशन से मेरी नींद खुली। मैंने देखा फोन राघव का ही था। मैंने फोन उठाया और आँखे मूंदे कहा,”हेलो गुड मॉर्निंग”
“गुड मॉर्निंग , आप अभी तक सो रहे हो ? मैं तो आपके घरवालों के साथ स्टेशन खड़ा हूँ उनकी ट्रैन के लिए”,राघव ने कहा
“क्यों आप भी आ रहे हो क्या उनके साथ ?”,मैंने बिस्तर पर पड़े पड़े कहा
“मुझे किसी ने बुलाया ही नहीं तो मैं कैसे आऊंगा ? मैं इनको स्टेशन तक छोड़ने आया हूँ”,राघव ने कहा
“बुला लेंगे बड़ी जल्दी है आपको”,मैंने राघव को छेड़ते हुए कहा
“नहीं मुझे कोई जल्दी नहीं है”,राघव ने कहा तो मैं हसने लगी कुछ देर उस से बात हुई और फिर उसने फोन रख दिया। घरवाले वहा से राजस्थान के लिए रवाना हो चुके थे।
रात 8 बजे मम्मी और जिया घर पहुंचे बाकि भैया और मौसी मौसाजी स्टेशन से ही अपने घर चले गए। घर आते ही मम्मी ने राघव और उसके घरवालों की तारीफ करनी शुरू कर दी।
मैं बस मुस्कुराते हुए उन सबकी बातें सुन रही थी। राघव की मम्मी ने शगुन के नाम पर मेरे लिए एक साड़ी और सूट भेजा था। राघव ने मेरे लिए कोई गिफ्ट भेजा था जो मुझे जिया ने लाकर दिया और सबके सामने ही उसे खोलने की जिद करने लगी। मैंने वो पैकेट खोला तो मैं हँसे बिना ना रह सकी। राघव ने मेरे लिए एक छोटा लेडीज पर्स और एक टेडी भेजा था। जिया ने देखा तो वो भी हसने लगी और कहा,”ये जीजू तो बच्चे है , टेडी भेजा है तेरे लिए सो फनी”
“शट-अप”,मैंने जिया से कहा और वो टेडी सम्हालकर अपनी अलमीरा में रख दिया। राघव ने कुछ भी भेजा हो पर जो भी भेजा वो दिल से भेजा था सोचकर मैंने उसे स्वीकार कर लिया। मैंने राघव को थैंक्यू लिखकर भेज दिया लेकिन वो शायद कही बिजी था इसलिए जवाब नहीं दिया।
देर रात सभी बातें करते रहे और फिर सोने चले गए। रिश्ता पक्का हो चुका था मेरे और राघव के साथ दोनों परिवार भी खुश थे। हंसी ख़ुशी बातें करते हुए एक हफ्ता निकल गया।
एक शाम मैं ऑफिस से जल्दी चली आयी। मैं राघव से फोन पर बात कर रही थी कि बातों बातों में मैंने राघव से उस खत के बारे में पूछ लिया तो राघव ने लापरवाही से कहा,”हाँ वो मैंने पढ़ा था , अच्छा लिखा था”
“मुझे नहीं लगता आज से पहले आपको किसी ने ऐसे खत लिखा होगा ?”,मैंने कहा
“आपसे भी अच्छा खत लिखा था किसी ने मेरे लिए”,राघव ने कहा ये बात कहकर वह मुझे चिढ़ाना चाहता था
सताना ये तो वो ही जाने पर ना जाने क्यों उसकी ये बात मुझे एकदम से बुरी लगी और मैंने कहा,”ठीक है फिर जाकर उसी से बात करो”
मैंने फोन काट दिया। अगले ही पल राघव का फोन आया लेकिन मेरा फोन उठाने का मन नहीं हुआ। आज से पहले भी हमारे बीच बहुत बार ऐसी चीजे हुई थी लेकिन मैंने हमेशा सामने से सॉरी बोलकर हमारे बीच के झगडे को ख़त्म कर दिया था।
राघव सॉरी बोलने में विश्वास नहीं रखता था ना ही वो जल्दी से माफ़ी मांगता था पर इस बार नहीं , इस बार उसकी बात सुनकर मुझे सच में हर्ट हुआ था इसलिए अगले 4 दिन तक मैंने उसे कोई मैसेज और फोन नहीं किया था। मैं बस इंतजार करती रही कि उसे अपनी गलती का अहसास होगा और वो मुझे मैसेज करेगा लेकिन उसने नहीं किया और ये चीज और भी ज्यादा तकलीफदेह थी।
मैं दिनभर उसके बारे में सोचती रहती थी , उसे याद करती रहती थी लेकिन वो ना जाने कौनसी जिद में बैठा था। एक रात जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने ही मैसेज करके पूछ लिया “ये सब कब तक चलेगा ?”
“जब तक आप चाहो” राघव ने लिख भेजा
“मेरे चाहने या ना चाहने से कुछ नहीं होता है , आप में ईगो ज्यादा है” मैं गुस्सा थी इसलिए जो मन में आया लिखकर भेज दिया
“शुरू आपने किया था , मैंने आपको कॉल किया तो उठाया क्यों नहीं ? छोटी सी बात के लिए आप इतनी दिखा रहे हो” राघव ने भी लिख भेजा
उस से बात करते हुए मैंने महसूस किया इन 4 दिनों में उस से बात ना करके जितनी अपसेट मैं रही थी उठना ही वो भी था। मैंने महसूस किया कि बहुत मामूली सी बात पर हम दोनों ने एक दूसरे को हर्ट किया। एक लम्बी चौड़ी बहस के बाद राघव ने लिख भेजा “आपको मुझसे शादी करनी है या नहीं ?”
ये ऐसा सवाल था जिसने मुझे उलझा कर रख दिया। रिश्ता पक्का हो चुका था। घर बाहर सबको इस बारे में पता था। घर में सब खुश थे फिर एकदम से ये सवाल क्यों ? मैं इस रिश्ते को खराब करना नहीं चाहती थी इसलिए कुछ देर बाद लिख भेजा “करनी है”
“ये की ना हिम्मत वाली बात” राघव ने लिख भेजा
“इसमें हिम्मत वाली बात क्या है ?” मैंने लिखा
“हम दोनों एक जैसे है शादी के बाद लाइफ अच्छी कटेगी , आपसे झगड़ा करने में मजा आएगा” राघव ने लिख भेजा
“मेरी जिंदगी का एक उसूल है अगर इंसान इम्पोर्टेन्ट है तो बात को भूल जाओ , और अगर बात इम्पोर्टेन्ट है तो इंसान को भूल जाओ। मेरे लिए यहाँ आप इम्पॉर्टन्ट है इसलिए मैं उस बात को भूलना चाहूंगी” मैंने लिख भेजा
“इसी बात पर कॉल करो मुझे” राघव ने लिख भेजा
रात का 1 बजा था जिया भी मेरे ही कमरे में सो रही थी इसलिए मैंने लिख भेजा “इस वक्त , अभी रात बहुत हो चुकी है मैं आपको सुबह कॉल करती हूँ”
“नहीं अभी ! मुझे बस आपकी आवाज सुननी है। 4 दिन से मैंने आपकी आवाज नहीं सुनी है चलो फोन करो” राघव ने कहा
उसकी जिद के सामने मुझे झुकना पड़ा मैंने उसे कॉल किया 2 मिनिट बात की और फिर दोनों सोने चले गए।
राघव से बात करके मेरा मन काफी हल्का हो चुका था। मैं उसे चाहने लगी थी , उसकी नाराजगी से मुझे फर्क पड़ने लगा था। मैं बस हमेशा उसे खुश देखना चाहती थी इस से ज्यादा मुझे और कुछ नहीं चाहिए था।
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संजना किरोड़ीवाल
Yeh deewangi kidhar lekar chali dono Raghav aur Mrinal ko…but Mrinal ka Raghav k liye pyar Sacha hai… Raghav ka pyar doubt ful lag rha hai