साक़ीनामा – 27
Sakinama – 27
Sakinama – 27
सागर फ़टी आँखों से उस तस्वीर को देखता रहा उसकी आँखों के सामने वो सारे पल घूमने लगे जो उस किताब में लिखे थे। सागर ने अपना बैग उठाया और तुरंत वहा से निकल गया। महिला पानी का गिलास लेकर हॉल में आयी तो देखा वहा कोई नहीं है। उन्हें थोड़ा अजीब लगा और फिर वे वापस चली गयी।
सागर अपना बैग उठाये धीमे कदमो से चले जा रहा था। वो अभी तक सदमे में था कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे खींचा। सागर ने देखा वह एक संकरी सी गली में एक 20-22 साल की लड़की के सामने खड़ा है। सागर उस लड़की को नहीं जानता था उसने हैरानी से लड़की की तरफ देखा तो लड़की कहने लगी,”इतने दिनों में कोई भी दी के बारे में पूछने नहीं आया। तुम,,,,,,,,,,,तुम शायद जानते हो मेरी दी कहा है ?”
“मैं नहीं जानता मृणाल कहा है ?”,सागर ने कहा
“कोई नहीं जानता वो कहा है ? ना ही किसी ने जानने की कोशिश की कि वो कहा है ? दी जब इस घर से गयी तो किसी ने उन्हें रोका तक नहीं,,,,,,,,,उनके अपने घरवालों ने भी नहीं,,,,,,,,,,,,सब ने कहा कि उन्होंने जो किया वो गलत था , उन्हें अपना घर छोड़कर नहीं आना चाहिए था। उन्होंने खानदान की इज्जत मिटटी में मिला दी और भी ना जाने क्या क्या कहा गया उनसे और वो चली गयी,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उन्होंने कहा कि कोई उन्हें ढूंढने की कोशिश ना करे और किसी ने उन्हें ढूंढा भी नहीं,,,,,,,,,,,,,कुछ दिन बाद किसी ने कहा कि वो अब इस दुनिया में नहीं है उसने आत्महत्या कर ली और मम्मी-पापा ने मान लिया। उन्होंने दी की तस्वीर पर हार चढ़ा दिया पर मेरा दिल कहता है वो इसी दुनिया में है,,,,,,,,,,,,,,,,,,वो हम सब के सामने नहीं आना चाहती , उन्हें लगता है उन्होंने गुनाह किया है,,,,,,,,,,,वो खुद को ऐसी गलती की सजा दे रही है जो उन्होंने की ही नहीं,,,,,,,,,
मेरी दी ऐसी नहीं है वो कभी सुसाइड नहीं कर सकती। उस हादसे के बाद सब ने दी से मुंह मोड़ लिया लेकिन आज तुमने जब उनके बारे में पूछा तो लगा तुम उन्हें ढूंढ लोगे , उन्हें वापस घर ले आओगे,,,,,,,,,,,,,,,,तुम्हारा उनसे क्या रिश्ता है ये तो मैं नहीं जानती पर शायद तुम उन्हें वापस ला सकते हो,,,,,,,,,,,,!!”,लड़की ने आँखों में आँसू भरकर कहा
लड़की की बातें सुनकर सागर समझ गया वो जिया थी मृणाल की छोटी बहन।
सागर उस से कुछ और बात कर पाता इस से पहले ही उसकी मम्मी ने उसे आवाज दी और वह डरकर वहा से भाग गयी। सागर वही खड़ा रहा जिया की कही बाते उसके जहन में चलने लगी। वह वापस मृणाल के घर आया। जिया और उसकी मम्मी हॉल में ही थी। सागर उनके पास चला आया। वह दिवार पर लगी मृणाल की तस्वीर के पास आया और हार उतारते हुए कहा,”मृणाल की तस्वीर पर ये हार चढ़ाना बंद कीजिये आप लोग”
“वो अब इस दुनिया में नहीं रही”,मृणाल की मम्मी ने शांत स्वर में कहा
“आप उसके लिए ऐसे शब्द नहीं बोल सकती,,,,,,,,,,,मृणाल आपकी बेटी थी ना फिर आपने एक बार भी उसका दर्द जानने की कोशिश नहीं की , उसे ढूंढने की कोशिश नहीं की , उसे अकेले मरने के लिए छोड़ दिया”,सागर ने गुस्से और दुःख भरे स्वर में कहा
सागर की बात सुनकर उनकी आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने सागर की तरफ देखते हुए कहा,”कौनसी माँ होगी जो अपनी औलाद के लिए ऐसी बातें कहेगी ? उसका पल पल मरना तुमने नहीं देखा मैंने देखा है।
वो ऐसी गलती के लिए खुद को गुनहगार मान बैठी थी जो उसने की ही नहीं। सब के सामने अपना दुःख जाहिर नहीं कर सकती थी इसलिए अकेले में रोती थी वो। उसने खुद को उस दर्द में कैद कर लिया था। तुम्हे क्या लगता है हम में से किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की,,,,,,,,,,,,,उसने कहा कि अगर वो यहाँ रही तो मर जाएगी,,,,,,,,,,,,,उसे यहाँ से जाने दिया जाये उसे कोई ना रोके”
“और आपने जाने दिया , ये नहीं सोचा इतनी बड़ी दुनिया में कहा जाएगी वो ?”,सागर ने तड़पकर कहा
“हाँ क्योकि उसने कसम दी थी , हम उसे अपनी आँखों के सामने यू पल पल मरते नहीं देख सकते थे,,,,,,,,,,,,,,इसलिए अपने सीने पर पत्थर रखकर जाने दिया मैंने उसे , मैं उसे पल पल मरते नहीं देख सकती थी।”,कहते हुए वे अपना चेहरा अपने हाथो में छुपाकर रोने लगी।
सागर ने देखा तो उसे महसूस हुआ कि अनजाने में उसने अपनी बातो से मृणाल की माँ का दिल दुखाया है
वह उनके पास आया और उनके हाथो को थामकर कहने लगा,”मुझे यकीन है वो ज़िंदा है , मेरा दिल कहता है वो यही कही है मैं उसे ढूंढ लूंगा। अनजाने में मैंने आपका दिल दुखाया हो तो मुझे माफ़ कर देना ,,,,,,,,,,,,,,,,मैं मृणाल को वापस लेकर आऊंगा।
मृणाल की माँ ने कुछ नहीं कहा बस नम आँखों से सागर को देखते रही। सागर ने एक नजर दिवार पर लगी मृणाल की तस्वीर को देखा और अपना बैग लेकर वहा से निकल गया। जिया ने अपनी मम्मी को रोते देखा तो आकर उनके गले लग गयी।
सागर मृणाल के घर से निकल गया। चलते चलते वह बस उसी के बारे में सोचते जा रहा था। रास्ते में महादेव का एक मंदिर दिखाई दिया। सागर उसके सामने चला आया वह अंदर नहीं गया और बाहर ही खड़ा हो गया। उसने अपने हाथ जोड़े और सामने देखते हुए कहने लगा,”मृणाल आपको बहुत मानती है महादेव,,,,,,,,,,,,,उसकी इतनी परीक्षाएं मत लीजिये , मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं माँगा बस मुझे मृणाल से मिलवा दीजिये,,,,,,,,,,,,वो जहा कही भी है मैं उसे ढूंढ लूंगा बस आप उसका ख्याल रखना”
सागर मंदिर के सामने से हटा और सामने से गुजरते ऑटो को रोककर उसमे आ बैठा। सागर ने उस से स्टेशन चलने को कहा। दोपहर होने को आयी थी। स्टेशन पहुंचकर सागर ने पब्लिक वाशरूम इस्तेमाल किया। नहाया अपने कपडे बदले और खाना खाकर प्लेटफॉर्म पर चला आया। पटरिया खाली पड़ी थी। सागर बेंच पर आ बैठा। उसके पास दो रास्ते थे एक वह अपने घर अपने माँ-पापा के पास जाये दुसरा वापस कानपूर चला जाये और मृणाल को ढूंढे।
सागर काफी देर तक सोचता रहा और फिर उसने फैसला किया कि वह कानपूर जाएगा और मृणाल को ढूंढेगा,,,,,,,,,,,,,,,,लेकिन सवाल ये था कि ढूंढेगा कैसे ? मृणाल के बारे में उसे कोई जानकारी भी तो नहीं थी। उसने कानपूर का टिकट लिया और ट्रेन का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद ट्रेन आयी और सागर ट्रेन में चढ़ गया।
रातभर वह सोया नहीं था इसलिए ट्रेन में उसकी आँख लग गयी। शाम 6 बजे सागर की आँख खुली तो उसने खुद को कानपूर से कुछ दूर पहले ट्रेन को स्टेशन पर रुका पाया। वह उठा और दरवाजे के पास चला आया।
ट्रेन फिर चल पड़ी सागर वही खड़े होकर मृणाल को ढूंढने के बारे में सोचने लगा। जिया और उसकी मम्मी से वह वादा कर चुका उसे किसी भी हालत में मृणाल को ढूंढना था। जिया के लिए ,उसके घरवालों के लिए और अपने लिए,,,,,,,,,,,,,,,मृणाल उसके लिए क्या थी ये सिर्फ वही जानता था। ट्रेन कानपूर पहुंची सागर ट्रेन से उतरा और वहा से बाहर निकल गया।
स्टेशन से बाहर आकर वह ऑटो में आ बैठा। कुछ देर बाद ऑटो अपार्टमेंट के बाहर आकर रुका सागर नीचे उतरा और पैसे देकर अंदर चला आया। सामने से आते हर्ष ने सागर को देखा तो उसके पास आकर कहा,”अरे तुम तो अपने घर गए थे इतनी जल्दी वापस आ गए,,,,,,,,,,,,,घरवालों ने रखा नहीं क्या ?”
सागर ने कोई जवाब नहीं दिया और आगे बढ़ गया।
“इसे क्या हो गया ?,,,,,,,,,,,,,,,,ए सागर क्या हुआ है तुझे ? रुक ना मैं भी आता हूँ”,कहते हुए हर्ष उसके पीछे आया लेकिन तब सागर लिफ्ट में जा चुका था।
हर्ष को सीढ़ियों से ऊपर जाना पड़ा। सागर अपने फ्लैट का दरवाजा खोलकर जैसे ही अंदर जाने लगा हर्ष भी उसके साथ अंदर चला आया और कहा,”भाई क्या हो गया मेरा जोक इतना बुरा था क्या ?”
“तुम यहाँ क्यों आये हो ?”,सागर ने बुझे स्वर में कहा
“वो तो मैं बता दूंगा तुम बताओ तुम्हे क्या हुआ है ? पहले तो कभी ऐसे नहीं देखा तुम्हे”,हर्ष ने सोफे के सामने पड़े टेबल पर बैठते हुए कहा
सागर सोफे पर आ बैठा और कहा,”मैं घर ही जा रहा था पर किसी जरुरी काम की वजह से रास्ते से लौट आया”
“ऐसा कौनसा जरुरी काम था जिसके लिए तू इतना परेशान है,,,,,,,,,,,!”,हर्ष ने सागर के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा
“बस है कुछ तुझे नहीं बता सकता,,,,,,,,,,,,,मैं बहुत थका हुआ हूँ , तू यहाँ से जाएगा प्लीज”,सागर ने अपना सर पीछे सोफे से लगाते हुए कहा
“हम्म्म ठीक है कुछ चाहिए हो तो बोलना मैं नीचे ही हूँ”,हर्ष ने उठते हुए कहा और वहा से चला गया। सागर वही सोफे पर लेट गया और मृणाल के बारे में सोचने लगा। उसे मृणाल को ढूंढना था और सही सलामत उसे उसकी दुनिया में वापस भी लाना था। सागर एकदम से उठा और दूसरे कमरे में चला आया जो की मृणाल से जुड़ा था। कमरे में आकर उसने लाइट जलाई और उस दिवार के सामने आ खड़ा हुआ जहा मृणाल की कुछ तस्वीरें थी केप्शन के साथ।
सागर उन्हें देखते हुए कहने लगा,”मेरा दिल कह रहा है मृणाल कि तुम हो , तुम ऐसे नहीं जा सकती , तुम तो शायद मुझे जानती तक नहीं लेकिन सच कहू तो तुम मेरी जिंदगी का वो हिस्सा हो जो मैंने तुम्हे महसूस करते हुए जिया है। मैं नहीं जानता तुम कहा हो पर मैं तुम्हे ढूंढ लूंगा,,,,,,,,,,,,तुम्हे ये समझना होगा कि बीते वक्त में जो हुआ उसमे तुम्हारी गलती नहीं है,,,,,,,,,,,,काश तुमने एक बार किसी से कहा होता तो तुम्हे कभी इस दर्द में जीने की जरूरत नहीं पड़ती।
मैं तुम से मिलना चाहता हूँ मृणाल,,,,,,,,,,,,तुम से बात करना चाहता हूँ,,,,,,,,,,,,,,,तुम्हे ये यकीन दिलाना चाहता हूँ कि कोई और भी है जो तुम्हारे दर्द को उतना ही महसूस करता है जितना तुम,,,,,,,,,बस एक बार पता चले तुम कहा हो ? समझ नहीं आ रहा मैं तुम्हे कहा ढूंढने जाऊ पर मैं अपनी आखरी साँस तक तुम्हे ढूंढता रहूंगा।”
कहते हुए सागर की नजर दिवार पर लगी एक तस्वीर के नीचे लिखे कैप्शन पर चली गयी “मेरी जन्मभूमि भले कोई भी हो , मेरा अंत सिर्फ़ बनारस होगा”
“बनारस,,,,,,,,,,,,,,,मृणाल को बनारस बहुत पसंद है , उसने अपनी कविताओं में अपनी किताबों में अक्सर बनारस का जिक्र किया है तो क्या वो बनारस में है ? एक रोज उसने कहा था कि वो ऐसे ही नहीं लिखती है , उसकी कविताओं का उसकी जिंदगी से गहरा संबंध है।”,सागर खुद में ही बड़बड़ाया। सहसा ही उसे उस किताब की याद आयी वह जल्दी से कमरे से बाहर आया और अपने बैग को खगालने लगा।
किताब नहीं मिल रही थी , झुंझला कर सागर ने उस बैग को उलटा कर सारा सामान नीचे निकाल दिया। किताब नीचे जमीन पर आ गिरी सागर वही घुटनो के बल बैठकर उस किताब के पन्ने उलटने लगा
सागर एक के बाद एक पन्ना पलटे जा रहा था लेकिन उसे ऐसा कुछ नहीं मिला जिस से वह जान सके कि मृणाल इस वक्त कहा होगी ? पन्ने पलटते हुए सागर ने आख़री पन्ना देखा जहा आख़री लाइन पर सागर की नजरे अटक गयी
“अपने ही घर में , अपने शहर में अब मेरा दम घुटने लगा था। मेरे पास खुश रहने की , जिंदगी जीने के लिए अब कोई वजह ही नहीं थी। मुझे लगता जैसे सब खत्म हो चुका है,,,,,,,,,,,,,,,,,उस बीते वक्त और बुरी यादो को मैं अपने जहन से निकाल ही नहीं पाई। जो जख्म राघव ने मुझे दिया वो वक्त के साथ नासूर बनता जा रहा था। मैं चाह कर भी उस से नफरत नहीं कर पा रही थी। मैंने सबसे किनारा कर लिया , सबको माफ़ कर दिया और कुछ वक्त बाद मैं वही खड़ी थी जहा से मैंने ये सफर शुरू किया था,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!”
सागर ने पढ़ा और बड़बड़ाने लगा,”सफर शुरू किया,,,,,,,,,,,,,,,,मृणाल यहाँ किस सफर की बात कर रही है ?”
सागर ने अपने दिमाग पर जोर डाला और एकदम से उसे याद आया ये मृणाल इस किताब में लिखे सफर की बात कर रही थी। उसने जल्दी से किताब के पहले पन्ने को निकाला और पढ़ने लगा
“बनारस शहर के अस्सीघाट की सीढ़ियों पर खड़ी मैं एकटक सामने बहते माँ गंगा के पानी को निहारे जा रही थी। मेरे चेहरे पर जो सुकून था उसे देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि इस शहर से मुझे कितनी मोहब्बत है।
“बनारस” मेरा ख्वाब था और आज ये ख्वाब हकीकत बनकर मेरे सामने खड़ा था। शाम का वक्त था और सूरज ढलने को बेताब अपनी लालिमा आसमान में बिखेर रहा था। वो नजारा देखने लायक था , ऐसा कि सीधा दिल में उतर जाये।”
सागर की आँखों में नमी उभर आयी और चेहरा ख़ुशी से खिल उठा। उसने किताब को सीने से लगाते हुए कहा,”मैं जानता था वो बनारस में ही मिलेगी,,,,,,,,,,,,,,मृणाल इस वक्त बनारस में है,,,,,,,,,,,,अपने बनारस में !”
Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27 Sakinama – 27
Continue With Part Sakinama – 28
Read Previous Part साक़ीनामा – 26
Follow Me On facebook
संजना किरोड़ीवाल
Akhir kar hume phir Banaras ko mahsoos karne milega
aapki kahaniyo main Banaras na ho asie nahi ho sakta humara bhi ishq hai Banaras aab aayega maza jab hum hoge Mahadev ki Nagri main.
“Har Har Mahadev”
Sagar ne ab Mrinal ko doondne ka faisla kar liya hai to wo ji Jaan laga dega Mrinal ko doondne m….usne Mrinal ki kitab ko padhkar yeh bhi samaj liya hai ki wo kaha hogi… umeed hai ki sagar Mrinal ko doond kar usse apne ghar walo k pass lekar jayega…. shayad wo Mrinal se apne dil ki baat bhi kahane
Bahut emotions hai kahani mei…bahut khubsurat.story.. bholenath ne Mrinal ke liye kuch achcha hi soch rakha hai
Thak God vo jinda hai ab dekhte hai 2 ki pehli mulaqaat kase hote hai
Sagar ne jab JIya ki baat suni toh usse yakin hogaya ki Mrunal zinda hai aur usne Jiya aur uske mummy se promise kiya ki voh usse wapas lekar ayega..Sagar wapas kanpur agaya aur sochne laga ki Mrunal kaha hogi usne bahut sochne ke baad ke baad usse us kitab ne hi uske sawal ka jawab mil gaya ki Mrunal Banaras ne hai uske apne sehar me..i hope voh usse mil jaye kyu ki voh uske baare me janne ke baad uska dard mehsus karne laga hai ki usse kitni takleef hue Raghav ki wajahse…