Sanjana Kirodiwal

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साक़ीनामा – 23

Sakinama – 23

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 23

दिवाली में अभी एक हफ्ता बाकि था और मम्मी पापा भी घर नहीं आये थे  ना ही आना चाहते थे। मम्मी ना जाने क्यों ऐसा कर रही थी। राघव अब पहले से ज्यादा चुप रहने लगा था। रात में खाना खाने के बाद वह घर से बाहर घंटो फोन पर अपने दोस्तों से बाते करता रहता मेरे लिए उसके पास टाइम नहीं था।

मैं बस ख़ामोशी से सब देखते जा रही थी एक शाम जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैं राघव से बात करने के लिए हॉल में आ बैठी। मुझे वहा देखकर राघव ने जान बुझकर टीवी की आवाज तेज कर दी। मैंने उस से बात करनी चाही तो वह भड़कने लगा लेकिन आज मुझे उस से सब कहना था मैंने उस से वो सब बाते कही जो अब तक मुझे परेशान कर रही थी।

मेरी बाते सुनकर उसने मुझे बुरा भला कहना शुरू कर दिया। वह जितना गलत बोल सकता था उसने कहा उसका एक एक शब्द मुझे तकलीफ दे रहा था। गुस्से में राघव सब भूल गया और गन्दी गाली तक दे डाली। उसे लगता था की ऊँची आवाज में बोलने और चीखने चिल्लाने से वह मुझे गलत साबित कर देगा। आज से पहले मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा इंसान नहीं देखा था जिसकी सोच इतनी घटिया हो। उसके शब्दों से उसकी मेरे प्रति सोच साफ झलक रही थी। उसकी बाते सुनकर मेरा दिल टूट गया और आँखों में आँसू भर आये मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा,”अगर मुझे पता होता कि आप ऐसे इंसान है तो मैं ये शादी कभी नहीं करती”


“हाँ तो मुझे भी नहीं पता था तू ऐसी है , अच्छे से जानता हूँ तेरे माँ-बाप को ,, पैसे वाले घरो के लड़को से अपनी बेटी की शादी करो और उनके भरोसे बैठ जाओ”,राघव ने गुस्से में कहा। अब तक मैंने उसकी हर बदसुलूकी को नजर अंदाज किया लेकिन आज जब उसने मेरे माँ-बाप के बारे में गलत बात कही तो बर्दास्त नहीं हुआ। आज राघव मेरी नजरो में हमेशा के लिए गिर चुका था। मेरी फॅमिली मिडिल क्लास जरूर थी पर आज तक किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और राघव ने उन्हें लेकर इतनी बड़ी बात बोल दी।  


 उसके मन में मुझे और मेरी फॅमिली को लेकर जो जहर था आज उसने वो सब उगल दिया और आखिर में कहा,”इस घर में रहना है तो जैसा मैं चाहूंगा वैसे रहना होगा वरना अपना बोरिया बिस्तर उठाओ और चली जाओ यहाँ से”
ये शब्द अब तक ना जाने कितनी ही बारे सुने थे पर आज ये शब्द मेरे सीने में किसी तीर की भांति चुभ रहे थे। मैं उठी और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी। इस बारे में राघव से आगे बात करना मुझे अब बेकार लगने लगा।

मुझे समझ आ चुका था कि वो कभी नहीं बदलेगा , ना उसे कभी मेरा प्यार समझ आएगा ना ही मेरी अहमियत,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं ऐसे रिश्ते की डोर को अब और पकड़कर नहीं रख सकती थी जिसने मेरे ही हाथो को जख्मी कर दिया। धीमे कदमो से मैं ऊपर अपने कमरे में चली आयी। आज मैं पूरी तरह से खुद को टुटा हुआ महसूस कर रही थी। जिस रिश्ते को मैं अब तक अपनी जिंदगी का सबसे खूबसूरत अध्याय समझते आयी थी वो महज एक धोखा था ,

जो उम्मीद मैंने राघव से लगायी थी वो सब झूठ थी फरेब थी , जो भरोसा मैंने उस पर किया था वो भरोसा आज उसने तोड़ दिया , जो इंसान अब तक मेरा दर्द नहीं समझ पाया वो मेरी मोहब्बत को क्या समझता ? मैं बदहवास सी आकर बिस्तर के कोने पर बैठ गयी। यहाँ आने के बाद जो जो हुआ वो सब किसी फिल्म की तरह मेरी आँखों के सामने चलने लगा। मुझे महसूस हुआ कि अब तक इस रिश्ते को बस मैंने बचा रखा था , जो भी कोशिशे की वो सब मैंने की , जो भी अहसास थे वो मेरे थे , इस रिश्ते में सिर्फ मैं खर्च हो रही थी।

इस रिश्ते का सच आज मेरी आँखों के सामने था बदहाल और लाचार बिल्कुल मेरी तरह,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरी आँखों से आँसू बहने लगे , आज मैंने अपने आँसुओ को नहीं पोछा उन्हें बहने दिया। वो रिश्ता जो इतनी खूबसूरती से शुरू हुआ था आज ऐसे मुकाम पर खड़ा था जिसके बारे में सोचकर ही मन टूटा जा रहा था। मैंने अब तक वो सब सूना , सब सहा , सोचती रही एक दिन सब ठीक हो जाएगा पर क्या सब ठीक हुआ ?

मैं खुद से कहने लगी,”तुम तो ऐसी नहीं थी ना मृणाल , तुम अपने हक़ के लिए लड़ने की बाते करती थी। तुम हर सिचुएशन में खुद को मजबूत रखती थी फिर आज क्यों कमजोर पड़ गयी ? तुम तो मान-सम्मान की बाते करती थी फिर आज अपना ही आत्मसम्मान किसी के कदमो क्यों रख दिया ? तुम तो अपनी प्रेम कहानियो से लोगो के दिलों में प्यार जगाने की बातें करती थी ना फिर अपने हिस्से में किसी की इतनी नफरत क्यों आने दी ? तुम तो अकेले चलने का साहस रखती थी फिर आज क्यों तुम्हे ऐसे इंसान के सहारे की जरूरत है जो सोच से अपंग है ?

क्यों मृणाल आखिर तुम ऐसी क्यों हो गयी ? क्या सिर्फ इसलिए कि तुम्हे उस शख़्स से मोहब्बत हो गयी थी , पर क्या सच में ये मोहब्बत है ? तुमने अपनी खुशिया उस पर वार दी , अपने सपनो को छोड़ दिया , अपनी पसंद नापसंद उसके लिए बदल दी , उसकी हर बदसुलूकी को सह लिया , उसके लिए अपने ईश्वर से उसकी सलामती की दुआ मांगती रही , उसके झूठे घमंड के सामने अपने आत्म सम्मान तक को त्याग दिया , अगर किसी की मोहब्बत पाने के लिए इतना सब करना पड़े तो क्या वो सच में मोहब्बत है ?

तुम ही तो कहती थी कि मोहब्बत हमे जीना सिखाती है पर तुम्हारी इस मोहब्बत ने तो तुम्हे आज इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया जहा तुम्हे जिंदगी मौत से भी ज्यादा बदतर लगती है। हमेशा सबको सही सलाह देने वाली मृणाल अपने लिए इतना गलत इंसान कैसे चुन सकती है ? एक ऐसे इंसान से मोहब्बत कैसे कर सकती है जिसे तुम्हारे दर्द का अहसास तक नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,तुम ऐसी नहीं थी मृणाल , ऐसी नहीं थी !”


कहते हुए मैं रो पड़ी , आज से पहले शायद ही मैंने खुद से इस तरह बात की हो लेकिन आज मेरा दर्द मेरे शब्दों में साफ झलक रहा था। मुझे महसूस हो रहा था जैसे मैं धीरे धीरे अंदर ही अंदर खत्म होते जा रही हूँ। मैं घुटनो के बल आ बैठी और अपने हाथ जोड़ लिए मेरी आँखों से आँसू बहते रहे और मैंने रोते हुए कहना शुरू किया,”मेरा दर्द कर दीजिये महादेव ! मेरा दर्द कम कर दीजिये,,,,,,,,,,,,,,,ये मेरे सब्र की आखरी रात है इसके बाद शायद मैं ये दर्द ना सह पाऊ।

आप तो सब जानते है ना , आपको तो सब दिखता है ना महादेव,,,,,,,,,,,मैंने आपसे ही तो सब मांगा है और आपने मुझे दिया है , आज फिर मुझे थोड़ा सा सुकून दे दीजिये ना महादेव,,,,,,,,,,,,,,आप सबको अपना मानते है , सब आपके बच्चे है आप अपने बच्चो को ऐसे दर्द में कैसे देख सकते है। मैंने अपने लिए एक गलत इंसान चुन लिया महादेव पर आप तो सब ठीक कर सकते है ना , आप मेरी जिंदगी में सब सही कर दीजिये मैं ये सब अब और नहीं सह पा रही हूँ,,,,,,,,,,,,आपने देखा ना मैंने सब कोशिश की ,

मैंने सब ठीक करना चाहा पर कुछ ठीक नहीं हुआ सब बिगड़ गया,,,,,,,,,,,,,,,आप सब ठीक कर दीजिये मेरी आखरी उम्मीद अब आप ही है , आप मुझे कोई रास्ता दिखाईये ना महादेव , मुझे रास्ता दिखाईये”
और आखिर में अपना चेहरा अपने हाथो में छुपाकर मैं फूट फूट कर रो पड़ी। मैं इस दर्द से खुद को बाहर नहीं निकाल पा रही थी , ये दर्द अंदर ही अंदर मुझे खाये जा रहा था। मैं तब तक रोते रही जब तक मेरा रोना सिसकियों में ना बदल गया।

मैं आकर बिस्तर पर लेट गयी , आँखों में नींद के बजाय सिर्फ आँसू थे। मुझे वो पल याद आने लगे जब मैं अपनी जिंदगी में खुश थी , अपने परिवार के साथ , अपने काम के साथ , मैं सोचने लगी कि काश मैं सब ठीक कर पाती लेकिन गलियों को ठीक किया जा सकता है गुनाहों को नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,राघव का मेरी जिंदगी में आना मेरे जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी थी जिसने सब खत्म कर दिया। मेरे आत्मविश्वास से लेकर मेरे दिल तक के इतने टुकड़े किये जिन्हे पुरी जिंदगी नहीं जोड़ा सकता था।

मैं ये सब सोच ही रही थी कि कुछ देर बाद राघव कमरे में आया और मुझे फिर समझाने लगा। उसकी बातो में माफ़ी नहीं थी ना ही अपने किये का अफ़सोस था। वह अब भी सब गलतिया मुझ पर थोप रहा था और चाहता था मैं सब बिगड़ी हुयी चीजों को सही करू। उसकी बातो में ना विश्वास था ना ही मेरे लिए हमदर्दी,,,,,,,,,,,,,,मैंने जब अपना पक्ष रखना चाहा तो वह गुस्से में उठा और कमरे से बाहर चला गया। इस से ज्यादा की मुझे उस से उम्मीद भी नहीं थी।


रात भर मैं इस रिश्ते के बारे में सोचते रही। मैं तय कर चुकी थी कि इस शहर में ये मेरी आखरी रात थी।    
वो रात मैंने जागकर गुजार दी। सुबह एक कठोर फैसला लेकर मैंने अपना सामान अपने बैग में रखा और कपडे लेकर नहाने चली गयी। राघव ने देखा तो उसने दरवाजा खटखटाया और मुझे बाहर आने को कहा। वह समझ चुका था कि मैं घर छोड़कर जा रही हूँ।

मैं बाहर आयी तो उसने गुस्से से मेरी बाँह पकड़ी और जलती आँखों से मुझे देखते हुए कहा,”यहाँ से जाए ना तो सोच समझकर जाना , दोबारा यहा वापस नहीं आना है”
मैं ख़ामोशी से उसका चेहरा देखते रही , आज मुझे उस से ना डर लग रहा था ना ही उसकी बातो से कोई फर्क पड़ा। मुझे लगा मुझे जाते देखकर वह मुझे रोकेगा , उसे अपनी गलती का अहसास होगा लेकिन नहीं उसके शब्दों ने मुझे ये अहसास दिला दिया कि उसे मेरे होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

मैंने अपनी बाँह उस से छुड़वाई और बाथरूम की तरफ चली गयी। नहाकर मैं कमरे में चली आयी , बाल बनाये , अपनी माँग में सिंदूर भरा , राघव की तरफ से शादी में जो गहने मिले थे वो सब उतारकर रख दिए। राघव ऑफिस जाने के लिए अपने कपडे प्रेस कर रहा था उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह तैयार होकर ऑफिस चला गया ये जानते हुए भी कि मैं ये घर छोड़कर जा रही हूँ।


जाने से पहले मैं एक बार फिर सोचने लगी , जो फैसला मैंने लिया उस वक्त वो सही था या गलत मैं नहीं जानती थी मेरे पास दो रास्ते थे एक राघव के साथ उस रिश्ते में मर मर कर जीना और दुसरा हमेशा के लिए यहाँ से चले जाना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुत सोचने के बाद मैंने अपने लिए फैसला लिया और वो था हमेशा हमेशा के लिए इस घर से चले जाना। मैंने अपना सब सामान वही छोड़ दिया और अपना फोन लेकर घर से निकल गयी। मेरे पास पैसे नहीं थे बस 500 रूपये का एक नोट था जो कुछ दिन पहले घर के सामान के लिए राघव ने मुझे दिया था।

मैं उसे साथ लेकर घर से निकल गयी। घर से बाहर कदम रखा तो वो पल याद आ गया जब अपना दाहिना पैर रखकर मैं इस घर में आयी थी। कभी सोचा नहीं था इस तरह से जाना पड़ेगा। घर से बाहर आकर कुछ याद आया और मैं वापस अंदर चली आयी। मैंने ऊपर रेंक पर रखी आदिनाथ महादेव की उस मूर्ति को उठाया जो मैंने राघव को दी थी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं उन्हें अपने साथ ले आयी क्योकि राघव इस तोहफे के लायक नहीं था।  

मैं घर से बाहर चली आयी। मुझे कहा जाना था कुछ समझ नहीं आ रहा था । उस वक्त मन और दिमाग इतने उलझे हुए थे कि ना मैंने अपने घरवालों से बात की ना राघव के घरवालों से,,,,,,,,,,,,,उस वक्त शायद कोई मेरी बात नहीं समझता , ये सच था कि शादी के नाम पर उसने मेरे साथ सिर्फ धोखा किया था। मैं मिडिल क्लास हूँ ये सोचकर उसने शादी की और अपने घर ले आया क्योकि वह जानता था

अपने घरवालों की इज्जत के लिए मैं कभी उसे छोड़कर नहीं जाउंगी और वह जैसे चाहे वैसे मुझे रखेगा,,,,,,,,,,,,,,,एक नौकरानी या फिर उस से भी बद्तर।
मेन सड़क पर चलते हुए मेरी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे और मैं बदहवास सी चली जा रही थी। मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि मेरा फोन भी बंद है उसे मैंने पॉकेट में रखा हुआ था। मैं किसी के बारे में नहीं सोच रही थी बस अपने साथ हुए धोखे के बारे में सोच रही थी।

सड़क पर चलते हुए मैं उस शहर के चौराहे पर पहुंची। मैं कभी अपने शहर में अकेले नहीं घूमी थी ये तो फिर भी एक अनजान शहर था जिसमे मैं अनजान लोगो के बीच थी। मैंने वहा खड़े ऑटोवाले से पूछा,”भैया यहाँ राजस्थान जाने वाली बस कहा मिलेगी ?”
ऑटोवाले ने मना कर दिया उसे नहीं पता था। मैं आगे बढ़ गयी कहा जाऊ कुछ समझ नहीं आ रहा था , मैं वापस उस घर में नहीं जाना चाहती थी। थोड़ी दूर चलने पर एक बस दिखाई दी।

मैंने वहा खड़े एक लड़के से पूछा,”भैया राजस्थान जाने के लिए बस कहा से मिलेगा ?”
“राजस्थान के लिए तो बस शाम 6 बजे मिलेगा”,उसने मेरी तरफ देखकर कहा
“अभी कोई बस नहीं है क्या ?”,मैंने फिर पूछा
“नहीं अभी तो टुकड़ो में बस मिलेगी , ये जो सामने खड़ी है ये पालनपुर जाएगी आप पालनपुर चले जाओ वहा से आगे बस मिल जाएगी”,लड़के ने कहा और आगे बढ़ गया।


सुबह के 8 बज रहे थे और बस नहीं मिल रही थी। मैंने अपने हाथ में पकडे महादेव को देखा और पालनपुर जाने वाली बस में चढ़ गयी। उस बस में बैठे अधिकतर लोग गुजराती थे। मैं यहाँ रहकर भी यहाँ की भाषा नहीं सीख पाई। मैंने पालनपुर का एक टिकट लिया और सीट पर बैठ गयी। कंडक्टर ने मुझे 460 रूपये वापस कर दिए। मैंने उन्हें अपने दुपट्टे में सम्हाल कर बांध लिया और हाथ में पकड़ी महादेव की मूर्ति को कसकर पकड़ लिया मेरी आँखों में आँसू भर आये लेकिन मैंने उन्हें आँखों में ही रोक लिया

ऐसे हालातों में मैं खुद को कमजोर पड़ने नहीं दे सकती थी। मैंने जो कदम उठाया वो बहुत गलत था लेकिन उस वक्त मेरे पास कोई चारा नहीं था उस शहर मे मुझे अब घुटन होने लगी थी। बस अपनी रफ़्तार से चलते रही 11 बजे बस पालनपुर बस स्टेण्ड पहुंची। बस से उतरकर मैं काऊंटर की तरफ चली आयी मैंने उनसे जयपुर के लिए बस पूछी तो उन्होंने मना कर दिया और कहा,”शाम 6 जे बाड़मेर के लिए बस है”


बाड़मेर भी राजस्थान में ही आता है सोचकर मैंने कहा,”6 बजे से पहले कोई बस नहीं है क्या ?”
“नहीं , आप चाहो तो हम आपको प्राइवेट गाड़ी करवा कर दे सकते है , चार्ज 4000 लगेगा”,सामने बैठी लड़की ने कहा
मेरे पास सिर्फ 460 रूपये थे , मैंने मना कर दिया और बाहर चली आयी। बाहर आकर ऑटोवाले से बस का पूछा तो उसने कहा चौराहे पर प्राइवेट बस मिल जाएगी। मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे इसलिए मैं पैदल ही चल पड़ी। मैं काफी डरी हुई थी लेकिन बाहर से खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रही थी।

चलते चलते एक ऑटोवाले ने बगल में ऑटो रोकते हुए कहा ,”मैडम कहा जाना है ?”
“कही नहीं जाना”,मैंने पीछे हटते हुए कहा
“अरे मैडम चलिए ना”,उसने कहा
“नहीं मुझे नहीं जाना , मैं चली जाउंगी”,मैंने घबराते हुए कहा
“अरे मैडम पैदल कैसे जाएगी ? आईये मैं छोड़ देता हू”,लड़के ने ऑटो से उतरते हुए कहा


“मैंने कहा ना मुझे कही नहीं जाना , जबरदस्ती क्यों कर रहे है आप ?”,मैंने जैसे ही कहा मेरी आँखों में आँसू भर आये। ये देखकर लड़का घबरा गया , आस पास के लोग भी मुझे देखने लगे तो वह अपना ऑटो लेकर वहा से चला गया। मैं सामने चौराहे पर चली आयी वहा पर किसी को बस का पूछा तो उसने कुछ ही दूर बनी ट्रेवल शॉप पर जाकर पूछने को कहा मैं वहा चली आयी।


मैंने दुकान वाले से जयपुर जाने के बारे में पूछा तो उसने कहा,”जयपुर के लिए तो कोई बस नहीं है मैडम , हाँ रात 9 बजे एक बस है लेकिन वो दिल्ली के लिए है ,, आप लेडीज हो इसलिए सीट भी आपको सिंगल स्लीपर लेना पडेगा जिसका चार्ज 2000 रहेगा”
2000 सुनकर मेरा हाथ दुपट्टे में बंधे पैसो पर चला गया जिसमे सिर्फ 460 रूपये थे और मैं सोचने लगी कि मैं कितनी बड़ी बेवकूफ हूँ

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