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साक़ीनामा – 22

Sakinama – 22

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 22

जब राघव से पहली बार मिली तब मैंने ही उस से कहा था कि मेरे लिए मेरी सेल्फ रेस्पेक्ट और मेरे सपने बहुत मायने रखते है और उसने क्या किया ? उसने सबसे पहला वार मेरी सेल्फ रिस्पेक्ट पर किया और दूसरा मेरे सपने पर,,,,,,,,,,,,,,लिखना मेरे लिए क्या था ये सिर्फ मैं जानती थी ? आज मैं जहा थी वहा तक पहुँचने में मैंने ना जाने कितना कुछ देखा था। राघव ये सब नहीं जानता था ,

ना उसने कभी जानने की कोशिश की। मैं घंटो बालकनी में खड़ी अपनी अपने बीते कुछ दिनों के बारे में सोचते रही। चंद वक्त में कितनी बदल चुकी थी मेरी जिंदगी और मैं भी,,,,,,,,,,,,,,लड़कियों के हक़ के बारे में लिखने वाली मृणाल आज अपने हक़ के लिए भी नहीं लिख पा रही थी। मुझे खुद पर गुस्सा आने लगा , असल जिंदगी वैसे नहीं थी जैसा अब तक मैं लिखते आ रही थी। मैंने जो लिखा वो सब झूठ लग रहा था क्योकि असल जिंदगी तो उस से भी बदत्तर थी।

मैंने रायटिंग को हमेशा अपनी ताकत माना लेकिन आज वही रायटिंग मुझे मेरी कमजोरी का अहसास दिला रही थी। मैं सिर्फ खुद से सवाल कर सकती थी , जिनका जवाब मेरे पास भी नहीं था। मैंने सब वक्त पर छोड़ दिया और अंदर चली आयी। राघव सो चुका था मैं आकर बिस्तर पर लेट गयी और आँखे मूंद ली लेकिन नींद आँखों से कोसो दूर,,,,,,,,,,,,,,,मैंने महसूस किया कि इस शहर में आने के बाद मैं कभी चैन से नहीं सोई , मुझे कभी सुकून की वो नींद आयी ही नहीं जो कभी अपने शहर में आती थी।

यहाँ सोते हुए मैं एक जरा सी आहट से भी जाग जाया करती , रात में ना जाने कितनी ही बार नींद खुलती,,,,,,,,,,,,,,!!
अगली सुबह मैं तैयार होकर नीचे चली आयी। जाने से पहले मम्मी और भैया मुझे नसीहत देकर गए थे कि तुम्हे अब चुप रहना है किसी से कुछ नहीं कहना , अपना काम करो और अपना ख्याल रखो धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा। उसी नसीहत को मानते हुए मैं चुपचाप अपना काम करने लगी।

मम्मी ने मुझे चुप देखा तो उन्हें मौका मिल गया और वो पापा के साथ बैठकर मेरे घरवालों की बुराई करने लगी। मैं बस उन बातो को नजरअंदाज कर सकती थी और मैंने किया भी।
राघव ऑफिस चला गया और मैं दिनभर घर के कामों में लगी रही। शाम में राघव घर चला आया , मैंने देखा शाम से ही मम्मी पापा अपना बैग पैक करे है और कही जाने की तैयारी कर रहे है।

मैंने पूछा तो मम्मी ने कोई जवाब नहीं दिया उन्होंने मुझसे खाना बनाने को कहा और अपना टिफिन पैक करने लगी। हॉल में सब के बीच हो रही बातो से मुझे पता चला कि गांव में किसी रिश्तेदार की मौत हो गयी है और मम्मी पापा कुछ दिन के लिए वही जा रहे है।
बड़े भैया ने मम्मी को जाने से मना भी किया लेकिन वो नहीं रुकी ,

मेरी तबियत खराब थी लेकिन उन्होंने मेरे बारे में नहीं सोचा और चली गयी। जाने से पहले उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं कहा वो ऐसी क्यों थी मैं आज तक नहीं जान पायी , एक लड़की जिसे वो लोगो के सामने अपनी बहू बताती है के लिए उनके मन में इतनी नफरत क्यों थी ? मैं ये कभी नहीं जान पायी,,,,,,,,,,,!!

राघव उन्हें छोड़ने बस स्टेण्ड चला गया। घर में बस मैं और राघव का छोटा भाई था। 10 दिन बाद दिवाली थी। मैंने आकर किचन का काम समेटा और हॉल में बैठकर राघव के आने का इंतजार करने लगी। कुछ वक्त राघव आया उसने खाना खाया और वही सोफे पर लेटकर अपना फोन चलाने लगा। छोटा भाई ऊपर अपने कमरे में चला गया। हॉल में मैं और राघव थे , मुझे लगा मम्मी पापा के ना होने से हम दोनों के पास अब एक दूसरे के लिए टाइम होगा पर ऐसा कुछ नहीं था।

मैं वही बैठी थी हॉल में इस इंतजार में कि वह मुझसे कुछ बात करेगा लेकिन नहीं , उसे बिजी देखकर मैं उठी और बाहर जाने लगी तो उसने इशारे से मुझे रोका और कहा,”बाहर मेरे जूते रखे है उन्हें साफ करके ऊपर कमरे में रखकर आओ”
मैंने बाहर रखे उसके जूते उठाये और लेकर ऊपर चली आयी।

उन जूतो को कबर्ड में रखा और वही बैठकर खुद से कहने लगी “क्या तुम कभी नहीं बदलोगे ? क्या तुम्हे कभी मेरी आँखों में अपने लिए प्यार दिखाई नहीं देता ? क्या तुम्हे मेरी तकलीफ दिखाई नहीं देती,,,,,,,,,,,,,,,,,ऐसा क्यों होता है कि जिसे हम खुद से ज्यादा मोहब्बत करते है वही हमे तकलीफ देता है,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरे साथ इतने बुरे भी पेश मत आओ राघव कि मैं तुमसे नफरत करने लगू। ये रिश्ता भले ही एकतरफा है लेकिन इसमें शामिल अहसास झूठ नहीं है काश तुम ये समझ पाते”


खुद से बातें करते हुए आँखे कब नम हो गयी पता ही नहीं चला। थोड़ी देर बाद मैं उठकर नीचे चली आयी। राघव ने कहा कि वह हॉल में ही सोयेगा , इन दिनों उसकी बात मानने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था। अगर मेरी चुप्पी से ये रिश्ता टूटने से बचता है तो मैं मैं चुप रहूंगी , कभी शिकायत नहीं करुँगी , कभी सवाल नहीं करुँगी।
कुछ दिन गुजर गए। राघव से मेरी बात अब बिल्कुल ही बंद हो गयी बस कुछ काम होता तो वह मुझसे और मैं उनसे कह देती इसके अलावा कोई बात नहीं होती।

राघव के छोटे भाई को इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं था वह भी बाकि लोगो की तरह बैठा तमाशा देखता। राघव सुबह ऑफिस चला जाता और छोटा भाई अपने कोचिंग,,,,,,,,,,,,,,,घर में बस मैं अकेले रहती , अकेलापन महसूस ना हो इसलिए घर के कामो में खुद को बिजी रखती। मैं पहले से ज्यादा अकेली हो चुकी थी। घर से बाहर भी नहीं जा सकती थी।


एक दोपहर फोन देखते हुए पता चला कि भतीजी का बर्थडे है मैंने उसे विश किया तो भाभी ने कहा,”आ जाओ दीदी आज पिज्जा पार्टी है , सब यहाँ है बस आपकी कमी है”
“अब तो दिवाली के बाद ही आना होगा भाभी , रही बात पिज्जा की तो वो मैं यहाँ मंगवा कर खा लुंगी”,मैंने कहा
“ठीक है आप मेरी तरफ से मंगवा लेना”,भाभी ने कहा और कुछ देर बात करने के बाद फोन काट दिया।
मुझे पिज्जा बहुत पसंद था जब मैं अपने घर थी तब कभी कभार सबके लिए घर पर ही बनाया करती थी।

आज फिर खाने का मन हुआ तो मैंने ऑनलाइन आर्डर कर दिया। डिलीवरी बॉय पिज्जा देकर चला गया। घर में मैं अकेले ही थी , पिज्जा खाते हुए मुझे एकदम से राघव की कही बात याद आ गयी “आज से तुम पिज्जा नहीं खाओगी शादी के बाद हम साथ में खाएंगे”
और मुझे याद आया कि उस दिन के बाद से मैंने कभी पिज्जा खाया ही नहीं , बस एक बार राघव का छोटा भाई घर में लेकर आया था तब अपने हिस्से का भी मैंने राघव के लिए रख दिया।

मैं उस दिन का इंतजार करती रही जब राघव मेरे साथ खाने वाला था पर वो दिन तो कभी आया ही नहीं। मैंने हाथ में रखा पीस वापस डिब्बे में रख दिया और उसे बंद कर दिया। उसे खाने का मन नहीं हुआ। घर से कुछ दूर एक गरीब फॅमिली रहती थी उनकी बिटिया किसी काम से घर आयी तो मैंने वो उसे खाने को दे दिया। वह खाकर चली गयी और खाली डिब्बा उठाकर मैंने डस्टबिन में डाल दिया।
शाम में राघव आया तो उसकी नजर डस्टबिन पर चली गयी।

वह हॉल में चला आया और मैं उस वक्त मम्मी के कमरे में थी। राघव का छोटा भाई भी वही हॉल में बैठा था।  
“आज घर में पिज्जा किसने मंगवाया ?”,राघव ने थोड़ा गुस्से से और तेज आवाज में पूछा
छोटे भाई ने मना कर दिया इसलिए उसने फिर अपना सवाल दोहराया।
“मैंने मंगवाया था”,मैंने कमरे के दरवाजे पर आकर कहा


“क्यों ज्यादा आग लगी है तुम्हारी जबान पर ? डॉक्टर ने कहा था न गर्मी की चीजे नहीं खानी है”,राघव ने बहुत ही बदसुलूकी से कहा। उसकी इस बदसुलूकी का मेरे पास कोई जवाब नहीं था मैं वापस अंदर चली गयी। मुझे अपने लिए बुरा लग रहा था , राघव जैसे मेरी जिंदगी को अब धीरे धीरे कंट्रोल करने लगा था। मैं अपनी मर्जी से अब कुछ खा भी नहीं सकती थी। अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीने वाली मैं धीरे धीरे उसके हाथो की कठपुतली बनते जा रही थी।

खाना खाने के बाद राघव हॉल में सो गया और मैं मम्मी के कमरे में चली आयी। पूरी रात मैंने जागकर गुजार दी
अगले दिन वही रूटीन शुरू हो गया। इन दिनों मैं काफी कमजोर हो चुकी थी। काम करते हुए कई बार थकान महसूस होती , हाथो में इतनी जान नहीं बची थी कि कुछ भारी सामान उठा सकू लेकिन घर की सारी जिम्मेदारियां मुझ पर थी। मैं राघव के साथ साथ घर का भी ध्यान रख रही थी हाँ हमारे बीच अब बातें बंद हो चुकी थी मैं कोशिश करती कि ऐसा कुछ ना करू जिस से राघव को परेशानी हो।

वह भी सुबह ऑफिस जाता और शाम में घर आता , खाना खाकर अपने फोन या टीवी में बिजी हो जाता। उसने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की घर में क्या हो रहा है क्या नहीं ? इस अकेलेपन की अब मुझे आदत पड़ चुकी थी। मैं राघव के  सभी काम करती रहती , ना उस से सवाल करती ना ही शिकायत , मैंने खुद को खामोश कर लिया। वो चेहरा जिस से मुझे मोहब्बत थी अब उसे देखने से भी डरती थी क्योकि मैं नहीं चाहती थी वो मेरी आँखों में अपने लिए अहसास देखे और फिर उनका मजाक उड़ाए।


एक दोपहर सभी काम खत्म कर मैं तैयार होने शीशे के सामने चली आयी मैंने खुद को देखा और देर तक शीशे में देखती रही। इन दो महीनो में मैं कितना बदल चुकी थी। मेरा शरीर ढल चुका था , आँखों के नीचे काले गड्ढे पड़ चुके थे , आँखों में कोई चमक नहीं थी और चेहरा काफी मुरझा चुका था। मैं समझ ही नहीं पायी आखिर किस के लिए मैंने अपना ये हाल बना लिया। मैंने बुझे मन से अपने बाल बनाये और माँग में सिंदूर लगाने के लिए जैसे ही सिंदूरदानी उठायी और वो मेरे हाथ से छूटकर नीचे जा गिरी,,,,,,,,,,,,,,सारा सिंदूर फर्श पर फ़ैल गया।

किसी अनहोनी के डर से मन बुरे ख्याल से भर गया और मेरा हाथ गले में पहने मंगलसूत्र पर चला गया जिसे मैंने मुट्ठी में भींच लिया।  
मैंने फर्श को साफ किया और नीचे चली आयी। घर में बने मंदिर के सामने आकर मैं सब ठीक होने की प्रार्थना करने लगी। दोपहर का खाना बनाया लेकिन खाने का मन नहीं हुआ तो मैंने उसे ढककर रख दिया और हॉल में चली आयी। अभी मैं सोफे पर आकर बैठी ही थी कि बाहर से किसी के लड़ने झगड़ने की आवाजें आने लगी। मैंने हॉल की खिड़की से देखा बाहर कुछ लोग झगड़ा कर रहे थे।

उनकी भाषा मुझे समझ नहीं आ रही थी। मैं अकेले थी और ये सब देखकर थोड़ा घबरा गयी। उनमे से एक आदमी हाथ में लोहे की रॉड लेकर दूसरे आदमी की तरफ भागा ये देखकर मैं और ज्यादा डर गयी ,मैंने घर के सब खिड़की दरवाजे बंद कर दिए और सोफे के कोने पर आकर बैठ गयी।
जिस घर में मैं रहती थी वहा आस पास कोई घर नहीं था ना ही लोग , वह घर सोसायटी के सबसे आखिर में बना हुआ था इसलिए चारो तरफ बस जंगल था। मुझे अपनी हालत पर तरस आने लगा था।

मैं सिकुड़कर वही सोफे पर लेट गयी। मेरी आँख लग गयी। उसी शाम एक बुरे सपने से मेरी आँखे खुल गयी और मैंने खुद को पसीने से तर बतर पाया। मेरी साँसे बहुत तेज चल रही थी। मैंने उठकर खिड़की से बाहर देखा , बाहर कोई नहीं था कुछ देर पहले जो लोग झगड़ा कर रहे थे वो लोग जा चुके थे। मैं किचन की तरफ चली आयी मैंने पानी पीया और अपनी सांसो को दुरुस्त करने लगी। पानी पीते हुए सपने का ख्याल आया।

मैंने हॉल में आकर अपना फोन उठाया और राघव को मैसेज किया “आप ठीक हो न ?”
“हाँ ! क्यों ?” राघव का जवाब आया
“नहीं बस ऐसे ही पूछा , आप घर कब आएंगे ?” मैंने लिख भेजा
“1 घंटे बाद आ जाऊंगा , कुछ काम है ?” राघव ने पूछा


“नहीं मुझे बस ये कहना था कि आप गाड़ी आराम से चलाना , और अपना ध्यान रखना” मैंने लिख भेजा
“हम्म्म ठीक है” राघव ने भेजा
मैंने फोन साइड में रख दिया और एक बार फिर सपने के बारे में सोचने लगी जो कि राघव की गाड़ी के एक्सीडेंट का था , सुबह हाथ से गिरे सिंदूर और अब इस सपने में मुझे एक वहम में डाल दिया और मुझे राघव की चिंता होने लगी।

अगले दिन राघव की बहन का फोन आया और वह मुझसे बात करने लगी। ये राघव की तीसरे नंबर की बहन थी जिस से मेरी बहुत कम बात होती थी। सबकी तरह उन्होंने ने भी मुझे नसीहते देना शुरू कर दिया। आखिर में उन्होंने कहा,”तुम दोनों कुछ दिन साथ रह के देख लो अगर नहीं बनती तो फिर अलग हो जाना”
उनकी बातें सुनकर मैं हैरान थी। मेरे और राघव के रिश्ते का फैसला करने वाले ये लोग कौन होते है ?

पर अगले ही पल उनके शब्द मेरी सोच पर भारी पड़ गए जब उन्होंने कहा,”राघव ने मम्मी से कहा है कि अगर मृणाल ऐसे ही सबको उसके बारे में बताती रही तो वो कभी तुमसे बात नहीं करेगा”
उनकी बात सुनकर मुझे अजीब सा महसूस होने लगा।  जहा एक तरफ राघव मुझसे इस रिश्ते में सब सही होने की बात कर रहा था तो वही दूसरी तरफ अपने घरवालों से कुछ और कह रहा था। वह मुझसे और इस रिश्ते से क्या चाहता था मैं नहीं समझ पा रही थी।

मैं पहले ही इन सब बातो को लेकर मानसिक तनाव झेल रही थी साथ ही फिजिकल प्रॉब्लम से भी झुंझ रही थी उस पर राघव के घरवालों का बात बात पर मुझ पर इल्जाम लगाना , मुझे गलत ठहराना मेरी परेशानियों को और बढ़ा रहा था। मैं ये सब क्यों सह रही थी सिर्फ इसलिए क्योकि मैंने उस से शादी की थी ? सिर्फ इसलिए कि उसने समाज के सामने मेरी माँग में सिंदूर भरा था ? सिर्फ इसलिए कि मुझे लगता था एक दिन सब ठीक हो जाएगा,,,,,,,,,,,,,,!!


मैंने फोन काट दिया | और सोफे पर आकर लेट गयी। कानों में अभी भी दीदी के कहे शब्द गूंज रहे थे। कुछ देर बाद जिया का फोन आया , जिया से बात करते हुए मैंने उसे जब सब बताया तो वह भी उदास हो गयी और कहा,”आप चिंता मत करो दी सब ठीक हो जायेगा , आप कुछ दिन यहाँ आ जाओ हमारे पास”
“नहीं अभी दिवाली आने वाली है मैं ऐसे चली आउंगी तो अच्छा नहीं लगेगा”,मैंने सिसकते हुए कहा


“कोई बात नहीं आप दिवाली के बाद आ जाना”,जिया ने कहा वह कुछ देर मुझसे बात करते रही और मुझे हिम्मत देते रही लेकिन मैं जानती थी जो हो रहा है वो कभी ठीक नहीं होगा , जिन हालातो में मैं थी उसमे उसके शब्द सिर्फ मुझे दिलासा दे सकते थे। मेरी तबियत खराब होने लगी थी मैंने फोन काट दिया और आँखे मूंद ली। शाम में उठी तो दर्द से बदन टूट रहा था , मैंने खुद को छूकर देखा मेरा बदन तप रहा था।

मुझे शायद बुखार था और साँस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। मैंने राघव से घर आने का पूछा “क्या आज आप घर जल्दी आ सकते है ?”
“क्यों ?” उसने लिख भेजा
“मेरी तबियत ठीक नहीं है मुझे डॉक्टर को दिखाना है” मैंने लिख भेजा
“ठीक है आ जाऊंगा” राघव ने भेजा


शाम में राघव थोड़ा जल्दी आ गया और मुझे लेकर अपने फॅमिली डॉक्टर के पास चला आया। मुझे वायरल हुआ था डॉक्टर ने कुछ दवाईया लिख दी और ख्याल रखने को कहा। दवा लेकर हम लोग वापस चले आये। मैंने हमारे बीच फैली ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,”मैं आज खाना नहीं बना सकती आप बना लेंगे”
“मैं और भाई बाहर खा लेंगे तुम अपने लिए कुछ बना लेना”,राघव ने सामने देखते हुए कहा
उसे सिर्फ अपनी और अपने भाई की परवाह थी मैंने कुछ नहीं कहा और दोनों घर चले आये।

मुझे घर छोड़कर राघव वापस बाहर चला गया। मैं दवा लेकर लेट गयी। रात के 8 बज चुके थे लेकिन राघव घर नहीं आया था। मेरे कहने पर उसने थोड़ा खाना अपने भाई के साथ मेरे लिए भिजवाया था। मैंने थोड़ा सा खाना खाया और बाकि फ्रीज में रख दिया।
अगली सुबह राघव ऑफिस चला गया। उसने मेरी तबियत के बारे में जानने की झूठी कोशिश भी नहीं की। मैंने जैसे तैसे घर के काम किये , राघव के कपडे धोये और बिस्तर पर आकर लेट गयी।

मैं ये कैसी जिंदगी जी रही थी मैं खुद नहीं समझ पा रही थी। इस घर में खाना था लेकिन प्यार से कोई खिलाने वाला नहीं था , इस घर में बिस्तर था लेकिन नींद ना आने पर कोई सर थपथपाने वाला नहीं था , इस घर में ऐशो-आराम का सब सामान था लेकिन प्यार से दो बात करने वाला कोई अपना नहीं था , इस घर में इंसान थे लेकिन इंसानियत नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,!!

शाम तक तबियत में थोड़ा सुधार हुआ तो मैंने उठकर खाना बनाया और राघव के आने का इंतजार करने लगी। राघव घर आया , आज उसका चेहरा उतरा हुआ था और वह काफी थका हुआ लग रहा था। मैं किचन से पानी ले आयी और ग्लास उसकी तरफ बढ़ा दिया लेकिन उसने मना कर दिया और सोफे पर आकर लेट गया। मैं उसे परेशान ना करके किचन की तरफ चली आयी और उसके लिए खाना गर्म करने लगी।

हम पत्निया भी कितनी अजीब होती है ना , भले पति हमारी परवाह ना करे , हमे दुःख दे , हमे बुरा भला कहे फिर भी उनकी एक आह पर हम दौड़े चले आते है। मेरे साथ भी यही हो रहा था , भले राघव ने अब तक मेरे साथ कितना भी बुरा किया हो लेकिन आज उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने उसके लिए प्लेट में खाना निकाला और लेकर उसके पास चली आयी। मैंने प्लेट को वही सोफे पर रखा और कहा,”खाना खा लीजिये”


“मुझे भूख नहीं है”,राघव ने अपनी बाँह अपनी आँखों पर रखे रखे कहा
“थोड़ा सा खा लीजिये”,मैंने फिर कहा
“नहीं,,,,,,,,,!”,राघव ने कहा
“ऐसे खाने को ना नहीं कहते , अगर ज्यादा भूख नहीं है तो आप बस एक रोटी खा लीजिये”,मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा


“मैंने कहा ना मुझे नहीं खाना”,राघव ने रूखे स्वर में कहा
आज से पहले राघव ने कभी खाने को ना नहीं कहा था। मैंने प्लेट को उठाकर साइड में रखा और कहा,”आप कुछ परेशान दिख रहे है”
राघव ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपना सर दबाने लगा। उसे ये करते देखकर मैंने कहा,”अगर आपका सर दुःख रहा है तो मैं दबा देती हूँ”


“नहीं ठीक है , तुम जाकर खाना खा लो”,राघव ने कहा और वापस अपनी बाँह अपनी आँखों पर रख ली।
“मैं बाद में खा लुंगी , आप जब भी खाये मुझे बता देना”,कहते हुए मैं उठी और प्लेट लेकर वापस किचन एरिया में चली आयी। मैंने प्लेट को ढककर रख दिया और किचन साफ करने लगी।  रात के 10 बजने को आये लेकिन राघव ने खाना नहीं खाया वह वही सोफे पर लेटा रहा। मैं भी कमरे में चली आयी और सो गयी। देर रात वह उठा और खाना खाकर वापस सो गया

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