Pasandida Aurat – 34

Pasandida Aurat – 34

Pasandida Aurat
Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

पृथ्वी ने जैसे ही अवनि को देखा उसका दिल धड़कने लगा वो भी इतना तेज कि जैसे अभी बाहर आ गिरेगा। घबराकर पृथ्वी ने लेपटॉप बंद कर दिया , उसकी आँखों के सामने वो पल आ गया जब अस्सी घाट की गंगा आरती के उस पार उसने अवनि को देखा था। पृथ्वी हैरान था जिस किताब को उसने पढ़ा उस किताब लिखने वाली लड़की से उसका सामना बनारस में हो चुका था।

ये इत्तेफाक था या उसकी किस्मत जो इन दोनों घटनाओ को एक दूसरे से जोड़ रही थी। बनारस में पृथ्वी ने कितने ही लोगो को देखा था और कितने ही लोगो से उसने बात भी की लेकिन जब उसे बनारस का ख्याल आया तो सिर्फ अवनि का चेहरा याद रहा जिसे उसने बस 10 सेकेण्ड देखा था। पृथ्वी अपने ही विचारो में उलझता चला गया उसकी लेपटॉप ऑन कर अवनि की तस्वीर देखने की हिम्मत दोबारा नहीं हुई। वह उठा और केबिन से बाहर चला आया।

ऑफिस से बाहर केंटीन में आकर उसने अपने लिए एक कप चाय ली और बालकनी में खड़े होकर पीने लगा। सर्दियों का वक्त था उस पर ठंडी हवाएं चल रही थी। पृथ्वी ने अंदाजा लगाया आज शायद बारिश भी हो सकती है। चाय पीते हुए वह फिर अवनि और उसकी किताब के बारे में सोचने लगा और मन ही मन बड़बड़ाया,”क्या सच में ऐसा हो सकता है कि कोई लड़की एक शहर से इतनी मोहब्बत करे कि उसे लेकर एक पूरी किताब ही लिख दे। वो भी ऐसी किताब जिसे पढ़कर इंसान अपनी जिंदगी में एक बार तो बनारस जाने का सोचे।

उस किताब में लिखी हर बात सच हो सकती है लेकिन उसमे लिखी ये बात कि “प्रार्थना करने से वो सब भी मिल जाता है जो हमारे नसीब में नहीं है” अह्ह्ह मैं इस बात को नहीं मानता , मैं हर छोटी चीज ईश्वर से मांगने के बजाय खुद कमाने में विश्वास रखता हूँ। मैं मानता हूँ कि अगर मेरा कर्म अच्छा है और मेरी नियत साफ है तो वह चीज मेरे पास खुद चलकर आएगी,,,,,,,,,,और यही नियम इंसानो पर भी लागू होता है। हजारो लाखो लोग उसकी किताबे पढ़ते है लेकिन मैं ही क्यों उस से टकराया और उसी की किताब मेरे हाथो में क्यों ? ये एक इत्तेफाक भी हो सकता है मुझे इस बार में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए,,,,,,,,,!!”


“तुम ठण्ड में यहाँ क्यों खड़े हो ? ऊपर से तुमने गर्म कपडे भी नहीं पहने तुम बीमार हो जाओगे”,जयदीप की आवाज पृथ्वी के कानो में पड़ी और वह अपने ख्यालो से बाहर आया। पृथ्वी पलटा तो देखा जयदीप भी हाथ में अपना कॉफी मग लिए खड़ा है। पृथ्वी की चाय खत्म हो चुकी थी इसलिए वह जयदीप की बात का जवाब दिए बिना ही वहा से जाने लगा तो जयदीप ने कहा,”कभी कभी तुम्हे समझना मुश्किल हो जाता है क्या तुम किसी बात से परेशान हो ? देखो अगर तुम्हे नए केबिन में नहीं बैठना तो कोई बात नहीं तुम अपने पुराने केबिन में बैठकर भी अपनी नयी जिम्मेदारियां निभा सकते हो”


“थैंक्यू ! अह्ह्ह्ह मैं परेशान नहीं हूँ बस ऐसे कुछ सोच रहा था”,पृथ्वी ने सहजता से कहा
“क्या मैं जान सकता हूँ तुम क्या सोच रहे थे ? क्या तुम किसी लड़की के बारे में सोच रहे हो ? अक्सर तुम्हारी उम्र के लड़के ऑफिस की बालकनी या खिड़की के पास खड़े होकर , हाथो में चाय या कॉफी का कप पकडे किसी खूबसूरत लड़की के बारे में सोचते हुए पाए गए है”,जयदीप ने कहा
“बस आपकी यही बाते मुझे आपसे दूर रहने के लिए मजबूर करती है,,,,,,,,,,,,मैं किसी लड़की के बारे में नहीं सोच रहा था , मेरी उम्र के लड़के कुछ भी करते होंगे पर मैं बाकि सब से अलग हूँ”,पृथ्वी ने कहा


“हाँ वो तो दिखता है , पर तुम बाकि लड़को जैसे क्यों नहीं हो ? अच्छे दिखते हो , पर्सनालिटी भी अच्छी है , अच्छी जॉब है फिर तुम अभी तक सिंगल क्यों हो ? यही तो उम्र होती है पार्टी करने की , गर्लफ्रेंड के साथ ट्रिप्स पर जाने की , घूमने फिरने एन्जॉय करने की”,जयदीप ने कहा
“क्योकि मुझे आज तक ऐसी कोई लड़की मिली नहीं जिसके लिए मैं ये सब करू”,पृथ्वी ने कहा और जाने लगा तो जयदीप ने रोककर कहा,”और कैसी लड़की पसंद है तुम्हे ?”


जयदीप का सवाल सुनकर पृथ्वी को जयदीप की जगह अपनी आई दिखाई देने लगी और पृथ्वी उदास हो गया ! उसने धीरे से कहा,”मला तुझ्यात माझी आई का दिसते ? ( आप में मुझे मेरी आई क्यों नजर आ रही है ?)”
“मतलब ?”,जयदीप ने हैरानी से पूछा


“क्योकि सुबह-शाम वो भी मेरे सामने लड़की लड़की लड़की की रट लगाए रहती है”,पृथ्वी ने थोड़ा गुस्से से कहा
बेचारा जयदीप पृथ्वी का जवाब सुनकर थोड़ा सा डर भी गया और अपने हाथो को उठाकर कहा,”ओके फाइन”
पृथ्वी ने जयदीप को देखा और वहा से निकलने में ही अपनी भलाई समझी। जयदीप ने पृथ्वी को जाते हुए देखा और बड़बड़ाया,”कुछ तो हुआ है इस लड़के के साथ पता लगाना पडेगा”

प्रथवी अपनी डेस्क पर आकर बैठा कि ऑफिस में काम करने वाला लड़का उसके केबिन में आया और शादी का एक कार्ड उसकी तरफ बढाकर कहा,”पृथ्वी सर अगले हफ्ते मेरी शादी है , आप आएंगे तो मुझे अच्छा लगेगा”
“कॉन्ग्रैचुलेशन,,,,,,,,,,,!!”,पृथ्वी ने कहा और कार्ड ले लिया लड़का वहा से चला गया। पृथ्वी ने कार्ड साइड में रख दिया और एक नए प्रोजेक्ट पर काम करने लगा। मनीष अपनी कुर्सी के साथ उसकी तरफ घुमा और कार्ड लेकर देखते हुए कहा,”प्रतीक वेड्स अवनि” हम्म्म्म वेन्यू “फ्लोरल मैरिज गार्डन”


अवनि नाम सुनते ही कीबोर्ड पर चलती पृथ्वी की उंगलिया रुक गयी
पृथ्वी ने मनीष की तरफ देखा और कहा,”अभी क्या कहा तुमने ?”
“फ्लोरल मैरिज गार्डन”,मनीष ने कहा
“नहीं उस से पहले ?”,पृथ्वी ने कहा
“प्रतीक वेड्स अवनि , क्यों क्या हुआ ?”,मनीष ने पूछा


“अह्ह्ह्ह कुछ नहीं मैं बस कह रहा था हम सबको प्रतीक की शादी में जाना चाहिए उसे अच्छा लगेगा”,पृथ्वी ने कहा जबकि अवनि का मन में फिर अवनि का ख्याल आने लगा
“हाँ क्यों नहीं ? वैसे तुम कब कर रहे हो ?”,मनीष ने पूछा
“पता नहीं,,,,,,,,,,,जब करूंगा बता दूंगा”,कहकर पृथ्वी ने एक बार फिर नजरे लेपटॉप पर टिका ली।

सारणेश्वर महादेव मंदिर” सिरोही
अवनि को अपनी बाँह में थामे सिद्धार्थ एकटक उसे देखे जा रहा था और अवनि भी धड़कते दिल के साथ उसे देख रही थी। सिद्धार्थ की गहरी आँखों में देखते हुए अवनि को सुरभि की कही बात याद आयी,”इत्तेफाक नहीं अवनि इसे तुम अपने महादेव का आशीर्वाद ही समझो , तुम्हारे पसंदीदा शहर में तुम्हे तुम्हारे जैसा कोई मिला जिस से तुम दो बार टकराई , ये इत्तेफाक तो नहीं हो सकता,,,,,और अगर महादेव ने सच में तुम्हारी जिंदगी में कुछ अच्छा लिखा है तो देखना तुम उस लड़के से बहुत जल्द मिलोगी तब तो तुम यकीन करोगी ना कि ये इत्तेफ़ाक नहीं है,,,,,,,!!”

 मंदिर की घंटी से सिद्धार्थ की तंद्रा टूटी तो उसने अवनि को साइड करके कहा,”आप ठीक तो है ?”
अवनि भी होश में आयी , अपने उसका हाथ अपने सीने पर चला गया और धड़कते दिल को सामान्य करके उसने कहा,”हाँ , थैंक्यू अगर आपने नहीं सम्हाला होता तो,,,,,,,,,!!”
“मैंने नहीं आपके महादेव ने सम्हाला है , अगर थैंक्यू बोलना ही है तो उन्हें कहिये”,सिद्धार्थ ने प्यार से कहा


“हाँ , हाँ आप यही रुकिए मैं बस अभी आयी”,कहकर अवनि मंदिर की तरफ चली गयी और सिद्धार्थ वही खड़े होकर उसका इंतजार करने लगा लेकिन अगले ही पल उसका फोन बजा और अंदर शोर होने की वजह से उसे बाहर जाना पड़ा। अवनि का इंतजार करते हुए सिद्धार्थ मंदिर की चौखट के बाहर खड़ा था। अवनि अपनी हथेली में प्रशाद लेकर आयी देखा सिद्धार्थ वहा नहीं है तो वह बाहर चली आयी। चौखट के पास उसे सिद्धार्थ मिल गया अवनि उसे देखकर मुस्कुराई और अपनी हथेली उसकी तरफ बढ़ाकर कहा,”प्रशाद “


सिद्धार्थ ने अवनि की हथेली से थोड़ा प्रशाद लिया और खा लिया। बचा प्रशाद अवनि ने खाया और सीढ़ियों की ओर बढ़ गयी। सिद्धार्थ भी उसके साथ चल पड़ा।
साथ साथ चलते हुए दोनों एक दूसरे के पहले बोलने का इंतजार करने लगे और फिर दोनों ने एक साथ कहा,”आप”
“पहले आप कहिये”,सिद्धार्थ ने कहा
“मैंने सोचा नहीं था इतनी जल्दी आपसे फिर मुलाकात होगी लेकिन आप इस शहर में कैसे ?”,अवनि ने पूछा


“मैं सिरोही से ही हूँ , मरुधर कॉलोनी में मेरा घर है और आप ? मुझे लगा आप बनारस में रहती है”,सिद्धार्थ ने अपने जूते पहनते हुए कहा
“मैं हॉस्टल में रहती हु , बैंक में क्लर्क हूँ और नौकरी की वजह से यहाँ आना पड़ा”,अवनि ने कहा
“वैसे कहा से है आप ?”,सिद्धार्थ ने पूछा
“उदयपुर,,,,,,,,!!”,अवनि ने कहा


“What a beautiful city इतना खूबसूरत शहर छोड़कर आप यहाँ चली आयी वैसे अच्छा ही हुआ वरना आपसे मुलाकात कैसे होती”,सिद्धार्थ ने अवनि की तरफ देखकर कहा
दोनों पैदल ही आगे बढ़ गए और मन्दाकिनी तालाब के पास आकर रुक गए। तालाब के आस पास की खूबसूरती देखकर अवनि वही खड़ी रही तो सिद्धार्थ ने कहा,”अगर आपको ऐतराज ना हो तो क्या हम लोग कुछ देर यहा बैठ सकते है ?”


अवनि को वो जगह अच्छी लगी सिद्धार्थ उसके लिए अब इतना अनजान भी नहीं था इसलिए उसने हामी में सर हिला दिया। सिद्धार्थ ने अवनि से बैठने को कहा और खुद उस से कुछ दूरी बनाकर बैठ गया लगभग इतनी की दोनों के बीच 4 लोग और बैठ सके। अवनि को अच्छा लगा कि सिद्धार्थ अपनी मर्यादा समझता है। सिद्धार्थ को खामोश पाकर अवनि ने कहा,”वैसे उस दिन आप मेरी दोस्त से मिले बिना ही चले गए ?”


“ओह्ह्ह हाँ ! उसके लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ एक्चुली एक अर्जेन्ट कॉल की वजह से मुझे साइड में जाना पड़ा , मैं जब वापस आया तब तक आप वहा से निकल चुकी थी , मैं आपको ढूंढता भी तो कहा ना मेरे पास आपका नंबर था न ही आपका पता और तो और मुझे तो आपका नाम भी नहीं पता”,सिद्धार्थ ने शर्माते हुए कहा। ये सब कहते हुए अवनि को सिद्धार्थ बहुत ही मासूम लगा वह मुस्कुरा उठी और कहा,”अवनि , अवनि मलिक”


“सिद्धार्थ माथुर , आपसे दोबारा मिलकर ख़ुशी”,सिद्धार्थ ने मुस्कुरा कर कहा
अवनि ने देखा सिद्धार्थ की आँखे ही नहीं बल्कि उसकी मुस्कराहट भी बहुत आकर्षक थी। वह सामने देखने लगी तो सिद्धार्थ ने कहा,”वैसे आप हॉस्टल में क्यों रहती है ? मेरा मतलब आप रेंट का या फिर खुद का घर क्यों नहीं लेती उसमे फ्रीडम और खाना दोनों अपनी पसंद से मिलता है”


“मैं इस शहर में किसी को जानती नहीं हूँ , अकेले रहती हूँ इसलिए हॉस्टल में रहना सही लगा,,,,,,,,,घर देख रही हूँ जैसे ही मिलेगा शिफ्ट हो जाउंगी”,अवनि ने कहा तो सिद्धार्थ कुछ सोच में पड़ गया और फिर कहा,”अगर आप अकेली रहती है तो फिर आप फ्लेट लेना सिक्योरिटी के हिसाब से सही रहेगा और इजी भी रहेगा,,,,,,,,,,,,,वैसे कोई जरूरत हो तो आप मुझसे कह सकती है , इस शहर में आप इतनी भी अकेली नहीं है”


सिद्धार्थ ने इतने अपनेपन से कहा कि अवनि उसे देखने लगी। सिद्धार्थ ने अवनि की तरफ देखा तो अवनि ने अपनी नज़रे हटा ली और कहा,”थैंक्यू ! मैं आपको परेशान नहीं करुँगी”
“इसमें परेशानी की क्या बात है वैसे भी आपको नहीं लगता आपका और मेरा बार बार टकराना कोई इत्तेफाक नहीं है , हो सकता है इसमें महादेव की मर्जी छुपी हो”,सिद्धार्थ ने सधे हुए स्वर में कहा

अवनि ने सुना तो सिद्धार्थ की तरफ देखने लगी , सिद्धार्थ की कुछ कुछ बातें वैसी ही थी जैसे उसकी कहानियो के किरदार किया करते थे। वह कुछ देर सिद्धार्थ को देखते रही और कहा,”किसे, कहा, किस से मिलना है ये पहले से तय है,,,,,,,,,!!”
“आप बाते बड़ी अच्छी करती है”,सिद्धार्थ ने मुस्कुरा कर कहा


जवाब में अवनि भी मुस्कुरा दी। दोनों कुछ देर वही बैठकर बाते करते रहे और फिर उठकर सिद्धार्थ की गाडी तक पैदल चले आये। अवनि सिद्धार्थ को बाय बोलकर जैसे ही जाने लगी सिद्धार्थ ने कहा,”अवनि जी ! क्या हम फिर मिल सकते है ?”
“अगर महादेव ने चाहा तो जरूर,,,,,,,!!”,अवनि ने पलटकर कहा
सिद्धार्थ मुस्कुराया और कहा,”मैं इंतजार करूंगा,,,,,,,,,,वैसे मेरा घर आपके हॉस्टल से 2 किलोमीटर आगे ही है , अगर आप कम्फर्टेबल हो तो मैं आपको हॉस्टल तक छोड़ दू ?”,सिद्धार्थ ने सहजता से कहा


अवनि मन ही मन उलझन में पड़ गयी , सिद्धार्थ से वह 3 बार मिल चुकी थी लेकिन अनजान शहर में किसी पर इस तरह विश्वास करना क्या सही रहेगा ? अवनि को सोच में डूबा देखकर सिद्धार्थ उसकी तरफ आया और कहा,”अह्ह्ह समझ सकता हूँ आप सोच रही होंगी अनजान शहर में किसी पर भरोसा करू या नहीं तो मैं कहूंगा कि आप मुझ पर बिल्कुल भरोसा कर सकती है मुझसे आपको कोई ख़तरा नहीं है। आप कहे तो मैं अपना ड्राइविंग लायसेंस , अपना आई डी प्रूफ दे देता हूँ”


“अरे नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है,,,,,,,,,,,आप परेशान मत होईये मैं चली जाउंगी”,अवनि ने झिझकते हुए कहा
“इसमें परेशानी की कोई बात नहीं है , वैसे भी आपको यहाँ से कोई लोकल ट्रांसपोट्ट नहीं मिलेगा और ओला उबर कब तक आएगा कुछ कह नहीं सकते ? अगर आप कम्फर्टेबल है मुझे आपको आपकी मंजिल तक छोड़ने में ख़ुशी होगी”,सिद्धार्थ ने कहा


अवनि फिर उलझन में पड़ गयी सिद्धार्थ के अब तक के बर्ताव और उसकी बातो से उसे सिद्धार्थ अच्छे घर का एक सभ्य लड़का लगा। सिद्धार्थ के इतना कहने पर अवनि उसके साथ गाड़ी में जाने को तैयार हो गयी हालाँकि मन ही मन थोड़ा घबरा भी रही थी क्योकि इस शहर में पहली बार वह किसी पर इतना भरोसा कर रही थी।

अवनि ने जब हाँ कहा तो सिद्धार्थ का मन ख़ुशी से उछलने लगा उसके चेहरे की लाली और आँखों की चमक बता रही थी कि इस वक्त वह कितना खुश था। उसने आगे बढ़कर अवनि के लिए गाडी का दरवाजा खोला। अवनि गाड़ी में आ बैठी और सिद्धार्थ उसके बगल में ड्राइवर सीट पर आ बैठा। सिद्धार्थ ने सीट बेल्ट लगाया और गाडी स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी।


“मैं चली जाती आपने खामखा तकलीफ की”,अवनि ने कहा
“तकलीफ तो मुझे तब होती जब आप आने से मना कर देती”,सिद्धार्थ ने सामने देखते हुए कहा
“मतलब ? मैं समझी नहीं,,,,,,,,!!”,अवनि ने कहा
“दरअसल मैं आपसे बात करने का चांस मिस नहीं करना चाहता था , इस 40 मिनिट के सफर में आपके बारे में थोड़ा और जानने को मिल जाएगा”,सिद्धार्थ ने अवनि की तरफ देखकर प्यार से कहा


अवनि ने सुना तो सिद्धार्थ की आँखों में देखने लगी जिनमे अवनि को बस एक मासूम सच्चाई और अपनापन नजर आ रहा था। सिद्धार्थ ने अवनि से नजरे हटाई और अपना ध्यान गाडी पर लगा लिया। उसके बाद शुरू हुई उनके बीच बातें जिसमे सिद्धार्थ ही ज्यादा बात कर रहा था और अवनि मुस्कुराते हुए सुन रही थी। बीच बीच में सिद्धार्थ उस से उसके बारे में कुछ पूछता तो वह बता देती। 40 मिनिट का ये वक्त कैसे गुजरा पता ही नहीं चला ? सिद्धार्थ तो चाहता था अवनि बस उसके सामने ही रहे लेकिन गाडी हॉस्टल के गेट के सामने आकर रुकी और अवनि ने सिद्धार्थ की तरफ देखकर कहा,”थैंक्यू सो मच”


सिद्धार्थ ने अपना कार्ड अवनि की तरफ बढाकर कहा,”ये मेरा कार्ड है , इस शहर में कभी भी कोई भी प्रॉब्लम हो जस्ट कॉल मी”
“हम्म्म थैंक्यू”,अवनि ने कार्ड ले लिया और दरवाजा खोलकर गाडी से नीचे उतर गयी। अवनि घूमकर सिद्धार्थ की तरफ आयी और जैसे ही अंदर जाने लगी उसे कुछ याद आया और उसने सिद्धार्थ से कहा,”आप दो मिनिट यहाँ रुकेंगे , मैं अभी आयी”
“हम्म ठीक है”,सिद्धार्थ ने कहा


अवनि अंदर चली गयी कुछ देर बाद वापस आयी उसके हाथ में एक किताब थी। सिद्धार्थ गाड़ी के बाहर अपनी पीठ लगाकर खड़ा था। अवनि ने किताब सिद्धार्थ की तरफ बढ़ाकर कहा,”ये किताब आपके लिए पढ़कर देखियेगा उम्मीद है आपको पसंद आएगी”
सिद्धार्थ ने किताब ली जिस पर लिखा था “बनारस ही क्यों ?” सिद्धार्थ किताब को देखकर मुस्कुराया और कहा,”जरूर”


जवाब में अवनि भी मुस्कुरा दी तो सिद्धार्थ ने उसे अलविदा कहने के लिए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया। अवनि ने सिद्धार्थ से हाथ मिलाया और फिर वहा से चली गयी। सिद्धार्थ ने भी किताब डेशबोर्ड पर रखी और वहा से चला गया।

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संजना किरोड़ीवाल  

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