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पाकीजा – एक नापाक जिंदगी 43

Pakizah – 43

pakizah - ak napak jindagi
pakizah – ak napak jindagi by Sanjana Kirodiwal

Pakizah – 43

पाकीजा को लेकर रूद्र सेंट्रल जेल पहुंचा l वहा से पाकीजा के रिहाई की सभी फॉर्मेलिटी पूरी की और आकर घास के मैदान में पड़ी उस बेंच पर आकर बैठ गए l दोनों एक दूसरे से दूर किनारो पर बैठे थे l मुस्तफा दोनों के लिए चाय ले आया l उसने एक कप रूद्र को और दूसरा पाकीजा को थमाया और चला गया l कुछ देर ख़ामोशी के बाद पाकीजा ने कहा ,”समझ नहीं आ रहा सर किन लफ्जो में आपका शुक्रिया अदा करू , आपने मेरे लिए जो कुछ किया वो मैं कभी भूल नहीं पाउगी सर l

आपसे माफ़ी भी मांगनी थी अनजाने में उस रोज मैंने आपसे जो कुछ भी कहा उसके लिए मुझे माफ़ कर दीजिये”
रूद्र – पाकीजा ! तुम आजाद हो क्योकि तुमने कोई गुनाह नहीं किया था , तुम्हे माफ़ी मांगने की भी जरूरत नहीं है मैंने जिस तरह से तुमसे बात की वो गलत था l तुम्हारी किताब पढ़ी मैंने शिवेन को तो मैं वापस नही ला सकता लेकिन तुम्हे इंसाफ दिलाकर एक नयी जिंदगी जरूर दे सकता था l और मैंने किया भी


पाकीजा – आपने जो किया वो कोई नहीं करता सर , आपने मुझ पर भरोसा किया
रूद्र – इंसान को पहचानने की समझ रखता हु पाकीजा
पाकीजा – लेकिन मैं आपको अब तक नहीं समझ पायी हु
रूद्र – मतलब ?
पाकीजा – आप पुलिस वाले नहीं है


पाकीजा की बात सुनकर रूद्र एक पल के लिए चौंक गया और उसकी तरफ देखने लगा पाकीजा सामने उगी सुखी घास को देख रही थी उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था l पाकिजा की बात सुनकर रूद्र कुछ देर खामोश रहा और फिर कहा,”हां ये सच है की मैं पुलिस वाला नहीं हु , मैं एक सी.बी.आई. आफिसर हु l कमिशनर साहब और पाटिल को लेकर डिपार्टमेंट में चर्चा थी l गैर क़ानूनी काम करके भी वे लोग लोगो की नजर में सही थे l

उनका सच सामने लाने के लिए मुझे यहाँ भेजा गया डिपार्टमेंट में कोई भी ये बात नहीं जानता था सिवाय असलम के l यहाँ रहकर मैंने इन लोगो के बारे में तहकीकात करनी शुरु की और तभी तुम्हारी फाइल मेरे सामने आई l तुम्हारे केस को लेकर कमिशनर को कुछ तनाव में देखा तो हल्का सा शक हुआ और मैं उनपे नजर रखने लगा l पाटिल के गैर क़ानूनी कामो में कमिशनर साहब का बराबर का हाथ था लेकिन बिना किसी सुबूत के उन्हें गिरफतार करना भी गलत था l

फिर तुम्हारी कहानी से एक क्लू मिला पाटिल और कमिशनर के बारे में पढ़ा तो समझ आया सिर्फ तुम ही हो जो मेरी मदद कर सकती थी और मैंने तुम्हारा केस रीओपन करवाया l उन्हें उनके किये की सजा मिल गयी पाकीजा और तुम्हे भी इंसाफ मिल गया , पर एक बात समझ नहीं आयी तुम्हे कैसे पता चला की मैं पुलिस वाला नहीं हु ? “
पाकीजा ने एक नजर रूद्र के चेहरे की और देखा और फिर सामने देखते हुए कहने लगी,”जब पहली बार आप यहाँ आये थे तब पता नही क्यों आपको देखकर लगा जैसे मैंने आपको कही देखा है l

आपके जाने के बाद बहुत सोचा तब याद आया l आपसे मेरी मुलाकात जौनपुर के रेलवे स्टेशन पर हुयी थी जब मैं अपनी अम्मी के साथ कही जा रही थी l चलते चलते मैं आपसे टकरा गयी थी आपके हाथ में आपका पर्स था जो की निचे गिर गया था l जब आपने उसे उठाया तो एक कार्ड निचे रह गया मैंने आपको उठाकर दिया तो मेरी नजर कार्ड पर लिखे आपके नाम पर गयी l
“रूद्र प्रताप सिंह” सी.बी.आई. ऑफिसर


आप बहुत परेशान थे इसलिए आपने मुझसे वो कार्ड लिया आगे बढ़ गए l आपके हाथ में पिस्टल थी मैं वो देख के घबरा गयी और वहा से चली गयी उस वक्त आप मुझे नहीं देख पाए थे क्योकि मैंने नकाब पहना हुआ था l जाते जाते आपने पलटकर देखा और बन्दुक दिखाते हुए वहा से जाने का इशारा किया l उस वक्त मैं समझ नहीं पायी पर जब अगले ही पल वहा दंगा शुरू हो गया तो मुझे आपके परेशान होने का कारण समझ आया l

किसी तरह मैं बचकर मैं वहा से निकल गयी लेकिन आपका नाम मेरे जहन,में रह गया l वो बात कोई 4 साल पुरानी होगी l वक्त के साथ हम वो सब भूल गए लेकिन 4 साल बाद आप वापस हमारे सामने आये तो सब याद आ गया l “
रूद्र ख़ामोशी से चुपचाप सब सुनता रहा और धीरे से कहा,”ये सब तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?
“बताती तो आप वो दर्द कभी महसूस नहीं कर पाते जो मेरा अतीत जानकर किया , आप उस कहानी को कभी नहीं पढ़ते l

दुनिया गोल है सर जहा से शुरू होती है वही आकर ख़त्म हो जाती है”,पाकीजा ने कहा
रूद्र मुस्कुराने लगा और कहा,”तुम्हे तो जासूस होना चाहिए ! “
पाकीजा मुस्कुरा उठी l रूद्र ने आज पहली बार उसे मुस्कुराते हुए देखा था l मुस्कुराते हुए वह कितनी प्यारी लगती थी रूद्र एकटक उसके चेहरे को देखने लगा l

रूद्र को अपनी और देखता पाकर पाकीजा के चेहरे से मुस्कराहट गायब हो गयी उसने रूद्र से नजरे चुराते हुए कहा,”शिवेन जी बाद अगर हमने किसी पर भरोसा किया है तो वो सिर्फ आप हो सर l पता नहीं क्यों लेकिन आपसे ये सब बातें कहने का मन किया l”
“तुम मुझे रूद्र कहकर बुला सकती हो पाकीजा , रही बात भरोसे की तो वो मैं कभी नहीं तोडूंगा”,रूद्र ने पाकीजा की आँखों में देखते हुए कहा l


“आज तक जिसने भी हमारी मदद करनी चाही उसमे उनका कोई ना कोई स्वार्थ हमेशा रहा फिर आपने बिना किसी स्वार्थ के मेरी मदद की क्यों ?”,पाकीजा ने आखो में देखते हुए कहा
“क्योकि मैं तुमसे…………………………!!”,रूद्र इतना ही कह पाया था की तभी महेश ने आकर कहां,”सर पेपर्स रेडी है”
महेश ने हाथ में पकड़ी फाइल रूद्र की तरफ बढ़ा दी और चला गया l रूद्र अपने दिल की बात कहते कहते रुक गया पाकीजा ने भी दोबारा नहीं पूछा l


रूद्र बेंच से उठ खड़ा हुआ और पाकीजा से कहा,”चले !!
पाकीजा उठकर रूद्र के साथ साथ चलने लगी l मुस्तफा ने नम आँखों से दोनों को साथ जाते देखा और आसमान की और देखते हुए कहा ,”या मेरे खुदा अब इस बच्ची की जिंदगी में कोई दर्द ना आये”

रूद्र ने पाक़िजा से गाड़ी में बैठने को कहा और गाड़ी स्टार्ट करके सड़क पर दौड़ा दी l पुरे रास्ते दोनों खामोश थे l पाकीजा उदास आँखों से खिड़की के कांच से बाहर देखती रही l इस शहर में आने के बाद ये बाहर की दुनिया उसे शिवेन ने दिखाई थी और आज रूद्र की वजह से वह दोबारा इस दुनिया को देख पा रही है l पाकीजा की बीती जिंदगी बहुत दर्दनाक और तकलीफ देने वाली रही थी l

रूद्र बिच बिच में पाकीजा को देख लेता वह समझ सकता था पाकीजा इस वक्त किस तनाव से गुजर रही थी l वह चुपचाप गाड़ी चलाता रहा l
सोच में डूबी पाकीजा की कब आँख लग गयी उसे पता ही नहीं चला l रूद्र ने उसे सोते हुए देखा कितना सुकून था पहली बार पाकीजा के चेहरे पर , रूद्र ने स्पीड कम कर दी वह चाहता था ये सफर यु ही चलता रहे l आज उसके दिल में एक सुखद अहसास था l


गाड़ी रूद्र के घर के सामने आकर रुकी l पाकीजा की नींद खुली वह गाड़ी से निचे उतरी और रूद्र की तरफ देखने लगी l
“मैं यहाँ रहता हु , ये मेरा घर है ! तुम यहाँ रह सकती हो !”,रूद्र ने पाकीजा के मन की बात भांपते हुए कहा l
“घर बहुत खूबसूरत है सर”,पाकीजा ने कहा
“अंदर आओ “,रूद्र ने कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया l

पाकीजा रूद्र के साथ अंदर आयी रूद्र ने उसे बैठने को कहा पाकीजा कुर्सी पर बैठ गयी l रूद्र पानी का ग्लास ले आया और पाकीजा की तरफ बढ़ा दिया l पाकीजा ने पानी पिया और ग्लास साइड में रख दिया l
“सर क्या अब हम हमारे घर मेरा मतलब अपने अम्मी अब्बू के पास जा सकते है ?”,पाकीजा ने धीरे से कहा
“बिल्कुल ! लेकिन दो दिन तुम्हारा इस शहर में रुकना जरुरी है , उसके बाद मैं खुद तुम्हे सही सलामत तुम्हारे घर छोड़कर आऊंगा l इस वक्त तुम मेरी जिम्मेदारी हो पाकीजा l”,रूद्र ने कहा


“दो दिन मैं यहा कैसे रह सकती हु सर ?”,पाकिजा ने कहा
“घबराने की जरूरत नहीं है , तुम इसे अपना ही घर समझो ! तुम कहोगी तो मैं दो दिन कही और एडजस्ट कर लूंगा”,रूद्र ने कहा
“ऐसी बात नहीं है सर , आप मेरे लिए खामखा इतना परेशान हो रहे है ये देखकर अच्छा नहीं लग रहा l”,पाकीजा ने नजरे झुकाकर कहा


”अगर तुम्हे लगता है ये सब करके मैं तुम पर कोई अहसान कर रहा हु तो तुम वो अहसान चूका सकती हो”,रूद्र ने पाकीजा की आँखों में देखते हुए कहा l
“कैसे ?”,कहते हुए पाकीजा का दिल धड़कने लगा l
“वक्त आने पर बता दूंगा ! बाथरूम दांयी साइड है तुम जाकर नहा लो तब तक मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हु”,कहकर रूद्र उठा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया l


पाकीजा अवाक् सी रूद्र को देखती रह गयी l रूद्र का कब कोनसा रूप बाहर आ जाये ये उसकी समझ से परेशान था पाकीजा उठी और बाथरूम की तरफ जाने लगी की सामने से आते रूद्र से टकरा गयी l
“ये कुछ कपडे है तुम्हारे काम आएंगे , वैसे मेरे ही है अभी पहन लो शाम को बाजार से तुम अपने लिए कुछ और कपडे खरीद लेना”,रूद्र ने हाथ में पकड़ा सफ़ेद रंग का कुरता और जींस पाकीजा की और बढ़ा दिया और दरवाजे की तरफ चला गया

पाकीजा कपड़े सम्हाले बाथरूम की तरफ बढ़ गयी l रूद्र ने खाना आर्डर कर दिया और फिर बैठकर मेरठ जाने के लिए टिकट बुक करने लगा l
कुछ देर बाद पाकीजा नहाकर बाहर आयी l तब तक खाना भी आ चुका था l रूद्र की नजर पाकीजा पर पड़ी तो वह हसने लगा l दरअसल पाकीजा ने रूद्र का दिया जो कुर्ता पहना था वो पाकीजा के लिए बहुत बड़ा था कुर्ते की बाजु पाकीजा के हाथो से बाहर लटक रही l


“आप हँस क्यों रहे है ?”,पाकिजा ने रूद्र को हसते देखकर पूछा
रूद्र ने अपनी हंसी रोकी और पाकीजा के पास आया उसने पाकीजा का हाथ पकड़ा और मुस्कुराता हुआ कुर्ते की बाजु फोल्ड करने लगा l पाकीजा उदास आँखों से रूद्र के चेहरे को देखने लगी l रूद्र पलके झुकाये उसके बाजु फोल्ड करता रहा l रूद्र का छूना ना जाने क्यों उसे जाना पहचाना लगा l पाकीजा गीले बालो से पानी झर रहा था l रूद्र ने पाकीजा की तरफ देखा तो एक पल के लिए उसकी आँखों में खो गया l


“ऐसे मत देखो पाकीजा !!”,रूद्र ने अपनी धड़कनो पर काबू पाते हुए कहा l
पाकीजा तेजी से पलटी जैसे ही गिरने को हुई रूद्र ने उसका हाथ पकड़कर उसे गिरने से बचा लिया और कहा,”सम्हलकर अभी नया नया कदम बढ़ाना सीखा है”
पाकीजा ने अपनी पलके झुका ली तो रूद्र ने उसका हाथ छोड़ दिया और कहा,”खाना तैयार है आओ !!


पाकीजा चुपचाप आकर बैठ गयी रूद्र ने पाकीजा की प्लेट में खाना परोसा और उसकी तरफ बढ़ा दिया l पलके झुकाये पाकीजा चुपचाप खाना खाती रही l रूद्र सामने बैठा खाना खा रहा था पर बार बार उसकी नजर पाकीजा के मासूम चेहरे पर चली जाती l पाकीजा ने खाना खाया और बर्तन उठाकर किचन में रखने चली गयी l रूद्र ने उसे कुछ देर आराम करने को कहा पाकीजा उसके कमरे में जाकर लेट गयी l

नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी l वह उठी और कमरे को देखने लगी l खिड़की के पास आयी और पर्दा हटाकर बाहर देखने लगी सामने मैदान में बच्चे खेल रहे थे l मौसम सुहावना था पाकीजा वही खड़ी कुछ देर उन लोगो को देखती रही और फिर आकर बिस्तर पर बैठकर सोच विचारो में डुब गयी l
शाम के समय रूद्र चाय लेकर कमरे आया और चाय का कप पाकीजा की तरफ बढ़ा दिया l


“आप चाय भी बना लेते है ?”,पाकीजा ने रूद्र की तरफ देखकर पूछा l
“हां , मैं तो सोच रहा हु रिटायरमेंट के बाद अपनी खुद की चाय की दुकान खोलूंगा”,रूद्र ने मुस्कुरा कर कहा
रूद्र की बात सुनकर पाकीजा जोर जोर से हसने लगी l रूद्र यही तो चाहता था की पाकीजा हसे लेकिन हसते हसते अगले ही पल पाकीजा की आँखे आंसुओ से भर गयी और आंसू गालो पर लुढ़क आये l रूद्र ने पाकीजा की आँखों में आंसू देखे तो तड़प उठा

उसने चाय का कप साइड में रखा और घुटनो के बल बैठकर पाकीजा के पास आया और उसके आंसू पोछते हुए कहा,”तुम हसती हुयी बहुत अच्छी लगती हो पर ये आंसू तुम्हारी आँखों में बिलकुल अच्छे नहीं लगते है”
“गुजरा हुआ वक्त भूलना इतना आसान नहीं होता सर ! अतीत की हर बात इंसान को कमजोर बना देती है !”,पाकिजा ने अपनी भीगी पलके उठाकर रूद्र की तरफ देखते हुए कहा l
रूद्र ने पाकीजा का हाथ अपने हाथ में लिया और कहने लगा,”पाकीजा किसने कहा तुम कमजोर हो ?

जो अतीत तुमने देखा है , जो तकलीफे सही है तुम्हारी जगह कोई और होता तो शायद अब तक जीने की उम्मीद छोड़ चुका होता l तूम बहुत बहादुर हो पाकीजा इन आंसुओ से खुद को कमजोर मत बनाओ l खुद को मजबूत बनाओ , हमेशा कोई शिवेन या रूद्र तुम्हारी मदद के लिए आगे नहीं आएगा तुम्हे खुद ही अपनी मदद करनी होगी l खुद को इतना मजबूत बनाना होगा की कोई भी इंसान तुम्हे कमजोर ना समझे l अपने लिए तुम्हे खुद ही आगे आना होगा , लड़ना होगा l “


पाकीजा ख़ामोशी से रूद्र के चेहरे को देखने लगी रूद्र आज बिलकुल शिवेन की तरह बात कर रहा था l
“चलो अब मुस्कुराओ”,रूद्र ने पाकीजा के आंसू पोछते हुए कहा l
पाकीजा ख़ामोशी से अब भी रूद्र को देखती रही रूद्र उसके एकदम से उसके करीब आया और कहा,”अगर ऐसे देखोगी तो वापस सेंट्रल जेल छोड़कर आजाऊंगा , फिर वहा दोनों साथ मिलकर लिखेंगे “पाकीजा की ख़ामोशी “
रूद्र की बात सुनकर पाकीजा मुस्कुरा उठी l

रूद्र भी मुस्कुराने लगा और दूर होकर कहा,”तुम तैयार हो जाओ , बाहर चलकर तुम्हारे लिए कुछ कपडे ले आते है “
“लेकिन आपकी चाय”,पाकीजा ने चाय के कप की और देखते हुए कहा जिसकी चाय ठंडी हो चुकी थी
“चाय मैं और बना लूंगा बस तुम ध्यान रखना अब ये मुस्कराहट तुम्हारे होंठो से दूर ना हो”,कहकर रूद्र बाहर चला गया
पाकीजा रूद्र को देखती ही रह गयी l


कुछ देर बाद पाकीजा अपने वही पुराने कपडे पहनकर बाहर आयी l रूद्र उसी का ही इंतजार कर रहा था उसने देखा पाकीजा पुराने कपड़ो में भी बहुत खूबसूरत लग रही है l रूद्र ने गाड़ी निकाली और पाकीजा को लेकर मार्किट चला गया वहा उसने पाकीजा की जरूरत का सारा सामान खरीदा और फिर साथ साथ पैदल चलते हुए गाड़ी की तरफ जाने लगे l रूद्र किसी से फोन पर बातें करता हुआ चल रहा था सामने तेज स्पीड से आती गाड़ी उसे नहीं दिखी पाकीजा ने तेजी से रूद्र को अपनी और खिंच लिया l

दोनों एक दूसरे के बहुत करीब थे गाड़ी वहा से तेजी से निकल गयी l कुछ देर बाद दोनों घर के लिए निकल गए l घर आकर रूद्र ने पाकीजा से कहा
“पाकीजा , मुझे थोड़ी देर के लिए घर से बाहर जाना है ! मैं जल्दी आ जाऊंगा तुम रह लोगी अकेले यहाँ ?”,रूद्र ने कहा


“जी आप जाईये ! “,पाकीजा ने कहा
“किसी भी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक ले लेना और इसे अपना ही घर समझना मैं जल्दी आ जाऊंगा”,कहकर रूद्र चला गया l

पाकीजा अंदर आकर लाये हुए सामान को देखने लगी l

देर रात घर के बाहर खड़ा रूद्र परेशान था l दरअसल असलम और डिपाटमेंट के बाकि लोगो ने रूद्र के लिए एक छोटी सी पार्टी रखी थी और वहा रूद्र ने गलती से शराब पि ली l अब उसे अंदर जाने से डर लग रहा था पाकीजा उसके बारे में क्या सोचेंगी जब उसे इस हालत में देखेगी
“ऐसा करता हु आज रात यही बाहर रुक जाता हु , नहीं नहीं ऐसा किया तो पाकीजा कही खुद को अकेला समझकर परेशान ना हो जाये l

हिम्मत करके अंदर जाता हु और बिना पाकीजा से बात किये सो जाता हु , हां ये ही सही रहेगा”,खुद से कहकर रूद्र धीरे से दरवाजा खोलकर अंदर आया l
पाकीजा कमरे में सो रही थी लेकिन कमरे का दरवाजा खुला होने के कारण रूद्र की नजर उस पर पड़ी उसका मासूम सा चेहरा रूद्र की आँखों में बसता ही चला गया सहसा ही रूद्र के कदम कमरे की और बढ़ गए l पाकीजा जगी हुयी थी रूद्र को आते देखकर उसने आँखे बंद कर ली और करवट करके लेट गयी उसका दिल तेजी से धड़कने लगा l

उसने महसूस किया रूद्र नशे में है इतनी रात को रूद्र का पाकीजा के कमरे में आना पाकीजा को किसी अनहोनी के होने का संकेत दे रहा था l जैसे ही रूद्र उसके करीब आया उसने अपने दोनों हाथो की मुट्ठियों को आपस में कस लिया l उसका दिल डर और घबराहट से तेजी से धड़कने लगा l पाकीजा की आँखों में आंसू भर आये वह मन ही मन खुद से कहँने लगी

“क्या ये अपने अहसानो का बदला इस तरह चुकाएंगे ?”,

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