मेरा पहला और आखरी सावन

Mera Pahla Or Aakhri Sawan

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मेघा की शादी के दो दिन बाद ही विक्रम उसे छोड़कर चला गया। ऐसा नहीं था की वह अपनी नयी नवेली दुल्हन से प्यार नहीं करता था या उसके साथ वक्त नहीं बिताना चाहता था लेकिन कहते है की एक फौजी की पहली मोहब्बत होता है उसका देश और विक्रम भी कुछ ऐसा ही था अपने देश के लिए उसने एक बार भी मेघा की आँखों में आये आंसुओ को नहीं देखा क्योकि वह कमजोर नहीं पड़ना चाहता था और अपनी वर्दी पहनकर बॉर्डर पर चला गया। वहा पहुंचकर उसे घर और सबसे ज्यादा मेघा की याद सताती थी लेकिन जब भी वह अपने फर्ज को याद करता उसे अपना देशप्रेम सबसे ज्यादा लगता था। गर्मियों की तपती धुप में बॉर्डर पर खड़ा विक्रम पूरी सतर्कता के साथ डटा हुआ था। एक शाम साथ सिपाही भागता हुआ उसके पास आया और कहा,”विक्रम भाई तुम्हारे लिए खत आया है” विक्रम ने मुस्कुराकर खत लिया और जेब में रख लिया रात में खाना खाने के बाद विक्रम ने खत खोला उस खत से सोंधी खुशबु आ रही थी विक्रम ने देखा खत पर मोतियों जैसे अक्षर लिखे हुए है विक्रम समझ गया खत मेघा ने लिखा है वह खत पढ़ने लगा “प्रिय विक्रम जी ,
आशा करती हूँ आप सकुशल होंगे। वैसे मैं आपसे बहुत नाराज हूँ की आप अपनी नई नवेली ब्याहता को छोड़कर चले गए लेकिन जब लोगो से कहती हूँ की मेरे पति देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर खड़े है तो सच में बहुत गर्व महसूस होता है। आपसे ब्याह रचाकर मुझे एक फौजी की पत्नी कहलाने का सम्मान मिला इस से बड़ी सौभाग्य की बात मेरे लिए भला और क्या हो सकती है ? आपकी बहुत याद सताती है और उस से भी ज्यादा आपकी चिंता हर वक्त रहती है। शादी की पहली रात आपने मुझसे कुछ मांगने को कहा था और मैंने कहा था वक्त आने पर मांग लुंगी इस खत के जरिये मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूँ ,, कुछ दिन बाद सावन का महीना शुरू हो जाएगा और शादी के बाद ये मेरा पहला सावन है , मेरी सभी सहेलिए अपने अपने पतियों के साथ रहेगी , झूले झूलेंगी , खूब हंसी ठिठोली होगी सबके बिच , मैं चाहती हूँ शादी के इस पहले सावन में आप मेरे साथ रहे। मैं आपका इंतजार करुँगी , आपको ढेर सारा प्यार !”
आपकी ब्याहता ‘मेघा’

विक्रम ने खत पढ़ा तो उसके होंठो पर मुस्कान तैर गयी अगले दिन वह हेड क्वाटर आया और छुट्टी के लिए अर्जी दी। मेजर ने भी उसे अगले हफ्ते जाने की परमिशन दे दी। विक्रम ख़ुशी ख़ुशी लौट आया विक्रम फिर बॉर्डर पर तैनात हो गया। ये एक हफ्ता बहुत धीरे गुजरा। छुट्टी पर जाने से पहली रात विक्रम अपना सामान जमा रहा था। साथी उसे नयी नयी शादी के लिए छेड़ रहे थे। सामान जमाकर विक्रम लेट गया लेकिन उसे नींद नहीं आयी रात भर वह मेघा के बारे में सोचता रहा। सुबह के 5 बजे उसके साथियो को मेसेज मिला की बॉर्डर पर दुश्मनो ने हमला कर दिया है विक्रम और उसके 5 साथी तुरंत अपने हथियारों के साथ निकल गए ! अँधेरा होने की वजह से कुछ ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा था। सभी सावधानी से आगे बढ़ने लगे उगते सूरज के साथ ही वहा गोलीबारी शुरू हो गयी जिसमे विक्रम के दो साथी शहीद हो गए। ये देखकर विक्रम को दुःख हुआ वह दुश्मनो से बदला लेने अकेले ही आगे बढ़ गया और उनके तीन आदमियों को मार गिराया। विक्रम के बाकि साथी इधर उधर फ़ैल गए बस चारो और से गोलियों की आवाजे आ रही थी । सुबह शुरू हुई जंग शाम तक जारी रही।

दो दिन बाद ही सावन का महीना शुरू हो गया। मेघा विक्रम के इंतजार में सुबह जल्दी उठ गयी और घर का सारा काम उसने जल्दी जल्दी निपटा लिया। उसका मुस्कुराता चेहरा देखकर सास ससुर भी खुश थे। घर का काम निपटा कर मेघा कमरे में आयी और अलमारी से लाल रंग की साड़ी निकाल ली जिसने उसने शादी वाली रात पहना था। साथ में मैचिंग बलाउज पहना , बालो का जुड़ा बनाकर उसने बालो में मोगरा भी लगाया , आँखों में गहरा काजल , होंठो पर लाली और ललाट पर लाल रंग की बिंदी लगा ली , गहने पहने और हाथो में भर भर कर चुडिया पहन ली। वह बिल्कुल वैसी ही लग रही थी जैसे शादी वाली रात लग रही थी सहसा ही उसके लब मुस्कुरा उठे। छोटी ननद ने देखा तो कह पड़ी,”वाह भाभी इस बार तो भैया आपको देखेंगे तो देखते ही रह जायेंगे , और आपको छोड़कर बिल्कुल नहीं जायेंगे”
“धत पगली”,कहकर मेघा मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर आयी सास की नजर मेघा पर पड़ी तो उन्होंने उसके पास आयी और कहा,”का बहु तुम्हारी मांग काहे सुनी है , आज सिन्दूर लगाना भूल गयी थी का ?”
“माफ़ करना माज़ी , हम अभी लगाकर आते है”,कहकर मेघा वापस अंदर चली गयी। अचानक एक सरकारी गाड़ी आकर घर के सामने रुकी , फौज की वर्दी में एक लड़का निचे उतरा और विक्रम के पिताजी को सूचना दी , पिताजी निचे बैठ गए , माँ ने सूना तो उनका कलेजा फट गया वह दौड़कर अंदर गयी उन्होंने देखा मेघा एक हाथ में सिंदूर की डिब्बी पक्के दूसरे हाथ से सिंदूर भरने जा ही रही थी की सास ने उसका हाथ थामकर उसे रोक लिया। मेघा को बड़ी हैरानी हुई उसने कहा,”ये आप क्या कर रही है माज़ी ? मुझे सिंदूर लगाने दीजिये”
“इसे लगाने की अब कोई जरूरत नहीं है बहू , हमाय विक्रम अब नाही रहा”,कहते हुए माँ फफक पड़ी।

मेघा के हाथ से सिंदूर की डिब्बी निचे जा गिरी और सिंदूर पुरे फर्श पर फ़ैल गया। अपनी सुनी मांग लिए वह दहलीज तक आयी उसकी आँखों में आंसू जैसे जम गए। अंदर ही अंदर उसका मासूम दिल चीख रहा था चिल्ला रहा था लेकिन वह खामोश थी। विक्रम ने एक बार उस से कहा था की – एक फौजी के शहीद होने पर उसकी पत्नी आंसू नहीं बहाती है बल्कि पुरे गर्व के साथ उसे अंतिम विदाई देती है” लेकिन मेघा में इतनी हिम्मत नहीं थी , किसने बनाया था नियम शायद कोई पत्थर दिल ही होगा जो एक औरत को आंसू ना बहाने दे। पुरे गांव में ये खबर आग की तरह फ़ैल गयी। सभी जमा होने लगे कुछ घंटो बाद ही विक्रम के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने लगे। माँ इन अंतिम क्षणों में रो पड़ी उन्हें सम्हालना मुश्किल हो रहा था , बहन भी सिसक रही थी और पिता भीड़ में बेबस सबसे आगे चल रहा था लेकिन मेघा के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे जिंदगी ने उसके साथ बहुत ही भद्दा मजाक किया था। जिस सावन को लेकर उसने सपने सजाये थे वह सावन अपने साथ इतने दुःख और दर्द लेकर आया था। मेघा की आँखे पत्थर हो चुकी थी उसकी आँख से कतरा आंसू नहीं बहा लेकिन मेघा भी विक्रम की पत्नी थी और उस से भी पहले वह एक औरत थी आखिर उसके सब्र का बाँध टूटा और आसमान से बारिश का पानी बरसने लगा , उसी के साथ बरसने लगी मेघा की निश्छल आँखे। वह समझ ही नहीं पा रही थी की आखिर उसके साथ ये क्या हुआ ?
दिन गुजरने लगे। धीरे धीरे सांत्वना देने वालो का आना जाना भी कम होने लगा। जिंदगी फिर पहले की तरह चलने लगी लेकिन मेघा आज भी सावन में ही अटकी थी। गणतंत्र दिवस पर एक शहीद की पत्नी होने पर मेघा को एक शॉल और सम्मान दिया गया उसके बाद से सरकार ने कभी पलटकर भी इस घर में नहीं देखा। विक्रम के बलिदान को सब वक्त के साथ भूलते चले गए। सास ससुर ने मेघा की आगे की जिंदगी के बारे में सोचते हुए उसे दूसरी शादी करके अपना घर बसाने को कहा लेकिन मेघा ने मना कर दिया वह सिर्फ शहीद विक्रम की पत्नी रहना चाहती थी। उसी घर में रहकर वह सास ससुर की सेवा करने लगी दिनभर वह खामोश रहती , अपना दुःख अपनी तकलीफ किसी से नहीं कहती थी ! वक्त गुजरता गया और हर साल सावन आने पर मेघा को दुखी कर जाता। शादी के बाद का वह सावन उसका पहला और आखरी सावन था जो उस से उसकी खुशिया , उसके सपने , उसका सुहाग और उसकी इच्छाएं ले गया और पीछे छोड़ गया एक मास का लोथड़ा जिसमे सांसे तो थी पर जीने की ख्वाहिश नहीं रही थी।

समाप्त

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संजना किरोड़ीवाल !

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