Sanjana Kirodiwal

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Haan Ye Mohabbat Hai – 19 ( A Love Story )

Haan Ye Mohabbat Hai – 19

Haan Ye Mohabbat Hai - Season 3
Haan Ye Mohabbat Hai – Season 3 by Sanjana Kirodiwal

कुर्सी पर बंधा सख्स कोई और नहीं बल्कि मीरा के पिता अमर प्रताप सिंह थे लेकिन अमर जी यहाँ कैसे आये इसकी जानकारी किसी को नहीं थी ? अमर जी कुर्सी से उतरकर नीचे आये और खाने की थाली के सामने जमीन पर आ बैठे। सामने बैठे लड़के ने थाली अमर जी की तरफ खिसका दी। अमर जी ने लड़के को एक नजर देखा और फिर खाने की थाली को देखने लगे। लड़का इधर उधर देखने लगा जब उसने देखा अमर जी खाना नहीं खा रहे है तो उसने कहा,”ए क्या हुआ रे तेरे को ?

खाना काइको नहीं खा रहा,,,,,,,,,,,,,,,,,देख अपन के पास इतना टाइम,,,,,,,,,,,,,,,,आह्ह्ह्ह”
कहते हुए लड़का एकदम से चिल्लाया। अमर जी ने एकदम से खाने की थाली में रखा खाना लड़के की तरफ उछाल दिया जिस से उसमे रखी सब्जी उसकी आँखों में जा गिरी और वह दर्द से चीख पड़ा। अमर जी ने बिना वक्त गवाए थाली को लड़के की कनपटी पर दे मारा और दर्द से बिलबिलाता लड़का वही गिर गया। अमर जी जल्दी से उठे और दरवाजे की तरफ जाने लगे लेकिन बाहर से आते लोगो की आवाज सुनकर वे सतर्क हो गए और कमरे में बनी खिड़की से बाहर कूद गए।

खिड़की थोड़ी ऊँची थी और खिड़की के बाहर कचरा , ईंट पत्थर थे जिस से अमर जी को कुछ खरोंचे भी आयी लेकिन वे वहा से भागने में कामयाब रहे।
“ए वो बुड्ढा कहा गया बे ? इसे क्या हुआ सम्हालो इसे ?”,कुछ लड़को के साथ अंदर आते हुए उनके लीडर ने कहा
“भाई वो उस खिड़की से भाग गया है।”,एक लड़के ने कहा
“तो खड़े खड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो पकड़ो उसे,,,,,,,,,,,,!”,लीडर ने कहा और उसकी बात सुनकर बाकि सब अमर जी को पकड़ने दौड़ पड़े।

लीडर ने जेब से अपना फोन निकाला और किसी का नंबर डॉयल कर फोन कान से लगाकर कहा,”हेलो ! मैडम वो आदमी मेरे आदमी को जख्मी करके यहाँ से भाग गया है।”
“क्या ? और तुम फोन करके ये सब मुझे बता रहे हो ,, जाकर पकड़ो उसे अगर वो नहीं मिला तो मैं तुम में से किसी को नहीं छोडूंगी,,,,,!!”,दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज उभरी और उसने बिना आगे कुछ सुने फोन काट दिया


लड़के ने झुंझलाकर फोन जेब में रखा और बड़बड़ाया,”साला ! अजीब मुसीबत है , अपन ने भी किस घडी में इसकी बात मान के ये काम हाथ में लिया,,,,,,,,,,,,,,,!!”
“आह्ह्ह्ह भाई,,,,!!”,जमीन पर गिरा लड़का दर्द से करहाया तो लीडर ने उसे सम्हाला और कमरे से बाहर ले गया।

हॉस्पिटल से बाहर आकर अखिलेश आकर गाड़ी में बैठा और अपना हाथ जोर से स्टेयरिंग पर मारकर कहा,”मैं जब भी मीरा के करीब आने की कोशिश करता हूँ ये बुढ़िया ना जाने बीच में कहा से आ जाती है। अक्षत से ज्यादा तो ये मेरे और मीरा के बीच दिवार बन गयी है। मीरा के करीब जाने के लिये मुझे सबसे पहले इस बुढ़िया को रास्ते से हटाना होगा।”


कहते हुए अखिलेश अपनी बगल में सीट पर पड़े सफ़ेद गुलाबो के गुच्छे को देखा , वे सफ़ेद फूल अब मुरझा चुके थे। अखिलेश ने उन्हें उठाया और अपने सामने कर हाथो से सहलाते हुए कहा,”ये सफ़ेद फूल मैं आपके लिये लाया था मीरा मैडम , आप भी इन सफ़ेद फूलो की तरह ही नाजुक है लेकिन मैं आपको इनकी तरह मुरझाने नहीं दूंगा।  
मैं आपका ख्याल रखूंगा मैडम उस अक्षत व्यास से भी ज्यादा ख्याल रखूंगा।”
पीछे खड़ी गाड़ी के हॉर्न से अखिलेश की तन्द्रा टूटी और उसने अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाया।

अखिलेश गाड़ी लेकर वहा से निकल गया और चाइल्ड होम चला आया। जब तक मीरा इस चाइल्ड होम में थी यहाँ के बच्चे खिले खिले रहते थे लेकिन अब सभी बच्चे अखिलेश के आते ही डरे डरे और सहमे से रहने लगे थे। मीरा के बाद अखिलेश ही इस चाइल्ड होम का मैनेजर था इसलिए स्टाफ में भी उसका रुतबा था और उसी के लिये फैसले चलते थे। स्टाफ के लोग भी अखिलेश से ज्यादा बात नहीं करते थे और चुपचाप अपना काम करते थे ना किसी में इतनी हिम्मत थी कि वह अखिलेश के खिलाफ मीरा से कुछ कह पाए।

धीरे धीरे ही सही पर अखिलेश चाइल्ड होम पर अपना कब्जा कर चुका था। चाइल्ड होम के बड़े बड़े फैसले अब वह मीरा से पूछे बिना ही लेने लगा था और यही बात बाकि स्टाफ को पसंद नहीं आ रही थी। बच्चो को जहा पहले अच्छा और बेहतर खाना मिलता था वही खाने की क्वालिटी भी गिरा दी और भी बहुत सी गड़बड़ चल रही थी लेकिन मीरा को कहा फुर्सत थी वह अपने बच्चो को आकर देखे या इस चाइल्ड होम को सम्हाले,,,,,,,,,वह बेचारी तो अपनी जिंदगी की उलझनों में उलझी थी।

गाड़ी चाइल्ड होम के अंदर आकर रुकी अखिलेश गाड़ी से उतरा और उन सफ़ेद मुरझाये फूलो को लेकर अपने केबिन की तरफ बढ़ गया। केबिन में आकर उसने उन फूलो को डस्टबिन में डाल दिया। जो फूलो को सुबह उसने मीरा को देने के लिये लिया था वही फूल मुरझाकर डस्टबिन में पड़े थे। अखिलेश घूमने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गया और अपना सर पीछे झुका लिया। उसने अपनी आँखे मूंद ली इस वक्त उसके दिमाग में बहुत से ख्याल चल रहे थे और ये ख्याल किसे नुकसान पहुँचाने वाले थे ये तो बस अखिलेश ही जानता था।  

“छवि ! उठो बेटा कब तक सोती रहोगी ? उठकर थोड़ा कुछ खा लो तुमने सुबह से कुछ नहीं खाया है।”,माधवी जी ने सोफे पर सोई छवि को उठाते हुए कहा  
छवि उठी और बोझिल आँखों से माधवी जी को देखते हुए कहा,”हम लोग ये शहर छोड़कर नहीं जायेंगे माँ”
“छवि तुम्हारे पापा के जाने के बाद मेरे जीने का सहारा सिर्फ तुम हो , तुम जैसा चाहोगी वैसा ही होगा।

तुम इस बच्चे को रखना चाहती हो तो तुम्हारी जिद के आगे मैं कुछ नहीं कहूँगी लेकिन इसके बाद ये समाज और इस समाज में रहने वाले लोग तुम्हे जीने नहीं देंगे”,माधवी ने उदास होकर कहा
“माँ ! तुम क्यों इस अपंग समाज के बारे में सोचती हो ? जब मेरे साथ ज्यादती हुई तब ये समाज कहा था ? जब मुझे भरी अदालत में सबके बीच बेइज्जत किया गया तब ये समाज कहा था ? जब इंसाफ के लिये मैं दर दर की ठोकरे खा रही थी तब ये समाज कहा था ?

इस समाज ने मुझे इंसाफ दिलाने के नाम पर सिर्फ मोर्चे निकाले है और मोमबत्तिया जलाई है माँ , अगर कल ये समाज मेरे साथ था तो आज क्यों नहीं ? आज क्यों ये समाज मुझे अपनाने से डरता है ? मैं इस समाज और इसकी छोटी सोच का समर्थन नहीं करती माँ , ना ही ऐसे समाज से इंसाफ की उम्मीद करती हूँ। अपने हक़ के लिये मुझे खुद ही लड़ना पडेगा और मैं लड़ूंगी माँ और उसमे ये समाज रोड़ा नहीं बन सकता,,,,,,,,,,,,,,एक सिर्फ समाज के डर से मैं इस नन्ही सी जान को इस दुनिया में आने से नहीं रोक सकती,,,,,,,,,,,,,,

माँ कोई मेरा साथ दे ना दे लेकिन अगर आप मेरे साथ है तो मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,,आप मेरे साथ है ना माँ ?”,कहते हुए छवि की आँखे भर आयी। उसकी आँखों में ठहरे आँसू किसी भी वक्त बह जाने को तैयार थे। माधवी ने छवि की बातें सुनी तो उन्हें मन ही मन शर्मिंदगी महसूस हुई कि ऐसे हालातों में छवि की ताकत बनने के बजाय वे उसे इन सब से भाग जाने को कह रही थी। उन्होंने आगे बढ़कर छवि को अपने सीने से लगाया और रोते हुए कहा,”मैं तुम्हारे साथ हूँ , तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है बेटा ,,

तुम्हे किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है न ही किसी को जवाब देने की जरुरत है। समाज के तानो और इल्जामो को तुम से पहले मुझसे होकर गुजरना पडेगा। किसी भी मुसीबत को तुम तक पहुँचने से पहले मुझसे टकराना होगा,,,,,,,,,,,,,,तुम्हारी माँ इतनी कमजोर नहीं है छवि कि वो तुम्हारी इस जंग में तुम्हारा साथ ना दे पाए,,,,,,,,,,,,,,तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है।”
छवि ने सूना तो उसने कसकर माधवी को गले लगा लिया और फूट फूट कर रोने लगी।

माधवी ने उसे रोने दिया और उसका सर सहलाने लगी। कुछ देर बाद छवि माधवी से दूर हटी और कहा,”मैं अक्षत व्यास से मिलना चाहती हूँ माँ , उनके साथ जो हुआ और हमने उनके साथ जो किया उसके लिये उन से माफ़ी मांगना चाहती हूँ।”
“इस वक्त तो कोर्ट बंद हो चुका है और सूना है बार काउन्सिल ने 6 महीने के लिये उसका लाइसेंस केंसल कर दिया है अब वो कोर्ट नहीं आता,,,,,,,,,,,,,!!”,माधवी ने उदासी भरे स्वर में कहा


“कोर्ट नहीं तो मैं उन से मिलने उनके घर जाउंगी,,,,,,,,,,,,,इस केस के लिये मेरा उनसे मिलना बहुत जरुरी है माँ,,,,,,,,,,,,,,,,,सिर्फ वही है जो मुझे इंसाफ दिला सकते है,,,,,,,,,,,,,!!”,छवि ने बेचैनी भरे स्वर में कहा
“ठीक है कल हम उस से मिलने चलेंगे , मुझे भी उस से माफ़ी मांगनी है। उन हालातो में उस पर हाथ उठाकर मैंने बहुत गलत किया”,माधवी ने कहा
“हम्म्म,,,,,,,,,,,माँ”,छवि ने एकदम से कहा
“हाँ,,,,,,,,,,,!!”,माधवी ने छवि की तरफ पलटकर कहा


“बहुत भूख लगी है , खाने को मिलेगा”,कहते हुए छवि की आँखों में ना जाने क्यों आँसू झिलमिलाने लगे।
माधवी जी ने साड़ी के पल्लू से अपनी गीली आँखे पोछी और कहा,”तुम , तुम हाथ मुंह धोकर आओ मैं तुम्हारे लिये खाना लेकर आती हूँ।”
छवि हाथ मुंह धोकर आयी तब तक माधवी जी उसके लिये प्लेट में खाना लेकर आ चुकी थी। छवि उनके पास आ बैठी और जैसे ही खाने की तरफ हाथ बढ़ाया माधवी जी ने कहा,”रुको मैं खिलाती हूँ”


माधवी जी ने छवि को एक दो निवाले खिलाये और फिर छवि भी अपने हाथ से उन्हें खाना खिलाने लगी। माधवी के सीने से जैसे कोई बोझ उतर गया हो। अब से छवि और माधवी ही एक दूसरे की ताकत थी।

शाम का समय था अपने घर की छत पर दिवार के सहारे खड़ा अक्षत खाली पड़े आसमान में चमकते चाँद को देख रहा था। उसकी आँखों में एक खालीपन पसरा था और चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। सब कुछ हार देने के बाद जंग के मैदान में अकेले खड़ा सिपाही जैसे दिखता है अक्षत भी इस वक्त वैसा ही दिख रहा था। कुछ अपने गुस्से और कुछ बुरी किस्मत के चलते अक्षत लगभग अपना सबकुछ खो चुका था। वह अपने परिवार से दूर हो चुका था ,

उसने अपनी वकालत खो दी , अपनी जान से प्यारी बेटी को खो दिया और मीरा,,,,,,,,,,,,,,,,जो कि उसकी जिंदगी थी उसने उसे भी जाने दिया। अक्षत समझ नहीं पा रहा था या समझना नहीं चाह रहा था ये तो वही जानता था लेकिन उसके लिये फैसले घर में किसी को पसंद नहीं आये। उसने अपने साथ साथ बाकि सबको भी एक ऐसे दर्द में डाल दिया जिस में से बाहर निकलना आसान नहीं था।


ठंडी हवा के झोंके अक्षत की गर्दन को छूकर गुजरे तो अक्षत अपने ख्यालो से बाहर आया और आसमान में देखते हुए मन ही मन कहने लगा,”महादेव ! क्या आपको भी यही लगता है कि मैंने सब ठीक करने की कोशिश नहीं की ? आपको जो बुरा करना था मेरे साथ करते , मुझे तकलीफ देते मैं उफ़ तक नहीं करता पर आपने तो मुझसे मेरे जीने की वजह ही छीन ली। क्यों महादेव ? क्यों हुआ ये सब आखिर इन सब में अमायरा की क्या गलती थी ?”


कहते हुए अक्षत की आँखों में आँसू भर आये और फिर वह काँपते होंठो से बुदबुदाने लगा,”सबको लगता है मैंने मीरा को इस घर से , अपनी जिंदगी से , अपने दिल से निकाल दिया है,,,,,,,,,,,,,,,,,पर जब वो गयी तब सिर्फ वो इस घर से नहीं गयी , वो अपने साथ मुझे भी ले गयी,,,,,,,,,,,,,,,उसका इस घर से जाना बहुत जरुरी था , अगर वो यहाँ रहती तो मेरा गुस्सा और मेरी बर्बादी नहीं देख पाती।

मैंने तुम्हे तो इस घर से जाने को कह दिया मीरा पर तुम्हे खुद से दूर करके मैं कैसे जी पाऊंगा ? काश,,,,,,,,,,,,,,,,काश तुम ये जान पाती मीरा मैंने अमायरा को बचाने की हर कोशिश की लेकिन मैं उसे नहीं बचा पाया , मैंने उसे खो दिया,,,,,,,,,,,,और देखो उसके बाद सब चला गया मेरे अपने , मेरा काम , मेरी वकालत और,,,,,,,,,,,,,,,और तुम भी”
कहते हुए अक्षत की आँख में भरे आँसू गालों पर लुढ़क आये।

Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19 Haan Ye Mohabbat Hai – 19

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Haan Ye Mohabbat Hai - Season 3
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