Sanjana Kirodiwal

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साक़ीनामा – 11

Sakinama – 11

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 11

राघव और मैं हमारे आने वाले कल की बातें करते हुए कुछ देर वही बैठे रहे। राघव का उपवास था और सुबह से उसने कुछ खाया नहीं था इसलिये हम वहा से निकल गए। मंदिर से निकलकर हम वापस अपने शहर की ओर बढ़ गए। राघव के पीछे बैठे हुए मैंने अपना हाथ अपने पैर पर रखा हुआ था राघव ने अपने हाथ से उठ हाथ को पकड़ा और आगे करके अपनी कमर से लगा लिया।

मेरा हाथ थामने का हक़ मैंने उसे कब दिया मैं खुद नहीं जानती पर उसका हाथ थामना मुझे बुरा नहीं लगा। वह मेरे हाथ को थामे रहा और मैंने अपना धीरे से अपना सर उसकी पीठ से लगा दिया। चाहती थी कि वो सफर कभी खत्म ना हो।
कुछ वक्त बाद हम उसी रेस्त्रो में पहुंचे जहा मैं और राघव पहली बार गए थे। हम दोनों उसी सोफे पर आ बैठे लेकिन इस बार दोनों एक ही सोफे पर बैठे थे।

आज फिर मैंने अपने लिए चाय और राघव के लिए कॉफी आर्डर की थी। आर्डर देने के बाद राघव हम दोनों की साथ में कुछ तस्वीरें लेने लगा क्योकि पिछली बार जब हम मिले थे तब हमने साथ में कोई तस्वीर नहीं ली थी।
राघव काफी खुश था। चाय कॉफी आयी , मैंने अपने चाय का कप दोनों हाथो में उठा लिया जैसा कि मैं हमेशा किया करती थी और बेखबर होकर चाय पीने लगी। राघव ने मेरी एक तस्वीर खींच ली।

जब मैंने चाय का कप थामे उसकी तरफ देखा तो उसने अपने फोन में दूसरी तस्वीर ले ली। वो तस्वीर काफी अच्छी आयी थी और आती भी क्यों नहीं ‘मेरी पहली मोहब्बत मेरे हाथो में थी और आख़री मेरी आँखों के सामने’
राघव ने अपना फोन साइड में रखा और अपनी कॉफी पीने लगा। मुझे याद आया मैंने उसे अपने साथ लाया टिफिन दिया जिसमे मम्मी ने उसके लिए कुछ फलाहार रखा था। राघव ने टिफिन लिया और खाने लगा। मैं बस प्यार से उसे देखते रही ना जाने ऐसा क्या था उस चेहरे में कि मैं हर बार उसमे खो जाया करती थी। उसका सांवला रंग मुझे हर बार आकर्षक लगता था।


कॉफी खत्म कर राघव वही बैठा कुछ देर मुझसे बात करता रहा। थोड़ी देर बाद ही वहा भीड़ बढ़ने लगी और काफी शोर शराबा हो रहा था। राघव ने मुझे वहा से चलने को कहा। उस रेस्त्रो से निकलकर हम कुछ ही दूर बने एक दूसरे रेस्त्रो में चले आये यहाँ भीड़ बिलकुल नहीं थी बस एक दो लोग थे। राघव और मैं अंदर आ बैठे। दोनों का उपवास था इसलिए एक बार फिर चाय और कॉफी आर्डर गयी बस राघव के लिए कोल्ड कॉफी थी।
राघव ने एक बार फिर मेरा हाथ थाम लिया।

वह बड़े प्यार से मुझे देखे जा रहा था , उसकी आँखों में एक मासूमियत थी और होंठो पर मुस्कुराहट,,,,,,,,,,,,,,उसे ऐसे देखकर मेरा मन एकदम से पिघल गया और मैं भावुक हो गयी। मैंने उसके हाथ को थोड़ा कसकर थाम लिया और अपना सर रख दिया। राघव समझ नहीं पाया ये एकदम से मुझे क्या हुआ ? वह कुछ कह रहा था लेकिन मुझे उस वक्त कुछ सुनाई नहीं दिया। मेरी आँखों से आँसू बहने लगे और गले में चुभन का अहसास होने लगा। भावुक होने की वजह थी अतीत में किसी के द्वारा कहे गए शब्द एकदम से मेरे जहन में आ गए “तुम्हे बेहतर इंसान नहीं मिलेगा”


आज राघव के साथ और अहसास ने इस बात को गलत साबित कर दिया। राघव के रूप में एक बेहतर इंसान मेरी जिंदगी में था जिसके साथ मैं खुश थी और अपनी आने वाली जिंदगी के सपने देख रही थी।
मुझे रोते देखकर राघव ने एकदम से अपना कन्धा मेरी ओर बढ़ा दिया और मुझे साइड से गले लगाते हुए कहा,”आज के बाद मैं आपकी आँखों में ये आँसू देखना नहीं चाहता”
मैंने खुद को नार्मल किया और राघव से दूर हो गयी तो उसने पूछ लिया,”क्या हुआ , आप ऐसे रोइ क्यों ?”


“सही वक्त आने पर मैं खुद बता दूंगी”,मैंने राघव के हाथ पर अपना हाथ रखकर कहा
वहा बैठे हुए हमने काफी वक्त साथ बिताया। दोपहर हो चुकी थी और खाने का वक्त भी हो चुका था इसलिए हम दोनों वहा से निकल गए।
दोपहर का खाना हमने साथ ही खाया और इस बार जिया भी हमारे साथ थी। खाना खाते और बातें करते 4 बज चुके थे। 6 बजे राघव की वापसी की बस थी और उसे वापस जाना था। जिया खाना खाकर घर चली गयी और मै राघव को बस स्टेण्ड छोड़ने साथ चली आयी।

बस स्टेण्ड से कुछ पहले एक अच्छा रेस्त्रो था। राघव के जाने में अभी 2 घंटे थे इसलिए उसने जाने से पहले कॉफी पीने की इच्छा जाहिर की। हम दोनों रेस्रो में चले आये। ये रेस्त्रो काफी अच्छा था और राघव को पसंद भी आया। बाहर फॅमिली टेबल के साथ वह कपल्स के लिए छोटे केबिन भी बने थे। राघव और मैं केबिन में आ बैठे। वहा बस दो ही लोगो के बैठने की जगह थी और हम दोनों आमने सामने बैठ गए। लड़का आर्डर लेने आया मैंने यहाँ भी राघव के लिए कॉफी और अपने लिए चाय ऑर्डर की।

लड़का चला गया। वह जगह काफी शांत थी और वहा का माहौल भी काफी अच्छा था। दिनभर घूमते घूमते राघव काफी थक चुका था और थकान उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। मुझे नहीं लगता बीते सालों में आज से पहले उसने कभी इतनी बाइक चलाई होगी। मुझे ना जाने क्या सूझी मैंने उसके हाथ को अपने दोनों हाथो में लिया और मसाज करने लगी जिस से उसे थोड़ा आराम मिले। मुझे अपनी परवाह करते देखकर उसे अच्छा लग रहा था उसने मेरा हाथ थाम लिया और आँखों ही आँखों में जताया कि वह ठीक है।

राघव के साथ वो 2 घंटे बहुत जल्दी निकल गए। उसके जाने का वक्त हो चुका था उसने अपने साथ लाया कुछ सामान मुझे दिया और बैग में रखने को कहा।
हम दोनों बस स्टेण्ड चले आये और यहाँ हम दोनों ही सप्राइज थे। मम्मी मेरे कजिन के साथ वहा पहले से मौजूद थी। राघव से मिलने का मौका भला वह कैसे छोड़ सकती थी ? राघव ने उनके पैर छुए और फिर वही खड़े होकर उनसे बात करने लगा।

मम्मी राघव को अपना होने वाला दामाद नहीं बल्कि बेटा समझती थी। बस के निकलने का टाइम हो गया तो मम्मी ने मुझसे राघव को बस तक छोड़कर आने को कहा। मैं राघव के साथ चल पड़ी। बस के पास पहुंचकर राघव ने चलते चलते मुझे एकदम से साइड हग किया और कहा,”पहुंचकर फोन करता हूँ”
उसकी इस हरकत पर मैं थोड़ा हैरान थी क्योकि वो एक पब्लिक प्लेस था और सब हमे ही देख रहे थे। खैर जैसे ही राघव बस में गया मैं तुरंत वहा से निकल गयी क्योकि मैं उसे जाते हुए नहीं देख सकती थी।

मैं बहुत इमोशनल हूँ और ऐसे वक्त में मुझसे अपने आँसू कंट्रोल करना मुश्किल है।
राघव जा चुका था लेकिन मैं खुश थी कुछ दिन बाद ही वह वापस आने वाला था हमेशा के लिए मुझे अपने साथ ले जाने के लिए। मैं मम्मी के साथ घर चली आयी। राघव गुजरात से घरवालों के लिए मिठाई लेकर आया था और मेरे लिए एक तोहफा था जिसमे एक लाल रंग का बड़ा सा कप था और साथ में दो जोड़ी गोल्डन झुमके,,,,,,,,,,,,,,,,मेरे होंठो पर मुस्कुराहट तैर गयी।


मरियम से बात कर उसे दिन का पूरा हाल सुनाकर मैं आज जल्दी सोने चली गयी लेकिन नींद मेरी आँखों से कोसो दूर थी। आँखों के सामने बार बार राघव के साथ बिताये पल आ रहे थे और सबसे ज्यादा वो पल जब मुझे रोते देखकर उसने अपना कन्धा पेश किया था। मेरे जहन में अपनी ही कही बात कोंध गयी “किसी से प्यार होने के लिए एक पल ही काफी होता है” हाँ ये वही पल था जब मुझे राघव से मोहब्बत हो चुकी थी।

मन एक अलग ही अहसास से भरा जा रहा था मैं राघव को ये बताना चाहती थी वो भी शादी से पहले,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,उन पलों के बारे में सोचते हुए मैं नींद के आगोश में चली गयी।
देखते ही देखते ये आखरी हफ्ता भी बीत गया और अगस्त शुरू हो गया। शादी में अब बस 20 दिन बचे थे और मुझे अपने लिए कपडे , गहने और जरुरी सामान खरीदना था। ऑफिस मैं छोड़ चुकी थी क्योकि बचे ये 20 दिन मुझे शादी की तैयारी करनी थी और घरवालों के साथ वक्त बिताना था।

राघव से बातें जारी थी वह अभी भी जिद कर रहा था कि सिम्पल शादी करते है।
एक शाम मार्किट में कुछ सामान खरीदते हुए मेरी नजर एक जेंट्स रिंग पर चली गयी। चौकोर डिजाइन के ब्लैक स्टोन से बनी प्लेटिनम रिंग जिसके चारो तरफ बारीक़ डायमंड्स थे। वो रिंग मुझे बहुत पसंद आयी और मैंने उसे खरीद लिया जो कि ब्लैक राघव का फेवरेट था। मुझे वो रिंग खरीदते देखकर जिया ने कहा,”तुमने ये लड़को वाली रिंग क्यों ली है ?”


“मैं शादी से पहले राघव को प्रपोज करने वाली हूँ”,मैंने आँखों में ख़ुशी भरकर कहा
“सच में ? वाओ तुम्हे उस से प्यार हो गया”,जिया ने खुश होकर कहा
“हाँ ऐसा ही कुछ समझ लो , ये रिंग देकर मैं उसे अपनी सारी फीलिंग्स कहना चाहती हूँ”,मैंने राघव के बारे में सोचते हुए कहा
“वो तो ठीक है लेकिन तुमने राघव के लिए गिफ्ट लिया ?”,जिया ने साथ चलते हुए पूछा
“कौनसा गिफ्ट ?”,मैंने पूछा


“वही जो तुम उसे शादी के बाद देने वाली हो , मुंह दिखाई में”,वह शरारत से मुस्कुराई
“मुंह दिखाई लड़कियों की होती है , लड़को की नहीं”,मैंने उसके सर पर चपत लगाते हुए कहा
“आजकल लड़किया भी देती है। तुम्हारी मर्जी अगर तुम उसे गिफ्ट दोगी तो उसे अच्छा ही लगेगा”,जिया ने कहा
“ठीक है चलो”,कहकर मैं उसे शॉप पर ले गयी। मेरा बजट थोड़ा कम था इसलिए मैं सिल्वर में ही कुछ दिखाने को कहा।

काफी कुछ देखने के बाद आखिर में मुझे राघव के लिए एक चाँदी का कड़ा पसंद आया जिस पर “शिव” लिखा था और वो महादेव से जुड़ा हुआ था। अब महादेव तो मेरे पहले से पसंदीदा थे उस पर छोटे महादेव “राघव” के लिए भला इस से अच्छा तोहफा और क्या होता ? मैंने उसकी तस्वीर राघव को भेजी उसे भी वो बहुत पसंद आया और उसने वही लेने को कहा। मैंने उसे पैक करवा लिया और जिया के साथ घर चली आयी।


शाम में राघव से बात करते हुए मैं छत पर चली आयी। बातो बातो में राघव ने कहा,”अच्छा ये बताओ आप कॉफी कब पिओगे ?”
“क्यों पीनी है ?”,मैंने सामने से सवाल किया  
“बस मैं चाहता हूँ कि आप एक बार कॉफी पिओ , मेरे लिए”,राघव ने एकदम से कहा
“आह्ह्ह्ह ठीक है एक काम करते है शादी वाले दिन मैं कॉफी पिऊँगी और आप चाय पीना , ठीक है ?”,मैंने कहा
“ठीक है शादी के बाद सीधा चाय पीने ही चलेंगे”,राघव ने कहा


“पक्का ना ?”,मैंने कहा क्योकि राघव चाय पी ले ऐसा मुझे यकीन नहीं था
“हाँ प्रॉमिस”,राघव ने कहा
“अच्छा आप यहाँ कब तक आ रहे है ?”,मैंने सवाल किया
“मम्मी पापा तो वहा आ चुके है मैं 15 को आऊंगा”,राघव ने कहा
“आप 16 को मुझसे मिलेंगे ?”,मैंने धीरे से पूछा


“16 को क्यों ? कुछ है क्या ?”,राघव ने पूछा
“हाँ कुछ खास है आपके लिए , आप आएंगे ना ? ज्यादा टाइम नहीं चाहिए बस 2 घंटे के लिए प्लीज”,मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा
“हम्म्म ठीक है मैं कोशिश करूँगा”,राघव ने कहा
कुछ देर उस से बात करने के बाद मैं नीचे चली आयी। राघव के राजस्थान आने में अभी एक हफ्ता बचा था और वह अभी से थोड़ा बिजी हो गया।

शायद शादी की तैयारियो में व्यस्त होगा सोचकर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। बात होती तो बहुत कम या फिर ठीक से नहीं हो पाती। ये एक हफ्ता ऐसे ही गुजर गया और वो दिन भी आ गया जब राघव को राजस्थान आना था। राजस्थान आने के बाद तो वह पहले से भी ज्यादा बिजी हो गया , उसे 16 अगस्त के बारे में भी कुछ याद नहीं था ना उसने पूछा और ना वो आया।


शाम के समय मैं उस रिंग के डिब्बे को हाथ में लिए सोच में डूबी थी तभी जिया ने आकर कहा,”क्या हुआ तू तो आज उसे प्रपोज करने वाली थी ना ?”
“पता नहीं यार कुछ समझ नहीं आ रहा,,,,,,,,,,,,,,,,बिना राघव की फीलिंग्स जाने मैं उसे प्रपोज कैसे कर दू ? इन दिनों उसमे एक बदलाव सा महसूस किया मैंने,,,,,,,,,,,जब तक मैं उसकी फीलिंग्स ना जान लू मैं उसे ये सब के बारे में नहीं बताउंगी”,मैंने उदास होकर कहा


“ऐसा कुछ भी नहीं है 4 दिन बाद तुम दोनों की शादी है , वो बिजी होगा इसलिए तू ज्यादा मत सोच और खुश रह”,जिया ने कहा तो मुझे थोड़ी तसल्ली मिली। मैंने उस रिंग को वापस अलमीरा में रख दिया।
अगले दिन राघव से बात हुयी तो मन थोड़ा हल्का हो गया लेकिन उसे प्रपोज करने का ख्याल मैंने कुछ वक्त के लिए दिल से निकाल दिया। देखते ही देखते दिन गुजर गए और वो सुबह भी आ गयी जिस दिन मुझे हमेशा हमेशा के लिए राघव का हो जाना था।


सिंपल मैरिज थी इसलिए ज्यादा ताम-झाम ना करके रिंग सेरेमनी और शादी दिन में ही रखी गयी। राघव , उसके घरवाले और रिश्तेदार गेस्ट हॉउस पहुँच चुके थे। मैं पार्लर में थी और तैयार हो रही थी। आज मुझे रोजाना से ज्यादा सुंदर दिखना था। कुछ देर बाद जिया राघव के बेस्ट फ्रेंड विवेक के साथ वहा आ पहुंची। हम लोग विवेक की गाड़ी से गेस्ट हॉउस पहुंचे। जिया मुझे लेकर अंदर चली आयी। राघव अपने घरवालों के साथ 1st फ्लोर पर था मैं उसे देख भी नहीं पायी लेकिन मेरी बहने और भाभियाँ कह रही थी कि राघव बहुत अच्छा लग रहा है।


कुछ देर बाद मुझे हॉल में आने को कहा गया। जिया मुझे लेकर वहा चली आयी। राघव अपने कुछ रिश्तेदारो के साथ वही खड़ा था। मैंने एक नजर उसे देखा और अपनी नजरे झुका ली। सभी मेहमान हॉल में पड़ी कुर्सियों पर बैठे थे। मैं राघव के बगल में आकर खड़ी हो गयी। हमे स्टेज की तरफ चलने को कहा गया तो राघव ने मेरा हाथ थाम लिया।
जैसे ही उसने सबके सामने मेरा हाथ थामा मेरी धड़कने फिर सामान्य से तेज हो गयी। मेरा हाथ थामे वह आगे बढ़ गया। सबकी नजरे हम दोनों पर थी और मेरा मन अजीब बेचैनी से भर उठा।

वहा मौजूद भीड़ देखकर अतीत और उस से जुडी बातें एकदम से मेरी आँखों के सामने घूमने लगी। लोगो के ताने , जली कटी बातें सब याद आने लगी। मेरे गले में चुभन का अहसास होने लगा और आँखे नम हो गयी। चलते चलते मैंने अपने बगल में मेरा हाथ थामे चलते राघव का मुस्कुराता चेहरा देखा तो एक हिम्मत मिली और दिल से आवाज आयी कि अब मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है , मेरा हमसफ़र मेरे साथ खड़ा है।
एक दूसरे का हाथ थामे हम दोनों स्टेज पर चले आये जहा मेरे और राघव के कुछ घरवाले भी मौजूद थे।

मेरी आँखे अब भी नम थी और जैसे ही मैंने सामने बैठे अपने रिश्तेदारों , पड़ोसियों और परिवार वालों को देखा तो आँखों में ठहरे आँसू एकदम से बह गए। मैं एकदम से पलट गयी और मुंह फेर लिया। जिया ने देखा तो तुरंत मेरे पास चली आयी और मुझे चुप कराने लगी। मेरे सामने मेरा छोटा भाई खड़ा था , अब तक मैं हमेशा उसे डांटते फटकारते आयी थी लेकिन आज उसने मेरी आँखों में आँसू देखे तो अपने जेब से रुमाल निकालकर मेरी तरफ बढ़ाते हुए ना में गर्दन हिला दी।

उस पल मैं एकदम से भावुक हो चुकी थी और खुद को सम्हालना थोड़ा मुश्किल हो रहा था। हैरानी बस इस बात की थी कि राघव मेरे साथ ही खड़ा था लेकिन मेरी आँखों में आँसू देखकर उसने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप एक नजर मुझे देखा और फिर सामने देखने लगा। थोड़ा अजीब लगा लेकिन उस वक्त मैंने कुछ नहीं कहा ना कुछ पूछा बस खुद को नार्मल किया।
कुछ देर बाद जिया रिंग की प्लेट लेकर आयी। मैंने और राघव ने एक दूसरे को रिंग पहनाई।

सबने खूब हूटिंग की और फूलो की बारिश कर दी। रिंग पहनाने के बाद ही वरमाला पहनाई गयी। पंडित जी आगे की रस्म के लिए स्टेज पर चले आये उन्होंने बैठने को कहा तो जिया कही से दो गुलाब ले आयी और राघव को देकर कहा,”जीजू घुटनो पर बैठकर दीदी को प्रपोज करना होगा”
राघव ने ऐसा नहीं किया बल्कि वह गुलाब मेरी तरफ बढ़ा दिया मै भी नहीं चाहती थी कि मेरी मोहब्बत के लिए उसे मेरे सामने घुटने टेकने पड़े।

पंडित जी ने दोनों को बैठने को कहा। चेयर पर टूटे फूल पड़े थे मेरी साइड के फूल जिया ने हटा दिए लेकिन राघव के साइड से किसी ने नहीं हटाए तो मैंने आगे बढ़कर उन्हें अपने हाथ से हटा दिया।  राघव की नजर मुझ पर चली गयी और शायद वहा मौजूद लोगो की भी,,,,,,,,,,,,,,,!!”
पंडित जी ने कुछ रस्म की , तिलक किया और शगुन दिलवाया। दोनों परिवार बहुत खुश थे और इस बीच मैंने राघव को एक बार भी मुस्कुराते हुए नहीं देखा।

फेरो का समय दोपहर का था इसलिए स्टेज से सीधा मंडप में चले आये। एक एक करके शादी की सभी रस्मे होने लगी। जब राघव के हाथो मेरी माँग में सिंदूर भरा गया तब अहसास हुआ कि वो पल एक लड़की की जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल क्यों होता है ? उसके हाथो पहनाया गया मंगलसूत्र इस बात का गवाह था कि अब मैं उसकी अर्धांगिनी थी। मेरा हाथ थामे जब उसने अग्नि के फेरे लिए तब ये विश्वास हो गया कि अब वो ही मेरा खुदा है मेरा रहबर है,,,,,,,,,,,,,,जिसके साथ मुझे अपनी जिंदगी बितानी है।


शादी सम्पन्न हुई। सब मेहमानो ने खाना खाया और फिर मेरे और राघव के साथ तस्वीरें निकलवाने लगे। वो शादी एक बहुत सिंपल शादी थी इसलिए विदाई का मुहूर्त भी शाम 5 बजे का था। विदाई के समय मैं एक बार फिर भावुक हो चुकी थी और इस बार मेरे साथ साथ जिया और मम्मी भी। छोटे भाई ने मुझे गाड़ी में राघव के बगल में बैठाया और विदा कर दिया।
गाड़ी गेस्ट हॉउस से बाहर निकल गयी मैंने मुड़कर देखा मैं अपना परिवार , अपना शहर सब छोड़कर जा रही थी एक नयी दुनिया में,,,,,,,,,,,,,!!

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संजना किरोड़ीवाल

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