साक़ीनामा Poetry
Sakinama Poetry
heart a brokenbroken heart a
Sakinama Poetry
तुम से मिलना मेरे लिए इस संसार की सबसे बड़ी त्रासदी रही
तुम से मिलने के बाद मैंने जाना
क्यों टुटा हुआ मन फिर से जुड़ने की कोशिश करने लगता है
क्यों नींद से भरी आँखे खुली आँखों से ख्वाब देखने लगती है
क्यों दिल की धड़कने चलती किसी धौकनी सी
और क्यों धीमी पड़ जाती है सांसे , महज एक तुम्हारे चले जाने के ख्याल से
तुमसे मिलने के बाद मैंने जाना
हमारी जात से लेकर हमारी उम्र तक फ़ासला रहा
और साथ ही रही हमारे शहरो के बीच मीलों की दुरी
जिसे किसी बस-रेलगाड़ी से भी मापा नहीं जा सकता ,
मापा जा सकता है तो बस हर शाम , खाली मकान की खिड़की पर बैठे
उस शख़्स के इंतजार को जिसका कोई अंत नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,,कोई सीमा नहीं है
तुमसे प्यार करते हुए मैंने जाना कि
तुम मेरे लिए इस संसार के सबसे सुंदर पुरुष रहे
तब भी जब भट्टी में तपता तुम्हारा जिस्म झूलसने लगा था
तब भी जब पसीने से तर-बतर कपड़ो से आती थी मेहनत की महक
तब भी जब मुझसे कुछ पूछते हुए सहसा ही तुम्हारा मुस्कुरा कर पलकें झुका लेना
तब भी जब मेरे छोड़ जाने की बात पर तुम्हारा आँखे नम करना
तुम मेरे लिए इस संसार के सबसे सुंदर पुरुष रहे
तुम्हारे बारे में सोचते हुए मैंने पाया कि
मैं लिख सकती हूँ कविताये और लिख सकती हूँ उन कविताओं में
तुमसे ना मिल पाने की तकलीफ
वो कविताये जिनमे अक्सर तुम्हारा जिक्र होता है और मुझे एक बार
फिर होने लगती है तुम से मोहब्बत
ये जानते हुए भी कि ये कविताये काल्पनिक है
कविताये लिखते हुए मैंने जाना कि तुम्हे भूल जाना
कविताये लिखने से भी ज्यादा मुश्किल है
तुम अब भी उलझन में हो कि
मैंने तुमसे मिलने को संसार की सबसे बड़ी त्रासदी क्यों कहा ?
तुम्हारा मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं था लेकिन बिछड़ जाना
मेरे लिए इस संसार की सबसे बड़ी त्रासदी ही रहा !!
तुम पूछते हो न कौन है ? कैसा है वो
बस यू समझ लो मेरी कहानियों के किरदारों जैसा है वो
कॉम्प्लिकेटेड है थोड़ा , कभी कभी मेरी बात नहीं समझता
कभी समझ लेता है मेरी ख़ामोशी , कभी जज्बात नहीं समझता
जब हँसता है तो मुझे दुनिया का हर संगीत फीका लगता है
मैं उस से ये बात भी कहू तो हंस देगा , कैसा अजीब लड़का है मेरी बात नहीं समझता
मैं सीधी साधी “मीरा” ना सही , पर अकड़ू “अक्षत” जैसा है वो
तुम पूछते हो न कौन है ? कैसा है
बस यू समझ लो मेरी कहानियों के किरदारों जैसा है वो
रंग सांवला है उसका लेकिन वो कॉफी पसंद करता है
उसकी पसंद थोड़ी अलग है इस बात पर घमंड करता है
किसी की बड़ी बड़ी बातें ना पिघला पायी हमको
पर उसके एक छोटे से “हाँजी” पर पिघलने का दिल करता है
गलती से छू जाये गर वो तो “मुन्ना भैया” के जैसे सॉरी कहेगा ,
तहजीब में थोड़ा सा “शिवम्” जैसा है वो
तुम पूछते हो न कौन है ? कैसा है वो
बस यू समझ लो मेरी कहानियों के किरदारों जैसा है वो
जब भी मिलेगा नए नए रंग के शर्ट पहन कर मिलेगा
किसी की ऊँची आवाज ना सुनी पर मेरी बदतमीजियां भी सहेगा
खाने का शौकीन है बड़ा , और नींद से भी उसे बड़ा प्यार हैं
कभी डांट भी दो तो बस मुस्कुरा देगा , आहहह उस से तो झगड़ना भी बेकार है
अच्छा करने भी जाये तो होगा गलत , किस्मत में कुछ कुछ “गुड्डू” जैसा है वो
तुम पूछते हो न कौन है ? कैसा है वो
बस यू समझ लो मेरी कहानियों के किरदारों जैसा है वो
मैं जो हूँ जैसी हूँ , मुझे वैसा अपनाया गया है
मैं सादगी में ज्यादा अच्छी लगती हूँ ये बताया गया है
मेरे अतीत और गुजरे हुए कल से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता
उसके इसी अंदाज ने मेरे अंदर फिर से इश्क़ जगाया गया है
मैं असल जिंदगी में नैना जैसी रही , मेरी कल्पना के “पडोसी” जैसा है वो
तुम पूछते हो न कौन है ? कैसा है वो
बस यू समझ लो मेरी कहानियों के किरदारों जैसा है वो
तुम तब भी मुझसे प्यार करना,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
जब मेरे चेहरे पर मुंहासों के निशान हो
जब धुप में पड़ने लगे मेरा रंग सांवला
जब अपना बढ़ता वजन छुपाने के लिए
मैं पहनने लगू ढीले-ढाले कपडे
और आँखों पर लगे चश्मे से दिखने लगू उबाऊ
तुम तब भी मुझसे प्यार करना,,,,,,,,,,,,,,,!!
जब तुम मिलने के लिए कहो और मैं बार बार इंकार करू
मुझसे 10 मिनिट मिलने के लिए घंटो इंतजार करना पड़े
जब तुम बोलते रहो और मैं बस ख़ामोशी से तुम्हे तकते रहू
जब तुम मेरा हाथ थामने के लिए अपना हाथ बढ़ाओ
और मैं उसे पीछे खींच लू
जब बिछड़ते वक्त मैं तुम्हे पलटकर ना देखू
तुम तब भी मुझसे प्यार करना
जब मैं तुम्हारे व्यस्त रहने को लेकर तुम से बहस करू
जब मैं तुम्हे बताऊ कि कभी कभी
तुम अजनबियों सा बर्ताव करते हो
जब गुस्से में मैं दू तुम्हे बुरे नामो की उपाधिया
और दिल दुखाने वाली बात कहू
जब बातें करते करते एकदम से ख़ामोश हो जाऊ
तुम तब भी मुझसे प्यार करना
जब सजे-धजे लोगो की भीड़ में मैं सामान्य दिखू
जब फर्राटेदार अंग्रेजी के बीच मैं हिंदी भाषा इस्तेमाल करू
जब शोर शराबा छोड़कर मैं एकांत चुनू तुम्हारे साथ
जब तुम्हे देने के लिए मेरे पास कोई महंगा तोहफा न हो
तब एक गुलाब देकर तुम्हारी कोमलता का परिचय दू
तुम तब भी मुझसे प्यार करना
जब दाल में नमक कम हो जाये और रोटिया गोल ना बने
जब किसी रोज खाने के साथ मेरा बर्ताव भी बेस्वाद भी लगे
तुम्हारे साथ सब्जिया और घर का सामान खरीदते हुए जब
लगाने लगू मैं 2 रूपये का हिसाब
जब तुम्हे अजीब लगे मेरा सब्जी वाले से फ्री धनिया मांगना
तुम तब भी मुझसे प्यार करना
जब थकने लगू मैं घर के कामों के साथ , समाज के तानों से
जब देर हो हमारे पहले बच्चे के जन्म में
जब खीजने लगू , चिढ़ने लगू मैं शुरूआती महीनों में
जब हमारा पहला बच्चा एक “बेटी” हो
और उसे थामते हुए तुम्हारी आँखो में गर्व और प्रेम के भाव हो
तुम तब भी मुझसे प्यार करना
जब पकने लगे बाल और झाँकने लगे उन में सफेदी
जब कसे हुए हाथो की ढीली पड़ने लगे चमड़ी
जब कमजोर होने लगे मेरी आँखे और लगा ना पाए तुम्हारे शर्ट का टूटा बटन
जब उखड़ने लगे मेरी सांसे कुछ कदम साथ चलते हुए
जब बना ना पाए मेरे हाथ तुम्हारे लिए स्वादिष्ट खाना
जब रखकर भूल जाऊ मैं कही तुम्हारी नजर का चश्मा
और तुम झल्लाते हुए उसे पुरे घर में ढूंढो
तुम तब भी मुझसे प्यार करना
जब तुम्हारे पास इसकी कोई वजह ना हो
क्योकि मुझे लगता है मेरे अंदर समाये खालीपन को
तुम्हारा मुझसे प्यार करना एक वक्त के बाद भर देगा।
मैंने कहा ना मुझे लगता है
तुम्हे ऐसा क्यों लगता है की अपना प्यार जाहिर करने के लिए ये एक दिन काफी होता है ?
जबकि मैं साल के 365 दिन अपना प्यार जाहिर कर सकती हूँ
कभी सुबहा तुम्हे जल्दी जगाकर तो कभी तुम्हे देर तक सोने देकर
कभी तुमसे अपने लिए चाय बनवाकर तो कभी तुम्हारे लिए अपने हाथो से कॉफी बनाकर
कभी सोशल मिडिया पर लिखी तुम्हारी कविताओं को LIKE करके तो
कभी उन कविताओं को तुम्हारे सामने गुनगुनाकर
कभी गुस्सा आने से तुम पर चिल्लाकर तो कभी प्यार से तुम्हे सॉरी कहकर
कभी तुम से रूठकर तो कभी तुम्हे मनाकर
कभी तुम्हे बिना बताये तुम्हारे पर्स से पैसे लेकर तो
कभी तुम्हारी तंगहाली में अपना ATM तुम्हे देकर
मैंने कहा ना मैं साल के 365 दिन अपना प्यार जाहिर कर सकती हूँ
कभी प्रेमिका बन तुम्हारे कांधे पर सर टीकाकर तो
कभी दोस्त की तरहा तुम्हारे सामने आँसू बहाकर
कभी माँ जैसी दिखूंगी सलाह देते हुए , तो कभी गलतियों पर आँखे दिखाकर
कभी तुम्हारे सामने दुनिया जहाँ की बातें करके तो कभी ख़ामोशी से तुम्हे तक कर
कभी तुम्हारी पसंद का खाना बनाकर तो कभी बाहर खाने की जिद कर
कभी बेहद तुम्हे परेशान करके तो कभी तुम्हारी हर बात मानकर
कभी तुम्हारी छोटी छोटी bato को याद रखकर तो कभी तुम्हारा बर्थडे भूल कर
मेरा यकीन करो मैं साल के 365 दिन अपना प्यार जाहिर कर सकती हूँ
क्या अब भी तुम्हे लगता है की अपना प्यार जाहिर करने के लिए ये एक दिन काफी होता है ?
तुमसे पहली मुलाकात में मैं शायद तुम्हे ऐरा-गेरा लगा !
तू वो शख्स है जो मेरे बाद , मुझे मेरा लगा !!
चाँद मारता रहा ताने रातों को अँधेरे के लिए
तेरे साथ मेरा हर अँधेरा , मुझे सवेरा लगा
तू वो शख्स है जो मेरे बाद , मुझे मेरा लगा !!
कल तक शिकायत थी की नींद नहीं आती रात-भर
आज आँखों में मेरी तेरे ख्वाबों का डेरा लगा
तू वो शख्स है जो मेरे बाद , मुझे मेरा लगा !!
जिसे चाह थी उसने जी-भरके देखा महफ़िल में तुझे
एक मेरी ही नजरो पर ना जाने क्यों पहरा लगा ?
तू वो शख्स है जो मेरे बाद , मुझे मेरा लगा !!
दोस्त , दुश्मन , रिश्तेदार , तलबगार , कई थे पास मेरे
पर तुमसे रिश्ता इस बार थोड़ा गहरा लगा
तू वो शख्स है जो मेरे बाद , मुझे मेरा लगा !!
मेरा उसूल था की मैंने कभी मयखानों का रुख ना किया
मैं घोल के पी गया वो जाम जिस पर हाथ तेरा लगा
तू वो शख्स है जो मेरे बाद , मुझे मेरा लगा !!
मैं घूमता था आवारगी की तोहमतें लेकर
मैं घूमता था आवारगी की तोहमतें लेकर
तेरे बाद ना कही और दिल मेरा लगा
तू वो शख्स है जो मेरे बाद , मुझे मेरा लगा !!
इश्क़ किया है तुमसे , कोई पाप थोड़ी हैं
माना के नूर है चेहरे पर तेरे , पर आफताब थोड़ी है
इश्क़ किया है तुमसे , कोई पाप थोड़ी हैं
की कर लो यकीन मेरे इन चंद अल्फाज़ो पर
तलबगार है आपके कोई आस्तीन के सांप थोड़ी है
इश्क़ किया है तुमसे , कोई पाप थोड़ी हैं
बात जब जिस्म पर आई तो मोहब्बत मुकर गयी
आवारा रहा हूं मैं भी बहुत , पर इरादे नापाक थोड़ी है
इश्क़ किया है तुमसे , कोई पाप थोड़ी हैं
की जिनकी अफवाहों को तुम सच मान बैठी हो
अजी ! रिश्तेदार है मेरे कोई बाप थोड़ी है
इश्क़ किया है तुमसे , कोई पाप थोड़ी हैं
ये इश्क़ वो दरिया है जिसमे जो आया वो डूब गया
हर कोई जाए इस के पार ये हम ओर आप थोड़ी है
के इश्क़ किया है तुमसे कोई पाप थोड़ी है
चाय सा है तुम्हारा इश्क़
सुबह के पहले पल से लेकर शाम के आखरी पहर तक मुझे ये इश्क़ चाहिए l
जब ये उबलती है तो वैसे ही उबलते है मेरे जज्बात तुम्हे किसी ओर का देखकर
इसके धुंए में उड़ते देखा है मैंने अक्सर अपनी ख्वाहिशों को
ये हर रंग में ढली है पर मुझे इसका सांवला रंग ही पसन्द है , तुम्हारी तरह
कभी कभी ये कड़क सी लगती है तुम्हारे रवैये की तरह कभी चीनी सी मिठास
तुम कहते हो क्या रखा है इसमें ?
एक खूबसूरत अहसास जब तुम नही होते तब ये मेरे साथ होती है , शाम के अंधेरे में तन्हा बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए अनगिनत ख्वाब बुनने का मजा ही कुछ और होता है
इसकी तलब वैसी ही है जैसी कभी कभार तुम्हे देखने को दरवाजे से नजर टिकाए मेरी खामोश आंखे होती है
इसकी लत मुझे तुमसे भी ज्यादा है शायद क्योंकि कभी कभी तुम भी हो जाते हो इसी की तरह अजीज
हा कभी कभी चाय सा है तुम्हारा इश्क़ !!!
ये जो आँखों में उदासी होंठो पर मुस्कराहट का संजोग लिए बैठे है !
असल में ये सारे इश्क़ का रोग लिए बैठे है !!
वर्तमान में जीते हुए गुजरा हुआ कल लिए बैठे है !
बाहर से अच्छे ख़ासे है , अंदर ये बिखरा हुआ दिल लिए बैठे है !!
कुछ सहला रहे है जख्म अपने , कुछ मयखानो के सहारे है !
कुछ की हो चुकी मुक्कमल , कुछ एकतरफा मोहब्बत के मारे है !!
ये जो हँसते हुए सब चेहरे है , हजारों दर्द छुपाये बैठे है
बेगानों में ढूंढते है ख़ुशी , और हमदर्द को भुलाये बैठे है
पाकीजा दिल को छोड़ , ये जिस्म की भीड़ में बैठे है
और कोई आएगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
कोई आएगा पुराना सा इश्क़ लेकर , हम कम्बख्त इस उम्मीद में बैठे है
उसे मेरी लिखी कविताये समझ नहीं आती
ना ही वो मेरी लिखी प्रेम कहानियाँ पढता है
उसने कभी नहीं देखी प्रेम पर लिखी मेरी शायरियाँ
उसे नहीं याद मेरी लिखी किसी रचना का नाम
लेकिन वो पसंद करता है लिखा अपना नाम
प्रेम में डूबी उन कहानियॉ में
विरह से जकड़ी उन कविताओं में
बेनाम वाली उन रचनाओं में और
चार लाइन की उन शायरियों में
जो बंया करती है उसके लिए मेरा एकतरफा इश्क़ !
मुझे उम्मीद है हम फिर मिलेंगे
अपना सूटकेस सम्हाले गुजर जाएंगे एक दूसरे के सामने से , चलते चलते एक नजर डालकर बढ़ जाएंगे आगे l
किसी अंजान शहर की सड़को पर हम फिर मिलेंगे
सुबह की पहली पहर में , हाथों में चाय का कुल्हड़ थामे ले रहे होंगे चुस्कियां एक दूसरे से अनजान
चाय की किसी टपरी पर हम फिर मिलेंगे
खाली पड़ी अपनी बगल वाली सीट पर आने वाले की राह ताकते , बार बार दरवाजे पर झांकते
उस खिड़की वाली सीट पर हम फिर मिलेंगे
मंदिर की परिक्रमा करते , मेरे बराबर में चलते हुए शायद फंस जाएगा तुम्हारी घड़ी में मेरे दुपट्टे का कोना
मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे उस दुपट्टे को निकालते हम फिर मिलेंगे
बारिशों के थपेड़ों को सहते हुए , घुटनो पानी मे डूबे आगे बढ़ते हुए एक दूसरे को ठंड से कांपता देख , थाम लेंगे ठंडी पड़ी हथेलियां
चमकती बिजलियों से भरे आसमान के नीचे हम फिर मिलेंगे
गलियों की खाक छानते , मंदिर दर मंदिर भटकते ,, हर किसी खामोश चेहरे में अपनी मोहब्बत ढूंढते हुए
गंगा के घाट पर हम फिर मिलेंगे , हम फिर मिलेंगे
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संजना किरोड़ीवाल
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Mam aap kaafhi khubsurt likhti hai … mai nhi byaa kar sakti🍁❤️
Mam mai aap ki bahut badi wali fan hu🍁❤️
Itne dil se aap likhti hai na ma’am, ki ekdum feel hota hai ki mai aapke samne yeh sb sune rhi hu 🥰
Ishq aapka Banaras h or aap abhi tk safr main hi ho . Hame aapko rote huye mehsus krna h kisi kahani main mout likh do na. Banaras or mout na ho
Bahut khoobsurat tarike se bataya gya apne Prem ko ❤️❤️🌹🌹❤️❤️
Lekin aajnk time esa Prem milta kaha hai ❤️👌👌
❤️❤️❤️❤️ khoobsurat chij ko aur khoobsurat bnane ka hunar h aapne di