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मनमर्जियाँ – S40

Manmarjiyan – S40

Manmarjiyan - S40

Manmarjiyan – S40

शगुन गुड्डू से नाराज थी उसके और गोलू की वजह से उसे मिश्रा जी से डांट खानी पड़ी। ना वह गुड्डू से बात कर रही थी न उसकी तरफ ध्यान दे रही थी। गुड्डू ने कहने को तो कह दिया की शगुन सिर्फ उसकी दोस्त है लेकिन शगुन की ख़ामोशी उसे परेशान कर रही थी। वेदी की दीपक से बात नहीं हो पा रही थी इसकी क्या वजह थी वह खुद भी नहीं जानती थी लेकिन दीपक की इग्नोरेंस उसे मन ही मन परेशान कर रही थी। गोलू के सर पर पहले से मुसीबत के कई टोकरे थे लेकिन इन सब में एक बात अच्छी थी की प्रीति और रोहन की सगाई होने वाली थी। रोहन और प्रीति को बिना ज्यादा मेहनत किये ही अपना प्यार मिल गया। गुप्ता जी को भी रोहन पसंद था इसलिए उन्होंने भी अपनी मंजूरी दे दी।
शगुन के सामने प्रीति ने एक नयी समस्या पैदा कर दी , दरअसल प्रीति चाहती थी की उसकी सगाई में उसके जीजू (गुड्डू) भी आये। बनारस गुड्डू का ससुराल था और वहा उसे सब शगुन के पति के रूप में जानते थे , गलती से भी किसी ने गुड्डू के सामने उसकी शादी का जिक्र कर दिया तो बात कही बनने के चक्कर में ज्यादा न बिगड़ जाये सोचकर शगुन परेशान हो रही थी। गोलू से वह हेल्प लेना नहीं चाहती थी क्योकि पहले ही गोलू ने उसे इतनी परेशानियों में फंसा रखा था।
कपड़े सुखाकर शगुन नीचे चली आयी उसका सारा सामान वेदी के कमरे में ही रखा हुआ था। प्रीति के लिए सगाई में क्या तोहफा लेकर जाना है शगुन इसी की तैयारियों में लगी हुयी थी की कुछ देर बाद मिश्राइन आयी और कहा,”शगुन प्रितिया की सगाई में तुमहू पहिले जाना चाहोगी के हमाये साथ ही चलोगी ?”
“पहले जायेंगे तो थोड़ी हेल्प कर देंगे उन सब की बाकी जैसा आप कहे”,शगुन ने कहा
“एक ठो काम करो तुम और वेदी पहले चली जाओ बाकि हम और मिश्रा जी सगाई वाले दिन आ जायेंगे”,मिश्राइन ने कहा तो शगुन सोच में पड़ गयी , प्रीति ने गुड्डू को साथ लाने को कहाँ है और मिश्राइन ने गुड्डू का जिक्र तक नहीं किया मतलब वो भी गुड्डू को साथ लेकर नहीं जाने वाले। शगुन को सोच में डूबा देखकर मिश्राइन ने कहा,”का हुआ ? का सोचने लगी ?”
“मैं और वेदी अकेले जायेंगे ?”,शगुन ने पूछा
“तुम कहो तो गुड्डू या गोलू को साथ भेज देते है उनमे से कोई एक छोड़कर आ जाएगा”,मिश्राइन ने कहा
“कोई जरूरत नहीं है उन दोनों को बाहर भेजने की , पहले से इतना बखेड़ा कर रखा है उन्होंने अब तुमहू चाहती हो और करे”,मिश्रा जी ने आते हुए कहा
“लेकिन शगुन ऐसे अकेले अपने मायके थोड़े जाएगी ?”,मिश्राइन ने कहा
“अकेले काहे जायेंगी ? हमहू शोरूम से ड्राइवर भेज देंगे ,, वैसे भी बनारस से कुछ पहले डिलीवरी का काम है तो वो भी हो जाएगा और शगुन को उसके घर भी छोड़ आएगा”,मिश्रा जी ने कहा
“सिर्फ भाभी नहीं पिताजी हम भी उनके साथ जा रहे है इस बार”,वेदी ने आते हुए कहा
“जे तो और भी अच्छा है बिटिया शगुन का भी मन लगा रहेगा रास्ते में , जाओ दोनों जाने की तैयारी करो कल सबेरे निकल जाना”,मिश्रा जी ने कहा तो शगुन और वेदी वहा से चली गयी। मिश्रा जी जाने लगे तो मिश्राइन ने रोकते हुए कहा,”जे का बात हुई बहू को ऐसे अकेले भेज रहे है आप , गुड्डू गोलू में से कोई जा सकता था ना साथ में”
“मिश्राइन हमे ना कभी कभी समझ नहीं आता की तुमहू कुछो देखती नहीं या देखकर अनजान बनती हो ,, तुम्हाये सपूत ने कल जो किया उसके बाद भी तुमहू चाहती हो हमे उसे बाहर भेजे। हमे लगता था गुड्डू धीरे धीरे बदल रहा है लेकिन नहीं हमहू गलत थे वो बदला नहीं बल्कि उसने और गोलू ने मिलकर शगुन को भी अपने जैसा बना लिया। उन दोनों के लिए बेहतर यही होगा की कुछ दिन उनको बिल्कुल भाव ना दिया जाये ,, शगुन के साथ गुड्डू को भेजकर हम फिर से कोई बखेड़ा नहीं चाहते।” ,कहकर मिश्रा जी वहा से चले गए।

बनारस , उत्तर-प्रदेश
तिवारी जी की बाते सुनकर पारस का मन अशांत हो चुका था , तिवारी जी ने उसके और सोनिया के रिश्ते को लेकर जो बातें कही वो उसे बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। पारस ने कभी भी कॉलेज की किसी लड़की या टीचर को बुरी नजर से नहीं देखा। वह हमेशा उनकी इज्जत करता था। कॉलेज में सिर्फ शगुन थी जो की उसकी अच्छी दोस्त थी और पारस उस से बात कर लिया करता था। शाम को कॉलेज खत्म होने के बाद वह अपनी बाइक लेकर घर चला आया। पारस ने सोनिया के साथ घाट जाने का वादा किया था लेकिन अभी शाम होने में वक्त था इसलिए वह पहले घर चला आया।
“आज जल्दी आ गए बेटा ?”,पारस की माँ ने गैस पर चाय चढाते हुए कहा
“हाँ वो आज काम कम था”,पारस ने जूते उतारकर रैंक में रखते हुए कहा और आकर सोफे पर बैठ गया तो नजर सामने टेबल पर रखे कार्ड पर चली गयी पारस ने उसे उठाकर पढ़ा तो उसके होंठो पर एक मुस्कान तैर गयी वह उठकर किचन में आया और अपनी माँ से कहा,”माँ प्रीति की सगाई हो रही है ?”
“सब तेरी तरह थोड़ी है जो आते हुए रिश्ते को ना कह दे”,पारस की माँ ने कहा
“माँ कर लूंगा ना मैं शादी , आप ये बताओ की प्रीति का रिश्ता कब हुआ ? आखरी बार मैं उनके घर गया था तब तो ऐसी कोई बात नहीं हुई थी फिर ऐसे अचानक ?”,पारस ने पूछा
“सुनने में आया है की लड़का उनके परिवार में ही है , अच्छा घर-परिवार है। इकलौता लड़का है और यही बनारस में ही उसकी नौकरी लगी है। शगुन को तो अच्छा घर और अच्छा लड़का मिला ही था प्रीति को भी सब अच्छा मिल गया”,पारस की माँ ने कहा
शगुन का नाम सुनते ही पारस थोड़ा असहज हो गया , सिर्फ वही जानता था की शगुन की जिंदगी में कुछ ठीक नहीं है। उसे सोच में डूबा देखकर उसकी माँ ने उसे चाय का कप थमाते हुए कहा,”पिछली बार शगुन की शादी में तो नहीं जा पाए लेकिन इस बार प्रीति की सगाई में जरूर जाउंगी मैं”
“हम्म्म”,कहकर पारस अपनी चाय पीने लगा और अपने कमरे में आ गया। उसने कपडे ही नहीं बदले और आकर बिस्तर पर लेट गया , शाम के 4 बज रहे थे। बिस्तर पर लेटे लेटे वह शगुन के बारे में सोचने लगा। शगुन के साथ उसका जो रिश्ता था बहुत ही पाक था , वह सबकुछ देख सकता था लेकिन शगुन को परेशान नहीं और यही वजह थी की जब पारस ने शगुन का गुड्डू के लिए प्यार देखा तो अपनी फीलिंग्स को भूलकर कदम पीछे बढ़ा लिए। शगुन के बारे में सोचते सोचते पारस को नींद आ गयी।
फोन की आवाज सुनकर पारस की नींद खुली उसने नींद में ही फोन उठाकर कान से लगाया और कहा,”हेलो!!!!!!”
“सात बज चुके है मिस्टर पारस और घाट के बाहर खड़ी मैं आपका इंतजार कर रही हूँ”,सोनिया ने बड़े ही प्यार से कहा
सोनिया की आवाज सुनकर पारस की नींद एकदम से खुल गयी उसने फोन कान से हटाकर टाइम देखा और कहा,”सॉरी मेरी आँख लग गयी थी , आप वही रुकिए मैं 10 मिनिट में आता हूँ”
पारस उठा हाथ मुंह धोया और तैयार होकर बाहर आया। जैसे ही वह जाने को हुआ उसकी माँ ने पूछ लिया,”पारस कही बाहर जा रहे हो ?”
“हां माँ वो किसी काम से थोड़ी देर में आजाऊंगा”,पारस ने जूते पहनते हुए कहा
“ठीक है खाने में क्या बनाऊ ?”,उन्होंने किचन से ही पूछा
“जो आपको पसंद हो बना लीजियेगा मैं खा लूंगा”,कहकर पारस ने टेबल पर रखी बाइक की चाबी उठायी और जल्दी में वहा से निकल गया। कुछ देर बाद पारस घाट के बाहर पहुंचा देखा सफ़ेद रंग का सूट पहने उस पर बनारसी दुपट्टा लगाए सोनिया खड़ी थी पारस को देखते ही सोनिया ने अपना हाथ हिलाया पारस ने बाइक साइड में लगायी और सोनिया की तरफ चला आया। पारस को सामने खड़ा देखकर सोनिया ने अपनी कलाई पर बंधी घडी को देखते हुए कहा,”पुरे 15 मिनिट लेट है आप , हमेशा लड़किया लड़को को इंतजार करवाती है लेकिन यहाँ तो उलटा हो गया मुझे ही आपका इंतजार करना पड़ रहा है”
“सॉरी वो मैं सो गया था , आप फोन नहीं करती तो शायद सोता रहता”,पारस ने मुस्कुराते हुए कहा तो सोनिया भी मुस्कुरा दी और कहा,”कोई बात नहीं चलिए चलते है”
दोनों साथ साथ सीढिया उतरते हुए नीचे चले आये। सोनिया ने देखा शाम के वक्त ये घाट और भी खूबसूरत दिखाई देता है। सोनिया बस अपलक उस नज़ारे को देखती रही और पारस सोनिया को , शगुन के बाद सोनिया ही थी जो पारस को पसंद आने लगी थी। हवा से जब बाल सोनिया के चेहरे पर उड़ने लगे तो पारस ने उन्हें अपनी उंगलियों से साइड कर दिया। उसकी छुअन का एक खूबसूरत अहसास सोनिया को बहुत गहरे तक महसूस हुआ उसने पारस की तरफ देखा तो पारस ने नजरे चुराते हुए कहा,”थोड़ी देर में यहाँ महाआरती शुरू होने वाली है , तब तक हम लोग वहा चलकर बैठते है”
” महाआरती में क्या होता है ?”,सोनिया ने चलते चलते पूछा
“भोलेनाथ की पूजा आरती होती है और कहते है उस वक्त घाट की सीढ़ियों पर खड़े होकर आप महादेव से सच्चे दिल से कुछ मांगों तो वे सुन लेते है”,पारस ने चलते हुए सोनिया को देखकर कहा
सोनिया ने उसकी तरफ देखा और कहा,”पक्का ?”
“हां बस मांगने वाले की प्रार्थना सच्ची होनी चाहिए”,पारस ने कहा
“आपको मिला है कभी आपका माँगा हुआ ?”,सोनिया ने कहा तो पारस चलते चलते रुक गया और सोनिया की तरफ पलटकर कहा,”मैंने वो माँगा जो कभी मेरा था ही नहीं”
“तो फिर आप वो माँग लीजिये जो सिर्फ आपका है”,सोनिया ने पारस की आँखों में देखते हुए कहा , सोनिया की नजरो से जैसे ही पारस की नजरे मिली उसका दिल धड़क उठा। उसने आगे बढ़ते हुए कहा,”वहा चलकर बैठते है”
दोनों आकर एक खाली सीधी पर बैठ गए , दो सीधी छोड़कर नीचे पानी था। गर्मियों के दिन थी इसलिए अभी सुहावनी शाम थी अन्धेरा नहीं हुआ था। दोनों खामोश बैठे पानी को देखते रहे। सभी नाविक वापस घाट की तरफ लौट रहे थे।
कुछ देर बाद सोनिया ने ख़ामोशी तोड़ते हुए कहा,”आपने पता लगाया वो डाटा चेंज करने वाली हरकत किसने की थी ?”
सोनिया का सवाल सुनकर पारस ने उसे सारी बातें बता दो सोनिया ने सब सूना और कहा,”बाकि सब तो ठीक है लेकिन आपको तिवारी जी पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था”
“और उसने आपको लेकर जो घटिया बात की उसका क्या ?”,पारस ने सोनिया से कहा पहली बार उसकी आँखो में सोनिया के लिए प्यार और परवाह के मिले जुले भाव थे। सोनिया कुछ देर पारस की आँखों में देखते रही और फिर कहा,”तो क्या हो गया ? उन्हें जो लगा उन्होंने बोल दिया आपके और मेरे बीच क्या रिश्ता है ये दुनिया को बताने की जरूरत नहीं है पारस जी”
‘लेकिन उसने आपको लेकर झूटी बातें कही की आपका मुझसे करीबी रिश्ता है”,पारस ने कहा तो सोनिया ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,”तो फिर इस झूठ को सच कर दीजिये”
पारस ने जैसे ही सूना उसका दिल धड़क उठा उसने सोनिया की तरफ देखा तो सोनिया कहने लगी,”आप भी जानते है की कोई रिश्ता ना होकर भी बहुत कुछ है जो हमे एक दूसरे से जोड़े हुए है वरना इस वक्त आप मेरे साथ नहीं होते ,, हो सकता है ये सिर्फ मेरे विचार हो या मेरा वहम हो पर वो भावनाये झूठी नहीं है जो इस वक्त आपके मन में है ,,,,,,, अब उन भावनाओ को आप क्या नाम देते है ये आप पर निर्भर करता है”
सोनिया की बाते सुनकर पारस खामोश हो गया सच ही कह रही थी सोनिया कुछ था उसके और पारस के बीच जो पारस उसकी ओर खींचा चला जा रहा था। दोनों खामोश एक दूसरे की आँखों में देखते रहे कानो में महादेव की आरती का शंखनाद बजने लगा।

कानपूर , उत्तर-प्रदेश
रात के खाने के समय सब मौजूद थे पर गुड्डू नहीं आया। मिश्राइन ने देखा गुड्डू नहीं है तो वेदी से उसे बुलाकर लाने को कहा। वेदी जैसे ही उठने को हुई मिश्रा जी ने कहा,”कोई जरूरत नहीं है बुलाकर लाने की , जब भूख लगी है तो खुद ही आ जायेंगे लाट साहब”
मिश्राइन ने शगुन की तरफ देखा तो शगुन ने अपनी पलकें झपकाकर उन्हें वही रुकने का इशारा किया। मिश्रा जी खाना खाकर अपने कमरे में चले गए। वेदी भी खाना खाकर अपने कमरे में चली गयी। अम्मा खाना खाकर वही आँगन में बैठी सुस्ताने लगी। मिश्राइन रसोई में चली आयी देखा शगुन गुड्डू के लिए थाली लगा रही है तो उसके पास आकर कहा,”बिटिया तुमहू सुबह जाने वाली हो तो जे सब छोडो गुड्डू को खाना हम दे आही है तुमहू अपना खाना खाओ और अपना सामान जमाय ल्यो”
“मैं लेकर जाती हूँ माजी आप खामखा परेशान होंगी”,शगुन ने कहा
“इह मा परेशानी की का बात है वैसे भी हम खाना लेकर जायेंगे तो उसका गुस्सा थोड़ा कम हो जाएगा , तुमहू खाओ हम लेकर जाते है”,कहते हुए मिश्राइन गुड्डू के लिए खाना लेकर चली गयी। शगुन बेमन से खाना खाने लगी सुबह से उसकी एक बार भी गुड्डू से बात नहीं हुई , कुछ वह गुड्डू से नाराज थी और कुछ गुड्डू भी भाव खा रहा था। खाना खाकर शगुन अपने कमरे में चली गयी और वेदी के साथ मिलकर कपडे जमाने लगी।
अपने कमरे के बाहर गुड्डू यहाँ से वहा चक्कर काटते हुए खुद से कहने लगा,”आज हमहूँ खाना खाने नहीं गए ,पक्का वो ही हमाये लिए खाना लेकर आएगी तब उनसे पूछेंगे की हमसे नाराज काहे है ? अब हमने तो उनको डाँटा नहीं वो तो पिताजी ने डाँटा तो हमसे किस बात की नाराजगी,,,,,,,,,,,,बस एक बार वो आये”
गुड्डू ने देखा कोई नहीं आ रहा तो वह सीढ़ियों के पास गया और देखा तो खाने की थाली दिखाई दी , गुड्डू खुश हो गया की जरूर शगुन आ रही है वह वापस चला आया और अनजान बनकर यहाँ वह घूमने लगा। मिश्राइन खाना लेकर आयी और बाहर पड़ी टेबल पर रखते हुए कहा,”का खाना खाने काहे नहीं आये गुड्डू ?”
“जे शगुन की आवाज को का हो गवा अम्मा की तरह बात काहे कर रही है ?”,बड़बड़ाते हुए गुड्डू जैसे ही पलटा सच में मिश्राइन को देखकर हैरान रह गया और कहा,”ऐसे ही नहीं आये”
“गुस्सा थूक दयो गुड्डू तुम्हाये पिताजी भी तुम्हाये भले के लिए ही तुम्हे समझाते है , चलो छोडो जे गुस्सा और खाना खाय ल्यो”,कहकर मिश्राइन वहा से चली गयी। गुड्डू आया और बेमन से खाना खाने बैठा , दो चार निवाले खाये और खुद से कहने लगा,”इतनी नाराजगी की खाना लेकर तक नहीं आयी , जे सही है शगुन गुप्ता ,,, हम भी बात नहीं करेंगे तुमसे दिखाओ तुमहू अपनी नाराजगी” कहते हुए गुड्डू ने खाना अधूरा छोड़ दिया और हाथ धोकर अपने कमरे में जाकर सो गया।

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